लेखक : दिलीप कुमार
हिन्दी सिनेमा ने हमेशा बताया है होली प्रेम का त्यौहार है. छोटे – बड़े में भेद मिटा देने, आपसी भाइचारे, सामाजिक सौहार्द वातावरण में मतभेद मिटा आपस में प्रेम से रहने का संदेश देता है. होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों से रंग मिल जाते हैं.. आनन्द बक्शी ने कितना यादगार गीत लिखा है, जो शोले फिल्म की कहानी में रोमांस की नीव डालता है. रंगों का त्योहार होली आए और हिन्दी सिनेमा के सदाबहार गीतों का किस्सों का जिक्र न हो, सिनेमा की रोमांटिक होली की चर्चा न हो भला ऐसा कैसे हो सकता है! आज की रंग बदलती दुनिया में हर व्यक्ति को अपने से जुड़े व्यक्ति के रंग की पहिचान कर लेनी चाहिए. हिन्दी सिनेमा में होली के गीतों की भरमार है, यूँ तो समय – समय पर फ़िल्मों में होली के रंग कहानी की टाइमिंग के साथ भरे जाते रहे हैं, लेकिन यह जानना बड़ा दिलचस्प है, कि हिन्दी सिनेमा में होली की शुरुआत कैसे हुई? होली के रंग बच्चों, बुजुर्गों सभी के पसंदीदा हैं, वहीँ होली वाले गीतों को भारतीय समाज ने अपनी होली के अभिव्यक्ति की आवाज़ ही बनी ली, हमारे सिनेमा – समाज को यूँ ही एक दूसरे का आईना नहीं कहा जाता.
देखा जाए तो अब कि फ़िल्मों में होली के रंगों के लिए ज़्यादा स्पेस बचा नहीं है, लेकिन एक दौर में होली के रंगों को कहानी के रंगों में घोल दिया जाता था. सिनेमा में होली फिल्माने के लिए ख़ासकर निर्देशक, ऐक्टर खासी उत्सुकता रखते थे. आज के दौर में भी होली फिल्माई जाती है, लेकिन वो उत्साह दिखता नहीं है.. अब जिस तरह की फिल्में बन रही हैं, उनमें दिलों को जोड़ने वाले पर्वों को दिखाने की गुंजाइश बहुत है. लेकिन ऐसा बहुत कम हो रहा है, फिल्मों के साथ बदलते युवाओं की रूचि भी बदल रही है, शायद यही वजह है कि फिल्मों से होली कहीं दूर जाती नज़र आ रही है. पूरी तरह ऐसा भी नहीं है आज भी युवाओं का सबसे पसन्दीदा त्योहार होली है. 2013 में रणबीर कपूर की फिल्म का गीत बलम पिचकारी काफ़ी लोकप्रिय हुआ था. हिन्दी सिनेमा में बदलते प्रयोगों ने ज़रूर बदलाव किए हैं. होली से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि कुछ फिल्मकारों ने इसे कहानी आगे बढ़ाने के लिए उपयोग किया, तो कुछ ने टर्निंग प्वाइंट लाने के लिए कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने इसे सिर्फ मौज-मस्ती और गाने फिट करने के लिए फिल्म में डाला.
सिल्वर स्क्रीन पर जब पहली बार होली खेली गई तब कैमरे रंगीन नहीं थे. तकनीक इतनी विकसित नहीं थी. आज़ादी से पहले 1940 फ़िल्म औरत में में पहली बार होली के सीन को क्रिएट किया गया था, इसके पीछे सारी की सारी सिनेमैटिक समझ निर्देशक महबूब खान साहब की थी. महबूब खान साहब ने बड़ी शिद्दत से होली को फिल्माया था, लेकिन तब रंगीन फ़िल्मों का दौर नहीं था. औरत फ़िल्म में होली तो खेली गई, लेकिन उसके रंग दिखाई नहीं दिए, इसका अफ़सोस उन्हें ज़रूर रहा. जब कलर फ़िल्मों का दौर आया तब उन्होंने औरत फ़िल्म को ही मदर इन्डिया नाम से बनाया. मदर इन्डिया एक कलर फ़िल्म थी, जिसमें होली के रंग साफ़ – साफ़ देखे जा सकते हैं. होली के त्यौहार को हिन्दुओ का पावन त्यौहार ज़रूर कहा जाता है लेकिन होली हिन्दुस्तान के गंगा – जमुनी तहजीब की साझी विरासत है.. मदर इन्डिया के गीत ‘होली आई रे कन्हाई’ क्लासिकल होली गीत को गीतकार शकील बदायूंनी ने लिखा जिसे संगीत दिया, ठुमरी सम्राट नौशाद अली साहब ने, एवं इसे आवाज़ दी शमशाद बेगम ने, वहीँ इसे सिल्वर स्क्रीन पर लाने वाले फ़िल्मकार महबूब खान ही थे. मदर इन्डिया से पहले दिलीप साहब की सुपरहिट फिल्म आन में ऐक्ट्रिस नादरा एवं दिलीप साहब के बीच होली खेली गई थी. महबूब खान साहब की फ़िल्मों में होली अवश्य ही फ़िल्माई जाती थी. होली के लिए प्लॉट तैयार करते थे. हिन्दी सिनेमा में होली का ट्रेंड लाने वाले महबूब खान ही थे. महबूब साहब ने सिल्वर स्क्रीन को होली के रंगों से रंग दिया वहीँ हिन्दी सिनेमा को एक रास्ता दिखाते हुए पूरे सिनेमा को एक कन्टेन्ट दे दिया. हिन्दी सिनेमा में होली का ट्रेंड सेटर महबूब खान को कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी.
महबूब खान के बाद बहुतेरे फिल्मकारो ने होली को रूपहले पर्दे पर उकेरा कई फ़िल्मकारों ने होली के रंगों से सिनेमा को सराबोर कर दिया. तरह – तरह के होली के गीत आए और लोगों के जुबान पर चढ़ गए. वहीँ गब्बर सिंह का क्लासिकल कालजयी डायलॉग ‘होली कब है कब है होली कब है कब है ‘ डायलॉग तो आज भी लोगों के जेहन में है. ब्रिज की होली तो हिन्दी सिनेमा की पसंदीदा रही है. होली आई रे कन्हाई, रंग डारे कन्हैया रंग डारे’, होली खेले नन्दलाला, श्याम होली खेलने आया, आ गई बैरिन होरी कि पिया बिन मोहे न भाए, आज ब्रिज में होरी रे रसिया, आदि होली पर सैकड़ों गीत रचे गए. जो लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं.
कटी पतंग में राजेश खन्ना आशा पारेख को रंग लगाने के लिए चुनौती देते हुए मसखरी करते हैं… वहीँ डर में सिरफिरे शाहरुख ने डर फ़िल्म में होली के एक नेगेटिव सेड को बाहर लाते हुए समाज के एक हिस्से को उजागर किया. अनिल कपूर, ऋषि कपूर, दिलीप साहब, देव साहब, सभी ने अपनी होली के रंगों को क्या खूब खेला. यश चोपड़ा ने तो सभी निर्देशकों को पीछे ही छोड़ दिया. उनकी फिल्म सिलसिला फिल्म में ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे’ अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज़ देते हुए गीत में परफॉर्मेंस दी यह गीत तो होली का नेशनल एंथम बन गया… अमिताभ बच्चन की आवाज़ के गीतों होरी खेले रघुवीरा तो बच्चों – से लेकर बुजुर्गों तक का पसन्दीदा गीत है. अमिताभ बच्चन की आवाज़ होली के रंगों में रंगी हुई है, होली उनकी आवाज़ के बिना मुक्कमल ही नहीं होती. हिन्दी सिनेमा ने हमेशा से ही हमारे समाज को होली के रंगों से सराबोर किया है. वहीँ आपसी मतभेद भुलाकर, छोटे – बड़े का भेद मिटाकर सभी को प्रेम के साथ मिलकर रहने की सीख देता है.. हिन्दी सिनेमा एवं हमारे समाज को एक दूसरे का आईना कहा जाता है.. हिन्दी सिनेमा ने होली को दिलचस्प बना दिया एवं खासी लोकप्रियता दिलाई. आप सभी को रंग मुबारक हो.