Thursday, November 21, 2024
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बिना बोले मनुष्यता का पाठ पढ़ा गए चार्ली चैप्लिन

लेखक : दिलीप कुमार

ब्रिटेन में भी सामजिक असंतुलन था, लगभग पूरी दुनिया में ब्रिटेन की हुकुमत थी, दुनिया भर से लूट-लूटकर जमा की गई संपत्ति के बाद भी ब्रिटेन में अति गरीबी थी. सामाजिक अर्थिक असंतुलन ऐसा कि अमीर और रईस होते चले जा रहे थे, वहीँ गरीब और गरीब हो रहे थे. इसी गरीबी में पैदा हुआ एक ऐसा नायक जिसने फ़िल्मों में बिना बोले ही पूरी दुनिया को मनुष्यता का पाठ पढ़ा गए. एक ऐसा नायक जो बिना बोलती हुई फ़िल्मों का निर्माण करता था, लेकिन तानाशाह सत्ताधीशों को अपनी कला के माध्यम से चुनौती भी देता था. चार्ली चैप्लिन का नाम आते ही श्रृद्धा से सिर झुक जाता है. ब्लैक & व्हाइट फ़िल्मों का चलन शुरू हुआ तब उन्होंने दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाह के चेहरे पर कुकर्मो की राख मल दिया था.

बीसवीं सदी में इस दुनिया में तीन महापुरुषों ने इस धरती पर जन्म लिया था. तीनों जैसा न कोई पैदा हुआ है और न पैदा होगा. अल्बर्ट आइंस्टीन ने परमाणु की दुनिया रची, उन्होंने कभी भी नहीं सोचा होगा, कि आने वाले समय में यह दुनिया नष्ट होने के लिए बारूद के ढेर में खड़ी होगी, जब कि उन्होंने यह सब मनुष्यता के लिए किया था. दूसरे महात्मा गांधी जी जिनके उपदेश पूरी दुनिया के लिए ग्रंथ का काम करते हैं, जिन्होंने अहिंसा को पूजा, जिन्होंने अहिंसा का पाठ पूरी दुनिया को सिखाया, उनके ही देश में उनकी क्रूरता से हत्या कर दी जाएगी. जिन चार्ली चैप्लिन ने अमेरिका को अपनी ज़िन्दगी के बेशकीमती रचनात्मक 40 साल दिए, उसी अमेरिका ने उन्हें यहूदी, वामपंथी सिद्ध करने के लिए तरह – तरह से साज़िशें रचीं. जिस अमेरिका ने उन्हें महान चार्ली चैप्लिन बनाया उसी अमेरिका को चार्ली चैप्लिन ने जलते मकान की भांति त्याग दिया था.

चार्ली चैप्लिन ने मंच में तब कदम रखा था, जब उनकी माँ मंच को छोड़ रहीं थीं. अति गरीबी में पला-बढ़ा महज पांच साल का चार्ली उस दिन अपनी मां के साथ थिएटर गया. मां हैन्ना थिएटर में गाकर भरण – पोषण करतीं थी. उस दिन गाना गाते वक्त अचानक हैन्ना का गला खराब हो गया. तब दर्शकों ने हूटिंग शुरू कर करने लगे, एक दर्शक ने कुछ मंच की तरफ़ फेंककर मारा उनको चोट लग गई. इवेंट मैनेजर हैन्ना के पास पहुंचा और उससे झगड़ा करने लगा. मैनेजर ने ईलाज के लिए पैसे देने के लिए मना कर दिया था, चार्ली ने देखा कि माँ को तो हस्पताल जाना चाहिए, लेकिन यह मैनेजर पैसे देने की बजाय झगड़ा कर रहा है. चार्ली ने दोनों को झगड़ते देखा तो वह दोनों के पास पहुंचा और बोला, ‘आप दोनों आराम से झगड़ा करिए, तब तक स्टेज पर मैं गाना गाता हूं. ’ मां हैन्ना बोली, ‘नहीं, तुमको कुछ नहीं आता. तुम स्टेज पर नहीं जाओगे’ मगर मैनेजर पहले भी चार्ली के करतब देख चुका था, तो उसने मंच में जाने के लिए चार्ली को अनुमति दे दी. मां सोचती रही कि मेरा छोटा सा बेटा कैसे इस उग्र भीड़ का सामना करेगा. इसी बीच मैनेजर चार्ली को अपने साथ स्टेज पर लेकर गया. दर्शकों से उसका परिचय कराया.बालक चार्ली ने मंच में गाना शुरू किया. उसने गाने के लिए जैक जोंस का गाना चुना था. अभी चार्ली ने गाना आधा ही गाया था कि स्टेज पर पैसों की बौछार होने लगी. यह देखकर चार्ली ने गाना बंद कर दिया और बोला, ‘पहले मैं पैसे उठाऊंगा, फिर लगाऊंगा. ’ उसके यह कहते ही पूरा हॉल हंसी के ठहाकों से गूंज उठा. इसके बाद तो चार्ली ने डांस भी किया और अपनी मां की मिमिक्री से लोगों का दिल जीत लिया था. उस दिन पूरा हॉल लगातार ठहाकों से गूंजता रहा. महज पांच साल की उम्र में यह कारनामा करने वाला बालक आगे चलकर चार्ली चैप्लिन के नाम से मशहूर हुआ. चार्ली चैप्लिन आज भी अपनी रची गई रचनात्मक दुनिया के लिए याद किए जाते हैं.

चार्ली चैप्लिन एक जीनियस इंसान थे, जो युद्ध की चीखें, गरीबी, भुखमरी आदि को बिना बोले ही अपनी अदाकारी के जरिए लोगों को खूब हँसाते थे. चार्ली चैप्लिन की मूक फ़िल्मों का एक ही उद्देश्य था ‘मेरी तकलीफ़ किसी की खुशी, हँसी का कारण हो सकती है, लेकिन मेरी हँसी किसी के तकलीफ़ का कारण न बने, सिर्फ इतना ध्यान रखना होता है. इसलिए मुझे बारिश में घूमना पसन्द है, क्योंकि मेरे आंसू कोई भी नहीं देख पाएगा. चार्ली चैप्लिन एक ऐसे अभिनेता थे, जिनकी अदाकारी, स्टाइल की आज भी नकल की जाती है, लेकिन हूबहू नकल करना किसी के बस की बात नहीं है. चार्ली चैप्लिन कॉमिक, साइलेंट हास्य करते थे, यही हास्य उनकी पहिचान था, एक दार्शनिक कलाकार चार्ली चैप्लिन का दर्शन शास्त्र उनका हास्य ही था. इसी विचार के कारण दुनिया की सबसे बड़ी निरंकुश सत्ता डरती थी. उस दौर में गरीबी, कट्टरता, युद्ध का दंश झेल रहे बुढ़े, बच्चों, महिलाओं के लिए हँसी का कारण थे. चार्ली चैप्लिन ने पेट – पीठ में फर्क़ खत्म कर देने वाली गरीबी की भूख महसूस की, लेकिन उन्होंने बहुत सारी दौलत भी कमाई, लेकिन चार्ली चैप्लिन का कहना था कि मैं जिस दिन पैसे के कारण इस लग्ज़री लाइफ जीने का आदि हो जाऊँगा उस दिन मैं एक कलाकार के रूप में खत्म हो जाऊँगा’. जिस पांच साल की उम्र में बच्चे माँ की गोद में रहते हैं, या मुश्किल से स्कूल जा पाते हैं, उस छोटी सी उम्र में बालक चार्ली चैप्लिन लन्दन की हड्डियां गला देने वाली सर्द में सडकों पर ज़िन्दगी के गुर सीख रहे थे, उस सीख की जिंदगी में कभी भी जरूरत हो सकती है. चार्ली चैप्लिन ने दर्द भरी हँसी को अपनी फ़िल्मों में लोगों को हंसाने के लिए उपयोग किया.

चार्ली चैप्लिन के दौर में हॉलीवुड, सहित जर्मन सिनेमा, रूसी सिनेमा सहित पूरी दुनिया का सिनेमा अपने चरम पर पहुंच रहा था. वहीँ मूक सिनेमा के दौर में चार्ली चैप्लिन की कलात्मकता, अदाकारी का अपना जलवा था. चार्ली की हास्य फ़िल्में, व्यवसाय एवं कलात्मकता दोनों का समन्वय कर जरूरतें भी पूरा कर रही थीं. उस दौर में ‘लॉरेन हार्डी’ से लेकर बूस्टर किटोन, हेराल्ड लॉयड, जैसे मूक फ़िल्मों के महान अदाकार सिनेमा के जरिए पूरी दुनिया को अपनी कला के जरिए आवाज़ दे रहे थे, लेकिन चार्ली चैप्लिन सरोकार का हास्य लिए मास्टरी से इन सभी को लीड कर रहे थे. हेराल्ड लॉयड, लॉरेन हार्डी की मूक फ़िल्मों का क्लास भी चार्ली चैप्लिन से कम नहीं था, लेकिन चार्ली चैप्लिन का सरोकार का हास्य आज भी प्रासंगिक हैं, वहीँ हेराल्ड लॉयड जैसे कलाकार व्यावसायिक फ़िल्मों पर जोर देते थे. वहीँ चार्ली चैप्लिन आज भी लोगों के दिलों में राज कर रहे हैं. चार्ली चैप्लिन फ़िल्मों में आने से पहले ही बहुत ख्याति प्राप्त कर चुके थे. उनकी लोकप्रियता का ग्राफ इतना बड़ा था, कि चार्ली चैप्लिन की नकल करते हुए ‘बिली बेस्ट’ ने 1912 में फेक चैप्लिन नामक फिल्म बनाई थी. ‘बिली बेस्ट’ चार्ली चैप्लिन की नकल करने वालों में सबसे उम्दा थे, लेकिन जब चार्ली चैप्लिन ने फ़िल्मों का रुख किया तो पहली फिल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ 1914 में उन्होंने अपने ट्रंप कैरेक्टर का उपयोग नहीं किया. रोचक बात यह है कि बगैर ट्रम्प कैरेक्टर के भी चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों में एंट्री यादगार थी. फिर उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने अपना सिग्नेचर कैरेक्टर ट्रम्प को करना शुरू किया तो आम सरोकार के साथ अपने दर्शन को मिलाकर यूँ लगता है जैसे उन्होंने पूरा का पूरा मनुष्यता का सिलेबस तैयार कर दिया था. सन 1914 में चार्ली ने 35 सुपरहिट फ़िल्मों में काम किया, यह साल उनकी सिनेमाई यात्रा का स्वर्णिम दौर था.

चार्ली चैप्लिन का मानना था कि हँसी भी दुःख की बेल से फूटती है, क्योंकि दुःख के बाद फूटकर हंसना जरूरी होता है. आम सरोकार के लिए फ़िल्मों का निर्माण करने वाले अपनी मूक अदाकारी से चार्ली चैप्लिन इतने विराट बन चुके थे, कि यहूदी, वामपंथी, गोरे – काले सभी प्रकार की विचारधारा से ऊपर उठ कर दर्द में चीखती आवाजों के लिए न बोलते हुए भी उन्मुक्त आवाज़ बनकर उभरे थे. उनके अंदाज़ से उस दौर की सत्ता की चूलें हिल जाती थीं. युद्घ का दंश झेल रहे, गरीबी, भुखमरी झेल रहे लोगों के दुख दर्द को समेटे हुए लोगों के लिए चार्ली चैप्लिन की बिना बोलती आवाज़ सुकून देती थी. उस दौर में चार्ली चैप्लिन से शायद ही कोई उनके प्रभाव से बच पाया हो. महान वैज्ञानिक, दार्शनिक, अल्बर्ट आइंस्टीन, एवं महान चार्ली चैप्लिन की फिल्म सिटी लाइट प्रीमियर पर मुलाकात हुई तो अल्बर्ट आइंस्टीन ने चार्ली चैप्लिन से कहा – “मैं आपकी फ़िल्मों आपकी अदाकारी का सबसे बड़ा प्रसंशक हूं, भले ही आप एक भी शब्द नहीं बोलते, लेकिन पूरी दुनिया आपकी मूक आवाज़ को समझ जाती है, कि आप कहना क्या चाहते हैं”. जवाब में चार्ली चैप्लिन ने कहा ” मैं खुद आपकी समझ वैज्ञानिकता का प्रसंशक हूं, भले ही लोगों को आपकी बातेँ समझ न आती हों लेकिन पूरी दुनिया आपके ज्ञान – विज्ञान की कसमें खाती है”. ऐसे दो महान इंसानो का वार्तालाप आज के दौर में एक सिलेबस है. फिल्म सिटी लाइट की सफ़लता इतनी बड़ी थी, कि यातायात रुक गया था.

इस दुनिया ने चार्ली – चैप्लिन एवं महात्मा गांधी जी जैसे महात्मा देखे हैं, तो वहीँ हिटलर एवं चर्चिल जैसे क्रूर तानाशाहों को भी देखा है. आज कोई भी गाँधी जी को कुछ भी बोलने लगता है, तो दुख होता है कि गांधी जी दुनिया के पहले ऐसे राष्ट्रपिता हैं, जिनको खारिज करने की भी आज़ादी है. भारत सहित दुनिया में गांधी जी के दौर में या उनके बाद शायद ही कोई विचार करने वाला होगा जो उनकी महान – विराट आभा से परिचित एवं प्रसंशक न हो. जब चार्ली चैप्लिन महात्मा गांधी जी से मिलने के लिए उत्साहित थे, लेकिन सोच भी रहे थे, कि इतने महान शख्सियत का अभिवादन कैसे करूंगा. “चार्ली चैप्लिन जब गांधी जी से मिले तो उन्होंने कहा कि मैं आपके विचारों से बहुत प्रभावित हूं. मैं आपके देश की आज़ादी का पूर्णतः पक्षधर हूं, लेकिन आप मशीनों का विरोध क्यों करते हैं? मुझे आपकी बात समझ नहीं आई.” अपने बापू गांधी जी ने चार्ली चैप्लिन को जवाब देते हुए समझाया “बदलते हुए समाज का स्वागत करता हूँ, मशीनों का विरोधी नहीं हूं, लेकिन मशीने जब आम लोगों से उनकी रोटी यानि काम छीन ले तो यह दुःखित है, हमारा देश आपके देश का गुलाम है क्योंकि वो आपकी मशीनरी की चकाचौंध से आकर्षित है. इस आर्कषण से जब तक हम बाहर नहीं आएंगे तब तक आज़ाद नहीं हो सकते. महान बापू की बातों एवं उनकी शख्सियत का चार्ली चैप्लिन पर बहुत गहरा प्रभाव हुआ. बाद में उनकी फ़िल्मों में अहिंसा के सिद्धांत, मशीनों के दुरुपयोग के प्रति, भारत की आज़ादी के समर्थन में उनकी फ़िल्मों में उनकी अदाकारी देखी जा सकती है.

उनकी फ़िल्मों से आई जागरुकता ने हिटलर की तानाशाही के ख़िलाफ लोगों को एक समझ दी थी. युद्ध को लेकर चार्ली चैप्लिन हमेशा विवादों में रहे हैं. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सेना में शामिल न होने के कारण ब्रिटिश मीडिया ने उनकी खूब आलोचना की थी. जिसके बाद 1930 में ‘नाइट’ उपाधि से सम्मानित करने से रोक दिया गया था. सन 1930 में उन्हें यहूदी सिद्ध करने के लिए उन्हें कार्ल टोन स्टिन नाम से नाज़ी वादियों ने खूब प्रचारित किया. इन्हीं दस्तावेजों को सच मानकर अमरीकी खुफ़िया एजेंसी एफबीआई एक दशक तक उनके खिलाफ जांच करती रही. यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक चार्ली चैप्लिन अमेरिका को हमेशा के लिए छोड़ नहीं गए. बिडम्बना है कि चार्ली चैप्लिन जैसे महान लोगों को भी इस दशा से गुजरना पड़ा. बदलते हुए दौर के साथ सिनेमा भी बदल चुका था. समय को देखते हुए अपने ट्रम्प कैरेक्टर को चार्ली चैप्लिन छोड़ चुके थे, लेकिन बाद में चार्ली चैप्लिन का जलवा वैसे नहीं था जैसे पहले हुआ करत था, लेकिन उन्होंने हार न मानते हुए सन 1952 में लाइम लाइट एवं 1957 में ए किंग इन न्यूयॉर्क में एफबीआई ने कैसे साजिशों का जाल बुना था, चार्ली चैप्लिन ने एक एक रेशा खोलकर रख दिया. अब बोलती हुए फ़िल्मों के लिए चार्ली चैप्लिन ने बोलने से मना कर दिया था. बोलती हुई फ़िल्मों की दुनिया आगे बढ़ गई थी, चार्ली चैप्लिन वहीँ ठहर गए थे. चार्ली चैप्लिन अब किंवदंति बन चुके थे, पूरी दुनिया के सिनेमा में उनकी नकल करने वालों की संख्या बहुत बड़ी थी, भारत में भी ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब ने उनकी नकल करते हुए फ़िल्मों का निर्माण किया, उन्हें बेशुमार ख्याति मिली, लेकिन चार्ली चैप्लिन का ऑरा तो कोई छू भी नहीं सका है. क्योंकि चार्ली चैप्लिन, अभिनय, लेखन, म्युज़िक डायरेक्शन, निदेशक आदि को मिलाकर सिनेमा, अदाकारी, कला की दुनिया का पूरा सिलेबस थे, आज भी न उनकी तरह कोई हुआ है, और न होगा. यही कारण है कि चार्ली चैप्लिन ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड लेने के लिए मंच पर पहुंचे तो लगातार 12 मिनट तक बजती हुई तालियों ने उनके सम्मान से पूरी दुनिया में गुंजायमान हो गई थीं. चार्ली चैप्लिन की आँखों से निकलते भावनाओं के आंसू मानो सभी का आभार व्यक्त कर रहे थे. क्रिसमस का दिन पूरी दुनिया के लिए उल्लास का दिन होता है लेकिन 25 दिसंबर 1977 को इस महापुरुष ने इस फानी दुनिया से विदा हो गए.. इस दिन पूरी दुनिया के लिए एक भारी क्षति थी, इस दुनिया ने भले ही उनकी कला की फीस न दी हो, लेकिन चार्ली चैप्लिन अपनी कला से अभी न खत्म होने वाले युग का निर्माण कर गए हैं…. युगपुरुष सर चार्ली चैप्लिन को मेरा सादर प्रणाम….

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