Sunday, June 8, 2025
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कविता : नि:शब्द

प्रियरंजन पाढ़ी की दो कवितायें

निशब्द हैं सब, उपवन, समीर, विहग जब, तुम क्या करते हो तब?

नहीं सोचते उनको क्या?

पीड़ा विगत दिनों की, उभर आती मस्तक पर बन स्वेद कण,

मस्तिष्क में दबी स्मृतियां, रहती हैं ज्यों की त्यों,

तुम नहीं सोचते उनको क्या?

जब होता है निशब्द

अधूरी अनकही बातों को तलाशते, पर ढूंढ नहीं पाते उन्हे फिर,

बीते अतीत के तंतुओं में भी आज, मृदु धरा के अंतस में नहीं हैं क्या जख्मों के निशान,

निशब्द होता है जब पहले से अर्थ खो चुके अक्षर कुछ व्यक्त नहीं करते तब,

मयूर थे प्रथम, जिन्होंने

निशब्दता को सरकते जाना,

वे थे मुखर, कोलाहलपूर्ण, धूमिल धरा पर सौंदर्यपूर्ण, वे थे परिचित निशब्दता से, निशब्दता के विस्तार से,

परिचित थे वे, कैसे उतरेगा ये भीतर- अंतर, लाएगा ये अनिंद्रित ज्वर,

और निस्तब्धता छा गयी है, जैसे मलबे से बिखरे रेत के कण या साधारण धूल,

कर सकता था न कोई दूर इसे पथ से,

रोक न सकता था इसे कोई सतत द्वार पर,

दिन की गीली घास पर,

 गणना करते अपने गुनाह बारम्बार,

खेल रहा हो जैसे प्रकाश से अंधकार,

अल्पाशीष का जीने के लिए कुछ भी नहीं सार,

बारिश की बूंदों ने दी सहमति,

बिना किए विलाप, बिना हुए उदास, हवा में इसे बसाया,

निशब्दता अंततः मौन , पीली संकरी गलियों में समा गयी,

जहां डूबता सूरज, मद्धम हवा,

शाम को लौटते विहग, और बिखरे हैं हमारे स्वप्नशेष । 

पुरवा और विस्मृति

पूर्व दिशा से आजकल बहता है मंद समीर,

घास के नुकीले सिरों को करता और भी तीव्र,

सूखी धरती पर धीमे शब्दों के मंद स्वर,

मेरी विस्मृति की वायु को करते धन्य,

धुंधले दिन में अपरिपक्व निद्रा प्रवाह,

पूर्व दिशा से आजकल ——

इन दिनों तुम मौन हो, है मंद ध्वनि भी नहीं,

पीड़ाओं के वे चलचित्र नहीं, जो प्रश्रय देते हैं प्रेम को,

धूल धूसरित नभ स्वच्छ हुआ जब

स्वच्छ आकाश के चटक रंग,

व्याकुल अधीर हृदय की,

विस्मृत स्मृतियाँ,

तप्त वनों की लौ के संग क्षितिज के ऊपर,

अंकित होंगी तब ।

असंभव है इन दिनों कुछ कहना ,

जिह्वा मेरी थकी नहीं है,

सीने में पीड़ा भी नहीं है,

उन अवयवों के कारण भी नहीं,

रोकते हैं जो शोकाकुल हो हवा में बह जाने को

संभवतः है ये कंकड़ों के मध्य धारा,

जैसे किसी ने दूर से हो पुनः पुकारा,

और किया अस्वीकृत पुनः देखने को

पतली पत्तियों के संवारती केश

हवा भी नहीं बोल सकी लेश,

यह एकत्रित स्वर हैं वातावर्त, क्रोधित बैगनी नभ के बस ऊपर,

तूफान का रंग,

धूल कण, वर्षा की बूंदें, आम्र बौर,

फटी धरती तक जाने में,

इन्हें परिश्रम के कितने लग गए वर्ष,

कुछ कहा नहीं फिर, कुछ भी नहीं,

हमारी स्मृति पृष्ठों से भी,

मिट गए ये चिन्ह,

पूर्व दिशा से आजकल बहता है मंद समीर ।

                                              द्वारा —

                                        श्री प्रिय रंजन पाढ़ी

                           मूल रचना अंग्रेजी में है । अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद –

                                         राखी बख्शी

जनसंख्या नियंत्रण को असम में लगाई जाएगी पाप्यूलेशन आर्मी

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असम में जनसंख्या को नियंत्रण करने के लिए अब पाप्यूलेशन आर्मी लगाई जाएगी। चौंकिए नहीं, यहाँ पर फिलहाल हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि 10 फीसदी है जबकि मुसलमानों के मामले में यह 29 प्रतिशत है। ऐसे में मुस्लिम बहुल इलाकों में जनसंख्या को नियंत्रित करने और जागरूकता फैलाने के लिए असम सरकार ‘जनसंख्या सेना’ या पॉप्युलेशन आर्मी बनाने की तैयारी में है। इस बात की जानकारी राज्य के मुख्यमंत्री हिंमंत बिस्वा शर्मा ने विधानसभा में दी।  उन्होंने बताया कि एक हजार युवाओं की सेना क्षेत्रों में पहुंचकर गर्भनिरोधक का वितरण करेगी। शर्मा के जनसंख्या नियंत्रित करने के कई प्रस्ताव लोगों की नाराजगी का सामना कर चुके हैं।

शर्मा ने सभा को बताया कि राज्य के पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में आबादी बढ़ रही है. उन्होंने कहा, ‘जनसंख्या नियंत्रण के उपायों के बारे में जागरूकता पहुंचाने और गर्भनिरोधक वितरित करने में चार चपोरी के करीब 1000 युवा शामिल होंगे. हम आशा कार्यकर्ताओं का एक अलग बल बनाने की तैयारी कर रहे हैं, जिन्हें जन्म नियंत्रण और गर्भनिरोधक वितरण का काम दिया जाएगा।’ उन्होंने कहा, ‘2001 से लेकर 2011 तक असम में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि 10 फीसदी थी, तो मुसलमानों के मामले में यह 29 प्रतिशत थी.’ उन्होंने कहा, ‘कम आबादी के कारण बड़े घरों, वाहनों के चलते असम में हिंदुओं की जीवनशैली बेहतर हुई है. बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बन रहे हैं.’ रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक यह साफ नहीं है कि उन्होंने यह आंकड़े किस आधार पर दिए हैं. सीएम के मुताबिक, वे राज्य में बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के उपायों के प्रचार के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं।

मुंबई से लेकर लंदन तक पॉर्न फिल्मों का कारोबार

  • कुन्द्रा से लेकर कई बड़े नामों पर शिकंजा

छह महीने की लंबी मशक्कत के बाद आखिरकर पॉर्न फिल्मों के कारोबार से जुड़े मास्टर माइंड को गिरफतार कर लिया गया है।  भारत के रास्ते लंदन से लेकर अमेरिका तक फैले इस कारोबार के सरताज के रूप में बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa Shetty) के पति और बिजनेसमैन राज कुंद्रा का नाम सामने आया है। सोमवार रात क्राइम ब्रांच ने कुन्द्रा को गिरफ्तार कर लिया। राज कुंद्रा को अश्लील फिल्में बनाने और कुछ ऐप के जरिये इन्हें प्रदर्शित करने के मामले में गिरफ्तार किया गया है। मुंबई क्राइम ब्रांच के अनुसार राज कुंद्रा के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। आइये पूरे मामले पर नजर डालते हैं।

फरवरी में खुला मामला

राज कुंद्रा के खिलाफ इसी साल 4 फरवरी को मुंबई के मालवानी थाना क्राइम ब्रांच ने केस दर्ज किया था। उनके खिलाफ अपराध संख्या- 103/2021 दर्ज किया गया था। राज कुंद्रा पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292, 293, 420, 34 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत धारा 67 और 67A सहित अन्य धाराएं लगाई गई थीं।

क्या है मामला

दरअसल, मुंबई क्राइम ब्रांच के प्रॉपर्टी सेल ने फिल्म इंडस्ट्री में ब्रेक देने के बहाने महिलाओं और युवाओं को अश्लील वीडियो और पोर्नोग्राफी में धकेलने वाले एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया है। इस मामले में अब तक पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. जिनमें दो पुरुष अभिनेता, एक लाइटमैन के तौर पर काम करने वाला शख्स और दो महिलाएं शामिल हैं, जो वीडियोग्राफर, फोटोग्राफर और ग्राफिक डिजाइनर के रूप में काम करती हैं।

करोड़ों का कारोबार

दुनियाभर की पॉर्न इंडस्ट्री करीब 100 बिलियन डॉलर से कहीं ज्यादा की है। इसका लगभग 10% अकेले अमेरिका से आता है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में पॉर्न इंडस्ट्री कितनी बड़ी है ? इसका एक लाइन में जवाब है कि भारत में कोई पॉर्न इंडस्ट्री नहीं है इसके बावजूद यहां पॉर्न देखने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यूएस और यूके के बाद भारत तीसरे नंबर पर है। ये आंकड़ा साल 2018 का है । जब सरकार ने पॉर्न वेबसाइट्स को बैन किया तो भारत 15 वें स्थान पर आ गया।

किसान से लेकर पत्रकारों की जासूसी मुद्दों की संसद में गूंज

आज से शुरू हो रहे संसद के मॉनसून सत्र  में 23 बिल पारित करने की तैयारी हो रही है। सत्र में इस बार सरकार और विपक्ष के बीच तीखी वार होने के आसार हैं। संसद में कथित रूप से इज़राइल के सॉफ्टवेयर से 400 भारतीय पत्रकारों की जासूसी का मुद्दा गूंज सकता है। दूसरी ओर किसानों द्वारा संसद घेराव के ऐलान के मद्देनजर भी सरकार की ओर से बचाव की तैयारी कर ली गई है। राहुल गांधी ने पत्रकारों की जासूसी को लेकर सरकार पर निशाना साधा है।

उधर किसानों के प्रदर्शन को देखते हुए 7 मेट्रो स्‍टेशन को अलर्ट रहने के लिए कहा गया है। दरअसल, रविवार को हुई बातचीत के दौरान किसान नेताओं ने ही जंतर-मंतर पर आने की बात पुलिस के सामने रखी थी। जिस पर काफी हद तक पुलिस ने रजामंदी दी थी. वहीं, सोमवार को फिर मीटिंग होगी, जिसमें फाइनल होगा की क्या जंतर-मंतर आने की ऑफिशियल परमिशन पुलिस देगी या फिर क्या बीच का हल निकलेगा। बता दें कि किसान पिछले कई महीनों से दिल्ली के अलग- अलग बॉर्डरों से धरना- प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी केंद्र सरकार से मांग है कि तीनों नए कृषि कानूनों के रद्द किया जाय, लेकिन सरकार उनकी मांगें मंजूर करने को तैयार नहीं है. यही वजह है कि किसान नेता कभी ट्रैक्टर रैली निकालने की मांग करते हैं तो कभी संसद घेराव की. गौरतलब है कि अभी तक उन्हें संसद घेराव को लेकर प्रशासन से अनुमति नहीं मिली है।  

21वीं सदी के 21वें साल में हिन्दी सिनेमा

कहानी और उसके पात्र ही फिल्म की आत्मा होती है। फिल्में समाज को चेहरा दिखाती है। साथ ही उस दौर को परिभाषित भी करती है। 21 सदी के पिछले दो दशकों में कहानी और पात्रों की सीमा का तेजी से विस्तार हुआ है। कथा, पटकथा, पात्र और संवाद लेखन सभी स्तर पर नए प्रयोग हुए। दर्शकों ने इन प्रयोगों को हाथों हाथ लिया। नई सदी के 21वें साल में आते- आते फिल्में इस प्रकार जवान हुईं कि बीती शताब्दी में खींची गई कामर्शियल और आर्ट (समानान्तर) सिनेमा की लकीर मिटने लगी। आज के दर्शकों के लिए कहानी हीरो है। ‘कंटेन्ट’ जमकर बिक रहा है और हिट हो रहा है।   

इन वर्षों में ‘लगान’ से लेकर ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी गैर पारंपरिक सिनेमा की फिल्में ब्लॉक बस्टर (सौ करोडी क्लब) में शुमार होने लगी। ‘खोसला का घोसला’, ‘मुक्ति भवन’ से लेकर ‘न्यूटन’ तक हर तरह की कहानी और किरदार लिखे और पसंद किए जा रहे हैं। कहानी और पात्र धीरे- धीरे स्टार डम का दर्जा हासिल करने लगे जबकि बड़े- बड़े स्टारों की चमक भी कहानी के बिना फीकी पड़ गई।

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को ब्रिटिश न्यूज पेपर ‘द गार्डियन’ ने 21वीं सदी में दुनिया की सौ बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया! फिल्म को 59वां स्थान हासिल हुआ। दक्षिण की डब फिल्में हो, बाहुबली सीरीज हो या फिर एक मुर्गे की कहानी पर आधारित फिल्म ‘कड़कनाथ’ हो, कहानी और पात्रों में दर्शकों की एक नयी रुचि उत्पन्न हुई। उधर कमजोर कहानी और प्रस्तुतीकरण के कारण मेगास्टारों से भरपूर ‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ और ‘जीरों’ जैसी फिल्में भी खारिज कर दी गईं। 

वर्ष 2000 से 2020 के दौर में फिल्मों का वर्गीकरण कर तुलनात्मक अध्ययन करें तो देखेंगे किस प्रकार कहानी के शिल्प में परिवर्तन हुआ। पात्रों का दायरा बढ़ता गया। डिजिटल क्रांति के कारण शार्ट फिल्म से लेकर तीन घंटे की बालीवुड फिल्म और 12 घंटे की वेब सीरीज उपलब्ध हुईं। मल्टी प्लेक्स से लेकर ओवर द टॉप (ओटीटी) वीडियो मार्केट और चौथी जनरेशन के मोबाइल ने मनोरंजन के दायरे को आसमान तक पहुंचा दिया। नए कलाकार और लेखकों के लिए संभावना के नए दरवाजे खुल गए। दुनिया जब घरों में सिमट गई तो ऐसे ही हुनरमनदों ने कहानी और पात्रों के जरिये दर्शकों को मनोरंजन की नई डोज़ दी।  फिर चाहे नए लेखकों की पहली कहानी हो या स्थापित लेखकों की हिट फिल्में हों। महिला, समाज, जीवनी, देशप्रेम पर आधारित सफल फिल्में हों या फिर तमाम चर्चाओं के बावजूद नकार दी गई विशेष फिल्में हों, कहानी और पात्रों की सीमाएं टूटती चली गई। पिछले बीस वर्षों के सिने कालखंड को प्रत्येक पाँच वर्षों में विभाजित कर कहानी और किरदारों का विश्लेषण करने पर स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

विदेशी छात्रों को भाई हिन्दी, लखनऊ यूनिवर्सिटी बनी पसंद

विदेशी छात्रों को हिन्दी और लखनऊ विश्वविद्यालय खूब भा रहा है। करोना की मार के बावजूद केंद्रीय हिन्दी संस्थान में इस वर्ष रिकार्ड आवेदन किए गए गए हैं। विदेशों से हिन्दी पढ़ने के लिए इस बार कुल 110 छात्रों ने अपनी पसंद जाहीर की है। दूसरी ओर अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, श्रीलंका से लेकर रूस और अफ्रीकन व यूरोपियन देशों के स्टूडेंट्स भी यहां लखनऊ यूनिवर्सिटी पढ़ने के लिए पहुंच रहे हैं। इस साल पिछले वर्षों के मुकाबले फॉरेन एडमिशन की संख्या में काफी इजाफा देखने को मिला है। पिछले साल जहां कुल दाखिले करीब 100 हुए थे तो वहीं इस साल 371 एडमिशन फॉर्म आए हैं। इस संख्या में अभी और इजाफा होने की उम्मीद जताई जा रही है। अब तक का यह रिकॉर्ड आवेदन है। इससे पहले कभी भी यहां इतने बड़े पैमाने पर दाखिले के लिए विदेशी स्टूडेंट्स के एडमिशन फॉर्म नहीं आए थे।

इन देशों से आ रहे छात्र

विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल स्टूडेंट्स एडवाजर प्रो. आरपी सिंह के अनुसार विदेशी स्टूडेंट्स का रुझान लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर है। पिछले साल करीब 100 स्टूडेंट्स ने ऑनलाइन दाखिले लिए थे। इस बार आवेदन की संख्या 371 पहुंच गई है। अभी 30 जून तक ऑनलाइन आवेदन का मौका है। ज्यादातर दावेदार दक्षिण एशियाई देशों से हैं। फॉरेन स्टूडेंट्स ने लखनऊ विश्वविद्यालय में रहकर भारत की संस्कृति, साहित्य, संगीत के साथ-साथ अंग्रेजी और प्रबंधन जैसे पाठ्यक्रमों को पढ़ने में रुचि दिखाई है। अफगानिस्तान के अलावा इंडोनेशिया, तजाकिस्तान, रूस, केन्या, श्रीलंका, नेपाल और नामीबिया जैसे देशों से भारत आने वाले स्टूडेंट्स की संख्या काफी है। अब आए हुए आवेदन पत्रों की स्क्रीनिंग के बाद संबंधित देश के दूतावास को सूचना भेज दी जाएगी, जिससे प्रवेश की प्रक्रिया पूरी की जा सके।

मैनेजमेंट कोर्स की है सबसे ज्यादा डिमांड

विदेशी स्टूडेंट्स में लखनऊ विश्वविद्यालय में आकर एमबीए जैसे कोर्स में एडमिशन लिए भारी डिमांड है। इसमें अफ्रीकी देशों से आने वाले छात्रों की संख्या भी बड़ी है। इसके अलावा बीते दिनों ट्रेंड में कुछ बदलाव भी देखने को मिला। अब हिंदी और संस्कृत सीखने के लिए भी स्टूडेंट्स एलयू पहुंच रहे हैं। बीते सत्र में पहली बार इटली की एक छात्रा ने यहां हिंदी में शोध के लिए दाखिला लिया था। इसी तरह मॉरीशस की एक छात्रा की ओर से हिंदी में पीएचडी के लिए आवेदन प्राप्त हुआ था।

इमरान सरकार फेल, विदेशों में बैठे पाकिस्तानी ‘चला’ रहे देश!

  • एक साल में भेजे रिकॉर्ड 46,89,30,00,00,000 रुपये

पाकिस्तान बुरी तरह कर्जजाल में फंसा हुआ है और प्रधानमंत्री इमरान खान को देश चलाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन विदेश में रहने वाले पाकिस्तानी इमरान सरकार के लिए किसी रहनुमा से कम नहीं हैं। दरअसल, विदेशी पाकिस्तानियों ने 2020-21 के दौरान रिकॉर्ड 29.4 बिलियन डॉलर (लगभग 46,89,30,00,00,000 रुपये) पाकिस्तान भेजा. इस पैसे के जरिए पाकिस्तान ने अपने व्यापार घाटे को पूरा किया. पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक का कहना है कि जून में 2.7 बिलियन डॉलर पैसा आया, जिसमें पिछले 9 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. लगातार 13 महीनों से हर महीने 2 बिलियन डॉलर से अधिक की राशि को विदेशों से पाकिस्तान भेजा जा रहा है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) ने कहा कि विदेशों से आने वाले पैसों में हुए इजाफे के चलते चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक हालातों के बाद भी देश के बाहरी क्षेत्र की स्थिति सुधरी. वहीं, ईद से पहले आने वाले पैसे ने जून में सरकार की और भी मदद की है. SBP ने कहा कि कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2021 के दौरान विदेशों से आने वाले रिकॉर्ड पैसा सरकार और SBP की सक्रिय नीतियों का नतीजा है. इन्होंने औपचारिक चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित किया, कोरोना के कारण सीमा पार यात्रा को कम किया गया और विदेशी मुद्रा बाजार को बेहतर ढंग से व्यवस्थित किया गया।

बॉम्बे हाईकोर्ट : यौन संबंध बनाए बिना भी किया गया यौन उत्पीड़न बलात्कार

बंबई उच्च न्यायालय ने बलात्कार के जुर्म में 33 वर्षीय व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि यौन संबंध बनाए बगैर भी किया गया यौन उत्पीड़न भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 के तहत बलात्कार की परिभाषा के तहत आता है। जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे ने 2019 में निचली अदालत द्वारा एक व्यक्ति को सुनायी गयी 10 साल के कठोर कारावास की सजा को भी बरकरार रखा। पिछले महीने सुनाए गए फैसले में न्यायाधीश ने सत्र अदालत के आदेश को चुनौती देने वाले व्यक्ति की अपील को खारिज कर दिया। सत्र अदालत ने व्यक्ति को मानसिक रूप से कमजोर महिला से दुष्कर्म करने का दोषी ठहराया था। अपील में दलील दी गयी कि उसके और पीड़िता के बीच यौन संबंध नहीं बना था। लेकिन उच्च न्यायालय ने कहा कि फॉरेंसिक जांच में यौन उत्पीड़न का मामला साबित हुआ है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘यौन उत्पीड़न की घटना जहां हुई थी उस जगह से मिट्टी के लिए गए नमूने तथा आरोपी के कपड़े और पीड़िता के शरीर पर मिले मिट्टी के अंश मेल खाते हैं. फॉरिेंसिक रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई. यह सबूत अभियोजन के मामले को साबित करता है कि महिला का यौन उत्पीड़न हुआ।’ उच्च न्यायालय ने कहा, ‘साक्ष्यों के आलोक में यह कुछ खास मायने नहीं रखता है कि यौन संबंध नहीं बना। महिला के जननांग को उंगलियों से छूना भी कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।’