Friday, June 6, 2025
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हाकी : बेटियों ने पदक गंवाया पर देश का दिल जीता

भारत की महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में शानदार खेल का प्रदर्शन किया लेकिन टीम ब्रॉन्‍ज मेडल से महरूम रह गयी । भारतीय टीम को ब्रिटेन की ओर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। ब्रिटेन ने कड़े मुक़ाबले में 3-4 से भारत को मात दी। भारतीय टीम इस ओलंपिक में चौथे स्‍थान पर रही। भारत बड़े मौके से चूक गया। नवजोत ने भरपूर कोशिश की थी। वह ब्रिटेन के गोल पोस्‍ट तक पहुंच गई थीं. वहां कोई नहीं था। भारतीय टीम टोक्यो ओलंपिक के 15वें दिन भले ही पदक न जीत पाई हो लेकिन देश की बेटियों ने सबका दिल जीत लिया। उधर भारतीय हॉकी के इतिहास में गुरूवार का दिन सबसे यादगार दिनों में से एक साबित हुआ। मनप्रीत सिंह की अगुवाई में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता। यह 1980 के मास्को ओलिम्पिक के बाद ओलिम्पिक में भारत का पहला और खेलों के महाकुंभ कहे जाने वाले इस इवेंट में कुल मिलाकर 12वां पदक है। इससे पहले भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया को पुरुष फ्रीस्टाइल 57 किग्रा भार वर्ग के फाइनल मुकाबले में रूस ओलंपिक समिति (आरओसी) के जायूर उगयेव के हाथों 4-7 से हार का सामना कर रजत पदक से संतोष करना पड़ा।

स्टार्ट अप इंडस्ट्री में नंबर वन बनेंगे आईआईटीयन

  • आई आई टी  कानपुर ने नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए छात्र उद्यमिता नीति बनाई

कानपुर, अगस्त 5-  भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर ने आज घोषणा की कि उसकी अकादमिक सीनेट ने एक व्यापक छात्र उद्यमिता नीति को मंजूरी दे दी है। यह नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और राष्ट्रीय नवाचार और स्टार्ट-अप नीति (एनआईएसएम) के अनुरूप छात्रों के बीच नवाचार और उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देगी ।

यह नीति “नवाचार और उद्यमिता क्रेडिट” की पथ-प्रदर्शक अवधारणा पेश करती है जो छात्रों को अपनी डिग्री हासिल करने के दौरान अपनी अकादमिक यात्रा के हिस्से के रूप में नवाचार और उद्यमशीलता की आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाएगी।

नीति तीसरे वर्ष में स्नातक छात्रों और न्यूनतम पाठ्यक्रम कार्य पूरा करने के तुरंत बाद स्नातकोत्तर छात्रों को उद्यमशीलता की गतिविधियों को आगे बढ़ाते हुए अकादमिक क्रेडिट प्राप्त करने का मौका देती है। छात्र परिसर के अंदर और बाहर दोनों जगह सुविधाओं का उपयोग करके अपने विचारों को आगे बढ़ाने के लिए सेमेस्टर अवकाश का भी लाभ उठा सकते हैं। यह सभी हितधारकों को उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देने और शैक्षणिक मानकों और शैक्षणिक लक्ष्यों को कम किए बिना स्पष्ट लक्ष्य के साथ सशक्त बनाती है। यह नीति संस्थान में पहले से मौजूद जीवंत उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र को जबरदस्त प्रोत्साहन प्रदान करती है।

नीति की मुख्य विशेषताएं:

• शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा

• सभी पात्र छात्रों के लिए खुला

• नवप्रवर्तन और उद्यमिता में माइनर

• नवाचार और उद्यमिता को आगे बढ़ाने के लिए सेमेस्टर अवकाश

• नवाचार और उद्यमिता में अकादमिक क्रेडिट

• अपनी खुद की कंपनियों को स्थापित और पंजीकृत करना

• उद्योग सलाह और वित्त पोषण

• पेटेंट और आईपी प्रबंधन

• आस्थगित प्लेसमेंट

आई आई टी कानपुर इनोवेशन और एंटरप्रेन्योरशिप हाउसिंग के मामले में सबसे आगे रहा है, जिसमें एशियाई क्षेत्र में 11 इनक्यूबेटर, 5 अत्याधुनिक प्रोटोटाइप, और टिंकरिंग लैबोरेटरीज और एक उन्नत विज्ञान और प्रौद्योगिकी पार्क शामिल हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र वर्तमान में 100 से अधिक स्टार्ट-अप का समर्थन और पोषण करता है । यह पारिस्थितिकी तंत्र वर्तमान नीति को आगे बढ़ाने और लागू करने तथा परिसर में छात्र और अनुसंधान समुदाय को लाभान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि, “आधुनिक उद्योग की चुनौतियों के लिए छात्रों को सामान्य शिक्षार्थियों से रचनाकारों और नवप्रवर्तकों तक विकसित होने की आवश्यकता है। इसके लिए विश्वविद्यालयों को ऐसे स्थान बनाने की आवश्यकता है जहां युवा लोगों में उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाता है, एक ऐसा स्थान जहां रचनात्मक विचार चमकते हैं जो भविष्य के नवाचारों को जन्म दे सकते हैं, भारत की वास्तविक नवाचार और उद्यमिता क्षमता को साकार करने में योगदान दे सकते हैं।

“संस्थान में छात्रों और संकाय (फैकल्टी) के लिए नेशनल इनोवेशन एंड स्टार्ट-अप पॉलिसी फॉर स्टूडेंट्स एंड फैकल्टी 2019 की कई सिफारिशें पहले से ही लागू हैं और सक्रिय रूप से आई आई टी  कानपुर में काम कर रही हैं। संस्थान में एक संकाय (फैकल्टी) उद्यमिता नीति भी है जिसके तहत संस्थान के संकाय (फैकल्टी) सदस्य संस्थान के नियमित कर्मचारियों के रूप में अपना कार्य जारी रखते हुए एक कंपनी शुरू कर सकते हैं।

“एक मजबूत छात्र उद्यमिता नीति हमारे छात्रों को तेजी से विकासशील दुनिया की मांगों के साथ तालमेल रखने की अनुमति देगी। हम इस तरह की व्यापक नीति तैयार करने वाले पहले केंद्रीय वित्त पोषित तकनीकी संस्थानों में से एक हैं।” हाल के दिनों में भारत में प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप की संख्या में निश्चित वृद्धि को देखते हुए, विशेष रूप से युवा उद्यमियों द्वारा, पेशेवर और तकनीकी क्षेत्रों की पृष्ठभूमि के साथ, इस दिशा में कई प्रचार पहल धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से समाज पर एक स्पष्ट प्रभाव डाल रही हैं। आईआईटी कानपुर के अकादमिक सीनेट द्वारा अपनाई गई नई नीति परिवर्तनकारी होगी और एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र का मार्ग प्रशस्त करेगी जहां छात्र संस्थान में अपने कार्यकाल के दौरान व्यवस्थित तरीके से नवाचार और उद्यमिता गतिविधि कर सकते हैं।

भारतीय हाकी टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक में इतिहास रचा, कांस्य पदक जीता

भारत की पुरुष हॉकी टीम आखिरकार टोक्यो ओलंपिक में करिश्मा कर दिया है। टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया है। इस जीत से पूरे देश में जश्न का माहौल है। टीम इंडिया ने जर्मनी से 5-4 से हरा दिया है। भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में 41 साल बाद मेडल हासिल किया है। टीम इंडिया ने कड़े मुकाबले में ये मैच जीता है।

भारतीय हॉकी टीम साल 1980 के मास्को ओलंपिक के फाइनल में पहुंची थी,  जबकि साल 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। अब 41 साल बाद इस मुकाबले में भारत की तरफ से सिमरनजीत सिंह ने दो गोल जबकि हरमनप्रीत सिंह, रुपिंदर पाल सिंह और हार्दिक सिंह ने एक-एक गोल किया. गोलकीपर श्रीजेश ने कई मौकों पर गोल बचाया।

अभिनय की पाठशाला : सामने होकर भी अदृश्य होना

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विपिन कुमार
भारतीय रंगमंच अभिनेता, निर्देशक, लेखक

क्या बिना शरीर के अभिनय हो सकता है?  यह प्रश्न उन के लिए जो अभिनय सीखने के माहौल में न केवल अपने शरीर का उपयोग करते हैं बल्कि उनको  विचार करना पड़ता है कि भविष्य में वो अपने को स्वस्थ शरीर और अभिनेता के रूप में कहां देखना चाहते हैं ।  इसका कारण यह है कि सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में शरीर का महत्व है,सवाल किया जाना चाहिए कि जीवन में लगातार कहाँ जाना है। एक सामाजिक प्राणी के रूप में, व्यक्ति एक रिश्ते में है ,अपने शरीर के माध्यम से अन्य प्राणियों और  पर्यावरण के साथ। शरीर लोगों को दुनिया में मौजूद होने में सक्षम बनाता है,

समय और स्थान को परिभाषित करता है, जिसमें वह पर्यावरण के साथ बातचीत करता है और उसका अनुभव करता है। अनुभव का पता शरीर को शारीरिक गतिविधियों के साथ विकसित करने और उसकी भूमिका के बारे में सोचने से  होता है

अनुभव के लिये निरंतरता और सहभागिता ज़रूरी है ।जब अभिनेता के साथ पर्यावरण के संबंध में बातचीत होती है तो उनके विचारों में परिवर्तन और विकास सकारात्मक रूप से होते हैं। वास्तव में, पर्यावरण के साथ बातचीत मानसिक और शारीरिक रूप से अभिनेता को संवेदनशील बनाती है। नाटक अभिनेता को सबक के प्रत्येक चरण में शारीरिक रूप से भाग लेने और भावनात्मक रूप से विकसित करने की अनुमति देता है।मानसिक और सामाजिक रूप से। नाटक पारंपरिक वर्गों की एक व्यापक पद्धति है जिसमें

अतीत, शारीरिक अभ्यास, आवाज की कार्रवाई, और मानसिक एकाग्रता है । नाटक विधि अभिनय के छात्रों को इन स्थानों को देखने में मदद करती है जिनमें क्रियाकलापों के दौरान वो अपने शरीर और इन्द्रियों के अंगों को प्रभावोत्पादक रूप से देखने की कल्पना करें ।और एक अनुभव, एक घटना, एक विचार, एक अमूर्त अवधारणा को चित्रित करने में सक्षम बन सके ।आशुरचना और रोल-प्लेइंग जैसी तकनीकों का उपयोग कर अभिनेता अभिनय करते हैं और अधिक सीखने के लिए प्रेरित होते हैं भावनात्मक और अधिक बौद्धिक रूप से ,क्योंकि वे नाटक के अध्ययन पर अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों को दर्शाते हैं  अभिनेता एक भूमिका निभाते हैं

उनके लिए तैयार किए गए नाटक कार्यों में, उनकी भूमिकाओं का विश्लेषण करते हैं, खुद को और अपने व नाटकीय पर्यावरण को पहचानने की कोशिश करते हैं । और शारीरिक रूप से रचनात्मक कार्यों में सहयोग करते हैं ।

“यदि आप अपने शरीर, आवाज, बोलने के तरीके, चलने और व्यवहार करने का उपयोग नहीं करते हैं, तो आप नाटकीय पात्र के मानव जीवन से परिचित नहीं हो सकते। अलग-अलग किरदारों की आत्मा को अपनाने के लिए, अभिनेता को यह करना ज़रूरी है ताकि आंतरिक चरित्र को बनाए रखते हुए पात्रों की भौतिक विशेषताएँ अपना सके । ऐसा करने में शारीरिक कार्य  कठिन लग सकता है, और इसके कई भौतिक तरीके हैं जैसे एक चरित्र का आबजर्वेशन;  अवलोकन, मिमिक्री, चित्रकारी समझना, किताबें पढ़ना, कहानियाँ, आदि  याद रखना महत्वपूर्ण है । प्रत्येक चरित्र अभिनेता के लेंस के माध्यम से बताया जाता है। “और चूंकि अभिनेताओं को चरित्र बनाना है दर्शकों के लिए, तो शरीरी रूप से “सामने होकर भी अदृश्य  होने की  कला उसे आनी चाहिए”।

दिल्ली में दलित बच्ची से रेप पर सियासत, राहुल का विरोध, केजरीवाल का मंच टूटा

देश की राजधानी दिल्ली  में दलित बच्ची से कथित रेप प्रकरण पर सियासत तेज हो गई है। बीते भीम आर्मी के नेता ने मौके पर जाकर पीड़ितों से मुलाक़ात की कोशिश की जिसके बाद लगातार नेताओं का मौके पर जाना और स्थानीय स्तर पर उनका विरोध जारी है। सुबह कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीड़ितों से मुलाक़ात की। जानकारी के मुताबिक कथित रूप से श्मशान में रेप  के बाद बच्ची की हत्या कर शव जलाने के मामले में आज सुबह राहुल गांधी ने पीड़िता के माता पिता से मुलाक़ात की। जबकि मौके पर धारणा दे रहे लोगों ने विरोध जताया। बाद में राहुल गांधी ने अपनी मुलाक़ात का फोटो भी जारी किया। जिसकी भाजपा ने आलोचना की। दूसरी ओर  सीएम अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को पीड़ित परिवार से मुलाकात की। जिस वक़्त मंच पर परिवार से अरविंद केजरीवाल मिल रहे थे, उसी वक्त मंच का एक हिस्‍सा गिर गया. इससे वहां कुछ देर के लिए हड़कंप मच गया। पीड़ित परिवार से चर्चा के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जो बच्ची के साथ अन्याय हुआ है वह बेहद दु:खद है. बच्ची को वापस नहीं लाया जा सकता, लेकिन दिल्ली सरकार पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है।

शंघाई सहयोग संगठन में भारत की बढ़ती साख

अरविंद जयतिलक

गत जुलाई माह में भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के रक्षामंत्रियों की बैठक में उपस्थिति कई मायने में महत्वपूर्ण रही। अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात, पाकिस्तान द्वारा तालिबान को खुला समर्थन और आतंकी गतिविधियों में आयी तेजी से क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर चुनौतियाँ बढ़ी है। ऐसे में भारत का चिंतित होना और एससीओ मंच के जरिए सदस्य देशों से क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने का आह्नान करना लाजिमी है। यह उचित ही है कि भारत ने एससीओ और इसके क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी ढांचे (आरएटीएस) के साथ अपने सुरक्षा-संबंधी सहयोग को गहरा करने में दिलचस्पी दिखायी और उसे भरपूर समर्थन मिला। याद होगा पिछले वर्ष एससीओ के 20 वें वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन और पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया था कि एससीओ के सभी सदस्य देश एकदूसरे की सार्वभौमिकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें। तब प्रधानमंत्री ने सदस्य देशों के बीच संपर्क मजबूत करने में भारत की सहभागिता का उल्लेख करते हुए कहा था कि एससीओ क्षेत्र से भारत का घनिष्ठ ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंध है। हमारे पूर्वजों ने इस साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को निरंतर संपर्कों से जीवंत बनाए रखा है। अच्छी बात है कि एससीओ बैठक से इतर भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने बेलारुस के रक्षामंत्री लेफ्टिनेंट जनरल विक्टर खेनिन के साथ द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को भी धार दी । इस पहल से दोनों देशों के बीच सैन्य और सामरिक भागीदारी बढ़नी तय है। एससीओ में भारत की दमदार होती भूमिका और बढ़ती साख से स्पष्ट है कि मध्य एशिया में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। व्यापार, उर्जा, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, पर्यटन, पर्यावरण और सुरक्षा क्षेत्र को पंख लग रहा है। सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग का दायरा व्यापक हो रहा है और नियमित आदान-प्रदान, यात्राएं, विचार-विमर्श, सैन्यकर्मियों का प्रशिक्षण, सैन्य तकनीकी सहयोग तथा संयुक्त अभ्यास जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा मिल रहा है। उम्मीद है कि इस बैठक से क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के अलावा आर्थिक विकास को गति देने के साथ व्यापार, निवेश, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य सुविधाओं, कृषि, सूचना एवं संचार प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में विस्तार को नया आयाम मिलेगा । जाहिर है कि मध्य एशिया बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है और इस क्षेत्र में अब भारत के लिए स्वयं को स्थापित करने में मदद मिल रही है। साथ ही भारत के लिए इस क्षेत्र में उभर रही आतंकी गतिविधियों, अंतर्राष्ट्रीय खतरों, अवैध ड्रग कारोबार, जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सभी सदस्य देशों को गोलबंद करना आसान होगा। यह तथ्य है कि भारत अरसे से विभिन्न क्षेत्रीय मंचों के जरिए क्षेत्रीय सुरक्षा की मजबूती  और आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठाता रहा है। अच्छी बात है कि अब भारत को भरपूर तवज्जों मिलनी शुरु हो गयी है। उल्लेखनीय है कि शंघाई सहयोग संगठन एक ताकतवर संगठन है। इस मंच के जरिए भारत न सिर्फ पाकिस्तानी और चीनी सैन्य गतिविधियों पर निगरानी रख सकेगा बल्कि आतंकी समूहों की आवाजाही पर भी व्यापक दृष्टि रखने में सक्षम होगा। ध्यान देना होगा कि आतंकवाद से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि मध्य एशिया समेत संपूर्ण विश्व लहूलुहान है। ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन का क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर होना और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना उम्मीद जगाने वाला है। गौर करें तो इस संगठन ने तकरीबन हर बैठक में आतंकवाद के सभी रुपों की भर्त्सना की है और काउंटर टेरोरिज्म कन्वेंशन को लेकर सहमति जतायी है। संगठन का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग एवं विकास को स्थापित करना, अच्छे पड़ोसी की तरह रहना और समय पर एकदूसरे के काम आना है। इसके अलावा इसके उद्देश्यों में क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा को बढ़ाना, भविष्य में आने वाली आर्थिक, राजनैतिक समस्याओं का एकजुटता के साथ सामना करना, आपसी वाणिज्य और व्यापार को बढ़ावा देना, विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाना, संस्कृति, शिक्षा, उर्जा, परिवहन, पर्यावरण सुरक्षा जैसे मसलों पर आपसी सहयोग से कार्य करना तथा विश्व शांति के लिए प्रयास करना भी शामिल है। गौरतलब है कि 2018 में चीन के तटीय शहर किंगदाओ में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भारत को पहली बार शिरकत करने का मौका मिला। इससे पहले वह बतौर पर्यवेक्षक की भूमिका में था। कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में संपन्न सम्मेलन में भारत की स्थायी सदस्यता पर मुहर लगी। गौर करें तो पहले संगठन के सदस्य राष्ट्रों का कुल क्षेत्रफल 30 मिलियन 189 हजार वर्ग किमी और जनसंख्या तकरीबन 1.5 बिलियन थी किंतु भारत के जुड़ जाने से संगठन का क्षेत्रफल व जनसंख्या व्यापक हो गयी है। आज की तारीख में यह संगठन विश्व की तकरीबन आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन बन चुका है। चूंकि इस संगठन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा यूरोपीय संघ, आसियान, काॅमनवेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी संबंध स्थापित किए हैं इस लिहाज से संगठन का सदस्य होने के नाते भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है। गौर करें तो अभी तक संगठन पर चीन का वर्चस्व रहा है लेकिन चूंकि भारत की अर्थव्यवस्था चीन के मुकाबले तेजी से आगे बढ़ रही है ऐसे में संगठन में भारत की भूमिका का विस्तार होना तय है। कूटनीतिज्ञों की मानें तो भारत की भूमिका बढ़ने से चीन के व्यापक प्रभाव में कमी और दृष्टिकोण में बदलाव आएगा। एससीओ के दबाव के कारण वह आतंकिस्तान बन चुके पाकिस्तान को प्रश्रय देने से भी बचेगा। चूंकि एससीओ के सदस्य देशों की भारत से अति निकटता है ऐसे में संभव है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर चीन के रुख में बदलाव आए। ऐसा इसलिए कि शंघाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देश मसलन रुस, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान पहले से ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर चुके हैं। शंघाई सहयोग संगठन के इतिहास में जाएं तो अप्रैल, 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रुस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एकदूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने को राजी हुए। तब इस संगठन को शंघाई फाइव कहा गया। जून 2001 में चीन, रुस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई संगठन सहयोग शुरु किया और धार्मिक चरमपंथ से निपटने के अलावा व्यापार व निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया। शंघाई फाइव के साथ उजबेकिस्तान के आने के बाद इस समूह को शंघाई सहयोग संगठन कहा गया। यह संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका कार्यालय बीजिंग में है और क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना ताशकंद में है। राज्य प्रमुखों की परिषद इस संगठन का सर्वोच्च निकाय है जिसकी प्रतिवर्ष बैठक होती है। इसके अलावा शासन प्रमुखों की परिषद (एचजीसी) की वार्षिक बैठक होती है। शंघाई सहयोग संगठन में 2008 से डायलाॅग पार्टनर यानी वार्ताकार सहयोग की व्यवस्था की गयी है। 2009 के शिखर सम्मेलन में सबसे पहले श्रीलंका और बेलारुस को डायलाॅग पार्टनर का दर्जा दिया गया। अफगानिस्तान, शंघाई सहयोग संगठन-अफगानिस्तान कांटैक्ट ग्रुप का हिस्सा है और इस ग्रुप की स्थापना 2005 में की गयी थी। इस संगठन की शिखर बैठकों में संयुक्त राष्ट्र, सीआईएस, यूरेशियन इकोनाॅमिक कम्युनिटी एवं सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन यानी सीएसटीओ के प्रतिनिधि भी भाग लेते हैं। गौरतलब है कि 2005 में भी कजाकिस्तान के आस्ताना में भारत के प्रतिनिधियों ने पहली बार शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में भाग लिया था। पिछले वर्ष यानी 2020 में पहला अवसर था जब पर्यवेक्षक देशों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में भारत को संबोधित करने का अधिकार दिया गया। जानना आवश्यक है कि भारत ने सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। अच्छी बात यह है कि एससीओ की सदस्यता ग्रहण करने के उपरांत हर सम्मेलन में भारत ने यूरेशियाई धरती के लोगों के साथ अच्छे संबंध रखने की प्रतिबद्धता दोहरायी है और आतंकवाद से मिलकर निपटने की वकालत की है। जिस तरह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दो सम्मेलनों में अपने संबोधन के जरिए दुनिया को प्रभावित किया है उससे वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ी है।

भारतवंशी नताशा दुनियाँ की सबसे प्रतिभाशाली छात्रा

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भारतीय लोग समय- समय पर दुनिया भर में अपनी प्रतिभा की छाप छोडते रहते हैं और अमेरिका की उन्नति में तो खासतौर पर भारतवंशियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अब एक 11 वर्ष की छात्रा ने अपनी प्रतिभा से भारत और अमेरिका का नाम पूरी दुनिया में गर्व से ऊंचा कर दिया है। भारतीय-अमेरिकी स्टूडेंट नताशा पेरी को अमेरिकी विश्वविद्यालय ने विश्व के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों में से एक माना है। एक लीडिंग डेली की रिपोर्ट के अनुसार नताशा पेरी न्यू जर्सी के थेल्मा एल सैंडमीयर एलीमेंट्री स्कूल की स्टूडेंट है। नताशा को यह सम्मान ‘स्कॉलैस्टिक असेसमेंट टेस्ट’ (SAT) और ‘अमेरिकन कॉलेज टेस्टिंग’ (ACT) मानकीकृत टेस्ट में असाधारण प्रदर्शन के लिए दिया गया है।

SAT और ACT के जरिए कॉलेज ये निर्धारित करते हैं कि किसी स्टूडेंट को एडमिशन दिया जाना चाहिए है या नहीं। कंपनियां और NGO भी कुछ मामलों इन अंको के आधार पर स्कॉलरशिप प्रदान करते हैं। नताशा ने इन दोनों परीक्षाओं में शानदार प्रदर्शन किया है। एक बयान में बताया गया है कि युवा प्रतिभा केंद्र (VTY) के तहत SAT कर ACT या इसी तरह के मूल्यांकन में उनके असाधारण प्रदर्शन के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है।

नताशा 84 देशों के लगभग 19,000 छात्रों में से एक थी जिसने 2020-21 टैलेंट सर्च ईयर में CTY में भाग लिया। CTY विश्वभर के प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान करने और उनकी वास्तविक अकादमिक क्षमताओं का पता लगाने के लिए ग्रेड-स्तरीय टेस्टिंग का इस्तेमाल करता है। नताशा ने 2021 में जब यह टेस्ट दिया तब वह ग्रेड 5 में थी। नताशा ने कहा कि यह मुझे और अच्छी तरह करने के लिए प्रेरित करेगा। रिपोर्ट के मुताबिक CTY प्रतिभागियों में से 20 फीसदी से भी कम CTY हाई ऑनर्स अवॉर्ड्स के लिए क्वालिफाई कर पाते हैं। यह सम्मान हासिल करने वाले लोग CTY के ऑनलाइन और गर्मियों के कार्यक्रम के लिए भी क्वालिफाई हुए हैं। इसके तहत स्टूडेंट्स विश्वभर के अन्य प्रतिभाशाली छात्रों के साथ मिलकर सीखते हैं।

उत्तराखंड : सत्ता मानो साँप सीढ़ी का खेल

उत्तराखंड की राजनीति का विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट द्वारा —

योगेश भट्ट

वरिष्ठ पत्रकार

कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस के बीच सत्ता की सांप- सीढ़ी का खेल ही उत्तराखंड की‘नियति’  है। चलिए, इस खेल पर एक नजर डालते हैं। साल 2000 में जब उत्तराखंड बना तो राज्य में भाजपा की अंतरिम सरकार बनी। भाजपा को भरोसा था कि पहले आम चुनाव में जनता उसे पलकों पर बैठाएगी लेकिन नतीजे अप्रत्याशित रहे।

साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36 सीटें मिली तो तकरीबन सवा साल की अंतरिम सरकार में दो मुख्यमंत्री देने वाली भाजपा को जनता ने 19 सीटों पर समेट दिया। कांग्रेस खुद नतीजों पर भरोसा नहीं कर पाई थी। उस चुनाव में बसपा को सात और उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) को चार के अलावा एनसीपी को भी एक सीट मिली जबकि तीन सीटें निर्दलीयों के नाम रही।

पहली निर्वाचित सरकार कैसे चली और कैसी रही, इस पर फिर कभी, परंतु यहां यह बताना जरूरी है कि अंतरिम सरकार से लगा राजनैतिक अस्थिरता का रोग पहली निवार्चित सरकार को विरासत में मिला । पूर्ण बहुमत की इस सरकार में पूरे साल राजैनतिक अस्थिरता रही ।

यह बात अलग है कि उत्तराखंड के सियासी इतिहास में अभी तक एक मात्र यही सरकार ऐसी रही जिसमें पांच साल तक नेतृत्व परिवर्तन नहीं हुआ। बहरहाल विकास के लिए जानी जाने वाली सरकार के प्रति नाराजगी रही होगी कि साल 2007 में दूसरे विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

  इस चुनाव में भाजपा को 69 सीटों में से 34 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 36 से लुढ़क कर 21 सीटों पर आ गई। उक्रांद के तीन विधायकों और तीन निर्दलीयों का समर्थन हासिल कर भाजपा ने सरकार बनायी।

भाजपा की इस सरकार में पांच साल में दो बार नेतृत्व परिवर्तन हुआ।  पूरे कार्यकाल के दौरान राजनैतिक अस्थिरता बनी रही और नतीजा यह रहा कि तमाम कोशिशों के बावजूद साल 2012 में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई।

खुद मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूरी को कोटद्वार विधान सभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। भाजपा और कांग्रेस में से किसी को भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस को 32 सीटें और सत्ताधारी भाजपा को 31 सीटें हासिल हुई।

 कांग्रेस ने तीन निर्दलीय विधायकों और उत्तरांखंड क्रांति दल (पी) के एक विधायक के समर्थन से सरकार बनाई। इस सरकार के कार्यकाल में प्रदेश ने राजनैतिक अस्थिरता का चरम देखा। इस दौर में उत्तराखंड की सियासत का एक काला अध्याय लिखा गया।

 नेतृत्व परिवर्तन हुआ, बगावत हुई, राष्ट्रपति शासन लगा, न्यायालय से सरकार की बहाली हुई, स्टिंग ऑपरेशन सामने आए, विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगे, और भी बहुत कुछ हुआ।

 यही वह दौर था जब अपनी ही सरकार में कांग्रेस छिन्न-भिन्न हुई, पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष समेत तमाम बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए।

अब राज्य में राजनैतिक अस्थिरता बड़ा मुददा बन चुका था। सियासत और सिस्टम दोनों इससे बुरी तरह प्रभावित हो चुके थे। साल 2017 में भाजपा ने एक ओर इस राजनैतिक अस्थिरता को मुददा बनाया और दूसरी ओर मोदी को चुनाव का चेहरा।

 नतीजे इस बार भाजपा के पक्ष में रहे, जनता ने स्पष्ट और बड़ा जनादेश दिया। कुल 70 सीटों में से भाजपा को 57 सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस मात्र 11 सीटों पर सिमट कर रह गई तो वहीं बसपा और उक्रांद का पूरी तरह से सफाया हो गया।

  नियति देखिए, प्रचंड बहुमत की सरकार के बावजूद राजनैतिक अस्थिरता ने उत्तराखंड का पीछा नहीं छोड़ा। इस सरकार में पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत फिर तीरथ सिंह रावत और इसके बाद पुष्कर सिंह धामी को सरकार की कमान सौंपी गई।

अब बात 2022 की। सत्ता की सांप सीढ़ी के खेल में अदल-बदल के लिहाज से 2022 में बारी तो कांग्रेस की है, लेकिन कांग्रेस की राह पहले जैसी आसान नहीं है। हालांकि जनादेश के लिहाज से तो भाजपा सरकार कटघरे में हैं। अंदरूनी सर्वेक्षणों में भी भाजपा की स्थिति बेहद चिंताजनक बताई जा रही है। मगर इस सबके बीच भाजपा के लिए सुकून यह है कि कांग्रेस फिलवक्त बेहद कमजोर स्थिति में है। अगर सरकार में रहते हुए भाजपा बहुत अच्छा प्रदर्शन नही कर पाई है तो यह भी उतना ही सच है कि विपक्ष के तौर पर कांग्रेस की भूमिका भी प्रभावी नहीं रही।…….जारी

सकारात्मक और सफल जीवन के लिए 5 दैनिक टिप्स

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मनीष नागर — ” ग्रोथ मार्केटर “। प्रैक्टिशनर लाइफ कोच।

जीवन में हमें रोजाना अभ्यास करना पड़ता है। अगर हम जीवन में अपना बेहतर संस्करण बनना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले वर्तमान में रहना होगा। हमें अपनी परिस्थिति को स्वीकार करना होगा और इसे बदलने के लिए प्रतिबद्ध होना पड़ेगा । ज़रा सोचिए –

1.            आप कितने दूर आए हैं?

हमें अपनी सफलता को मापना होगा कि हम कितने दूर आए हैं? हमें अपने दैनिक उद्देश्य और कार्यों का विश्लेषण करना है और हमेशा बदलने के लिए तैयार होना है।

2.            अपने दैनिक लक्ष्यों के बारे में सोचें

 यह हमारी प्रेरणा के लिए बहुत अच्छा है । अपने मस्तिष्क को केंद्रित रखें और अपने दैनिक लक्ष्यों के बारे में सोचें । जब हम अपने लक्ष्यों में वास्तविक प्रगति कर रहे हैं, तो यह हमें बहुत खुश करता है। हम हमेशा प्रेरित होते हैं। हमें अनावश्यक लक्ष्य रखने से बचना चाहिए । एक बार लक्ष्य पूरा होने पर संतोष का अनुभव होता है।

3.            हमेशा एक नई आदत बनाएं और दोहराएं

 कभी-कभी, सबसे छोटे बदलाव सबसे बड़े परिणाम बनाते हैं। जब आप एक नई आदत शुरू करते हैं, चाहे वह जिम जा रहा हो, एक वीडियो बना रहा हो, या अपने बोलने के कौशल में सुधार करने का प्रयास कर रहे हों । हर प्रयास अपने आप में महत्वपूर्ण होता है। एक नयी अच्छी आदत सीखने के बाद उसे दोहराना चाहिए।

4.            भगवान के प्रति आभारी रहें

          जब आप अपने जीवन में महत्वपूर्ण लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, तो उनके मन में भी आपके लिए एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हमें जीवन में व्यक्तियों के साथ – साथ भगवान का सदा आभारी होना चाहिए। ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना दरअसल जीवन में ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपदानों के लिए उनका शुक्रगुजार होना है।

5. अपने इर्द- गिर्द लोगों पर ध्यान दें

जिन लोगों के साथ आप समय बिताते हैं उनका प्रभाव आपके व्यक्तित्व और कार्यों पर पड़ता है। वे निसंदेह आपके जीवन में कुछ बदलाव लाते हैं । अतः यह ज़रूरी है की अपने प्रति अच्छी भावना रखने वालों की पहचान करें और उनके इर्द गिर्द रहें। वातावरण, जलवायु आदि के साथ साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि हम किन लोगों के बीच उठते – बैठते हैं । हमारे दायरे में कौन लोग शामिल हैं ? जो लोग हमारे कार्यों में सहयोग करते हैं और एक व्यक्ति के रूप में हमारा समर्थन करते हैं वो हमें हमारे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रयत्क्ष या परोक्ष रूप से सहायक होते हैं।

ओलंपिक खिलाड़ियों की हौसला आफजाई कर रहे पीएम मोदी

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों की हौसला आफजाई कर अक्सर जोश और उम्मीद भरते रहते हैं। फिर चाहे बात करोना से लड़ाई की हो या फिर टोकयों ओलंपिक में खिलाड़ियों के उत्साहवर्धन की। पीएम ने पहले अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में खिलाड़ियों को शानदार प्रदर्शन करने की प्रेरणा दी, फिर भारतीय तलवारबाज सीए भवानी देवी ने जिस तरह से पहली बार ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया, उस पर प्रधानमंत्री ने उनका हौसला बढ़ाया और अब भारत और बेल्जियम के बीच ओलंपिक में सेमीफाइनल मुकाबला देखकर टीम का उत्साहवर्धन किया।

पीएम मोदी ने ट्वीट करके इस बात की जानकारी दी है। पीएम मोदी ने ट्वीट करके लिखा, मैं भारत बनाम बेल्जियम हॉकी के पुरुषों के सेमीफाइनल मुकाबले को देख रहा हूं। मुझे टीम और उनकी स्किल पर गर्व है, मेरी टीम को शुभकामनाएं। चार दशक के बाद जिस तरह से भारतीय टीम ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची, भले ही मैच में टीम को हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन पदक की उम्मीद अभी भी समाप्त नहीं हुई है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भवानी देवी की उपलब्धि की तारीफ करते हुए लिखा, आपने अपना हर तरह से सर्वश्रेष्ठ दिया, जीत और हार जीवन का हिस्सा है। भारत आपके योगदान पर गौरवान्वित है। आप हमारे नागरिकों के लिए एक प्रेरणा हैं। प्रधानमंत्री के ट्वीट से गदगद भवानी देवी ने लिखा, जब आपकी प्रेरणा आपको प्रेरणा कहता है तो इससे बेहतर क्या ही हो सकता है, कोई इससे ज्यादा क्या ही मांग सकता है? प्रधानमंत्री जी आपके शब्द मुझे प्रेरित करेंगे, मैं मैच हार गई फिर भी आप मेरे साथ खड़े रहे, आपके इस रुख और नेतृत्व से मुझे हौसल मिलेगा, मेरा आत्मविश्वास बढ़ेगा कि मै और कड़ी मेहनत कर सकूं और आने वाले मैच जीत सकूं, जय हिंद।