Saturday, June 7, 2025
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कहानी : मंदी से तरक्की की राह

लेखक : मनीष शुक्ल

मंदी की तलवार अचानक ऐसे चल जाएगी ये तो कभी सोचा भी नहीं था… रौनिक उपाध्याय सुबह तैयार होकर ऑफिस गया और शाम को टर्मिनेशन लेटर लेकर घर लौट आया। रौनिक घर आकर सीधे बेड रूम में जाकर पसर गया। न सुनिधि से कुछ बोला, न ही यशी को गोद में उठाया। बस खुद में सिमट जाना चाहता था। जहां से उसको कोई आवाज देकर वापस न बुला सके।

यशी और सुनिधि की आवाजें भी रौनिक के कानों तक जाकर रुक जा रही थी। दोनों से कुछ कहना चाहता था। अपना दर्द बांटना चाहता था लेकिन आज गला उसका साथ नहीं दे रहा था। कुछ समय पहले तक वो कंपनी का ‘दिमाग’ माना जाता था। कंपनी की ग्रोथ का भागीदार, लोगों को नौकरी देने वाला बॉस लेकिन एकाएक सब हाथ से निकल गया। पहली तिमाही की मंदी की तलवार सीधे उसपर और उसकी टीम पर चल गई। सारे सदस्य बेरोजगार हो गए। 

कारपोरेट कल्चर में रौनिक कुछ ऐसा खो गया था कि घर परिवार सब पीछे गाँव में छूट चुके थे। उसकी पढ़ाई के लिए बाबू जी के गाँव का मकान गिरोह रखकर कर्ज लिया था। रौनिक के जाने के बाद गाँव की जमीन और गाय, भैसे दूसरों की देखरेख में छोड़ दिये गए। बाबूजी को उम्मीद थी कि रौनिक जल्द ही सब ठीक कर देगा। उनका, खेत, पशुधन सब वापस आएगा। मकान का कर्जा भी खत्म हो गाएगा। फिर खुशहाली लौट आएगी। यही ख़्वाहिश दिल में सँजोये बाबूजी इस दुनियाँ से जा चुके थे। अब रौनिक के साथ थे तो बस पत्नी और चार साल की बेटी। गाँव की संपत्ति दूसरों के हवाले थी। हालांकि इन सालों में रौनिक ने काफी तरक्की की थी। देखते- देखते कंट्री हेड बन गया था। गाँव के मकान का कर्जा भी चुका रहा था। घर और पशुओं की देखभाल के लिए लोग किराए पर रख लिए लिए थे लेकिन मंदी की ऐसी बयार चली कि एक ही पल में उसका सबकुछ छिन गया। वो जी भर के रोना चाहता था। पर हालात इस बात की इजाजत नहीं दे रहे थे। एकबार तो लगा कि अब जीकर क्या फायदा… पर उसके कंधों पर खुद के और गाँव के परिवार की ज़िम्मेदारी थी, जो मरने भी नहीं दे सकती थी।

सुनिधि दौड़ी- दौड़ी उसके पास आई… क्या हुआ रौनिक आज बहुत परेशान लग रहे हो। सब ठीक तो है…. हाँ कुछ खास नहीं… रौनिक ने लंबी सांस लेते हुए कहा और मुंह घुमाकर लेट गया। सुनिधि ने उसको झकझोरते हुए कहा… कोई बात तो है… तुम्हें यशी की कसम… मुझसे नहीं कहोगे तो किससे कहोगे… बताओ न…  कुछ नहीं!! नौकरी छूट गई है… मंदी में कंपनी ने छंटनी कर दिया है। कुल 25 कर्मचारी निकाले गए हैं… जिसमें सबसे ऊपर मेरा नाम था। यह सुनते ही सुनिधि का चेहरा फक्क पड़ गया। नए घर की किश्तें, यशी के स्कूल की फीस, गाँव के मकान का कर्ज, बीमा, कार सबकी किश्तें अचानक साँप की तरह फन फैलाकर डंसने के लिए खड़े हो गए। कोई भी रास्ता बचने का नजर नहीं आ रहा था।

फिर भी सुनिधि ने रौनिक को ढांढस बंधाते हुए कहा, कोई बात नहीं… नौकरी छूटी है, कौन सा हमारे जीवन का जहाज डूब गया है। फिर नौकरी मिल जाएगी, हम नई शुरुआत करेंगे, तब तक खर्च में कटौती करके जी लेंगे। जरूरत पड़ी तो अपने गहने बेंच देंगे। आखिर ये वक्त जरूरत के लिए ही बनवाए थे। तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। कहने को सुनिधि ने आसानी से ये कह दिया लेकिन दोनों जानते थे कि आने वाले जीवन की राहें बड़ी मुश्किल होंगी। धीरे- धीरे जमा पूंजी खत्म हो जाएगी। कार और घर की किश्त अदा न करने पर ये छिन जाएंगे। गाँव का मकान भी बिक जाएगा और यशी का इन्टरनेशनल स्कूल भी छूट जाएगा। इस सब से बढ़कर रौनिक के लिए चिंता का विषय ये था कि उसकी टीम के सदस्य बेरोजगार हो गए हैं। उसने ही इंटरव्यू लेकर सबको नौकरी पर रखा था। रौनिक ने अपनी टीम को परिवार का ही दर्जा दिया था। तभी कंपनी की तरक्की में सबने दिन- रात एक कर दिये थे लेकिन रौनिक ये नहीं समझ सका कि कारपोरेट कल्चर में परिवार और रिश्तों के लिए कोई जगह नहीं होती है। मुनाफा ही रिश्तों का सफर तय करता है। पर रौनिक आज भी रिश्तों कि अहमियत को समझता था। वो जानता था कि जब तक मंदी चल रही है, तब तक उसकी टीम के सदस्यों को कोई नौकरी मिलने वाली नहीं है। ऐसे में वो खुद को ही अपनी टीम की बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार मान रहा था।

आखिर करें तो करें क्या, जिससे इस मुसीबत से खुद को और सारे टीम मेम्बर को आर्थिक संकट से बाहर निकाला जा सके। रौनिक इसी उधेड़बुन में लगा परिस्थितियों से बाहर निकलने का रास्ता खोज रहा था। आखिरकार उसने टीम के सारे सदस्यों को बुलाया और इस हालात से निपटने के लिए रास्ता खोजने की कोशिश की। ज़्यादातर युवा सदस्य ग्रामीण परिवेश के ही थे। जिनके पास न तो पैतृक संपत्ति थी और न ही जमा पूंजी, ऐसे में कोई बड़ा उद्योग भी लगाना संभव नहीं नजर आ रहा था। हाँ, थोड़ी बहुत गाँव की जमीन और पशु धन ही सबके पास था लेकिन इससे नई कंपनी नहीं खड़ी की जा सकती थी। फिरभी हाथ पर हाथ रखकर बैठा नहीं जा सकता था। उसने सारे सदस्यों से चर्चा की और अपने- अपने आइडिया देने के लिए कहा। काफी चर्चा के बाद तय हुआ कि अगली मीटिंग में वो ऐसे व्यवसाय पर चर्चा करेंगे जो सब मिलकर आसानी से खड़ा कर सकें।

रौनिक के बेरोजगार होने के बाद गाँव की जमीन, घर और पशुओं की देखभाल के लिए धन की दोबारा किल्लत हो गई थी। ऐसे में रौनिक ने फैसला किया कि वो खुद गाँव जाएगा और वहाँ जाकर पशुओं और खेतों की देखभाल करेगा। उसने गाँव जाकर खेती और पशु पालन में असीम संभावना देखी। वापस शहर आकर अगली बैठक में रौनिक ने कहा कि हम सभी के पास पूंजी के नाम पर केवल कृषि योग्य जमीन और पशुधन ही उपलब्ध है। अगर सब मिलकर अपने ही गाँव में खेती और पशु पालन का व्यवसाय करें तो ज्यादा पूंजी की जरूरत नहीं होगी और प्रकृति की सेवा भी हो सकेगी। रौनिक ने सलाह दी कि हम एक ऐसी कंपनी बनाएँगे जो दुग्ध से संबन्धित सारे देशी उत्पाद बाजार को उपलब्ध कराएगी। साथ ही जैविक खेती कर लोगों को स्वास्थ्यफरक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराएंगे। यह विचार सभी बेरोजगार युवाओं को पसंद आया। रौनिक ने सभी की राय के बाद “कामधेनु आपूर्ति” नाम कंपनी स्थापित की जबकि सरकार की ओर स्टार्टअप के लिए धन उपलब्ध कराया गया। अपने गाँव में उसने प्लांट स्थापित किया। टीम के सभी 25 सदस्यों को उसने बराबर की हिस्सेदारी दी। साथ सभी को खेती और पशु पालन के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की। अब रौनिक ने अत्याधुनिक तकनीक और पारंपरिक विधि से जैविक खेती और पशु पालन शुरू कर दिया। जबकि टीम के सदस्यों ने अपने- अपने गाँव में जाकर यही काम शुरू कर दिया। कंपनी की गाडियाँ रोजाना सभी गांवों से दूध का कलेक्शन करने लगीं। धीरे- धीरे कामधेनु आपूर्ति देशी घी, पनीर, दही और छाछ भी सरकारी और गैर सरकारी उपक्रमों को बेचे जाने लगे। गाय के गोबर और गौमूत्र के लिए भी रौनिक ने प्लांट डाल दिया। जैविक खेती भी खूब फलने- फूलने लगी। साल भर में रौनिक और उसके टीम के सदस्यों के सारे कर्ज खत्म हो गए। रौनिक का गाँव पशु पालन और दुग्ध उत्पादन में पूरे प्रदेश में नंबर वन घोषित कर दिया गया। कंपनी के पास हजारों का पशुधन और सैकड़ों उत्पाद बाजार में आने लगे। कामधेनु ब्रांड की धूम मच गई, सभी के जीवन में एकबार फिर खुशहाली लौट आई। लेकिन अब भी एक विकट समस्या सबके सामने खड़ी थी। वो थी अपने बच्चों के लिए अच्छी और गुणवततापरक आधुनिक शिक्षा की। रौनिक के सामने भी अपनी बेटी के लिए मेट्रो शहरों जैसी शिक्षा को उपलब्ध कराने की चुनौती थी। ऐसे में उसने “मानवता मंदिर” नामक विध्यालय खोलने का निश्चय किया। तय हुआ कि शिक्षक ही इस स्कूल के स्वामी होंगे। जो बच्चों को प्राकृतिक वातावरण में भारतीय संस्कारों के साथ इन्टरनेशनल शिक्षा प्रदान करेंगे। रौनिक की पत्नी ने भी उस स्कूल में शिक्षा प्रदान करने की इच्छा जाहिर की। इसी प्रकार योग्य शिक्षक विध्यालय से जुडने लगे। संस्कृति से लेकर अंग्रेजी, विज्ञान और कम्प्यूटर की शिक्षा बच्चों को दी जाने लगी। रौनिक देखते ही देखते खुद और अपने टीम के 25 सदस्यों को बेरोजगारी से उबारकर उध्यमी बन चुका था। उसकी कंपनी में अब 5000 से ज्यादा कामगार थे। इनमें किसान, डेयरी पालक, कृषि वैज्ञानिक, पशु चिकित्सक, शिक्षक सभी शामिल थे। खास बात यह थी कि ये सभी इस उद्यम के मालिक थे। कंपनी में सबकी भागेदारी और हिस्सेदारी थी और किसी के भी सामने रोजगार छिनने का खतरा नहीं था। रौनिक एक ऐसे व्यवसाय और कंपनी को वृहद रूप दे चुका था, जो हर व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने वाला था। रौनिक ने न सिर्फ खुद को संकट से उबारा बल्कि दूसरों के लिए भी एक मिसाल बन चुका था।

पीएम मोदी ने गंभीर मुद्दे उठाए तो वाइडेन को हंसने पर भी मजबूर कर दिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच गंभीर मुद्दों पर चर्चा हुई। जलवायु परिवर्तन से लेकर आतंकवाद और विश्व शांति को लेकर दोनों देश गंभीर नजर आए। हालांकि इस बीच कुछ पल ऐसे भी रहे जब व्हाइट हाउस हंसी-ठहाकों से गूंज उठा। पीएम मोदी ने राष्ट्रपति वाइडेन का भारत लिंक याद कराया तो उनके सरनेम के तार इंडिया से जोड़ दिए। राष्ट्रपति से मिलते ही पीएम मोदी ने कहा कि मैं अपने साथ आपके सरनेम को लेकर कागजात भी लाया हूँ। यह सुनते ही बाइडेन अपनी हंसी नहीं रोक सके।

पीएम मोदी  ने यूएस प्रेसिडेंट कहा, ‘आपने भारत में बाइडेन सरनेम का जिक्र किया था. मैंने इससे जुड़े काफी कागजात ढूंढने की कोशिश की है. मैं इनमें से काफी कागजात अपने साथ भी लाया हूं. शायद आप इस मामले को आगे बढ़ा सकते हैं’. यह बात सुनते ही अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने हंसना शुरू कर दिया. इस दौरान, उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस के भारत कनेक्शन पर भी चर्चा हुई। दूसरी ओर क्वाड शिखर सम्मेलन  में एक बार फिर आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान का नाम लिए बिना उसे घेरा गया। क्वाड देशों अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेताओं ने दक्षिण एशिया में ‘पर्दे के पीछे से आतंकवाद का इस्तेमाल’ (आतंकवादी प्रॉक्सी) के प्रयोग की निंदा की. उनका इशारा पाकिस्तान की तरफ था. नेताओं ने आतंकवादी संगठनों को किसी भी समर्थन से इनकार करने के महत्व पर जोर दिया, जिसका उपयोग सीमा पार हमलों सहित आतंकवादी हमलों को शुरू करने या साजिश रचने के लिए किया जा सकता है।

देश में 4 हजार से बढ़कर हो गईं 46 लाख जातियाँ !! ‘ये हो ही नहीं सकता’!

अगर जनगणना आंकड़ों पर नजर डालें तो आप चौंक जाएंगे। देश में 1931 जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि यहाँ कुल जातियां 4,147 थीं लेकिन 2011 की जनगणना में जातियों का आंकड़ा बढ़कर 46 लाख से ज्यादा पहुँच गया। इस आकड़ें को खुद सरकार तक स्वीकार नहीं कर पा रही है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह आंकड़ा वास्तव में हो ही नहीं सकता, संभव है कि इनमें कुछ जातियां उपजातियां रही हों।सरकार ने बताया है कि जनगणना करने वाले कर्मचारियों की गलती और गणना करने के तरीके में गड़बड़ी के कारण आकंड़े विश्वसनीय नहीं रह जाते हैं।

राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा में रहे पिछड़े वर्गों की जातिगत जनगणना के मसले पर केंद्र सरकार ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने 2021 की जनगणना में ओबीसी की गणना नहीं करने का फैसला किया है। SC में हलफनामा दाखिल कर सरकार ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना प्रशासनिक रूप से काफी जटिल काम है और इससे पूरी या सही सूचना हासिल नहीं की जा सकती है। सरकार का कहना है कि जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना नीतिगत फैसला है।

पीएम मोदी से मुलाक़ात के बाद भारत की मुरीद हुईं हैरिस, पाक को आतंकवाद के लिए लताड़ा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अमेरिकी दौरे के पहले दिन छाए रहे। उन्होने अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस पहली मुलाक़ात में ही भारत का मुरीद बना दिया। इसके साथ ही जापान और आस्ट्रेलिया से शीर्ष नेताओं से मिलकर दुनियाँ के सामने नए सम्बन्धों की इबारत लिखी। प्रधानमंत्री आज रात को अमेरिकी राष्ट्रपति जो वाइडेन से मिलेंगे जिस पर पूरी दुनियाँ की नजरें लगी हैं।  

व्हाइट हाउस से मीटिंग के दौरान पीएम मोदी ने हैरिस को भारत आने का न्यौता दिया। उप-राष्ट्रपति ने भी कहा कि भारत  और अमेरिका के साथ काम करने का दुनिया पर गहरा असर होगा। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, पीएम मोदी ने कहा, ‘अमेरिका की उप राष्ट्रपति के तौर पर आपका चुनाव जरूरी और ऐतिहासिक मौका था. आप दुनियाभर में कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं। मुझे भरोसा है कि राष्ट्रपति बाइडन और आपके नेतृत्व के तहत हमारे द्विपक्षीय संबंध नई ऊंचाइयों को छुएंगे।’

कमला हैरिस ने पीएम मोदी से कहा कि यूएस भारत सरकार की उस घोषणा का स्वागत करता है, जिसमें कहा गया है कि भारत जल्द ही कोरोना वैक्सीन का निर्यात फिर से शुरू करेगा। उन्होने इस मौके पर पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कारवाई की मांग की।

बैठक के बाद जारी संयुक्‍त बयान में पीएम मोदी अमेरिकी प्रशासन और कमला हैरिस की तारीफ करते हुए कहा, ‘कुछ महीने पहले टेलीफोन से आपसे विस्तार से बात करने का मौका मिला था. यह वह समय था जब भारत कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में था. उस समय आप ने जिस तरह से आत्मीयता से भारत की चिंता की. आपने भारत की मदद के लिए कदम उठाए, उसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं. महामारी की दूसरी लहर के दौरान अमेरिकी सरकार, कंपनियां और भारतीय समुदाय सभी मिलकर भारत की मदद के लिए एकजुट हो गए थे’।

जन्मदिन : साहित्य में सूर्य बनकर चमके राष्ट्रकवि दिनकर

छायावाद की छाया से निकलकर राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म आज के दिन यानि 23 सितंबर 1908 को हुआ था। मूलरूप से छायावादी कवि ने राष्ट्रवाद की एक से बढ़कर एक कविताएं लिखी। जब आजादी का संघर्ष चरम पर था उसी समय दिनकर की कविताएं देश में जोश भर रही थी। देश की आजादी के बाद भी दिनकर की ओजस्वी कविताएं प्रेरणा देती हैं।  

दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वो बेबाक टिप्पणी से कतराते नहीं थे। राष्ट्रकवि ने एक बार राज्यसभा में नेहरू की ओर इशारा करते हए कहा कि, “क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया है, ताकि हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाए जा सकें?” ये सुनकर नेहरू सहित सभा में बैठे सभी लोग हैरान रह गए।

देश की आजादी की लड़ाई में भी दिनकर ने अपना योगदान दिया था। वो गांधीजी के बड़े मुरीद थे। उनकी ओजपूर्ण कविताएँ स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के विरुद्ध जन-जन में देशभक्ति की भावना जागृत करने से लेकर 1975 के आपातकाल में तानाशाही मानसिकता के विरुद्ध प्रमुख स्वर बनी। वो हिंदी साहित्य के बड़े नाम दिनकर उर्दू, संस्कृत, मैथिली और अंग्रेजी भाषा के भी जानकार थे। वर्ष 1999 में उनके सम्मान में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया। दिनकर की साहित्य में सूर्य के समान चमक थी। उनकी लिखी कविता-

सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

जनता ? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही

जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली

जब अँग-अँग में लगे साँप हो चूस रहे

तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली

जनता ? हाँ, लम्बी-बडी जीभ की वही कसम

“जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।”

“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?”

‘है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है ?”

मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं

जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में

अथवा कोई दूधमुँही जिसे बहलाने के

जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में

लेकिन होता भूडोल, बवण्डर उठते हैं

जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती

साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है

जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?

वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है

अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अन्धकार

बीता; गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं

यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय

चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं

सब से विराट जनतन्त्र जगत का आ पहुँचा

तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो

अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है

तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो

आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख

मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?

देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे

देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में

फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं

धूसरता सोने से शृँगार सजाती है

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

मोदी- मोदी के नारों से गूँजा अमेरिकी एयरपोर्ट

वॉशिंगटन: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दिवसीय दौरे पर अमेरिका पहुंचते ही भव्य स्वागत हुआ। वॉशिंगटन एयरपोर्ट मोदी- मोदी के नारों से गूंज उठा। इस बीच पीएम मोदी के स्वागत के लिए अमेरकी विदेश मंत्रालय के कई अधिकारी पहुंचे थे। इसके अलावा, अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधु भी हवाईअड्डे पर उपस्थित थे।

वाशिंगटन में भारतीयों से मुलाकात के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘वाशिंगटन डीसी में भारतीय समुदाय द्वारा गर्मजोशी से किए गए स्वागत के लिए आभारी हूं। हमारा प्रवासी हमारी ताकत है। भारतीय प्रवासियों ने दुनिया भर में खुद को  जिस तरह प्रतिष्ठित किया है, वह सराहनीय है।’ समाचार एजेंसी  के अनुसार एक भारतीय अमेरिकी ने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखने के लिए बहुत उत्साहित हैं. हमें बारिश में खड़े होने में कोई दिक्कत नहीं है. हम प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए उत्साहित हैं।’

भारतीय समुदाय के एक अन्य सदस्य ने कहा कि पीएम मोदी की यात्रा भारत और अमेरिका के संबंधों को और मजबूत करने में ‘बहुत महत्वपूर्ण’ होगी. उन्होंने कहा- ‘COVID-19 और अफगान संकट को देखते हुए, भारत और अमेरिका के संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने में यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है. हमें गर्व है, हम भारतीय हैं और वह लाखों भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.’

इससे पहले पीएम मोदी ने तस्वीर शेयर कर बताया कि लंबी दूरी की फ्लाइट में वह कैसे समय बिताते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सफर के दौरान एक ट्वीट किया था. ट्वीट की गई तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फाइलों को हाथ में लिए दिखाई दे रहे हैं. फाइलों के साथ-साथ PM के हाथ में एक पेन भी है. प्रधानमंत्री ने इस तस्वीर के साथ में एक कैप्शन भी लिखा है।   पीएम मोदी ने लिखा है कि जब आपकी फ्लाइट लंबी दूरी की हो तो आप उस समय का इस्तेमाल अपने कागजी काम को पूरा करने के लिए कर सकते हैं. PM की ये फोटो वायरल हो रही है. ट्वीट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अधिकांश लोगों ने इस सलाह को अपने जीवन में लागू करने की बात भी कही है. बता दें कि पीएम मोदी का ये दौरा बेहद अहम है. अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुनने के बाद यह पहली बार है जब बाइडेन से प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात होगी।

माया- मोह लालच और साजिश के चक्रव्यूह में फंस गई संत ज़िंदगी

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अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत ने एकबार फिर संस्कृति और संस्कारों की जड़ों को हिला दिया है। संत की आत्महत्या को देश स्वीकार नहीं कर पा रहा है। वहीं शिष्य के आरोपी होने से गुरु शिष्य रिश्ते भी तार- तार हो गए हैं। महंत के कमरे से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ है। बात एक वीडियो, लड़की और संपत्ति की भी हो रही है। सारा फसाद ही माया- मोह और लालच से जुड़ा नजर आ रहा है।

इसके अलावा उसमें उनके शिष्य आनंद गिरि पर गंभीर आरोप लगाए गए। एक नजर में देखें सब फसादों की जड़ अखाड़े की अकूत संपत्ति थी, जिसकी पूरी जिम्मेदारी महंत नरेंद्र गिरि संभाल रहे थे।

प्रयागराज में मठ, जमीन और आश्रम प्रयागराज के अल्लापुर में बाघम्बरी गद्दी और मठ स्थित है। वहां पर निरंजनी अखाड़े के नाम एक स्कूल और गोशाला है। साथ ही अल्लापुर में ही 5 से 6 बीघे जमीन मठ के नाम पर बताई जा रही है। वहीं दारागंज इलाके में भी अखाड़े की जमीन है, जो काफी पहले ली गई थी। मठ से जुड़े एक सदस्य की मानें तो प्रयागराज के मांडा में ही 100 बीघा जमीन है। जिसकी कीमत करोड़ों में होगी। बाघम्बरी मठ के अनुयायी दुनियाभर में फैले हैं। प्रयागराज के अलावा भी यूपी के कई जिलों में मठ की जमीनें हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक मिर्जापुर के महुआरी में भी 400 बीघे, नैडी में 70 और सिगड़ा में 70 बीघा जमीन अखाड़े के नाम पर है। अगर निरंजनी अखाड़े के मठ, मंदिर और जमीन की कुल कीमत आंके तो आंकड़ा 300 करोड़ के पार चला जाएगा। वहीं अगर इसमें हरिद्वार और दूसरे राज्यों की संपत्ति को जोड़ लिया जाए, तो संपत्ति 1000 करोड़ से ज्यादा की होगी। बड़े शहरों में भी जमीन निरंजनी अखाड़े की मध्य प्रदेश के उज्जैन और ओंकारेश्वर में 250 बीघा जमीन है। इसके अलावा कई मठ और आश्रम भी हैं, जहां पर अखाड़े के शिष्य रहते हैं। नासिक में भी कुंभ लगता है, जिस वजह से नरेंद्र गिरि वहां जाते रहते थे, ऐसे में वहां पर भी 100 बीघा से ज्यादा की जमीन है। हरिद्वार, जयपुर, वाराणसी, बड़ोदरा में भी मठ के नाम पर काफी जमीन रजिस्टर है। कौन होगा उत्तराधिकारी? सुसाइड नोट में ही नरेंद्र गिरि ने अपनी वसीयत लिख दी थी। जिसमें उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बलवीर गिरि को बनाया है। बलवीर अभी तक अखाड़े के उप महंत थे और वो हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर महादेव मंदिर की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। उन्होंने सुसाइड नोट में अपील करते हुए लिखा कि बलवीर तुम मठ की जिम्मेदारी वैसे ही संभालना जैसे मैंने किया। इसके अलावा अपने सभी शिष्यों से बलवीर का सहयोग करने की अपील की है।

फिल्म्स, बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन और ड्रग्स

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डॉ सरनजीत सिंह

फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट

ट्रांसफॉर्मेशन का हिंदी में अर्थ होता है, बदलाव या परिवर्तन. वहीं बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन का मतलब है शरीर में परिवर्तन लाना जिसमें बॉडी की शेप, साइज, वज़न, फिटनेस, स्ट्रेंथ, स्टैमिना, सहनशीलता, व्यक्तित्व आदि में बदलाव लाया जाता है. प्राकृतिक तरीके से बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन करना एक बहुत वैज्ञानिक और जटिल प्रक्रिया है. इसमें वैज्ञानिक तरीके से एक्सरसाइज करना, संतुलित आहार लेना, उचित नींद और एक सकारात्मक सोच की ज़रुरत होती है. अब जैसा कि हम सभी जानते हैं कि फ़िल्में हमारे समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव डालती हैं. शारीरिक बदलाव की चमत्कारिक शुरुवात हॉलीवुड के सबसे नामचीन एक्शन हीरो आर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर ने की जो फिल्मों में आने से पहले एक बॉडीबिल्डर था और कई बार ‘मिस्टर ओलम्पिया’ का ख़िताब जीत चुका था. फिल्मों में आने से पहले उसे एक्टिंग का कोई तजुर्बा नहीं था. लोग तो सिर्फ़ उसके करिश्माई शरीर के दीवाने थे जिसके चलते अर्नाल्ड बहुत जल्द उनका पसंदीदा एक्शन हीरो बन गया था. अर्नाल्ड ने एक के बाद एक तमाम हिट फ़िल्में दीं और देखते ही देखते उसका नाम दुनिया के सबसे अमीर फ़िल्मी कलाकारों में शामिल हो गया. बाद में वो कैलिफ़ोर्निया का गवर्नर भी बना. अर्नाल्ड की ही तरह हॉलीवुड के एक और एक्शन हीरो सिल्विस्टर स्टेलोन ने भी अपने करिश्माई शरीर की मदद से बहुत लोकप्रियता और दौलत हासिल की. इसके बाद तो एक्शन, रोमांटिक हर तरह के छोटे-बड़े फ़िल्मी कलाकारों में बड़े-बड़े आर्म्स, गोल शोल्डर्स, पतली कमर और ‘6’ पैक्स बनाने का चलन शुरू हो गया. इसके लिए वो जिम्स में घंटों एक्सरसाइज करने लगे और अपने खान-पान पर विशेष ध्यान रखने लगे. दुनिया की कई बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं, अख़बारों और टी वी शोज में उनके ट्रेनिंग प्रोग्राम्स और डाइट प्लान्स की चर्चा होने लगी जिससे आम लोगों में भी अपने चहते कलाकारों जैसा दिखने की होड़ लग गयी.

हमारा बॉलीवुड भी इससे अछूता नहीं रहा. यहाँ के फ़िल्मी कलाकार भी हॉलीवुड के कलाकारों की तर्ज़ पर अपने शरीर को बेहतर बनाने की रेस में लग गए. हमारे देश में इसकी शुरुवात करने में बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान का बहुत बड़ा रोल रहा. हर नौजवान उसके जैसा शरीर बनाने की चाहत करने लगा और देखते ही देखते सलमान की लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी कि रातों-रात वो इंडस्ट्री के सबसे महंगे कलाकारों में जाना जाने लगा. इसके बाद संजय दत्त, सुनील शेट्टी और कई फ़िल्मी कलाकारों ने इस चलन को आगे बढ़ाने का काम किया और उनको भी इससे अपार सफलता मिली. ऐसा नहीं है कि इसका प्रभाव सिर्फ़ पुरुष अभिनेताओं तक ही सीमित रहा, इसकी छाप बॉलीवुड की अभिनेत्रयों पर भी पड़ी. उन्होंने भी हॉलीवुड की अभिनेत्रियों की तरह स्लिम-ट्रिम और ग्लैमरस दिखने के लिए अपने वज़न को नियंत्रित करने की कवायत शुरू कर दी. इसका असर टी वी और विज्ञापनों में काम करने वाले कलाकारों पर भी हुआ. इस सबसे जिम्स और हेल्थ क्लब बिजनेस को भी बढ़ावा मिला जो आज अरबों की इंडस्ट्री बन चुका है.

अब जैसा कि मैंने ऊपर ज़िक्र किया की प्राकृतिक तरीके से बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन करना एक बहुत वैज्ञानिक और जटिल प्रक्रिया है जिसमें बहुत सयंम और समय लगता है. इसके लिए पूरे समर्पण और प्रतिबद्धता की ज़रुरत होती है. आज कल के ज़्यादातर नौजवानों में इसका आभाव रहता है, वो सब कुछ जल्द से जल्द पा लेना चाहते हैं और यही कारण है कि अपने शरीर में मनचाहा बदलाव पाने के लिए भी वो शार्टकट्स तलाशने लगे हैं. इसके चलते वो कुछ ऐसी गलतियां करते हैं जिससे उनमें इंजरीज या स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी समस्याएं होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं जो कभी-कभी उनके लिए प्राणघातक साबित हो जाती हैं. कम से कम समय में अपना लक्ष्य पाने के लिए वो ज़रुरत से ज़्यादा एक्सरसाइज करने लगते हैं, मिलावटी और बिना किसी वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित फ़ूड सप्लीमेंट्स का सेवन करने लगते हैं. सबसे ज़्यादा बुरा तो तब होता है जब वो शारीरिक परिवर्तन के लिए अत्यधिक प्रबल और ख़तरनाक दवाओं का प्रयोग करने लगते हैं. पिछले करीब 20-25 सालों में इस तरह की दवाओं का प्रयोग देश के हर छोटे-बड़े शहरों में होने लगा है. आसानी से उपलब्ध हो जाने और इन पर कोई रोक न होने के कारण इनके व्यापार की जड़ें बहुत गहराई तक फ़ैल चुकी हैं. इन दवाओं के दुष्प्रयोग से नौजवानों को स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं हो रही हैं और अभी तक ना जानें कितने अपनी जान तक गवां चुके हैं.

अब यहाँ हैरान करने वाली बात ये है कि इन दवाओं को प्रयोग करने का सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत भी हॉलीवुड और बॉलीवुड के कलाकार ही रहे हैं. उनमें से ज़्यादातर कलाकारों ने कड़ी मेहनत और संतुलित आहार के साथ इन खतरनाक दवाओं का प्रयोग किया और अप्राकृतिक तरीके से अपने शरीर में बदलाव किये. अपनी शोहरत खो जाने के डर से उन्होंने तो इन दवाओं के प्रयोग को कभी भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया फिर भी इस रहस्य को ज़्यादा समय तक छुपाया न जा सका. आज फिल्म, टी वी और मॉडलिंग इंडस्ट्री से जुड़ा हर कलाकार इन दवाओं के प्रभाव को भली-भांति जानता है और रोल या विज्ञापन की मांग होने पर इनके इस्तेमाल से कतई गुरेज़ नहीं करता. सबसे बड़ी समस्या ये है कि गंभीर दुष्प्रभाव होने बावज़ूद आज तक इन दवाओं पर कोई रोक नहीं लग सकी है. इन दवाओं का व्यापार धड़ल्ले से चल रहा है और खूब फल-फूल रहा है. इनमें मुख्य रूप से प्रयोग की जाने वाली दवाएं – एनाबोलिक स्टेरॉयड, ह्यूमन ग्रोथ हॉर्मोन, स्टिमुलैंट्स, बीटा टू अगोनिस्ट्स और डाइयरेटिक्स (वाटर पिल्स) होती हैं. इनमें भी सबसे ज़्यादा प्रयोग एनाबोलिक स्टेरॉयड का होता है. इन्हें इस्तेमाल करने से आप बिना थके ज़्यादा देर तक एक्सरसाइज कर सकते हैं, आप ज़्यादा वज़न उठा सकते हैं जिससे आपकी मांस-पेशियों में बहुत जल्दी और बहुत अधिक विकास होता हैं.ह्यूमन ग्रोथ हॉर्मोन भी कुछ इसी तरह का काम करने के साथ-साथ एक एंटी-एजिंग ड्रग का काम करता है जिससे आप अधिक उम्र का होने पर भी जवान दिखते हैं. बीटा टू अगोनिस्ट्स और डाइयरेटिक्स का प्रयोग वज़न काम करने और शरीर में फैट की मात्रा को कम करने में होता है जिससे आप स्लिम दिख सकें और ‘6’ पैक्स दिख सकें. ये सभी बहुत प्रबल और ख़तरनाक दवाएं होती हैं. स्वास्थ्य सबंधी गंभीर समस्या होने पर ही इन दवाओं का प्रयोग किया जाता है. इन समस्याओं के दौरान डॉक्टर्स इनकी बहुत कम डोज़ का प्रयोग करते हैं जबकि अप्राकृतिक रूप से शारीरिक परिवर्तन के लिए इसकी कई गुनी अधिक मात्रा का प्रयोग किया जाता है. ऐसा करने पर इसके कई शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभाव हो सकते हैं. इसके शारीरिक दुष्प्रभाव हार्ट अटैक और दिल से जुड़ी गंभीर समस्याएं होना, ब्रेन हेमरेज या स्ट्रोक होना, लिवर और किडनी खराब होना, कुछ ख़ास तरह के कैंसर का होना, पुरुषों में सीने के विकास (गायनेकोमास्टिया), नपुंसकता, सर के बालों का झड़ना और शरीर के बालों का बढ़ना, मुहांसे निकलना और आवाज़ में बदलाव आना हो सकते हैं. इन दवाओं के प्रयोग से होने वाले मानसिक दुष्प्रभाव इन्हे इस्तेमाल करने वालों के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्यों, दोस्तों और समाज के लिए भी बहुत घातक हो सकते हैं. इनमें मुख्य रूप से बहुत आक्रामक हो जाना, उनके स्वाभाव में बहुत उतार-चढ़ाव और चिड़चिड़ापन होना, डिप्रेशन होना, यादाश्त कमज़ोर होना और यहाँ तक की उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति आना तक शामिल हैं.

इन दवाओं का सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव युवाओं में देखने को मिलता है, वो अपने चहेते फ़िल्मी कलाकारों के हाव-भाव, उनके कपड़ों, उनके स्टाइल के साथ-साथ उनकी बॉडी की कॉपी करने की कोशिश करते हैं, उनके जैसा दिखना चाहते हैं. इसके अलावा जिस तरह आजकल सोशल मीडिया में एक्सरसाइज करते हुए की या शर्टलेस फोटो पोस्ट करना एक स्टाइल स्टेटमेंट बन चुका है, युवा जल्द से जल्द रिजल्ट पाने की होड़ में बिना डॉक्टर की सलाह के इन दवाओं का सेवन करने लगते हैं. कुछ समय तक इन दवाओं का सेवन करने पर उन्हें इसकी लत लग जाती है क्योंकि जैसे हि वो इनका प्रयोग बंद करते हैं, इन दवाओं से मिलने वाला अस्वाभाविक शारीरिक परिवर्तन समाप्त होने लगता है, उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है और फिर वो इन्हें नहीं छोड़ पाते. इस समस्या का सबसे बड़ा कारण ये है कि इनको इस्तेमाल करने वाले ये कभी ये स्वीकार ही नहीं करते कि वो इनका प्रयोग करते हैं.वो इन दवाओं से होने वाली शुरूआती समस्याओं को नज़रअंदाज़ करते जाते है और अंततः जब इनके घातक परिणाम आने लगते हैं तब उन्हें संभालना डॉक्टर्स के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है. यहाँ तक कि कई बार ऐसे युवाओं की समय से पहले मौत हो जाती है और इसके कारणों का भी पता नहीं चल पता. यहाँ ये जानना बहुत ज़रूरी है कि फ़िल्मी कलाकार इन दवाओं का प्रयोग स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट की देख रेख में करते हैं और कोई भी शुरूआती लक्षण होने पर वो सतर्क हो जाते हैं और अपने आपको इनसे होने वाले गंभीर दुष्प्रभावों से बचा लेते हैं.

इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले इन दवाओं की ख़रीद-फरोख्त के लिए सख्त कानून बनाने होंगे और युवाओं को इनसे होने वाले दुष्प्रभाव के प्रति अवगत कराना होगा. माता-पिता को भी अपने बच्चों पर नज़र रखनी होगी. अगर आपका बच्चा भी जिम जाता है तो उसके जिम बैग या उसके रूम में किसी तरह की दवा की गोलियां या इंजेक्शंस मिलने पर तुरंत उससे पूछ-ताछ करनी होगी. अगर आपको उसके चेहरे पर अकस्मात् मुहांसे दिखें, उसके बालों का झड़ना दिखे या उसके स्वाभाव में आक्रामकता या चिड़चिड़ापन दिखे तो इसकी गंभीरता से जांच कीजिये. ये इन दवाओं से होने वाले शुरूआती लक्षण होतें है. इस स्थिति में इन दवाओं से होने वाले गंभीर दुष्प्रभावों को रोका जा सकता है और कई नौजवानों की जान बचाई जा सकती है. इन सबके साथ मैं एक अपील फ़िल्मी कलाकारों से भी करना चाहता हूँ कि जहाँ तक हो सके वो ख़ुद भी इन दवाओं से दूर रहें और अगर वो इनका प्रयोग करते हैं तो इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करें जिससे नौजवान अपने शरीर परिवर्तन के लिए एक संभाविक और सुरक्षित लक्ष्य बना सकें. ये उनका सामाजिक और नैतिक कर्तव्य है और इससे उनके प्रशंसकों में उनके प्रति सम्मान और प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी.

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सुसाइड नोट और वीडियो में छिपा है महंत नरेंद्र गिरि‍ की संदिग्ध मौत का राज

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद  के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि‍ की संदिग्ध मौत का मामला लगातार पेंचीदा होता जा रहा है। आत्महत्या से लेकर सुसाइड नोट, तथाकथित वीडियो और शिष्य पर आरोप किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं है। मामले पर पहली एफआईआर प्रयागराज के जॉर्ज टाउन थाने में दर्ज की गई है।

महंत नरेंद्र गिरि‍ के शिष्य अमर गिरि‍ पवन  महाराज की तरफ से दर्ज करवाई गई एफआईआर में सिर्फ उनके शिष्य आनंद गिरि‍ को नामजद आरोपी बनाया गया है। आनंद गिरि‍ के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. आनंद गिरि‍ को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है. पुलिस ने आनंद गिरि‍ को हरिद्वार से गिरफ्तार कर लिया है और अब उन्हें सड़क मार्ग से प्रयागराज लाया जा रहा है. उधर बड़े हनुमान मंदिर के पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को भी पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।

एफआईआर के मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि‍ सोमवार दोपहर लगभग 12:30 बजे बाघम्बरी गद्दी के कक्ष में भोजन के बाद रोज की तरह विश्राम के लिए गए थे. रोज 3 बजे दोपहर में उनके चाय का समय होता था, लेकिन चाय के लिए उन्होंने पहले मना किया था और यह कहा था जब पीना होगा तो वह स्वयं सूचित करेंगे. शाम करीब 5 बजे तक कोई सूचना न मिलने पर उन्हें फोन किया गया. लेकिन महंत नरेंद्र गिरि‍ का फोन बंद था. इसके बाद दरवाजा खटखटाया गया तो कोई आहट नहीं मिली. जिसके बाद सुमित तिवारी, सर्वेश कुमार द्विवेदी, धनंजय आदि ने धक्का देकर दरवाजा खोला. तब महाराज जी पंखे में रस्सी से लटकते हुए पाए गए।

क्या कप्तान के तौर पर आरसीबी को ट्राफी दिला पाएंगे कोहली!

आईपीएल के 14वें सीजन में अपना 200वां मैच खेलने के लिए मैदान में उतरने से पहले विराट बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम को भुला देना चाहते होंगे। ये घटनाक्रम उनके खेल से लेकर कप्तानी से जुड़े थे। विराट ने टी-20 विश्व कप के बाद कप्तानी छोडने का ऐलान किया। इसके बाद आईपीएल के मौजूदा सीजन के बाद आरसीबी की कप्तानी छोडने की घोषणा कर दी। इसके बाद लगा कि विराट एक बल्लेबाज के तौर पर अपना पुराना स्वर्णिम रूप दिखाएंगे लेकिन महज पाँच रनों पर आउट होकर विराट ने एकबार फिर प्रसंशकों को निराश कर दिया।

टी20 लीग के दूसरे चरण के पहले मुकाबले में टीम को केकेआर ने 9 विकेट से रौंद दिया।  यह कोहली का आरसीबी की ओर से 200वां मैच था और केकेआर को गेंद शेष रहते सबसे बड़ी जीत मिली। केकेआर ने 60 गेंद शेष रहते हुए यह मुकाबला जीत लिया। ऐसे में आईपीएल ट्राफी का सपना दूर जाता नजर आ रहा है। विराट कोहली बतौर खिलाड़ी भी अब तक आईपीएल का खिताब नहीं जीत सके हैं।

यह टी20 लीग का 14वां सीजन है. कोहली ने बतौर खिलाड़ी पहला मैच केकेआर के ही खिलाफ 18 अप्रैल 2008 को खेला था और टीम को 140 रन से बड़ी शिकस्त मिली थी। यह रनों के लिहाज से आज भी केकेआर की सबसे बड़ी जीत है. इसके बाद कोहली आईपीएल का खिताब नहीं जीत सके. अब जबकि केकेआर ने गेंद शेष रहते सबसे बड़ी जीत दर्ज कर ली है तो क्या कोहली को फिर खिताब के लिए लंबा इंतजार करना होगा। विराट कोहली बतौर कप्तान आईपीएल में 133 में से सिर्फ 60 मैच जीत सके हैं. यानी सिर्फ 48 फीसदी. यह लीग के बड़े कप्तानों के मुकाबले बेहद खराब है। सीएसके के कप्तान एमएस धोनी ने 196 में से 116 मैच जीते हैं. यह लगभग 59 फीसदी है. मुंबई के कप्तान रोहित शर्मा ने 123 में से 72 मैच जीते हैं. लगभग 60 फीसदी. सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग दोनों ने 50 से अधिक मैच में कप्तानी की है. उनका जीत का प्रतिशत 50 फीसदी से अधिक रहा है। ऐसे में कप्तान के तौर पर आखिरी बार खेल रहे विराट आरसीबी को ट्राफी दिला पाते हैं, ये भविष्य के गर्त में हैं।