Saturday, June 7, 2025
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बिग बी आज भी जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू हो होती है..

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“तुमने हमें पूज पूज कर पत्थर कर डाला ; वे जो हम पर जुमले कसते हैं हमें ज़िंदा तो समझते हैं ” पिता   हरिवंश राय बच्चन की ये पंक्तियाँ साझा करते हुए महानायक अभिताभ बच्चन ने जन्मदिन पर दार्शनिक अंदाज में अपने भाव प्रकट किए। जीवन के 80वें पादान पर कदम रखने जा रहे बिग बी उत्साह और जोश से लबरेज नजर आए। उन्होने ट्विटर पर लिखा कि  

जब साठा (60 ) तब पाठा

जब अस्सी (80) तब लस्सी  !!!

मुहावरे को समझना भी एक समझ है  !!

यानि बॉलीवुड के शहंशाह ने बता दिया कि जीवन में असली मिठाएस तो अब महसूस हो रही है। 79 वर्ष के हो चुके अमिताभ बच्चन आज भी युवाओं की तरह सक्रिय होकर फिल्म और टीवी के लिए काम कर रहे हैं। उनका शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’  आज भी लोकप्रियता के मामले में नंबर वन है। जबकि ब्रह्मास्त्र जैसी कई फिल्मों का दर्शक बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। बिग बी के जन्मदिन पर बॉलीवुड से लेकर उनके प्रशंसक लगातार बधाई दे रहे है।

कभी अपनी आवाज के कारण रेडियों पर रिजेक्ट होने वाले बच्चन की आवाज की आज पूरी दुनियाँ दीवानी है। एक समय था जब अभिताभ बच्चन को वालीवुड में फिल्म में काम के लिए देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की चिट्ठी लिखवानी पड़ी थी। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब वो लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे और बड़े से बड़े फ़िल्मकार की फिल्म को रिजेक्ट करने की क्षमता में पहुँच गए। एक समय था जब गांधी परिवार से उनके बेहद करीबी रिश्ते थे लेकिन राजीव गांधी की हत्या के बाद वो गांधी परिवार से दूर हो गए। वो आज भी बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय कलाकारों में शुमार हैं।

बिग बी का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। अमिताभ प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के सुपुत्र हैं। इन्होंने लोकप्रियता  1970 के दशक के दौरान प्राप्त की और धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा के इतिहास में इनका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। अमिताभ ने अपने करियर में पद्म विभूषण, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार जीते हैं।

फिटनेस : बॉडीबिल्डिंग… ये कैसा स्पोर्ट?

डॉ सरनजीत सिंह

फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट

बॉडीबिल्डिंग का मतलब तो हम सभी जानते हैं लेकिन पिछले कुछ सालों में इसके मायने पूरी तरह से बदल चुके हैं. ‘मदर ऑफ़ ऑल स्पोर्ट्स’ कहे जाने वाले इस स्पोर्ट की परिभाषा पूरी तरह से बदल चुकी है. दरअसल ज़्यादातर खेलों में खिलाड़ियों की शक्ति (स्ट्रेंथ), सहनशीलता (एंडुरेंस), लचीलापन (फ्लेक्सिबिलिटी), गति (स्पीड), त्वरण (एक्सेलरेशन) और चपलता (एजिलिटी) बढ़ाने के लिए शरीर की सभी मांस-पेशियों को मज़बूत बनाना बहुत ज़रूरी होता है. इस ट्रेनिंग को ‘बेसलाइन फिटनेस ट्रेनिंग’ कहा जाता है. बेसलाइन फिटनेस विकसित होने के बाद खिलाड़ियों का प्रदर्शन बेहतर करने के लिए उनके स्पोर्ट में प्रयोग होने वाली मांस-पेशियों की विशेष ट्रेनिंग कराई जाती है. इस ट्रेनिंग को ‘स्पोर्ट्स स्पेसिफिक फिटनेस ट्रेनिंग’ कहा जाता है और हर स्पोर्ट में इस ट्रेनिंग का एक विशेष तरीका होता है. खिलाड़ियों की बेसलाइन फिटनेस की शुरुआत बॉडीबिल्डिंग में की जाने वाली एक्सरसाइजेज से की जाती है और यही कारण है कि बॉडीबिल्डिंग को ‘मदर ऑफ़ ऑल स्पोर्ट्स’ कहा जाता है. बेसलाइन फिटनेस विकसित होने के बाद बॉडीबिल्डिंग में अलग तरह के वैज्ञानिक सिद्धातों का प्रयोग होता है जिससे ये दूसरे स्पोर्ट्स से अलग होती जाती है. जहाँ एक तरफ स्पोर्ट्स में खिलाड़ी की जीत उसके प्रदर्शन पर निर्भर करती है तो वहीं एक बॉडीबिल्डर की जीत उसकी मांस-पेशियों के आकार, संतुलन, उनकी स्पष्टता, पोज़िंग की कला और स्टेज प्रस्तुति के आधार पर निर्धारित की जाती है.

दुनिया में सबसे पहले अमेरिका ने बॉडीबिल्डिंग को ‘फिज़िकल कल्चर’ (शारीरिक संस्कृति) का दर्जा प्रदान किया था, जिसके बाद बॉडीबिल्डिंग पर शोध शुरू हो गए और इसे बेहतर बनाने के लिए गंभीर प्रयास होने लगे. दुनिया के सबसे पहले बॉडीबिल्डर के रूप में जर्मनी के यूजेन सैंडो ने 1890 में पूरे यूरोप में धूम मचा दी थी. यूजेन सैंडो ने बॉडीबिल्डिंग से पहले एक स्ट्रांगमैन (एक तरह का वेटलिफ्टिंग कम्पटीशन) के रूप में इस स्पोर्ट की शुरुआत की थी. उस वक़्त उन्हें दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था लेकिन जब वो स्टेज पर उतरते थे तो लोग वेटलिफ्टिंग से ज़्यादा उनकी उभरी हुई मांस-पेशियों को देख रोमांचित हो उठते थे. यूजेन सैंडो को बहुत जल्दी इसका अहसास हो गया और फिर उन्होंने अपना पूरा ध्यान अपनी मांस-पेशियों को पहले से बड़ा और स्पष्ट बनाने में केंद्रित कर दिया. यूजेन सैंडो ने ही दुनिया का सबसे पहला फिजिकल इंस्टिट्यूट खोला और दुनिया को जिम कल्चर से अवगत करवाया. इसी वजह से उन्हें ‘फादर ऑफ़ बॉडीबिल्डिंग’ भी कहा जाता है. यूजेन सैंडो ने 14 सितंबर, 1901 को लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में पहली बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसे ‘महान प्रतियोगिता’ कहा गया. यूजेन सैंडो ने बॉडीबिल्डिंग के दम पर काफी पैसा और शोहरत कमाई. उन्होंने बॉडी पोज़िंग और बॉडीबिल्डिंग के लिए नयी-नयी और असरदार मशीनें बनाकर इसे दूर-दूर तक फैलाया. 1925 में यूजेन सैंडो ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. आज उनकी याद में दुनिया के सबसे बड़े बॉडीबिल्डिंग कम्पटीशन ‘मिस्टर ओलम्पिया’ के विजेता को ट्रॉफी के तौर पर उनकी मूर्ति दी जाती है.

यूजेन सैंडो

1920-30 के आस-पास बॉडीबिल्डिंग में काफी बदलाव हुआ, लोग बॉडीबिल्डिंग का महत्व समझने लगे थे और बॉडीबिल्डर्स अपनी मांस-पेशियों को बेहतर बनाने के लिए वजन उठाने और नयी-नयी मशीनों का सहारा लेने लगे थे. इस समय तक होने वाली होने वाली बॉडीबिल्डिंग की एक ख़ास बात ये थी कि तब तक ‘एनाबॉलिक स्टेरॉइड्स’ का अविष्कार न होने कि वजह से नौजवान अपनी मांस-पेशियों को प्राकृतिक रूप से विकसित करते थे. 1935 में जर्मनी ने एनाबॉलिक स्टेरॉइड्स की खोज की और 1940 के बाद बॉडीबिल्डिंग में इसके प्रयोग होने शुरू हो गए. इन दवाओं के इस्तेमाल से बॉडीबिल्डर्स अप्राकृतिक तरीके से बहुत कम समय में मांस-पेशियों का विकास करने लगे. 1943 में मिस्टर अमेरिका का खिताब जीतने वाले क्लेरेन्स रॉस को दुनिया का सबसे पहला मॉडर्न बॉडीबिल्डर माना जाता है. करीब-करीब उसी समय एक नए बॉडीबिल्डर स्टीव रीव्स का उदय हुआ जिसने अपने शरीर की हर एक मांस-पेशी को ज़बरदस्त तरह से विकसित कर मिस्टर अमेरिका और मिस्टर यूनिवर्स का ख़िताब जीता. इसके बाद उसने फ़िल्मी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी नाम कमाया. इससे बॉडीबिल्डिंग को बहुत बढ़ावा मिला और नौजवान बॉडीबिल्डर्स को अपने आदर्श के रूप में मानने लगे. स्टीव रीव्स के बाद कई बॉडीबिल्डर्स जैसे आर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर, सर्जिओ ओलिवा और बिल पर्ल ने बॉडीबिल्डिंग को बिलकुल ही अलग स्तर पर पहुँचा दिया. हमारे देश के मोन्टोश रॉय, मनोहर आईच (फादर ऑफ़ इंडियन बॉडीबिल्डिंग), संग्राम चोघुले, सुहास खामकर, मुरली कुमार, यतिंदर सिंह, सुमित झाधव और कई और बॉडीबिल्डर्स ने भी इसमें खूब नाम कमाया.

फ़िल्में हमेशा से हमारे जीवन पर विशेष छाप छोड़ती आई हैं. आम लोगों में बॉडीबिल्डिंग की लोकप्रियता बढ़ाने में हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों का सबसे बड़ा योगदान रहा. अभिनेता के चौड़े कंधे, उभरी हुई बाइसेप्स और 6 पैक एब्स होना अब सिर्फ़ एक्शन फिल्मों तक ही सीमित नहीं रह गया है. करिश्माई शरीर देखने की हमारी चाहत के कारण छोटी-छोटी फिल्मों और टी वी सीरियल में काम करने वाले कलाकारों और विज्ञापनों में दिखने वाले मॉडल्स की ये सबसे पहली ज़रुरत बन गयी है. इन सबके चलते देश-विदेश में बॉडीबिल्डिंग का ज़बरदस्त प्रचार हुआ और फिर बॉडीबिल्डिंग अलग-अलग श्रेणियों में बंटती चली गयी. कुछ इसे अपना पेशा बनाने में लग गए, कुछ इसके ज़रिए अपना पेशा बनाने लगे और कुछ बेहतर लुक्स और फिटनेस के लिए बॉडीबिल्डिंग करने लग गए. आज देश के छोटे-बड़े शहरों में आये दिन बॉडीबिल्डिंग शोज़ हो रहे हैं. सोशल मीडिया पर ज्यादातर नौजवान बॉडीबिल्डिंग और 6 पैक एब्स वाली तस्वीरें और वीडियो पोस्ट कर रहे हैं और उनकी बहुत सराहना भी की जा रही है.

बॉडीबिल्डिंग की लोकप्रियता का एक काला सच ये है कि इतना प्रचार-प्रसार होने के बावज़ूद आज की बॉडीबिल्डिंग वो बॉडीबिल्डिंग नहीं है जिसकी कल्पना इसके जनक यूजेन सैंडो ने की थी. 1940 के बाद जैसे-जैसे बॉडीबिल्डिंग में स्टेरॉइड्स का प्रयोग बढ़ता गया वैसे-वैसे इसके सही मायने खोते चले गए. इसके पहले बॉडीबिल्डिंग की परिभाषा ही अलग थी. इसे एक साधना की तरह समझा जाता था. ये वो समय था जब मांस-पेशियों को सुडौल बनाने के लिए नियमित एक्सरसाइज, संतुलित खान-पान और हर तरह के नशे से दूर रहते हुए इसे पूरी लगन और श्रद्धा के साथ किया जाता था. इसके लिए बॉडीबिल्डर्स को बहुत अनुशासन और धैर्य के साथ परिश्रम करना होता था. पूरी तरह से प्राकृतिक होने के कारण उस समय के बॉडीबिल्डर्स आज के बॉडीबिल्डर्स की तुलना में शारीरिक और मानसिक रूप से कहीं अधिक स्वस्थ और फिट होते थे. यही इस बेहतरीन खेल की खूबसूरती थी.

दवाओं के इस्तेमाल से बॉडीबिल्डिंग का बदलता स्वरुप

आज कम से कम समय में सब कुछ पाने की चाहत में नौजवान इस खूबसूरत खेल में भी शार्ट कट्स के ज़रिये सफल होने में ज़्यादा भरोसा रखते हैं. इन शार्ट कट्स में वो तरह-तरह के फ़ूड सप्लीमेंट्स (प्री-वर्कआउट, पोस्ट-वर्कआउट, इन-वर्कआउट, क्रिटीन, व्हे प्रोटीन, फैट बर्नर्स, मल्टीविटामिन्स, ओमेगा-3, एल कार्निटिन, बी.सी.ए.ए…) का प्रयोग करते हैं. हालाँकि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो आज हमारे भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी होने के कारण इनमें से कुछ फ़ूड सप्लीमेंट्स हमारे लिए स्वास्थवर्धक होते हैं लेकिन ज़्यादातर सप्लीमेंट्स से हमारे स्वास्थ पर कोई असर नहीं होता. ऐसे सप्लीमेंट्स का किराये के बॉडीबिल्डर्स, फ़िल्मी कलाकारों या नामचीन खिलाड़ियों से प्रचार कराया जाता है और ग्राहकों को इनके प्रयोग के लिए प्रेरित किया जाता है. इसके चलते नकली फ़ूड सप्लीमेंट्स का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है. इन सस्ते फ़ूड सप्लीमेंट्स में तेज परिणाम पाने के लिए ख़तरनाक दवाओं की मिलावट की जाती है जिसका पता इन्हें इस्तेमाल करने वालों को तब चलता है जब वो इन दवाओं से होने वाली किसी गंभीर समस्या का शिकार हो जाते है.

नौजवानों के स्वास्थ पर सबसे बुरा असर तो तब पड़ता है जब वो जल्द से जल्द अपने लक्ष्य को पाने की होड़ में स्टेरॉइड्स, ह्यूमन ग्रोथ होर्मोनेस (एच.जी.एच.), एडेनोसीन मोनो फॉस्फेट (ए.एम.पी.), इन्सुलिन, थायरोक्सिन, क्लेनबेट्रोल, एफेड्रिन, ह्यूमन कोरिओनिक गोनडोट्रोफीन (एच.सी.जी.), टामॉक्सीफेन, डाईयुरेटिक्स जैसी खतरनाक दवाओं का प्रयोग करने लगते हैं. कई बार बॉडीबिल्डर्स में मांस-पेशियों को बड़ा और स्पष्ट करने का जुनून या यूँ कहें कि पागलपन इस स्तर तक पहुँच जाता है कि वो पशुचिकित्सा (वेटरनरी) में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का प्रयोग करने लगते हैं और कुछ तो जीन डोपिंग, सिंथोल इम्प्लांट और आयल इंजेक्शंस का सहारा लेने लगते हैं.

वैसे तो आज किसी भी उद्देश्य के लिए की जाने वाली बॉडीबिल्डिंग में इन दवाओं का बेहिसाब प्रयोग हो रहा है. इसका सबसे बड़ा सबूत पिछले करीब सत्तर सालों के हर दशक में बॉडीबिल्डर्स की मांस-पेशियों के बढ़ते हुए आकार और अधिक स्पष्टता को देखने पर मिलता है. आज के दौर में की जाने वाली बॉडीबिल्डिंग से जुड़ी सबसे गंभीर समस्या ये है कि पिछले कुछ सालों में ऐसे नौजवान भी इन दवाओं का प्रयोग करने से कोई गुरेज नहीं कर रहे जिनका मक़सद सिर्फ़ अपने लुक्स और फिटनेस को बेहतर करना होता है. ये एक बहुत चिंताजनक स्थिति है क्योंकि जिस तरह देश के कोने-कोने में जिम और हेल्थ सेंटर्स खोले जा रहे हैं, इन दवाओं का सेवन करने वाले नौजवानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अगर जल्द ही इस पर कोई कारवाही नहीं की गई तो निकट भविष्य में इसके परिणाम बहुत घातक हो सकते हैं. अगर सिर्फ़ पिछले कुछ सालों में देखा जाये तो इन ख़तरनाक दवाओं का असर साफ़ दिखने लगा है. इन दवाओं से होने वाले फिजियोलॉजिकल साइड इफेक्ट्स से न जाने कितने नौजवानों के शरीर के महत्वपूर्ण अंग ख़राब हो गए, कितने नपुंसक हो गए और न जाने कितनों को बहुत कम उम्र में हार्ट अटैक या ब्रेन हेमरेज होने से अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. महिला बॉडीबिल्डर्स में इनके अलावा कुछ और भी फिजियोलॉजिकल साइड इफेक्ट्स जैसे स्तन छोटे हो जाना, क्लिटोरल एंलार्जेमेंट, मासिक धर्म में अनियमितता और चेहरे पर अत्यधिक बालों का निकलना होते हैं. इन दवाओं से होने वाले साइकोलॉजिकल साइड इफेक्ट्स इन दवाओं का सेवन करने वालों के लिए ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी बहुत हानिकारक होते हैं. इन दवाओं का प्रयोग करने वाले नौजवानों में यादाश्त की कमी, डिप्रेशन, हाइपोमेनिया, चिड़चिड़ापन, घबराहट, बेचैनी, उदासीनता, आसानी से विचलित हो जाना, नींद न आना, आत्मघाती विचार आना और छोटी-छोटी बातों में आक्रामक हो जाना आसानी से देखे जा सकते हैं.

सरकारों की इन दवाओं की खरीद-फरोख्त पर कोई रोक न होने के कारण ये मेडिकल स्टोर्स और फ़ूड सप्लीमेंट्स की दुकानों पर बहुत आसानी से मिल जाती हैं. कई बार तो जिम ट्रेनर इसे कमाई का आसान ज़रिया समझ इन्हें अपने क्लाइंट्स तक पहुंचाते हैं और इन ख़तरनाक दवाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा भी देते हैं. यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में जिम व्यवसाय के साथ-साथ इन दवाओं का काला बाजार भी धड़ल्ले से चल रहा है.

बॉडीबिल्डिंग का एक काला सच ये भी है कि लम्बे अर्से तक इन दवाओं का सेवन करने के बावज़ूद बॉडीबिल्डर्स ये मानने को तैयार ही नहीं होते कि वो इनका इस्तेमाल करते हैं. इसके चलते इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स से होने वाले शुरूआती लक्षण दिखने पर भी उनका सही इलाज नहीं हो पाता और अंततः वो इनसे होने वाले ख़तरनाक और अपरिवर्तनीय साइड इफेक्ट्स के शिकार हो जाते हैं. इन दवाओं के सेवन से विकसित की गयी मांस-पेशियों का आकार बड़ा और उनकी स्पष्टता प्राकृतिक रूप से विकसित की गयी मांस-पेशियों से कहीं अधिक होती है लेकिन प्राकृतिक रूप से विकसित की गयी मांस-पेशियों की सबसे बड़ी विशिष्टता ये है कि इसके परिणाम स्थायी होते हैं. दवाओं के प्रयोग से विकसित की गयी मांस-पेशियों का आकार और स्पष्टता इन दवाओं का असर कम होते ही सामान्य होने लगते हैं और कभी-कभी ये पहले से भी कमज़ोर और शिथिल हो जाती हैं. यही कारण है एक बार प्रयोग करने पर ज़्यादातर बॉडीबिल्डर्स को इन ख़तरनाक दवाओं की लत लग जाती है. प्राकृतिक बॉडीबिल्डिंग की दूसरी बड़ी विशिष्टता ये है कि इससे हमारे आकार के साथ-साथ हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ भी बेहतर होता है. इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है जिससे हम जिस किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों हमारी उन्नति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. प्राकृतिक रूप से बॉडीबिल्डिंग के परिणाम आने में समय लगता है. इसे वो ही कर सकता है जिसमें सच्ची लगन हो और श्रद्धा हो. ऐसे बॉडीबिल्डर्स धैर्य से काम लेते हैं और कभी आक्रामक नहीं होते. प्राकृतिक बॉडीबिल्डर्स की जीवन शैली बहुत अनुशासित और व्यवस्थित होती है. वो ख़ुद को हर तरह के नशे से दूर रखते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत का काम करते हैं. यही वो बॉडीबिल्डिंग थी जिसके सुन्दर भविष्य की कल्पना ‘फादर ऑफ़ बॉडीबिल्डिंग’ कहे जाने वाले यूजेन सैंडो ने की थी.

आज की स्थिति में सुधार के लिए नौजवानों को इन खतरनाक दवाओं के प्रयोग से बचाना होगा. उन्हें इनसे होने वाले शारीरिक और मानसिक नुक्सान से अवगत करना होगा. उन्हें प्राकृतिक बॉडीबिल्डिंग की उपयोगिताओं की जानकारी देनी होगी. देश-प्रदेश की सरकारों को भी इस पर गंभीरता से विचार करना होगा और इन ख़तरनाक दवाओं की खरीद-फरोख्त पर लगाम कसनी होगी. हम पहले ही बहुत देर कर चुके हैं, ये जहर छोटे-छोटे शहरों तक पहुँच चुका है और अगर अभी भी इसे रोकने के ठोस कदम न उठाये गए तो ये इन दवाओं का प्रयोग करने वालों साथ-साथ समाज के लिए भी बहुत घातक होगा.

रेखा के जन्मदिन पर खास : इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं…

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बालीवुड अभिनेत्री अपने अभिनय और सुंदरता की तरह अपने जीवन को लेकर हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहीं।  हाथ की रेखाओं की तरह ही उनकी प्यार की रेखा भी उलझी रही। वो पर्दे पर हों या न हों लेकिन उनके चाहने वाले आज भी दीवानों की तरह उनकी एक झलक का इंतजार करते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी रेखा के रहस्यमय जीवन को जानने की लोगों में उत्सुकता बनी है। लोग आज भी महानायक अभिताभ बच्चन और रेखा के प्यार की गहराई को समझना चाहते हैं। आज भी लोग उनसे पूछना चाहते हैं कि ग्लैमर जगत कि सबसे सफल अभिनेत्री में शुमार रेखा का वैवाहिक जीवन को असफल रहा। आइये उनके जन्मदिन के मौके पर एकबार फिर रेखा के जीवन के अबतक के शानदार मगर विवादित जीवन पर नजर डालते हैं।

फिल्मी करियर में तमाम संघर्षों का सामना करते हुए करीब 200 फिल्में की हैं। जिसमें हर फिल्म में उन्होने अभिनय कि छाप छोड़ी है। उन्हें भारत सरकार की तरफ से पदम श्री समेत राज्य सभा की सदस्यता से सम्मानित किया गया है। खास बात ये है कि उन्होने भारत रत्न सचिन के साथ संसद में भूमिका निभाई है। अगर उनके शुरुआती जीवन पर नजर डालें तो 10 अक्टूबर 1954 में चेन्नई के एक तमिल परिवार में भानुरेखा गणेशन का जन्म हुआ था। उनके पिता जेमिनी गनेशन एक प्रसिद्ध तेलुगु अभिनेता थे, जबकि उनकी मां पुष्पावली भी एक जानी-मानी तेलुगु अभिनेत्री थी। रेखा ने अपनी शुरुआती शिक्षा चेन्नई के प्रसिद्ध चर्च पार्क कॉन्वेट स्कूल से प्राप्त की। वहीं परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से रेखा को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और अपना गुजर बसर करने के लिए अभिनय की शुरुआत करनी पड़ी। अपने जीवन के शुरुआती दिनों में रेखा ने काफी संघर्षों का सामना किया था। उन्होंने सबसे पहले एक तेलुगु फिल्म ”रंगुला रतलाम” में बाल कलाकार के रुप में डेब्यू किया था। अभिनेत्री के रुप में उन्होंने अपना डेब्यू साल 1969 में कन्नड़ फिल्म ”ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सीआईडी  999” से किया था। इसी साल उन्होंने अपनी पहली हिन्दी फिल्म ”अंजाना सफर” से डेब्यू किया। जिसको बाद में ”दो शिकारी” नाम से रिलीज किया गया। हालांकि 1970 में आई ”सावन भादो” में रेखा ने सबका ध्यान खींचा। इसके बाद उन्होंने ”कहानी किस्मत की”, ”रामपुर का लक्ष्मण”, ‘प्राण जाए पर वचन ना जाए”, ‘जैसी फिल्मों में काम किया। उनकी इन फिल्मों ने काफी कमाई की और इस दौरान रेखा के अभिनय को भी काफी सराहा भी गया। वहीं 70 के दशक में रेखा और अमिताभ की जोड़ी बड़े पर्दे पर काफी हिट रही। ‘खून पसीना’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ”राम बलराम” जैसी फिल्मों में दोनों की केमिस्ट्री दर्शकों ने खूब पसंद की। इसके बाद दोनों का नाम आपस में जुड़ गया।

रेखा और अमिताभ की मुलाकात पहली बार फिल्म ‘दो अनजाने’ के सेट पर हुई थी। अमिताभ सुपरस्टार बन चुके थे और जया से शादी भी हो चुकी थी। लेकिन शूटिंग शुरू होने के साथ-साथ दोनों की गुपचुप प्रेम कहानी भी शुरू हो गई। खबरें ये भी उड़ीं कि इन दोनों ने छिप कर शादी भी की थी। रेखा कई बार सिंदूर लगाकर भी सामने आई लेकिन दोनों की लव स्टोरी रहस्यमयी बनी रही। दूसरी ओर उनका वैवाहिक जीवन भी असफल रहा। रेखा और विनोद मेहरा की शादी को लेकर अफवाहें उड़ीं लेकिन रेखा ने इसका खंडन किया। रेखा 1990 में दिल्ली के एक बड़े बिजनेसमैन मुकेश अग्रवाल से शादी के बंधन में बंधी थी। लेकिन उनका यह विवाह ज्यादा समय तक नहीं चल सका। शादी के कुछ दिनों के बाद ही उनके पति ने आत्महत्या कर ली। लगातार पाँच दशकों से अभिनय में सक्रिय रेखा फिलहाल फिल्मों से दूर हैं लेकिन अवॉर्ड्स समारोह में नजर आती हैं। रेखा के चाहने वाले आज भी उनकी एक झलक के दीवाने हैं।

मानसिक स्वास्थ्य की गहराती समस्या

अरविंद जयतिलक

यह बेहद चिंताजनक है कि कोरोना महामारी के कारण 15 से 24 साल का हर सातवां भारतीय मानसिक अवसाद की समस्या से अभिशप्त है। यह खुलासा बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनीसेफ ने किया है। यूनीसेफ ने 21 देशों में 20 हजार बच्चों के बीच सर्वे के आधार रपर यह रिपोर्ट तैयार की है। सर्वे में कहा गया है कि भारत में 15 से 24 साल के किशोरों एवं युवाओं में से केवल 41 फीसद ने मानसिक समस्याओं के लिए सहयोग मानने को सही बताया जबकि पूरी दुनिया में औसतन 83 फीसद बच्चों ने सहयोग मांगने को सही माना। रिपोर्ट के मुताबिक अवसादग्रस्त लोगों ने स्वीकार किया है कि उनका किसी भी कार्य में मन नहीं लग रहा है जिससे वे डरे हुए हैं। यूनीसेफ के प्रतिनिधि की मानें तो कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत के लोगों विशेष रुप से बच्चों ने अप्रत्याशित स्थिति का सामना किया जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ गया। गौर करें तो कोरोना के दरम्यान बच्चों को लंबे समय तक स्कूलों, खेलकूद प्रतिस्पर्धाओं एवं अन्य आयोजनों से दूर रहना पड़ा जिससे उन पर बुरा असर पड़ा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2020 में अपनी एक रिपोर्ट में अनुमान जताया था कि 2012 से 2030 के बीच मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को 1.03 लाख करोड़ डालर यानी 76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा। 2019 में इंडियन जर्नल आफ साइकेट्री की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हुआ था कि भारत में कम से कम पांच करोड़ बच्चे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं। चिंता की बात यह कि इनमें से 80 से 90 फीसद ने किसी से सहयोग नहीं मांगा है। याद होगा अभी गत वर्ष पहले लांसेट साइकैट्री में प्रकाशित ‘इंडिया स्टेट लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव’ द्वारा खुलासा हुआ था कि 2017 में प्रत्येक सात में से एक भारतीय अलग-अलग तरह के मानसिक विकारों से पीड़ित रहे। तब अध्ययन में पाया गया था कि 2017 में 19.7 करोड़ भारतीय मानसिक विकार से ग्रस्त थे जिनमें से 4.6 करोड़ लोगों को अवसाद था। अध्ययन के मुताबिक दक्षिणी राज्यों तथा महिलाओं में इसकी दर ज्यादा पाया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी कहा जा चुका है कि भारत में मानसिक अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में 5.7 करोड़ लोग अवसाद से ग्रसित हैं। दुनिया भर में अवसाद से प्रभावित लोगों की संख्या 32.2 करोड़ है, जिसमें 50 प्रतिशत सिर्फ भारत और चीन में हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत के अलावा चीन में 5.5 करोड़, बांग्लादेश में 63.9 लाख, इंडोनेशिया में 91.6 लाख, म्यांमार में 19.1 लाख, श्रीलंका में 8 लाख, थाइलैंड में 28.8 लाख तथा आस्टेªलिया में 13.1 लाख अवसाद से ग्रसित लोग हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया भर में अवसाद के शिकार लोगों की अनुमानित संख्या में 2005 से 2017 के बीच 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अवसाद सबसे ज्यादा पाया गया है। अच्छी बात यह है कि भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने किशारों एवं युवाओं की मानसिक समस्याओं की पहचान के लिए शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण देने की जरुरत पर बल दिया है। याद होगा देश में बढ़ते अवसाद को ध्यान में रखकर ही गत वर्ष पहले केंद्र सरकार ने संसद में मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक 2016 पर मुहर लगायी जिसमें मानसिक अवसाद से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखरेख एवं सेवाएं प्रदान करने एवं ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण करने का प्रावधान किया गया है। चूंकि भारत अशक्त लोगों के अधिकारों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संधि का हस्ताक्षरकर्ता है लिहाजा उसकी जिम्मेदारी भी है कि वह इस प्रकार के प्रभावी कानून गढ़ने की दिशा में आगे बढ़े। यह अच्छी बात है कि भारत ने इस दिशा में कदम बढ़ा सामुदायिक स्तर पर अधिकतम स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की रचनात्मक और स्वागतयोग्य पहल तेज कर दी है। इस पहल से अवसाद से ग्रसित मरीजों के अधिकारों की तो रक्षा होगी ही साथ ही मानसिक रोग को नए सिरे से परिभाषित करने में भी मदद मिलेगी। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो मनोभावों संबंधी दुख है और इस अवस्था में कोई भी व्यक्ति स्वयं का लाचार व निराश महसूस करता है। इस स्थिति से प्रभावित व्यक्ति के लिए सुख, शांति, प्रसन्नता और सफलता को कोई मायने नहीं रह जाता है। वह निराशा, तनाव और अशांति के भंवर में फंस जाता है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि अवसाद के लिए भौतिक कारक भी जिम्मेदार हैं। इनमें कुपोषण, आनुवंशिकता, हार्मोन, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों से लंबे समय तक गुजरना इत्यादि प्रमुख है। इसके अतिरिक्त अवसाद के 90 प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या होती है। अवसाद के लिए व्यक्ति की सोच की बुनावट और व्यक्तित्व भी काफी हद तक जिम्मेदार है। अवसाद अकसर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स की कमी के कारण भी होता है। यह एक प्रकार का रसायन होता है जो दिमाग और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तारतम्य स्थापित करता है। इसकी कमी से शरीर की संचार व्यवस्था में कमी आती है और व्यक्ति में अवसाद के लक्षण उभर आते हैं। फिर अवसादग्रस्त व्यक्ति निर्णय लेने में कठिनाई महसूस करता है और उसमें आलस्य, अरुचि, चिड़चिड़ापन इत्यादि बढ़ जाता है और इसकी अधिकता के कारण रोगी आत्महत्या तक कर लेता है। मनोचिकित्सकों की मानें तो जब लोगों में तीव्र अवसाद के मौके आते हैं तो उनमें आत्महत्या के विचार भी पनपते हैं। ऐसे हालात में परिवार की भूमिका बढ़ जाती है। परिवार की जिम्मेदारी बनती है कि वह रोगी को अकेला न छोड़े और न ही उसकी आलोचना करे। बल्कि इसके उलट उसकी अभिरुचियों को प्रोत्साहित कर उसमें आत्मविश्वास जगाए। अवसादग्रस्त व्यक्ति के प्रति हमदर्दी दिखाए और उसकी बात को ध्यान से सुने। अवसादग्रस्त व्यक्ति को बोलने के लिए और उसकी भावनाओं को साझा करने के लिए प्रेरित करे। उचित यह भी होेगा कि परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के साथ खुली बातचीत को बढ़ावा देकर शुरुआत में ही किशोरों एवं युवाओं की मानसिक समस्याओं को पहचानकर सही इलाज सुनिश्चित किया जाए। खुलकर बातचीत से बच्चे बेहिचक अपनी समस्याओं को सामने रख सकेंगे। इसके साथ ही स्कूलों में शिक्षकों को विशेष रुप से प्रशिक्षित करने की जरुरत है ताकि वे बच्चों की मानसिक समस्याओं की पहचान कर सकें। इसके अलावा अवसादग्रस्त बच्चों को मनोविज्ञानियों के संपर्क में भी लाया जाना चाहिए ताकि उनका समुचित इलाज हो सके। इसके अलावा अवसादग्रस्त बच्चों को विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल होने के लिए प्रेरित कर उसमें सकारात्मक भाव पैदा करना चाहिए। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है तो वह अवसाद से बाहर निकल सकता है। अकसर देखा जाता है कि ज्यादतर समय अवसाद छिपा हुआ रहता है क्योंकि इससे ग्रस्त व्यक्ति इस बारे में बात करने से हिचकता है। अवसाद से जुड़ी शर्म की भावना ही इसके इलाज में सबसे बड़ी बाधा है। पिछले कुछ समय से अवसाद से बाहर निकलने में योग की भूमिका प्रभावी सिद्ध हो रही है। योग के जरिए दिमाग और शरीर की एकता का समन्वय होता है। योग संयम से विचार व व्यवहार अनुशासित होता है। योग की सुंदरताओं में से एक खूबी यह भी है कि बुढे़ या युवा, स्वस्थ या कमजोर सभी के लिए योग का शारीरिक अभ्यास लाभप्रद है। इसलिए उचित होगा कि योग को और अधिक बढ़ावा दिया जाए। आज की तारीख में अवसाद के इलाज में कई किस्मों की साइकोथेरेपी भी मददगार सिद्ध हो रही है। देश के सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर इसकी व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन इनमें सबसे अधिक आवश्यकता अवसादग्रस्त लोगों के साथ घुल-मिलकर उनमें आत्मविश्वास पैदा करने की है। यह कार्य परिवार के सदस्यों द्वारा बेहतर तरीके से किया जा सकता है। अगर अवसाद की गंभीरता पर ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक अवसाद दुनिया में सबसे बड़ी मानसिक बीमारी का रुप धारण कर सकती है।

बिजली संकट : कोरोना से निपटे तो कोयले में अटक गये

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आनन्द अग्निहोत्री

धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही देश की अर्थव्यवस्था एक बार फिर संकट के मुहाने पर आ खड़ी हुई है। यह संकट है बिजली का। बिजली हमारी जरूरत का अनिवार्य ऊर्जा स्रोत है, इस पर सड़क से लेकर संसद तक आश्रित है। बड़ी बात यह कि जिस कोयले से बिजली बनाई जाती है उसका देश में गम्भीर अभाव नजर आ रहा है। देश में बिजली बनाने के 135 संयंत्र हैं। इनमें आधे से ज्यादा कोयले की कमी से जूझ रहै हैं। देश की 70 प्रतिशत से अधिक बिजली इन्हीं बिजली संयंत्रों में तैयार होती है। सवाल इस बात का है कि जब कोयला ही नहीं होगा तब ये बिजली कहां से बनायेंगे और कैसे देश की गतिविधियां संचालित होंगी। संयोग की बात है कि फिलहाल भारत का दुश्मन नंबर एक -चीन भी कोयला संकट से जूझ रहा है। उधर ग्रेट ब्रिटेन में ड्राइवरों की कमी के कारण पेट्रोल-डीजल का संकट छा गया है।

कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया था। इस पर अंकुश लगा तो उम्मीदों की नयी किरण नजर आयी। फिर से बाजार चले, फैक्ट्रियों में उत्पादन शुरू हुआ, उद्योग-धंधे संचालित हुए। जाहिर है कि बिजली की खपत भी तेजी के साथ बढ़ी। 2019 के मुकाबले इस समय 17 प्रतिशत अधिक बिजली की खपत हो रही है। अर्थव्यवस्था लाइन पर आनी शुरू ही हुई थी कि कोयले का अभाव आन खड़ा हो गया। यह संकट अचानक नहीं आया। कई महीने से स्थिति डांवाडोल थी लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। अब जब स्थिति बेकाबू होने के करीब पहुंच गयी है तब यह सार्वजनिक हुआ है। भारत कोयला उत्पादन में दुनिया में चौथे नंबर पर आता है। लेकिन इसकी खपत यहां इतनी ज्यादा होती है कि देश को कोयला आयात करना पड़ता है। कोयला आयात के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। इधर कोयला उत्पादक देशों ने इसकी कीमतों में 40 प्रतिशत तक इजाफा कर दिया। सम्भवत: इसी कारण भारत ने कोयले के आयात में कटौती की। देश के अधिकांश विद्युत संयंत्र आयातित कोयले से चलते थे जो अब देश के कोयले पर आश्रित हो गये हैं। इसी कारण कोयले की सप्लाई दबाव में आ गयी है। स्थिति यहां तक बिगड़ गयी है कि कुछ विद्युत संयंत्र तो बंद होने के कगार पर पहुंच गये हैं।

हम सिर्फ उत्तर प्रदेश के हरदुआगंज, पारीछा, आनपरा और ओबरा विद्युत संयंत्र की स्थिति दर्शा रहे हैं। हरदुआगंज 610 मेगावाट प्रतिदिन उत्पादन का विद्युत संयंत्र है जो इस समय कोयले की कमी के कारण  380 मेगावाट बिजली ही बना पा रहा है। इसके पास इस समय 4022 मीट्रिक टन कोयला है, जो ज्यादा से ज्यादा पांच दिन चल सकता है। इस संयंत्र को पूरी क्षमता से चलाने के लिए रोजाना 8000 मीट्रिक टन कोयला चाहिए। चार रेक कोयला यहां आने को है। पारीछा विद्युत संयंत्र 920 मेगावाट प्रतिदिन विद्युत उत्पादन का संयंत्र है, जो इस समय कोयले के अभाव में 600 मेगावाट बिजली ही बना रहा है। इसके पास 9682 मीट्रिक टन कोयला है जबकि इसकी प्रतिदिन की आवश्यकता 15000 मीट्रिक टन कोयले की है। यहां कोयले की पांच रेक और आने वाली हैं। इसे मौजूदा स्थिति में ज्यादा से ज्यादा पांच दिन चलाया जा सकता है। आनपरा विद्युत संयंत्र 2630 मेगावाट प्रतिदिन विद्युत उत्पादन का संयंत्र है लेकिन कोयले की कमी से यह मात्र 185 मेगावाट बिजली बना रहा है। इसके पास 86426 मीट्रिक टन कोयला है और यह दो माह तक संचालित किया जा सकता है। इसे रोजाना 40 हजार मीट्रिक टन कोयला रोजाना चाहिए। ओबरा विद्युत संयंत्र की क्षमता प्रतिदिन 800 मेगावाट बिजली बनाने की है लेकिन इन दिनों यहां विद्युत उत्पादन ठप है। हालांकि इसके पास 42433 मीट्रिक टन कोयला है और इसे ढाई माह तक चलाया जा सकता है। इसे रोजाना 16 हजार मीट्रिक टन कोयला चाहिए।

देश के अन्य विद्युत संयंत्र भी इसी तरह की दयनीय स्थिति से दो-चार हो रहे हैं। अधिकांश विद्युत संयंत्र बंदी के कगार पर हैं। अगर बिजली न मिली तो हर तरह की गतिविधियां ठप हो जायेंगी। हालांकि भारत ने कोयला आयात का आर्डर किया है लेकिन यह कोयला देश में आने में कुछ न कुछ समय तो लगेगा ही। अगर यह कोयला आ गया और बिजली संयंत्र चालू रहे तब भी यह बिजली महंगी साबित होगी। कारण यह कि जब महंगा कोयला आयात होगा तो सरकार इसकी वसूली भी जनता से ही महंगी बिजली के रूप में करेगी। बिजली के दाम बढ़े तो उद्योग जगत में बनने वाला माल भी महंगा हो जायेगा। यानि खुदरा महंगाई की मार से पहले से ही जूझ रहे देश में थोक महंगाई में भी इजाफा हो जायेगा। सरकार अगर बिजली महंगी नहीं करती तो उसकी अर्थव्यवस्था बिगड़ेगी। कुल मिलाकर संकट अभूतपूर्व है। देखना यह है कि सरकार इस संकट से कैसे निपटती है। फिलहाल तो आशंका जतायी जा रही है कि कहीं दीपों का त्योहार पर देश की बिजली न गुल हो जाये। कोरोना काल के बाद अब त्योहारों का समय आया है। लोग कोरोना प्रतिबंधों के बीच त्योहार मना रहे हैं। लेकिन जिस तरह का ऐतिहासिक विद्युत संकट नजर आ रहा है उससे लगता है कि राहत की यह सांस ज्यादा समय तक नहीं चलने वाली। देश की राजधानी दिल्ली में चार घंटे की विद्युत कटौती शुरू कर दी गयी है। अन्य राज्य भी ऐसा करने के लिए विवश होंगे। ऊर्जा के अन्य स्रोत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पानी से पैदा हो रही ऊर्जा देश की आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकती। तापीय विद्युत संयंत्र ही बिजली की जरूरत पूरी कर रहे हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सरकार तापीय विद्युत का सक्षम विकल्प खोजे लेकिन जब तक यह विकल्प नहीं मिलता तापीय विद्युत उत्पादन की दीर्घकालिक नीति तैयार कर इसे अक्षुण्ण रखे।

लघु कथा : मेरे साहिर…

पवन जैन

सडक की तरफ खुलती बालकनी , डूबता सूरज , अदरक की चाय और कारवां पे चलते मेरे पसंदीदा गीत ..कहने को ये मेरे बेहद सुकून के पल होते हैं ..ऑफिस से घर लौटते लोग ,सभी को जल्द से जल्द घर पहुँचने की जल्दी ..जहाँ उनका कोई इन्तिज़ार कर रहा होता है .

अक्सर सोचती हूँ कि बालकनी में बैठ कर चाय की हल्की हल्की चुस्कियों के साथ वक़्त गुज़ारना क्यों अच्छा लगता है , क्या मैं भी किसी का इन्तिज़ार कर रही हूँ ..लेकिन किसका …??

क्या तुम्हारा ..? क्या सच में तुम्हारा इन्तिज़ार करती हूँ कि तुम एक दिन अनायास पीछे से आकर मेरी पलकों को अपनी हथेलियों से ढांप कर कहोगे “ बताओ तो कौन है’ और फिर तुम्हारे जन्मो जन्मो से चिरपरिचित स्पर्श से सिहर कर मैं बोल उठूंगी ‘ “ मुझे पता था , तुम एक दिन आओगे ..ज़रूर आओगे “

तुम्हारे ख्यालो में खोये खोये मुझे याद आती है अपनी कही वो बात , जब हम दोनों के मिलने पे कोई पाबन्दी नहीं थी और हम दोनों घंटो बात किया करते थे , “काश तुम्हे सिगरेट पीया करते और तुम्हरे जाने के बाद तुम्हारे सिगरेट के टुकडो को समेटा करती , उन्हें सुलगाती और पिया करती और महसूस करती कि वो सिर्फ सिगरेट के टुकड़े ही नहीं हैं बल्कि तुम्हारे होठ हैं जो मेरे होठो से मिल कर मुझे मदहोश कर रहे हैं” हाँ …मैं तुम्हारी अमृता ही तो हूँ .. मेरे साहिर ….!!!

अंग्रेजों को चकमा देकर भगत सिंह को कलकत्ता ले गईं थीं दुर्गा भाभी

अरविंद जयतिलक

बात उन दिनों की है जब भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों को पकड़ने के लिए ब्रिटिश हुकूमत जमीन-आसमान एक कर दी थी। भगत सिंह और उनके साथियों पर पुलिस अधिकारी साण्डर्स की हत्या का आरोप था। वह साण्डर्स जिसने साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला लाजपत राय को इस हद तक पीटा की चंद दिनों के बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी। क्रांतिकारियों ने ठान लिया कि वे लाला लाजपत राय की शहादत का बदला लेकर रहेंगे। फिर क्या था चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिंह, राजगुरु और जयगोपाल ने लाहौर में एक पुलिस स्टेशन के सामने ही साण्डर्स को गोलियों से उड़ा दिया। देश सोए से जाग उठा। साण्डर्स की मौत के दूसरे दिन ही लाहौर शहर के दीवारों पर पोस्टर लग गए और पर्चे बांटे गए, जिनपर लिखा था कि साण्डर्स मारा गया और लालाजी की शहादत का बदला ले लिया गया। पर क्रांतिकारियों के समक्ष मौंजू सवाल यह था कि आखिर भगत सिंह को लाहौर से बाहर कैसे निकाला जाए। इसकी जिम्मेदारी दुर्गा भाभी ने अपने कंधो पर ली। उन्होंने कमाल की योजना बनायी जिसके मुताबिक भगत सिंह ने अपना केश कटवायी और सिर पर हैट लगाकर अंग्रेजी दा बन गए। उनको इस नई वेशभूषा में देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह वही भगत सिंह हैं। दुर्गा भाभी ने बड़ी दिलेरी से भगत सिंह के साथ उनकी पत्नी बनकर लाहौर से कलकत्ता तक की सफर की और ब्रिटिश खुफिया तंत्र को इसकी हवा तक न लगी। दुर्गा भाभी के साथ उनकी गोद से चिपका हुआ उनका तीन वर्षीय बेटा शची भी था। कलकत्ता पहुँचने पर उनके पति भगवती चरण बोहरा ने उनकी बहादुरी की जमकर दाद दी। 7 अक्टुबर 1907 को इलाहाबाद में जन्मी दुर्गा बचपन से ही असाधारण प्रतिभा की धनी थी। उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी। युवा होने पर उनका विवाह महान क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा से हुआ। भगवती चरण वोहरा आजादी के उन नायकों में से एक हैं जिनके जीवन का उद्देश्य देश को आजादी दिलाना था। कहा जाता है कि उन्हें बम बनाने में महारत हासिल था। 28 मई, 1930 को रावी नदी के तट पर बम परीक्षण के दौरान वे शहीद हो गए। उस समय दुर्गा महज 27 साल की थी। लेकिन इस कठिन घड़ी में भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं छोड़ा। उन्होंने मन में ठान लिया कि वे अपने पति की शहादत और उनके मिशन को बेकार नहीं जाने देंगी। सो उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ कदमताल मिलाना शुरु कर दिया। दुर्गा भाभी की बहादुरी के किस्से भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी का ताना-बाना बुनना शुरु कर दिया। इसी दरम्यान 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह ने संसद भवन में बम विस्फोट कर गुंगी-बहरी ब्रिटिश सरकार को अंदर से हिला दिया।  कहा जाता है कि इस घटना को मूर्त रुप देने में दुर्गा भाभी का महान योगदान था। भगत सिंह चाहते तो संसद भवन से फरार हो सकते थे लेकिन उन्होंने अपनी गिरफ्तारी देना ज्यादा जरुरी समझा। क्रांतिकारियों ने भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की जुगत बनायी और योजना पर काम करना शुरु कर दिया। रणनीति के मुताबिक भगत सिंह को जबरदस्ती जेल से छुड़ाने के लिए बम विस्फोट की योजना बनी लेकिन ईश्वर के विधान में कुछ और ही बदा था। दुर्गा भाभी के पति भगवती चरण बोहरा जो बम बनाने में दक्ष थे, बम परीक्षण के दौरान शहीद हो गए। दुर्गा भाभी पर विपत्ति का पहाड़ टुट पड़ा। लेकिन उन्होंने अपने आंसूओं को थाम लिया। वे लाहौर जाकर भगत सिंह से मिली और फिर दिल्ली वापस आकर गांधी जी से। गांधी जी ने भाभी को सुझाव दिया कि वे अपने आपको पुलिस के हवाले कर दे। लेकिन दुर्गा भाभी का मकसद तो कुछ और ही था। उन्होंने गांधी जी से अपील किया कि जिस तरह आप अन्य राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए प्रयास कर रहे हैं, उसी तरह भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की रिहाई के लिए भी वायसराय पर दबाव डालें। लेकिन गांधी जी को क्रांतिकारियों के हिंसा दर्शन में विश्वास नहीं था, सो उन्होंने दुर्गा भाभी को मना कर दिया। लेकिन दुर्गा भी दुर्गा ठहरी। वह भला हार कैसे मान सकती थी। 9 अक्टुबर, 1930 को उन्होंने मुंबई में लेमिंग्टन रोड पर पृथ्वी सिंह आजाद उर्फ नाना साहब और सुखदेव राज से मिलकर गवर्नर पर गोलियां चला दी। लाख सिर पटकने के बाद भी पुलिस का खुफिया तंत्र इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया कि इस कांड के पीछे किसका हाथ है। पुलिस के हाथ सिर्फ यही सूत्र लगा कि गोली चलाने वालों में से एक लम्बे बाल वाला लड़का भी था। लेकिन एक शड़यंत्र के तहत दुर्गा भाभी को ब्रिटिश सरकार ने फरार घोषित कर दिया। तकरीबन ढ़ाई वर्ष फरारी जीवन गुजारने के बाद उन्हें 12 सितंबर, 1931 को गिरफ्तार कर लाहौर जेल भेज दिया गया। रिमाण्ड की 15 दिन की अवधि पूरा होने पर मजिस्ट्रेट ने उन्हें रिहा तो कर दिया लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया। तकरीबन एक वर्ष तक वह नजरबंद रही। दिसंबर 1932 में वह रिहा की गयी। लेकिन उन्हें लाहौर की म्यूनिसिपल सीमा में तीन वर्ष तक नजरबंद रखा गया। 1935 ई0 में उन्हें पंजाब और दिल्ली की सीमा से बाहर जाने का आदेश दिया गया। इस दरम्यान दुर्गा भाभी ने गाजियाबाद के एक स्कूल में बतौर शिक्षिका अध्यापन कार्य किया। 1937 में उन्हें दिल्ली प्रांतीय कमेटी का अध्यक्ष चुना गया। बाद में उन्होंने अपनी सदस्यता उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में स्थानांतरित करा ली। शिक्षा के प्रति उनका गहरा लगाव था। सो उन्होंने मद्रास के अड्यार में मांटेसरी शिक्षा पद्धति का प्रशिक्षण प्राप्त किया और जब वह 1940 में लखनऊ आयी तो कैण्ट रोड पर एक किराए के मकान में पांच बच्चों को लेकर ‘लखनऊ माण्टेसरी’ नामक एक शिक्षण संस्था की बुनियाद रखी। आज यह विद्यालय ‘लखनऊ माण्टेसरी इण्टर कालेज’ के नाम से जाना जाता है। दुर्गा भाभी इस विद्यालय को जीवन भर सींचा। आज उनकी यादें भर शेष रह गयी हैं।

आईपीएल : सेमी फाइनल खेलने जा रही टीमें सुपर हिट कप्तान फ्लॉप

भारतीय प्रीमियर लीग आईपीएल 2021 अब सेमी फाइनल यानि प्ले दौर में पहुँच चुकी है। उम्मीद है कि इस दौर में दिल्ली कैपिटल्स, चेन्नई सुपरकिंग्स, रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और कोलकाता नाइटराइडर्स का आपस में मुक़ाबला होगा। चारों टीमों के खिलाड़ियों से आसाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन किया हा। हालांकि इन चारों टीमों के सुपर कप्तान अभी तक अपना जलवा बिखेरने में नाकाम रहे हैं।

कोलकाता नाइटराइडर्स ने बीते दिन जिस तरह राजस्थान रायल्स को हराया, वो शानदार था। हालांकि पहले सात मैच में टीम केवल दो में जीत पाई थी और अंक तालिका में सातवें नंबर पर थी. लेकिन दूसरे हाफ में सात में से पांच जीतकर टीम प्लेऑफ में दाखिल हो गई।  लेकिन कप्तान ऑएन मॉर्गन का खेल नहीं बदला. वे पहले हाफ में भी रनों के लिए जूझ रहे थे और दूसरे हाफ में भी. वे अभी तक 14 मैच में 124 रन बना सके हैं। 47 रन उनका सर्वोच्च स्कोर है. वे 102.47 की मामूली स्ट्राइक रेट से रन बना पा रहे हैं. उनके बल्ले से अभी तक केवल आठ चौके और छह छक्के लगे हैं।

5ग्रुप स्टेज की अंकतालिका में सबसे ऊपर मौजूद दिल्ली कैपिटल्स का हाल तो मस्त है लेकिन कप्तान ऋषभ पंत के लिए यह बात नहीं कही जा सकती। आईपीएल 2021 में अभी तक ऋषभ पंत 13 मैच में 352 रन ही बना सके हैं. 58 सर्वोच्च स्कोर रहा है तो 127 की स्ट्राइक रेट रन बन रहे हैं. ऋषभ पंत ने अभी तक 37 चौके और आठ छक्के ही लगाए हैं. हालांकि उनकी टीम लगातार तीसरी बार प्लेऑफ खेलने जा रही है।  

आईपीएल के कप्तानों में सबसे बुरा हाल एमएस धोनी का रहा है। उन्होंने अपनी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स को प्लेऑफ में पहुंचा दिया लेकिन खुद बैटिंग में बुरी तरह नाकाम रहे. आईपीएल 2021 में उन्होंने ग्रुप स्टेज में 14 मैच खेले और केवल 96 रन बना सके. 18 सर्वोच्च स्कोर रहा. महेंद्र सिंह धोनी के बल्ले से केवल 95 की स्ट्राइक रेट से रन निकले. वे अभी तक नौ चौके और दो छक्के ही लगा पाए हैं. धोनी की कप्तानी में हालांकि चेन्नई ने आईपीएल 2021 में सबसे पहले प्लेऑफ में जगह बनाई। रॉयल चैलेंजर्स ने लगातार दूसरी बार प्लेऑफ में जगह बना ली है। टीम तीसरे स्थान पर रहते हुए अंतिम चार में दाखिल हुई है. लेकिन कप्तान विराट कोहली की फॉर्म टीम के लिए प्लेऑफ में चिंता की बात है. कोहली ने टूर्नामेंट में शुरुआत तो अच्छी की थी लेकिन अब उनसे भी रन नहीं बन रहे. अभी तक 13 मैच में 362 रन उन्होंने बनाए हैं. नाबाद 72 रन उनका सर्वोच्च स्कोर है. उनकी स्ट्राइक रेट 121.47 की है जो ठीकठाक कही जा सकती है. कोहली ने अभी तक आईपीएल में 38 चौके और नौ छक्के लगाए हैं। ऐसे में उम्मीद कि जा रही है कि इन टीमों के सुपर कप्तान अपनी ख्याति के अनुरूप प्ले ऑफ में प्रदर्शन करेंगे।

मोदी के सत्ता में 20 साल: ऐतिहासिक बेमिसाल

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गुजरात के मेहसाणा के छोटी सी जगह वडनगर में 17 सितंबर 1950 को जन्में बालक नरेंद्र मोदी ने आज देश की सत्ता में 20 साल का सफर तय कर लिया है। पहले 11 वर्षों तक उन्होने मुख्यमंत्री के तौर पर गुजरात की सेवा की। उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई। और तब से अब तक वे भारत जैसे विशाल लोकतन्त्र के प्रधानमंत्री हैं। चाय वाले से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने में उन्होने हर चुनौती का मजबूती से सामना किया और विजेता बनकर उभरे। मोदी जी ने करोना काल में विश्व को नई दिशा दी और आज दुनियाँ के सभी बड़े देश उनको विश्व नायक के तौर पर देखते हैं। मोदी जी सत्ता के 20 वर्षों के पूरा होने के अवसर पर देवभूमि उत्तराखंड में हैं। यहाँ पर राजनीतिक और आध्यात्मिक चिंतन करके देश को नई ऊर्जा देने की तैयारी कर रहे हैं। आइये डालते हैं उनकी यात्रा पर एक नजर।

मोदी जी ने 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभाला था और उन्होंने 22 मई 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया। इसके बाद उन्होंने 26 मई 2014 को देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला था और तब से वे देश के सियासी पटल पर छाए हुए हैं।

मोदी को 2001 में केशुभाई पटेल के जगह गुजरात के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री के रूप में करीब साढ़े चार वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके थे मगर राज्य में बढ़ते असंतोष के कारण पार्टी हाईकमान ने नेतृत्व परिवर्तन का फैसला किया था। मोदी ने 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभाला था और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 2002 के चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने में कामयाबी हासिल की थी। मोदी की अगुवाई में भाजपा 127 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। वे राज्य के करिश्माई नेता साबित हुए और 2007 के चुनाव में भी उन्होंने अपने दम पर भाजपा को जीत दिलाई। कांग्रेस 2012 के चुनाव में भी मोदी की किलेबंदी को नहीं भेद पाई और इस बार फिर मोदी भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब रहे। 2012 के चुनाव में मोदी लगातार तीसरी बार जीते और इस बार भी भाजपा ने 115 सीटें जीतकर कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया।

मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में विकास का ऐसा मॉडल सबके सामने पेश किया जिसे गुजरात मॉडल के नाम से जाना जाने लगा।

यह मोदी की लोकप्रियता का ही असर था कि उन्हें 2013 में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया गया। उस समय पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत कई अन्य वरिष्ठ नेता भी मोदीजी के नाम पर सहमत नहीं थे मगर उनकी लोकप्रियता के कारण ही भाजपा को यह बड़ा फैसला लेना पड़ा। इसके बाद उनकी अगुवाई में भाजपा 282 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही और मोदी ने 26 मई 2014 को पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। 1989 के बाद पहली बार किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और मोदी ऐसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 2014 से भी बड़ी जीत हासिल की। इस बार भाजपा मोदी की अगुवाई में 330 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही और मोदी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। मोदी जी ने संवैधानिक पद पर रहते हुए अपने 20 साल के कार्यकाल में कौन से 20 बड़े फैसले लिए।

नोटबंदी

प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहते हुए 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने कालेधन का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे अचानक 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया। प्रधानमंत्री के इस फैसले की चर्चा पूरी दुनिया में हुई।

सर्जिकल स्ट्राइक

18 सितंबर 2016 को आर्मी के मुख्यालय पर सुबह करीब साढ़े पांच बजे आतंकवादियों ने हमला कर दिया। इसमें 19 जवान शहीद हो गए थे, जबकि 30 से ज्यादा जवान घायल हुए। इसके बाद 28 सितंबर 2016 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया। आतंकी हमले का इस तरह से जवाब देने पर पीएम मोदी की चर्चा पूरी दुनिया में हुई।

बालाकोट स्ट्राइक

आतंकवादियों ने 14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला कर दिया। इसमें 40 जवान शहीद हो गए। हमले के बाद पूरे देश में गम और गुस्सा देखने को मिला।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकियों को जवाब देने का फैसला लिया। इसके बाद 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में एयरस्ट्राइक को अंजाम दिया। इसमें 300-400 आतंकवादी मारे गए थे। भारत के इस कदम को दुनिया के कई देशों ने अपना समर्थन दिया।

धारा 370 हटाना

प्रधानमंत्री का चौंकाने वाला चौथा फैसला कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का रहा। 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया है। इसी दौरान जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्य के गठन का भी एलान किया।

ट्रिपल तलाक पर कानून

22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैर कानूनी घोषित कर दिया। 2019 में दूसरी बार अध्यादेश लाया गया। इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने एक बार फिर से लोकसभा और राज्यसभा में बिल को पेश किया। दोनों जगह से मंजूरी मिलते ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नया कानून लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से छुटकारा दिलाने के इस फैसले पर बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन मिला तो कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया।

नागरिकता संशोधन कानून

2019 में दोबारा सरकार बनने के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर से सबको चौंका दिया। इस दौरान उन्होंने देश में नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को संसद में पेश किया। नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता का अधिकार मिल गया।

सबसे बड़े राम भक्त थे रामायण के “रावण” अरविंद त्रिवेदी

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80 के दशक में दूरदर्शन में दिखाए जाने वाले धारावाहिक रामायण में रावण की भूमिका निभाने वाले अभिनेता अरविंद त्रिवेदी एक सच्चे राम भक्त थे। अरविंद त्रिवेदी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आत्मीय संबंध थे। उनके निधन पर पीएम ने अपनी एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि हमने श्री अरविंद त्रिवेदी को खो दिया है, जो न केवल एक असाधारण अभिनेता थे, बल्कि जनसेवा के प्रति जुनूनी भी थे. भारत की पीढ़ियों के लिए, उन्हें रामायण टीवी सीरियल में उनके काम के लिए याद किया जाएगा।

टीवी स्क्रीन पर भले ही वह राम से युद्ध करते दिखाई दिए पर असल जीवन में अरविंद त्रिवेदी राम के परम भक्त थे। उन्होंने खुद बताया था कि सीरियल में जब वह राम के खिलाफ कड़े शब्दों का प्रयोग करते थे तो बाद में भगवान से माफी मांगते थे। पिछले साल कोरोना लॉकडाउन में जब टीवी पर रामायण सीरियल फिर से प्रसारित होने लगा तो टीवी चैनलों पर उनकी तस्वीरें भी सामने आईं। वह टीवी पर रामायण देखते दिखाई दिए।

जितनी बार भगवान राम की भूमिका में अरुण गोविल स्क्रीन पर दिखाई देते, अरविंद दोनों हाथों को जोड़ कर प्रणाम कर लेते। इस सदी में जन्मी पीढ़ी को शायद यह जानकर ताज्जुब हो कि उस समय टीवी के सामने बैठे लोग भी भगवान राम की भूमिका में अरुण गोविल को देख हाथ जोड़ लेते थे, पूजा होती थी और जयकारे लग जाते थे। पिछले साल मीडिया से बातचीत में परिवार के लोगों ने बताया था कि बुजुर्ग अरविंद त्रिवेदी का ज्यादातर समय भगवान की भक्ति में बीत रहा था।

सिनेमा के साथ-साथ उनका राजनीति से भी जुड़ाव रहा। लोकप्रियता चरम पर थी जब उन्होंने बीजेपी के टिकट पर साल 1991 में गुजरात की साबरकांठा सीट से चुनाव लड़ा और विजयी भी हुए। वह 1991 से 1996 तक लोकसभा के सांसद रहे।

उनके निधन पर टीवी और फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। फिल्म और टीवी जगत की हस्तियों ने अभिनेता को श्रद्धांजलि दी है। जिनमें अभिनेता अरुण गोविल,  दीपिका चिखलिया और सुनील लहरी  जैसे कलाकार शामिल हैं।   रामायण में राम की भूमिका निभाकर घर-घर में मशहूर हुए अरुण गोविल ने अपने प्रिय को-स्टार अरविंद त्रिवेदी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा- आध्यात्मिक रूप से रामावतार का कारण और सांसारिक रूप से एक बहुत ही नेक, धार्मिक, सरल स्वभावी इंसान और मेरे अतिप्रिय मित्र अरविंद त्रिवेदी जी को आज मानव समाज ने खो दिया।  नि:संदेह वे सीधे परमधाम जाएंगे और भगवान श्रीराम का सानिध्य पाएंगे।