Sunday, June 8, 2025
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समय से पूर्व ही बाल्मीकी को था रामायण की सभी घटनाओं का ज्ञान

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अरविंद जयतिलक

विश्व के सर्वाधिक प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में सिरमौर रामायण जिसे आदि रामायण भी कहा जाता है और जिसमें भगवान श्रीराम के पवित्र एवं जनकल्याणकारी चरित्र का वर्णन है, के रचयिता महर्षि वालमीकि संसार के आदि कवि हैं। उनके द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महान महाकाव्य है जो हमें प्रभु श्रीराम के आदर्श और पावन जीवन के निकट लाता है। उनकी सत्यनिष्ठा, पितृ भक्ति और भ्रातृ प्रेम, कर्तव्यपालन और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराता है। रामायण हिंदु स्मृति का वह अंग है जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की कथा कही गयी है। हिंदू कालगणना के अनुसार रामायण कार रचनाकाल त्रेतायुग माना जाता है। रामायण से प्रेरित होकर गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमान जैसे महान महाकाव्य की रचना की। शास्त्रों में कहा गया है कि वाल्मीकि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें रामायण की रचना करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से उनको समय से पूर्व ही रामायण की सभी घटनाओं का ज्ञान हो गया और उन्होंने संस्कृत भाषा में महान ग्रंथ रामायाण की रचना की। चूंकि प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना वाल्मीकि ने की इस कारण इस ग्रंथ को आदि ग्रंथ और वाल्मीकि को आदि कवि कहा गया है। वाल्मीकि के जीवन चरित को लेकर समाज व साहित्य में कई तरह की भ्रांतियां प्रचलित हैं वाल्मीकि ने रामायण में श्लोक संख्या 7/93/16, 7/96/18 और 7/111/11 में स्वयं को प्रचेता का पुत्र कहा है। मनुस्मृति में  प्रचेता को वशिष्ठ, नारद व पुलस्त्स्य का भाई बताया गया है। प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्मा जी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अथवा प्रचेता के 10 वें पुत्र थे और उनके दो नाम-अग्निशर्मा और रत्नाकर थे। समाज में एक क्विदंती यह भी है कि बाल्यावस्था में रत्नाकर यानी वाल्मीकि को एक निःसंतान भीलनी ने चुराकर उनका पालन-पोषण किया। भीलनी का समुदाय असभ्य और बर्बर था। वन्य जीवों का शिकार और दस्युकर्म उनके जीवनयापन का मुख्य साधन था। चूंकि रत्नाकर यानी वाल्मीकि इन्हीं असभ्य भीलों की संगति में रहते थे लिहाजा वे भी इन्हीं कर्मों में लिप्त हो गए। बड़े होकर वे भी अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए दस्यु कर्म करने लगे। एक बार जंगल में उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई। उन्होंने रत्नाकर को सत्य का ज्ञान कराया। रत्नाकर ने नारद जी से अपने किए गए पापों से उद्धार का मार्ग पूछा। नारद जी ने उन्हें तमसा नदी के तट पर राम-राम का जाप करने का परामर्श दिया। रत्नाकर दस्युकर्म का परित्याग कर कठोर साधना में जुट गए। कहा जाता है कि वे राम-राम का जप करना भूल मरा-मरा का जप करने लगे। कई वर्षों तक कठोर तपस्या के उपरांत उनके पूरे शरीर पर चीटियों ने बांबी बना ली, जिसके कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। राम-राम की जगह मरा-मरा का जाप करने वाले वाल्मीकि के बारे में कहा जाता है कि एक बार वे क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े को प्रेमालाप करते हुए निहार रहे थे तभी उसी समय एक बहेलिए ने पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप से महर्षि वाल्मीकि की करुणामय हो गए और उनके मुख से स्वतः ही श्लोक फुट पड़ा-‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः, यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम।’ इसका अर्थ यह हुआ कि ‘अरे बहेलिए तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी। वाल्मीकि ने अपने रामायण में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र एवं अन्य नक्षत्र की स्थितियों का भी उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट जानकारी मिलती है कि वाल्मीकि ज्यातिष व खगोल विद्या के भी विद्वान थे। यही नहीं उन्होंने अपने महाकाव्य में अद्वितीय शैली में प्रकृति का चित्रण, संवाद-संयोजन और विषय का प्रतिपादन किया है। वाल्मीकि रामायण में दर्शन, राजनीति, नैतिकता, शासन कुशलता व मनोविज्ञान का भी विशद् वर्णन है। इसका तात्पर्य यह है कि महर्षि वाल्मीकि विविध विषयों के ज्ञाता थे। शास्त्रों में वर्णित है कि अपने वनवास के मध्य में भगवान श्रीराम वाल्मीकि के आश्रम में गए थे। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि ‘देखत बन सर सैल सुहाए, बालमीक प्रभु आश्रम आए।’ इस उद्धरण से  स्पष्ट है कि वाल्मीकि भगवान श्रीराम के समकालीन थे। तुलसीकृत रामचरित मानस के अनुसार जब भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया तब वाल्मीकि ने ही सीता को प्रश्रय दिया। वाल्मीकि और उनका महाकाव्य रामायण का उल्लेख अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, हरिवंश पुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण, महाकवि कालीदास द्वारा रचित रघुवंश, भवभूति रचित उत्तर रामचरित, वृहद धर्म पुराण जैसे अनेक प्राचीन गं्रथों में भी मिलता है। वृहद धर्म पुराण में इस महाकाव्य की प्रशंसा ‘काव्य बींज सनातनम्’ कह कर की गयी है। काव्यगुणों की दृष्टि से रामायण अद्वितीय महाकाव्य है। मूर्धन्य विद्वानों का मानना है कि यह महाकाव्य संस्कृत काव्यों की परिभाषा का आधार है। यह महाकाव्य परवर्ती महाकाव्यों के रचनाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। 24 हजार श्लोक और सात अध्याय वाले वाल्मीकि कृत रामायण में राम महानायक हैं और कथावस्तु उनके ही चारो ओर ही घुमती है। महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य में राम को महामानव के रुप चित्रित किया है लेकिन ईश्वरीय गुणों से प्रतिष्ठित होने के बावजूद भी राम अपने किसी भी क्रियाकलाप से मानवेतर प्रतीत नहीं होते हैं। यहां तक कि शत्रुओं का संहार करते समय भी उनके द्वारा वैष्णवी शक्ति का उपयोग नहीं हुआ है। उन्होंने सागर पर सेतु निर्माण में भी किसी मायाशक्ति का उपयोग नहीं किया। वे नर-वानरों के योगदान से सेतु का निर्माण किए। अपने भ्राता लक्ष्मण की मुच्र्छा को दूर करने के लिए उन्होंने संजीवनी लाने के लिए हनुमान जी को हिमालय भेजा। उन्होंने अपना समस्त कार्य दसरों के सहयोग से किया। इस महाकाव्य में केवल राम व सीता के ही चरित्र का वर्णन नहीं है बल्कि दशरथ, कौशल्या, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघन, हनुमान, सुग्रीव इत्यादि पात्रों के चरित्र को भी सशक्त तथा प्रेरक रुप में प्रस्तुत किया गया है। यह गं्रथ पितृभक्ति, भ्रातृ प्रेेम, पातिव्र्रत्य धर्म, आज्ञापालन,  प्रतिज्ञापूर्ति तथा सत्यपरायणता की शिक्षा प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में सभी चरित्र अपने धर्म का पालन करते हैं। राम एक आदर्श पुत्र हैं। पिता की आज्ञा उनके लिए सर्वोपरि है। पति के रुप में राम ने सदैव एकपत्नी व्रत का पालन किया। राजा के रुप में प्रजा के हित के लिए स्वयं के हित को हेय समझते हैं। वाल्मीकि के राम वीर्यवान, नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, तेजस्वी, विद्वान, बुद्धिमान, धैर्यशील, सुंदर, पराक्रमी और दुष्टों का संहार करने वाले हैं। राम की पत्नी महान पतिव्रता पत्नी हैं। वे सारे वैभव को ठुकराकर वन को चली जाती हैं। रामायण भ्रातृभाव का भी अनुपम उदाहरण है। राम के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ वन चले जाते हैं वहीं भरत अयोध्या की राजगद्दी पर स्वयं आसीन होने के बजाए उस पर बड़े भाई राम की पादुका को प्रतिष्ठित करते हैं। हनुमान एक आदर्श भक्त हैं और वे अनुचर की भांति श्रीराम की सेवा में तत्पर रहते हैं। रावण के चरित्र से सबक मिलता है कि अहंकार से नाश होता है। वाल्मीकि रामायण ज्ञान का अथाह सागर है। मानव जीवन के लिए  प्रकाशपूंज है। शोक और करुणा से निवृत होने का मंत्र और पवित्र जीवन का सम्यक मार्ग है। वाल्मीकि कृत रामायण न केवल भारत की महान धार्मिक सभ्यता और उसके मूल्यों को समझने का साहित्यिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य है, बल्कि भौतिक लोक की संजीवनी भी है।

कांग्रेस पास कर पाएगी प्रियंका की ‘अग्नि परीक्षा’ !

मनीष शुक्ल

वरिष्ठ पत्रकार

कांग्रेस महसचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा गांधी ने चुनावी मौसम में ‘लड़की है, लड़ सकती है’ नारा देकर राजनीति के मैदान में मास्टर स्ट्रोक चला है। उन्होने ऐलान किया कि यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 40 फीसदी महिला उम्मीदवार उतारेगी। देखने- सुनने में प्रियंका का यह दांव शानदार नजर आ रहा है। राजनीतिक विश्लेषक प्रिंयका के इस कदम को एतिहासिक बताकर विरोधियों में बेचैनी पैदा करने वाला बता रहे हैं। प्रियंका ने कहा भी है कि वो जाति-धर्म से हटकर सक्षम महिलाओं को उम्मीदवार बनाएँगी लेकिन क्या यह वादा पूरा हो पाएगा या फिर प्रियंका के मास्टर स्ट्रोक पर कांग्रेस हिट विकेट हो जाएगी, ये गंभीर सवाल है।

फिलहाल तो प्रियंका वाड्रा गांधी ने अमेठी के प्रधान पति का किस्सा सुनाकर अपने ही ऐलान पर सवाल खड़े कर दिये हैं। साथ ही यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या कांग्रेस प्रियंका के वादे को गम्भीरता से लेते हुए उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्यों में भी 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देगी या फिर कांग्रेस कि अन्तरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी और होने वाले संभावित अध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस के अन्य दिग्गज और  वरिष्ठ नेताओं की तरह प्रियंका की मांग और ऐलान को अनसुना कर देंगे। इतिहास तो कम से कम यही कह रहा है। महिला आरक्षण कि कवायद पर नजर डालें तो सबसे पहले प्रियंका वाड्रा कि दादी और देश की पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के समय में महिलाओं को राजनीतिक भागेदारी देने की कवायद शुरू हुई थी। 1975 में ‘टूवर्ड्स इक्वैलिटी’ नाम की एक रिपोर्ट में हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण दिया गया था और आरक्षण पर भी बात की गई थी। लेकिन धरातल पर इस रिपोर्ट का विरोध भी होने लगा था। अस्सी के दशक में प्रियंका वाड्रा के पिता जी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिलाने के लिए विधेयक पारित करने की कोशिश की थी लेकिन उनका वादा भी पूरा नहीं हो सका था। तब राज्य की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया था। महिला आरक्षण विधेयक को एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने पहली बार 12 सितंबर 1996 को पेश करने की कोशिश की थी। तब ये सरकार कांग्रेस के समर्थन से ही चल रही थी लेकिन बिल की बात आते ही विरोध शुरू हो गया था। इसके बाद जून 1997 में भी बिल का विरोध हुआ। साल 1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार ने इस विधेयक को पेश करने की असफल कोशिश की। एनडीए सरकार इसके बाद 1999 और 2003 में महिला आरक्षण बिल लाई लेकिन वो कभी पारित नहीं हो पाया। देश में एकबार फिर कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी और 2010 में ये विधेयक राज्यसभा में पारित भी गया लेकिन लेकिन लोकसभा में पारित न होने के कारण 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही यह विधेयक भी ख़त्म हो गया। ऐसे में हर बार देश के सभी राजनीतिक दल महिलाओं को सत्ता में भागेदारी देने के दावे, वादे और प्रतिज्ञा तो करते रहे लेकिन धरातल पर आधी आबादी को उनका हक कभी नहीं मिल सका।

हालांकि पिछले एक दशक में चुनावी राजनीति में महिलाओं की स्थिति में खासा बदलाव आया है। खास उत्तर प्रदेश के चुनावी आंकड़ों में महिला भागेदारी पर नजर डालें तो 2007 के विधानसभा चुनाव मे महिला वोटर पुरुषों से पीछे थीं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2007 पुरुषों के 49.35 फीसदी वोट (30392935 वोट) और महिलाओं के 41.91 फीसदी वोट (21784164 वोट) पड़े थे। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में पुरुषों के 59.14 फीसदी वोट (45570067 वोट) पड़े और महिलाओं के 63.30 फीसदी वोट (40906123 वोट) पड़े। यानी महिला वोटर पुरुषों से ज्यादा जागरूक और सक्षम दिखी।

इस बार प्रियंका वाड्रा गांधी ने इस गणित को समझा। 40 फीसदी महिलाओं को चुनाव में टिकट देने का वादा कर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों में खलबली पैदा कर दी है। लेकिन उसके साथ ही अमेठी के प्रधान पति की कहानी सुनाकर अपने ही फैसले को संदेह के दायरे में ला दिया है। गौरतलब है कि जब प्रियंका से पूछा गया कि कई बार देखने को मिलता है कि नेता अपने घर की महिलाओं को चुनाव लड़वा देते हैं और फिर निर्णय खुद लेते हैं। इस पर प्रियंका ने कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है. महिलाएं सक्षम भी हो जाती हैं। ऐसे में बैकडोर से सुपर विधायक बनने वाले पतियों को कैसे रोका जाएगा यह सवाल है।

उधर हाल ही में सोनिया गांधी ने पार्टी की बैठक में साफ कर दिया था कि वो कांग्रेस कि स्थायी अध्यक्ष की तरह हर रोज कार्य कर रही हैं। ऐसे में नेताओं को मीडिया के जरिये अपनी बात नहीं कहनी चाहिए। इस बैठक में राहुल गांधी के स्थायी अध्यक्ष के तौर पर दोबारा पद संभालने के संकेत दिये गए हैं। लेकिन क्या राहुल और सोनिया गांधी का शीर्ष नेतृत्व प्रियंका के फैसले के साथ खड़ा होगा। क्या पार्टी समूचे देश में महिलाओं को चुनावी राजनीति में 40 फीसदी हिस्सेदारी देने की पहल कर पाएगी। अगर कांग्रेस इस अग्नि प्ररीक्षा को पास कर सकी तो यह देश के लिए नई सुबह होगी।

बांगलादेश में हिंदुओं पर कायराना कहर

अरविंद जयतिलक

यह बेहद चिंताजनक है कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा। कभी उनके घर और आस्था केंद्रों को आग के हवाले किया जा रहा है तो कभी सरेआम मौत के घाट उतारा जा रहा है। सोशल मीडिया पर झूठी अफवाह से उपजी हिंसा के बाद जिस तरह कट्टरपंथी तत्वों ने आधा दर्जन से अधिक हिंदुओं की हत्या की है उससे साफ जाहिर है कि बांगलादेश में हिंदू जन और उनके आस्था केंद्र बिल्कुल ही सुरक्षित नहीं रह गए हैं। हिंदू आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र नोआखली जिले का इस्काॅन मंदिर को जिस तरह कट्टरपंथियों ने तहस-नहस किया और शासन-प्रशासन मूकदर्शक बना रहा उससे यही प्रतीत होता है कि बांगलादेश में सुनियोजित तरीके से हिंदुओं को खत्म किया जा रहा है। यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश में हिंदुओं के आस्था केंद्र, घर, दुकान और कारोबार को नुकसान पहुंचाया गया हो। याद होगा गत वर्ष पहले झिनाईदह जिले में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने 70 साल के एक पुजारी की गला रेतकर हत्या कर दी और भविष्य में ऐसे और हमले की चेतावनी दी। इसी तरह पंचागढ़ जिले में स्थित हिंदू मंदिर पर पत्थरबाजी कर पुजारी की नृशंस हत्या की गयी। तब सरकार ने हिंदू अल्पसंख्यकों की हिफाजत का भरोसा दिया। लेकिन मौजूदा हमले व हिंसा से स्पष्ट है कि सरकार अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा देने में पूरी तरह नाकाम है। गौर करें तो बांग्लादेश में हूजी, जमातुल मुजाहिदीन बंगलादेश, द जाग्रत मुस्लिम जनता बंगलादेश (जेएमजेबी), पूर्व बांगला कम्युनिस्ट पार्टी (पीबीसीबी) व इस्लामी छात्र शिविर यानी आइसीएस जैसे बहुतेरे आतंकी और कट्टरपंथी संगठन हैं जिनका मकसद बांग्लादेश से हिंदू अल्पसंख्यकों को सफाया करना है। अगर बांगलादेश की सरकार वर्तमान हिंसा की ईमानदारी से जांच कराए तो कई कट्टरपंथी संगठनों का चेहरा सामने आ जाएगा। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि बांग्लादेश में पैर जमाए और भारत में सक्रिय हूजी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के सहयोग से कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दे चुका है। उसका यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आॅफ असम से नजदीकी संबंध है। कहा तो यह भी जाता है कि वह उल्फा के लिए टेªेनिंग कैंप भी चलाता है। याद होगा 2002 में कोलकाता के अमेरिकन सेंटर पर हुए हमले की जिम्मेदारी इसी संगठन ने ली थी। भारत की खुफिया एजेंसियां यह भी खुलासा कर चुकी हैं कि असम और नागालैंड समेत पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अराजक स्थिति के लिए बांग्लादेशी संगठन ही जिम्मेदार हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि असम में 2008 और 2012 में हुए दंगे को भड़काने में बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन शामिल थे। गौर करें तो पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश के इन्हीं संगठनों के कट्टरपंथियों ने 4 दर्जन से अधिक हिंदू मंदिरों को नष्ट-भ्रष्ट किया और हजारों हिंदू घरों में आग लगायी। दर्जनों अल्पसंख्यक हिंदुओं को मौत के घाट उतारा। दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी कि कट्टरपंथी संगठन हिंदू अल्पसंख्यकों का साथ देने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को भी अब निशाना बना रहे हैं। नतीजा सामने है। बांग्लादेश में हिंदु अल्पसंख्यकों की आबादी तेजी से घट रही है। अभी गत वर्ष ही अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता रिचर्ड बेंकिन ने यह खुलासा किया कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी तेजी से घट रही है। उनके मुताबिक शेख हसीना और खालिदा जिया के अंतर्गत बांग्लादेशी सरकारें उनलोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कि जो हिंदुओं के खिलाफ काम कर रहे हैं। बेंकिन के आंकड़ों पर गौर करें तो बांग्लादेश की कुल आबादी 15 करोड़ है जिसमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। हिंदू आबादी घटकर 9.5 प्रतिशत रह गयी है। जबकि 1974 में हिंदुओं की संख्या कुल आबादी में जहां एक तिहाई थी, वहीं 2016 में यह घटकर कुल आबादी का 15 वां हिस्सा रह गयी है। बेंकिन के आंकड़ों के इतर इतिहास में जाएं तो 1947 में भारत विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बंगलादेश में हिंदुओं की आबादी 30 फीसद थी जो आज घटकर 8.6 फीसद रह गयी है। बांग्लादेश जब पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था तो उस समय की पहली जनगणना में मुस्लिम आबादी 3 करोड़ 22 लाख और हिंदू आबादी 92 लाख 40 हजार थी। साढ़े छः दशक बाद आज मुस्लिम आबादी 16 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जबकि हिंदू आबादी महज 1 करोड़ 20 लाख पर सिकुड़ी हुई है। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदु सुरक्षित हैं तो मुसलमानों की आबादी की तुलना में उनकी आबादी में आनुपातिक वृद्धि क्यों नहीं हुई? गौर करें तो इसके दो मुख्य कारण हैं। एक सुनियोजित रणनीति के तहत अल्पसंख्यक हिंदुओं का कत्ल और दूसरा उनका धर्मांतरण। आमतौर पर बंगलादेश का हिंदू जनमानस राजनीतिक और आर्थिक रुप से कमजोर है। संसद से लेकर विधानसभाओं में उसकी भागीदारी नामात्र है। आतंकी व कट्टरपंथी संगठनों के अलावा बेगम खालिदा जिया के नेतृत्ववाले राजनीतिक संगठन बीएनपी के समर्थक भी उन्हें लगातार निशाना बना रहे हैं। यह तथ्य है कि जब भी बेगम खालिदा जिया की नेतृत्ववाली बीएनपी सत्ता में आयी हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ा। खालिदा सरकार इस्लामिक कट्टरपंथियों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काती है। यह तथ्य है कि 2001 में जब बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार सत्ता में आयी तो योजना बनाकर हिंदुओं का नरसंहार किया गया। उसके समर्थक हिंदुओं के घर जलाए और संपत्तियों की लूटपाट की। हिंदू अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ शर्मनाक कृत्य किए। बेगम खालिदा सरकार की डर से लाखों हिंदू बंगलादेश छोड़कर भारत आ गए। बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सत्ता से विदायी के बाद जब अवामी लीग की सरकार सत्ता में आयी तो उसने हिंदू अल्पसंख्यकों को न्याय का भरोसा दिया। उसने खालिदा सरकार के दौरान नरसंहार की जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया। आयोग ने 25 हजार से अधिक लोगों को हिंदुओं पर हमले का जिम्मेदार ठहराया और उन पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। शर्मनाक तथ्य यह कि हमलावरों में खालिदा सरकार के 25 पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। लेकिन अरसा गुजर जाने के बाद भी गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। आज भी वे खुलेआम विचरण कर रहे हैं। बांग्लादेश में न केवल अल्पसंख्यकों की निर्मम हत्याएं हो रही है बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों को भी सुनियोजित तरीके से समाप्त किया जा रहा है। खालिदा सरकार के दौरान एक साजिश के तहत हिंदुओं के प्रापर्टीज अधिकारों को सीमित किया गया। हालंाकि अवामी लीग की सरकार ने 2011 में ‘वेस्टेज प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011 पारित कर जब्त की गयी या मुसलमानों द्वारा कब्जाई गयी हिंदुओं की जमीन को वापस करने का कानून बनाया। लेकिन अभी तक उसका कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आया है। कानून के जानकारों की मानें तो इस कानून के पारित होने के बाद भी अल्पसंख्यकों को 43 साल पुरानी अपनी जमीन वापस लेना टेढ़ी खीर है। सच तो यह है कि इस बिल के पारित होने के बाद मुस्लिम कट्टरपंथियों में हिंदुओं की जमीन कब्जाने की होड़ मच गयी है। अगर कट्टरपंथियों के समर्थन वाली बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी सरकार में आती है तो इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा मिलेगा। बता दें कि 1960 में एक विवादित कानून के तहत हिंदुओं की जमीनें हड़प ली गयी थी। यह कानून पूर्वी पाकिस्तान प्रशासन ने लागू किया था और उसम समय बंगलादेश पाकिस्तान का हिस्सा था। 1971 में बंगलादेश बनने के बाद इस कानून का विरोध हुआ और 2008 के चुनाव प्रचार में अवामी लीग ने वादा किया कि सत्ता में आने पर हिंदुओं की संपत्ति से जुड़े नियमों में बदलाव करेंगे। सरकार ने अपने वादे के मुताबिक ‘वेस्टेज प्रापर्टीज रिटर्न ( एमेंडमेंट) बिल 2011 पारित की है लेकिन अल्पसंख्यक हिंदू अपनी प्रापर्टीज पर काबिज नहीं हो सके हैं। बेहतर होगा कि भारत सरकार बांग्लादेशी अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा के लिए बांग्लादेश की सरकार पर दबाव बनाए। वैश्विक समुदाय को भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। अन्यथा बांगलादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों जैसी हो जाएगी।

जन्मदिन : चेहरे, आखों और आवाज से छोड़ी अभिनय की छाप

बॉलीवुड के सबसे संजीदा और वर्सेटाइल अभिनेता में शुमार ओम पुरी का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। एकओर जहां उनके अभिनय का डंका हालीवुड तक गूँजा। उन्होने अपने चेहरे, आखों और आवाज से अभिनय की छाप छोड़ी। दुनियाभर में इस अभिनेता के चाहने वाले हैं तो इस मक़ाम तक पहुँचने के लिए ओम पूरी ने बर्तन धोने से लेकर मजदूरी तक की। 18 अक्टूबर यानि आज उनके जन्मदिन पर कुछ छूए और अनछूए पहलुओं पर नजर डालते हैं।

ओमपुरी की पैदाइश 18 अक्टूबर 1950 को हरियाणा के अंबाला में हुआ. उनका बचपन बेहद मुश्किलों भरा रहा. पंजाबी परिवार में जन्मे ओम पुरी के पिता रेलवे में काम करते थे. लेकिन, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. ओमपुरी ने कोयला बीनने और टी स्टॉल्स में बर्तन धोने तक का काम किया।

ओमपुरी ने अपनी पढ़ाई पटियाला से की थी। फिल्मों में आने से पहले ओमपुरी सरकारी नौकरी करते थे। ओमपुरी जिस कॉलेज में पढ़ते थे उसी में असिस्टेंट लाइब्रेरियन की नौकरी करते थे। एक बार उन्होंने कॉलेज में थिएटर किया. उनके थिएटर को देखने पंजाब के मशहूर थिएटर कलाकार हरपाल टिवाना पहुंचे। ओमपुरी के अभिनय को देखने के बाद हरपाल टिवाना ने उन्हें अपने थिएटर ग्रुप से जुड़ने की पेशकश की. इसके बाद कॉलेज की असिस्टेंट लाइब्रेरियन की नौकरी छोड़कर ओमपुरी ने हरपाल टिवाना के थिएटर ग्रुप से जुड़े।

ओम पुरी की पत्नी नंदिता ने उन पर एक किताब लिखी थी. इस किताब का नाम था ‘अनलाइकली हीरोः ओम पुरी’. इसमें नंदिता ने ओम पुरी की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ से जुड़े कई खुलासे किए. इस किताब में दिवंगत अभिनेता को लेकर एक ऐसा भी किस्सा है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया. इसके मुताबिक, जब ओम पुरी 14 साल के थे, उन्हें अपने मामा के घर में काम करने वाली 55 साल की महिला से प्यार हो गया था. ओम पुरी पर घरेलू हिंसा के भी आरोप लगे थे. वहीं नक्सलियों पर दिए अपने बयान के लिए भी ओम पुरी विवादों में घिर गए थे।

ओमपुरी ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की पढ़ाई की. ओम पुरी ने पुणे फिल्म संस्थान से अपनी पढ़ाई खत्म की और लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में अभिनय की शिक्षा दी. बाद में ओम पुरी ने निजी थिएटर ग्रुप ‘मजमा’  की स्थापना की। ओम पुरी ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत मराठी फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी।  फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए ओम पुरी बेहतरीन सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। ओम पुरी को फिल्म ‘आरोहण’ और ‘अर्ध सत्य’ के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड भी मिला. उन्होंने समानांतर सिनेमा में काम करने के साथ ही कई व्यावसायिक फिल्मों में भी काम किया, जिसमें मिर्च मसाला, जाने भी दो यारों, चाची 420, हेराफेरी, मालामाल वीकली आदि शामिल हैं।

फिटनेस : प्रोटीन का खेल

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डॉ सरनजीत सिंह

फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट

हमारे शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए हमें करीब चालीस तरह के पोषक तत्वों की ज़रुरत होती है. ये पोषक तत्व हमें भोजन से लेने पड़ते हैं. इन तत्वों को शरीर के लिए ज़रूरी मात्रा के आधार पर दो श्रेणियों में बाँटा जाता है. जिन तत्वों की हमें ज़्यादा मात्रा में ज़रुरत होती है उन्हें ‘मैक्रोन्युट्रिएंट्स’ और जिन तत्वों की हमें कम मात्रा में ज़रुरत होती है उन्हें ‘माइक्रोन्युट्रिएंट्स’ कहते हैं. कार्बोहाइड्रेट्स, फैट, प्रोटीन और पानी मैक्रोन्यूट्रिएंट की श्रेणी में आते हैं और तमाम तरह के विटामिन्स और मिनरल्स माइक्रोन्युट्रिएंट्स की श्रेणी में आते हैं. इस लेख में मैं विशेष रूप से प्रोटीन का ज़िक्र करूँगा क्योंकि पिछले कुछ सालों में इस मैक्रोन्यूट्रिएंट पर बहुत शोध होने के कारण हमारे भोजन में इसके महत्व की जानकारी का ख़ूब प्रचार हो रहा है. इसके चलते फिटनेस से जुड़े लोगों और खिलाड़ियों के साथ-साथ सामान्य लोगों में भी इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है.

प्रोटीन एक बहुत जटिल कार्बनिक पदार्थ होता है जो शरीर की प्रत्येक कोशिका में पाया जाता है. हमारे शरीर का 18 से 20 प्रतिशत भार प्रोटीन से बना होता है. प्रोटीन की अधिकांश मात्रा मांसपेशीय ऊतकों में पायी जाती है. ये मांस-पेशियों की मरम्मत करने में मदद करती है और शरीर की सभी कोशिकाओं और ऊतकों के विकास में उपयोगी होती है. प्रोटीन की शेष मात्रा रक्त, अस्थियों, दाँत, त्वचा, बाल, नाखून तथा अन्य कोमल ऊतकों आदि में पायी जाती है. इसके अलावा हमारा शरीर कई तरह के एंजाइम, रसायन और हार्मोन को बनाने के लिए प्रोटीन का इस्तेमाल करता है. शरीर को सुचारु रूप से काम करने के लिए जिस उर्जा की आवश्यकता होती है उसका एक हिस्सा प्रोटीन से भी मिलता है. यही वजह है कि शरीर में प्रोटीन की कमी होने से थकान और कमजोरी महसूस होने लगती है. प्रोटीन हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर हमें कई तरह के संक्रामक रोगों से बचाता है. ये कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने और अवसाद (डिप्रेशन) को कम करने में सहायक होता है. प्रोटीन गर्भवती महिलाओं, बच्चों और किशोरों में वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है.

Natural Sources of Protein

अगर प्रोटीन की सरंचना की बात करें तो प्रोटीन सैकड़ों या हजारों छोटी इकाइयों से बने होते हैं जिन्हें अमीनो एसिड कहा जाता है. अमीनो एसिड 20 प्रकार के होते हैं. इन 20 एमिनो एसिड में 10 एमिनो एसिड हमारे शरीर में बनते हैं जिन्हें नॉन-एसेंशियल एमिनो एसिड कहा जाता है और बाकी के 10 एमिनो एसिड की पूर्ति के लिए हमें प्रोटीनयुक्त भोजन लेना होता है. इन एमिनो एसिड को एसेंशियल एमिनो एसिड कहते हैं. एमिनो एसिड का गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी पाया जाता है. प्रोटीन की गुणवत्ता और इसका अवशोषण इसके स्रोत में पाए जाने वाले एसेंशियल और नॉन-एसेंशियल एमिनो एसिड की सही मात्रा और उनके अनुपात पर निर्भर करता है. सामान्य तौर पर प्रोटीन आहार के रूप में कम वसा वाले पशु प्रोटीन जैसे मांस, मछली, डेयरी उत्पाद और अंडे जैसे खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है. प्रोटीन के मुख्य शाकाहारी स्रोत फलियां, सोया, टोफू, दालें, अनाज, मूंगफली, ड्राई फ्रूट्स और बीज होते हैं.

पर्याप्त प्रोटीन युक्त आहार का सेवन न करने से स्वास्थ से जुड़ी कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. आहार के अलावा शरीर में प्रोटीन की कमी के कुछ और कारण जैसे आनुवंशिक, एनोरेक्सिया नर्वोसा (एक प्रकार का आहार संबंधी विकार), एड्स, कैंसर या सर्जरी (गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी) आदि भी हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त मानव शरीर में प्रोटीन की कमी अनेक प्रकार की आंतरिक समस्याओं के कारण भी उत्पन्न हो सकती है. इनमे मुख्य कारण लिवर डिसऑर्डर, किडनी डिसऑर्डर, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज और सीलिएक रोग (प्रोटीन के अवशोषण में कमी के कारण) हो सकते हैं. प्रोटीन की कमी के शुरुआती लक्षण चेहरे और पैरों में सूजन आना, त्वचा के नीचे तरल पदार्थ का इकट्ठा होना (एडिमा), थकान महसूस होना, वजन में अत्यधिक कमी आना, बालों का शुष्क एवं भंगुर होना, बालो का झड़ना, नाखूनों में दरारे पड़ना या आसानी से टूट जाना, त्वचा सम्बन्धी समस्याएं होना, आसानी से संक्रमित हो जाना, महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म होना, चिंता और तनाव की स्थिति उत्पन्न होना, अनिद्रा या ख़राब नींद होना होते हैं. अगर समय रहते इनका सही उपचार नहीं होता तो प्रोटीन की कमी से पीड़ित व्यक्ति में स्वास्थ सम्बन्धी कई गंभीर समस्याएँ विकसित हो सकती हैं. इसकी वजह से मांस-पेशियों का नुकसान, प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना, दिल की समस्याएँ, श्वसन तंत्र की समस्याएं, रक्त में प्रोटीन स्तर की अत्यधिक कमी (हाइपोप्रोटीनेमिया) और फैटी लिवर जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ स्थितियों में प्रोटीन की कमी से क्वाशियोरकर और मरास्मस जैसी जानलेवा समस्याएँ विकसित हो सकती हैं। ये समस्याएँ अधिकतर बच्चों को प्रभावित करती हैं.

प्रोटीन की कमी की जाँच के लिए कुछ ख़ास तरह के रक्त व मूत्र परिक्षण कराये जाते हैं. प्रोटीन की कमी का उपचार, इसके कारणों के अतिरिक्त, मरीज के आहार, स्वास्थ्य की स्थिति, आयु और चिकित्सा इतिहास पर निर्भर करता है. आहार सम्बन्धी विकार होने पर प्रोटीन की कमी का इलाज करने के लिए प्रोटीन युक्त संतुलित आहार और प्रोटीन सप्लीमेंट के सेवन की सलाह दी जाती है. सीलिएक रोग की स्थिति में प्रोटीन की कमी का इलाज करने के लिए ग्लूटेन फ्री डाइट ली जाती है और लीवर या किडनी की समस्या होने पर डॉक्टर की निगरानी में व्यापक चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है. ज़रुरत से अधिक मात्रा में प्रोटीन लेना भी स्वास्थ के लिए हानिकारक हो सकता है. इससे शरीर में जमा फैट की मात्रा बढ़ सकती है, इससे निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन), उल्टी होना, जी मिचलाना, यूरिक एसिड बढ़ना या लिवर और किडनी की कार्य क्षमता में कमी होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

अच्छे स्वास्थ के लिए हमें भोजन में प्रोटीन की उचित मात्रा लेनी चाहिए. हाल ही में इंडियन मार्किट रिसर्च ब्यूरो की एक स्टडी के मुताबिक ज्यादातर लोगों की डाइट में प्रोटीन की मात्रा ज़रुरत से बहुत कम होती है. ये जानने के लिए कि हमें भोजन में कितना प्रोटीन लेना चाहिए हेल्थ से जुड़ी विश्व की ज़्यादातर संस्थाओं ने वजन के आधार पर कुछ मापदंड बनाये हैं. इनके अनुसार हमारे वजन के प्रति किलोग्राम वजन के लिए हमें एक ग्राम प्रोटीन की ज़रुरत होती है. यानि कि यदि किसी व्यक्ति का वजन 70 किलोग्राम है तो उसे एक दिन में 70 ग्राम प्रोटीन की ज़रुरत होगी. कुछ संस्थाओं के अनुसार ये मात्रा इससे कुछ कम और कुछ के अनुसार कुछ ज़्यादा हो सकती है. अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो इन मापदंडों में कई तकनीकी त्रुटियां हैं. इसमें सबसे पहली त्रुटि तो ये है कि भोजन में ज़रूरी प्रोटीन की मात्रा को शरीर के वजन से निर्धारित नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारे वजन में फैट का वजन भी सम्मिलित होता है जिसे प्रोटीन की आवश्यकता नहीं होती. वैज्ञानिक रूप से किसी व्यक्ति के भोजन में प्रोटीन की उचित मात्रा निर्धारित करने के लिए कई पहलुओं का ध्यान रखना होता है. इसके लिए सबसे पहले उस व्यक्ति की उम्र, लिंग, उसकी शारीरिक सरंचना (बॉडी कम्पोजीशन), उसकी क्रियाशीलता (एक्टिविटी लेवल), उसका शाकाहारी या मांसाहारी होना और उसके भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा जानना बहुत ज़रूरी होता है. इसके लिए कुछ ख़ास तरह के परीक्षण किये जाते हैं और उस व्यक्ति के खान-पान और उसकी जीवन शैली के बारे में पूरी जानकारी लेनी होती है. इन परीक्षणों के बारे में मैं पहले के कुछ लेखों में बता चुका हूँ जिनका लिंक इस लेख के आखिरी में दिया गया है. इस विधि से भोजन में प्रोटीन की मात्रा निर्धारित करने पर पता चलता है कि इससे और वजन से निर्धारित की गयी प्रोटीन की मात्रा में आधे से दुगने तक का अंतर हो सकता है. यानि कि ऊपर बताये गए व्यक्ति जिसका वजन 70 किलोग्राम है, हो सकता है कि उसके भोजन में प्रोटीन की ज़रुरत मात्र 35 ग्राम हो या फिर ये 140 ग्राम भी हो सकती है. स्वास्थ से जुड़ी किसी भी स्थिति में अनुचित मापदंड के कारण परिणामों में इतना बड़ा अंतर होना स्वाथ्य के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि अगर आप अपनी ज़रुरत से कम प्रोटीन का सेवन कर रहे हैं तो आपको इसकी कमी से होने वाले नुक्सान हो सकते हैं और अगर ये मात्रा आपकी ज़रुरत से अधिक है तो भी ये आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है.

पिछले कुछ सालों में फिटनेस के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण कुछ लोगों ने अपनी जीवन शैली में काफी सुधार किये हैं. एक्सरसाइज के साथ-साथ उन्होंने अपने खाने की आदतों में भी बहुत बदलाव किये हैं. वो अब फुल क्रीम दूध की जगह स्किम्ड मिल्क लेने लगे हैं, वाइट ब्रेड की जगह ब्राउन ब्रेड या होल व्हीट ब्रेड का सेवन करने लगे हैं, ब्राउन राइस की खपत भी पहले से बढ़ गयी है, लोग फाइबर वाले बिस्किट खाने लगे हैं, जंक फ़ूड से परहेज करने लगे हैं और प्रोटीन की कमी पूरी करने के लिए प्रोटीन शेक, प्रोटीन बार और प्रोटीन बॉल्स लेने लगे हैं. प्रोटीन के अच्छे प्राकृतिक स्रोत बहुत सीमित होने के कारण और उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ जाने के कारण तरह-तरह के प्रोटीन उत्पाद बाजार में मिलने लगे हैं. इनमें मुख्य रूप से व्हे, कैसीन, सोया, पी, हेम्प और एग प्रोटीन आते हैं. बाजार में मिलने वाले सभी फ़ूड सप्लीमेंट का 85 से 90 प्रतिशत कारोबार प्रोटीन पाउडर और प्रोटीन बार की वजह से होता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 2019 में दुनिया में प्रोटीन उत्पादों का बाजार क़रीब 14 अरब अमरीकी डॉलर का था और जैसे-जैसे लोगों में अपने स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, निकट भविष्य में इसके कई गुना बढ़ने की संभावनाएं भी बढ़ गयी हैं. प्रोटीन की बढ़ती मांग के चलते कई मल्टी-नेशनल कम्पनियाँ अपने-अपने प्रोटीन उत्पादों के साथ बाजार में उतर चुकी हैं. इनमे से कुछ विश्वस्तरीय कम्पनियाँ नेटवर्क मार्केटिंग के ज़रिये न केवल अपने उत्पादों को ग्राहक तक पहुँचा रही हैं बल्कि वो उन्हें इससे मोटी कमाई का प्रलोभन भी दे रही हैं. प्रोटीन के कारोबार में अच्छी कमाई होने के कारण हर छोटे-बड़े शहर में आये दिन फ़ूड सप्लीमेंट के नाम से सैकड़ों दुकाने खुल रही हैं और इन पर कोई रोक न होने के कारण इनकी सख्यां लगातार बढ़ती जा रही है. इन दुकानों पर तमाम देसी-विदेशी ब्रांड्स के अलग-अलग आकार के रंग-बिरंगे डिब्बे सजाये जाते हैं और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए इनका प्रचार फ़िल्मी कलाकारों, मॉडल्स और नामचीन खिलाड़ियों को ब्रांड अम्बैसडर बना कर किया जाता है. प्रोटीन के बारे में विशेष जानकारी न होने के बावज़ूद ये अपनी प्रसिद्धि का फायदा उठाते हैं और अपने उत्पाद के बड़े-बड़े दावे करते हैं. इसके प्रचार के लिए कम्पनियाँ इन्हें मोटी रकम देती हैं और ग्राहक कुछ तहक़ीक़ात किये बिना इन सप्लीमेंट का सेवन करने लगते हैं. कई प्रोटीन सप्लीमेंट के डिब्बों पर ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए स्टेरॉइड का दुरूपयोग करने वाले बॉडीबिल्डर की फोटो लगाई जाती है. ऐसा होने से नौजवान प्रोटीन की बजाये इन ख़तरनाक दवाओं का इस्तेमाल करने के लिए ज़्यादा प्रेरित होते हैं. ज़्यादातर प्रोटीन सप्लीमेंट के डिब्बों पर लगे लेबल्स को किसी जानी मानी कंपनी से चुरा कर कॉपी-पेस्ट किया जाता है और इनकी कोई लैब टेस्टिंग न होने के कारण ग्राहक बहुत आसानी से इनके झांसे में आ जाते हैं. कुछ सप्लीमेंट बनाने वाली कम्पनियाँ इन डिब्बों पर किसी सर्टिफिकेट की मोहर लगा कर अपने उत्पाद को दूसरे से बेहतर होने का दावा करती हैं जबकि हकीकत तो ये है कि इनमें से ज़्यादातर सर्टिफिकेट को बहुत आसानी से खरीदा जा सकता है. प्रोटीन के कारोबार की सबसे गंभीर समस्या ये है कि कुछ कम्पनियाँ अपने उत्पाद को सस्ता और प्रभावी सिद्ध करने के लिए इसमें ख़तरनाक स्टेरॉयड की मिलावट कर देती हैं. उनके लेबल पर इसका ज़िक्र न होने की कारण ऐसे सप्लीमेंट का सेवन करने वाले अनजाने में इन दवाओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं का शिकार बन जाते हैं और कई बार इन मिलावटी सप्लीमेंट का प्रयोग करने से खिलाड़ी डोपिंग में फंस जाते हैं.

लगभग सभी तरह के प्रोटीन सप्लीमेंट में पायी जाने वाली एक और तकनीकी त्रुटि इन सप्लीमेंट के लेबल पर सुझाई गयी इनकी मात्रा यानि प्रोटीन की डोज़ से जुड़ी है. इन सप्लीमेंट को बनाने वाली ज़्यादातर कंपनियों के अनुसार इनके डिब्बे में मौजूद स्कूप को दिन में दो बार लेना होता है.अब मान लीजिये कि अगर किसी व्यक्ति को एक दिन में 70 ग्राम प्रोटीन की ज़रुरत है और सप्लीमेंट पर लगे लेबल के अनुसार इसके एक स्कूप से आपको 25 ग्राम प्रोटीन मिलता है तो दिन में दो बार इसका प्रयोग करने से आपको 50 ग्राम प्रोटीन की पूर्ति होगी. अब अगर ये व्यक्ति पहले से प्राकृतिक स्रोतों द्वारा शेष 20 ग्राम प्रोटीन से अधिक प्रोटीन ले रहा हो तो इस सप्लीमेंट के दो स्कूप लेने पर उसके शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ सकती है और अगर वो इस प्रक्रिया को ज़्यादा दिनों तक जारी रखता है तो उसके स्वाथ्य पर इसका बुरा असर पड़ सकता है और यदि उसके भोजन में शेष 20 ग्राम प्रोटीन भी नहीं मिलती है तो सप्लीमेंट के दो स्कूप लेने पर भी उसकी प्रोटीन की पूर्ति नहीं हो पायेगी. फ़ूड सप्लीमेंट इंडस्ट्री से जुड़ी इन अनियमितताओं को जड़ से ख़त्म करने के लिए मेडिसिन इंडस्ट्री की तरह इस इंडस्ट्री के लिए भी कड़े कानून बनाने होंगे. इसमें सबसे पहले फ़ूड सप्लीमेंट बनाने वाली कंपनियों पर नकेल कसनी होगी, अपने उत्पादों को बाजार में उतारने से पहले उन्हें कड़े लैब परीक्षणों से गुजरना होगा. उन पर लगे लेबल पर सप्लीमेंट में इस्तेमाल किये सभी तत्वों और उनकी सटीक मात्रा की जानकारी अंकित करनी होगी. इनके प्रचार में लगे बॉडीबिल्डर को स्टेरॉयड के सेवन की जानकारी देनी होगी और उसे एक डिस्क्लेमर की तरह डब्बे पर अंकित करना होगा. इसके बाद दवा की दुकान की तरह बिना लाइसेंस के फ़ूड सप्लीमेंट की दुकानों को खुलने से रोकना होगा और इन्हें चलाने के लिए वहां हर समय एक रजिस्टर्ड नुट्रिशनिस्ट या डाईटीशियन की मौजूदगी अनिवार्य होगी।

विश्व खाद्य दिवस पर विशेष : मोटा अनाज सेहत के लिए सर्वश्रेष्ठ

“विश्व खाद्य दिवस” के उपलक्ष में “बुद्धा पीस फाउंडेशन” व “माहेराज ग्लोबल संस्था” द्वारा एक बैठक का आयोजन किया गया जिसमें स्वयं सहायता समूह की ग्रामीण महिला किसानों व क्षेत्रीय कृषक उत्पादक संगठन से जुड़े कृषकों के बीच” बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर वातावरण व बेहतर जीवन” के वैश्विक विषय पर सभी उपस्थित लोगों का ध्यान आकर्षित किया गया। श्रीमती राज अग्रवाल, अध्यक्ष, माहेराज ग्लोबल संस्था ने महिलाओं को कुपोषण व स्वस्थ आहार संबंधित जानकारी देकर उनको अपने शिशु के पोषण व देखभाल संदर्भ उपयोगी बातें बताइए व साथ ही महिला किसानों को रागी व मोटा अनाज जैसे जो, ज्वार ,सामा, बाजरा जो पहले हमारे खान-पान का हिस्सा हुआ करते थे उनको अपने खाने में शामिल करने को कहा। साथ ही किसानों से उनकी खेती कर अपने संगठन के माध्यम से ज्यादा मात्रा में मोटा अनाज उपजा कर उसको मंडी करने का भी उपाय दिया । महिलाओं को मशरूम की खेती, सहजन की खेती व अन्य उत्पाद जिसमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है वह उगाने की सलाह दी जिससे घरेलू रूप से वह अपने परिवार को पौष्टिक आहार दे सकें। बाजार के मिलावटी तेल व मैदे से बनी चीजों के प्रति बढ़ते बच्चों के रुझान को भी सख्ती से रोकने का तरीका बताया। उन्होंने महिलाओं को देवी का रूप बताते हुए इशारा किया कि घर की सेहत और पीढ़ी के निर्माण में सबसे बड़ा योगदान महिलाओं का है और यदि महिला संकल्प लें के बाजार का खाना कम से कम खाना है और घर में स्वादिष्ट व पौष्टिक खाना खिलाना है तो आने वाली कई बीमारियों से घर दूर रहेगा।

 मृणाल अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, दिव्यभूमि कृषक उत्पादक संगठन ने कृषकों को व महिला किसानों को खेती में बेहतर उत्पादन संबंधी जानकारी दी व मिट्टी की जांच व खेत में अनावश्यक केमिकल का उपयोग ना करने की बात कही। उन्होंने मौजूदा खेती में रासायनिक उत्पादों के इस्तेमाल को घटाने पर जोर दिया और पर्यावरण की दृष्टि से किसानों का ध्यान जल संरक्षण और गाय के गोबर से खेत को उपजाऊ करने को कहा। इसी क्रम में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को संगठन से जोड़ने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने पर जोर दिया जिसमें संगठन किसानों को व महिलाओं को मशरूम की ट्रेनिंग व सहजन उगाने के लिए साधन व ग्रामीण क्षेत्र में कुटीर उद्योगों पर ध्यान , रोजगार व स्वरोजगार पैदा करने में संगठन अपने लोगों की पूरी तरह मदद करने व सहारा देने के लिए प्रतिबंध रहेगा । उन्होंने अपने किसानों को बीज उत्पादन के संबंध में भी प्रेरित किया ।

डॉ रजनीश त्यागी, राष्ट्रीय मंत्री ,राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच ने उपस्थित सभी कृषकों को पर्यावरण में अपना योगदान व खाने में क्या बनाना और क्या खिलाना है उस के संदर्भ में सभी से चर्चा की ।डॉ त्यागी ने बताया कि करोना जैसी महामारी में विश्व के अन्य देशों के आगे भारत में भारतीय खानपान व मसालों ने भारत के लोगों को बचा कर रखा जिससे सिद्ध होता है कि हमारे रसोई के नुस्खे जो दादी नानी के समय से चले आ रहे हैं वह कितने असरदार और प्रभावी हैं। उन्होंने महिलाओं से बहुत विषयों पर चर्चा की और उनको नमक और तेल की मात्रा को अपने रोज के खानपान में कम करने का सुझाव देते हुए डायबिटीज से संबंधित जीवन शैली पर आधारित बीमारियों पर भी सभी किसानों और महिलाओं का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने वापस घरों में चक्की के आटे और ताजा कुटे मसालों को उपयोग करने के लिए कहा और गांव में एक रूरल म्यूजियम की संरचना को आकार देने का भी सुझाव सभी के समक्ष रखा।

 कार्यक्रम का आयोजन होटल राजपूताना, बिराई ,सैया रोड पर हुआ जिसमें 70 प्रतिभागियों ने भाग लिया संगठन के मुख्य कार्यकारी  पदाधिकारियों में गीतम सिंह, नरेश ,रतीश शर्मा , मृगांग माधव त्यागी, मोनिका,धर्मवीर, अर्पित, हाकिम ,मनोज कुमार व संगठन कार्यकर्ता गण मौजूद रहे ।महिलाओं में रानी, स्वर्णा माहेराज स्वयं सहायता समूह, नगला तेजा, बीना ,रागिनी माहेराज स्वयं सहायता समूह, नगला तेजा, नीरज, गांव खादर, योगिनी माहेराज स्वयं सहायता समूह, उजाला, नगला केसरी ,दिव्या माहेराज स्वयं सहायता समूह, रेखा देवी, नगला ङहर, रिधि माहेराज स्वयं सहायता समूह, जय श्री, गांव दाढ़की, प्रतीक्षा महिला स्वयं सहायता समूह, अंजू ,गांव खादर, प्रतिभा महिला स्वयं सहायता समूह, व रुकमा देवी, मधु शर्मा ,गीता ,पूजा ,रागिनी ,सुमन राजपूत, सीता ,गुड्डी देवी ,माला देवी, रेखा देवी ,मोहन देवी ,अंजू ,पूजा, हेमलता, पूनम ,मधु ,शशि, शारदा, साधना ,गुलाब देवी ,गौरी ,रूपवती किरण देवी ,रमा देवी, ललिता देवी मौजूद रहीं।

व्यंग्य : भैंसे की व्यथा कथा

संजीव जायसवाल ‘संजीव’

आ. सम्पादक जी, सादर प्रणाम,

मैं कालू राम अध्यक्ष, अखिल भारतीय भैंसा संघ इस पत्र के माध्यम से अपने भैंसा समुदाय की व्यथा कथा सुनाना चाहता हूँ. इस देश में रंगभेद की कुरीति का सबसे बड़ा शिकार हम लोग ही हुए है लेकिन किसी ने भी कभी हमारी कोई सुध नहीं ली. अब देखिये अक्खा इंडिया दूध पीता है हमारी घरवालियों का और जयकारा बोला जाता है गऊ माता का. हमारी भैसों को माता तो दूर कोई मौसी या बुआ तक नहीं बोलता. गली-गली गो-रक्षक मुस्तैद हैं. गऊ माता की रक्षा के लिए वे प्राण ले भी लेंगे और दे भी देंगे लेकिन भैंस रक्षक शब्द तो किसी की डिक्शनरी में ही नहीं है. दूध पियें भैंस का और रक्षा करें गऊ की इससे बड़ी अनीति और क्या हो सकती है?

हम सब गांधीजी की तरह अहिंसा के पुजारी हैं शायद इसीलिए इस देश में उनकी ही तरह हमारी भी कोई पूछ नहीं है. गाय लात मारेगी तो बड़े प्रेम से कहेंगे कि दुधारू गाय की लात खानी ही पड़ती है. उसका बेटा सांड छुट्टा घूमता है और राह चलतों को पटक-पटक कर मारता है लेकिन उसे भी कोई कुछ नहीं कहता.  बड़े खानदान का चिराग जो ठहरा. इसके उलट आपने कभी किसी भैस को दुलत्ती मारते नहीं सुना होगा लेकिन हमारी शराफत की तारीफ करने के बजाय अक्ल बड़ी या भैंस कहकर मजाक उड़ाया जाता है. मैं पूछता हूँ कि गाय के पास कितनी बडी अकल होती है जो उसे पूजनीय बना देती है? यही नहीं हमारे रंग का यह यह कहकर भी मजाक उड़ाया जाता है की करिया अक्षर भैंस बराबर.  ठीक है हम लोग अनपढ़ ही सही, मगर गाय कौन सी यूनिवर्सिटी में पढ़ी है, कोई बता सकता है?

विज्ञान तक साबित कर चुका है कि जीव जंतुओं को तो छोड़ो पेड़-पौधे तक संगीत का आनंद लेते हैं. लेकिन यहाँ भी हम लोग रंग भेद का शिकार हैं. स्कूलों तक में पढ़ाया जाता है कि भैंस के आगे बीन बजाओ भैस खड़ी पगुराय. मैं जानना चाहता हूँ कि क्या किसी ने गाय को बीन के आगे डांस करते देखा है? अगर नहीं तो केवल हमारा मजाक ही क्यों उड़ाया जाता है? 

और तो और माल ढोते हैं हम लेकिन गाडी का नाम होगा बैलगाड़ी. अगर इसका ही नाम भैंसागाड़ी रख देते तो हमारे जख्मों में कुछ मरहम लग जाता. लेकिन नहीं, हम काले है इसलिए हमारी कोई पूछ नहीं. कहाँ तक कहें पूंछ तलक में भी भेदभाव किया जाता है. यमराज के साथ अंतिम यात्रा पर ले जाने के लिए आते हैं हमारे भाई लेकिन समझाया जाता है कि वैतरणी गऊ की पूछ पकड़ कर पार कर पाओगे. इसलिए गऊ दान करो. अरे, जब जा रहे हो भैंसा पर बैठकर जो कुछ भी पार कराना है भैंसा ही पार कराएगा. इसलिए भैंसा दान होना चाहिए लेकिन गाय ने यहाँ भी हमारा हक छीन लिया.

हमारे साथ भेदभाव तो आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था. सबसे पुरानी पार्टी ने अपना चुनाव चिन्ह रखा ‘दो बैलों की जोड़ी’. वह जब्त हो गया तो ‘गाय-बछड़ा’ ढूँढ लाए. भैंसों की जोड़ी या भैंस और पड़वा के बारे में सोचा तक नहीं. आज की सबसे बड़ी पार्टी भी कोई कम नहीं. कीचड़ में दिन भर लोट लगाएं हम और चुनाव चिन्ह बना लिया कीचड़ में कभी कभार खिलने वाले फूल को. अगर हमारे बारे में सोचते तो हम संख्याबल पर हाथी को भी तगड़ी टक्कर दे देते. और तो और हमारी पीठ पर सवारी कर, हमारा दूध बेच माल काटने वालों ने भी हमारा ध्यान नहीं रखा और चुनाव चिन्ह ले आए साइकिल.

कहाँ तक गिनाए? इस अनीति की लिस्ट बहुत लंबी है. हम लोगों ने बहुत सहा है लेकिन अब और  सहन नहीं होता. छोटे छोटे लोग कुकुरमुत्ते की तरह अपना-अपना दल बना रहे हैं और बड़े बड़े सत्ताधारी उनके आगे दुम हिला रहे हैं. हमारे पास तो शक्ति भी है और संख्या भी. बस कमी है तो एकता की इसलिए हमने अखिल भारतीय भैंसा संघ की स्थापना की है. देश भर के भैंसे हमारे झंडे के तले जमा हो रहे हैं. हमारी मांगें हैं कि हम सदियों से शोषित व वंचित रहे हैं इसलिए 1. हमें शोषित वर्ग का विशेष दर्जा प्रदान किया जाए 2. हमारे संघ को मान्यता दी जाए 3. भैंस की पीठ पर सवारी करना संज्ञय अपराध घोषित किया जाए 4. जाति सूचक मुहावरों का प्रयोग पूर्णतया प्रतिबंधित किया जाए 5. प्रत्येक गांव में भैंस सेवा केंद्र खोलकर भैंस रक्षक तैनात किए जाएं और 6. हमारे एक प्रतिनिधि को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए क्योंकि  हम गधों से हर तरह  से योग्य है.

  अगर इतना सब संभव न हो सके तो केवल हमें शोषित वर्ग का विशेष दर्जा दिलवा दीजिए. फिर देखिएगा सारे सफेद खद्दरधारी हम कालों के आगे न केवल अपनी दुम हिलाएंगे बल्कि हमारे गोबर से घर लीप भैंस मूत्र का पान करने हेतु कटाझुज्झ मचा देंगे।

शेष कुशल है. शुभकामनाओं सहित,

आपके आशीर्वाद का आकांक्षी,

कालूराम अध्यक्ष अखिल भारतीय भैंसा संघ

गांधी- सावरकर रिश्ता : सावरकर ने गांधी जी के कहने पर अंग्रेजों को दया याचिका दी

स्क्तंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की आजादी की लड़ाई में भूमिका को लेकर कई बार विवाद खड़े होते रहे हैं। भाजपा जहां उनको प्रखर राष्ट्रवादी मानती है, वहीं कांग्रेस समेत विपक्ष अंग्रेजों से उनके माफीनामे को लेकर सवाल खड़े करती रहती है। गांधी जी और सावरकर में आपस में रिश्ता तो था लेकिन रक्षा मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह पर उनके सम्बन्धों पर नया खुलासा करके चौंका दिया है। राजनाथ सिंह ने दावा किया कि सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने पर अंग्रेजों को दया याचिका दी थी। जिसके बाद विपक्षी एकबार फिर भाजपा पर इतिहास को तोड़- मरोड़कर पेश करने का आरोप लगा रहे हैं।

राजनाथ सिंह ने उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक ‘‘विनायक दामोदर सावरकर सावरकर हू कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन’’ के विमोचन कार्यक्रम में कहा कि उन्होने महात्मा गांधी के कहने पर अंग्रेजों को दया याचिका दी थी। कार्यक्रम में सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी हिस्सा लिया। राजनाथ सिंह ने कहा, ‘‘ एक खास विचारधारा से प्रभावित तबका विनायक दामोदर सावरकर के जीवन और विचारधारा से अपरिचित है और उन्हें इसकी सही समझ नहीं है, वे सवाल उठाते रहे हैं। ’’ राजनाथ सिंह ने कहा कि हमारे राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में वाद प्रतिवाद हो सकते हैं, लेकिन उन्हें हेय दृष्टि से देखना किसी भी तरह से उचित और न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है. विनायक दामोदर सावरकर महान स्वतंत्रता सेनानी थे, ऐसे में विचारधारा के चश्मे से देखकर उनके योगदान की अनदेखी करना और उनका अपमान करना क्षमा योग्य नहीं है। विनायक दामोदर सावरकर महानायक थे, हैं और भविष्य में भी रहेंगे। दूसरी ओर भारत के संस्कृति मंत्रालय ने मंगलवार को संसद में बताया था कि विनायक दामोदर सावरकर ने कभी भी अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगी थी या नहीं, ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। पूरे मामले में ओबेसी ने भाजपा पर इठस को तोड़ने- मरोड़ने का आरोप लगाया। जिसके बाद अब नए सिरे से विवाद शुरू हो सकता है।

टी-20 विश्व कप में विराट पूरा कर सकते हैं अपना और देश का सपना

आईपीएल 2021 के प्ले ऑफ में केकेआर से मुक़ाबले में जैसे- जैसे आरसीबी के हाथों से मैच निकलता जा रहा था, विरत कोहली की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैच में एक समय ऐसा भी आया जब विराट की अंपायर से झड़प हो गई। नतीजा अंत में विराट की इच्छा के विपरीत रहा। आरसीबी के साथ उनका कप्तानी का सफर बिना ट्राफी जीते ही खत्म हो गया। टी-20 विश्वकप को शुरू होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं। विश्व कप के बाद विराट 20-20 में टीम इंडिया की कप्तानी छोडने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं। दुनियाँ की नंबर वन टीम इंडिया का कप्तान होने के बावजूद विराट कोहली के हिस्से आज तक कोई भी बड़ी ट्राफी हाथ नहीं आई है। ऐसे में क्या विराट विश्व कप जीतकर इस धारणा को तोड़ पाएंगे। उनके सामने ये करियर की बड़ी चुनौती है।

कोहली ने बतौर बल्लेबाज तो जबरदस्त प्रदर्शन किया है, लेकिन बतौर कप्तान धोनी और गांगुली के स्तर को छूने में अभी तक असफल रहे हैं। अगर आरसीबी के लिए बतौर कप्तान विराट कोहली पर नजर डालें तो देखेंगे कि साल 2011 में डेनियल विटोरी के बाद टीम का कप्तान बनाया गया था। तब से लेकर अब तक उन्होंने 11 सीजन में टीम की कप्तानी की। इस दौरान आरसीबी का बेस्ट प्रदर्शन साल 2016 में रहा था जब ये टीम उप-विजेता बनी थी और उस सीजन में विराट कोहली ने 4 शतक के साथ 900 से ज्यादा रन बनाए थे। लेकिन उनकी कप्तानी में आरसीबी ट्राफी नहीं जीत सकी।

पूरे मामले में स्टार स्पोर्ट्स से बात करते हुए, गावस्कर ने स्वीकार किया कि कोहली को बिना खिताब के खत्म होते देखना निराशाजनक है लेकिन टीम में उनके बहुमूल्य योगदान के बारे में कोई संदेह नहीं है। उन्होंने कहा, “यह निश्चित रूप से (निराशाजनक) है। हर कोई ऊंचाई पर करियर समाप्त करना चाहता है। लेकिन ये चीजें हमेशा आपकी इच्छा या आपके प्रशंसकों की इच्छा के अनुसार नहीं होती हैं। “देखिए सर डॉन ब्रैडमैन के साथ क्या हुआ। बस 4 रन की जरूरत थी (100 औसत के लिए), वह अपनी आखिरी पारी में शून्य पर आउट हो गए। देखिए सचिन तेंदुलकर के साथ क्या हुआ। वह शतक के साथ समाप्त करना चाहते थे (अपने आखिरी टेस्ट में) लेकिन उन्होंने अपने 200वें टेस्ट मैच में 79 रन बनाए।

उधर मैक्सवेल ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा, “आरसीबी के लिए यह सीजन अच्छा रहा. हम वहां तक नहीं पहुंच पाए, जहां पहुंचना था. लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि हमारे लिए यह आईपीएल अच्छा नहीं रहा. लेकिन फिर भी सोशल मीडिया पर लोग टीम को लेकर बेकार बातें कर रहे हैं, जो शर्मनाक है. उन लोगों को भी यह समझना चाहिए हम भी इंसान हैं, जो हर दिन अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहे हैं. ऐसे में उन लोगों से बस यही कहना चाहूंगा कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने के बजाए बेहतर इंसान बनें।” ऐसे में पूरे देश कि निगाहें टी- 20 विश्व कप पर लगीं जिसमें विराट कोहली सारे मिथक तोड़कर अपना और देश का ट्राफी जीतने का सपना पूरा कर सकें।

विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया डॉक्टर कोटनीस का जन्मदिन

डॉक्टर द्वारिकानाथ कोटनीस के जन्मदिवस को “बुद्धा पीस फाउंडेशन” द्वारा विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, “डॉक्टर विदाउट बॉर्डर” नेमिनाथ होम्योपैथिक मेडिकल हॉस्पिटल एंड रिसर्च केंद्र आगरा में आयोजित की गई। जिसमें बड़ी संख्या में विशेषज्ञ एवं मेडिकल छात्र छात्राओं ने भागीदारी की।

संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए उत्तर प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अध्यक्ष एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ रामबाबू हरित ने कहा कि भारत का विश्व शांति में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है पुरातन काल में महात्मा बुद्ध ने विभिन्न देशों में शांति और सद्भाव का संदेश दिया। उसी का अनुसरण करते हुए डॉक्टर  कोटनीस ने चीन जैसे देश में युद्ध के समय जाकर शांति स्थापना में सहयोग किया। उन्होंने कहा कि आज भी भारत की नीति विश्व शांति और सद्भाव की है

इस अवसर पर अमेरिका की डेनिस ओब्रिएन ने कहा कि डॉ की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है डॉक्टर देव तुल्य है उनके पास आते ही और सहानुभूति प्रदर्शित करते ही, मरीज को आधी बीमारी दूर हो जाती है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर रेणुका डंग ने डॉक्टर कोटनीस की जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला और बताया किस तरह भारत से 5 डॉक्टर चीन जापान युद्ध के समय चीन की सहायता करने गए जिसमें से 4 डॉक्टर लौट आए लेकिन डॉक्टर कोटनीस चीन में ही मानवता की सेवा के लिए डटे रहे। संगोष्ठी में नेमिनाथ मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ प्रदीप गुप्ता ने कहा मानव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है उन्होंने कहा कि महामारी में डॉक्टर जान हथेली पर रखकर जो मानव सेवा करते हैं वह वास्तव में अनुकरणीय हैं। संगोष्ठी में ऐबसोलम ओमांरेवा(कीनिया), रक्षिता कूसून (मॉरीशस) राजेंद्र यादव (कोटनीस मेमोरियल कमेटी)मुम्बई, अजय गाबा (दुबई) स्क्वाड्रन लीडर ए के सिंह, ब्रिगेडियर मनोज कुमार, डॉ राजीव उपाध्याय, डॉ वेद त्रिपाठी, डॉ विनय मलिक(बालासोर), डॉ ओंटो माइकल(अमेरिका), गौरी शंकर सिकरवार, डॉ वीरेंद्र प्रकाश, कर्नल डॉक्टर राजेश चौहान, रतीश शर्मा, ललित त्यागी (कलकत्ता), निर्मल वैद्य (देहरादून), संजीत शर्मा(हैदराबाद)  आदि ने विचार प्रकट किए। संगोष्ठी में संजना सिंह, अनामिका मिश्रा, राज परिहार, मुकेश शर्मा, एच एल गुप्ता, डॉ बृजेश चाहर, डॉ पी के उपाध्याय, भरत सोलंकी, राहुल चौधरी, मृगांग त्यागी, आशीष गौतम आदि उपस्थित रहे।

संगोष्ठी के मुख्य आयोजक डॉ रजनीश त्यागी ने अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापन दिया तथा पर आराम में गोष्टी के आयोजन का प्रयोजन भी उद्घाटित किया। संचालन रतीश शर्मा ने किया।