Sunday, June 8, 2025
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युवा भारत आने वाले समय में हो जाएगा बुजुर्ग

भारत की गिनती अभी तक दुनियाँ के सबसे जवान देशों में होती है। यानि विश्व की सबसे युवा आबादी हमारे देश की है लेकिन आने वाले समय में ये तमगा हमसे छिन सकता है। ‘नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट के अनुसार न सिर्फ हमारी आबादी की दर कम हो रही है बल्कि आने वाले समय में बुजुर्गों की संख्या में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक देश का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.2 के पिछले रेट से घटकर 2.0 हो गया है। गौरतलब है कि फर्टिलिटी रेट 2.1 रहे तो माना जाता है कि आबादी कमोबेश स्थिर रहती है। चूंकि देश में राष्ट्रीय प्रजनन दर 2.0 पर आ गई है, यानी बैलेंसिंग रेट से भी नीचे चला गया है तो कुछ हलकों में ऐसी चिंता भी जताई जाने लगी है कि देश की आबादी अब बढ़ने के बजाय कहीं घटने न लगी हो। गौरतलब है नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट और जनगणना के आंकड़ों में फर्क होता है। जनगणना में देश की पूरी आबादी शामिल रहती है जबकि एनएफएचएस के दायरे में रिप्रॉडक्टिव उम्र के लोग ही आते हैं। इसलिए एनएफएचएस की रिपोर्ट को उतना प्रामाणिक नहीं माना जाता, जितना सेंसस के आंकड़े माने जाते हैं। इसके बावजूद इन आंकड़ों की सचाई में संदेह नहीं किया जा सकता। वजह यह कि ये आंकड़े ऐसी कोई बात नहीं कह रहे, जो अप्रत्याशित हो। इससे पहले की तमाम रिपोर्टों में यह बात आती रही है कि देश में फर्टिलिटी रेट कम हो रहा है। इसलिए मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि एनएफएचएस-5 के आंकड़े देश की वास्तविक स्थिति ही दिखा रहे हैं। फिर भी फर्टिलिटी रेट के 2.1 से जरा सा नीचे जाने का यह मतलब नहीं है कि देश की आबादी तत्काल प्रभाव से कम होने लगेगी। इसकी वजह यह कि भले लोग बच्चे कम पैदा करें, लेकिन रिप्रॉडक्टिव एज में लोग अभी ज्यादा हैं। इसलिए देश की जनसंख्या तुरंत कम नहीं होगी। हां, यह जरूर है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो कुछ वर्षों में पीक पर पहुंचने के बाद आबादी कम होने लगेगी। मगर यह कोई नई या अनोखी बात नहीं है। ऐसा होता है। दुनिया के अलग-अलग देशों में देखा गया है, आबादी पहले तेजी से बढ़ती है, उसके बाद इसकी रफ्तार कम होने लगती है और फिर धीरे-धीरे वह बिंदु आता है जहां से आबादी घटने लगती है। ऐसे में जब प्रजनन दर घटेगी तो देश के युवा जब वृद्धावस्था की ओर जाएंगे तो फिर देश में युवाओं की संख्या खुद ब खुद कम हो जाएगी। ऐसे में आने वाले समय में भारत भी बुजुर्ग देशों में शुमार हो जाएगी।

चुनावों की आहट के साथ दस्तक दे रहा नया कोरोना

121 करोड़ लोगों के टीकाकरण के बाद उठ रहे इसके कारगर होने पर सवाल

आनन्द अग्निहोत्री

सब कुछ सामान्य, निर्बाध कार्यक्रम और समारोह, गैरप्रतिबंधित आवागमन, अतर्राष्ट्रीय उड़ाने शुरू, कहीं कोई दहशत नहीं, खुशनुमा ढर्रे पर चलने लगी दिनचर्या के बीच एक बार फिर कोरना के नये वैरियंट ओमिक्रॉन की दस्तक, सिहरन पैदा करने के लिए काफी है। भले ही अभी तक भारत में इसका पदार्पण नहीं हुआ लेकिन दुनिया के कई देश इसकी चपेट में आने लगे हैं। कई देशों ने दक्षिण अफ्रीका से आने वालों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस वैरियंट का प्रसार दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ है। गनीमत है कि दक्षिण अफ्रीका से बंगलुरु आये दो यात्रियों में ओमिक्रॉन की पुष्टि नहीं हुई, वे डेल्टा वैरियंट से ही पीड़ित हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम निरापद हैं। पिछली दो लहरें बताती हैं कि इस वायरस का प्रसार बहुत तेजी से होता है। पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर के डेल्टा वैरियंट ने देश में जितना कहर ढाया, उसे लोग कभी भूल नहीं सकते। तीसरा वैरियंट ओमिक्रॉन कितना घातक है, इसका अंदाज इस बात से लगाया जाता है कि डेल्टा वैरियंट ने 100 दिन में जितने क्षेत्र को दायरे में लिया, नये वैरियंट ने 15 दिन में ही उतने क्षेत्र को चपेट में ले लिया है। खास बात यह कि इस वैरियंट ने तब दस्तक दी है जब अगले साल की शुरुआत में भारत के पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं और चुनावी गहमागहमी बढ़ने लगी है।

यह सर्वविदित है कि पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में इससे निपटने की गाइडलाइंस की किस तरह धज्जियां उड़ायी  गयीं और इसका कितना खामियाजा हमने भुगता। दूसरी लहर में हुई मौतों की टीस बनी हुई है। भले ही जिम्मेदार लोगों ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि सब कुछ चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुरूप हुआ लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चुनाव जीतने के लिए गाइडलाइंस को हाशिये पर रख दिया गया। फिर वही हालात हैं। भले ही अभी चुनाव घोषित नहीं हुए हैं लेकिन अगर घोषित कर दिये गये तो विजय की लालसा हमें एक बार फिर खतरे के मुहाने पर लाकर खड़ा कर सकती है। हालांकि केन्द्र सरकार इस वैरियंट का संज्ञान ले लिया है और उससे बचने की कवायद शुरू कर दी गयी है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों ने तो प्रतिबंध भी लागू कर दिये हैं। वैसे भी देश अभी कोरोना के डेल्टा वैरियंट से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है। महाराष्ट्र, केरल और कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों में कोविड के रोगी अनवरत मिल रहे हैं।

माना जा रहा था कि कोरोना की तीसरी लहर नहीं आयेगी और आयी भी तो भारत  इसका सामना कर लेगा क्योंकि देश में अब तक 121 करोड़ लोगों को कोविशील्ड और कोवैक्सीन के टीके लगाये जा चुके हैं। इस लिहाज से लोगों की इम्युनिटी पावर बढ़ चुकी है, लेकिन ओमिक्रॉन की घातक शक्ति के देखते हुए यह कहना अभी मुश्किल है कि ये टीके इस वैरियंट के खिलाफ कितने कारगर सिद्ध होंगे। स्वयं कोविशील्ड और कोवैक्सीन के निर्माताओं ने इस ओर इशारा किया है और अपने वैज्ञानिकों को इस बारे में अध्ययन करने के निर्देश दिये हैं। भारत इस वैरियंट से कहां तक सुरक्षित रह सकेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह जरूर है कि सरकार सचेत रही और नागरिकों ने पूरी तरह सहयोग किया तो इस पर काबू पाया जा सकता है। देश में जो माहौल चल रहा है उसमें अगर एक भी ओमिक्रॉन पीड़त यहां पहुंचा तो इसका प्रसार होते देर नहीं लगेगी। अगर ऐसी स्थिति पैदा हो तो चुनाव कुछ समय के लिए टाल देना श्रेयस्कर रहेगा, अन्य प्रतिबंधों का तो स्वेच्छा से पालन किया ही जाना चाहिए।

संविधान दिवस पर विशेष : विलक्षण है भारतीय संविधान

अरविंद जयतिलक

भारतीय संविधान के चरित्र व स्वरुप पर गौर करें तो वह एक मृदु संविधान की सभी विशेषताओं से लैस है। मृदु लक्षणों की वजह से ही उसका प्रतिनिधित्यात्मक चरित्र लोकतंत्र का हिमायती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व निष्पक्ष चुनाव उसकी शीर्ष प्राथमिकता में है। मृदु गुणों की वजह से ही उसमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, शक्तियों के वितरण के अलावा अभिव्यक्ति, भाषा, धर्म, सभा और संपत्ति की स्वतंत्रता समाहित है। मौजूदा संविधान भारत राज्य का लिखित और विशाल संविधान है। सच कहें मो विदेशी संविधानों के प्रभाव ने उसे आवश्येेकता से अधिक मृदु बना दिया है। भारतीय संविधान में ब्रिटिश संविधान की अनके बातें समाहित हैं, जैसे-संसदीय शासन व्यवस्था, भारत के राष्ट्रपति का संवैधानिक मुखिया होना, केंद्रीय मंत्रिमंडल का लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होना और कानून का शासन होना इत्यादि। गौरतलब है कि इंग्लैण्ड में 1649 की हिंसात्मक क्रांति और 1688 की संविधानिक क्रांति से उदारवादी राज्य की स्थापना की नींव पड़ी। हाब्स जो निरंकुश शासन के समर्थन के लिए बदनाम है, उसने भी उदारवादी राज्य नीति के मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। ग्रीन, ब्रैडले और बोसांके ने उदारवादी विचारों को समष्टिवादी रुप देने की कोशिश की। बीसवीं सदी में राज्यों का उदारवादी चरित्र स्थायी भाव बन गया। भारतीय संविधान भी उदारवाद का खोल पहना लेकिन उसका चरित्र और स्वरुप पूरी तरह मृदु है। ब्रिटेन की तरह संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से मौलिक अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय कनाडा के संविधान से भारत का राज्यों का संघ होना, आयरलैंड के संविधान से राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांत, आस्टेªलिया के संविधान से समवर्ती सूची, जर्मनी के संविधान से राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों को स्रोत तथा दक्षिण अफ्रीका के संविधान से संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया जैसी महत्वपूर्ण बातें ग्रहण की गयी है। गौर करें तो भारतीय संविधान की यह सभी विशेषताएं भारतीय संविधान को उदारवादी कम मृदु राज्य ज्यादा बनाती हैं। भारतीय संविधान ने एक मृदृ राज्य की तरह भारत में सभी नागरिकों को ढ़ेरों अधिकार दे रखा है जिससे उन्हें अपने व्यक्तित्व को संवारने की आजादी मिली हुई है। भारतीय संविधान में जाति, धर्म, रंग, लिंग, कुल, गरीब व अमीर आदि के आधार सभी समान है। जनमत पर आधारित भारतीय संविधान ने संसदीय शासन प्रणाली में सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान किया है। सत्ता प्राप्ति के लिए खुलकर प्रतियोगिता होती है और लोगों को चुनाव में वोट के द्वारा अयोग्य शासकों को हटाने का मौका मिलता है। भारतीय संविधान ने राज्य के लोगों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों में अनुचित हस्तक्षेप करने का अधिकार केंद्र या राज्य सरकारों को नहीं दिया है। संविधान के तहत राजनीतिक दल सभाओं, भाषणों, समाचारपत्रों, पत्रिकाओं तथा अन्य संचार माध्यमों से जनता को अपनी नीतियों और सिद्धांतों से अवगत कराते हैं। विरोधी दल संसद में मंत्रियों से प्रश्न पूछकर, कामरोको प्रस्ताव रखकर तथा वाद-विवाद द्वारा सरकार के भूलों को प्रकाश में लाते हैं। सरकार की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखते हुए उसकी नीतियों और कार्यों की आलोचना करते हैं। भारतीय संविधान के मुताबिक संघीय शासन की स्थापना के बावजूद भी प्रत्येक नागरिक को इकहरी या एकल नागरिकता प्राप्त है और इससे राष्ट्र की भावनात्मक एकता की पुष्टि होती है। भारत का प्रत्येक नागरिक चाहे वह देश के किसी भी भाग में रहे भारत का ही नागरिक है। यहां संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह राज्यों की कोई पृथक नागरिकता नहीं है। धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने तथा धन का प्रबंध करने का अधिकार है। संविधान ने सुनिश्चित किया है कि शिक्षण-संस्थाओं को सहायता देते समय राज्य किसी शिक्षण संस्था के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करता है कि वह संस्था धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है। इसी तरह भारतीय नागरिकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार हासिल है। इस व्यवस्था ने भारतीय नागरिकों को शासन-प्रशासन से सीधे सवाल-जवाब करने की नई लोकतांत्रिक धारणा को जन्म दी है। इस व्यवस्था से सरकारी कामकाज में सुशासन, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ा है जिससे आर्थिक विकास को तीव्र करने, लोकतंत्र की गुणवत्ता बढ़ाने और भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है। सूचना के अधिकार से सत्ता की निरंकुशता पर भी अंकुश लगा है। भारतीय संविधान ने भारत के स्वरुप को एक मृदु राज्य में तब्दील कर दिया है। उसी का नतीजा है कि भारत के प्रत्येक राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ है। इन आयोगों को विधिवत सुनवाई करने तथा दंड देने का अधिकार प्राप्त है। एक मृदृ राज्य के रुप में तब्दील हो जाने के कारण ही सत्ता का विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्तर पर स्वशासन की व्यवस्था सुनिश्चित हुआ है। निश्चित रुप से मृदु राज्य के रुप में तब्दील होने से भारत का तीव्र गति से विकास हो रहा है और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता भी बनी हुई है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मृदु राज्य की वजह से भारत में रामराज्य आ गया है। सच तो यह है कि मृदु राज्य होने के नाते भारत कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है जिससे राष्ट्र की एकता, अखण्डता और सुरक्षा प्रभावित हो रही है। साथ ही अशांति, असुरक्षा और संघर्ष को बढ़ावा मिल रहा है। अपनी जनता को सुरक्षा एवं निर्भयता सुनिश्चित करवाना, कानून को पुष्ट करना एवं जो लोग उसे संचालित कर रहे हैं उनसे शक्ति की वैधता सुनिश्चित करवाना किसी भी सरकार का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व होता है। लेकिन आज अगर देश इन आधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध करवाने के प्रयास में विफल है तो निश्चित रुप से इसके अन्य कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण भारतीय संविधान का मृदृ होना भी है। गौर करें तो मृदृ संविधान की वजह से ही कानून का अनुपालन शिथिल हुआ है और उसका परिणाम यह हुआ है कि देश में आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, छद्म युद्ध, विद्रोह, विध्वंस, जासूसी गतिविधियों, साइबर क्राइम, मुद्रा-जालसाजी, कालाधन और हवाला जैसी चुनौतियों को बढ़ावा मिला है। मृदु संविधान होने के नाते ही भारत लंबे समय से अब तक बाहर से प्रायोजित आतंरिक सुरक्षा के चुनौतियों का सामना कर रहा है और धन, संपत्ति व जान-माल की क्षति के रुप में इसका भारी मूल्य चुका रहा है। मृदु संविधान के नाते जेहादी आतंकवाद और वामपंथी आतंकवाद का देश में विस्तार हुआ है। अलगाववादी शक्तियां ताकतवर हुई हैं। पोटा जैसे सख्त कानून जो आतंकवाद को कुचलने के लिए जरुरी था, उसे सांप्रदायिक राजनीतिक रंग देकर समाप्त करने की कोशिश हुई। मृदु संविधान के नाते भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है और भ्रष्टाचारी कानून के शिकंजे से बचने में कामयाब रहे हैं। राजनीतिक व सामाजिक मोर्चे पर भी कई तरह की समस्याएं खड़ी हुई हैं। भारतीय संविधान ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया है। लेकिन सच यह है कि मृदु संविधान की वजह से धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यकवाद के पोषण तक सिमट कर रह गयी है। आज देश के तमाम राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए छद्म धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर सामाजिक एकता को भंग करने की फिराक में हैं। यही नहीं वे खुलकर राष्ट्र के विरुद्ध जहर उगल रहे हैं और मृदु संविधान के नाते उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। मृदु संविधान की वजह से ही समाज विरोधियों को कड़ी सजा नहीं मिल पा रही है और देश में बच्चों, गरीबों और महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहा है। मृदु संविधान की वजह से जनसंख्यानीति भी नहीं बन पा रही है। नतीजा यह है कि देश में बेरोजगारी, गरीबी, भूखमरी और अपराध की समस्याएं लगातार गहरा रही हैं। मृदु संविधान के नाते ही अभी तक देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो सकी है और उससे सामाजिक और जननांकिय संतुलन गड़बड़ा गया है। आज भारत को मृदु संविधान के केंचुल से बाहर निकल नई राष्ट्रीय नीति व रणनीति अपनाने की जरुरत है ताकि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को नुकसान न पहुंचे। यह भी समझना होगा कि देश व संविधान समाज के सभी संकीर्ण स्वार्थों से उपर है और उसे सीमा से अधिक मृदु बनाना उसके अस्तित्व को चुनौती देना है।   

नवांकुर साहित्य सभा : ‘काव्यान्कुर 8’ और ‘ज़िन्दगी मुस्कुराएगी’ का लोकार्पण

नई दिल्ली : देश के नव-कलमकारों को काव्य के क्षेत्र में प्रोत्साहन हेतु समर्पित संस्था नवान्कुर साहित्य सभा ने नवान्कुर काव्य पाठ और पुस्तक लोकार्पण समारोह आयोजित किया। समारोह में बहुप्रतीक्षित नवान्कुरों के लिए प्रकाशित श्रंखला में आठवीं पुस्तक ‘काव्यान्कुर 8’ तथा संस्था के संस्थापक अध्यक्ष श्री अशोक कश्यप की दूसरी पुस्तक ‘ज़िन्दगी मुस्कुराएगी’ का लोकार्पण किया गया।

इंडिया हेबीटेट सेन्टर के गुलमोहर सभागार में आयोजित समारोह की अध्यक्षता हिंदुस्तान के वरिष्ठ शायर, साहित्यकार श्री दीक्षित दनकौरी ने की I मंच पर विराजमान अतिविशिष्ट अतिथियों में आकाशवाणी एक पूर्व निदेशक श्री हरिसिंह पाल, वरिष्ट दोहाकार श्री नरेश शांडिल्य, वरिष्ठ शायर- संचालक श्री अनिल मीत रहे I जिन्होंने अपने वक्तव्य में नवांकुरों को कविता को बेहतर बनाने के गुण बताये और उनका हौंसला बढाया I विशिष्ट अतिथियों में श्रीमती सीमा अग्रवाल, सुश्री रीता जय हिंद एवं श्रीमती सरोज बाला कश्यप रहीं I कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से कवि श्री अशोक कश्यप ने अपने मधुर स्वर में किया I प्रथम सत्र में ‘ज़िन्दगी मुस्कुराएगी’ का लोकार्पण हुआ। वरिष्ठ कवि श्री नरेश शांडिल्य जी ने पुस्तक और अशोक कश्यप के विषय में विस्तार से बताया। क्योंकि पुस्तक की भूमिका उन्होंने ही लिखी है। इसके बाद प्रकाशक श्री के शंकर सौम्य ने ‘ज़िन्दगी मुस्कुराएगी’ के विषय में अपने विचार रखे। दूसरे सत्र में ‘काव्यान्कुर 8’ पुस्तक का लोकार्पण हुआ।

इसमें देश के विभिन्न राज्यों से आए नवान्कुर सितारों ने अपना शानदार काव्य पाठ किया। जिनकी रचनाएँ ‘काव्यांकुर 8’ पुस्तक में चयनित हुई हैं। वो 16 नवान्कुर सोलह सितारे हैं: 1. राहुल मिश्रा, झांसी उ.प्र. , 2. ए आर साहिल, बिहार,  3. मनीषा बोस, दिल्ली, 4. डा. स्नेह लता, शाहजहांपुर, उ.प्र. 5. राजीव कपिल, रूडकी, उत्तराखंड, 6. आरती मनचंदा, नई दिल्ली,  7. मनीष शुक्ला, लखनऊ, उ.प्र., 8. प्रदीप भट्ट, नोएडा, उ.प्र. , 9. अनूजा मिश्रा ‘मनु’ लखनऊ उ.प्र., 10. विकास उपमन्यु, बिजनौर, उ.प्र., 11. अनंत ज्ञान, झारखंड, 12. हर्ष बाला, द्वारका, दिल्ली, 13. पारो चौधरी, गाज़ियाबाद, उ.प्र., 14. भगवत प्रसाद, शामली, उ.प्र., 15. जितेंद्र कुमार शर्मा, दिल्ली, 16. मनन तिवारी, द्वारका, दिल्ली I सभी मंचाशीन और विशिष्ट अतिथियों द्वारा नवान्कुर कवियों का अंग वस्त्र फूल माला बैज तथा प्रतीक चिह्न से अलंकरण किया गया और इस समस्त सम्मानित अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान संस्था के अध्यक्ष श्री अशोक कश्यप, एवं महासचिव श्री काली शंकर सौम्य ने अँग वस्त्र एवं मोती माला पहनाकर किया I कार्यक्रम में दिल्ली एन सी आर से कई जाने माने कवि एवं कवियत्रियों ने भी शिरकत की। जिनमे संस्था संरक्षक श्री रसिक गुप्ता, कुमार अनुपम, इब्राहीम अल्वी, मंजू शाक्या आदि शामिल रहे.

बेहतरीन मंच संचालन कवि जितेन्द्र प्रीतम एवं श्री काली शंकर सौम्य जी ने संयुक्त रूप में किया। श्री मनोज ठाकुर, श्री संजय कुमार गिरि, श्री जगदीश मीणा श्री अभिनव कश्यप ने कार्यक्रम में सहयोगी की भूमिका निभाई।

कला उत्सव में भारतीय संस्कृति के रूपों पर प्रस्तुति

एक्सपो के तहत मोनाल उत्तरांचल पूर्वांचल कला उत्सव के समापन समारोह में कलाकारों ने भारतीय संस्कृति के विभिन्न स्वरूपों पर प्रस्तुति देकर समा बांध किया। समारोह की सांस्कृतिक संध्या वरिष्ठ कलाकार राकेश कुकरेती को समर्पित की गई। मुख्य अतिथि डॉक्टर मीरा माथुर रजिस्टर भातखंडे विद्यापीठ व डॉक्टर अजय कुमार सिंह रावत वरिष्ठ वैज्ञानिक एनबीआरआई ने दीप प्रज्वलन किया।फिल्म निर्माता-निर्देशक मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने स्वर्गीय राकेश कुकरेती के बारे में बताया कि वह एक बहुत अच्छी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार व सभी विधाओं के ज्ञाता रहे। 1975 से हमारे साथ रंगमंच से जुड़े रहे। दूरदर्शन में कार्यरत रहकर भी समाज सेवा करते रहे। समापन दिवस पर सभी कलाकारों को सम्मानित किया गया। जिसमें प्रमुख रुप से यश भारती, ऋचा जोशी, नेहा श्रीवास्तव, जोया सिद्दीकी, रिचा तिवारी, मंदाकिनी बहुगुणा, आरती शुक्ला दीक्षित, रीना श्रीवास्तव, शालिनी गुप्ता, डॉ विकास श्रीवास्तव, निर्मल पाल, ब्रांड एंबेस्डर अंकिता बाजपेई, हर्षिता चतुर्वेदी, स्वरा त्रिपाठी की दादी गिन्नी सहगल की मम्मी सलीम खान राजेंद्र विश्वकर्मा राकेश डड्रियाल अशोक अस्वाल महेंद्र सिंह राणा राजेंद्र जुयाल सतीश जुगराण अनीता वाजपेई दिनेश गुसाई प्रेम सिंह बिष्ट योगेंद्र बिष्ट आदि के साथ संस्था को भी सहयोग के लिए सम्मानित किया गया। हार्ट एंड सौल ध्वनि फाउंडेशन विकास कल्चर एंड वेलफेयर सोसायटी, नृत्य डांस एकेडमी, आंचल सेवा समाज उत्थान समिति, डांस स्पोर्ट्स अकैडमी के साथ सुरभि कल्चर सोसाइटी के कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम में बाल कलाकारों ने नृत्य के जरिए भारतीय संस्कृति के विभिन्न स्वरूपों पर प्रस्तुत कर दर्शकों की तालियां बटोरी । कार्यक्रम कि शुरुआत रिद्धिमा सोनकर ने …. गणेश वंदना से की , इसके बाद चंचल व अंजली…. डोलिडा ढोल बाजे,  अर्शजोत कौर ….मोरनी बनके,ईरा….देश रंगीला , श्रीजाम्या श्रीजाम्या…. छाप तिलक सब छीनी,सेजल कौशल ….चक धूम धूम,विदुषी शुक्ला ….भूंबरों भूंबरों , सौम्या ठाकुर … क्रेजी  क्रेजी, पलक शर्मा ….चटक मटक प्रस्तुतियों कर बच्चों ने धमाल मचाया।  मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने कार्यक्रम की सफलता के साथ सभी कलाकारों और एक्सपो के मुख्य कार्यकर्ता आमिर सिद्दीकी का आभार व्यक्त किया ।

किसानों की आड़ में सियासी सूरमाओं की जोर-आजमाइश

आनन्द अग्निहोत्री

जिसका डर था, वह धीरे-धीरे सामने नजर आने लगा है। लखनऊ में हुई किसान महा पंचायत में सरकार पर दबाव बनाने के लिए जिस तरह का व्यूह खड़ा करने की चेतावनी दी गयी, उसे भेदना सरकार के लिए काफी मुश्किल है। बात सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की ही नहीं है। किसानों की मांगें और भी हैं। तुर्रा यह कि वे यह ऐलान कर रहे हैं कि सरकार ने उनकी मांगें पूरी न कीं तो चुनाव में सरकार को सबक सिखाया जायेगा। किसानों के इस तरह के तेवर सरकार के लिए मुश्किल पेशबंदी तो है ही, सियासू सूरमाओं के लिए भी अवसर है। विपक्षी राजनीतिक दल और अन्य तमाम वर्ग इस तरह की चेतावनी आये दिन दिया करते हैं। किसान ऐसा कर रहे हैं तो इसमें हैरत किस बात की। हां, एक बात विचारणीय अवश्य है, वह यह कि कहीं किसान आंदोलन सियासी सूरमाओं के शिकंजे में न आ जाये। आंदोलन की शुरुआत से ही जिस तरह विपक्षी राजनीतिक दल किसानों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर रहे हैं, इस परिप्रेक्ष्य में इस तरह की आशंका बेमानी नहीं मानी जा सकती।

मोदी सरकार का तीनों कृषि कानूनों के समर्थन में हद से ज्यादा अड़े रहना और अचानक गुरु परब के दिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री की घोषणा इस बात का साफ संकेत देती है कि कहीं न कहीं सरकार उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के अगले साल की शुरुआत में होने जा रहे विधान सभा चुनावों के मद्देनजर किसानों के दबाव में आ गयी है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता इस बात से नावाकिफ नहीं। इसी कारण वे अपनी मांगें स्वीकार करने के लिए सरकार पर और दबाव बना रहे हैं। अपने सख्त निर्णयों के लिए जानी जाने वाली मोदी सरकार का किसानों के आगे इस तरह झुकना जाहिर करता है कि उसने चुनाव के परिप्रेक्ष्य में समझौता करना कुबूल कर लिया है। देखना यह है कि वह किस हद तक किसान आंदोलन के सामने समझौता कर सकती है। किसानों ने एमएसपी के अलावा महंगाई और बेरोजगारी का सवाल भी खड़ा किया है। एक बार एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जा सकती है लेकिन महंगाई नियंत्रण और बेरोजगारी समाप्ति की कोई गारंटी दे पाना तो मुश्किल ही होगा। इन्हीं मुद्दों पर विपक्ष किसानों का समर्थन कर सरकार के लिए राजनीतिक मुश्किल खड़ी कर सकता है। अगर सीएए की वापसी की मांग भी उठने लगे तो कोई ताज्जुब नहीं।

एक बात साफ है कि आंदोलनकारी किसानों की कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है। उनका एक संयुक्त मंच है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनकी राजनीतिक पकड़ नहीं है। संयुक्त मोर्चा के सभी घटक अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा रसूख रखते हैं। उदाहरण के लिए हम राकेश टिकैत को ही लेते हैं। राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनका खासा प्रभाव है। वह अपने क्षेत्र में चुनावों को प्रभावित करने की हैसियत में हैं। इसी तरह अन्य घटक भी अपने-अपने क्षेत्र में चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं। अगर सरकार ने उनकी मांगें स्वीकार नहीं कीं तो निश्चित रूप से वे ऐसा कर भी सकते हैं। इस स्थिति में सरकार के लिए बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा। इसे याद रखना चाहिए कि पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में राकेश टिकैत एवं अन्य किसान नेता कोलकाता गये थे। वहां वे प्रभाव डाल भी पाये या नहीं, यह दीगर बात है। लेकिन अपने-अपने क्षेत्र में तो ये सक्षम हैं ही।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला ‘मास्टर स्ट्रोक’ माना जा रहा है। कम से कम विपक्षी दलों के हाथ से तो यह मुद्दा खिसक गया लगता है। उनके पास किसानों की आड़ में चुनाव में यह मुद्दा बड़ा हथियार था। लेकिन किसानों ने अपने आंदोलन और मांगों का दायरा जिस तरह बढ़ाया है, उसमें इस बात की पूरी संभावना है कि विपक्षी दल किसी न किसी रूप में दखलंदाजी करें और किसानों को सरकार के खिलाफ उकसायें। यूं तो किसान स्वयं समझदार हैं। वह आसानी से किसी के बहकावे में नहीं आने वाला, लेकिन चुनावी मोड़ पर जिस तरह आंदोलन आ खड़ा हुआ है, उसमें इस तरह की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। बेहतर तो यही होगा कि किसान किसी राजनीतिक दल का हथियार न बनें अन्यथा भविष्य में भी उनका सियासी इस्तेमाल किया जा सकता है।

अखाड़े की पहलवानी से सत्ता के शिखर तक मुयालम सफर

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अरविंद जयतिलक

मुलायम सिंह यादव आजादी के बाद की पीढ़ी के उन नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने केंद्र और तकरीबन हर सूबे की कांग्रेस सरकार के खिलाफ व्याप्त असंतोष के तूफान के कंधे पर सवार होकर भारतीय राजनीति के रंगमंच पर छाए। उस जमाने में हिंदी भाषी सूबों में उनकी पीढ़ी के हजारों नेता समाजवादी आंदोलन की राह पर निकले लेकिन सभी को मुलायम सिंह जैसा कद, सम्मान, अपार जनसमर्थन और सत्ता का शिखर हासिल नहीं हुआ। मुलायम सिंह अपनी जिंदादिली, फौलादी निर्णय और असीमित परिश्रम के जरिए सत्ता के सोपान पर चढ़ते गए। एक सामान्य परिवार से निकलकर प्रदेश और देश की सियासत में असाधारण पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं होता। लेकिन मुलायम सिंह ने यह करिश्मा कर दिखाया। मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर, 1939 को इटावा जिले के छोटे से गांव सैफई में किसान परिवार में हुआ। उनके पिता सुधर सिंह यदव उन्हें अखाड़े के एक सर्वोच्च पहलवान के रुप में देखना चाहते थे। लिहाजा मुलायम सिंह यादव अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए अखाड़े में उतर गए और अपने चरखा दांव के बूते अपने समकालीन सभी पहलवानों को कड़ी शिकस्त दी। कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव अपने राजनीतिक गुरु चैधरी नत्थू सिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में प्रभावित करने में सफल रहे और फिर नत्थू सिंह के ही परंपरागत विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर से अपना राजनीतिक सफर प्रारंभ किया। मुलायम सिंह यादव समाजवादी नेता रामसेवक यादव के विचारों से अत्याधिक प्रभावित थे और उन्होंने उनके आशीर्वाद से राजनीति में समाजवाद की संकलपना को पूरा करने का प्रण लिया। राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह यादव एक शिक्षक थे लेकिन विधायक चुने जाने के बाद अध्यापन कार्य से इस्तीफा दे दिया। मुलायम सिंह यादव वैचारिक रुप से समाजवादी महानायक डाॅ0 राम मनोहर लोहिया से खासे प्रभावित रहे और वे समाजवादी आंदोलन के सिपाही बन गए। 1967 में जब वे पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गये तो वे विधानसभा के युवा सदस्यों में से एक थे। वह दौर कांग्रेस की राजनीतिक-आर्थिक नीतियों के खिलाफ बगावत और विद्रोह का दौर था। समाजवाद उफान मार रहा था। डाॅ0 लोहिया का यह कथन चारो तरफ गूंज रहा था कि- गैर-बराबरी को खत्म किए बिना समतामूलक समाज का निर्माण संभव नहीं है। तब डाॅक्टर लोहिया ने मुलायम सिंह यादव का पीठ थपथपाते हुए कहा था कि जिस दिन तुम कांग्रेस को साधना सीख जाओगे उस दिन तुम्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पाएगा। फिर क्या था, मुलायम सिंह यादव ने लोहिया की सुक्ति को गांठबांध अपनी सियासत का मूलमंत्र बना लिया। 1967 के विधानसभा चुनाव में वे जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के दिग्गज लाखन सिंह को पटकनी दी और कांग्रेस पर नकेल डालना सीख लिया। लेकिन पहली बार मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक इंतजार करना पड़ा, जब कांग्रेस विरोधी लहर में देश के अन्य राज्यों के साथ उत्तर प्रदेश में भी जनता पार्टी की सरकार बनी। 1980 में भी वे कांग्रेस की सरकार में राज्य मंत्री रहे और फिर चैधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने। लेकिन विधानसभा चुनाव हार गए। लेकिन उनका हौसला कमजोर नहीं पड़ा। वे समाजवादी नेताओं के साथ कंधा जोड़ते हुए कांग्रेस के एकाधिकार और अपराजेय होने के दंभ को चुनौती देने लगे। 1989 के विधानसभा चुनावों के बाद वे भारी जनादेश के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उनका प्रारंभिक कार्यकाल 5 दिसंबर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक रहा। लेकिन मंडल आयोग की घोषणा के बाद देश की राजनीति करवट लेने लगी और भारतीय समाज का राजनीतिक ध्रुवीकरण शुरु हो गया। तब भारतीय जनता पार्टी ने अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण का सवाल उठाकर राजनीति को घुमावदार मोड़ पर ला दिया। इसके जवाब में मुलायम सिंह यादव ने पिछड़ा-दलित और मुसलमानों को जोड़ते हुए 1993 में बहुजन समाज पार्टी से तालमेल कर एक नए राजनीतिक-सामाजिक समीकरण को जन्म दिया। हालांकि वह अच्छी तरह जानते थे कि इस गठबंधन से बहुत कुछ राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन होने वाला नहीं है। इसके बावजूद भी उन्होंने इस राजनीतिक गठजोड़ को बनाए रखने का भरपूर प्रयास किया और 5 दिसंबर, 1993 से 3 जून, 1996 तक हुकूमत की। लेकिन यह गठबंधन प्रभावी साबित नहीं हुआ और मुलायम सिंह यादव को सत्ता से बाहर होना पड़ा। सत्ता पाने की आपाधापी में बहुजन समाज पार्टी ने भाजपा के साथ समझौता कर लिया लेकिन यह सियासी समझौता भी परवान नहीं चढ़ सका। इसके बाद उत्तर प्रदेश सत्ता के लिए राजनीतिक जोड़तोड़ के कई प्रयोग हुए लेकिन हर प्रयोग विफल रहा। इस राजनीतिक परिस्थिति का लाभ उठाते हुए मुलायम सिंह यादव ने सत्ता में पुनः वापसी की और 29 अगस्त, 2003 से 11 मई, 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। गौर करें तो मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की सियासत तक ही सीमित नहीं रहे। वे अपने जुझारु तेवर और सियासी गोलबंदी के बुते केंद्रीय राजनीति के धुरी बन गए। केंद्रीय राजनीति में उनका प्रवेश 1966 में हुआ जब कांग्रेस पार्टी को हराकर केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी। तत्कालीन एचडी देवगौड़ा की नेतृत्ववाली सरकार में वे रक्षामंत्री बने। लेकिन यह सरकार बहुत अधिक दिनों तक नहीं चली और तीन वर्षों में देश को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गयी। लेकिन मुलायम सिंह यादव केंद्र में सरकारों के गठन के किंगमेकर बने रहे। वे कई बार संसद के लिए चुने गए और अभी भी संसद के सदस्य हैं। एक बार तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका हाथ लगने की उम्मीद जगी लेकिन उनके बढ़ते कद से बेचैन लालू प्रसाद यादव एवं शरद यादव उनके विरोध में उतर आए। लेकिन मुलायम सिंह को इसका तनिक भी अफसोस नहीं है। आज भी उनके लिए राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता असल पूंजी और सर्वोच्च प्राथमिकता है। वे अभी भी भारतीय भाषाओं की मजबूती और हिंदी को भारत भर में स्वीकार्यता के लिए प्रयासरत हैं। हालांकि आज मुलायम सिंह यादव उम्र के ढ़लान पर हैं लेकिन भारत राष्ट्र के निर्माण और समाज में एकता और समरसता के लिए उनके हौसले बुलंद हैं। आज उनकी समाजवादी पार्टी कठिन चुनौतियों का सामना कर रही है। पार्टी ही नहीं बल्कि उनका परिवार भी बिखराव के झंझावातों से जूझ रहा है। लेकिन कठिन परिस्थितियों से दो-दो हाथ करने वाले मुलायम सिंह यादव निराश नहीं हैं। उन्हें विश्वास है कि उनकी पार्टी उनके सुयोग्य पुत्र और उत्तराधिकारी अखिलेश यादव के हाथ में है और वे कड़े संघर्षों के बूते मुकाम हासिल कर लेंगे। मुलायम सिंह यादव ने जब 1992 में समाजवादी पार्टी की नींव डाली तब भी राजनीतिक संक्रमण का ही दौर था। लेकिन उन्होंने अपने दूरगामी निर्णय और राजनीतिक सुझबुझ से पार्टी का इकबाल बुलंदी पर पहुंचा दिया। उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों को कुटनीतिक मात देते हुए समाजवाद के बीज को वटवृक्ष बना दिया। अपने धुन के पक्के मुलायम सिंह यादव ने कभी भी अपने सिद्धांतों और विचारों से समझौता नहीं किया। उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने कांगे्रसी नेता राजीव गांधी से भी राजनीतिक तालमेल किया। लेकिन सियासी समर में एकला योद्धा की तरह चलने वाले मुलायम सिंह यादव ने किसी भी राजनेता से निर्देशित होना स्वीकार नहीं किया। याद होगा 1999 में उनके समर्थन का आश्वासन न मिलने से कांग्रेस सरकार बनाने में विफल रही वहीं अमेरिका से परमाणु करार के मसले पर डाॅ मनमोहन सिंह की नेतृत्ववाी यूपीए सरकार का समर्थन कर सबको चैंका दिया। जबकि डाॅ0 मनमोहन सिंह की सरकार गिराने के लिए सभी राजनीतिक दल गोलबंद हो गये थे। लेकिन मुलायम सिंह यादव के लिए राष्ट्रहित सर्वोप्रि था और उन्होंने यूपीए सरकार का समर्थन किया। याद होगा तब उनके इस ऐतिहासिक कदम को न्यूयार्क टाइम्स सहित विश्व के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने खुलकर सराहना की। देशवासियों ने भी मुलायम सिंह यादव के इस ऐतिहासिक व दूरगामी फैसले को सिर-आंखों पर लिया और भारतीय जनमानस में उनका कद बढ़ गया। आज मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन है और देश उनके दीर्घायु होने की कामना करता है।  

मुनाल पूर्वांचल उत्तरांचल कला उत्सव में भोजपुर के रंग

लखनऊ एक्सपो के तहत कथा मैदान आशियाना में न्यू कानपुर यूथ क्लब के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है. सांस्कृतिक मंच का सातवां दिन भोजपुरी के सुप्रसिद्ध लोक गायक बालेश्वर को समर्पित किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कवित्री रेखा रावत बोरा व यश भारती लोक गायिका ऋचा जोशी ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया. मेला संयोजक मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने 1978 से बालेश्वर जी के साथ बिताए लम्हों को याद किया उनकी गायकी का अंदाज आज भी लोग याद करते हैं और गाते हैं कई मंचों पर हमारे साथ उन्होंने कार्यक्रम प्रस्तुत किया इस अवसर पर भोजपुरी लोक गायक ओम प्रकाश राव के साथ यशभारती ऋचा जोशी जी ने भी भोजपुरी गीतों को अंजाम दिया.

इसके साथ ही आंचल समाज उत्थान सेवा समिति के कलाकारों ने प्रसिद्ध नृत्यांगना आरती शुक्ला दीक्षित के संयोजन व निर्देशन में कार्यक्रम की शुरुआत प्रभु राम के बाद मां जग जननी ,गणेश स्तुति, शिव श्लोक में अंशिका शुक्ला , तनु प्रिया दुबेदी, कशिश,  श्रीजल के साथ पूनम पांडे आदि ने गत भाव, कृष्णा गीत आदि मैं अपने नृत्य प्रस्तुति को सफल ढंग से मंच पर प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दीया मां दुर्गा का जीवन पर नृत्य नाटिका का मंचन सुश्री रीना श्रीवास्तव के निर्देशन मेंप्रेस विज्ञप्ति 19 नवंबर लखनऊ एक्सपो के तहत मुनाल पूर्वांचल उत्तरांचल कला उत्सव कथा मैदान आशियाना आयोजित किया जा रहा है सांस्कृतिक मंच का सातवां दिन भोजपुरी के सुप्रसिद्ध लोक गायक बालेश्वर को समर्पित किया गया इस अवसर पर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कवित्री रेखा रावत बोरा व यश भारती लोक गायिका ऋचा जोशी ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया मेला संयोजक मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने 1978 से बालेश्वर जी के साथ बिताए लम्हों को याद किया उनकी गायकी का अंदाज आज भी लोग याद करते हैं और गाते हैं कई मंचों पर हमारे साथ उन्होंने कार्यक्रम प्रस्तुत किया इस अवसर पर भोजपुरी लोक गायक ओम प्रकाश राव के साथ यशभारती ऋचा जोशी जी ने भी भोजपुरी गीतों को अंजाम दिया

इसके साथ ही आंचल समाज उत्थान सेवा समिति के कलाकारों ने प्रसिद्ध नृत्यांगना आरती शुक्ला दीक्षित के संयोजन व निर्देशन में कार्यक्रम की शुरुआत प्रभु राम के बाद मां जग जननी ,गणेश स्तुति, शिव श्लोक में अंशिका शुक्ला , तनु प्रिया दुबेदी, कशिश,  श्रीजल के साथ पूनम पांडे आदि ने गत भाव, कृष्णा गीत आदि मैं अपने नृत्य प्रस्तुति को सफल ढंग से मंच पर प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दीया

 मां दुर्गा के चरित्र को नृत्य नाटिका के रूप में उनके विभिन्न रूपों को नृत्य डांस अकैडमी इंदिरा नगर के कलाकारों ने सुश्री रीना श्रीवास्तव के निर्देशन में दीया सुहानी शर्मा, कामना अग्रवाल, कृति खरबंदा, पूर्वी ,आन्या नायक , ऐश्वर्या, स्मिता सिंह, इपसिता सिंह, प्रज्ञा शर्मा आदि ने महिषासुर मर्दिनी सरस्वती लक्ष्मी और काली स्तुति शास्त्रीय नृत्य में भरतनाट्यम और कथक को मिलाकर फ्यूजन डांडिया नृत्य के तहत बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया

लोक गायन में परंपरागत तरीके से पारंपरिक लोकगीतों का समावेश रहा संगतकार ऑर्गन- ओंकार सिंह , ढोलक -रमेश, बांसुरी -किशोर श्रीवास्तव, साइड रिदम- दिनेश, पैड- श्री चौरसिया आदि ने गायक कलाकारों का बखूबी साथ दिया.

अवधी लोक संस्कृति की सांस्कृतिक संध्या

मुनाल उत्तरांचल पूर्वांचल कला उत्सव के तहत आज अवधी पारंपरिक लोक संस्कृति की सांस्कृतिक संध्या इतिहासकार डॉक्टर योगेश प्रवीन को समर्पित की गई. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व कुलपति भातखंडे संगीत संस्थान डॉ पूर्णिमा पांडे जी वआर्यकुल शैक्षिक संस्थान के प्रबंध निदेशक श्री शक्ति सिंह ने दीप प्रज्वलन करके सांस्कृतिक संध्या का उद्घाटन किया मुनालश्री विक्रम बिष्ट ने डॉ योगेश प्रवीण को याद करते हुए उनके साथ बिताए हुए लम्हों को साझा किया उनके लिखें पारंपरिक कई अवधी गीतों में नृत्य प्रस्तुति भी दी गई कार्यक्रम का शुभारंभ सीता स्वयंवर तमिल वर्जन में बाल कलाकार गिन्नी सहगल द्वारा प्रस्तुत किया गया अवध के लोकगीतों में सुप्रसिद्ध लोक गायिका यश भारती सुश्री ऋचा जोशी ने अवधी लोकगीतों की पारंपरिक महत्वता बताते हुए नकटा, झूला, कजरी, बन्ना, बन्नी, बधाई ,सोहर जैसे कई लॉक गीतों को प्रस्तुत किया प्रमुख रूप से अवध की संस्कृति में गणपति वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत जिसके बोल – अरे गणपति सुमिरो री विघ्न सब दूर करें से किया बधाई गीत -आज तो बधाई बाजे रंग महल में,सोहर गीत- सिया रानी ने जाए दुई ललनवा, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत -एहो जन्मी है बिटिया हमार सहेलियां मंगल गाओ, चैती गीत- जन्मे अवध रघुराई हो रामा, कजरी -हरे रामा सावन झमाझम बरसे, व श्री राम भक्त हनुमान के लिए गीत -श्री राम की गली में तुम आना वहां नाचते मिलेंगे हनुमाना,मंडप गीत हरे बांस मंडप छाए लोक गायक ऋचा जोशी के संगीत संयोजन और निर्देशन मैं श्रृंगारिका कुकरेती व साधना मिश्रा ने भी सहयोग किया अवधी साहित्य के विशेषज्ञ डॉक्टर अनिल त्रिपाठी ने अपने गीतों की प्रस्तुति में प्रमुख रूप से प्रस्तुत किया इसके साथ  कानपुर से आई कलाकार कल्पना सक्सेना ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से साथ दिया वाद्य यंत्रों के संगत मैं ऑर्गन -निर्मल पाल, ढोलक- नरेंद्र सिंह टीटू, तबला -सत्यम शिवम सुंदरम,  हारमोनियम -अनिल त्रिपाठी, साइड रिदम -श्री चौरसिया आदि ने साथ दिया, फिल्म अभिनेता व मिक्री कलाकार सलीम खान ने भी कई दिग्गज अभिनेताओं की आवाज निकाल कर पुराने फिल्मी अभिनेताओं की याद दिला दी.

किसके हुए वीरदास, समूचे भारत के या?

विभूति मिश्र

सोशल मीडिया में अभी मशहूर स्टेंडअप कॉमेडियन वीर दास खासे चर्चा में हैं, वीरदास अपनी एक कविता को लेकर सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से ट्रोल भी हो रहे हैं और प्रशंसा भी पा रहे हैं, कॉमेडियन वीर दास ने दो भारत नाम की कविता अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में एक शो के दौरान पढ़ी है। पहले वीरदास की कविता के मुख्य अंश को जानते हैं और साथ ही उस पर विश्लेषण करते हैं।

वीरदास कहते हैं: “मैं एक उस भारत से आता हूं, जहां बच्चे एक दूसरे का हाथ भी मास्क पहन कर पकड़ते हैं, लेकिन नेता बिना मास्क एक-दूसरे को गले लगाते हैं” यह वीरदास की नेताओं पर सामान्य टिप्पणी है, इसलिए इस पर ज्यादा विवाद की गुंजाइश नहीं है।

दूसरा, “मैं उस भारत से आता हूं, जहां एक्यूआई 9000 है लेकिन हम फिर भी अपनी छतों पर लेटकर रात में तारे देखते हैं” यह वीरदास की अजीब बात है, AQI यानी एयर क़्वालिटी इंडेक्स इन्होंने पता नहीं कहाँ 9000 देख लिया यह वही जानें।

AQI यानि Air Quality Index या हिंदी में कहें तो वायु गुणवत्ता सूचकांक ऐसा नंबर होता है जिससे हवा की गुणवत्ता का पता लगाया जाता है. इससे भविष्य में होने वाले वायु प्रदूषण का भी अंदाज हो जाता है.

दुनिया मे सबसे खराब AQI लाहौर, पाकिस्तान का है, जहां ये 419 है, इसके बाद दिल्ली है, AQI 286 है, फिर पाकिस्तान का ही कराची है , जहां AQI 212 है, उसके बाद चीन का शेनयांग शहर है, जहां AQI 196 है, पांचवां शहर भी चीन का ही चेंगदू है जहां AQI 195 है। वीरदास का तथ्य वीरदास ही जानें, जो असत्य और भ्रामक दिख रहा है।

वीरदास आगे कहते हैं कि ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम दिन में औरतों की पूजा करते हैं और रात में उनका गैंगरेप हो जाता है” सोचिए कितने मूर्खतापूर्ण तरीके से देश और उसकी संस्कृति को बदनाम कर दिया गया। रेप कहीं भी हो, चाहे कम हो ज्यादा बेहद दुखद है, कानून और व्यवस्था पर बड़ा सवाल है लेकिन ऐसी शर्मनाक घटनाएं अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी होती हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा रेप साउथ अफ्रीका में होते हैं।.दक्षिण अफ्रीका में हर साल 5,00,000 रेप की घटनाएं होती हैं. बोत्सवाना दूसरे नंबर पर है, तीसरे नम्बर पर लेसोथो देश है. चौथे नंबर पर स्वाजीलैंड है, पांचवें नंबर पर बरमूडा है, इसके बाद स्वीडन है, यहां हर चार में से एक महिला रेप की शिकार हुई हैं.अमेरिका में करीब 19.3 फीसदी महिलाओं और 2 फीसदी पुरुषों का उनके जीवन में कम से कम एक बार रेप होता है, भारत में हर 6 घंटे में एक महिला रेप की शिकार बनती हैं. भारत के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2010 के बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 7.5 फीसदी वृद्धि हुई है. साल 2012 के दौरान देश में 24,923 मामले दर्ज हुए, जो 2013 में बढ़कर 33,707 हो गए।

अब वीरदास जिस तरह से कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहे हैं, कौन विदेशी पर्यटक यहां आने के लिए उत्साहित होगा तो यह काम देश हित में है क्या?

हालांकि देश में महिलाओं की स्थिति पर कॉमेडियन वीर दास अपने बयान को लेकर अब माफी मांग चुके हैं। बावजूद उनके खिलाफ लोगों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। वीरदास की अगली पंक्ति सुनिए ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम ट्विटर पर बॉलीवुड को लेकर बंट जाते हैं, लेकिन थियेटर के अंधेरों में बॉलीवुड के कारण एक होते हैं” वीरदास की इस बातों में सच्चाई है, और इस पर विवाद भी नहीं होना चाहिए।

वीरदास आगे कहते हैं कि ” मैं एक ऐसे भारत से आता हूं, जहां पत्रकारिता ख़त्म हो चुकी है, मर्द पत्रकार एक दूसरे की वाहवाही कर रहे हैं और महिला पत्रकार सड़कों पर लैपटॉप लिए बैठी हैं, सच्चाई बता रही हैं” वीरदास की इन बातों में महिला पत्रकारों पर व्यंग्य है, लेकिन देश में ऐसी स्थिति अवश्य है कि वाकई लॉबी में बंटे पत्रकार अपनी-अपनी बात करते हैं लेकिन इसके बाद टीवी, अखबार और सोशल मीडिया पर पत्रकारिता बची हुई है और इसलिए सरकारें भी यहां बदलती हैं, कार्रवाई भी होती है, आग्रह की पत्रकारिता अवश्य है लेकिन कम से कम ऐसी नहीं, जैसा वीरदास कह रहे हैं।

वीरदास आगे कहते हैं ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां बड़ी आबादी 30 साल से कम उम्र की है लेकिन हम 75 साल के नेताओं के 150 साल पुराने आइडिया सुनना बंद नहीं करते” वीरदास की यह बात भी अजीब है, कौन सा देश है जो अपने आदर्श महापुरुषों की बात नहीं करता, क्या अमेरिका नहीं करता ? वीरदास अपनी कॉमेडी वाली कविता में आगे कहते हैं कि” मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां हमें पीएम से जुड़ी हर सूचना दी जाती है लेकिन हमें पीएमकेयर्स की कोई सूचना नहीं मिलती.” यहां आकर यह बातें वीरदास की राजनीतिक हो गई है , इसलिए इन्हें कपिल सिब्बल, शशि थरूर का समर्थन मिलता है तो कुछ बीजेपी नेताओं का विरोध।

वीरदास की अगली पंक्ति है ” मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां औरतें साड़ी और स्नीकर पहनती हैं और इसके बाद भी उन्हें एक बुज़ुर्ग से सलाह लेनी पड़ती है, जिसने जीवन भर साड़ी नहीं पहनी”

यह भी कविता का अजीबोगरीब अंश है, बुजुर्ग अगर पुरुष है तो धोती पहना ही होगा, बुजुर्ग अगर स्त्री है तो साड़ी पहनी होगी, धोती-साड़ी का प्रचलन अब कम हुआ है लेकिन दुनिया फिदा है, हमारी इस परंपरा पर। यह नाममात्र ही होगा कि 70-80 साल का कोई बुजुर्ग धोती नहीं पहना होगा।

आगे सुनिए ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम शाकाहारी होने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन उन्हीं किसानों को कुचल देते हैं, जो ये सब्ज़ियां उगाते हैं” वीरदास की यह टिप्पणी भी राजनीतिक है और मूर्खतापूर्ण है, किसानों की हित की बात सभी करते हैं और लखीमपुर के लिए बीजेपी की किरकिरी हो चुकी है, बीजेपी ने किसानों की आय को दोगुना करने की बात कही है, अकाउंट में पैसे डायरेक्ट ट्रांसफर किए हैं।

किसान जो वोटर्स हैं, उन्हें कौन कुचल सकता है? कोई कुचलेगा तो वो अपराधी होगा, राजनीतिक दल नहीं। किसान आन्दोलन पर सही-गलत का वाद-विवाद अलग से है।

वीरदास कहते हैं कि ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां सैनिकों को हम पूरा समर्थन देते हैं तब तक, जब तक उनकी पेंशन पर बात ना की जाए, इसमें इतने विवाद की गुंजाइश नहीं है और सभी चाहते हैं कि सेना का कल्याण हो । वीरदास अंत मे कहते हैं कि. ” मैं उस भारत से आता हूं, जो लोग अपनी कमियों पर खुल कर बात करते हैं

मैं उस भारत से आता हूं, जो ये देखेगा और कहेगा ‘ये कॉमेडी नहीं है.. जोक कहां है?’ और मैं उस भारत से भी आता हूं जो ये देखेगा और जानेगा कि ये जोक ही है. बस मज़ाकिया नहीं है” ये वीरदास की अपनी लोकप्रयिता को लेकर खीज हो सकती है, अच्छी चीजें सभी को पसंद आती हैं।

आखिर कौन हैं वीरदास?

ये उत्तराखंड के देहरादून के रहने वाले हैं. वीर दास कॉमेडियन के अलावा एक एक्टर भी हैं. इन्होंने 2007 में फिल्म नमस्ते लंदन से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा था. ये 42 साल के हैं, इन्होंने इकोनॉमिक्स और एक्टिंग में ग्रेजुएशन किया है और यूएस से पढ़ाई की है. ये पहली बार किसी विवाद में नहीं घिरे हैं बल्कि इससे पहले भी कई विवादों में रह चुके हैं. 

सच बात तो ये है कि एक व्यक्ति के अंदर, एक समाज के अंदर, एक देश के अंदर बहुत सारे व्यक्ति,समाज और देश होते हैं, भारत वैसे भी विभिनताओं का देश है, भाषा,रंग-रूप, जाति, धर्म, संस्कृति के रूप में लेकिन वीरदास की तरह यह चिंता की बात नहीं बल्कि गर्व की बात मानी जाती है। हम सुनते हैं विभिन्नता में एकता।

जिस अमेरिका में वीरदास कविता पढ़ रहे हैं , उस अमेरिकी समाज में 1776 में ही स्वतंत्रता प्राप्त हो चुकी थी, लोग शिक्षित और अमीर थे लेकिन वहां आज से लगभग सौ साल पहले औरतों को मतदान का अधिकार नहीं था। फिर भी ऐसा नहीं था कि औरतों की सोच और निर्णय पर समाज भरोसा नहीं करता था लेकिन तब के आदर्श अलग थे, औरतों में अपने अधिकारों के प्रति चेतना नहीं थी,यह कहना भी मुश्किल होगा लेकिन आज अमेरिका में स्थिति अलग है।अमेरिका में महिलाओं को अपने मताधिकार की लड़ाई के लिए लगभग सौ सालों तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा था, उस समय महिलायें जो परंपरागत तरीकों से पली थीं, यह भी एक कारण था कि पुरूष उन्हें एक पतिव्रता-स्त्री, विनम्र-पत्नी और घर-परिवार के बारे में सोचने वाली समझते थे, यह सौ साल पहले का दौर था। अब लिंगभेद में स्थिति अलग है लेकिन भेद दूसरे मामलों में खत्म नहीं हुए हैं।

अब अमेरिका में बात आज के दौर का भी देखिए।

जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया और कार्नेगी एंडोमेंट ने एक पोलिंग ग्रुप के साथ सर्वे किया। इसके मुताबिक, 30 फीसदी लोगों को लगता है कि त्वचा के रंग की वजह से यहां भेदभाव किया जाता है। 18 फीसदी लोगों का कहना है कि लिंग या धर्म के आधार पर भेदभाव होता है।

कुल मिलाकर 31 फीसदी लोगों को लगता है कि भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ भेदभाव अमेरिका में एक बड़ी समस्या है। 53 फीसदी इसे छोटी समस्या मानते हैं और 17 फीसदी इसे समस्या मानते ही नहीं। 73 फीसदी लोग मानते हैं कि एशियाई-अमेरिकी लोग जो भारतीय मूल के नहीं हैं, उन्हें भारतीय-अमेरिकी लोगों से ज्यादा भेदभाव झेलना पड़ता है। 90 फीसदी लैटिनो अमेरिकन, 89 फीसदी एलजीबीटीक्यू और 86 फीसदी अफ्रीकन-अमेरिकी लोगों को भेदभाव का ज्यादा बड़ा शिकार मानते हैं। अमेरिका में भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं। सड़कों पर बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की जा रही है। रैलियों के दौरान कई बार प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच काफी टकराव भी देखने को मिलते हैं। कई बार पुलिस लाठीचार्ज भी करती है लेकिन वीरदास को अमेरिका में दो अमेरिका नहीं दिखता।

विश्व में आतंकवाद के कारण मानवता के विनाश को लेकर दो विश्व नहीं दिखता।

अव वीरदास की कविता पर कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका है, कपिल सिब्बल, शशि थरूर समर्थन में हैं तो अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं कि” कुछ व्यक्तियों की बुराइयों को सामान्य बनाना और पूरे देश को दुनिया के सामने बदनाम करना ठीक नहीं है! औपनिवेशिक शासन के दौरान जिन लोगों ने भारत को पश्चिम के सामने सपेरों और लुटेरों के राष्ट्र के रूप में दिखाया, उनका अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ है.’

इधर फिल्ममेकर अशोक पंडित ने वीर दास को आतंकी बता दिया है, ये कहते हैं कि “वह स्लीपर सेल के उन सदस्यों में से एक हैं जिन्होंने एक विदेशी भूमि पर हमारे देश के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है.’

अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी वीर दास के वीडियो पर टिप्पणी करते हुए इसे सॉफ्ट आतंकवाद करार दे दिया है।एक्ट्रेस ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। इसके साथ ही उनके बयान को आंतकवाद से जोड़ दिया। उन्होंने अपने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक लंबी पोस्ट साझा की और उनके काम की तुलना आतंकवाद से कर दी।

अब सवाल ये है कि अभिनेत्री कंगना के बयानों पर जहां कुछ लोग उसके फील्ड का ना बता कर उसे नचिनियाँ कह कर आलोचना कर रहे हैं, वहीं वीरदास कॉमेडियन हैं, कविता करते हैं, लेकिन उनके व्यूज को सही ठहरा रहे हैं। कंगना अभी भी अपने बयानों पर अड़ी हैं और उन्होंने फिर लिखा है कि भगत सिंह को फांसी से नहीं बचा कर, एक थप्पड़ के बदले दूसरा गाल देकर जो आजादी मिली वो सचमुच भीख ही थी। अभिनेत्री कंगना रनौत ने दावा किया कि सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह को महात्मा गांधी से कोई समर्थन नहीं मिला और उन्होंने अहिंसा के उनके मंत्र का मजाक उड़ाते हुए कहा कि एक और गाल देने से आपको “भीख” मिलती है, आजादी नहीं।

इंस्टाग्राम पर पोस्ट में कंगना ने सलाह दिया कि “अपने नायकों को बुद्धिमानी से चुनें”।

यह भारत में वैचारिक स्वतंत्रता की खूबसूरती है कि चर्चा कंगना पर होती है और वीरदास पर भी, कंगना ने जो कुछ कहा है, उसके निजी विचार हैं लेकिन बहस को आमंत्रण जरूर देती हैं, कंगना स्वाधीनता संग्राम पर बहस को जन्म दे रही हैं, नायकों में सही गलत में फर्क करती हैं, दो तरह की आजादी की बात करती हैं, दो तरह के नायक की बात करती हैं, देश के अंदर बहस का जन्म होता हुआ दिखता है लेकिन देश के बाहर दर्शकों के सामने भारत की दूषित छवि सामने नहीं लायी जाती।

अपनी-अपनी सोच की बात है, विदेश में कुछ लोगों ने भारत के योग, कृष्ण भक्ति, शास्त्रीय संगीत, भिन्न पूजा पद्धतियों, संस्कृतियों , सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, मिथिला पेंटिग्स आदि को अंतर्राष्ट्रीय मंच दिया, ख्याति दी और कुछ लोगों ने विदेशों में जाकर यही बताया कि भारत जाहिलों का देश है, सपेरों का देश है, कर्महीनों का देश है, भूखे नंगे संतों का देश है, कुछ ने तस्वीरें बनायी गरिमा की कुछ ने बनायी दूषित। वीरदास ने क्या किया, ये आप खुद सोचिए।

गुरु पर्व पर पीएम मोदी ने दी कृषि बिल वापसी की सौगात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व के मौके पर किसानों को बिल वापसी का तोहफा दिया। केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर बीते साल के 26 नवंबर से किसान आंदोलन शुरू हुआ था  सुबह 9 बजे राष्ट्र को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि ‘हम किसानों और कृषि की हालत को सुधराने के लिए नए कृषि कानून लेकर आए थे, जिससे खासकर के छोटे किसानों का भला हो। इस कानून को लाने से पहले इसकी संसद में चर्चा हुई थी। देश के किसानों, संगठनों ने इसका स्वागत भी किया था और समर्थन भी किया था, जिसके लिए मैं सभी का बहुत- बहुत आभारी भी हूं। साथियों हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिए नेक नियत से ये कानून लेकर आई थी लेकिन इतनी पवित्र बात हम पूर्ण रूप से कुछ किसानों को समझा नहीं पाए, हमने उनसे बातचीत करने की भी कोशिश की और हर तरह से इन कानून का महत्व समझाने का प्रयास किया लेकिन हम उन्हें समझाने में सफल नहीं हुए, ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया। इसलिए अब हमने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लिया है। इस बड़े ऐलान के बाद पीएम मोदी ने कानून के खिलाफ प्रदर्शन करे रहे किसानों से अपील की है कि वो अब अपने अपने घर लौटे, खेत में लौटें, परिवार के बीच लौटें और सब मिलकर एक नई शुरुआत करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने किसानों की पीड़ा को बहुत निकट से देखा है, इसलिए आज ही कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फैसला लिया है। गौतलब है कि नए कृषि बिल आने के बाद पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ समेत पूरे देश के किसानों ने विरोध शुरू कर दिया था। वहीं विपक्षी राजनेताओं ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उधर राकेश टिकैत ने कहा है कि आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा. उन्होंने कहा है कि हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा।