Sunday, June 8, 2025
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आजादी के बाद 14 साल लग गए थे गोवा मुक्ति को

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हिंदुस्तान भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हो चुका हो लेकिन देश के कई हिस्सों को भारत में मिलाने के लिए लंबा वक्त और सैन्य अभियान चलाना पड़ा। ऐसा की एक अभियान गोवा मुक्ति के लिए चलाया गया। आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोवा मुक्ति दिवस में शामिल हो रहे हैं लेकिन यह सच्चाई है कि 19 दिसंबर 1961 के पूर्व गोवा भारत का हिस्सा नहीं बन पाया था। जब भारत ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की तब गोवा 450 वर्षों के पुर्तगाली शासन के तहत दबा हुआ था। भारत ने लंबे समय टक कूटनीतिक प्रयास के जरिये गोवा के विलय की नीति अपनाई लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ अंत में 1961 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने फैसला किया कि सैन्य हस्तक्षेप ही गोवा की आजादी का एकमात्र विकल्प रह गया है। इसके बाद गोवा मुक्ति के लिए 18 दिसंबर, 1961 से 36-घंटे के सैन्य अभियान को संचालित किया गया। जिसके बाद गोवा को मुक्ति दिलाई गई। उस सैन्य अभियान का नाम ‘ऑपरेशन विजय’ था और इसमें भारतीय नौसेना, वायु सेना, और सेना के हमले शामिल थे। भारतीय सैनिकों ने थोड़े प्रतिरोध के साथ गोवा क्षेत्र को पुनः प्राप्त किया, और जनरल मैनुअल एंटोनियो वासालो ई सिल्वा ने आत्मसमर्पण के प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर किए।  इस क्षेत्र में 450 साल का पुर्तगाली शासन आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गया और इस क्षेत्र को भारत ने 19 दिसंबर 1961 को वापस ले लिया। अब गोवा मुक्ति दिवस गोवा में जश्न और उत्सव की तरह मनाया जाता है। राज्य में तीन अलग-अलग स्थानों से एक मशाल जुलूस निकाला जाता है, ये सभी आजाद मैदान में मिलते हैं. यह वह जगह है जहां उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जाती है, जिन्होंने गोवा के अधिग्रहण में अपनी जान गंवा दी।

मोदी ने फिर किया भारत के सिर ऊंचा, पीएम को भूटान का सर्वोच्च सम्मान

दुनियंभार में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर रहे हैं। करोना काल में जहां ज़्यादातर देशों ने वैक्सीन देने पर भारत का आभार जताया तो कई देश मोदी को सर्वोच्च सम्मान से अलंकृत कर चुके हैं। संयुक्त अरब अमीरात के बाद अब भूटान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से नवाजा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक नाम एक और अंतरराष्ट्रीय नागरिक सम्मान जुड़ गया है। पड़ेसी देश भूटान ने अपने सबसे बड़े नागरिक अवार्ड से सम्मानित करेगा। भूटान की तरफ से इसकी घोषणा कर दी गई है। कई देश अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से पीएम मोदी को सम्मानित कर चुके हैं। भूटान के प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से ट्विटर पर जारी बयान में कहा गया है कि देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से पीएम मोदी को सम्मानित किए जाने के फैसले से हम काफी खुश हैं। गौरतलब है कि संयुक्त अरब अमीरात ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साल 2019 में अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान “ऑर्डर ऑफ जायद” से सम्मानित किया था। इसके अलावा भी कई देश मोदी को सम्मानित कर चुके हैं। भूटान के पीएमओ की पोस्ट में कहा गया कि कोरोना महामारी के दौरान एवं विगत वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी ने इस देश को जो सहयोग एवं समर्थन दिया है, वह बेजोड़ है। बयान में कहा गया है कि ‘आप इस सम्मान के हकदार हैं। भूटान के लोगों की तरफ से आपको बधाई।’ पीएमओ भूटान की तरफ से पीएम मोदी की भूटान यात्रा की एक तस्वीर भी शेयर की गई है।

आईसी भारत में बनने लगेंगी तो चौपहिया सस्ते होंगे

जगदीश जोशी

वरिष्ठ पत्रकार

सेमी कंडक्टर उद्योग के प्रमोशन के लिए केंद्र सरकार द्वारा गुरुवार को लिए गए फैसले उम्मीद जगी है कि आने वाले पांच-छह महीने में चौपहिया वाहन, कंप्यूटर, मोबाइल आदि सस्ते हो सकते हैं। केंद्र सरकार ने करीब इस उद्योग के लिए 76,000 हजार करोड़ की व्यवस्था कर देश में ही सेमी कंडक्टर निर्माण, डिजाइन तथा उसके रॉ मटीरियल की राह आसान कर दी है। अगर सेमी कंडक्टर सस्ते होंगे तो अन्य उन उत्पादों को भी सस्ता होना ही है जिनमें सेमी कंडक्टर का उपयोग किया जाता है। सरकार की नई पॉलिसी के अनुसार दुनिया की बड़ी कंपनियां यहां फैक्ट्री लगाएंगी, देश के बड़े उद्योगपतियों को इस फील्ड आएंगे और स्टार्ट अप तथा एमएसएमई को एसेसरीज बनाने को प्रोत्साहित होंगी।

आप सोच रहे होंगे कि इस सेमी कंडक्टर का क्या फायदा होगा? मौजूदा वक्त में जितने भी इलेक्ट्रानिक उपकरण बन रहे हैं उन सभी में सेमीकंडक्टर का उपयोग किया जाता है। इन दिनों इलेक्ट्रानिक डिवाइस के बिना कोई भी इंडस्ट्री चाहे वह गैजेट‌स हों, घरेलू उपकरण, कंप्यूटर, मोबाइल हैंडसेट, ऑटोमोबाइल हो या कुछ और उसका विकास संभव नहीं। हवाई जहाज संचालन, ड्रोन, मेट्रो, अंतरिक्ष और रक्षा उपकरणों में सभी जगह इसका प्रयोग होता है। तभी तो हम लोगों के जीवन में नई-नई सुविधाएं जुड़ पाती हैं, तभी वह आर्टिफिसियल इंटैलीजेंस का इस्तेमाल कर पाते हैं। दरअसल, यह सेमी कंडक्टर को आम बोलचाल में इंटीग्रेटेड सर्किट या आईसी कहा जाता है। आईसी का उपयोग तो हम सभी कई वर्षों से करते आ रहे हैं, अक्सर कहते आते हैं आइसी बदल दी उपकरण काम करने लग गया। एलईडी बल्ब और टीवी रिमोट तक में इसका छोटा स्वरूप काम करता है। कोविड-19 और लद्दाख प्रकरण के बाद चीन से आयात काफी कम हो चुका है। ऑटोमोबाइल उद्योग भी इससे प्रभावित हुआ है, कहा जा रहा है कि इसके उपकरणों की मांग और आपूर्ति में छह माह की वेटिंग लगी हुई है।

सेमी कंडक्टर या आईसी को किसी भी पीसीबी यानि प्रिंटेड सर्किट बोर्ड में लगाया जाता है। इस पीसीबी का सबसे आसान उदाहरण हम घरों, दुकानों, कारों, कार्यालयों में उपयोग किये जाने वाले साउंड बॉक्स, टेलीविजन रिमोट कंट्रोल के रूप में देखते हैं। जब रिमोट टूट जाता है तो इसके भीतर एक हरे रंग की प्लास्टिक शीट देखती है, जिसमें कोई डाईग्राम बना होता है, उसके बीच-बीच में छोटे-छोटे उपकरण लगे होते हैं, जिन्हें डायोड, कैपेसिटर और रजिस्टर के नाम से जानते हैं। कभी आपने कंप्यूटर का खड़ा बक्सा यानी ‘सीपीयू’ खुला देखा हो तो उसके अंदर मदर बोर्ड होता है। उसमें कई आईसी लगी होतीं हैं, दर्जनों टांगों वाले चौकोर कीड़े की तरह दिखतीं हैं। अब सेमी कंडरक्टर के उपयोग का अंदाज लग गया होगा। कई इलेक्ट्रानिक तकनीशियन ‘पीसीबी’ लाकर उस पर लगे उपकरणों को असेम्बल कर देते हैं तो हमारे इलेक्ट्रानिक डिवाइस फिर से दुरुस्त हो जाते हैं।

अभी तक अपने देश को सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में महारत हासिल है। कई कंपनियां दुनिया की नामी कंपनियों में शरीक हैं। टाटा कंसेल्टेंसी सर्विसेज यानि टीसीएस, नारायण मूर्ति की इंफोसिस लिमिटेड, शिव नाडर की एचसीएल टेक्नोलॉजीज, अजीम प्रेम जी की विप्रो लिमिटेड, टेक महिंद्रा लिमिटेड आदि कंपनियां बहुराष्ट्रीय हो चुकी हैं। दुर्भाग्य यह था कि हार्डवेयर के क्षेत्र में हम उतना काम नहीं कर पाए। अमेरिका, दक्षिण कोरिया, चीन, ताइवान, जापान ने इस उद्योग में को अपने हाथ में ले रखा है। अब अगर सेमी कंडक्टर का रॉ मैटीरियल यहां आसानी से उपलब्ध हो जाए, उसकी सही डीजाइनिंग में हमारी महारथ हो जाए तो हार्डवेयर के क्षेत्र में भी भारत दुनिया को पीछे करने का दम रखता है। कुछ साल पहले तक भारत में मोबाइल हैंड सेट नहीं बनते थे, लेकिन कुछ साल पहले तक भारत में मोबाइल हैंड सेट नहीं बनते थे, लेकिन कुछ साल पहले यहां असेंबल होना शुरू हए। अब मोबाइल हैंड के हमारे उत्पाद दुनिया में अपनी पहचान बनाने लगे हैं। सैंमसंग जैसी कंपनी ने नोएडा में डिस्पले बनाने का कारखाना लगाया है। मोबाइल यूजर जानते ही हैं कि कुछ साल पहले तक हैंड सेट का डिस्पले बदलना कितना महंगा था, अब कितने कम दाम पर इसे बदला जा सकता है।

केंद्र सरकार ने जो पहल की है, उससे चीन की मॉनोपॉली तो खत्म होगी ही, भारत भी हार्डवेयर के क्षेत्र में नया मुकाम हासिल कर सकेगा। संभव है इस कदम से ‘सोलर सेल’ बनाने का सिलसिला भी शुरू हो सके। सौर ऊर्जा का उपयोग करने वाले या इस व्यवसाय में लगे लोग बेहतर जानते हैं कि सोलर सेल के उत्पादन में चीन का लगभग एक तरफा कब्जा है। भारत इस क्षेत्र में आए तो चीन पर निर्भरता तो कम होगी ही, ये उपकरण भी सस्ते होंगे। वैसे भी चीनी उपकरण चले तो चांद तक, नहीं तो रात तक। उम्मीद की जानी चाहिए कि सेमी कंडक्टर के क्षेत्र में आने वाले कुछ समय में अच्छी खबर सुनने को मिलेगी। इस क्षेत्र में भी रोजगार सृजित होगा।

केन-बेतवा परियोजना से संवरेगा बुंदेलखड

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अरविंद जयतिलक

यह सुखद है कि डेढ़ दशक के इंतजार के बाद आखिरकार केन-बेतवा परियोजना को हरी झंडी मिल गयी है। केंद्र सरकार ने इस महत्वकांक्षी परियोजना पर मुहर लगा दी है जिससे बंुदेलखंड में विकास और प्रगति का एक नया सूर्योदय होना तय है। दशकों से पेयजल और सिंचाई संकट का सामना कर रहे बुंदेलखंडवासियों के लिए यह परियोजना किसी वरदान से कम नहीं है। ऐसा इसलिए कि इस परियोजना से कृषि उत्पादन बढ़ेगा और लोगों की आय में वृद्धि होगी। कृषि पर आधारित उद्योग-धंधे विकसित होंगे और अर्थव्यवस्था का पहिया घुमेगा। आय बढ़ने से समृद्धि का नया द्वार खुलेगा। गौर करें तो इस परियोजना से मध्यप्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी तथा उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी व ललितपुर जिले जलसंकट से मुक्त होंगे। उल्लेखनीय है कि इस परियोजना को आकार देने के लिए मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गत मार्च माह में विश्व जल दिवस के अवसर पर केंद्र सरकार के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। इस समझौते के मुताबिक इस परियोजना पर तकरीबन 44,605 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसका 90 फीसद खर्च भार केंद्र सरकार द्वारा उठाया जाएगा जबकि उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश दोनो ंमिलकर दस फीसद यानी पांच-पांच फीसद खर्च करेंगे। केंद्र सरकार ने इस योजना को पूरा करने के लिए आठ साल का समय सुनिश्चित किया है। इस परियोजना का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मध्यप्रदेश की केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में हस्तांतरित करना है। उल्लेखनीय है कि केन नदी मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है जिसकी कुल लंबाई 470 किमी है। यह नदी मध्यप्रदेश के कटनी जिले से निकलकर उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में मिलती है। केन नदी 292 किमी मध्यप्रदेश में बहती है। लेकिन उसके जल का उपयोग मध्यप्रदेश नहीं कर पाता है। अब केन-बेतवा परियोजना के तहत दौधन के पास एक बैराज बनाकर केन नदी के जल को रोका जाएगा। दौधन बांध से 221 किमी लंबी एक लिंक नहर का निर्माण कर केन बेसिन के 1074 मिलियन क्यूसेक मीटर अधिशेष जल को बेतवा बेसिन में पहुंचाया जाएगा। बेतवा नदी की भौगोलिक स्थिति पर दृष्टि डालें तो यह मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों में बहती है। इसे यमुना नदी की उपनदी भी कहा जाता है। यह मध्यप्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर भोपाल, विदिशा, झांसी, ललितपुर जिलों से गुजरती हुई तकरीबन 480 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए यमुना नदी में मिलती है। अगर यह परियोजना जमीन पर उतरती है तो जल संकट का मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों की प्यास बुझेगी तथा कृषि योग्य भूमि लहलहाएगी। इस परियोजना से मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के पन्ना जिले में 70 हजार हेक्टेयर, छत्तरपुर में 3 लाख 11 हजार 151 हेक्टेयर, दमोह में 20 हजार 101 हेक्टेयर, टीकमगढ़ एवं निवाड़ी में 50 हजार 112 हेक्टेयर, सागर में 90 हजार हेक्टेयर, रायसेन में 6 हजार हेक्टेयर, विदिशा में 20 हजार हेक्टेयर, शिवपुरी में 76 हजार हेक्टेयर एवं दतिया जिले में 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। इसी तरह उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के झांसी की तकरीबन 17488 हेक्टेयर, बांदा की 192479 हेक्टेयर, महोबा की 37564 हेक्टेयर और ललितपुर का तकरीबन 3533 हेक्टेयर भूमि सींचित होगी। यानी उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का तकरीबन 2.51 लाख हेक्टेयर असिंचित भूमि पानी से संतृप्त होगा। यानी देखें तो इस परियोजना से उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की तकरीबन 1062 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी। उत्तर प्रदेश के इन चार जिलों में रहने वाले तकरीबन 65 लाख लोगों की प्यास भी बुझेगी। झांसी को 14.66 एमसीएम, ललितपुर को 31.98 एमसीएम तथा महोबा को 20.13 एमसीएम पेयजल मिलेगा। इस परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश में दो बैराज भी बनने हैं जिससे 103 मेगावाट जल उर्जा और 27 मेगावाट सौर उर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा। इस परियोजना से झांसी को प्रेशराइज्ड पाइप सिस्टम एवं माइक्रो-इरीगेशन सिस्टम का फायदा मिलेगा। इस परियोजना का मुख्यालय भी झांसी में ही होगा। गौरतलब है कि केन-बेतवा परियोजना की पहली रुपरेखा 2002 में तैयार की गयी थी। वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश के बीच पानी बंटवारे का समझौता हुआ लेकिन यह परियोजना बर्फखाने में चली गयी। 2006 में पहली बार परियोजना के सर्वे के लिए जल विकास अधिकरण का गठन हुआ लेकिन फिर भी परियोजना परवान नहीं चढ़ी। 2019 में दोनों राज्यों में पुनः जलसमझौते को आकार देने की कोशिश हुई लेकिन बात नहीं बनी। उसका कारण यह था कि मध्यप्रदेश पूरे साल का पानी एक साथ उत्तर प्रदेश को देने की बात कर रहा था जबकि उत्तर प्रदेश फसली सीजन के मुताबिक पानी मांग रहा था। अब चूंकि केंद्र सरकार ने परियोजना पर मुहर लगा दी है जिससे बुंदेलखंड की तस्वीर बदलनी तय है। ध्यान दें तो बुंदेलखंड में पानी की कमी का मुख्य कारण नदी-नीति की विफलता ही रहा है। इस कारण आज तक चंबल, सिंध पहुज, बेतवा, केन, धसान, पयस्वनी इत्यादि उद्गम स्रोत होते हुए भी समूचा विंध्य क्षेत्र जलविहिन है। अगर इन नदियों के जल का संचय और सदुपयोग किया गया होता तो बुंदेलखंड में जल की कमी नहीं होती। लेकिन सच्चाई यह है कि बुंदेलखंड में पानी की समस्या दूर करने के लिए जितनी भी योजनाएं गढ़ी-बुनी गयी वह परवान नहीं चढ़ सकी। पानी की कमी के कारण यहां की औरतों की दारुण वेदना को जुबान पर सुनने को मिलता है कि ‘भौंरा तोरा पानी गजब करा जाए, गगरी न फूटे खसम मर जाए’। एक आंकड़े के मुताबिक बुंदेलखंड में औसतन 70 हजार लाख टन घनमीटर पानी प्रतिवर्ष वर्षा द्वारा उपलब्ध होता है। लेकिन विडंबना है कि इसका अधिकांश भाग तेज प्रवाह के साथ निकल जाता है। बेतवा नदी का प्रभाव ठुकवां बांध पर वर्षा ऋतु में 16800 घन मीटर प्रति सेकेंड होता है जो ग्रीष्म में घटकर 0.56 घन मीटर प्रति सेकेंड रह जाता है। इसी तरह पयस्वनी का प्रभाव वर्षा ऋतु में 2184 घन मीटर प्रति सेकेंड रहता है जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह 0.42 घन मीटर प्रति सेकेंड रह जाता है। अगर इन प्रवाहों को संचित कर उपयोग में लाया जाए तो इस क्षेत्र की भूमि को लहलहाते देर नहीं लगेगी। गौर करें तो केन और बेतवा को छोड़कर अन्य नदियों का जल बिना उपयोग के यमुना नदी में प्रवाहित हो जाता है। बुंदेलखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 70 हजार वर्ग किलोमीटर है। यह वर्तमान हरियाणा और पंजाब से अधिक है। इसमें उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 13 जनपद तथा समीपवर्ती भू-भाग है जो यमुना और नर्मदा नदी से आबद्ध है। मध्यप्रदेश के सागर संभाग के पांच जिले-छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, सागर और दमोह और चंबल का दतिया जिला मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में आते हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग के सभी सात जिले- बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर, जालौन, महोबा और हमीरपुर बुंदेलखंड में आते हैं। यह बुंदेलखंड की विडंबना है कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक एकरुप भौगोलिक क्षेत्र होने के बावजूद यह दो राज्यों में बंटा हुआ है। बावजूद इसके बुंदेलखंड विकास की असिमित संभावनाओं को अपनी कोख में संजोए हुए है। उसके पास इतने अधिक संसाधन है कि वह अपने बहुमुखी उत्थान की आर्थिक व्यवस्था स्वतः कर सकता है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब उसका कोख जल से संतृप्त होगा। उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड की दुर्दशा को ध्यान में रखकर ही 1956 में गठित प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाए जाने का वकालत किया गया था। आयोग के सदस्य केएम पणिक्कर ने कहा था कि बुंदेलखंड को अलग राज्य नहीं बनाया गया तो वह उड़ीसा के कालाहांडी से भी बदतर स्थिति में होगा। बहरहाल बुंदेलखंड के अलग राज्य का सपना तो दूर है, लेकिन केन-बेतवा परियोजना से उम्मीद की आस बंधी है।

जीवन का मार्गदर्शक है गीता

अरविंद जयतिलक

पाश्चात्य जगत में विश्व साहित्य का कोई भी ग्रंथ इतना अधिक उद्धरित नहीं हुआ है जितना कि भगवद्गीता। भगवद्गीता ज्ञान का अथाह सागर है। जीवन का प्रकाशपूंज व दर्शन है। शोक और करुणा से निवृत होने का सम्यक मार्ग है। भारत की महान धार्मिक संस्कृति और उसके मूल्यों को समझने का ऐतिहासिक-साहित्यिक साक्ष्य है। इतिहास भी है और दर्शन भी। समाजशास्त्र और विज्ञान भी। लोक-परलोक दोनों का आध्यात्मिक मूल्य भी। आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र तथा भक्त अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता का तब उपदेश दिया जब वे सत्य की रक्षा के लिए अपने बंधु-बांधवों से युद्ध करने में हिचक रहे थे। गीता के रुप में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला यह उपदेश किसी जाति, धर्म और संप्रदाय की सीमा से आबद्ध नहीं है। बल्कि यह संपूर्ण मानव जाति के कल्याण का मार्ग है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर संपूर्ण संसार को सत्य का बोध कराया है। ब्रहमपुराण के अनुसार द्वापर युग में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया। गीता का उपदेश मोह का नाश करने वाला है। इसीलिए एकादशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है। युद्ध में जब अर्जुन मोहग्रस्त होकर अपने आयुध रख दिए थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें नश्वर भौतिक शरीर और नित्य आत्मा के मूलभूत अंतर को समझाकर युद्ध के लिए तैयार किया। बिना फल की आशा किए बिना कर्म का संदेश दिया। श्रीकृष्ण के उपदेश से अर्जुन का संकल्प जाग्रत हुआ। कर्तव्य का बोध हुआ। ईश्वर से आत्म साक्षात्कार हुआ। उन्होंने कुरुक्षेत्र में अधर्मी कौरवों को पराजित किया। सत्य और मानवता की जीत हुई। अन्याय पराजित हुआ। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से जगत को समझाया कि निष्काम कर्म भावना में ही जगत का कल्याण है। श्रीकृष्ण का उपदेश ही गीता का अमृत वचन है। उन्होंने गीता के जरिए दुनिया को उपदेश दिया कि कौरवों की पराजय महज पांडवों की विजय भर नहीं बल्कि धर्म की अधर्म पर, न्याय की अन्याय पर और सत्य की असत्य पर जीत है। श्रीकृष्ण ने गीता में धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य और न्याय-अन्याय को भलीभांति परिभाषित किया है। उन्होंने धृतराष्ट्र पुत्रों को अधर्मी, पापी और अन्यायी तथा पाडुं पुत्रों को पुण्यात्मा कहा है। उन्होंने संसार के लिए क्या ग्राहय और क्या त्याज्य है उसे भलीभांति समझाया। श्रीकृष्ण के उपदेश ज्ञान, भक्ति और कर्म का सागर है। भारतीय चिंतन और धर्म का निचोड़ है। समस्त संसार और मानव जाति के कल्याण का मार्ग है। गीता श्रीकृष्ण द्वारा मोहग्रस्त अर्जुन को दिया गया उपदेश है। विश्व संरचना का सार तत्व है। गीता महज उपदेश भरा ग्रंथ ही नहीं बल्कि मानव इतिहास की सबसे महान सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक और राजनीतिक वार्ता भी है। संसार की समस्त शुभता गीता में ही निहित है। गीता का उपदेश जगत कल्याण का सात्विक मार्ग और परा ज्ञान का कुंड है। श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में खड़े अर्जुन रुपी जीव को धर्म, समाज, राष्ट्र, राजनीति और कुटनीति की शिक्षा दी। प्रजा के प्रति शासक के आचरण-व्यवहार और कर्म के ज्ञान को उद्घाटित किया। गीता में संसार को संदेश है कि दुर्योधन, कर्ण, विकर्ण, जयद्रथ, कृतवर्मा, शल्य, अश्वथामा जैसे अहंकारी और अत्याचारी जीव राष्ट्र-राज्य के लिए शुभ नहीं होते। वे सत्ता और ऐश्वर्य के लोभी होते हैं। श्रीकृष्ण ने ऐसे लोगों को संसार के लिए विनाशक कहा है। उदाहरण देते हुए समझाया है कि विष देने वाला, घर में अग्नि लगाने वाला, घातक हथियार से आक्रमण करने वाला, धन लूटने वाला, दूसरों की भूमि हड़पने वाला और पराई स्त्री का अपहरण करने वालों को अधम और आतातायी कहा है। श्रीकृष्ण ने इन लोगों को भी ऐसा ही कहा है। उन्होंने गीता में समाज को प्रजावत्सल शासक चुनने का संदेश दिया है। अहंकारी, आतातायी, भोगी और संपत्ति संचय में लीन रहने वाले आसुरी प्रवत्ति के शासकों को राष्ट्र के लिए अशुभ और आघातकारी बताया है। कहा है कि ऐसे शासक प्रजावत्सल नहीं बल्कि प्रजाहंता होते हैं। संतों का कहना है कि गीता का उपदेश वैखरी वाणी से नहीं बल्कि परावाणी से दिया गया था। तत्वज्ञानियों का कहना है कि इस माध्यम से लाखों शब्दों का संदेश क्षण भर में दिया जा सकता है। तत्वज्ञानियों का तर्क है कि क्षण भर के स्वप्न में व्यक्ति संपूर्ण जीवन और जन्म-जन्मांतरों के अनुभवों से जुड़ सकता है। यह संभव है कि श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद इसी रुप में हुआ हो। तत्वज्ञानियों का चिंतन और उनका सम्यक विचार आज भी गीता की महत्ता और उसकी प्रासंगिकता को संदर्भित कर रहा है। शास्त्रीय दृष्टि से महाभारत एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, गीता जिसका एक छोटा सा अंश है। महाभारत में एक लाख से अधिक श्लोक हैं जिसमें से सात सौ बीस श्लोकों का ग्रंथ गीता है। यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक मूल्यों का संवाहक है बल्कि वैदिक परंपरा और चिंतन का सारतत्व भी है। डा0 राधाकृष्णन् के अनुसार यह धर्मग्रंथ कम, मनोविज्ञान, ब्रहमविद्या और योग का ग्रंथ ज्यादा है। भाषा के तौर पर यह काव्य है लेकिन विषय के तौर पर अध्यात्म है। निर्वाण व मुक्ति का मार्ग है तो विश्लेषण व विवेचन के तौर पर जीवन जीने का संयमित मार्ग है। संसार में रहते हुए उससे अप्रभावित रहने की कला है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि ज्ञानयोग से बुद्धि, कर्मयोग से इच्छा और भक्तियोग से भाव स्थिर होते हैं। यानी गीता कर्म संस्कार को परिमार्जित करने वाला एक दिव्य गं्रथ है। विश्व के महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है कि भगवद्गीता को पढ़कर मुझे ज्ञान हुआ कि इस दुनिया का निर्माण कैसे हुआ और जीवन को किस तरह जीया जाना चाहिए। महापुरुष महात्मा गांधी अकसर कहा करते थे कि जब मुझे कोई परेशानी घेर लेती है तो मैं गीता के पन्नों को पलटता हूं। महान दार्शनिक श्री अरविंदों ने कहा है कि भगवद्गीता एक धर्मग्रंथ व एक ग्रंथ न होकर एक जीवन शैली है, जो हर उम्र के लोगों को अलग संदेश और हर सभ्यता को अलग अर्थ समझाती है। गीता के प्रथम अध्याय में कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में अर्जुन रुपी जीव द्वारा मोहग्रस्त होना, करुणा से अभिभूत होकर अपनी शक्ति खो देना इत्यादि का भलीभांति उल्लेख है। दूसरा अध्याय हमें देहान्तरण की प्रक्रिया, परमेश्वर की निष्काम सेवा के अलावा स्वरुपसिद्ध व्यक्ति के गुणों से अवगत कराता है। तीसरे, चैथे व पांचवे अध्याय में कर्मयोग और दिव्य ज्ञान का उल्लेख है। यह अध्याय इस सत्य को उजागर करता है कि इस भौतिक जगत में हर व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार के कर्म में प्रवृत होना पड़ता है। छठा, सातवां और आठवें अध्याय में ध्यानयोग, भगवद्ज्ञान और भगवद् प्राप्ति कैसे हो इसका मार्ग सुझाया गया है। ध्यानयोग में बताया गया है कि अष्टांगयोग मन तथा इन्द्रियों को कैसे नियंत्रित करता है। भगवद्ज्ञान में भगवान श्रीकृष्ण को समस्त कारणों के कारण व परमसत्य माना गया है। नवें और दशवें अध्याय में परम गुह्य ज्ञान व भगवान के ऐश्वर्य का उल्लेख है। कहा गया है कि भक्ति के मार्ग से जीव अपने को ईश्वर से सम्बद्ध कर सकता है। ग्यारहवें अध्याय में भगवान का विराट रुप और बारहवें में भगवद् प्राप्ति का सबसे सुगम और सर्वोच्च मार्ग भक्ति को बताया गया है। तेरहवें और चैदहवें अध्याय में प्रकृति, पुरुष और चेतना के माध्यम से शरीर, आत्मा और परमात्मा के अंतर को समझाया गया है। बताया गया है कि सारे देहधारी जीव भौतिक प्रकृति के तीन गुणों के अधीन हैं-वे हैं सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण। कृष्ण ने वैज्ञानिक तरीके से इसकी व्याख्या की है। पंद्रहवें अध्याय में वैदिक ज्ञान का चरम लक्ष्य भौतिक जगत के पाप से अपने आप को विलग करने की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। सोलहवें, सत्रहवें और अन्तिम अठारहवें अध्याय में दैवी और आसूरी स्वभाव, श्रद्धा के विभाग व संन्यास सिद्धि का उल्लेख है। गीता ज्ञान का सागर और जीवन रुपी महाभारत में विजय का मार्ग भी है। 

काशी- अयोध्या के दर्शन के साथ बीजेपी के मुख्यमंत्रियों को चुनावी कमान

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एक दर्जन मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री तीन दिन तक काशी-अयोध्या में।  

आनन्द अग्निहोत्री

काशी में विश्वनाथ कॉरीडोर लोकार्पण समारोह अपने आप में अद्भुत रहा। इसका जो संदेश देश-दुनिया में जाना था वह तो गया ही लेकिन समारोह के साये तले जिस तरह सियासी कवायद हुई इसके पीछे जरूर कुछ न कुछ और है जो अभी परदे के सामने नहीं आ रहा है। यह ठीक है कि कार्यक्रम के केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे लेकिन सभी भाजपाई राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा उप मुख्यमंत्रियों का काशी समारोह में पहुंचना अनायास नहीं था। यह प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में अपनी उपस्थिति दर्शाने की ललक मात्र नहीं थी। गंगा नदी का नौका विहार क्या रंग लाता है, समय बतायेगा।

अगर मुख्यमंत्रियों, उप मुख्यमंत्रियों की सिर्फ मुंह दिखाई होती तो समारोह के बाद सभी भाजपाई मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों को रवाना हो जाते। इसके विपरीत सभी मुख्यमंत्री बुधवार को अयोध्या पहुंच रहे हैं। कहने को सभी रामलला के दर्शन और हनुमान गढ़ी में पूजन करेंगे, लेकिन इस जमावड़े का मकसद सिर्फ दर्शन और पूजन तो नहीं लगता। इन सभी मुख्यमंत्रियों का तीन-तीन दिन उत्तर प्रदेश में रहना सामान्य बात नहीं है। इसके पहले तो कभी ऐसा कुछ हुआ नहीं। निश्चित रूप से इसके पीछे केन्द्र की मोदी सरकार के साथ-साथ प्रदेश की योगी सरकार का कुछ न कुछ मंतव्य भी है।

भाजपाई राज्यों के मुख्यमंत्री धार्मिक समारोह में काशी पहुंचते हैं। वहीं प्रधानमंत्री मोदी 12 घंटे के भीतर एक नहीं, दो-दो बार इन सभी मुख्यमंत्री के साथ बैठक करते हैं, नसीहतें देते हैं। सवाल यह है कि ये नसीहतें क्यों दी गयीं। जो भी बातें छनकर आयीं उनके मुताबिक प्रधानमंत्री ने अपनी हिदायतों में विकास को केन्द्र में रखा। इन बैठकों का मूल मंतव्य क्या था, यह फिलहाल सामने नहीं आया है। सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है। यह तो सभी जानते हैं कि अगले साल पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा की विधान सभाओं के चुनाव होने हैं। इन सबमें भी प्रमुख है उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव क्योंकि माना यही जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी अपना अगला मोर्चा सुगम बनाने के लिए ज्यादा ध्यान उत्तर प्रदेश पर फोकस कर रहे हैं।

और करें भी क्यों नहीं, उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक संसदीय सीटें हैं। अगर अगले साल के विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार महफूज रहती है तो वर्ष 2024 के आम चुनाव में नरेन्द्र मोदी की डगर आसान हो जायेगी। साफ है कि उनका पहला ध्यान उत्तर प्रदेश में भाजपा को सत्ता में बरकरार रखना है। यही कारण है कि काशी विश्वनाथ लोकार्पण समारोह में उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, मणिपुर और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पहुंचे। सभी मुख्यमंत्री अपनी इच्छा से समारोह में पहुंचे हों, ऐसा तो नहीं लगता। परदे के पीछे जरूर कहीं न कहीं उनसे इस बारे में कहा गया होगा। प्रधानमंत्री अलकनंदा क्रूज में दो बार मीटिंग कर डिनर भी उसी में करते हैं। रात बारह बजे मीटिंग खत्म कर काशी का विकास देखने निकलते हैं। इससे उन मुख्यमंत्रियों पर भी दबाव पड़ा है जो विकास कार्यों का औचक निरीक्षण करने की जहमत नहीं उठाते।

सियासी गलियारों की चर्चाओं पर ध्यान दें तो लगता है कि विकास की बात तो आवरण है, सभी मुख्यमंत्रियों की उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में चुनावी भूमिका तय की गयी है। बैठक में सम्भवत: उन्हें बताया गया है कि चुनावों में उन्हें क्या भूमिका निभानी है। किसके जिम्मे क्या कार्य है और उसे कैसे इसे कार्यरूप में परिणत करना है, इन सब बातों में मुख्यमंत्रियों को अवगत कराया गया है। आपको बता दें कि भाजपा से पहले यह फार्मूला कांग्रेस आजमा चुकी है। उसने छत्तीसगढ़ और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों को ऐसी ही जिम्मेदारी सौंपी है। सम्भवत: इसी रणनीति के तहत भाजपाई मुख्यमंत्री अयोध्या पहुंच रहे हैं। रामनगरी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ बैठक कर ये सभी अपने दायित्वों के प्रति सामंजस्य बैठा सकते हैं। हालांकि बाह्य तौर पर भाजपा का कोई भी वरिष्ठ पदाधिकारी इस बारे में कुछ भी कहने से कतरा रहा है, लेकिन सुविज्ञ सूत्र यही कहानी कह रहे हैं।

कांग्रेसियों की तालियों ने बता दिया कि पनाला वहीं गिरेगा

आनन्द अग्निहोत्री
अक्सर कोई विवाद होने पर एक नजीर दी जाती है, वह यह कि पंचों की बात सिरमाथे लेकिन पनाला वहीं गिरेगा यानि पंचों की बात मानने से इनकार नहीं लेकिन हम वही करेंगे जो हमारा मन कहेगा। आप मानें या न मानें, लेकिन लगता है कि सोनिया गांधी पर यह उक्ति बिल्कुल फिट बैठती है। कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर लम्बे समय से घमासान चल रहा है। लेटर वार से लेकर और न जाने क्या-क्या हो चुका है। इसे लेकर कई दिग्गज या तो खामोश होकर बैठ गये हैं या फिर उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया है, भले ही उन्होंने किसी पार्टी को ज्वाइन न किया हो। देश के मतदाताओं के बीच राहुल गांधी की क्या छवि बन गयी है, इससे सोनिया गांधी भी अपरिचित नहीं लेकिन पुत्रमोह के वशीभूत होकर उनकी जिद है कि चाहे कांग्रेस का सवा सत्यानाश हो जाये लेकिन अध्यक्ष राहुल गांधी ही रहेंगे। जयपुर में रविवार को हुई कांग्रेस रैली इसका एक और सुबूत है। पूरी रैली में सोनिया ने एक शब्द भी नहीं बोला। राहुल बोलते रहे और सोनिया ताली बजाती रहीं। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। जनता यह सोचकर आयी थी कि उन्हें सोनिया गांधी से भी कुछ सुनने को मिलेगा लेकिन मिलीं मात्र तालियां। फिलहाल मौजूदा समय कांग्रेस का कोई अध्यक्ष नहीं है, सोनिया गांधी ही कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में यह पदभार संभाल रही हैं।
कांग्रेस में अंदरखाने राजीव गांधी की बड़ी पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा को भी अध्यक्ष बनाने की मांग उठी थी तब उन्हें रायबरेली और अमेठी तक सीमित कर दिया गया। अब उन्हें स्वतंत्र रूप से उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। इसके क्या परिणाम निकलते हैं यह तो चुनाव के नतीजे ही बतायेंगे। फिलहाल इतना तो है कि प्रियंका ने बेदम कांग्रेस में दम फूंकने का सशक्त प्रयास किया है। इसके विपरीत राहुल गांधी की क्या छवि है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि जिन सूबों में कांग्रेस की सरकार है वह वहां के क्षेत्रीय छत्रपों के दम पर है। इसमें राहुल गांधी का कोई योगदान नजर नहीं आता।
जयपुर में रविवार को कांग्रेस पार्टी ने महंगाई के बहाने केंद्र सरकार की घेराबंदी की। हालांकि इस ‘महंगाई हटाओ रैली’ से पार्टी को कितना फायदा होगा यह तो आने वाला समय बताएगा, फिलहाल कांग्रेस ने यह संदेश जरूर दे दिया है कि एक बार फिर पार्टी की बागडोर राहुल गांधी के हाथ में सौंपी जा रही है। मंच पर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी मौजूद जरूर रहीं, लेकिन भारी संख्या में उमड़े पार्टी समर्थकों को उनके मुंह से एक शब्द भी सुनने को नहीं मिला। सबसे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की बागडोर संभालने वालीं सोनिया की इस चुप्पी ने ही वह सब कह दिया, जो बताने के लिए संभवत: इस रैली का आयोजन किया गया था।
2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार की वजह से राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था। तब से ही सोनिया अंतिरम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की बागडोर संभाल रही हैं। संगठन चुनाव को लेकर पार्टी में उठती आवाज के बावजूद कांग्रेस ने नए अध्यक्ष के चुनाव को सितंबर 2022 तक टाल दिया है। पार्टी में बागी रुख अपना कुछ नेता दबी जुबान में गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को पार्टी की कमान संभालने की वकालत करते हैं। लेकिन पार्टी का एक धड़ा मानता है कि राहुल गांधी ही पार्टी का भविष्य हैं।
पार्टी के सूत्र कहते हैं कि राहुल भले ही अभी अध्यक्ष न बने हों, लेकिन पार्टी से जुड़ा हर बड़ा फैसला वही ले रहे हैं। वह पिछले दिनों पंजाब में हुए घटनाक्रम की ओर इशारा करते हैं। सोनिया के विश्वासपात्र रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस तरह साइडलाइन करके राहुल और प्रियंका की पसंद नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस की कमान दी गई थी, उससे साफ हो गया था कि अब राहुल ही कप्तान हैं। जयपुर की रैली में भी इस बात को और पुष्ट किया गया। यहां सोनिया गांधी टीम की कोच और मार्गदर्शक की भूमिका में नजर आईं। राहुल गांधी भी पूरे रंग में दिखे। उन्होंने गैस सिलेंडर से लेकर पेट्रोल-डीजल तक की महंगाई पर केंद्र सरकार को घेरा तो हिंदू और हिंदुत्ववादियों में फर्क बताने के लिए कई दलीलें दीं। इस दौरान सोनिया लगातार तालियां बजाती रहीं। राजनीतिक जानकार इस रैली को राहुल की अघोषित ताजपोशी के रूप में देख रहे हैं।

नव्य, दिव्य, भव्य काशी को देख दुनियाँ अचंभित, पीएम मोदी को आभार

काशी तो काशी है! काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है।   जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हों, उस काशी को भला कौन रोक सकता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के पहले फेज के लोकार्पण के अवसर पर ये बात कही। इससे पहले पीएम मोदी ने ‘काशी के कोतवाल’ कहे जाने वाले प्राचीन काल भैरव मंदिर में दर्शन किए और गंगा नदी में स्नान भी किया। पीएम मोदी ने उद्घाटन से पहले काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के निर्माण में काम करने वाले श्रमिकों पर फूल बरसाकर उनका अभिवादन किया। इस मौके पर देश के सभी ज्योतिर्लिंग और मंदिरों में समूहिक पूजन अर्चन कर बाबा विश्वनाथ का ध्यान किया गया। काशी के दरबार में सीएम योगी ने कहा कि 1000 साल तक बाबा विश्वनाथ का धाम विपरित परिस्थितियों में रहा. उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों की प्रतीक्षा पूरी हुई, ऐसा कहा जाता रहा है कि मां गंगा या तो भगीरथ की जटाओं में उलझी या फिर काशी के मणिकर्णिका घाट पर उलझी रही, लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से आज हमको ये उपहार मिला है।  

उर्वशी ने इज़राइल के नेता को पढ़ाया भागवत गीता का पाठ

ब्यूटी क्वीन और बॉलीवुड एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला ने हाल ही में इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात की। वहां उन्होंने पीएम मोदी के दोस्त और इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को भारत की ओर से यादगार तोहफा दिया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री को ‘भगवद् गीता’ भेंट की। उर्वशी ने इन्स्टाग्राम पर यह जानकारी दी है। साथ ही उन्होंने बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात की तस्वीर भी साझा की।  

फोटो शेयर करते हुए उर्वशी ने लिखा है, ‘इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री को धन्यवाद, मुझे और मेरे परिवार को आमंत्र‍ित करने के लिए। #RoyalWelcome.’ आगे अपने तोहफे का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा, ‘मेरी भगवद् गीता। जब किसी सही शख्स को सही समय और सही जगह पर दिल से कोई तोहफा दिया जाए और बदले में किसी दूसरी चीज की उम्मीद ना हो, तो वह तोहफा हमेशा प्योर होता है।’

स्त्रियां उपनिवेश और जागीर नहीं

अरविंद जयतिलक

गत दिवस पहले प्रकाशित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएचएफएस-5) का यह तथ्य चैंकाने वाला रहा कि 14 राज्यों की 30 फीसद महिलाएं पति से पिटने को जायज कहा है। इस सर्वेक्षण के मुताबिक तीन राज्यों में 77 फीसद से ज्यादा महिलाओं ने पति से पिटने का समर्थन किया है। आंकड़ों पर गौर करें तो कर्नाटक की 77 फीसद, तेलंगाना एवं आंध्रप्रदेश की 84, मणिपुर की 66, केरल की 52, महाराष्ट्र की 44, पश्चिम बंगाल की 42 और जम्मू-कश्मीर की 49 फीसद महिलाओं ने पिटने का समर्थन किया है। यहां ध्यान देना होगा कि सर्वेक्षण के तहत महिलाओं से सवाल पूछा गया था कि क्या वे पति से पिटने को ठीक मानती हैं तो अधिकांश महिलाओं का उत्तर ’हां‘ में था। फिलहाल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 का तथ्य कितना वैज्ञानिक और तर्कयुक्त है यह कहना तो मुश्किल है लेकिन जो तथ्य सामने आए हैं वह न सिर्फ ंिचंतित और निराश करता है बल्कि अचंभित भी करता है। सवाल लाजिमी है कि आखिर एक महिला अपने पति के हाथों पिटने का समर्थन कैसे कर सकती है। सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं ने कहा है कि चूंकि पति उन पर शक, ससुराल के लोगों का सम्मान न करने, बिना बताए घर से बाहर जाने, संबंध बनाने से इंकार करने और बच्चों का ध्यान न रखने को जिम्मेदार ठहरा पिटते हैं। भला कोई महिला इसे किस तरह जायज ठहरा सकती है। यह कोई पहला सर्वे नहीं है जहां पत्नियों पर पतियों के अत्याचार का मामला सामने आया हो। याद होगा गत वर्ष पहले यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘हिडेन इन प्लेन साइट’ में भी कहा गया था कि भारत में 15 साल से 19 साल की उम्र वाली 34 फीसद विवाहित महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने पति या साथी के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेली हैं। इसी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख था कि 15 साल से 19 साल तक की उम्र वाली 77 फीसद महिलाएं कम से कम एक बार अपने पति या साथी के द्वारा यौन संबंध बनाने या अन्य किसी यौन क्रिया में जबरदस्ती का शिकार हुई हैं। इसी तरह 15 साल से 19 साल की उम्र वाली लगभग 21 फीसद महिलाएं 15 साल की उम्र से ही हिंसा झेली हैं। 15 साल से 19 साल के उम्र समूह की 41 फीसद लड़कियों ने 15 साल की उम्र से अपनी सौतेली मां या पिता के हाथों शारीरिक हिंसा झेली हैं जबकि 18 फीसद ने अपने पिता या सौतेले पिता के हाथों शारीरिक हिंसा झेली है। रिपोर्ट में यह भी उद्घाटित हुआ था कि जिन लड़कियों की शादी नहीं हुई, उनके साथ शारीरिक हिंसा करने वालों में पारिवारिक सदस्य, मित्र, जान-पहचान के व्यक्ति और शिक्षक थे। गत वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष तथा वाशिंगटन स्थित संस्था ‘इंटरनेशनल सेंटर पर रिसर्च आॅन वुमेन’(आईसीआरडब्ल्यु) से भी उद्घाटित हो चुका है कि भारत में 10 में से 6 पुरुषों ने कभी न कभी अपनी पत्नी अथवा प्रेमिका के साथ हिंसक व्यवहार किया है। रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रवृत्ति उन लोगों में ज्यादा देखी गयी जो आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। 52 फीसद महिलाओं ने स्वीकार  किया कि उन्हें किसी न किसी तरह हिंसा का सामना करना पड़ा है। 38 फीसद महिलाओं ने घसीटे जाने, पिटाई, थप्पड़ मारे जाने तथा जलाने जैसे शारीरिक उत्पीड़नों का सामना करने की बात स्वीकारी। यह खुलासे बेहद चिंतनीय और शर्मसार करने वाले हैं। विचार करें तो घर और समाज में पत्नियों और बेटियों को आदर-सम्मान न मिलने का ही नतीजा है कि आज सार्वजनिक स्थानों पर भी उनके साथ ज्यादती होती है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि लोगों में महिला अत्याचार विरोधी कानून से खौफ नहीं है। या यह भी कह सकते हैं कि कानून का ईमानदारी से पालन नहीं हो रहा है। यह स्थिति तब है जब देश में महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध कानूनी संरक्षण हासिल है। भारतीय महिलाओं के अपराधों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने तथा उनकी आर्थिक तथा सामाजिक दशाओं में सुधार करने हेतु ढ़ेर सारे कानून बनाए गए हैं। इनमें अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट-रुपण प्रतिषेध अधिनियिम 1986, गर्भाधारण पूर्व लिंग-चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध, प्रतितोष) अधिनियम 2013 प्रमुख हैं। लेकिन इसके बावजूद भी महिलाओं पर अत्याचार थम नहीं रहा है तो इसके लिए हम सिर्फ सरकार या कानून का अनुपालन न होने का बहाना बना निश्चिंत नहीं हो सकते। इस हालात के लिए हमारे समाज की सामाजिक-धार्मिक मनोभावना और दकियानुसी अवधारणा भी जिम्मेदार है। देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अब भी मानते हैं कि स्त्रियों को बचपन में पिता के अधीन, जवानी में पति और बुढ़ापे में पुत्र के अधीन रहना चाहिए। अगर समाज में इस तरह की भेदभावपरक प्रवृत्ति मौजूद रहेगी तो स्वाभाविक रुप से महिलओं पर अत्याचार बढ़ेगा। यह सही है कि दांपत्य जीवन में पति-पत्नी के बीच तकरार और मनमुटाव होता है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि संपूर्ण दांपत्य जीवन को ही दांव पर लगा दिया जाए। हालात तब प्रतिकूल होते हैं जब पतियों द्वारा पत्नियों को अनावश्यक प्रताड़ित किया जाने लगता है। चूंकि आज महिलाएं पढ़ी-लिखी होने के साथ-साथ अपने उत्तरदायित्वों व अधिकारों को अच्छी तरह समझती हैं लिहाजा वह अपने उपर होने वाले अत्याचारों का प्रतिकार करती हैं। यह आवश्यक भी है। भारतीय पुरुष समाज को समझना होगा कि स्त्रियां गुलाम और उपनिवेश नहीं हैं जिसपर कब्जा करके रखा जाए। उचित तो यह होगा कि पति और पत्नी एकदूसरे पर विश्वास करें। पति-पत्नी जितने प्रेम से भरे होंगे, परिवार में सुख की संभावना उतनी ही बढ़ेगी। लेकिन विडंबना है कि हमारा भारतीय परिवार उदात्त जीवन व सनातन मूल्यों का लगातार परित्याग कर रहा है। नतीजा सामने है। दांपत्य जीवन की चुनौतियां बढ़ रही हैं। विचार करें तो इसके लिए सर्वाधिक रुप से पुरुष समाज ही जिम्मेदार है। सवाल लाजिमी है कि जिन कार्यों को करने से पत्नियों को मना किया जाता है वह पति के लिए उचित और आदर्श कैसे हो सकता है? पति और पत्नी गृहस्थ जीवन के दो पहिए हैं। जब दोनों पहिए एक साथ, एक गति और एक लय में आगे बढ़ेंगे तभी गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ेगी। एक पहिए को कमजोर कर दूसरे को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। अक्सर देखा जाता है कि जब कभी पत्नियां अपने अधिकारों और मुक्ति के लिए साहस दिखाती हंै या पति की ही भाषा में जवाब देती हैं तो पति का अहंकार जाग उठता है। वह तमाम शास्त्रों, उपनिषदों और महाकाव्यों का हवाला देकर पत्नियों को लक्ष्मण रेखा की हद में रहने की याद दिलाता है। नैतिकता का हवाला देकर पत्नी धर्म का पाठ पढ़ाता है। यह उपदेश सुनाने लगता है कि पत्नी का आचरण कैसा होना चाहिए और उसे क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए। उसे क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं पहनना चाहिए। अगर पत्नी इस फरमान को नकारती है तो फिर उसे कुलटा, व्यभिचारिणी, और परपुरुषगामिनी जैसे घृणित विशेषणों से नवाजकर लांक्षित करता है। यही नहीं आवेश में आकर उसकी निर्ममता से हत्या भी कर देता है। प्राचीन समाज की अधिनायकवादी व्यवस्था और कुप्रवृत्तियों को तो जाने दीजिए आधुनिक समाज की दृष्टि में भी पुरुषों के लिए पत्नियां सिर्फ आखिरी उपनिवेश भर रह गयी हैं। अचंभित करने वाला तथ्य यह कि पुरुष समाज ने खुद के लिए नहीं लेकिन स्त्रियों के लिए जरुर मापदंड तय कर रखा है। पुरुष समाज मान बैठा है कि उसके अत्याचारों को सहना ही पत्नियों केे लिए पति धर्म का पालन है। इसी खतरनाक मानसिकता का परिणाम है कि आज देश में महिलाओं से छेड़छाड़, बलात्कार, यातनाएं, अनैतिक व्यापार, दहेज मृत्यु तथा यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। उचित होगा कि पुरुष समाज पितृसत्तात्मक मानसिकता के केंचुल को उतार फेंक महिलाओं का सम्मान करे।