Wednesday, December 17, 2025
Home Blog Page 114

चाँद लाएगा नौ साल बाद धरती पर प्रलय

धरती में प्रलय के किस्से तो आपने बहुत से सुने होंगे लेकिन चंदा मामा की वजह से धरती पर प्रलय की आशंका पहली बार जताई गई है। महज नौ सालों बाद चाँद के कारण धरती पर प्रलय आएगी। यह सिलसिला समय के साथ बढ़ता ही जाएगा।

धरताई पर मौसम में बदलाव की वजह पृथ्वी का पड़ोसी चांद भी हो सकता है। इस अध्ययन को अमेरिकन स्पेस एजेंसी नेशनल एयरोनॉटिक्स और स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा  ने अंजाम दिया है। जो कहती है कि जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते समुद्र के जलस्तर के साथ चांद के अपनी कक्षा में ‘डगमगाने’ से धरती पर विनाशकारी बाढ़ आएगी। ये अध्ययन क्लाइमेट चेंज पर आधारित जर्नल नेचर में 21 जून को प्रकाशित हुआ है।

चांद के चलते उत्पन्न होने वाली बाढ़ की स्थिति को अध्ययन में ‘उपद्रवी बाढ़’ कहा गया है। इस तरह की बाढ़ तटीय इलाकों में आती है, जब समुद्र की लहरें रोजाना की औसत ऊंचाई के मुकाबले 2 फीट ऊंची उठती हैं। ऐसी स्थितियां व्यापार के लिए समस्या पैदा करती हैं, जब घर और सड़क पानी में डूब जाती हैं और रोजाना कि दिनचर्या प्रभावित होती है। नासा के अध्ययन के मुताबिक बाढ़ की ये स्थिति 2030 के मध्य में ज्यादा बनेगी और अनियमित भी होगी।  अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिकी तटीय इलाकों में समुद्र की लहरें अपनी सामान्य ऊंचाई के मुकाबले तीन से चार फीट ऊंची उठेंगी और ये सिलसिला एक दशक तक जारी रहेगा। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि बाढ़ की ये स्थिति पूरे साल में नियमित तौर पर नहीं रहेगी, बल्कि कुछ महीनों के दरम्यान ये पूरी स्थिति बनेगी, जिससे इसका खतरा और बढ़ जाएगा।

जवान भारत को बूढ़ा होने से रोकेगा मास्टर प्लान

  • केंद्र सरकार ने तैयार किया जनसंख्या नियंत्रण का मास्टर प्लान

मनीष शुक्ल

वरिष्ठ पत्रकार

भारत भले ही आज दुनियाँ के जवान देशों की लाइन में खड़ा हो लेकिन महज छह साल बाद हमारी गिनती सबसे बूढ़े देश के रूप में होने लगेगी। हम 2027 के आस-पास चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश हो जाएंगे। यह संभावना संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग के ‘‘पॉपुलेशन डिविजन’’ ने जताई है। भारत की जनसंख्या में 2050 तक 27.3 करोड़ की वृद्धि हो सकती है। इस हिसाब से 2050 तक हमारी कुल आबादी 164 करोड़ होने का अनुमान है। निश्चित रूप से ये आंकड़ें चौंकाने वाले हैं।

अगर देखा जाए तो हम जनसंख्या के उस ज्वालामुखी पाए बैठे हैं जो कभी भी फट सकता है। इसकी चिंता यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वसरमा जता चुके हैं। यूपी और आसाम में नई जनसंख्या नीति को लागू करने की कवायद शुरू की गई है। हालांकि जब तक राष्ट्रीय स्तर प्रत्येक राज्य से जनसंख्या नियंत्रण की पहल नहीं होती है। उस समय तक जनसंख्या विस्फोट को रोकना संभव नहीं है। अगर जाति, धर्म और प्रांत के नाम पर जनसंख्या नियंत्रण का विरोध शुरू हुआ तो आने वाले समय में स्थिति भयावह होगी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2050 तक वैश्विक जनसंख्या में जो वृद्धि होगी उनसे में से आधी वृद्धि भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, तंजानिया, इंडोनेशिया, मिस्र और अमेरिका में होने की अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र विभाग के डायरेक्टर जॉन विल्मोथ ने हाल ही में कहा कि ताजा अध्ययन में पाया गया कि अगले 30 साल में भारत की जनसंख्या में 27.3 करोड़ की वृद्धि हो सकती है। ऐसे में केंद्र सरकार के स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण का मास्टर प्लान अभी से तैयार कर लिया गया है।

भाजपा खासतौर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों में आरंभ से ही रहा है। राष्ट्र की उन्नति और सीमित प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए जनसंख्या का नियंत्रित होना जरूरी है। हालांकि इसके लिए आपातकाल (इन्दिरा गांधी सरकार) की तरह जबरिया नसबंदी पूरी तरह से गलत है। केंद्र सरकार का मानना है कि संतुलित कानून और सामाजिक जागरूकता से ही देश की आबादी को नियंत्रित किया जा सकता है। इस दिशा में कदम उठा भी लिए गए हैं। 19 जुलाई से मानसून सत्र में जनसंख्या नियंत्रण पर गंभीर मंथन होगा। संसद में पहुंचे बुद्धिजीवी पूरी तरह से तैयार हैं।

यूपी सरकार के जनसंख्या नियंत्रण बिल को लेकर चर्चाओं के बीच इस बार संसद के मॉनसून सेशन में भी जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवाज बुलंद होगी। बीजेपी के कई राज्यसभा सांसद जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए प्राइवेट मेंबर बिल पेश करने वाले हैं। 6 अगस्त को इसी तरह के एक बिल पर राज्यसभा में चर्चा होनी है। भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा पहले ही राज्यसभा में जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर चुके हैं। जब तक कोई राज्यसभा का सदस्य रहता है तब तक उनका पेश किया हुआ बिल भी लाइव रहता है, जब तक कि उसे चर्चा और वोटिंग से खारिज न कर दिया जाए। कब किस बिल पर चर्चा होगी यह बैलेट से तय होता है।

राकेश सिन्हा के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण बिल में दो से ज्यादा बच्चे होने पर स्थानीय चुनाव सहित, विधानसभा और संसद का चुनाव लड़ने, साथ ही विधानपरिषद या राज्यसभा का मेंबर बनने पर रोक हो। सरकारी कर्मचारियों से एफिडेविट भरवाया जाए कि उनके दो से ज्यादा बच्चे नहीं होंगे। साथ ही इस बिल में कहा गया है कि दो से ज्यादा बच्चे होने पर बैंक में जमा राशि में इंटरेस्ट रेट भी कम मिलेगा और लोन में मिलने वाली सब्सिडी भी कम मिलेगी। इसी प्रकार भाजपा के एक और राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव भी प्राइवेट मेंबर बिल लाने की तैयारी में हैं। उन्होंने बताया कि दो बच्चों से ज्यादा होने पर किसी भी तरह की सरकारी सुविधा नहीं दी जानी चाहिए। साथ ही कोई भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर बिल पेश करने के लिए बैलेट में मेरा नंबर नहीं आया तो मैं जीरो आवर में भी यह मसला उठाऊंगा। इससे पहले भी मैं जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत का मसला चार बार उठा चुका हूं।

यूपी में योगी का मास्टर प्लान

उत्तर प्रदेश की आबादी इस समय 23 करोड़ हो चुकी है। यहाँ जन्म दर राष्ट्रीय औसत से 2.2% अधिक है। प्रदेश में आखिरी बार जनसंख्या नीति साल 2000 में आई थी। जिसमें जन्म दर 2.7% थी। अगर यही हालत प्रदेश में बने रहे तो यहाँ पर संसाधनों का उपयोग बहुत मुश्किल हो जाएगा। प्रदेश की योगी सरकार ने नई जनसंख्या नीति के जरिये 2026 तक 2.1% लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 2021-2030 के लिए प्रस्तावित नीति के माध्यम से परिवार नियोजन कार्यक्रम के अंतर्गत जारी गर्भ निरोधक उपायों की सुलभता को बढ़ाया जाना और सुरक्षित गर्भपात की समुचित व्यवस्था देने की कोशिश होगी। यूपी विधि आयोग चेयरमैन आदित्यनाथ मित्तल के अनुसार बिल पास होने के एक साल बाद कानून लागू होगा। कानून से प्रोत्साहन ज्यादा, हतोत्साहन नहीं होगा। सभी जाति-धर्म को देखते हुए मसौदे पर काम होगा। विशेष जाति को टारगेट नहीं किया जाएगा। नसबंदी स्वैच्छिक, जबरदस्ती नहीं की जाएगी। दो बच्चे वालों को ही सरकारी नौकरी का प्रस्ताव होगा। गरीबी रेखा से नीचे वालों को एक बच्चे का प्रोत्साहन होगा. नियम का पालन नहीं, तो सरकारी लाभ नहीं मिलेगा।

कविता : प्रेम…

डॉ जया आनंद

प्रेम पाना

आसान है

इसके लिए

अहं को कूटना

पीसना है

बस थोड़ा सा

सरल होना है

….और

सरल होना शायद!

कितना कठिन !!!

…पर मेरे लिए नहीं,

कबीर को थोड़ा तो समझा

—————————

2.

प्रेम

आत्मा को उज्ज्वल

करता हुआ

विस्तार देता है

संकुचन नहीं,

विचारों को

परिष्कृत करता हुआ

उदार बनाता है

विकृत नहीं

प्रेम

व्यक्तित्व को

सहज करता हुआ

सरल बनाता है

जटिल नहीं ,

जीवन में

विश्वास जगाता हुआ

उसे सुंदर बनाता है

विद्रूप नहीं

प्रेम यदि

आत्मा को

करता है संकुचित

विचारों को

करता है विकृत

व्यक्तित्व को

बनाता है जटिल

जीवन को

बनाता है विद्रूप

तो फिर ..

वो प्रेम  नहीं !

…डॉ जया आनंद

प्रवक्ता (सीएचएम कॉलेज ,मुम्बई)

स्वतंत्र लेखन – विविध भारती, मुम्बई आकाशवाणी,दिल्ली आकाशवाणी, लखनऊ दूरदर्शन, समावर्तन, पुरवाई, अटूट  बंधन,अरुणोदय ,परिवर्तन, हस्ताक्षर,साहित्यिकडॉट कॉम , मातृभूमि , प्रतिलिपि  ,हिंदुस्तान  टाइम्स  आदि में  रचनाओं  का प्रकाशन

अनुवाद -‘तथास्तु’ पुस्तक (गांधी पर आधारित) ,संस्थापक – विहंग एक साहित्यिक उड़ान (हिंदी मराठी भाषा  संवर्धनाय)।

प्रकाशित साझा उपन्यास–  हाशिये का हक

प्रकाशित  साझा  कहानी संग्रह– ऑरेंज  बार पिघलती रही

[email protected]

2024 के फाइनल से पहले टीम राहुल के उखड़ते पाँव

मनीष शुक्ल

वरिष्ठ पत्रकार

याद कीजिये वो दिन अभी ज्यादा दूर नहीं गए हैं जब कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी के एक तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया खड़े होते थे तो दूसरी ओर जितिन प्रसाद होते थे। आपस में चुहलबाजी भी होती थी और आँखों ही आँखों भी होता था। पर समय का चक्का कुछ ऐसा घूमा कि केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद से बारी बारी से सारे करीबी साथ छोडते जा रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 2016 से लेकर अब तक देश भर में 170 से अधिक कांग्रेसी विधायक पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। ऐसे में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटाने की ताल ठोंक रहे राहुल गांधी के लिए 2024 के चुनावी महा संग्राम की राह और मुश्किल होती दिख रही है।

अगले साल 2022 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने का सिलसिला कोई अनोखी बात नहीं है लेकिन पिछली तीन पीढ़ियों की कांग्रेसी विरासत संभालने वाले जितिन प्रसाद का भाजपा में जाना राहुल गांधी के राजनैतिक भविष्य के जरूर खतरे की घंटी है। जब कांग्रेस सत्ता में थी तो राहुल गांधी ने अपने दोस्त जितिन प्रसाद को क्या नहीं दिया। सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री का सफर तय करवाया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का तेजी से उभरता हुआ युवा चेहरा बनवाया। इसके बदले जितिन ने संकट के दौर में चल रही पार्टी का दमन छोड़ दिया। इसका कारण भी खुद जितिन प्रसाद ने ही बताया है। देखा जाए तो जितिन प्रसाद का अभी 30-35 साल का राजनीतिक करियर बाकी है। हालांकि उन्होने भाजपा ज्वाइन करते हुए कहा कि अब उनको कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं नजर आ रहा था। साफ बात है कि पिछले दो वर्षों से स्थायी अध्यक्ष को तलाश रही कांग्रेस अपने युवा नेताओं को न तो दिशा दे पा रही है और न ही नेतृत्व का भरोसा दे पाई। टीम राहुल में शामिल ज्योतिरादित्य हों या फिर जितिन प्रसाद, उनकी महत्वाकांक्षा को उम्मीद के पंख लगाने में पार्टी फेल रही। 2015 में आसाम के बड़े कांग्रेसी नेता हेमंत विसवा सरमा ने महज 46 साल की उम्र पार्टी छोड़ दी क्योंकि कांग्रेस भरोसा नहीं दे पाई कि तरुण गोगोई के मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी महत्वाकांक्षा को पूरा कर पाएगी। भाजपा ने न सिर्फ उनको भरोसा दिया बल्कि उनकी महत्वाकांक्षा को पूरा करते हुए आसाम का मुख्यमंत्री भी बनाया। सरमा ने भी अपनी क्षमता को प्रदर्शित करते हुए भाजपा की राज्य की सत्ता में वापसी कारवाई। यही हाल मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ किया। नतीजा राहुल गांधी के सखा ज्योतिरादित्य ने भी 2020 में कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा की सत्ता में वापसी के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज वो भाजपा से राज्यसभा सदस्य है। राजस्थान में यही बर्ताव सचिन पाइलेट के साथ हो रहा है। वो लगातार अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को चुनौती दे रहे हैं। हालांकि उनकी बात सुनने में हाई कमान अब तक असमर्थ रहा है। ऐसे में देर सबेर अगर वो भी पार्टी विरोधी कदम उठाएँ तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सिर्फ इन तीन युवा नेताओं की बात क्यों की जाए वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने भी कांग्रेस का साथ छोडकर भाजपा का दामन थाम लिया। उत्तर प्रदेश की दिग्गज कांग्रेसी नेता रीता बहुगुणा जोशी हों या फिर हरियाणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरेंद्र चौधरी हों, नारायण राणे, जगदंबिका पाल, विजय बहुगुणा, अलपेश ठाकुर जैसे दिग्गज कांग्रेसियों ने खुद को पार्टी से अलग करने में अपनी भलाई समझी। इसका कारण था समय रहते कांग्रेस ने अपने भीतरी हालातों की अनदेखी की और यथा स्थिति बनाए रखना ज्यादा उचित समझा। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद हार के कारणों को उजागर करने वाली एके एन्टोनी समिति की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दी गई। जब जी-23 समूह ने पार्टी आलाकमान को पत्र लिखा तो उसे विरोध की संज्ञा दी जाने लगी। अब वो सिद्धांतों वाली राजनीति का युग तो है नहीं कि निस्वार्थ भाव से पार्टी की सेवा होती रहे। राजनीति में करियर की चाह रखने वाले अपने लिए पद और प्रतिष्ठा खुद हासिल करने के लिए पार्टी छोडने में भी गुरेज नहीं करते हैं। राजनीति के इस दौर में दो वर्षों तक स्थायी अध्यक्ष न चुन पाना कांग्रेस नेतृत्व की विफलता रही। तो भाजपा ने कांग्रेस से आने वाले नेताओं को न सिर्फ मोदी के नेतृत्व का भरोसा दिया बल्कि पार्टी और सत्ता में समायोजित भी किया। ऐसे में अगर टीम राहुल के सदस्यों ने ही कांग्रेस से किनारा कर लिया तो उसमें बहुत कुछ आश्चर्यजनक नहीं है। अब अगर कांग्रेस को इस दौर से निकालकर 2024 के चुनाव में मोदी सरकार को चुनौती देनी है तो न सिर्फ ए के एन्टोनी की रिपोर्ट बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय में आई उमा शंकर दीक्षित कमेटी की रिपोर्ट पर भी विचार करना होगा जिसमें आज से लगभग 35 साल पहले बताया गया था कि पार्टी दलालों और चाटुकारों से घिर चुकी है। इन रिपोर्टों पर मंथन करने के साथ ही 2024 के चुनाव से पहले अगले साल होने जा रहे उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधान सभा चुनाव के लिए भरोसेमंद और स्थायी नेतृत्व देना होगा। इसके साथ पार्टी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की भूमिका तय करके दोनों की टीमों को समाहित करना होगा। तभी कांग्रेस का भला हो पाएगा वरना कांग्रेस ही डूबती नैया से सवार यूं ही उतरते जाएंगे।  

मसला कोई भी हो जिम्मेदार मोदी और नेहरू

व्यंग्य

मनीष शुक्ल

आजादी के बाद से लेकर अब तक 70 से ज्यादा सालों में देश ने लंबी दूरी तय की है। एक से बढ़कर एक नेता देखे हैं। अनेक प्रधानमंत्री देखे हैं। 1947 से लेकर 2021 तक की विकास यात्रा देखी है। लेकिन देश में आजकल जो भी हो रहा है उसके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा अगर किसी को जिम्मेदार ठहराया जाता है तो वो हैं 70 सालों पहले बनने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू। कोई भी समस्या हो या फिर उपलब्धि, सियासी गलियारों में मोदी के अलावा केवल एक ही नाम सुनाई देता है वो है नेहरू। तो आज इसी मुद्दे पर हमारे साथ दो टूक बात करने के लिए आए हैं नेहरू मामलों के विशेषज्ञ पंडित जी।

एंकर : पंडित जी आपसे दो टूक सवाल है कि पिछले सत्तर सालों में जो कुछ भी हुआ है, उसके जिम्मेदार नेहरू हैं।

पंडित जी : धन्यवाद! आज की दुनिया में जहां लोग दूसरे का नाम तक लेने में अपनी बेइज्जती समझते हैं वहाँ 70 सालों के हर काम के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, ये खुशी की बात है। कश्मीर का मसला हो या फिर चीन से रिश्ते, देश के विकास की बात हो हर बात में आज जिक्र किया जाना ये बताता है कि आज की सरकार को नेहरू के योगदान का ज्ञान है।

एंकर : सुना है उनके पास बड़ी- बड़ी डिग्री थी। भारत की खोज वास्कोडिगामा ने नहीं बल्कि नेहरू जी ने ही की थी।

पंडित जी : आज भक्त लोग हर- हर मोदी, घर- घर मोदी का नारा लगाते हैं। भक्त मोदी को अपना भगवान बताते हैं। पीएम मोदी ने तो यहीं से पढ़ाई की। नेहरू तो विदेश से पढ़कर आए। डिसकबरी ऑफ इंडिया बुक लिखी। तो क्या उनके प्रशंसक भारत एक खोज का श्रेय भी न दें।

एंकर : नेहरू जी के कपड़े विदेश से धुलकर आते थे।

पंडित जी : मोदी जी ने करोना काल से पहले दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं बचा था, जहां का चक्कर न लगाया हो। उनके लिए तो यहाँ तक कहावत है कि वो तो केवल कपड़े धुलवाने के लिए ही घर यानि इंडिया वापस आते थे।  तो अगर नेहरू जी ने विदेश से कपड़े धुलवाए तो फिर किसी के पेट में दर्द क्यों हो रहा है। 

एंकर : नेहरू जी अपने समय में नेताओं की अनदेखी की, गांधी पर कब्जा कर लिया। पटेल जी प्रधानमंत्री बनने वाले थे लेकिन वहाँ भी बीच में भाझी मार दी।

पंडित जी : क्या अनदेखी की। अनदेखी तो मोदी जी ने आडवाणी जी की। वो प्रधानमंत्री बनने जा रहे थे लेकिन उनको सन्यास दिला दिया। जोशी जी बेचारे राष्ट्रपति का सपना मन में पाले ही मार्ग दर्शक बन गए। मोदी जी के कारण कईयों का दिल और सपना दोनों टूट गया। लेकिन नेहरू ने गांधी जी और पटेल को हमेशा अपने साथ ही रखा, फिर विरोधी कुछ भी बोलते रहें।

एंकर : नेहरू जी ने आजादी की लड़ाई भले ही लड़ी हो लेकिन उनके अंग्रेजों से बड़े मधुर संबंध थे।

पंडित : मैं समझ गया, आप लेडी माउण्टबेटन की बात कर रहे हैं। हाँ मधुर संबंध थे। अब वो मोदी जी की तरह सन्यास लेकर घर- बार छोडकर हिमालय तो गए नहीं थे। वो इसी दुनियाँ में रहते थे और माउण्टबेटन और लेडी माउण्टबेटन से इसी कारण मधुर संबंध थे। घर आना जाना था।

एंकर : चीन से मौजूदा हालात के लिए भी नेहरू जी ही जिम्मेदार हैं। न चीन को जमीन दी होती और न ही सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट दिलवाई होती तो आज चीन हौसले बुलंद न होते।

पंडित जी। चीनी राष्ट्रपति को गुजरात बुलाकर झूला किसने झुलवाया। वो तो बाद में मोदी जी जागे तो उन्होने चीन की कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया। उनके मोबाइल-एप बंद कर दिये। टिकटॉक से लेकर पबजी तक पर बैन लगा दिया। उधर चीनी सेना को एलएसी बाहर खदेड़ा और भारत की सेनाओं ने अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। तब जाकर कहीं चीन के छक्के छूटे।

एंकर : कश्मीर में भी ढुलमुल नीति आपनाई। जिससे समस्या गंभीर हो गई।

पंडित जी : क्या ढुलमुल नीति अपनाई। वो कबाइलियों ने 1947 में अचानक हमला कर दिया और गुलाम कश्मीर पर कब्जा हो गया। हमने कश्मीरी अवाम को आवाज दी। संयुक्त राष्ट्र में उनका मुद्दा उठाया। मोदी ने क्या किया 70 सालों से चली आ रही धारा 370 हटा दी। कश्मीरियों का विशेष दर्जा छीन लिया। पाकिस्तान के आतंकी हमले के जवाब उसको घर भीतर घुसकर ठोंककर दिया। मोदी जी ने 56 इंच का सीना दिखाया जिसके कारण आज पाकिस्तान पूरी दुनिया में अलग- थलग है। लेकिन मोदी की नीति के कारण  चीन और पाकिस्तान दोस्त बन गए हैं।

एंकर : हमारे कश्मीरी पंडितों को भी तो अलग- थलग कर दिया गया था। उनके घरों से भगाया गया।

पंडित जी : हम भी कश्मीरी पंडित ही हैं। अब सरकार को चाहिए कि वो एक- एक कश्मीरी पंडित की घर वापसी करवाए। तभी कश्मीर के नागरिकों को उनका हक मिल पाएगा।

एंकर : आपके नाते रिश्तेदार आए दिन मोदी जी कोसते रहते हैं लेकिन मोदी जी नेहरू जी की जयंती पर देश के प्रति उनके योगदान को याद किया। सराहना की। पंडित जी : देखो, यही सियासत है। कायदे से देखा जाए तो मोदी जी ने नेहरू जी का नाम लेकर अपनी सरकार चलाई। हर समस्या का बिल नेहरू के नाम पर फाड़ दिया। वक्त पर आदर सम्मान बरकरार रखा तभी स्वतन्त्रता की लड़ाई में मोदी ने नेहरू जी के योगदान को याद किया। मेरी तो राय है देश भर में नेहरू जी के नाम पर जितने भी संस्थान हैं उस पर मोदी जी का नाम भी जोड़ा जाए जैसे जवाहर लाल नरेंद्र मोदी विश्वविद्यालय। मोदी नेहरू आपसी प्रेम भाईचारा समिति बनाई जाए। और पूरे देश में दोनों के आपसी रिश्ते को उजागर किया जाए जिससे देश में आज तक जो कुछ भी हुआ या नहीं हुआ है, उसका श्रेय सामूहिक रूप से मोदी और नेहरू को दिया जा सके।

ब्रा पहनकर पुरुषों ने जताया विरोध

जर्मनी की राजधानी बर्लिन  में हुए अनोखे प्रदर्शन की तस्वीरें इंटरनेट पर वायरल हो रही हैं. कहा जा रहा है कि उस वक्‍त पुलिस-प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गए थे, जब महिलाएं सड़कों पर टॉपलेस होकर उतर गईं. वहीं, पुरुष ब्रा और बिकिनी पहने हुए थे।

ये लोग लैंगिक समानता की मांग कर रहे थे. उनका गुस्‍सा पुलिस के उस एक्‍शन को लेकर था, जिसमें एक फ्रांसीसी महिला को टॉपलेस होकर धूप सेंकने के कारण शहर के एक वाटर पार्क से निकाल दिया गया था। ये वाकया बीते महीने का है, लेकिन पुलिस के इस एक्‍शन ने महिलाओं के एक बड़े वर्ग को नाराज कर दिया. इसी के चलते प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने अपने शरीर पर ‘माय बॉडी, माय च्‍वाइस’ जैसे नारे भी लिखवाए हुए थे। डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांसीसी महिला एक दोस्त और दो बच्चों के साथ स्विम पार्क में गई थी। उस दौरान उसने स्विमसूट पहना रखा था. लेकिन कुछ देर बाद महिला वहां टॉपलेस होकर सनबाथ लेने लगी, जिसका गार्ड्स विरोध करने लगे।

प्रियंका, प्रिंस विलियम ने लिया विम्बलडन का लुत्फ

विम्बलडन में फाइनल मुक़ाबला हो और दुनियाभर की जानी मानी हस्तियाँ उस मैच को देखने के लिए न जुटे, ऐसा हो ही नहीं सकता है। ऐशले बार्टी और कैरोलिना प्लिस्कोवा के बीच हुए विंबलडन वुमन सिंगल फाइनल मैच में कई बड़ी हस्तियां मौजूद रही थीं, जिसमें एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा भी शामिल थीं। द ड्यूक एंड डचेस ऑफ कैम्ब्रिज, केट मिडलटन और प्रिंस विलियम भी दर्शकों में शामिल थे। टेनिस के दिग्गज मार्टिना नवरातिलोवा और बिली जीन किंग, केट और विलियम के पीछे की पंक्ति में बैठे नजर आए।

इनके अलावा, हॉलीवुड आइकन टॉम क्रूज और डेम मैगी स्मिथ  भी इस रोमांचक मैच का लुत्फ उठा रहे थे।

तालिबान के आतंकी राज की ओर फिर अफगान

काबुल। अमेरिकी सेना के वापसी के ऐलान के बाद से ही अफगानिस्तान तालिबान राज की ओर बढ़ता जा रहा है। अफगान सैनिक जान बचाने के लिए ईरान सीमा की ओर भाग रहे हैं। तो तालिबान आतंकियों द्वारा अफगानिस्तान के दक्षिणी शहर के आसपास के प्रमुख इलाकों पर कब्जा करने के बाद भारत ने कंधार से करीब 50 राजनयिकों और सुरक्षा कर्मियों को भारतीय वायु सेना के विमान से निकाला है।

भारत ने कहा कि काबुल, कंधार और मजार-ए-शरीफ शहरों में वाणिज्य दूतावासों में अपने मिशन को बंद करने की कोई  योजना नहीं थी.  अधिकारियों ने कहा था कि भारत अफगानिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति पर करीब से नजर रख रहा है।  साथ ही यह भी कहा गया था कि यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए जाएंगे कि भारतीय अधिकारियों और नागरिकों को नुकसान न पहुंचे।
अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि  भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के राजनयिकों, सहायक कर्मचारियों और गार्डों को नई दिल्ली लाए जाने के बाद कंधार में भारतीय वाणिज्य दूतावास को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक कंधार और हेलमंद के दक्षिणी प्रांतों में पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी बड़ी संख्या में मौजूद हैं जिसके चलते राजनयिकों और सुरक्षा कर्मियों को बाहर निकाला गया. अफगान सुरक्षा एजेंसियों के हालिया अनुमान के अनुसार  7,000 से अधिक लश्कर-ए-तैयबा के लड़ाके दक्षिणी अफगानिस्तान में तालिबान के साथ लड़ रहे हैं।


गौरतलब है कि अफगानिस्तान के कई हिस्सों में हिंसा में बढ़ोतरी के मद्देनजर भारतीय दूतावास ने पिछले सप्ताह मंगलवार को एक परामर्श जारी करके देश में रह रहे और वहां काम कर रहे सभी भारतीयों को गैर जरूरी यात्राओं से बचने को कहा था. परामर्श में दूतावास ने कहा था कि अफगानिस्तान में कई प्रांतों में सुरक्षा की स्थिति ‘खतरनाक’ बनी हुई है और आतंकवादी गुटों ने हिंसक गतिविधियां बढ़ा दी हैं तथा आम नागरिकों को निशाना बनाकर हमले की घटनाएं हो रही हैं. दूतावास की ओर से कहा गया कि भारतीय नागरिकों को अगवा किये जाने का खतरा है.

अफगानिस्तान में पिछले कुछ सप्ताहों में हिंसा एवं हमलों की अनेक घटनाएं सामने आई है. ये घटनाएं ऐसे समय घटी हैं जब अमेरिका 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से पूरी तरह से अपने सैनिकों को वापस बुलाना चाहता है जिससे इस युद्धग्रस्त देश में दो दशकों से जारी अमेरिकी सैन्य उपस्थिति समाप्त हो जायेगी. भारत हिंसा की बढ़ती घटनाओं तथा तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को बढ़ाने के प्रयासों को लेकर काफी चिंतित है. अफगानिस्तान में शांति एवं स्थिरता में भारत महत्वपूर्ण पक्षकार है. भारत ने इस देश में विकास कार्यो में करीब 3 अरब डालर का निवेश किया है. भारत ने हमेशा अफगानिस्तान नीत, नियंत्रित एवं उसके स्वामित्व वाली शांति प्रक्रिया के समर्थन की बात कही है।

अंतरिक्ष की सैर पर गई भारत की बेटी सीरिशा

दुनिया की सैर के विषय में तो आप सबने सुना होगा लेकिन आज वो दिन आ गया है जब अंतरिक्ष यात्रा के लिए धरती से पहला यात्री दल जा रहा है। ब्रिटिश कारोबारी रिचर्ड ब्रैन्सन रविवार को अंतरिक्ष की सैर पर जाएंगे। अगर यह उड़ान कामयाब रही तो उनकी कंपनी वर्जिन अंतरिक्ष के लिए कमर्शियल टूर शुरू करने की ओर सबसे बड़ा पड़ाव पार कर लेगी। रिचर्ड ब्रैन्सन बतौर मिशन स्पेशलिस्ट स्पेसशिप-2 यूनिटी से जुड़ेंगे। उनके साथ भारत की बेटी सिरिशा समेत 5 और लोग उड़ान भरेंगे। भारत में जन्मीं सिरिशा इस मिशन के बाद अंतरिक्ष में जाने वाली कल्पना चावला के बाद दूसरी महिला बन जाएंगी। 34 साल की सिरिशा एयरोनॉटिकल इंजीनियर हैं।

उनके इस सफर को देखने के लिए एलन मस्क भी मौजूद रह सकते हैं। मस्क टेस्ला के CEO हैं और उनकी कंपनी स्पेसएक्स स्पेस टूरिज्म में बड़ी खिलाड़ी बनने की कोशिशों में लगी है। मस्क ने ब्रैन्सन को इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए शुभकामनाएं दीं और कहा कि वह उनकी उड़ान देखने के लिए न्यू मैक्सिको में लॉन्च साइट पर मौजूद रहेंगे।

स्पेस टूरिज्म में 2 और बड़ी घटनाएं होंगी

इस महीने स्पेस टूरिज्म की दुनिया में 2 और बड़ी बातें होने वाली हैं। ब्रैन्सन के बाद 20 जुलाई को अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस ‘एज ऑफ स्पेस’ यानी अंतरिक्ष के सिरे की यात्रा के लिए उड़ान भरेंगे। वहीं, महीने के आखिर में बोइंग अपने स्काइलाइनर की टेस्ट फ्लाइट उड़ाने वाला है।

बिना क्रू के मिशन कामयाब रहे

ब्रैन्सन की वर्जिन स्पेस शिप (VSS) यूनिटी स्पेसप्लेन की कामयाब फ्लाइट पृथ्वी की कक्षा के भीतर यानी सबऑर्बिटल टूरिज्म के नए रास्ते खोलेगी। बेजोस और बोइंग की फ्लाइट्स भी सफल रहीं तो एज ऑफ स्पेस यानी अंतरिक्ष के सिरे तक प्राइवेट कमर्शियल स्पेस ट्रेवल का मार्केट भी तेजी से बढ़ेगा। अब तक बिना क्रू के मिशन सफल रहे हैं। ब्रैन्सन की वर्जिन गैलेक्टिक, बेजोस की ब्लू ओरिजिन के साथ ही एलन मस्क की स्पेसएक्स और बोइंग भी स्पेस टूरिज्म के क्षेत्र में कदम आगे बढ़ा रहे हैं।

एयरप्लेन में ऊपर जाएंगे और फिर उससे रॉकेट अलग होगा

कबः 11 जुलाई, रविवार

समयः शाम 6 बजे (भारतीय समयानुसार)

कहां सेः स्पेसपोर्ट अमेरिका, न्यू मैक्सिको

फ्लाइट की अवधिः 2.5 घंटे कितना ऊपर जाएगा: 90-100 किमी

करोना ‘वायरस’ से ‘युद्ध’ में जीत का ‘टीका’

बीते कुछ समय में देशवासियों पर आए घनघोर संकट ने सबकी ज़िंदगी बदल दी है। करोना की दूसरी लहर मौत की तरह ज़िंदगी में घर कर गई है। ये दिन मौत के काले साये की तरह हमारे आसपास मँडराते रहे। लेकिन शुक्र है कि केंद्र सरकार ने तेजी से कदम उठाए, जिसके परिणामस्वरूप हालात अब सुधर रहे हैं। हालांकि अब तीसरी लहर का खतरा सर पर मंडरा रहा है। केंद्र सरकार ने इस जंग को जीतने के लिए दिसंबर तक सभी देशवासियों का टीकाकरण का लक्ष्य रखा है। सभी देशवासियों का वैक्सीनेशन हो जाए जिससे इस युद्ध को देश जीत सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद माना कि ‘100 साल बाद आई इतनी भीषण महामारी कदम-कदम पर दुनिया की परीक्षा ले रही है। हमारे सामने एक अदृश्य दुश्मन है। बीते कुछ समय से जो कष्ट देशवासियों ने सहा है, अनेकों लोग जिस दर्द से गुजरे हैं, तकलीफ से गुजरे हैं वो मैं भी उतना ही महसूस कर रहा हूं.’ पीएम मोदी ने कहा कि भारत हिम्मत नहीं हारेगा, ना ही कोई भारतवासी हिम्मत हारेगा, हम लड़ेंगे और जीतेंगे। निश्चित रूप से हम इस आपदा के दौर में डटकर खड़े रहे हैं और अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव बदलाव स्वीकार करते गए। हमने अपना और दूसरों का जीवन बचाने के लिए मास्क पहना, शारीरिक दूरी बनाई। धंधे- पानी को नुकसान होने के बावजूद सख्ती से लॉक डाउन का पालन किया। खुद भी बदले और भविष्य को भी बदलने का संकेत दिया।

कहते हैं कि हर पाँच साल में एक पीढ़ी पुरानी हो जाती है और नई ‘जनरेशन’ जन्म लेने लगती है। जिसके जीने का तरीका दूसरी पीढ़ी से भिन्न होता है। ये पीढ़ी परिवर्तन का प्रतीक होती है और दूसरी पीढ़ियों को बदलाव के लिए मजबूर भी करती है। वर्ष 2020- 21 इसी बदलाव के लिए याद किए जाएंगे। करोना काल में पिछले दिनों के भयावह अनुभव से साफ है कि अब हमारी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल चुकी है। हम बहुत लेजी से बदले लेकिन अपने सुरक्षित भविष्य के लिए हमें और भी तेजी दिखानी होगी।

अब हमें पहले से कई ज्यादा जागरूक और सतर्क रहने की जरूरत है। अपने स्वास्थ्य को लेकर और अपनों की देखभाल को लेकर। जरा सी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। 2020 से लेकर अब तक हम करोना की दो लहरों का सामना कर चुके हैं। पहली लहर बुजुर्गों के लिए काल साबित हुई तो दूसरी लहर ने ज़्यादातर जवानों को निशाना बनाया। विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर तक देश को तीसरी करोना लहर से मुक़ाबला करना होगा। जिसमें ज़्यादातर बच्चे निशाने पर होंगे। विशेषज्ञों के संकेत से स्पष्ट है कि ये एक युद्ध है आम जनमानस के खिलाफ वायरस अटैक! इस युद्ध में पहले बुजुर्ग निशाना बने। फिर 30 से लेकर 45 आयु वर्ग के ज़्यादातर लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। अब तीसरे युद्ध में वायरस के निशाने पर बच्चे होंगे। ऐसे में जरा सी चूक हम सभी के लिए कितनी घातक साबित होगी, ये अकल्पनीय है। ऐसे में हमें अभी से हथियार उठाने होंगे। इस हमले के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी। ये लड़ाई जीवन शैली को लेकर भी होगी। तकनीकी भी होगी। सामाजिक तौर पर भी हमें एकजुट होकर लड़ना होगा। सरकार ने इस युद्ध को जीतने के लिए सभी के टीकाकरण कि योजना बनाई है। ऐसे में केंद्र सरकार ने दिसंबर तक भारत में 216 करोड़ कोरोना टीकों की मैन्युफैक्चरिंग का ऐलान किया है। नीति आयोग की स्वास्थ्य समिति के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने ने कहा है कि  ‘देश में अगस्त से दिसंबर के दौरान कुल 216 करोड़ कोरोना टीके तैयार किए जाएंगे। ये टीके पूरी तरह से भारत और भारतीयों के लिए ही बनेंगे।’ उन्होंने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि आने वाले समय में सभी को वैक्सीनेशन के तहत कवर किया जाएगा। नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि एफडीए और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से मंजूर की गई किसी भी दवा को भारत में अनुमति दी जा सकती है। इन दवाओं के आयात के लिए लाइसेंस भी एक से दो दिन में ही दिया जाएगा। फिलहाल हमारे पास कोई इंपोर्ट लाइसेंस का आवेदन लंबित नहीं है। उन्होंने कहा कि हमने विदेशी संस्थाओं को अपनी कंपनियों के साथ मिलकर काम करने का आमंत्रण दिया है। जॉनसन एंड जॉनसन ने काफी अच्छा काम किया है। उन्होंने कुछ ही दिनों में हमारे ऑफर को स्वीकार किया है।

पॉल ने बताया, ‘जॉनसन का कहना है कि वह अपने तरीके से काम कर रहे हैं। भारत में इस साल की तीसरी तिमाही में टीकों की उपलब्धता हो सकती है। हम उनसे संपर्क में हैं। हमें उम्मीद है कि वे भारत में टीकों की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए काम करेंगे।’ भारत में विदेशी टीकों को मंजूरी के सवाल पर उन्होंने कहा कि डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नॉलजी एवं अन्य संबंधित विभाग फाइजर, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियों के साथ शुरुआती दौर से ही संपर्क में हैं। हमने उनसे आधिकारिक तौर पर कहा है कि यदि वे भारत में वैक्सीन भेजना चाहेंगे या मैन्युफैक्चिंग को तैयार होंगे तो हम उन्हें मदद करेंगे और उनके लिए पार्टनर की भी तलाश करेंगे।

निश्चित तौर पर सरकार अपनी तैयारी कर रही है लेकिन जनता को भी आगे बढ़कर ये युद्ध लड़ना होगा। ऑक्सीज़न और दवा की कमी से मौतें न हों इसके लिए जीवन शैली से लेकर सभी सुरक्षा इंतजाम करने होंगे। अस्पतालों को तैयार करना होगा। सामने से लड़ने वाले सेनानियों को तैयार रखना होगा। जब तक करोना से हम सभी जीत नहीं जाते हैं तब तक युद्ध लड़ना ही एक मात्र रास्ता है। ये लड़ाई ही हमें जीत दिलाएगी।

 वैक्सीन       : उत्पादन ( दिसंबर तक)

कोविशील्ड      : 75 करोड़

कोवैक्सीन       : 55 करोड़

बायो ई सब यूनिट : 30 करोड़

जायडस कैडला डीएनए : 05 करोड़

नोवावैक्स        : 20 करोड़

बीबी नजल वैक्सीन : 10 करोड़

जिनोवा एमआरएनए  : 06 करोड़

स्पुतनिक      : 15.6 करोड़