Monday, December 15, 2025
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सुसाइड नोट और वीडियो में छिपा है महंत नरेंद्र गिरि‍ की संदिग्ध मौत का राज

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद  के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि‍ की संदिग्ध मौत का मामला लगातार पेंचीदा होता जा रहा है। आत्महत्या से लेकर सुसाइड नोट, तथाकथित वीडियो और शिष्य पर आरोप किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं है। मामले पर पहली एफआईआर प्रयागराज के जॉर्ज टाउन थाने में दर्ज की गई है।

महंत नरेंद्र गिरि‍ के शिष्य अमर गिरि‍ पवन  महाराज की तरफ से दर्ज करवाई गई एफआईआर में सिर्फ उनके शिष्य आनंद गिरि‍ को नामजद आरोपी बनाया गया है। आनंद गिरि‍ के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. आनंद गिरि‍ को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है. पुलिस ने आनंद गिरि‍ को हरिद्वार से गिरफ्तार कर लिया है और अब उन्हें सड़क मार्ग से प्रयागराज लाया जा रहा है. उधर बड़े हनुमान मंदिर के पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को भी पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।

एफआईआर के मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि‍ सोमवार दोपहर लगभग 12:30 बजे बाघम्बरी गद्दी के कक्ष में भोजन के बाद रोज की तरह विश्राम के लिए गए थे. रोज 3 बजे दोपहर में उनके चाय का समय होता था, लेकिन चाय के लिए उन्होंने पहले मना किया था और यह कहा था जब पीना होगा तो वह स्वयं सूचित करेंगे. शाम करीब 5 बजे तक कोई सूचना न मिलने पर उन्हें फोन किया गया. लेकिन महंत नरेंद्र गिरि‍ का फोन बंद था. इसके बाद दरवाजा खटखटाया गया तो कोई आहट नहीं मिली. जिसके बाद सुमित तिवारी, सर्वेश कुमार द्विवेदी, धनंजय आदि ने धक्का देकर दरवाजा खोला. तब महाराज जी पंखे में रस्सी से लटकते हुए पाए गए।

क्या कप्तान के तौर पर आरसीबी को ट्राफी दिला पाएंगे कोहली!

आईपीएल के 14वें सीजन में अपना 200वां मैच खेलने के लिए मैदान में उतरने से पहले विराट बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम को भुला देना चाहते होंगे। ये घटनाक्रम उनके खेल से लेकर कप्तानी से जुड़े थे। विराट ने टी-20 विश्व कप के बाद कप्तानी छोडने का ऐलान किया। इसके बाद आईपीएल के मौजूदा सीजन के बाद आरसीबी की कप्तानी छोडने की घोषणा कर दी। इसके बाद लगा कि विराट एक बल्लेबाज के तौर पर अपना पुराना स्वर्णिम रूप दिखाएंगे लेकिन महज पाँच रनों पर आउट होकर विराट ने एकबार फिर प्रसंशकों को निराश कर दिया।

टी20 लीग के दूसरे चरण के पहले मुकाबले में टीम को केकेआर ने 9 विकेट से रौंद दिया।  यह कोहली का आरसीबी की ओर से 200वां मैच था और केकेआर को गेंद शेष रहते सबसे बड़ी जीत मिली। केकेआर ने 60 गेंद शेष रहते हुए यह मुकाबला जीत लिया। ऐसे में आईपीएल ट्राफी का सपना दूर जाता नजर आ रहा है। विराट कोहली बतौर खिलाड़ी भी अब तक आईपीएल का खिताब नहीं जीत सके हैं।

यह टी20 लीग का 14वां सीजन है. कोहली ने बतौर खिलाड़ी पहला मैच केकेआर के ही खिलाफ 18 अप्रैल 2008 को खेला था और टीम को 140 रन से बड़ी शिकस्त मिली थी। यह रनों के लिहाज से आज भी केकेआर की सबसे बड़ी जीत है. इसके बाद कोहली आईपीएल का खिताब नहीं जीत सके. अब जबकि केकेआर ने गेंद शेष रहते सबसे बड़ी जीत दर्ज कर ली है तो क्या कोहली को फिर खिताब के लिए लंबा इंतजार करना होगा। विराट कोहली बतौर कप्तान आईपीएल में 133 में से सिर्फ 60 मैच जीत सके हैं. यानी सिर्फ 48 फीसदी. यह लीग के बड़े कप्तानों के मुकाबले बेहद खराब है। सीएसके के कप्तान एमएस धोनी ने 196 में से 116 मैच जीते हैं. यह लगभग 59 फीसदी है. मुंबई के कप्तान रोहित शर्मा ने 123 में से 72 मैच जीते हैं. लगभग 60 फीसदी. सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग दोनों ने 50 से अधिक मैच में कप्तानी की है. उनका जीत का प्रतिशत 50 फीसदी से अधिक रहा है। ऐसे में कप्तान के तौर पर आखिरी बार खेल रहे विराट आरसीबी को ट्राफी दिला पाते हैं, ये भविष्य के गर्त में हैं।

इस्तीफा देने में कैप्टन हैं अमरिंदर सिंह

पंजाब के निवर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस्तीफा देने में भी कैप्टन हैं। सिद्धू से विवाद के बाद लंबी खिंचतान के बाद आखिरकार उन्होने इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब- जब कैप्टन को लगा कि अब एक्शन का समय है तो उन्होने इस्तीफा देने में एक भी मिनट की देरी नहीं की। बीते दिन दिया गया यह उनका चौथा इस्तीफा था।  पिछले तीन इस्तीफे बताते हैं कि कैप्टन अपने इस्तीफों के बाद और अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे हैं। कैप्टन जानते हैं कि दबाव कि राजनीति से उनको रोका नहीं जा सकता है। ऐसे में अब कभी उनके नई पार्टी बनाने की  अटकल लगती है तो कभी भाजपा में जाने को लेकर कयास शुरू हो जाते हैं।

अमरिंदर सिंह पहली बार 1980 में सांसद बने थे और पंजाब के मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत में शामिल हुए थे. हालांकि, ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ और सिंह ने गांधी परिवार के करीबी दोस्त होने के बावजूद पार्टी और संसद से इस्तीफा दे दिया. उनका यह कदम गांधी के पक्ष में काम करता रहा. दो दशकों तक पंजाब कांग्रेस के मामलों में प्रमुख रहे। वह पार्टी की राज्य इकाई में एक बड़े नेता रहे।  

अमरिंदर सिंह, शिरोमणि अकाली दल  में चले गए और 1985 में सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में मंत्री भी बने. उन्होंने सात महीने बाद कैबिनेट से उस वक्त इस्तीफा दे दिया जब पुलिस बरनाला के आदेश पर दरबार साहिब में दाखिल हुई. इस कदम ने अमरिंदर को एक सिख नेता के रूप में उभारा. यह कदम भी अमरिंदर के लिए कारगर सिद्ध हुआ. अमरिंदर 1995 के चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) के टिकट पर राज्य विधानसभा में पहुंचे थे।

साल 1984 में हुआ ऑपरेशन ब्लू स्टार और बरगारी बेअदबी मामला शिअद और कांग्रेस के लिए बारी-बारी से संकट की वजह बना. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह इन दो घटनाओं के बाद बाहर निकलने के बाद एक बड़े नेता के रूप में उभरे. रिपोर्ट्स के अनुसार केवल सिखों के बीच अमरिंदर की स्वीकृति की वजह से साल 1999 में कांग्रेस पंजाब में पुनर्जीवित हो पाई. पार्टी सिखों के लिए अछूत हो गई थी लेकिन अमरिंदर, पंजाब में कांग्रेस के दोबारा लौटने की वजह बने. कांग्रेस में वापसी के बाद वह पहली बार 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे थे और इस दौरान उनकी सरकार ने 2004 में पड़ोसी राज्यों से पंजाब के जल बंटवारा समझौते को समाप्त करने वाला राज्य का कानून पारित किया।

अमरिंदर सिंह ने 2014 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से लड़ा था और भाजपा के अरुण जेटली को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर समझौते को समाप्त करने वाले पंजाब के 2004 के कानून को असंवैधानिक बताया तो सिंह ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। कुछ दिन बाद उन्हें पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य इकाई का प्रमुख बनाया गया. इसके बाद उन्होंने साल 2017 के चुनाव में 117 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को जबरदस्त जीत दिलाई. वह फिर दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और इस तरह उन्होंने दिल्ली से बाहर अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के सपनों को ध्वस्त कर दिया।

व्यंग्य : करोना और भूकंप, मच गया हड़कंप

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लेखक : मनीष शुक्ल

अरे यार! खाली ही चाय ले आई हो… चिप्स या पापड़ ही भून लेती तो कसम से मजा आ जाता… जैसे ही अभिषेक ने अपनी फरमाइश ‘इन्दु’ को सुनाई तो तुरंत झल्लाकर बोली- बारात में नहीं आए हो तुम लोग, जो दिनभर ऑर्डर मारा करते हो। कभी पानी ले आओ, कभी चाय ले आओ, अब चिप्स और पापड़ ले आओ। ऊपर से आपके साहबजादे… बिलकुल तुम पर ही गए हैं, कभी ममा मोमोज बना दो, कभी मैगी बना दो, कभी इडली बना दो… लॉक डाउन न हो गया, होम पिकनिक हो गया !

 ‘अरे भागवान ! क्यों गुस्सा हो रही हो, कुच्छों मत लाओ। बस तुम पास आकर बैठ जाओ। मुझे सब कुछ मिल जाएगा।‘ इन्दु के गुस्से पर अभिषेक ने मरहम लगाने की कोशिश की ही थी, कमरे से आवाज आई, ममा मेरी मैक्रोनी बन गई क्या! यह सुनते ही मानों इन्दु के जख्मों पर यश ने नमक छिड़क दिया हो, वो गुस्सा होकर फिर किचन में चली गई।

हे भगवान! लॉक डाउन है या मेरे लिए मुसीबतों का अंबार। सुना है, सरकार इसको आगे बढ़ाने जा रही है। अगर ऐसा हुआ तो ये दोनों अपनी फरमाइशें कर- करके मुझे पागल ही कर देंगे। इससे अच्छा तो भूकंप ही जाए!!! शायद ऊपर वाला इन्दु की इच्छा पूरा करने का बहाना ही ढूंढ रहा था। वो चाय लेकर अभिषेक के पास पहुंची ही थी कि अचानक छत का पंखा अपने आप हिलने लगा। दोनों की नजरें छत की ओर गई ही थी कि किचन से बर्तनों के गिरने की आवाज आई। अभिषेक के मुंह से निकला। लगता है भूकंप आ गया। जी हाँ! ऊपर वाले ने इन्दु की पुकार सुन ली थी। ये भूकंप ही था। धरती डोल रही थी। मोबाइल की नोटिफिकेशन में भी भूकंप आने के संकेत आ रहे थे। इन्दु के मुंह से निकला। ऊपर वाले ! जीवन भर इतनी दुआएं मांगी लेकिन आपने कभी पुकार नहीं सुनी आज गुस्से में भूकंप शब्द क्या मुंह से निकला और आपने सच में धरती हिला दी। आखिर पूरी दुनियाँ में क्या मैं ही मिली हूँ आपको, जिसकी हर तरह से परीक्षा ले रहे हैं। अभिषेक घबराकर बोला, चलो घर के बाहर निकल चलें, कहीं घर की दीवारें हमारे ऊपर ही न गिर पड़ें लेकिन लॉक डाउन!! इन्दु ने अपनी शंका जाहिर की। अरे जब भूकंप से बचेंगे, तभी तो लॉक डाउन का पालन करेंगे वरना करोना से पहले भूकंप के झटके से ही मर जाएंगे। बस फिर क्या था। पूरा परिवार देखते ही देखते सड़क पर आ जाता है। और फिर एक- एक करके पूरा मोहल्ला सड़क पर खड़ा दिखाई देता है। ऐसा लगता है मानों वैसाखी का मेला लग गया हो। चारों ओर शोर और हाहाकार। ऊपर वाला एक आपदा का दूसरी आपदा से कंपटीशन कराने में जुट गया था। अब तक पूरी दुनियाँ करोना की दहशत से घरों में दुबकी थी लेकिन भूकंप की आहट ने करोना का भूत भगा दिया था। अब सब लोग मिलकर करोना की जगह भूकंप से बचने के लिए ऑन द स्पॉट अपनी- अपनी जान बचाने में लगे थे। ऊपर वाला भी नीचे वालों को नाच नाचकर मन ही मन खुश था।

सबके मुंह पर मास्क लगे थे फिर भी दिल से राम- राम ही निकल रहा था। बस यही प्रार्थना थी कि हे भगवान, इस बार माफ कर दो, अब भविष्य में कोई पाप नहीं करेंगे। तभी पीछे से आवाज आती है श्रीवास्तव जी! आजकल नजर नहीं आते हैं। अभिषेक पीछे मुड़कर देखता है तो साक्षात शर्मा जी खड़े नजर आते हैं। ‘क्या नजर आएँ, भाई साहब, इस करोना ने घर में बांधकर रख दिया है। दिन भर घर में बोर होता रहता हूँ लेकिन कर भी क्या सकता हूँ। बस पत्नी और बच्चों कि सेवा में जीवन गुजार रहा हूँ।‘ अभिषेक की आवाज इन्दु के कानों तक जा रही थी। वो मन ही मन बुदबुदाई कि अगर भूकंप से बच गए तो घर में मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी । इन्दु से नजर मिलते ही अभिषेक बात बदलते हुए कहता है कि मेरी पत्नी तो बेचारी दिन रात हम सब की सेवा में लगी रहती है। आप सुनाइए कैसे कट रहे रहे हैं आपके दिन। यह सुनते ही शर्मा जी की दुखती रग पर जैसे हाथ रख दिया हो… क्या दिन क्या रात। घर में कभी अच्छे दिन कट सकते हैं। अब ऑफिस से निकलने की बाद न शाम वाली पार्टी हो रही हैं और न ही बाहर की रौनक देख पा रहा हूँ। बस घर का दाल चावल खाकर प्रभु के गुणगान कर रहा हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे भरी जवानी में सन्यास आश्रम में चला गया हूँ। लॉक डाउन ने हाथों के साथ- साथ शरीर और आत्मा को भी सेनेटाइज कर दिया है। शर्मा जी की हाँ में हाँ मिलाते हुए अभिषेक कहता है कि पता नहीं अब दुनियाँ की रौनक दोबारा देख पाएंगे या फिर घर से सीधा ऊपर निकल लेंगे सब लोग। अभिषेक और शर्मा की तर्ज पर इन्दु भी मोहल्ले की सहेलियों से उनका हालचाल लेने लगती है। हर किसी के अपने दुख हैं जो मिलते ही उजागर होने लगते हैं। यश भी अपने दोस्तों के साथ सड़क पर ही खेलने लगता है। देखते ही देखते मौत का खौफ जीवन के उत्सव में बदल जाता है लेकिन ऊपर वाले की तरह ही सरकार को भी इस समय जनता की खुशियाँ गंवारा नहीं हैं। इतनी में पुलिस की गाड़ी आकर मोहल्ले के मोड़ पर रुकती है और उससे उतरते ही पुलिस वाले अपनी- अपनी लठियाँ फटकारने लगते हैं। देखते ही देखते मेला फिर वीराने में बदल जाता है। जाते- जाते पुलिस वाले शर्मा जी और अभिषेक के दो- दो रसीद कर देते हैं। साथ ही ये चेतावनी देते हैं कि अगली बार भूकंप आए या सुनामी अगर कोई भी घर से बाहर निकला तो पहले तो उसका लाठियों से स्वागत किया जाएगा। बाद में जेल में क्वारंटाइन कर दिया जाएगा। अब च्वाइस है आपकी क्योंकि ज़िंदगी है आपकी!!

विराट के उत्तराधिकारी हो सकते हैं रोहित, राहुल या पंत

भारतीय टीम के कप्‍तान विराट कोहली ने वर्कलोड की बात कहकर टी20 फॉर्मेट में टीम इंडिया की कप्तानी छोड़ने का ऐलान किया है. कोहली ने गुरुवार शाम को जब ट्वीट कर इसकी घोषणा की तो पूरा देश चौंक गया लेकिन विराट की विदाई की पटकथा बीसीसीआई लिख चुका था, बस कोहली ने उस पर अपनी मुहर लगाई है। इसी के साथ उनके उत्तराधिकारी को लेकर भी अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं।

कोहली ने टी20 क्रिकेट में टीम का नेतृत्‍व नहीं करने का फैसला लिया है जो आगामी विश्‍व कप के बाद लागू हो जाएगा। हालांकि वे टेस्ट और वन डे के कप्तान बने रहेंगे। फिरभी अब उनकी वन डे कप्तानी पर भी तलवार लटक सकती है। कोहली ने ट्विटर पर एक पत्र के माध्‍यम से टी20 में कप्‍तानी छोड़ने की घोषणा की। उन्होने बताया कि टी20 की कप्‍तानी छोड़ने को लेकर उन्‍होंने पहले रोहित शर्मा से सलाह भी ली. सभी पक्षों, दोस्‍तों व रिश्‍तेदारों से बात करने के बाद विराट इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे की वो टी20 में कप्‍तानी छोड़ रहे हैं।

विराट ने लिखा, “इस फैसले को लेने से पहले मैंने करीबी लोगों से खूब चर्चा की. मुख्य कोच रवि शास्त्री  और सीमित ओवरों में भारतीय टीम के उपकप्तान रोहित शर्मा  के साथ भी सलाह मशविरा किया. जो टीम के लीडरशिप ग्रुप का अहम हिस्‍सा भी हैं. लिहाजा मैंने टी20 विश्‍व कप के बाद टीम में टी20 कप्‍तानी छोड़ने का निर्णय लिया है. मैं बतौर बल्‍लेबाज टीम के साथ जुड़ा रहूंगा।

विराट कोहली के संकेत देखे तो रोहित शर्मा अगले कप्तान हो सकते हैं लेकिन क्या 34 वर्षीय रोहित लंबे समय तक कप्तानी कर सकेंगे, ये भविष्य के लिए गंभीर सवाल है। पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने लोकेश राहुल में भविष्य का कप्तान देखा है। इसी प्रकार ऋषभ पंत को भी टी-20 फार्मेट के लिए बेहतर कप्तान के रूप में देखा जा सकता है। बीसीसीआई क्या निर्णय लेगा, ये तो 20-20 विश्वकप के बाद ही पीटीए चल पाएगा।

जन्मदिन चाय वाले से देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 71वां जन्मदिन है। गरीब परिवार में जन्म लेकर चाय वाले से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले मोदी का जीवन सांघर्ष और उपलब्धियों की कहानी कहता है। आजाद भारत में जन्म लेकर पहले प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व करने वाले मोदी पहले गैर कांग्रेसी हैं जिन्होने लगातार दो बार केंद्र सरकार का नेतृत्व किया है। मोदी की लोकप्रियता आज भी देश में किसी भी नेता से बढ़कर है। उनके समर्थकों को भक्त का दर्जा दिया जाता है। यानि वे मोदी को दिलों जान से पसंद करते हैं। पीएम के जन्मदिन पर उनके संसदीय क्षेत्र काशी में विशेष पूजा और हवन का दौर चल रहा है तो देश भर में करोना के खिलाफ रिकार्ड  टीकाकरण भी हो रहा है। पीएम आज एससीओ को भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग से संबोधित कर रहे हैं।

17 सितंबर 1950 को गुजरात के वडनगर में जन्में नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को पहली बार और 30 मई 2019 को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इससे पहले वो 12 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री थे। राजनीति से परे नरेंद्र मोदी को लिखना पसंद है। उन्होंने कई कविता और कई किताबें लिखी हैं. प्रधानमंत्री देश के मुखिया हैं, लेकिन उन्हें भी आम आदमी की तरह फिल्में और गीत पसंद हैं।

हालांकि उनका पूरा जीवन देश और राजनीतिक दल भाजपा के लिए समर्पित रहा। मोदी 1987 में बीजेपी से जुड़े और उन्हें सबसे पहले जो जिम्मेदारियां दी गईं, उनमें 1987 के अहमदाबाद स्थानीय चुनाव के लिए प्रचार करना शामिल था. एक जोशीले प्रचार अभियान ने इस चुनाव में बीजेपी की जीत पक्की कर दी।

वो 1990 में गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने वाली मुख्य टीम का हिस्सा थे. इस चुनाव के परिणामों ने एक दशक पुराने कांग्रेस शासन का अंत कर दिया. राज्य में कांग्रेस ने 1980 और 1985 में क्रमश: 141 और 149 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार कांग्रेस का आंकड़ा घटकर 33 सीटों पर आ गया. बीजेपी को 67 सीटों पर सफलता मिली और पार्टी चिमनभाई पटेल के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हुई. हालांकि ये गठबंधन कुछ समय तक ही चला, लेकिन बीजेपी गुजरात में एक अजेय शक्ति के रूप में उभरकर सामने आई।

नरेंद्र मोदी 1995 के विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान में सक्रिय रूप से शामिल थे. इस बार बीजेपी ने पहली बार सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. नतीजे ऐतिहासिक रहे, पार्टी को 121 सीटों पर जीत मिली और बीजेपी की सरकार बनी। वर्ष 1996 में मोदी बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव के रूप में दिल्ली आए और उन्हें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू तथा कश्मीर जैसे प्रमुख उत्तर भारतीय राज्यों का प्रभार सौंपा गया. वर्ष 1998 में बीजेपी ने अपने बल पर हिमाचल में सरकार का गठन किया और हरियाणा (1996), पंजाब (1997) तथा जम्मू और कश्मीर में गठबंधन की सरकार बनाई. दिल्ली में मिले उत्तरदायित्व ने मोदी को सरदार प्रकाश सिंह बादल, बंसी लाल और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं के साथ काम करने का अवसर दिया।

मोदी को महासचिव (संगठन) की भूमिका सौंपी गई। इस महत्वपूर्ण पद पर इससे पहले सुंदर सिंह भंडारी और कुशाभाऊ ठाकरे जैसी दिग्गज हस्तियां रह चुकी थीं. महासचिव (संगठन) के रूप में 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. दोनों चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसने अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार बनाई।

संगठन में रहते हुए मोदी ने नए नेतृत्व को तैयार किया, युवा कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया और चुनाव प्रचार के लिए टेक्नॉलॉजी के इस्तेमाल पर भी जोर दिया. इस सब उपायों के जरिए उन्होंने पार्टी के उस सफर में अपना योगदान दिया, जो सफर दो सांसदों से बढ़कर 1998 से 2004 के बीच केंद्र में सरकार बनाकर देश की सेवा करने तक पहुंचा। अपने संगठनात्मक कौशल के बल पर उन्होंने 1987 में राज्य में ‘न्याय यात्रा’ और 1989 में ‘लोक शक्ति यात्रा’ का आयोजन किया. इन प्रयासों से वर्ष 1990 में पहली बार गुजरात में अल्प अवधि के लिए भाजपा की सरकार का गठन हुआ और फिर 1995 से आज तक वहां भाजपा शासन में है.

वर्ष 1995 में नरेंद्र मोदी को भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के पद पर नियुक्त किया गया एवं 1998 में संगठन के सबसे महत्वपूर्ण पद राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी गई. तीन वर्ष बाद 2001 में पार्टी ने उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी दी. वे 2002, 2007 एवं 2012 में पुनः मुख्यमंत्री चुने गए।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली तीन दशकों में पहली पार्टी बन गई. यह पहली बार था कि किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी ने यह उपलब्धि हासिल की. 26 मई 2014 को पहली बार और 30 मई 2019 को दूसरी बार नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। प्रधानमंत्री के रूप और देश के नेता के तौर पर मोदी जी आज भी सबसे लोकप्रिय हैं।

भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक स्वामी विवेकानन्द

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भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक स्वामी विवेकानन्द

अरविंद जयतिलक

1893 में शिकागो में धर्म सम्मेलन (पार्लियामेंट आफॅ रिलीजन) में स्वामी विवेकानंद ने अपने ओजस्वी विचारों से अतीत के अधिष्ठान पर वर्तमान और वर्तमान के अधिष्ठान पर भविष्य का बीजारोपण कर विश्व की आत्मा को चैतन्यता से भर दिया था। उन्होंने पश्चिमी विचारधारा पर प्रहार करते हुए स्पष्ट कहा था कि ‘मेरी धारणा वेदान्त के इस सत्य पर आधारित है कि विश्व की आत्मा एक और सर्वव्यापी है। पहले रोटी और फिर धर्म। लाखों लोग भूखों मर रहे हैं और हम उनके मस्तिष्क में धर्म ठूंस रहे हैं। मैं ऐसे धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करता, जो अनाथों के मुंह में एक रोटी का टुकड़ा भी नहीं रख सकता।’ उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित अमेरिका और यूरोप के धर्म विचारकों व प्रचारकों को झकझोरते हुए कहा कि ‘भारत की पहली आवश्यकता धर्म नहीं है। वहां इस गिरी हुई हालत में भी धर्म मौजूद हैं। भारत की सच्ची बीमारी भूख है। अगर आप भारत के हितैषी हैं तो उसके लिए धर्म प्रचारक नहीं अन्न भेजिए।’ स्वामी जी गरीबी को सारे अनर्थों की जड़ मानते थे। इसलिए उन्होंने दुनिया को सामाजिक-आर्थिक न्याय और समता-समरसता पर आधारित समाज गढ़ने का संदेश दिया। वे ईश्वर-भक्ति और धर्म-साधना से भी बड़ा काम गरीबों की गरीबी दूर करने को मानते थे। एक पत्र में उन्होंने ने लिखा है कि ‘ईश्वर को कहां ढुंढ़ने चले हो। ये सब गरीब, दुखी और दुर्बल मनुष्य क्या ईश्वर नहीं है? इन्हीं की पूजा पहले क्यों नहीं करते ?’ उन्होंने स्पष्ट घोषणा की थी कि ‘गरीब मेरे मित्र हैं। मैं गरीबों से प्रीती करता हूं। मैं दरिद्रता को आदरपूर्वक अपनाता हूं। गरीबों का उपकार करना ही दया है।’ वे इस बात पर बल देते थे कि हमें भारत को उठाना होगा, गरीबों को भोजन देना होगा और शिक्षा का विस्तार करना होगा। स्वामी जी ने भारत के लोगों को संबोधित करते हुए शिकागो से एक पत्र में लिखा कि याद रखो की देश झोपड़ियों में बसा हुआ है, परंतु शोक! उन लोगों के लिए कभी किसी ने कुछ नहीं किया।’ स्वामी जी गरीबों को लेकर बेहद संवेदनशील थे। उन्होंने गुरु रामकृष्ण परमहंस के स्वर्गारोहण के बाद उनकी स्मृति में ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। मिशन का उद्देश्य गरीबों, अनाथों, बेबसों और रोगियों की सेवा करना था। जब उन्होंने मठ के सन्यासियों के समक्ष यह प्रस्ताव रखा तो उनका भारी विरोध हुआ। सन्यासियों ने तर्क दिया कि हम सन्यासियों को ईश्वर की आराधना करना चाहिए न कि दुनियादारी में पड़ना चाहिए। स्वामी जी सन्यासियों के उत्तर से बेहद दुखी हुए। उन्होंने कहा कि आपलोग समझते हैं कि ईश्वर के आगे बैठने से वह प्रसन्न होगा और हाथ पकड़कर स्वर्ग ले जाएगा तो यह भूल है। आंखे खोलकर देखों की तुम्हारे पास कौन है। स्वामी जी ने दरिद्र को दरिद्र नारायण कहा। उन्होंने कहा कि ‘आप अपना शरीर, मन, वचन सब कुछ परोपकार में लगा दो। तुमको पता है ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अर्थात माता में ईश्वर का दर्शन करो। पिता में ईश्वर का दर्शन करो’ लेकिन मैं कहता हूं ‘दरिद्र देवो भव, मूर्ख देवो भव। अनपढ़, नादान और पीड़ित को अपना भगवान मानो और जानो कि इन सबकी सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।’ उनका मानना था कि मानवता के सत्य को पहचानना ही वास्तव में वेदांत है। वेदांत का संदेश है कि यदि आप अपने बांधवों अर्थात साक्षात ईश्वर की पूजा नहीं कर सकते तो उस ईश्वर की पूजा कैसे करोगे जो निराकार है। एक व्याख्यान में स्वामी जी ने कहा कि जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतध्न समझता हूं, जो उनके बल पर शिक्षित बना और उनकी ओर ध्यान नहीं देता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इन गरीबों, अनपढ़ों, अज्ञानियों एवं दुखियों को ही अपना भगवान मानो। स्मरण रखो, इनकी सेवा ही तुम्हारा परम धर्म है। स्वामी जी आम आदमी के उत्थान के लिए धन का समान वितरण आवश्यक मानते थे। वे इस बात के विरुद्ध थे कि धन कुछ लोगों के हाथों में केंद्रीत हो। स्वामी जी अंग्रेजों द्वारा भारत के संसाधनों के शोषण से चिंतित थे और भारत की दुर्दशा का इसे एक बड़ा कारण मानते थे। स्वामी जी देश की तरक्की के लिए कषि और उद्योग का विकास चाहते थे। वे अकसर परामर्श देते थे कि रामकृष्ण मिशन जैसी संस्थाओं को निःस्वार्थ भाव से गरीबी से जुझ रहे किसानों की दशा में सुधार लाने वाले कार्यक्रम एवं परियोजनाएं हाथ में लेनी चाहिए। स्वामी जी इस मत के प्रबल हिमायती थे कि भारत का औद्योगिक विकास जापान की तरह विशेषताओं को सुरक्षित रखते हुए होना चाहिए। वे चाहते थे कि देश में स्वदेशी उद्योगों की स्थापना हो। एक बार उन्होंने उद्योगपति जमशेद जी टाटा से पूछा था कि आप थोड़े से फायदे के लिए विदेश से माचिस मंगाकर यहां क्यों बेचते हैं? स्वामी जी ने सुझाव दिया कि आप देश में ही माचिस की फैक्टरी और शोध संस्थान स्थापित करें। स्वामी जी के सुझाव का परिणाम रहा कि आगे चलकर जमशेद जी टाटा ने ‘टाटा इंस्टीट्यूट फाॅर रिसर्च इन फंडामेंटल साईंसेज’ की स्थापना की। स्वामी जी देश के आर्थिक विकास और नैतिक मूल्यों को एकदूसरे से आबद्ध चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि भारत के उच्च शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में विज्ञान व प्रौद्योगिकी के साथ वेदांत दर्शन भी समाहित हो। उनकी दृष्टि में वेदांत आधारित जीवन और आर्थिक विकास के बीच गहरा संबंध है। उनका मानना था कि भौतिक विज्ञान केवल लौकिक समृद्धि दे सकता है परंतु अध्यात्म विज्ञान शास्वत जीवन के लिए परम आवश्यक है। आध्यात्मिक विचारों का आदर्श मनुष्य को वास्तविक सुख देता है। भौतिकवाद की स्पर्धा, असंतुलित महत्वकांक्षा व्यक्ति तथा देश को अंतिम मृत्यु की ओर ले जाती है। स्वामी जी भारत को विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए शिक्षा, आत्मसुधार, कल्याण केंद्रीत संगठन और क्रियाशीलता की प्रवृत्ति को आवश्यक मानते थे। स्वामी जी को देश से असीम प्रेम था। शिकागो से वापसी की समुद्री यात्रा के दौरान जब वह 15 जनवरी, 1897 को श्रीलंका का समुद्री किनारे पर पहुंचे और उन्हें बताया गया कि उस तरफ जो नारियल और ताड़-खजूर के पेड़ दिखायी दे रहे हैं वो भारत के हैं, स्वामी जी इतने भावुक हो गए कि जहाज के बोर्ड पर ही मातृभूमि की ओर साष्टांग प्रणाम करने लगे। स्वामी जी ने तीन भविष्यवाणियां की थी, जिनमें से दो-भारत की स्वतंत्रता और रुस में श्रमिक क्रांति सत्य सिद्ध हो चुकी हैं। स्वामी जी ने तीसरी भविष्यवाणी की है कि भारत एक बार फिर समृद्धि व शक्ति की महान ऊंचाइयों तक उठेगा। स्वामी जी का मातृभूमि से तादातम्य संपूर्ण था। वे स्वयं को ‘घनीभूत भारत’ कहते थे। स्वामी जी की शिष्या भगिनी निवेदिता ने अपनी मातृभूमि से उनके सम्मिलन को अभिव्यक्त करते हुए कहा है कि ‘भारत स्वामी जी का गहनतम अनुराग रहा है, भारत उनके वक्ष पर धड़कता है, भारत उनकी नसों में स्पंदन करता है, भारत उनका दिवास्वप्न है, भारत उनका निशाकल्प है, वे भारत का रक्त-मज्जा से निर्मित साक्षात शरीररुप हैं, वे स्वयं ही भारत हैं।’ सच कहें तो स्वामी जी का उदय ऐसे समय में हुआ जब भारत के सामाजिक पुनरुत्थान के लिए राजाराम मोहन राय और शिक्षा के विकास के लिए ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे अनगिनत मनीषी भारतीय समाज में नवचेतना का संचार कर रहे थे। स्वामी जी अपने विचारों के जरिए स्वधर्म और स्वदेश के लिए अप्रतिम पे्रम और स्वाभिमान का उर्जा प्रवाहित कर जाग्रत-शक्ति का संचार किया जिससे भारतीय जन के मन में अपनी ज्ञान, परंपरा, संस्कृति और विरासत का गर्वपूर्ण बोध हुआ। स्वामी जी की दृष्टि में समाज की बुनियादी इकाई मनुष्य था और उसके उत्थान के बिना वे देश व समाज के उत्थान को अधूरा मानते थे। उनका दृष्टिकोण था कि राष्ट्र का वास्तविक पुनरुद्धार मनुष्य-निर्माण से प्रारंभ होना चाहिए। मनुष्य में शक्ति का संचार होना चाहिए जिससे कि वह मानवीय दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त करने में और प्रेम, आत्मसंयम, त्याग, सेवा एवं चरित्र के अपने सद्गुणों के जरिए उठ खड़ा होने का सामथ्र्य जुटा सके। वे सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा को एक बड़ा राष्ट्रीय पाप मानते थे। 

जन्मदिन : लाला अमरनाथ की जादुई गेंद ने किया था डॉन ब्रेडमैन को हिट विकेट

भारतीय क्रिकेट को चेहरा देने वाले महान खिलाड़ी लाला अमरनाथ को आज याद करने का दिन है। लाला ने सिर्फ भारत के लिए पहला शतक जड़ा था बल्कि उन्होने सर्वकालीन महान क्रिकेटर बल्लेबाज सर डॉन ब्रेडमैन को आउट भी किया था। आज यानि 11सिंतबर के दिन 1911 लाला अमरनाथ  का जन्म हुआ था।

भारतीय क्रिकेट के इतिहास में लाला ने साल 1933 में बॉम्बे जिमखाना में इंग्लैंड के खिलाफ पहला टेस्ट मैच खेला था। इस मैच में उन्होंने 118 रन की पारी खेली थी, जो किसी भी भारतीय द्वारा पहली टेस्ट सेंचुरी थी. अमरनाथ आजाद भारत के पहले टेस्ट कप्तान भी थे. उन्होंने अपनी कप्तानी में भारत को पाकिस्तान के खिलाफ 1952-53 में खेली गई पहली आधिकारिक टेस्ट सीरीज में जीत दिलाई थी. भारत ने यह सीरीज 2-1 से जीती थी.

लाला अमरनाथ ने अपने करियर में कुल 24 टेस्ट मैच खेले, जिसमें उन्होंने कुल 878 रन बनाए. उनके नाम कुल 1 शतक और 4 अर्धशतक है. इसके अलावा 186 फर्स्ट क्लास मैचों में उन्होंने 41 की औसत से 10426 रन बनाए हैं. उन्होंने 31 शतक और 39 अर्धशतक जड़ा है। लाला अमरनाथ बेहद ही सटीक लाइन लेंथ से गेंदबाजी करते थे, वो दुनिया के इकलौते गेंदबाज हैं जिन्होंने सर डॉन ब्रैडमैन  को हिट विकेट करने का कारनामा किया है. 1947 में अमरनाथ ने ब्रिसबेन टेस्ट के दौरान ब्रैडमैन को हिटविकेट किया था. अमरनाथ के नाम टेस्ट क्रिकेट में 45 विकेट और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 463 विकेट दर्ज है।

9/11 की 20 बरसी: फिर आतंक के साये में दुनियाँ

9/11 यानि 11 सिंतबर की 20वीं बरसी पर आतंक एकबार फिर दुनियाँ के लिए गंभीर समस्या बन गया है। 20 साल के पहले आज के दिन ही अमेरिका पर ऐसा आतंकी हमला हुआ था जिससे समूची दुनियाँ हिल गई थी। उस दिन अमेरिका  में चार विमान अगवा किए और उनसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के और पेंटागन की इमारतों को नष्ट करने का प्रयास किया गया। हमलों में करीब 3 हजार लोग मारे गए, 25 हजार लोग घायल हुए और करीब 10 अरब डॉलर की सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस घटना के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने आतंक के खात्मे की शपथ ली।

इसके बाद अफगानिस्तान में तालिबान को हटाया गया। अमेरिका सहित पूरी विश्व व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आया। लेकिन आज बीस साल दुनियाँ फिर उस मोड़ पर आकर खड़ी हो गई, जहां आतंक की दहशत थी। आज अफगानिस्तान पर फिर से तालिबान का कब्जा है और दुनियाँ नागरिक अधिकारों के हनन से चिंतित है। दुनियाँ आज फिर उस दो राहे पर खड़ी है जहां से आतंक का नया युग शुरू होने का खतरा बना हुआ है।

क्या हुआ था इस दिन अमेरिका में साल 2001 में इसी दिन अमेरिका (USA) में अलकायदा आतंकियों ने चार व्यवसायिक उड़ानों को अगुआ किया गया, इनमें से दो हवाई जहाज को न्यूयार्क के मैनहैटन स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो टावरों से टकरा कर नष्ट कर दिया. तीसरा विमान मशहूर पैंटागन इमारत से टकराया जिसमें उसे आंशिक नुकसान  हुआ जबकि चौथा विमान पेनसिलवेनिया में क्रैश हो गया।

जनता कहेगी तो राजनीति करेंगी कंगना

राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से राय रखने वाली वलीवुड की क्वीन कंगना रनौत आने वाले समय में राजनीति के मंच पर भूमिका निभा सकती हैं। इसके संकेत उन्होने खुद अपनी आने वाली फिल्म थलाइवी के प्रमोशन के दौरान दी। कंगना ने कहा कि अगर जनता चाहेगी तो राजनीति में जरूर उतरेंगी।

इस फिल्म में उन्होंने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता का किरदार निभाया है। कंगना हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में पहुंचीं. जहां, उन्होंने मंच से इशारे-इशारे में कहा दिया कि वह फिल्म के नायक की तरह बाद में भी राजनीति में उतर सकती हैं. इस दौरान कंगना के साथ फिल्म के प्रोड्यूसर विष्णु वर्धन इंदुरी भी मौजूद थे।

कंगना रनौत अपनी बात को सोशल मीडिया पर डंके की चोट पर रखती हैं. उनके कुछ फैंस को ये पसंद आता है तो कुछ इसी बात के लिए ट्रोल करते हैं. हाल ही में ‘थलाइवी’  की रिलीज से पहले जब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब उनसे पूछा गया, ‘क्या ये फिल्म किसी भी तरह से उनके राजनीति में आने का रास्ता है?’ तो उन्होंने अपने मन की बात कह डाली। एक्ट्रेस ने कहा, ‘फिल्म कई मल्टीप्लेक्स में हिंदी में रिलीज नहीं होगी, मल्टीप्लेक्स ने हमेशा प्रोड्यूसर्स को परेशान करने की कोशिश की है. मैं एक नेशनलिस्ट हूं, देश के बारे में बात करती हूं इसलिए नहीं कि मैं एक पॉलिटिशियन हूं, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं देश की नागरिक हूं. अब रही पॉलिटिक्स में आने की बात तो अभी मैं एक एक्ट्रेस के तौर पर खुश हूं, लेकिन अगर कल को लोग मुझे पसंद करेंगे मुझे सपोर्ट करेंगे, तो यकीनन में पॉलिटिक्स में आना पसंद करूंगी’।