Monday, September 16, 2024
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अम्बेडकर दर्शन मौजूदा समय में ज्यादा आवश्यक

डॉ आलोक चांटिया

अखिल भारतीय अधिकार संगठन

आज भारतीय संविधान के शिल्पी डाक्टर अम्बेडकर की जन्म जयंती है| माता- पिता की 14 संतानों में से एक डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल को मनाने का संकल्प राजनीतिक फैसले से कहीं बढ़कर है| जहाँ सिर्फ ये भावना नहीं होनी चाहिए कि अन्य राजनेताओं का जन्मदिन मनाया जाता है तो डॉ अंबेडकर का जन्मदिन क्यों नहीं! हमें मौजूदा परिस्थितियों में डॉ अंबेडकर का जन्मदिन उनके दर्शन और और सिद्धांतों को जीवन में अपनाकर मानना चाहिए|

स्वतंत्र भारत में संविधान सभा पर के लिए बनाई गई 22 समितियों में से प्रारूप समिति की अध्यक्षता करने वाले डॉक्टर अंबेडकर संविधान की प्रस्तावना के प्रथम शब्द “हम”  जिस दृष्टिकोण से रखकर लाए थे| उस शब्द के अनुरूप संविधान के अनुच्छेदों में वर्णित वसुधैव कुटुंबकम की भावना वाले भारत का निर्माण जाति और धर्म से ऊपर आज तक ना हो सका जिस पर सभी को मंथन करना चाहिए| यही अम्बेडकर का दर्शन है| यही उनकी समाज को सीख है|

आज डॉक्टर अंबेडकर की शिक्षा और दर्शन के विपरीत जिस तरह से  समाज शैक्षिक आधार पर, व्यवसाय के आधार, पर धर्म के आधार पर और जाति के आधार पर विभाजित है, वो चिंतनीय है| इस अर्थ में डॉक्टर अंबेडकर को आज हमें समझने की ज्यादा आवश्यकता है

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर इस जीवन का सबसे बड़ा मूल्य उनके द्वारा ग्रहण गई शिक्षा में छिपा है| जिसको ना तो उन्होंने किसी आरक्षण के आधार पर प्राप्त किया और ना ही आरक्षण के आधार पर अपनी शिक्षा को देखने का प्रयास किया| लेकिन आज शिक्षा को भी आरक्षण के आधार पर देखा जाना इस बात को स्थापित कर रहा है कि अंबेडकर के दर्शन और सिद्धांत  को हमने अपने स्वार्थों के साथ ज्यादा देखना शुरू कर दिया है| उनकी तरह संघर्ष करके विपरीत परिस्थितियों में काम करके की जगह सहजता से शिक्षा प्राप्त हो जाए इस पर ज्यादा काम करना आरंभ कर दिया| राजनीतिक स्वार्थों में इस बुराई को आगे बढ़ाया गया|

अंबेडकर के मूल्यों की स्थापना के लिए सभी को यह स्वीकार करना चाहिए कि शिक्षा ही वह मूल मंत्र है, जो डॉक्टर अंबेडकर की तरह किसी को भी ऊंचाई तक ले जा सकती है| अंबेडकर दर्शन पर काम करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को यथासंभव यह प्रयास करना चाहिए कि वह उच्च शिक्षा ग्रहण करे| अपनी आर्थिक परिस्थितियों आदि के आधार पर  हीनभावना से ग्रस्त न हो| ना उसके आधार पर शिक्षा ग्रहण करे| 

डॉक्टर अंबेडकर के जन्मदिन पर इस दर्शन को पल्लवित करने की आवश्यकता है कि चाहे उनके पिता रामजी सकपाल हो या फिर स्वयं डॉक्टर अंबेडकर के पूरे नाम में भीम और राम का नाम आया हो वह सभी अपने आप में यह स्थापना करते हैं कि हम सब हिंदू हैं और सबको धार्मिक सद्भाव और प्रेम में आस्था है| लेकिन राजनीतिक दुर्भावनाओं के चलते हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का अपमान डॉक्टर अंबेडकर का दर्शन नहीं हो सकता| यह एक निर्विवाद सत्य है कि हिंदुओं में जाति व्यवस्था के मकड़जाल में उनके दर्शन और उनके प्रयास को कभी उच्च स्तर पर आदर्श स्थिति में नहीं जाने दिया| इसी कारण  जीवन के अंतिम दिन से पूर्व उन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया|

पर डॉ आंबेडकर न ईसाई बने और न ही मुसलमान बने बल्कि वह हिंदू के धर्म के ही विस्तार में उत्पन्न बौद्ध धर्म की ओर अग्रसर हुए|  इस धर्म को हिंदुओं के 10 अवतार के सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है|

इस अर्थ में आज वर्तमान में डॉक्टर अंबेडकर के इस दर्शन को हमें स्वीकार करना होगा कि मूल रूप से हम सब हिंदू ही हैं जितनी धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में हिंदू धर्म में अनेकों संप्रदाय हैं उतनी स्वतंत्रता आज भी हर किसी को है लेकिन जिस तरह से डॉक्टर अंबेडकर के इस दर्शन को नकारा गया है उसने भारत को बहुत दूर कर दिया है

डॉक्टर अंबेडकर के जन्मदिन पर हिंदू धर्म को भी राम के दर्शन कृष्ण के दर्शन पर अपना आकलन करने की आवश्यकता है जिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने शबरी को निषाद को अपने जीवन की पूर्णता का एक महत्वपूर्ण अंश माना भील को अपना सहायक माना और जैसे भगवान कृष्ण द्वारा विदुर का सम्मान किया गया उसी तरह से हिंदू धर्म के अंतर्गत सभी जाति वर्ग का सम्मान होना चाहिए था जिसको ना करके ना सिर्फ हमने राम के दर्शन को कृष्ण के दर्शन को नकारा है बल्कि इस प्रयास में डॉक्टर अंबेडकर के उस हर प्रयास को समझने से अपने को दूर किया है जिससे भारत एक हो सकता था

वर्ष 1936 में डॉक्टर अंबेडकर ने जाति व्यवस्था के विकल्प के रूप में अंतरजातीय विवाह को एक ऐसा रास्ता बताया था जिससे भारत में समरसता एकता सद्भाव की स्थापना की जा सकती है लेकिन जिस तरह से आज भी अंतरजातीय विवाह पर कानून बनने के बाद वैधानिक सुरक्षा के बाद एक संकीर्णता भेदभाव कठोरता का वातावरण व्याप्त है उससे संविधान की प्रस्तावना का विलोपन  हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देता है

डॉक्टर अंबेडकर को  सर्वोच्चता प्रदान करने के क्रम में सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता इस बात की है जिस तरह से उन्होंने स्वच्छता को प्राथमिकता दी उसी तरह भारत के संपूर्ण लोगों को स्वच्छता को अपने जीवन में उतारना चाहिए जिस तरह से उन्होंने मरे हुए जानवरों को खाने का विरोध करते हुए लोगों को प्रेरित किया उसी तरह लोगों को मांस मदिरा से दूर होना चाहिए और जिस तरह से उन्होंने शिक्षा को सर्वोच्च था प्रदान करते हुए अपने जीवन का स्वयं एक आदर्श प्रस्तुत किया उसी तरह भारत के हर व्यक्ति को शिक्षा का अंतिम हथियार बनाना चाहिए जिससे एक वास्तविक अपूर्व विकल्प समानता के बोध में उत्पन्न हो सके

चाहे जितना भी आभासी लगे लेकिन जब डॉक्टर अंबेडकर ने अपने जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास किया तो हर जाति ने उनका सहयोग किया उनके ब्राह्मण गुरु ने उन्हें अपना उपनाम अंबेडकर दिया और आज हर व्यक्ति अपने साथ अंबेडकर नाम जोड़कर अपने को गौरवान्वित महसूस करता है जबकि यह एक ब्राह्मण की देन है इस अर्थ में सिर्फ जाति के आधार पर द्वेष रखना डॉक्टर अंबेडकर की ही जीवन के विपरीत काम करने जैसा है

भारत के समस्त लोगों को जो सिर्फ नौकरी पाने में पढ़ाई में कहीं आगे बढ़ने में आरक्षण को ही अपने गरिमा को जीवन का आधार मानते हैं उन्हें डॉक्टर अंबेडकर सेवा शिक्षा लेनी होगी उन्होंने किसी आरक्षण के आधार पर अपने जीवन को ना बढ़ाया और ना उसकी वकालत की ना अपने को दीन हीन दिखाया बल्कि संघर्ष किया और उस संघर्षों से वह कई भाई बहनों के बीच रहते हुए अपने जीवन को स्वर्णिम दिशा की ओर ले गए लेकिन आज हम डॉक्टर अंबेडकर की इस चेतना और प्रयास को ना याद करना चाहते ना जीवन में उतारकर आरक्षण जैसे मकड़जाल से दूर होना चाहते बल्कि जिस आरक्षण में यह व्यवस्था हो कि कम नंबर आने पर भी चयन हो जाए उस भारत में कभी भी समानता का अध्याय नहीं लिखा जा सकता क्योंकि कम नंबर पाकर चयनित होने पर समाज का एक वर्ग सदैव ही ऐसे लोगों को कम बुद्धि वाला मानता है जबकि सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र 1948 का प्रथम अनुच्छेद या फिर अनुवांशिकता के आधार पर वैज्ञानिक तथ्य हो कि सभी के पास समान रूप से दिमाग होता है यह भारत की है जहां पर विज्ञान के विपरीत काम हो रहा है जहां पर लैमार्कवाद के सिद्धांत का मजाक बन रहा है क्योंकि इस देश भारत में माना जा रहा है कि जो सैकड़ों वर्षो से गुलामी दासता जीते हुए आए हैं उनकी संतान कम बुद्धि वाली कमजोर शरीर वाली होंगी जबकि ऐसा नहीं है फेरों जैसे वैज्ञानिक ने भी है स्थापित किया है पृथ्वी पर जितने मनुष्य हैं सभी की कपाल धारिता समान होती है सिर्फ उस दिमाग का उपयोग किसने कितना करने का प्रयास किया है यह महत्वपूर्ण होता है जो की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है इसीलिए नेचर नरचर जैसे सिद्धांत में भी यह बताया जाता है लेकिन जिस तरह से राजनीतिक मकड़जाल में अपने स्वार्थों के लिए अवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर डॉक्टर अंबेडकर के सहारे देश के प्रत्येक व्यक्ति के मनोविज्ञान में एक रेखा खींची गई है उससे भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के कर्ताधर्ता डॉक्टर अंबेडकर का भारत ना तो पूर्णतया संविधान को जी पाया और ना ही सभी लोगों में विश्व बंधुत्व भाईचारे की भावना होते हुए सिर्फ भारतीय होने का बोध जग पाया जिसका मंथन डॉक्टर अंबेडकर के जन्मदिन के दिन आवश्यक है क्योंकि आज डॉक्टर अंबेडकर और भारत के बीच दूरी बढ़ रही है उसको मिटाना ही डॉक्टर अंबेडकर को वास्तविकता में इस देश में स्थापित करना और उनके दर्शन को जीने का सार होगा|

लेखक लेखक दो दशक से मानवाधिकार विषय पर जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं)

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