Monday, November 25, 2024
Homeतकनीकीएआई की खामियां दूरकर डिजिटल गुरु बन सकता है भारत

एआई की खामियां दूरकर डिजिटल गुरु बन सकता है भारत

मनीष शुक्ल  

सूचना क्रांति का दौर बीत चुका है| अब बारी डिजिटल युग की है जिसका नेतृत्व भारत के हाथों में है| तमाम आशंकाओ को ख़ारिज करते हुए दुनियां आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम मेधा को अपना रही है| कार्पोरेट जगत आज भारत की ओर देख रहा है| जिसकी बानगी है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात| इसी सप्ताह सैम ने मुलाक़ात के बाद कहा कि पीएम मोदी एआई को लेकर उत्साहित हैं | भारत जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है वो सबके लिए उम्मीद से भरा है| दूसरी ओर कृत्रिम मेधा से उपजी आशंका और ऑन लाइन अपराधों से निपटने के इए डिजिटल इन्डिया एक्ट लाने की तैयारी हो गई है| ऐसे में नेशनल से साइबर क्षेत्र में सिक्योरिटी देकर भारत मानवीय मूल्यों पर आधारित रास्ता दिखाकर डिजिटल गुरु बन सकता है|      

यह सच भी है कि जब तक मानवीय मूल्य हैं, तब तक हर शंका का निवारण है| समय- समय पर मनुष्य ने अपनी जरुरत के लिए तकनीकी का निर्माण किया| अगर तकनीकी के इस्तेमाल से आशंकाओं ने जन्म लिया| सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक सवाल उठे, तब इन सवाल और आशंकाओं के निवारण भी किया गया| मानवीय मूल्यों पर आधारित कानून ने तकनीक को नियंत्रित करने का कार्य किया| अंतिम निष्कर्ष यही रहा है कि नैतिक मूल्यों ने मनुष्य और मशीन दोनों को दिशा देने का काम किया है| जिसमें भारतीय संस्कार सदैव मार्गदर्शक रहे हैं|   

एआई तकनीकी का नया विकासक्रम है| पिछले कुछ वर्षों में एआई हमारे जीवनशैली का हिस्सा बन गई है | खासतौर पर करोना काल के समय से बदल रहे जीवन चक्र में कृत्रिम मेधा की महत्वपूर्ण भूमिका हो गई है| आज घर की जरुरत के सामान से लेकर स्वास्थ्य और नागरिक सेफ्टी एआई के जरिये आसानी से हो रही है| स्मार्ट फोन हो फिर सरकार की बनाई जा रही स्मार्ट सिटी, कृत्रिम मेधा के बिना संभव नहीं है| डिजिटल शापिंग से लेकर पेमेन्ट सब कुछ आसानी से ऑन लाइन हो रहा है|   

कभी सूचना क्रांति हुई थी| आज डाटा पॉवर बन गया है| इसके लेन-देन के लिए दुनियां भर की कम्पनियां आपस में लड़ रही हैं| आपकी सारी जानकारी दुनियां के किसी अनजान कोने में बैठे व्यक्ति को है| इसका कारण एआई ही है| एआई से लैस रोबोट इन्सान की तरह समाचार पढ़ा रहा है| ये सच्चाई है| इस सच ने दुनियां को फायदा पहुँचाने के साथ ही आशंकाओं को भी जन्म दिया है| ये आशंका इन्सान के व्यक्तिगत गोपनीयता से लेकर रोजगार के संकट और जीवन से जुड़ा है| लेकिन हमें हमेशा दो बातों को याद रखना होगा कि मनुष्य तकनीकी का जन्मदाता है न कि तकनीकी ने मनुष्य को जन्म दिया है| दूसरा समय की मांग और जरुरत के हिसाब से तकनीकी को परिवर्तित और नियंत्रित किया जा सकता है| इसलिए एआई से लाभ और हानि आंकलन भी हमें तत्काल ही करना होगा |  

हमें एआई के उदय और विकास को भी समझना होगा| आज पूरी दुनियां में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की धूम हो पर एआई की शुरूआत बीती शताब्दी के पाचवें दशक से हो गई थी| आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक जॉन मैकार्थी के अनुसार यह कंप्यूटर प्रोग्राम को बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है| अर्थात यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित किया गया इंटेलिजेंस है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलिजेंस तरीके से सोचने वाला सॉफ़्टवेयर बनाने का एक तरीका है। हमें एआई की ताकत का अहसास पहली बार तब हुआ जब एआई से लैस सिस्टम ने 1997 में शतरंज के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में शुमार गैरी कास्पोरोव को हरा दिया| दूसरी ओर जापान ने फिफ्थ जनरेशन नामक योजना के जरिये एआई की शुरुआत की। इसमें सुपर-कंप्यूटर के विकास के लिये 10-वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। फिर ब्रिटेन ने एआई आधारित ‘एल्वी’ नाम का एक प्रोजेक्ट बनाया। यूरोपीय संघ के देशों ने भी ‘एस्प्रिट’ नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी। 1983 में कुछ निजी संस्थाओं ने मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर लागू होने वाली उन्नत तकनीकों के विकास के लिए ‘माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कंप्यूटर टेक्नोलॉजी’ संघ की स्थापना की।

अगर हम भारत की बात करें तो भले ही यहाँ पर कृत्रिम मेधा ने थोड़ी देर से दस्तक दी हो लेकिन केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल में सात -सूत्री नीति जारी कर डिजिटल युग के संकेत दे दिए| जिसमें मानव मशीन की बातचीत के लिये विकासशील विधियाँ बनाने से लेकर शोध- अनुसंधान, एआई सिक्योरिटी, लॉ, नैतिक और सामाजिक प्रभाव का अध्ययन शामिल है| केंद्र सरकार का मानना है कि सुशासन के लिहाज़ से देश में जहां संभव हो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जाए। मनोरंजन के क्षेत्र में एआई का वर्चस्व अब किसी से छिपा नहीं है| ऐसे में ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, परिवहन, कृषि, बैंकिंग, सुरक्ष जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में कृत्रिम मेधा का तेजी से प्रसार किया जा रहा है|

डिजिटल युग में सटीक और तथ्यपरक जनसंचार के लिए भी कृत्रिम मेधा एक महत्वपूर्ण अस्त्र हो सकता है| फिर खोजी पत्रकारिता हो, मौसम की जानकारी हो या फिर न्यूज रिपोर्टिंग और एंकरिंग| हाल में वर्ष 2023 में हमने देखा कि देश के एक एक भारतीय मीडिया समूह ने अपने पहले पूर्णकालिक कृत्रिम मेधा (एआई) समाचार एंकर का अनावरण किया| सना नाम के बॉट ने देश के जाने- माने न्यूज़ एंकर के साथ समाचार पढ़कर सभी को चौंका दिया| सना एक रोबोट थी| टेक्स्ट-टू-स्पीच तकनीक का इस्तेमाल करके सना को समाचार प्रस्तोता बनाया जा सका| भारत में यह अपनी तरह का पहला प्रयोग था जो स्थाई न बन सका लेकिन ख़बरों की दुनियां में एआई प्रेजेंटर का आगमन हो ही गया|  

दुनिया भर के विभिन्न मीडिया संस्थानों और समाचार एजेंसियों में अब कंप्यूटर का विशेष रूप से प्रयोग हो रहा है| आज तकनीकी के जरिये संवाद और संचार को ज्यादा प्रभावी और सटीक बनाया जा सकता है| राजनीति, खेल, मौसम, स्टॉक एक्सचेंज की गतिविधियों, कॉरपोरेट जगत की ख़बरों के लिए तकनीकी का व्यापक उपयोग हो रहा है| आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये अब ख़बरों की मनोवृत्ति को भी पहचाना जा सकता है| बदलावों का सटीक मूल्यांकन भी किया जा सकता है| ऐसे में इन क्षेत्रों में काम करने वाले पत्रकार व दूसरे तकनीकी से लैस संचारकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो रही है| शायद कुछ समय पहले तक ये संभव नहीं था|    

अगर एआई की भूमिका जीवन में समझनी हो तो हमें एकबार कोविड-19 के कालखंड को देखना होगा| देश और दुनियां को सेफ करने में बड़ी भूमिका एआई ने निभाई है| फिर चाहे सार्वजनिक स्वास्थ्य डाटा का विश्लेषण करना हो या फिर आस-पड़ोस से लेकर दूर दराज में छिपे मरीज की तलाश हो| इस दौरान पत्रकारिता और जनसंचार में भी एआई के जरिये नए बदलाव दर्ज किये गए| निश्चित रूप से लोगों की नौकरी भी गई| ये बात अलग है कि  संक्रमण काल से निकलकर सभी की निगाहें भविष्य की ओर हैं| कृत्रिम मेधा कंप्यूटर बड़ी मात्रा में डाटा का विश्लेषण करके बेहद कम समय में परिणाम दे रहा है| विभिन्न स्रोत से आए तथ्यों की जांच करके उनकी विश्वसनीयता का पता लगाया जा रहा है| ये जारी भले ही मशीन कर रही है लेकिन इनका प्रयोग संसथान और पत्रकार जनसंचार के लिए कर रहे हैं| केंद्र सरकार का थिंकटैंक नीति आयोग राष्ट्रीय कृत्रिम मेधा कार्यक्रम के जरिये भविष्य का रास्ता तलाश रहा है| जिसपर चलकर भारत वर्ष 2030 तक आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में विश्व का अगुआ बन सके| ऐसे में एआई से मानव जीवन और उसके रोजगार के संकट की आशंकाओं का निस्तारण करके हमें डिजिटल युग में आगे बढ़ना होगा| तभी भारत मजबूती से विश्व गुरु की पदवी दोबारा हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ सकता है|   

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments