Thursday, November 21, 2024
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11वीं में फेल होने पर आत्महत्या की कोशिश करने वाला बालक बना महान गणितज्ञ रामानुजन

गरीब परिवार में जन्म, पढ़ाई में कमजोर और रोजी- रोटी के लिए क्लर्क की नौकरी करने वाले रामानुजन की प्रतिभा को आगे बढ़ने से कोई भी बाधा रोक नहीं पाई। वो गणित विषय में विलक्षण थे। ऐसे अद्युतीय प्रतिभा के धनी कि दुनियाँ में सबसे प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की सदस्यता हासिल करने वाले पहले भारतीय बने, वो भी सबसे कम आयु में। इसके बाद उनको ट्रिनिटी कॉलेज की फैलोशिप भी मिली। उनके कई फार्मूले आजतक दुनियाँ भर के गणितज्ञों के लिए रहस्य का विषय हैं। ऐसे महान गणितज्ञ का जन्म आज के दिन 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था।

श्रीनिवास रामानुजन गणित में के एक सवाल को 100 से भी ज्यादा तरीकों से हल कर सकने में सक्षम थे। हालांकि उनका बचपन बेहद संघर्षमय रहा। उनके पिता कपड़े की दुकान पर काम करते थे। मां मंदिर में भजन गाती थीं। मंदिर के प्रसाद से घर पर एक वक्त का खाना हो जाता लेकिन दूसरे वक्त के खाने के लिए परिवार पिता की कमाई पर निर्भर था।  कई-कई बार ऐसा भी होता कि रामानुजन के परिवार को एक वक्त का खाना ही नसीब हो पाता। हालांकि शुरू से रामानुजन ने गणित में अपनी असाधारण प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी। उनके पास ज्यादा कॉपियां खरीदने के पैसे नहीं होते थे तो पहले स्लेट में गणित के सवाल हल करते और फिर सीधे फाइनल उत्तर ही कॉपी पर उतारते ताकि कॉपी जल्दी न भर जाए। क्लास की किताबें कुछ ही दिनों में पढ़ जाने के बाद वे बड़ी कक्षा के बच्चों के सवाल भी हल करने लगे। जिससे बड़ी कक्षाओं के बच्चे भी गणित में मदद के लिए रामानुजन के पास आते थे। रामानुजन की प्रतिभा को देखते हुए उनके शिक्षक ने कहा था मेरा बस चले तो 100 में से उसको 1000 नंबर दे दूँ। हालांकि रामानुजन का मन केवल गणित में लगता था जिससे 11वीं क्लास में गणित में तो पूरे अंक लाए लेकिन बाकी सारे विषयों में फेल हो गए। इससे उन्हें पढ़ाई के लिए मिली स्कॉलरशिप भी गंवानी पड़ी। इससे दुखी बालक ने  खुदकुशी की कोशिश भी की। ईश्वर की कृपा से उनका अहित नहीं हुआ। बाद में  जैसे-तैसे सभी सब्जेक्ट पढ़कर 12वीं पास की और जीवन चलाने के लिए क्लर्क का काम करने लगे। काम के बाद बचे समय में वे गणित के मुश्किल से मुश्किल थ्योरम हल करते रहते।  साथ में वे एक और काम करते- ब्रिटिश गणितज्ञ जीएच हार्डी को चिट्ठियां लिखना। उस समय हार्डी की पहचान पूरी दुनिया में गणित के जीनियस के रूप में हो चुकी थी। हार्डी ने पहले तो उनको गंभीरता से नहीं लिया लेकिन फिर उनकी प्रतिभा को समझकर लंदन बुलाया। जिसके बाद पूरी दुनियाँ जीनियस रामानुजन से परिचित हुई।

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