2022 के चुनाव से पहले राजनैतिक दल ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की बना रहे रणनीति
भाजपा की प्रदेश करी समिति की बैठक में हुई परंपरागत वोट बैंक पर चर्चा
लखनऊ। 2022 के विधान सभा चुनाव धीरे- धीरे करीब आ रहे हैं। इस चुनाव में ब्राह्मण एक बार केंद्र में मुद्दा बनकर उभर रहे हैं। विपक्ष जहां योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगा रहा है। तो भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में अपने परंपरागत वोट बैंक को महत्व देने का निर्णय लिया गया है।
ब्राहमण शंख बजाएगा, हाथी आगे चलता जाएगा… यह वाक्य भले ही चुनावी नारा भर हो लेकिन इस नारे ने ब्राहमण राजनीति को नई पहचान दी है। तीन दशक पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन का जिन्न निकाला था। इसके बाद ब्राहमण सत्ता पर आधारित देश की राजनीति का चेहरा अचानक बदल गया। जातीय राजनीति ने नए समीकरण गढ़े और देश को गैर ब्राहमण सत्ता के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया। इन सालों में समाज के प्रत्येक क्षेत्र में गैर ब्राहमण नेतृत्व उभरा और चमका। लेकिन 2007 में अचानक दलित नेत्री मायावती का नया अवतार हुआ जिसने हाशिए पर चले गए ब्राहमणों को एकबार फिर अपनी ताकत दिखाने का मौका दिया। नतीजा ब्राहमण दलित गठजोड़ ने पहली बार बसपा सुप्रीमों को उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का मौका दिया। वीपी सिंह और मायावती दोनों ही गैर ब्राहमण राजनीति का प्रतीक हैं लेकिन ब्राहमणों के शिफर और शिखर के बीच हिचकोले खाने की दास्तान जरूर बयान करते हैं।
2022 यूपी चुनाव में दस फीसदी ब्राहमण मतादाता एकबार फिर मुद़दा हैं। कांग्रेस ने प्रदेश की राजनीतिक जमीन वापस लेने के लिए अगले विधान सभा चुनावों में ब्राह्मण कार्ड खेलने का मन बना लिया है। बसपा ने पिछली बार की तरह इस बार भी ब्राहमणों को दिल खोलकर विधायकी का टिकट देने के संकेत दिये हैं। सपा भी ब्राहमण वोटरों को रिझाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा ब्राह्मणों को अपना आधिकारिक और परंपरागत वोट मानती है। प्रदेश में एक उपमुख्यमंत्री के रूप दिनेश शर्मा इस बात का संकेत भी देते हैं। रीता बहुगुणा जोशी और ब्रजेश पाठक जैसे दिग्गज ब्राहमण नेताओं को पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान देकर भाजपा ने ब्राह्मणों में संकेत दिया हैं कि वह अपने परंपरागत वोटरों को किसी भी कीमत पर बंटने नहीं देगी। 2022 के विधान सभा चुनाव के ठीक पहले ब्राह्मण वोटर एकबार फिर चर्चा के केंद्र में है।
कभी पावर सेंटर मानी जाने वाली ब्राहमण सत्ता को पिछले तीन दशकों में गिरावट का दौर देखना पड़ा। ब्राह्मणों का प्रभाव विशेष रूप से हिंदी बेल्ट में तेजी से कम हुआ है। 1984 में जहां लोकसभा में पहुंचने वाले सांसदों का प्रतिशत 19.91 था। वहीं वर्ष 2014 में घटकर यह 8.27 पर आ गया है। उत्तर प्रदेश में तीन दशक पहले तक 60 फीसदी विधायक ब्राह्मण होते थे। प्रदेश के 20 मुख्यमंत्रियों में 6 ब्राह्मण रहे। 23 वर्षों तक यूपी में ब्राहमण मुख्यमंत्रियों ने राज किया। ये सभी कांग्रेस के थे। नारायण दत्त तिवारी के बाद पिछले 27 सालों से सीएम की कुर्सी ब्राहमणों की पहुंच से दूर हो गई है। इन वर्षों में आए 12 मुख्यमंत्रियों ने दलित, ओबीसी समीकरण बनाकर सत्ता के नए केंद्रों की स्थापना की।
पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को मिली ऐतिहासिक सफलता ने सारे राजनैतिक समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यूपी की आबादी 19 करोड़ 98 लाख थी। अब तक जनसंख्या 21 करोड़ तक पहुंच गई है। प्रदेश में हिन्दुओं की आबादी 79.7 प्रतिशत है। इसमें ब्राह्मण 10 प्रतिशत, ठाकुर 8.5 प्रतिशत, यादव 8.5 प्रतिशत, कुर्मी 3 प्रतिशत, जाटव 11.5 प्रतिशत, ट्राइब्स 0.8 प्रतिशत और अन्य 24 प्रतिशत हैं। मुस्लिमों की आबादी 19.3 प्रतिशत है। इसके अलावा एक प्रतिशत की आबादी में सिख, जैन, बौद्घ और क्रिश्चियन शामिल हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने हिंदुत्व कार्ड खेला और प्रखर राष्ट्रवादी चेहरे नरेंद्र मोदी को पीएम का चेहरा बना दिया। भाजपा का यह गणित कारगर रहा और जातीय राजनीति की सीमाओं को ध्वस्त करते यूपी के मतदाताओं ने भाजपा को लोकसभा के लिए ऐतिहासिक सीटें जिता दी। ऐसे में पिछले तीन दशकों से राजनैतिक अछूत बन गया ब्राहमण समाज हर दल की जरूरत बन गया है। यानी बिना ब्राहमण सत्ता की चाभी मिलना किसी भी दल के लिए मुश्किल है।
मोदी मंत्रिमंडल में ब्राहमणों को स्थान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में ब्राह्मण केंद्रीय मंत्रियों को स्थान दिया गया है। इसके विपरीत पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी पहली केंद्र सरकार में सात ब्राह्मण थे। हालांकि पहली लोकसभा में ब्राहमण मंत्रियों का प्रतिनिधित्व 29 फीसदी था जबकि मौजूदा समय में केवल 15 प्रतिशत है। आज जिन ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला है। उनकी राजनीति तीन दशक पुरानी है। वर्तमान केंद्रीय मंत्रिमंडल में नितिन गडकरी जैसे प्रभावशाली चेहरे हैं।
सपा- बसपा का ब्रामहण प्रेम
सपा अध्यक्ष ब्राह्मणों के उत्पीड़न के आरोप को लेकर कई बार योगी सरकार पर निशाना साध चुके हैं। उनके मंच से यादवों के साथ ब्राह्मणों को महत्व देने के संकेत दिये गए हैं। माता प्रसाद पाण्डेय सपा सरकार में विधान सभा अध्यक्ष भी बनाया गया था । अखिलेश टीम ने आईआईएम प्रोडक्ट अभिषेक मिश्र और मनोज पाण्डेय को अपना प्रमुख ब्राहमण चेहरा बनाया। पुराने दिग्गज भले ही अब हाशिए पर हों लेकिन सभी दलों की कवायद युवा ब्राहमण चेहरों को गढ़ने की है। जिनके नाम पर समाज के वोट जुटाए जा सकें। बसपा में सतीश चंद्र मिश्र न सिर्फ ब्राहमण नेता हैं बल्कि नंबर दो की हैसियत भी रखते हैं।
कांग्रेस का ब्राहमण राज
पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव युग तक कांग्रेस में ब्राहमणों का वर्चस्व रहा। पंडित नेहरू के अलावा डी.पी. मिश्रा, उमाशंकर दीक्षित, कमलापति त्रिपाठी, ललिता प्रसाद मिश्र, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल और नारायण दत्त तिवारी जैसे नेताओं ने ब्राह्मण नेतृत्व को अपने कौशल से सर्वमान्य बनाया।
वामपंथी राजनीति में ब्राह्मण
यहां आज भी ब्राहमणों का वर्चस्व कायम है। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ब्राह्मण हैं। पुराने वामपंथी नेता अवनि मुखर्जी, चतुरानन मिश्र, गीता मुखर्जी, बुद्धदेव भट्टाचार्य, अच्युतानंदन ब्राह्मण हैं। नंबूदिरीपाद से लेकर सीताराम येचुरी तक ब्राह्मणों का माकपा में इतने ताकतवर पदों पर रहना साफ बताता है कि वैचारिक तौर पर ब्राह्मण आज भी अन्य पर भारी हैं।
शिखर पर
चार राष्ट्रपति-
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, वीवी गिरी, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, प्रणब मुखर्जी।
छह प्रधानमंत्री –
जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हाराव,अटल बिहारी वाजपेयी।
आठ लोकसभा अध्यक्ष-
जीवी मावलंकर, एमए अयंगर, बलिराम भगत, केएस हेगड़े, रवि राय, मनोहर जोशी, सोमनाथ चटर्जी, सुमित्रा महाजन
संस्थापक/ पहले अध्यक्ष
1. कांग्रेस – वोमेश चंद्र बनर्जी
2. जनसंघ – श्यामा प्रसाद मुखर्जी
3. भाजपा – अटल बिहारी वाजपेयी
राज्यों में ब्राहमण
1) जम्मू कश्मीर : 2 लाख + 4 लाख विस्थापित
2) पंजाब : 9 लाख ब्राह्मण
3) हरयाणा : 14 लाख ब्राह्मण
4) राजस्थान : 78 लाख ब्राह्मण
5) गुजरात : 60 लाख ब्राह्मण
6) महाराष्ट्र : 45 लाख ब्राह्मण
7) गोवा : 5 लाख ब्राह्मण
8) कर्णाटक : 45 लाख ब्राह्मण
9) केरल : 12 लाख ब्राह्मण
10) तमिलनाडु : 36 लाख ब्राह्मण
11) आँध्रप्रदेश : 24 लाख ब्राह्मण
12) छत्तीसगढ़ : 24 लाख ब्राह्मण
13) ओद्दिस : 37 लाख ब्राह्मण
14) झारखण्ड : 12 लाख ब्राह्मण
15) बिहार : 90 लाख ब्राह्मण
16) पश्चिम बंगाल : 18 लाख ब्राह्मण
17) मध्य प्रदेश : 42 लाख ब्राह्मण
18) उत्तर प्रदेश : 2 करोड़ ब्राह्मण
19) उत्तराखंड : 20 लाख ब्राह्मण
20) हिमाचल : 45 लाख ब्राह्मण
21) सिक्किम : 1 लाख ब्राह्मण
22) आसाम : 10 लाख ब्राह्मण
23) मिजोरम : 1.5 लाख ब्राह्मण
24) अरुणाचल : 1 लाख ब्राह्मण
25) नागालैंड : 2 लाख ब्राह्मण
26) मणिपुर : 7 लाख ब्राह्मण
27) मेघालय : 9 लाख ब्राह्मण
28) त्रिपुरा : 2 लाख ब्राह्मण
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सबसे ज्यादा ब्राह्मण वाला राज्य: उत्तर प्रदेश
सबसे कम ब्राह्मण वाला राज्य : सिक्किम
सबसे ज्यादा ब्राह्मण राजनेतिक वर्चस्व : पश्चिम बंगाल
सबसे ज्यादा ब्राह्मण आबादी वाला राज्य : उत्तराखंड, 20 % ब्राह्मण
अत्यधिक साक्षर ब्राह्मण राज्य : केरल और हिमाचल
सबसे ज्यादा अच्छी आर्थिक स्थिति में ब्राह्मण : असम
सबसे ज्यादा ब्राह्मण मुख्यमंत्री वाला राज्य : राजस्थान
सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक वाला राज्य : उत्तर प्रदेश
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लोकसभा में ब्राह्मण : 48 %
राज्यसभा में ब्राह्मण : 36 %
ब्राह्मण राज्यपाल : 50 %
ब्राह्मण कैबिनेट सचिव : 33 %
मंत्री सचिव में ब्राह्मण : 54%
अतिरिक्त सचिव ब्राह्मण : 62%
पर्सनल सचिव ब्राह्मण : 70%
यूनिवर्सिटी में ब्राह्मण वाईस चांसलर : 51%
सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जज: 56%
हाई कोर्ट में ब्राह्मण जज : 40 %
भारतीय राजदूत ब्राह्मण : 41%
पब्लिक अंडरटेकिंग ब्राह्मण :केंद्रीय : 57% राज्य : 82 %
बैंक में ब्राह्मण : 57 %
एयरलाइन्स में ब्राह्मण : 61%
आईएएस ब्राह्मण : 72%
आईपीए ब्राह्मण : 61%
टीवी कलाकार एवं बॉलीवुड : 83%
सीबीआई /कस्टम ब्राह्मण : 72%
ब्राह्मण धर्म – वेद
ब्राह्मण कर्म – गायत्री
ब्राह्मण जीवन – त्याग
ब्राह्मण मित्र – सुदामा
ब्राह्मण क्रोध – परशुराम
ब्राह्मण त्याग – ऋषि दधिची
ब्राह्मण राजा – बाजीराव पेशवा
ब्राह्मण प्रतिज्ञा – चाणक्य
ब्राह्मण ज्ञान – आदि गुरु शंकराचार्य
ब्राह्मण सुधारक – महर्षि दयानंद
ब्राह्मण राजनीतिज्ञ – कौटिल्य (चाणक्य)
ब्राह्मण वैज्ञानिक – आर्यभट्ट