इंसान सब कुछ भूल सकता है पर उसकी जवानी और पहला प्यार कभी दिल से दूर नहीं होते हैं। हम भी ‘टीन एज’ और जवानी की दहलीज के बीच झूल रहे थे। हर उस कहानी का हीरो खुद को समझते जिसमें प्यार की दास्तान होती। ऐसे में 18 साल के क्लीन सेव लड़के कुँवर वीरेन्द्र प्रताप सिंह सिंह को देखकर लगा कि मानों वो ‘हम’ ही हैं। हम ही लंदन से भारत आकर पल्लवी से मिलते हैं और पहली ही नज़र में प्यार करने लगते हैं। फिर राजस्थान की पारंपरिक पोशाक पहनकर उससे प्यार का इजहार करने चल देते हैं। जीहाँ, लम्हे फिल्म को आए हुए 28 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी वो फिल्म दिल के इतने करीब है जैसे आज ही थियेटर में रिलीज हुई हो। फिल्म को देखकर प्यार से भरे अलमस्त दिन याद आ जाते हैं।
जब लम्हे फिल्म रिलीज हुई तो दिवाली के आसपास का समय था। गुलाबी ठंड शुरू हो चुकी थी। उन दिनों हमारा वास्ता प्यार से नहीं पड़ा था। उस गुरुवार को एक साथ दो बड़ी फिल्में रिलीज हुई थी जिसमे एक फिल्म भारतीय सिनेमा को अजय देवगन जैसा स्टार देने जा रही थी तो दूसरी यश राज प्रॉडक्शन की फिल्म थी। हमने फिल्मी पर्दे पर प्यार के देवता माने जाने वाले यश चोपड़ा की लम्हे फिल्म देखने का फैसला किया। इसी फिल्म के नायक और नायिका थे कुँवर वीरेन्द्र प्रताप सिंह और पल्लवी… यानि अनिल कपूर और श्रीदेवी। ये जोड़ी पर्दे पर पहले ही सुपरहिट थी। मिस्टर इंडिया फिल्म में दोनों का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर बोला था। ऐसे में लम्हे फिल्म देखने की उत्सुकता बनी हुई थी।
फिल्म की कहानी सीधी साधी है लेकिन प्यार के रिश्तों में उलझी हुई। फिल्म शुरू होते ही नायक वीरेन्द्र प्रताप सिंह (अनिल कपूर) अपनी दाई माँ (वहीदा रहमान) के पास राजस्थान आता है। वहाँ वो पल्लवी (श्रीदेवी) से मिलता है। पल्लवी उम्र में उससे बड़ी है फिर भी उससे प्यार करने लगता है। वो उससे प्यार का इजहार करने का फैसला करता है लेकिन तभी नायिका (मनोहर सिंह) के पिता का देहांत हो जाता है। यहाँ पर फिल्म में नायिका के अपने प्रेमी की इंट्री होती है। पिता की मृत्यु से दुखी पल्लवी जैसे ही वीरेंद्र के सामने अपने प्रेमी सिद्धार्थ से गले लिपटकर रोती है… ऐसा लगता है कि अनिल कपूर का नहीं बल्कि हमारा दिल चकनाचूर हो गया हो… वो लंदन चला जाता है। कुछ साल बाद एक कार हादसे में पल्लवी और सिद्धार्थ मर जाते हैं। लेकिन उनकी बेटी पूजा बच जाती है जिसे वीरेंद्र की दाई माँ ही पालती है। वीरेंद्र हर साल भारत तो आता है लेकिन पल्लवी का श्राद्ध करने। वो पल्लवी की बेटी पूजा का चेहरा नहीं देखना चाहता है क्योंकि पूजा का जन्मदिन और उसकी माँ पल्लवी की बरसी एक ही दिन होती है।
18 साल बाद वीरेंद्र पूजा को देखता है तो हैरान रह जाता है। वो बिल्कुल अपनी माँ और उसके प्यार जैसी दिखती है। जाने- अनजाने में वीरेंद्र एकबार अपने उस दौर में पहुँच जाता है, जब उसने पल्लवी से प्यार किया था। वो पूजा से दूरी बनाने की कोशिश करता है लेकिन प्यार में ये मुमकिन नहीं था… “बस यही वो लम्हा था जब हमने पहली बार प्यार का अहसास किया, लगा कि ये कहानी अपनी भी हो सकती है।“ दिल ने ऊपर वाले से प्रार्थना की पूजा को वीरेंद्र से प्यार हो जाए और वीरेंद्र को उसका खोया प्यार मिल जाए। हम ये भूल गए कि पूजा पल्लवी की बेटी है। उम्र में वीरेंद्र की बेटी की तरह… फिल्म की नायिका भी भूल गई कि वीरेंद्र ने उसकी परवरिश की लेकिन वीरेंद्र को याद था कि वो पल्लवी नहीं है। इसीलिए वो उसके करीब नहीं जाना चाहता था। लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी… कुछ समय बाद दाई माँ पूजा को लंदन घुमाने लाती है। वहाँ वो वीरेन्द्र से प्यार कर बैठती है। इस बार वीरेंद्र के इंकार करने पर पूजा का दिल टूट जाता है और साथ ही हमारा भी, वो पूजा से शादी करने को इंकार कर देता और कहता है कि वो उससे नहीं उसकी माँ से प्यार करता था। वीरेंद्र उसको भूलकर पूजा से कहीं और शादी करने को कहता है। पूजा शर्त रखती है कि कुँवर जी शादी कर लें तो वो भी कर लेगी… यह कहकर वो भारत आ जाती है लेकिन प्यार है जो दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं होने देता है। वीरेंद्र को अहसास होता है कि पूजा एक अलग अस्तित्व है और इस बार उसे पल्लवी की छाया से नहीं बल्कि पूजा से ही प्यार हुआ है। बस फिर दोनों आपस में मिल जाते हैं और प्यार अपने अंजाम तक पहुँच जाता है। लम्हे को देखने के बाद कई लोगों ने फिल्म को समय से आगे की कहानी बताकर खारिज कर दिया। कुछ ने संस्कारों की दुहाई दी लेकिन ये कहानी जिसने भी देखी, उसके दिल में बस गई… आखिर हो भी क्यों न… कहानी डॉ राही मासूम रजा ने हनी ईरानी के साथ मिलकर जो लिखी थी। उन्होने ही यश चोपड़ा के बड़े भाई का कालजयी धारावाहिक महाभारत लिखा था जो आज भी घर- घर में लोकप्रिय है। तब भी हिंदू धर्म के कुछ स्वयंभू संरक्षकों की ओर से महाभारत लिखने पर टीका- टिप्पणी की गई थी। अगर अभिनय की बात करें तो फिल्म देखकर सिनेमा के महानायक दिलीप कुमार और अभिताभ बच्चन ने खुद अनिल कपूर की तारीफ की। श्रीदेवी हमेशा की तरह लाजवाब रहीं जबकि वहीदा रहमान, अनुपम खेर और मनोहर सिंह ने अपने अभिनय से खुद को दर्शकों से जोड़ने का काम किया। फ़िल्म का संगीत शिवकुमार शर्मा और हरिप्रसाद चौरसिया (शिव-हरि) ने दिया था जो आज भी कानों में शहद घोलता है। आनंद बख्शी के बोल भी शानदार हैं। यश चोपड़ा ने अपने निर्देशन से फिल्म के हर फ्रेम में मोहब्बत भर दी थी। उन्होने लंदन और राजस्थान की जो खूबसूरती दिखाई वो आज भी शीतल हवा सरीखी लगती है। ये फिल्म आज भी हमें पहले प्यार का अहसास दिलाती है जो उस ‘लम्हे’ से हो गया था।