Monday, September 16, 2024
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बिजली संकट : कोरोना से निपटे तो कोयले में अटक गये

आनन्द अग्निहोत्री

धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही देश की अर्थव्यवस्था एक बार फिर संकट के मुहाने पर आ खड़ी हुई है। यह संकट है बिजली का। बिजली हमारी जरूरत का अनिवार्य ऊर्जा स्रोत है, इस पर सड़क से लेकर संसद तक आश्रित है। बड़ी बात यह कि जिस कोयले से बिजली बनाई जाती है उसका देश में गम्भीर अभाव नजर आ रहा है। देश में बिजली बनाने के 135 संयंत्र हैं। इनमें आधे से ज्यादा कोयले की कमी से जूझ रहै हैं। देश की 70 प्रतिशत से अधिक बिजली इन्हीं बिजली संयंत्रों में तैयार होती है। सवाल इस बात का है कि जब कोयला ही नहीं होगा तब ये बिजली कहां से बनायेंगे और कैसे देश की गतिविधियां संचालित होंगी। संयोग की बात है कि फिलहाल भारत का दुश्मन नंबर एक -चीन भी कोयला संकट से जूझ रहा है। उधर ग्रेट ब्रिटेन में ड्राइवरों की कमी के कारण पेट्रोल-डीजल का संकट छा गया है।

कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया था। इस पर अंकुश लगा तो उम्मीदों की नयी किरण नजर आयी। फिर से बाजार चले, फैक्ट्रियों में उत्पादन शुरू हुआ, उद्योग-धंधे संचालित हुए। जाहिर है कि बिजली की खपत भी तेजी के साथ बढ़ी। 2019 के मुकाबले इस समय 17 प्रतिशत अधिक बिजली की खपत हो रही है। अर्थव्यवस्था लाइन पर आनी शुरू ही हुई थी कि कोयले का अभाव आन खड़ा हो गया। यह संकट अचानक नहीं आया। कई महीने से स्थिति डांवाडोल थी लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। अब जब स्थिति बेकाबू होने के करीब पहुंच गयी है तब यह सार्वजनिक हुआ है। भारत कोयला उत्पादन में दुनिया में चौथे नंबर पर आता है। लेकिन इसकी खपत यहां इतनी ज्यादा होती है कि देश को कोयला आयात करना पड़ता है। कोयला आयात के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। इधर कोयला उत्पादक देशों ने इसकी कीमतों में 40 प्रतिशत तक इजाफा कर दिया। सम्भवत: इसी कारण भारत ने कोयले के आयात में कटौती की। देश के अधिकांश विद्युत संयंत्र आयातित कोयले से चलते थे जो अब देश के कोयले पर आश्रित हो गये हैं। इसी कारण कोयले की सप्लाई दबाव में आ गयी है। स्थिति यहां तक बिगड़ गयी है कि कुछ विद्युत संयंत्र तो बंद होने के कगार पर पहुंच गये हैं।

हम सिर्फ उत्तर प्रदेश के हरदुआगंज, पारीछा, आनपरा और ओबरा विद्युत संयंत्र की स्थिति दर्शा रहे हैं। हरदुआगंज 610 मेगावाट प्रतिदिन उत्पादन का विद्युत संयंत्र है जो इस समय कोयले की कमी के कारण  380 मेगावाट बिजली ही बना पा रहा है। इसके पास इस समय 4022 मीट्रिक टन कोयला है, जो ज्यादा से ज्यादा पांच दिन चल सकता है। इस संयंत्र को पूरी क्षमता से चलाने के लिए रोजाना 8000 मीट्रिक टन कोयला चाहिए। चार रेक कोयला यहां आने को है। पारीछा विद्युत संयंत्र 920 मेगावाट प्रतिदिन विद्युत उत्पादन का संयंत्र है, जो इस समय कोयले के अभाव में 600 मेगावाट बिजली ही बना रहा है। इसके पास 9682 मीट्रिक टन कोयला है जबकि इसकी प्रतिदिन की आवश्यकता 15000 मीट्रिक टन कोयले की है। यहां कोयले की पांच रेक और आने वाली हैं। इसे मौजूदा स्थिति में ज्यादा से ज्यादा पांच दिन चलाया जा सकता है। आनपरा विद्युत संयंत्र 2630 मेगावाट प्रतिदिन विद्युत उत्पादन का संयंत्र है लेकिन कोयले की कमी से यह मात्र 185 मेगावाट बिजली बना रहा है। इसके पास 86426 मीट्रिक टन कोयला है और यह दो माह तक संचालित किया जा सकता है। इसे रोजाना 40 हजार मीट्रिक टन कोयला रोजाना चाहिए। ओबरा विद्युत संयंत्र की क्षमता प्रतिदिन 800 मेगावाट बिजली बनाने की है लेकिन इन दिनों यहां विद्युत उत्पादन ठप है। हालांकि इसके पास 42433 मीट्रिक टन कोयला है और इसे ढाई माह तक चलाया जा सकता है। इसे रोजाना 16 हजार मीट्रिक टन कोयला चाहिए।

देश के अन्य विद्युत संयंत्र भी इसी तरह की दयनीय स्थिति से दो-चार हो रहे हैं। अधिकांश विद्युत संयंत्र बंदी के कगार पर हैं। अगर बिजली न मिली तो हर तरह की गतिविधियां ठप हो जायेंगी। हालांकि भारत ने कोयला आयात का आर्डर किया है लेकिन यह कोयला देश में आने में कुछ न कुछ समय तो लगेगा ही। अगर यह कोयला आ गया और बिजली संयंत्र चालू रहे तब भी यह बिजली महंगी साबित होगी। कारण यह कि जब महंगा कोयला आयात होगा तो सरकार इसकी वसूली भी जनता से ही महंगी बिजली के रूप में करेगी। बिजली के दाम बढ़े तो उद्योग जगत में बनने वाला माल भी महंगा हो जायेगा। यानि खुदरा महंगाई की मार से पहले से ही जूझ रहे देश में थोक महंगाई में भी इजाफा हो जायेगा। सरकार अगर बिजली महंगी नहीं करती तो उसकी अर्थव्यवस्था बिगड़ेगी। कुल मिलाकर संकट अभूतपूर्व है। देखना यह है कि सरकार इस संकट से कैसे निपटती है। फिलहाल तो आशंका जतायी जा रही है कि कहीं दीपों का त्योहार पर देश की बिजली न गुल हो जाये। कोरोना काल के बाद अब त्योहारों का समय आया है। लोग कोरोना प्रतिबंधों के बीच त्योहार मना रहे हैं। लेकिन जिस तरह का ऐतिहासिक विद्युत संकट नजर आ रहा है उससे लगता है कि राहत की यह सांस ज्यादा समय तक नहीं चलने वाली। देश की राजधानी दिल्ली में चार घंटे की विद्युत कटौती शुरू कर दी गयी है। अन्य राज्य भी ऐसा करने के लिए विवश होंगे। ऊर्जा के अन्य स्रोत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पानी से पैदा हो रही ऊर्जा देश की आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकती। तापीय विद्युत संयंत्र ही बिजली की जरूरत पूरी कर रहे हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सरकार तापीय विद्युत का सक्षम विकल्प खोजे लेकिन जब तक यह विकल्प नहीं मिलता तापीय विद्युत उत्पादन की दीर्घकालिक नीति तैयार कर इसे अक्षुण्ण रखे।

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