भारत के लोकतन्त्र की यही खूबसूरती है कि यहाँ एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है तो एक आदिवासी राष्ट्रपति पद के लिए सबसे मजबूत प्रत्याशी बन सकती है। निश्चित रूप से एक राष्ट्र के लिया यह सुखद संकेत है। सावन के पहले सोमवार को देश में राष्ट्रपति चुनाव के लिया मतदान हो रहा है। इस बार की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का पलड़ा विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की तुलना में भारी नजर आ रहा है, क्योंकि विपक्ष की कुछ पार्टियों ने भी मुर्मू को समर्थन देने का एलान किया है।
बीजेपी ने जैसे ही द्रौपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया वैसे ही कुछ विपक्षी पार्टियां भी उनके साथ हो गई। खासकर झारखंड मुक्ति मोर्चा, बीएसपी, उद्धव गुट और राजभर की पार्टी, ये सभी जो विपक्ष के साथ खड़े नजर आते हैं मुर्मू के समर्थन में आ गए। जिसके बाद मुर्मू की ताकत उम्मीद से ज्यादा बढ़ गई।
अगर अंकगणित पर नजर डालें तो राष्ट्रपति चुनाव में सांसद और विधायकों को मिलाकर कुल 10 लाख 81 हजार 991 वोट हैं। राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए बहुमत का आंकड़ा 5 लाख 40 हजार 996 है वहीं भाजपा के पास करीब साढ़े चार लाख वोट हैं। मुर्मू का समर्थन कर रही वाईआरएस कांग्रेस के करीब पैंतालीस हजार वोट हैं बीजेडी के इक्तीस हजार वोट हैं। जेडीयू 14 हजार से ज्यादा वोट के साथ मुर्मू के साथ खड़ी है और अन्यों के पास 93 हजार वोट हैं। यानी कुल छह लाख 66 हजार 28 वोट मुर्मू के समर्थन में नजर आ रहे हैं। अन्यों में शिवसेना जिसमें उद्धव गुट और शिंदे गुट, जेडीएस, बीएसपी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, अकाली दल और एसबीएसपी शामिल है।
दूसरी ओर विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को समर्थन करने वाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है। जिसके करीब एक लाख सैंतीस हजार वोट हैं। तृणमूल के पास 58 हजार से ज्यादा वोट हैं। डीएमके के पास करीब 45 हजार, एसपी के पास 27 हजार से ज्यादा वोट है। टीआरएस के पास 24 हजार से ज्यादा वोट, आप के पास करीब 21 हजार वोट और अन्यों के 88 हजार 212 वोट है यानी कुल हुए 4 लाख 13 हजार 728 वोट है।