इंसान की पैतृक पहचान अर्थात जीन इंजीनियरिंग या बायोटेक्नोलाजी को जन्म देने वाले डा. हरगोविंद खुराना का जन्मदिन आज के दिन अविभाजित भारत में हुआ था! डॉ खुराना को उनकी क्रांतिकारी खोज के लिए 1968 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार मिला था! चौकाने वाली बात यह है कि खुराना अपने समय में पूरे गाँव में पढाई करने वाले पहले परिवार के बच्चे थे!
डॉ खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 को पूर्वी पाकिस्तान के रायपुर गांव, पंजाब में हुआ था। उनके पिता गणपत राय खुराना ब्रिटिश प्रशासन में एक क्लर्क हुआ करते थे। वर्ष 1945 में एमएससी की डिग्री के बाद भारत सरकार की छात्रवृत्ति पर वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए।
इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय और स्विट्जरलैंड के फेडरल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में रिसर्च किया। वर्ष 1951 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए, जहां न्यूक्लिक एसिड पर शोध करना शुरू कर दिया था। स्विट्जरलैंड के स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में पढ़ाने के दौरान उनकी मुलाकात एस्तेर एलिजाबेथ सिब्लर से हुई, जिनसे उन्होंने 1952 में शादी कर ली।
वर्ष 1952 में खुराना ब्रिटिश कोलंबिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में कार्य करने के लिए कनाडा चले गए, वहां विश्वविद्यालय के सहयोग से उनका कार्य सही मायने में आकार लेने लगा था। फिर 1960 में वे एंजाइम अनुसंधान के लिए विस्कांसिन यूनिवर्सिटी, अमेरिका चले गए और फिर वहीं बस गए। उन्हें वहां की नागरिकता भी मिल गई थी। यहां उन्होंने जीन की डिकोडिंग और प्रोटीन संश्लेषण पर उल्लेखनीय कार्य किए। 1972 में डा. खुराना ने विश्व के पहले कृत्रिम जीन का निर्माण किया। उनके योगदान ने जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया। खुराना के कार्य को आज भी आनुवंशिकी के क्षेत्र में अनुसंधान के आधार के रूप में देखा जाता है। नोबेल पुरस्कार के अलावा भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था।