आपदा केवल अवसर ही नहीं देती है बल्कि पुनर्जीवन का मौका भी लाती है। करोना महामारी के दौरान लॉकडाउन काल में माँ गंगा के निर्मल जल को देखकर यह बात साबित हो गई । जनता कर्फ्यू और नदी तट पर धार्मिक और औद्योगिक गतिविधियां बंद होने से रसायनिक कचरे और सीवेज में 500% की कमी दर्ज की गई जिसके बाद हरिद्वार से लेकर कानपुर, काशी और गंगा सागर तक नदी खुद ब खुद साफ हो गई। लेकिन दूसरी लहर के बाद एकबार फिर जिस कदर भीड़ करोना प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ा रही है। पर्यटन के नाम पर मौज मस्ती चल रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी लहर को लेकर गंभीर चिंता जता दी है। वहीं हम प्रकृति के नियमों को ताक पर रखकर एकबार फिर गंगा को मैली करने में जुट गए हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के कारण नदी में कचरे की डंपिंग में कमी आने से पानी पीने योग्य भी हुआ था। रियल टाइम वॉटर मॉनिटरिंग में गंगा नदी का पानी 36 मॉनिटरिंग सेंटरों में से 27 में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश समेत विभिन्न जगहों पर गंगा के पानी में काफी सुधार देखा गया। पिछले चार दशकों से अरबों खर्च करने के बावजूद मैली गंगा का खुद ब खुद साफ हो जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था लेकिन जैसे ही लॉक डाउन खुला। फैक्ट्री चालू हुईं। टेनरी का कचरा और रसायन फिर से पानी में धुलना शुरू हुआ, निर्मल गंगा एक बार फिर जहरीली हो गई। पर्यावरणविद पदम भूषण डॉ अनिल जोशी के अनुसार
गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक नदी किनारे भारत के 97 शहर व कस्बे बसे हैं। लेकिन इंसानी हरकतों के कारण देव प्रयाग से ऋषिकेश के बीच के नदी प्रवाह को छोड़कर फिलहाल कहीं भी गंगा का जल पीने लायक नहीं है। सच्चाई तो ये है कि गंगा में हर दिन 3500 एमएलडी सीवर का पानी मिलता है, इसमें से केवल 1100 एमएलडी ही ट्रीट करके गंगा में मिलाया जाता है, बाकी 2400 एमएलडी सीधे गंगा में जाता है। गंगा नदी जैविक जल गुणवत्ता आकलन की रिपोर्ट के अनुसार गंगा बहाव वाले 39 स्थानों में से करीब 37 पर हर साल मॉनसून के समय जल प्रदूषण मध्यम से गंभीर श्रेणी में होता है। लेकिन मॉनसून के बाद जैसे जल धारा समान्य होती है, 39 में से केवल एक स्थान पर ही पानी साफ रह जाता है। गंगा नदी की सफाई के दावे कर रहे प्रशासनिक अधिकारियों को बड़ा झटका देते सीपीसीबी ने पाया है कि जिस स्थान पर गंगा का पानी पीने योग्य है वह भी मॉनसून में हुई बारिश के कारण हुआ है। यानि सारी सरकारी कवायद या तो बेमानी है या फिर नदी सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है।
सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दूसरे से चौथे हफ्ते के दौरान नदी में डिसॉल्व ऑक्सीजन (डीओ-घुली ऑक्सीजन) की मात्रा में बिजनौर के मध्य गंगा बैराज से लेकर कोलकाता के मिलेनियम पार्क ब्रिज तक बढ़ोतरी दर्ज की गई, लेकिन जल के बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) में कोई खास असर नहीं दिखा। नदी में नाइट्रेट्स की मात्रा कम हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार फर्टिलाइजर और टेनरी का पानी गंगा में न मिलने के चलते ऐसा हुआ। अमोनिकल नाइट्रोजन भी जस का तस है या उसकी मात्रा में मामूली इजाफा हुआ है, ऐसा घरेलू सीवर के लगातार गंगा में जाने से हो रहा है। अनलॉक पीरियड शुरू होने के साथ ही हालात एकबार फिर बदतर होते जा रहे हैं। कन्नौज से लेकर कानपुर तक गंगा की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। तमाम सरकारी कवायद के बावजूद चमड़ा उद्योग गंगा को मैला कर रहा है वाराणसी में साल-दर-साल पहले से ज़्यादा प्रदूषित होती जा रही गंगा को साफ़ करने की मुहिम पर टिप्पणी करते हुए ट्राइब्यूनल ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों की खिंचाई की है। एनजीटी की पीठ ने कहा कि, “बड़े दुर्भाग्य की बात है कि गंगा का गंदा होना जारी है। इस बारे में आप लोग कुछ करते क्यों नहीं? आप जो नारे लगाते हैं, काम उसके विपरीत करते हैं.” रिपोर्ट के अनुसार नदी में औद्योगिक और रसायनिक कचरे के अलावा मानव शव और मृत जानवरों का बहाया जाना जारी है। ऐसे में सरकार ने गंगा सफाई की डेडलाइन चौथी बार बढ़ाकर 2021 कर दी है। नदी प्रबंधन पर कार्य कर रहे आईआईटी के प्रोफेसर एके दीक्षित का कहना है कि गंगा सफाई एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है और यह तारीखों में नहीं कोशिशों में नजर आनी चाहिए। न तो शोध में कमी है न सरकारी योजनाओं में और न ही बजट में, समस्या केवल पर्यावरण के चक्र को समझने में है। इंसान यदि जागरूक हो जाए तो देश की सभी नदियां खुद ब खुद साफ हो जाएंगी।
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टेनरियों से लेकर सीवेज ने किया कचरा
निर्मल गंगा के लिए भले ही केंद्र और प्रदेश सरकार ने एड़ी- चोटी का ज़ोर लगा दिया हो लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद गंगा में गिरने वाले सीवेज और 400 से ज्यादा टेनरियों के कैमिकल वाटर पर अभी तक लगाम नहीं लग सकी है। नालों को गंगा में प्रवाहित करने पर प्रतिबंध है लेकिन दावों के बावजूद रोजाना 1,2051 मिलियन लीटर सीवेज बिना शोधन के गंगा में सीधे गिराया जा रहा है। जिससे गंगा में आक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है। सरकार ने जल धारा को पूरी तरह के प्रदूषण मुक्त करने के लिए 2021 का लक्ष्य तय किया है।
कानपुर में गंगा किनारे स्थापित औद्योगिक इकाइयों (टेनरी) का हानिकारक कचरा और सीवरेज अलग-अलग लाइन से एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) तक भेजे जाने की कवायद की गई है। इससे टेनरी से होने वाले प्रदूषण और सीवेज के प्रदूषण का अलग-अलग आकलन हो सके, वहीं ओवरफ्लो की समस्या से भी निजात मिले। लेकिन समस्या फिलहाल जस की तस है। दरअसल ओवरफ्लो होने पर कई बार बगैर शोधित हुए ही कचरा गंगा में चला जाता है। इसी प्रकार पानी में बीओडी की मात्रा भी परेशानी का कारण है। कानपुर के धोबीघाट केंद्र पर तो बीओडी में लॉकडाउन के दौरान 280 फीसदी तक का इजाफा हो गया, वहां यह 15 मिग्रा प्रति लीटर दर्ज किया गया। लेकिन कानपुर को छोड़कर बाकी केंद्रों पर भी इसकी मात्रा 1.3 से 5.5 मिग्रा प्रति लीटर ही दर्ज की गई, जो लॉकडाउन से पहले की मात्रा के बराबर ही है। कन्नौज, बिठूर, कानपुर, फतेहपुर और बहरामपुर से गंदे पानी के लगातार गंगा में जाने से केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) की मात्रा बढ़ती रही। सीओडी की अधिकतम मात्रा लॉकडाउन के पहले जहां 17.7 मिग्रा प्रति लीटर थी, वहीं लॉकडाउन के दौरान यह 33.2 मिग्रा प्रति लीटर तक दर्ज हुआ।
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अमृत गंगाजल
गंगाजल के कभी न ख़राब होने का कारण है विशेष प्रकार का वायरस, जो जो इसमें सड़न पैदा नहीं होने देते। क़रीब सवा सौ साल पहले 1890 के दशक में मशहूर ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैन्किन गंगा के पानी पर रिसर्च कर रहे थे। उस वक़्त हैजा फैला हुआ था। लोग मरने वालों की लाशें लाकर गंगा नदी में फेंक जाते थे। हैन्किन को डर था कि कहीं गंगा में नहाने वाले दूसरे लोग भी हैजा के शिकार न हो जाएं। मगर ऐसा हो नहीं रहा था। हैन्किन के इस रिसर्च को बीस साल बाद एक फ़्रेंच वैज्ञानिक ने आगे बढ़ाया. इस वैज्ञानिक ने जब और रिसर्च की तो पता चला कि गंगा के पानी में पाए जाने वाले वायरस, कॉलरा फैलाने वाले बैक्टीरिया में घुसकर उन्हें नष्ट कर रहे थे। ये वायरस एंटीबॉडी बनाकर गंगा के पानी की शुद्धता बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार थे। मगर हाल के दिनों में ये देखा जा रहा है कि बहुत से बैक्टीरिया पर एंटिबॉयोटिक का असर ख़त्म हो चुका है। आज दुनिया भर में सैकड़ों हज़ारों लोग ऐसे बैक्टीरिया की वजह से मर रहे हैं।
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रमन कान्त
नदी पुत्र, संचालक नीर फाउंडेशन
गंगा कह रही है पानी दे दो, सरकार कह रही है पैसा ले लो, सहमति बनने का इंतजार है. सीधा सा गणित है पर सरकारें समझना ही नहीं चाहतीं, आप पानी से पैसा बना सकते हैं लेकिन पैसे से पानी नहीं बना सकते, चाहे पैसा पानी की तरह ही क्यों ना बहा दिया जाए।
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इंसान के किया गंगा को बीमार
- गंगा के किनारे भारत के 97 शहर व कस्बे बसे
- देव प्रयाग से ऋषिकेश के बीच के गंगाजल पीने लायक नहीं
- रोजाना 3500 एमएलडी सीवर का पानी प्रवाहित
- इसमें से केवल 1100 एमएलडी का ही ट्रीटमेंट
- 2400 एमएलडी जहरीला कचरा सीधे गंगा में जाता है।
- गंगोत्री से गंगासागर तक कुल 36 रियल टाइम वाटर मॉनिटरिंग सिस्टम
- 41 में से 37 स्थानों पर पानी पीने योग्य नहीं
- गंगा की सहायक नदियों में भी बढ़ा प्रदूषण
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गंगा के इलाज में खर्च
- वर्ष 2014- 2020 तक सफाई के लिए 4 ,867 करोड़ रूपये
- क्लीन गंगा फंड में 200 करोड़ रूपए से ज्यादा की राशि जमा
- सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार एक रूपया भी खर्च नहीं
- नमामि गंगे के लिए 20 हजार करोड़ रूपए का बजट
- छह साल बाद भी बजट का पच्चीस फीसद तक खर्च नहीं
- 2014 से 2019 तक 28451.29 करोड़ रूपए के प्रोजेक्ट पास
- कुल 6838.67 करोड़ रूपए खर्च, एक चौथाई प्रोजेक्ट भी पूरे नहीं
- पीने योग्य पानी में डिसॉल्व ऑक्सीजन 6 मिग्रा प्रति लीटर जरूरत
- बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड 2 मिग्रा प्रति लीटर से कम
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लॉक डाउन में सुधरी सेहत
- 36 मॉनिटरिंग यूनिटों में से 27 में पानी की गुणवत्ता वन्यजीवों और मछलियों के लिए उपयुक्त
- पानी में ऑक्सीजन घुलने की मात्रा प्रति लीटर 6 एमजी से अधिक
- बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड 2 एमजी प्रति लीटर
- कोलीफार्म का स्तर 5000 प्रति 100 एमएल
- पीएच का स्तर 6.5 और 8.5 के बीच
- गंगा नदी में जल की गुणवत्ता की अच्छी सेहत को दर्शाता है।
- चमड़ा उद्योग, टेनरी बंद रहने से कानपुर के आसपास पानी बेहद साफ
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यूपी में ‘गंदा’ जल
इलाहाबाद, बलिया, बिजनौर, बदायूं, बुलन्दशहर, चन्दौली, फर्रूखाबाद, फतेहपुर, गाजीपुर, हापुड़, हरदोई, अमरोहा, कन्नौज, कानपुर नगर, कासगंज, कौशाम्बी, मेरठ, मिर्जापुर, मुजफ्फरनगर, प्रतापगढ़, रायबेरली, भदोही, शाहजहांपुर, उन्नाव एवं वाराणसी ————————————