राजनीति में संदेश देने के अपने- अपने तरीके हैं। कभी राजनीतिक दल रथ यात्रा निकालते हैं। तो कभी रोड शो करते हैं। कभी जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए लिए चाय और खाट पर चर्चा की जाती है तो कभी नेता अपने मन की बात के जरिये जन संवाद करते हैं। लेकिन सबसे पुराने और सटीक संवादों में पत्र यानि खुला खत काफी अहम माना जाता है। दुनियाभर में कूटनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए भी खत का सहारा लिया जाता है। गांधी जी अक्सर पत्र लिखकर जनता से सीधा संवाद करते और अपना संदेश देते थे।
संकटों से घीरे पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर अपनी बात रखी है। पाकिस्तान में शाहबाज का खत काफी चर्चा में भी है। कुछ लोग इसे भारत के सामने घुटने टेकने वाली घटना कह रहे हैं। हालांकि कई लोग डाइलोग के लिए पाकिस्तान के नए पीएम की सराहना भी कर रहे हैं। इसी प्रकार भारत में राम नवमी और हनुमान जंयती के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बीच भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने देशवासियों के नाम खुल खत लिखा है। इसमें पूछा है कि आजादी के 100 साल पूरे होने पर देशवासी कैसा भारत चाहते हैं। उन्होंने दंगों का जिक्र करते हुए विपक्ष की नकारा राजनीति पर निशाना भी साधा है।
भाजपा अध्यक्ष ने मुख्य रूप से कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होने लिखा है कि आप वोटबैंक पॉलिटिक्स की बात करते समय राजस्थान के करौली की घटना क्यों भूल जाते हैं। ऐसी क्या मजबूरियां है जिनके कारण खामोशी बनाकर रखी हुई है। इसी तरह साल 1966 में गोहत्या पर प्रतिबंध की मांग के साथ हिंदू साधु संसद के बाहर धरने पर बैठे थे, उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन पर गोलियां चलवा दी थीं। यही नहीं उन्होंने कांग्रेस से पूछा कि गुजरात (1969), मुरादाबाद (1980), भिवंडी (1984), मेरठ (1987), भागलपुर (1989) और हुबली (1994) में सांप्रदायिक दंगे किसके शासनकाल में हुए। कश्मीर घाटी से हिंदुओं का पलायन किसके दौर में हुआ? कांग्रेस राज में सांप्रदायिक दंगों की लंबी लिस्ट है। उन्होंने पूछा कि 2012 में असम दंगे और 2013 में किसके शासनकाल में मुजफ्फरनगर दंगे हुए? नड्डा का पत्र देश के मौजूदा सांप्रदायिक तनाव पर 13 राजनीतिक दलों के पत्र के जवाब में लिखा गया है।