- पारीछा, ललितपुर और हरदुआगंज गंज में विद्युत उत्पादन घटाना पड़ा
आनंद अग्निहोत्री
लखनऊ। यह पहली बार नहीं है, हर बार गर्मी के मौसम में ऐसा ही होता है। बिजली की किल्लत हो जाती है और मजबूरन विद्युत कटौती की जाती है। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। जिस सीजन में बिजली की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उसी में बिजली की सबसे ज्यादा कटौती की जाती है। इन दिनों भी ऐसा होने लगा है। सवाल यह है कि बिजली की किल्लत क्यों हो जाती है। जवाब साफ है, मांग ज्यादा हो जाती है और उत्पादन उस अनुपात में हो नहीं पाता। प्रदेश की विद्युत की जरूरत का अधिकांश हिस्सा तापीय विद्युत से होता है। थर्मल पावर प्लांट कोयले से बिजली तैयार करते हैं। अगर उन्हें समय पर कोयला नहीं मिला तो वे बिजली से कहां से बनायेंगे। इन पावर प्लांट में कोयले की किल्लत हो गयी है। यह स्थिति बीच-बीच में आने लगी है। क्या सरकार इस बात से अनजान रहती है या फिर पावर कारपोरेशन के सक्षम अधिकारी इस बात से शासन को अवगत नहीं कराते।
प्रदेश को बिजली मुख्यत: आनपरा, हरदुआगंज, ओबरा और पारीछा पावर प्लांट देते हैं। बिजली उत्पादन में एक बार फिर कोयले की किल्लत सामने आने लगी है। इसकी वजह से पावर प्लांट अपनी पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। इससे पहले अक्टूबर 2021 के शुरुआती सप्ताह में कोयले की किल्लत हुई थी। उस दौरान एनर्जी एक्सचेंज से बिजली खरीदनी पड़ी थी। अब एक बार फिर दो पावर प्लांट बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं। इसके अलावा बाकी प्लांट में भी कोयले का स्टॉक कम होने लगा है। अगले दो दिन में पावर कॉर्पोरेशन ने कोयले की व्यवस्था नहीं की तो यूपी में भारी बिजली कटौती देखने को मिल सकती है।
मौजूदा समय कोयला की कमी से बुन्देलखंड के पारीछा और हरदुआगंज में कोयले की कमी शुरू हो गई है। यहां मौजूदा समय कोयला का स्टॉक 15 फीसदी से भी कम है। जिससे एक दिन की बिजली भी नहीं तैयार हो सकती है। स्थिति यह है कि कोयले की कमी से जूझ रहे बुंदेलखंड के दोनो पावर प्लांट बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं।
उत्तर प्रदेश में भी बिजली की मांग 21000 मेगावॉट तक पहुंच गयी है और आपूर्ति 19000 से 20000 मेगावाट के आसपास है। कोयला संकट के लिए केंद्रीय विद्युत मंत्री आर.के. सिंह ने रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते आयातित कोयले के दामों में भारी बढ़ोतरी के साथ-साथ बिजली घरों तक कोयला पहुंचाने के लिए रेलवे के वैगनों की पर्याप्त उपलब्धता न होने को भी जिम्मेदार ठहराया है। देश के ताप बिजली घरों तक कोयला आपूर्ति करने के लिए 453 वैगनों की जरूरत है जबकि अप्रैल के पहले सप्ताह में मात्र 379 वैगन उपलब्ध थी। अब यह संख्या बढ़कर 415 हो गई है। कुल मिलाकर हालात यह है कि कोयले की मांग में विगत विगत वर्ष की तुलना में 9% की बढ़ोतरी हुई है और वास्तविकता यह है की देश के 12 राज्यों में ताप बिजली घरों में मात्र 8 दिन का कोयला शेष बचा है, जो औसतन 24 दिन का होना चाहिये।
उत्तर प्रदेश के सरकारी क्षेत्र के उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम में यद्यपि अभी कोयले का गंभीर संकट नहीं है किंतु स्टैंडर्ड नॉर्म के अनुसार स्टॉक में जितना कोयला होना चाहिए उसका मात्र 25% कोयला बचा है। इसे देखते हुए आने वाले समय में गर्मी बढ़ने के साथ बिजली की मांग बढ़ेगी और इस हेतु कोयले की मांग भी बढ़ेगी तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
रिकॉर्ड के अनुसार अनपरा में 5 लाख 96 हजार 700 टन कोयला स्टॉक में होना चाहिए जबकि इस समय 328100 टन कोयला ही है। इसी प्रकार हरदुआगंज में स्टॉक में 497000 टन कोयला होना चाहिए किंतु केवल 65700 टन कोयला है, ओबरा में चार लाख 45 हजार 800 टन कोयला होना चाहिए जबकि मात्र एक लाख 500 टन कोयला है। पारीछा में 4 लाख 30 हजार 800 टन कोयला होना चाहिए जबकि मात्र 12900 टन कोयला ही है। चारों तापीय बिजली परियोजनाओं पर लगभग 19 लाख 69 हजार 800 टन कोयला के विपरीत मात्र 5 लाख 11 हजार 700 टन कोयला स्टाक में है जो स्टैंडर्ड नॉर्म के अनुसार मात्र 25 प्रतिशत है।
प्रतिदिन कोयले की खपत के हिसाब से देखें तो अनपरा में 40000 मीट्रिक टन कोयले की प्रतिदिन खपत होती है और उपलब्ध मात्र 29000 मीट्रिक टन कोयला है, हरदुआगंज में 17000 मीट्रिक टन की तुलना में 15000 मीट्रिक टन, ओबरा में 12000 मीट्रिक टन की तुलना में 11,000 मीट्रिक टन और परीक्षा में 11,000 मीट्रिक टन की तुलना मे मात्र 4000 मीट्रिक टन कोयला शेष बचा है। पारीछा में 910 मेगावाट का उत्पादन होता है और केवल 1 दिन का कोयला बचा है ऐसे में उत्पादन घटा कर 500 मेगावाट कर दिया गया । ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरपरसन शैलेन्द्र दुबे की मानें तो विगत वर्ष सितंबर-अक्टूबर माह में भी मात्र कुछ करोड़ रुपये का भुगतान न होने से पारीछा बिजलीघर की इकाइयां बंद करनी पड़ीं थी और उपभोक्ताओं को तकलीफ न हो, इसके लिए एनर्जी एक्सचेंज ₹से 21 प्रति यूनिट तक की बिजली खरीदी गई थी। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम से उत्तर प्रदेश को सबसे सस्ती बिजली मिलती है और आनपरा परियोजना से मात्र रु 1.74 प्रति यूनिट की बिजली मिलती है। ऐसे में जरूरी है कि सितंबर-अक्टूबर 2021 की गलती न दोहरायी जाये और ताप बिजली घरों में जरूरत के मुताबिक कोयले का स्टॉक सुनिश्चित किया जाए।