Monday, September 16, 2024
Homeआर्थिककेन-बेतवा परियोजना से संवरेगा बुंदेलखड

केन-बेतवा परियोजना से संवरेगा बुंदेलखड

अरविंद जयतिलक

यह सुखद है कि डेढ़ दशक के इंतजार के बाद आखिरकार केन-बेतवा परियोजना को हरी झंडी मिल गयी है। केंद्र सरकार ने इस महत्वकांक्षी परियोजना पर मुहर लगा दी है जिससे बंुदेलखंड में विकास और प्रगति का एक नया सूर्योदय होना तय है। दशकों से पेयजल और सिंचाई संकट का सामना कर रहे बुंदेलखंडवासियों के लिए यह परियोजना किसी वरदान से कम नहीं है। ऐसा इसलिए कि इस परियोजना से कृषि उत्पादन बढ़ेगा और लोगों की आय में वृद्धि होगी। कृषि पर आधारित उद्योग-धंधे विकसित होंगे और अर्थव्यवस्था का पहिया घुमेगा। आय बढ़ने से समृद्धि का नया द्वार खुलेगा। गौर करें तो इस परियोजना से मध्यप्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी तथा उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी व ललितपुर जिले जलसंकट से मुक्त होंगे। उल्लेखनीय है कि इस परियोजना को आकार देने के लिए मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गत मार्च माह में विश्व जल दिवस के अवसर पर केंद्र सरकार के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। इस समझौते के मुताबिक इस परियोजना पर तकरीबन 44,605 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसका 90 फीसद खर्च भार केंद्र सरकार द्वारा उठाया जाएगा जबकि उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश दोनो ंमिलकर दस फीसद यानी पांच-पांच फीसद खर्च करेंगे। केंद्र सरकार ने इस योजना को पूरा करने के लिए आठ साल का समय सुनिश्चित किया है। इस परियोजना का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मध्यप्रदेश की केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में हस्तांतरित करना है। उल्लेखनीय है कि केन नदी मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है जिसकी कुल लंबाई 470 किमी है। यह नदी मध्यप्रदेश के कटनी जिले से निकलकर उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में मिलती है। केन नदी 292 किमी मध्यप्रदेश में बहती है। लेकिन उसके जल का उपयोग मध्यप्रदेश नहीं कर पाता है। अब केन-बेतवा परियोजना के तहत दौधन के पास एक बैराज बनाकर केन नदी के जल को रोका जाएगा। दौधन बांध से 221 किमी लंबी एक लिंक नहर का निर्माण कर केन बेसिन के 1074 मिलियन क्यूसेक मीटर अधिशेष जल को बेतवा बेसिन में पहुंचाया जाएगा। बेतवा नदी की भौगोलिक स्थिति पर दृष्टि डालें तो यह मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों में बहती है। इसे यमुना नदी की उपनदी भी कहा जाता है। यह मध्यप्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर भोपाल, विदिशा, झांसी, ललितपुर जिलों से गुजरती हुई तकरीबन 480 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए यमुना नदी में मिलती है। अगर यह परियोजना जमीन पर उतरती है तो जल संकट का मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों की प्यास बुझेगी तथा कृषि योग्य भूमि लहलहाएगी। इस परियोजना से मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के पन्ना जिले में 70 हजार हेक्टेयर, छत्तरपुर में 3 लाख 11 हजार 151 हेक्टेयर, दमोह में 20 हजार 101 हेक्टेयर, टीकमगढ़ एवं निवाड़ी में 50 हजार 112 हेक्टेयर, सागर में 90 हजार हेक्टेयर, रायसेन में 6 हजार हेक्टेयर, विदिशा में 20 हजार हेक्टेयर, शिवपुरी में 76 हजार हेक्टेयर एवं दतिया जिले में 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। इसी तरह उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के झांसी की तकरीबन 17488 हेक्टेयर, बांदा की 192479 हेक्टेयर, महोबा की 37564 हेक्टेयर और ललितपुर का तकरीबन 3533 हेक्टेयर भूमि सींचित होगी। यानी उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का तकरीबन 2.51 लाख हेक्टेयर असिंचित भूमि पानी से संतृप्त होगा। यानी देखें तो इस परियोजना से उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की तकरीबन 1062 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी। उत्तर प्रदेश के इन चार जिलों में रहने वाले तकरीबन 65 लाख लोगों की प्यास भी बुझेगी। झांसी को 14.66 एमसीएम, ललितपुर को 31.98 एमसीएम तथा महोबा को 20.13 एमसीएम पेयजल मिलेगा। इस परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश में दो बैराज भी बनने हैं जिससे 103 मेगावाट जल उर्जा और 27 मेगावाट सौर उर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा। इस परियोजना से झांसी को प्रेशराइज्ड पाइप सिस्टम एवं माइक्रो-इरीगेशन सिस्टम का फायदा मिलेगा। इस परियोजना का मुख्यालय भी झांसी में ही होगा। गौरतलब है कि केन-बेतवा परियोजना की पहली रुपरेखा 2002 में तैयार की गयी थी। वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश के बीच पानी बंटवारे का समझौता हुआ लेकिन यह परियोजना बर्फखाने में चली गयी। 2006 में पहली बार परियोजना के सर्वे के लिए जल विकास अधिकरण का गठन हुआ लेकिन फिर भी परियोजना परवान नहीं चढ़ी। 2019 में दोनों राज्यों में पुनः जलसमझौते को आकार देने की कोशिश हुई लेकिन बात नहीं बनी। उसका कारण यह था कि मध्यप्रदेश पूरे साल का पानी एक साथ उत्तर प्रदेश को देने की बात कर रहा था जबकि उत्तर प्रदेश फसली सीजन के मुताबिक पानी मांग रहा था। अब चूंकि केंद्र सरकार ने परियोजना पर मुहर लगा दी है जिससे बुंदेलखंड की तस्वीर बदलनी तय है। ध्यान दें तो बुंदेलखंड में पानी की कमी का मुख्य कारण नदी-नीति की विफलता ही रहा है। इस कारण आज तक चंबल, सिंध पहुज, बेतवा, केन, धसान, पयस्वनी इत्यादि उद्गम स्रोत होते हुए भी समूचा विंध्य क्षेत्र जलविहिन है। अगर इन नदियों के जल का संचय और सदुपयोग किया गया होता तो बुंदेलखंड में जल की कमी नहीं होती। लेकिन सच्चाई यह है कि बुंदेलखंड में पानी की समस्या दूर करने के लिए जितनी भी योजनाएं गढ़ी-बुनी गयी वह परवान नहीं चढ़ सकी। पानी की कमी के कारण यहां की औरतों की दारुण वेदना को जुबान पर सुनने को मिलता है कि ‘भौंरा तोरा पानी गजब करा जाए, गगरी न फूटे खसम मर जाए’। एक आंकड़े के मुताबिक बुंदेलखंड में औसतन 70 हजार लाख टन घनमीटर पानी प्रतिवर्ष वर्षा द्वारा उपलब्ध होता है। लेकिन विडंबना है कि इसका अधिकांश भाग तेज प्रवाह के साथ निकल जाता है। बेतवा नदी का प्रभाव ठुकवां बांध पर वर्षा ऋतु में 16800 घन मीटर प्रति सेकेंड होता है जो ग्रीष्म में घटकर 0.56 घन मीटर प्रति सेकेंड रह जाता है। इसी तरह पयस्वनी का प्रभाव वर्षा ऋतु में 2184 घन मीटर प्रति सेकेंड रहता है जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह 0.42 घन मीटर प्रति सेकेंड रह जाता है। अगर इन प्रवाहों को संचित कर उपयोग में लाया जाए तो इस क्षेत्र की भूमि को लहलहाते देर नहीं लगेगी। गौर करें तो केन और बेतवा को छोड़कर अन्य नदियों का जल बिना उपयोग के यमुना नदी में प्रवाहित हो जाता है। बुंदेलखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 70 हजार वर्ग किलोमीटर है। यह वर्तमान हरियाणा और पंजाब से अधिक है। इसमें उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 13 जनपद तथा समीपवर्ती भू-भाग है जो यमुना और नर्मदा नदी से आबद्ध है। मध्यप्रदेश के सागर संभाग के पांच जिले-छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, सागर और दमोह और चंबल का दतिया जिला मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में आते हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग के सभी सात जिले- बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर, जालौन, महोबा और हमीरपुर बुंदेलखंड में आते हैं। यह बुंदेलखंड की विडंबना है कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक एकरुप भौगोलिक क्षेत्र होने के बावजूद यह दो राज्यों में बंटा हुआ है। बावजूद इसके बुंदेलखंड विकास की असिमित संभावनाओं को अपनी कोख में संजोए हुए है। उसके पास इतने अधिक संसाधन है कि वह अपने बहुमुखी उत्थान की आर्थिक व्यवस्था स्वतः कर सकता है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब उसका कोख जल से संतृप्त होगा। उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड की दुर्दशा को ध्यान में रखकर ही 1956 में गठित प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाए जाने का वकालत किया गया था। आयोग के सदस्य केएम पणिक्कर ने कहा था कि बुंदेलखंड को अलग राज्य नहीं बनाया गया तो वह उड़ीसा के कालाहांडी से भी बदतर स्थिति में होगा। बहरहाल बुंदेलखंड के अलग राज्य का सपना तो दूर है, लेकिन केन-बेतवा परियोजना से उम्मीद की आस बंधी है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments