Tuesday, December 3, 2024
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केन्द्रीय बजट का झुनझुना बनेगा भाजपा का अमोघ अस्त्र

आनन्द अग्निहोत्री

वरिष्ठ पत्रकार

पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गयी। सख्त कोविड प्रोटोकॉल के कारण अब सभी राजनीतिक दलों के सामने बड़ा सवाल यह है कि मतदाताओं को कैसे प्रभावित किया जाये। कम से कम 15 जनवरी तक चुनावी रैलियां हो ही नहीं सकतीं। डोर-टू-डोर प्रचार में भी महज पांच आदमी साथ रह सकते हैं। जहां तक डिजिटल और वर्चुअल माध्यमों से प्रचार का सवाल है इसका दायरा उतना व्यापक नहीं कि सभी मतदाताओं तक पहुंचा जा सके। देश की बड़ी आबादी अभी डिजिटल और वर्चुअल माध्यमों से महरूम है। हालांकि चुनावों के एलान के पहले ही अधिसंख्य राजनीतिक दलों ने बड़ी संख्या में रैलियां की हैं और अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचायी है। लेकिन उनका संदेश मतदान के दिन तक वोटरों के दिमाग में स्थायी रहेगा, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

रैलियां स्थगित होने के कारण राजनीतिक दल वर्चुअल माध्यमों से अपनी बात मतदाताओं के बीच पहुंचायेंगे ही। चुनाव घोषणा पत्र जारी कर अपनी सरकार बनने पर भविष्य की योजनाओं की भी व्याख्या करेंगे लेकिन तात्कालिक तौर पर मतदाताओं को प्रलोभित करने का उनके पास कोई जरिया नहीं बचा है। हालांकि प्रत्याशी व्यक्तिगत तौर पर मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए कई माध्यमों से सुविधा सामग्री भिजवाते हैं हालांकि चुनाव आचार संहिता की पृष्ठभूमि में यह अवैध है। लेकिन सुबूत न होने के कारण चुनाव आयोग ऐसे में कुछ कर पाने में असहाय होता है। शिकायत के साथ सुबूत भी तो चाहिए न। सुबूत न मिलें, इसके लिए प्रत्याशी बड़ी साफ-सफाई से अपनी योजनाओं को अंजाम देते हैं। लेकिन बड़े स्तर पर राजनीतिक दल वायदे करने के अलावा सार्वजनिक रूप से कुछ भी कर पाने में असमर्थ रहते हैं।

चुनाव की घोषणा के साथ ही सत्तारूढ़ सरकार कार्यवाहक में तब्दील हो जाती है। सरकार की सारी शक्तियों चुनाव आयोग में निहित हो जाती हैं। फिर भी कार्यवाहक के नाम पर जो भी दल सत्ता में होता है, कमोबेश उसका कुछ न कुछ फायदा अवश्य उठाता है। भले ही वह इसे सार्वजनिक अनिवार्यता के रूप में प्रदर्शित करे लेकिन परदे के पीछे से मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास अवश्य करता है। इस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा ही सत्ता में है। उसके लिए बड़े फायदे की बात यह है कि केन्द्र में भी भाजपा की ही सरकार है। योगी सरकार अवश्य कार्यवाहक हो गयी है लेकिन केन्द्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार नहीं। उसके पास अभी तुरुप का एक पत्ता अवश्य है जिसे चलकर वह पांचों चुनावी राज्यों में मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है। भले ही पंजाब में कांग्रेस की सरकार रही हो, लेकिन उसका यह कदम वहां भी मतदाताओं पर असर डालेगा।

भाजपा के पास जो सबसे बड़ा ट्रम्प कार्ड है वह है मोदी सरकार का आम बजट। अगली 01 फरवरी को सरकार केंद्रीय बजट-2022-23 पेश कर सकती है। ऐसे में भाजपा के पास चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियों को पीछे करने का बड़ा अवसर है। शीर्ष अर्थशास्त्रियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले पेश होने वाले केंद्रीय बजट 2022-23 के लोकलुभावन रहने की उम्मीद नहीं है। कारण यह कि केंद्र सरकार काफी अच्छे वित्तीय सिद्धांतों का पालन कर रही है और केवल कुछ राज्यों में चुनाव होने के कारण वह इन सिद्धांतों की पटरी से उतर जाएगी ऐसा सम्भव नहीं लगता।

केंद्रीय बजट 1 फरवरी को संसद में पेश किए जाने की उम्मीद है। केंद्र ने लोगों को सीधे नकद हस्तांतरण करने के अर्थशास्त्रियों और विपक्षी नेताओं सहित विभिन्न क्षेत्रों के दबाव को सफलतापूर्वक दूर करने में कामयाबी हासिल की है। इसके बजाय सरकार ने रोजगार के सृजन और अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्व उछाल के परिणामस्वरूप सरकार की वित्तीय स्थिति में भी काफी सुधार हुआ है। हालांकि अर्थशास्त्री इस बात से इनकार नहीं करते कि राज्यों के लिए बजट में विशेष घोषणाएं हो सकती हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि कोरोना की दूसरी लहर के चरम के दौरान विपक्षी दलों के कई नेता चाहते थे कि सरकार लोगों को नकद हस्तांतरण करे लेकिन उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया गया।

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