जगदीश जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान निधि की 10वीं किस्त जारी करते हुए छोटे किसानों का आग्रह किया कि वह एफपीओ के माध्यम से ही अपनी किसानी करें, पैदावार उगाएं। एफपीओ का मतलब है, फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन, यानि कृषक उपज संगठन। इस संगठन को सरकार भी आर्थिक मदद करती है। यह संगठन किसानों को उपज बोने की तकनीक, उपज की प्रोसेसिंग, कृषकों को ऋण और मंडी-बाजार में उत्पाद बेचने में मदद करता है। यह संगठन किसानों को 15 लाख रुपये तक का ऋण देता है। प्रधानमंत्री का कहना है कि यह एफपीओ किसानों को बताएगा कि अगले फसल में बाजार में किस उपज का अधिक मूल्य मिल सकता है। किसान को वह उपज कैसे पैदा करनी है और कौन सा बीज बोना है। इसे एक तरह से मंडी परिषद का दूसरा रूप भी कहा जा सकता है। मंडी परिषद तो किसान की पहले से तयशुदा उपज को ही खरीदने का प्लेटफार्म है लेकिन यह संगठन उससे बड़े फलक वाला है। प्रधानमंत्री ने किसानों को बताया कि सिंचाई के संसाधन बढ़े हैं, टपक सिंचाई का रकबा भी बढ़ा है। कृषि उत्पादों के अवशेषों से बायोफ्यूल बनाया जा रहा है, पशुधन के गोबर का बेहतर उपयोग कर उससे बायो-गैस बनाने का चलन बढ़ा है। कोविड-19 के दौर में भी किसानों की उपज बेहतर हुई। करीब 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पन्न हुआ। इसके अलावा फलोद्यान में करीब 33 करोड़ टन उत्पाद पैदा हुआ जबकि सिर्फ छह-सात साल में दुग्ध के उत्पादन में करीब 45 प्रतिशत की बढोतरी हुई है। ऐसे ही मछली उत्पादन और शहद उत्पादन में वृद्धि हुई है। उन्होंने यह भी बताया कि न्यूनतम मूल्य पर किसानों की उपज की रिकॉर्ड खरीदारी की गई है।इस तरह देखें तो देश अब 1960 और 1970 के दशक के खाद्यान्न संकट से बाहर निकल चुका है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि करीब तीन लाख टन सरकारी गोदामों में बफर स्टाक के रूप में रखा गया है। ऐसे में सरकार यह मानती है कि खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाने का दौर खत्म हो चुका है, मिट्टी में रसायनों की मात्रा अधिकतम डाली जा चुकी है। किसान अब जो भी पैदावार उपजाए वह गुणवत्ता परक हो और मिट्टी की उर्बरता किसी भी सूरत में कम न होने पाए। लंबे समय तक खेती करनी है तो खेत को बंजर होने से बचाना होगा। इसीलिए जैविक खेती और जीरो बजट की खेती का चलन लाने की उत्सुक है। बार-बार मिट्टी का परीक्षण करने की बात कहती है, मोबाइल प्रयोगशालाएं चलाई जा रही हैं, जिससे मिट्टी के स्वास्थ्य का पता चल सके। किसान अपनी उपज को मार्केट ओरियंटेड बनाए, खाद्यान्न इतना न हो जाए कि उसे औने-पौने दाम में बेचना पड़े, जबकि अन्य खाद्य पदार्थों की कमी हो। अब लोगों के भोजन में मांस, मछली, पनीर, मक्खन, शहद जैसी तमाम ऐसे उत्पाद जुड़ चुके हैं कि जिनकी बाजार में डिमांड बहुत है। पश्चिमी देशों की तरह अपने देश में भी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, कृषि उपज का खरीदार एक वर्ग ऐसा भी है जो जैविक खेती यानि बिना रसायनिक उर्वरक के उत्पादों को ही खरीद रहा है। इसके लिए वह ज्यादा से ज्यादा कीमत देने को तैयार है। ऐसे ही दुग्ध उत्पादन में ए-1 और ए-2 दूध का कांसेप्ट कई महानगरीय लोगों को पसंद आया है, सौ-दो सौ किलोमीटर दूर से आ रहे गुणवत्ता परक दूध के लिए वह दो गुनी तक कीमत चुका रहा है। प्रधानमंत्री की मंशा यही है कि किसान अपनी पैदावार का तरीका बदले और अपनी आमदनी को दोगुना-तीन गुना करे। यह सब करने के तरीके एफपीओ बताया करता है।