Friday, November 22, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने उस यात्रा पर यूपी सरकार का नोटिस भेजा, जिसका पहला कावड़िया रावण था

सुप्रीम कोर्ट ने कावड़ यात्रा पर स्वतः संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को नोटिस दे दी है। कोर्ट ने करोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए उत्तराखंड की यात्रा को रोक लगाने की सराहना की है। वहीं उत्तर प्रदेश की यात्रा को अनुमति देने पर आश्चर्य जताया है। कोर्ट ने कुछ सवाल पूछे हैं। शुक्रवार को फिर सुनवाई होनी है। कोर्ट ने उस कावड़ यात्रा पर रोक लगाने की पहल की है जिसकी शुरुआत वेदों के अनुसार शिव भक्त रावण ने की थी।  

समुद्र मंथन  की कथा तो आप सबने सुनी ही होगी। वेद कहते हैं कि कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही पड़ गई। तब जब मंथन में विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा. तब भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया। लेकिन इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक उर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने का काम रावण ने किया। यानि इतिहास की मानें तो कहा जाता है कि पहला कांवड़िया रावण था।

रावण ने तप करने के बाद गंगा के जल से पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव इस उर्जा से मुक्त हो गए। वैसे अंग्रेजों ने 19वीं सदी की शुरुआत से भारत में कांवड़ यात्रा का जिक्र अपनी किताबों और लेखों में किया. कई पुराने चित्रों में भी ये दिखाया गया है।

लेकिन कांवड़ यात्रा 1960 के दशक तक बहुत तामझाम से नहीं होती थी। कुछ साधु और श्रृद्धालुओं के साथ धनी मारवाड़ी सेठ नंगे पैर चलकर हरिद्वार या बिहार में सुल्तानगंज तक जाते थे और वहां से गंगाजल लेकर लौटते थे, जिससे शिव का अभिषेक किया जाता था. 80 के दशक के बाद ये बड़े धार्मिक आयोजन में बदलने लगा. अब तो ये काफी बड़ा आयोजन हो चुका है।

मोटे तौर पर कांवड़ यात्रा श्रावण मास यानि सावन में होती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जुलाई का वो समय होता है जबकि मानसून अपनी बारिश से पूरे देश को भीगा रहा होता है। इसकी शुरुआत श्रावण मास की शुरुआत से होती है और ये 13 दिनों तक यानि श्रावण की त्रयोदशी तक चलती है। इसका संबंध गंगा के पवित्र जल और भगवान शिव से है. इस बार ये यात्रा 22 जुलाई से प्रस्तावित थी।

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा के लिए श्रृद्धालु उत्तराखंड के हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री पहुंचते हैं. वहां से पवित्र गंगाजल लेकर अपने निवास स्थानों के पास के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में उस जल से चतुर्दशी के दिन उनका जलाभिषेक करते हैं. दरअसल कांवड़ यात्रा के जरिए दुनिया की हर रचना के लिए जल का महत्व और सृष्टि को रचने वाले शिव के प्रति श्रृद्धा जाहिर की जाती है. उनकी आराधना की जाती है. यानि जल और शिव दोनों की आराधना।

दूसरी ओर उत्तराखंड राज्य सरकार कावंड़ यात्रा पर पाबंदी लगा चुकी है। पिछले साल की तरह इस बार भी वहां कांवड़ यात्रा नहीं होगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ शर्तों के साथ इसे जारी रखने की मंजूरी दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस दे दी है। कुछ सवाल पूछे हैं. शुक्रवार को फिर सुनवाई होनी है।

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