आजादी के अमृत महोत्सव में देश के राष्ट्रपति चुनाव ने नया इतिहास रचने का कार्य किया है। देश की पहली आदिवासी द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को राष्ट्रपति पद की शपथ लेकर लोकतन्त्र की शक्ति का अहसास कराया है। इस मौके पर राष्ट्रपति को गार्ड ऑफ ऑनर और सलामी दी गई। इस मौके पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द उनके साथ राष्ट्रपति भवन गए।
64 वर्षीय मूर्मु आजाद भारत की सबसे युवा राष्ट्रपति हैं। पद ग्रहण करने के अवसर पर उन्होने कहा कि, “राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है। मेरे लिए बहुत संतोष की बात है कि जो सदियों से वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझ में अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं. मैं आज समस्त देशवासियों को, विशेषकर भारत के युवाओं को और भारत की महिलाओं को ये विश्वास दिलाती हूं कि इस पद पर कार्य करते हुए मेरे लिए उनके हित सर्वोपरि होंगे. मेरे इस निर्वाचन में पुरानी लीक से हटकर नए रास्तों पर चलने वाले भारत के आज के युवाओं का साहस भी शामिल है. ऐसे प्रगतिशील भारत का नेतृत्व करते हुए आज मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं।”
गौरतलब है कि मुर्मू ने बीते गुरुवार को राष्ट्रपति चुनाव में 64 फीसद मत पाकर बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 540 सांसदों का वोट मिला है। वहीं विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को केवल 208 सांसदों ने वोट दिया। परिणाम बताते हैं कि विपक्ष के 17 सांसदों ने पार्टी लाइन से अलग जाकर द्रौपदी मुर्मू को वोट किया। वहीं 13 राज्यों में विपक्षी दलों के 113 विधायकों ने यशवंत सिन्हा की जगह द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया।
30 वर्ष पहले जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल थे पहले आदिवासी उम्मीदवार
वर्ष 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को उम्मीदवार बनाया था। राष्ट्रपति पद के लिए वह पहले आदिवासी उम्मीदवार थे। स्वेल और संगमा दोनों मेघालय राज्य से आते थे। तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी और भाजपा विपक्ष में थी। इस चुनाव में यूपीए की तरफ से शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे। इस चुनाव में जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को 3,46,485 वोट वैल्यू प्राप्त हुए थे, जबकि शंकर दयाल शर्मा को 6,75,864 वोट वैल्यू हासिल हुए थे। स्वेल अगर इस चुनाव में जीत जाते तो देश को 30 वर्ष पूर्व ही पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिल चुका होता।