Wednesday, June 4, 2025
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चुनावी मौसम में जनता की रहनुमाई के राजनैतिक दावे

  • हर दल जनता के हितों को लेकर बड़े- बड़े दावों में जुटा

आनन्द अग्निहोत्री

लखनऊ। एक थे हातिम। शायद ही कोई ऐसा हो जिसने यह नाम न सुना हो। हातिमताई के नाम से तो सीरियल भी टीवी पर दिखाया जा चुका है । ये महाशय ऐसे थे जो सभी का भला करते थे। कोई भी अगर किसी समस्या में फंसा हो तो उसे ये जरूर समस्या से निजात दिलाते थे। अब ऐसे कोई हातिम तो रहे नहीं। हां, बड़ी संख्या में हाकिम दिखाई देने लगे हैं। ये किसी का कुछ भला कर सकें या नहीं, लेकिन भला करने का दिखावा जरूर करते हैं। इनकी कोशिश यही होती है कि लोग इन्हें अपने रहनुमा के रूप में स्वीकार कर लें। ये हर समय रहनुमाई दिखाते भी नहीं लेकिन हर पांच साल में एक वक्त जरूर आता है जब ये साबित करने का प्रयास करते हैं कि उनसे बड़ा कोई रहनुमा नहीं है। ईश्वर की कृपा हुई तो कभी-कभी बीच में भी इन्हें रहनुमाई दिखाने का अवसर मिल जाता है। स्वयं को रहनुमा साबित करने का मौसम फिर से बन गया है। अभी शुरुआत है, कोशिशें धीमी हैं लेकिन जल्द ही ये तेज हो जायेंगी।

यह मौसम और कभी नहीं, बस चुनाव के समय आता है। प्रदेश में योगी सरकार ने तकरीबन साढ़े चार साल पूरे कर लिये हैं। छह महीने बाद उन्हें फिर से कुर्सी हासिल करने के लिए इसी अवधि में स्वयं को जनता का सबसे बड़ा हाकिम साबित करना है। बड़ी मुश्किल आन पड़ी है, दूसरे हाकिम जो मुकाबले पर आ गये हैं। यूं तो योगी आदित्यनाथ स्वयं को राष्ट्र और हिन्दुत्व का सबसे बड़ा रहनुमा बताते हैं। उनकी कार्यप्रणाली और बयानों से भी यही लब्बो-लुआब निचुड़ कर सामने आता है। वैसे वे स्वयं को गरीबों का मसीहा, जनता का संकटमोचक और न जाने क्या-क्या साबित करने का प्रयास करने लगे हैं। बताते हैं कि उनकी हुकूमत ने, चाहे वह कोरोना का संकट रहा हो, महंगाई या बेरोजगारी का, सभी को संकट से उबारने का काम किया है। उनके सिपहसालारों की तो पूछिये मत, वे तो उनसे भी चार कदम आगे हैं। होना भी चाहिए, अपना हाकिम फिर से कुर्सी पर विराजमान हो जाये तो पांच साल के लिए सारे संकट दूर। योगी से बड़े हाकिम भी पीछे नहीं हैं। हर सम्बोधन में योगी को बेहतरीन हाकिम साबित करने का प्रयास करते हैं।

दूसरे हाकिम हैं समाजवादी पार्टी के मौजूदा मुखिया अखिलेश यादव। एक बार प्रदेश की सत्ता संभाल चुके हैं। यह दीगर बात है कि घर में ही उनकी टांग घसीटने की कोशिशें भी की जाती रहीं। जो भी हो, पांच साल तक तो उन्होंने कुर्सी संभाली ही है। कथित जनहित के तमाम काम भी किये हैं। अब वह जनता के संकटों को लेकर पीडि़त हैं। बेरोजगारी बढ़ रही है, महंगाई बढ़ रही है, सरकार निरीह जनता पर जुल्म ढा रही है, न शिक्षा का कोई विधिवत इंतजाम है और न चिकित्सा का। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, अफसर किसी की नहीं सुनते। अखिलेश यादव को इस सबसे बड़ी पीड़ा हो रही है। चार साल तक वह नाम मात्र का विरोध प्रदर्शन करते रहे। अब जब दर्द ज्यादा बढ़ गया तो शक्ति प्रदर्शन के लिए वे साइकिल चला रहे हैं। उन्होंने जनता के अलग-अलग वर्गों को समझाना शुरू कर दिया है कि वे उनके लिए क्या करने का विचार रखते हैं। वह यादव समुदाय के तो स्वयंभू हितैषी पहले से ही हैं लेकिन अब उनकी नजरें समाज की दूसरी जातियों पर भी है। वे इनके अलग से सम्मेलन कर रहे हैं, मान-सम्मान दे रहे हैं। मजबूरी है, छह महीने बाद संग्राम जो होना है। मौजूदा सरकार ने आपको कितनी मुसीबतों में डाला, यह बताने से भी वे नहीं चूकते। यह अलग बात है कि उनके घर में ही उनके विरोधी हैं जो खुद को उनसे बड़ा हाकिम साबित करने की कोशिशें कर रहे हैं।

 अब बहनजी यानि बसपा की सुप्रीमो मायावती कैसे पीछे रह सकती हैं। एक वर्ग विशेष का रहनुमा होने का दम तो वे पहले से भर रही हैं। उन्होंने इस वर्ग के लिए क्या किया, यह तो वे ही जानें लेकिन अब उनकी नजरें समाज के उस वर्ग पर भी हैं जिसकी वे कभी कट्टर विरोधी हुआ करती थीं। पंडित जी यानि ब्राह्मण अब उनकी नजर में श्रेष्ठ हो गये हैं। अपने तो अपने हैं हीं, अगर दूसरे वर्ग भी अपने बन गये तो एक बार फिर से कुर्सी मिल सकती है। वे अन्य हाकिमों की तरह मौजूदा सरकार का विरोध तो नहीं करतीं लेकिन दलित समुदाय के साथ अगर किसी तरह का अन्याय हुआ तो वे ट्वीट कर या बयान जारी कर विरोध जरूर करती हैं। यही तो समझदार हाकिम की विशेषता है कि वह दुश्मन को मारता भी है लेकिन अपनी लाठी भी टूटने नहीं देता है। अब इसका क्या कहें कि उनकी पार्टी में न सही, उनके समुदाय में रावण का जन्म हो चुका है। सभी जानते हैं कि रावण कुछ भी कर गुजरने में किसी से पीछे नहीं रहा।

यह तो हुई बड़े हाकिमों की बात। अभी छोटे हाकिम और भी हैं। ओवैसी साहब भी उत्तर प्रदेश में घुस आये हैं और मुसलमानों में प्रचारित कर रहे हैं कि उनके हाकिम तो वे ही हैं। तुम लोग कहां सपा-बसपा के फेर में पड़े हो। अब उनका वर्ग उनकी बात पर कितना ध्यान देता है, यह तो छह माह बाद पता चलेगा। फिलहाल खुदाई खिदमतगार की कोशिशें तो जारी ही हैं। कुछ ऐसे हाकिम भी हैं जो स्वयं को प्रदेश का रहनुमा साबित करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन उनकी आवाज में ज्यादा दम नहीं लग रहा। बड़ी मुश्किल है जनता के सामने, वह किसे सच्चा हाकिम माने, रहनुमा समझे। हाकिमों के सिपहसालार उन्हें सुबह-शाम पट्टी पढ़ा रहे हैं कि कौन सा हाकिम सच्चा रहनुमा साबित होगा। सियासी शब्दजाल में फंसी जनता उलझन में है। जो भी हो, मरता क्या न करता, उसे किसी न किसी को तो हाकिम मानना ही होगा। बेहतर हो कि वह सुने सब की और करे मन की। बहुत नाजुक मोड़ है। जरा भी गलत राह चुनी तो पांच साल के लिए पछताना पड़ेगा। इसलिए पहले थोड़ा सोचिये, समझिये और विचार कीजिये, तब फिर अपने मत पर हाकिम को बैठने दीजिये।

नीरज के स्वर्ण तिलक से हर्षित, गर्वित, फफुल्लित देश

आलोक पाण्डेय की नजर से-

नीरज चोपड़ा ने आजादी के 75वें साल के शुभारंभ के साथ ही देश के माथे पर स्वर्ण तिलक लगा दिया। आज उनके गाँव से लेकर पूरे देश में इस विजय का उत्सव मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सभी हर्षित हैं और बधाई दे रहे हैं। आइये देखते हैं आलोक पाण्डेय की नजर से नीरज और देश की इस महान उपलब्धि को।

पूरे विश्व का सबसे बड़ा खेल आयोजन ओलंपिक धीरे धीरे अपने समापन की तरफ बढ़ रहा था।एक पखवाड़े (16 दिन) दिन गुजर चुके थे …अब तक की प्रतियोगिता में हर्ष और विशाद के तमाम पलों के बीच पूरा देश अब भी एक आस में था..जब सबसे ऊंचे पोडियम में खड़ा होगा कोई अपना।।

तारीख 7 अगस्त 2021 भारत की घड़ी में चार बज के तीस मिनिट हो रहे थे…जब करोड़ों भारतीय की आस एक युवा पे टिकी थी जिसे शायद अभी पूरा भारत ठीक से जानता भी नही थी जबकि जापान में ये वक़्त था रात के ठीक आठ का..जब टोक्यो का ओलम्पिक स्टेडियम दूधिया रोशनी में नहाए हुए एक नए राष्ट्र नायक का साक्षी होने को तैयार हो रहा था।।

प्रतियोगिता शुरू …सबसे दूर भाला फेकने की रस्साकसी की…हर गुजरते पल के साथ करोड़ों दिलों की आस मजबूत हुई…भाला फेंकते हुए उस युवा का अंदाज..हुंकार उस आस को संबल देती हुई मानो हर अंदाज में ये दावा कि इतिहास लिखने की यही शाम यही वक़्त मुकर्रर की है मैंने।।

टनटन करती घड़ी की सुईयां अब भारत में पांच बज के 32 मिनिट पे आ टिकी थी…जब उस युवा से जीत का दावा करने वाले कुछ ही योद्धा मैदान पे बचे थे…

हर गुजरते पल के साथ आस अब हकीकत का रूप ले रही थी…ये वक्त ने बजाए पांच बनके अड़तीस मिनिट… भारत के मस्तक पे स्वर्णिम आभा बिखेर रहा सूरज गवाही दे रहा था…एक नए राष्ट्र नायक का…एक नए राष्ट्र बोध का…एक नए राष्ट्र गौरव का…

जब मुट्ठी भींचे अतिरेक भावों में डूबा हुआ पूरा भारत सुदूर टोक्यों में राष्ट्र गान गाते हुए उस युवा के साथ एकाकार था।

उदय हो चुका है अब एक नया सूरज….इस शाम भी

…इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय लिखा जा रहा…

बसपन का प्यार से लेकर काट के कलेजा दिखा देंगे जैसे गाने यु ट्यूब पे खोज रहा भारत का युवा अब तलाश रहा उसे हर मंच पे।।।

वंदन…अभिनंदन… नीरज चोपड़ा

आजादी के 75 सालों में एथलीट में पहला स्वर्ण : फ्लाइंग जट मिल्खा सिंह और उड़नतस्तरी पीटी उषा का सपना नीरज ने सच किया

आज के दिन गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने राष्ट्रीय गान जन गण मन लिखा था, आज ही ये गीत पहली बार भालफेंक में विजेता रही भारतीय टीम के व्यक्तिगत मुक़ाबले में नीरज चोपड़ा के सम्मान में बजा। नीरज ने पहली  बार अपने खेल से राष्ट्र गान बजवाकर देश का सीना चौड़ा कर दिया। नीरज ने न सिर्फ गोल्ड जीता बल्कि देश का गौरव भी जीता है।

नीरज ने शनिवार को अपने इवेंट के फाइनल में 87.58 मीटर दूर भाला फेंका और ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स में देश को ओलंपिक का पहला सोने का तमगा दिलाया. उन्होंने अपने इस गोल्ड मेडल को ‘फ्लाइंग सिख’ से मशहूर महान धावक मिल्खा सिंह को समर्पित किया. मिल्खा का हाल में घातक कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद निधन हो गया था।

‘आर्मी मैन’ नीरज चोपड़ा ने जैवेलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतकर भारत को जश्न मनाने का मौका दिया. उन्होंने स्वर्ण पदक जीतने के बाद तिरंगा लेकर मैदान का चक्कर लगाया और इसका जश्न मनाया.यह टोक्यो ओलंपिक में भारत का पहला और व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक गेम्स का ओवरऑल दूसरा गोल्ड मेडल है. नीरज से पहले दिग्गज शूटर अभिनव बिंद्रा ने 2008 ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था।

नीरज ने पदक जीतने के बाद कहा, ‘मैं अपने इस गोल्ड मेडल को महान मिल्खा सिंह को समर्पित करता हूं. शायद मुझे स्वर्ग से देख रहे होंगे. मैंने स्वर्ण पदक जीतने के बारे में सोचा तो नहीं था, लेकिन कुछ अलग करना था. मैं जानता था कि आज अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा. मैं ओलंपिक गेम्स का रिकॉर्ड तोड़ना चाहता था, बस शायद इसी की वजह से।’ इस मौके पर हरियाणा सरकार ने अपने चैंपियन के लिए पुरस्कारों की झड़ी लगा दी। नीरज को छह करोड़ रुपए के पुरस्कार के साथ सरकारी नौकरी और प्लाट भी मिलेगा।

व्यंग्य : एडमिनासुरों से मुक्ति

संजीव जायसवाल ‘संजय’

बचपन से उनकी ख्वाहिश अपना साम्राज्य स्थापित करने की थी. मगर नोन-तेल-लकड़ी के चक्कर में ऐसा उलझे कि पैरों की जूतियां तक घिस गईं. हाकिमों की जी-हुजूरी और चाकरी करते-करते ज़मीर मुर्दा हो गया. सारी ख्वाहिशें, सारी तमन्नाएं कहीं गहरे में दफन हो गई थी. बेज़ार जिंदगी के हाल देख वे ज़ार ज़ार रोते.

मगर कूडे के भी दिन कभी न कभी बहुरते हैं तो उनके भी बहुरे. बच्चों से व्हाट्सएप चलाने का गुर सीख उन्होंने एक दिन अपना ग्रुप बना लिया. कुछ रिश्तेदारों, कुछ मित्रों को जोड़ा. चुनी हुई लेखिकाओं और बेहतरीन कवयित्रियों को भी जोड़ा और बन बैठे ग्रुप एडमिन उर्फ प्रशासक उर्फ शासक. एक्चुअल न सही अपना वर्चुअल साम्राज्य तो स्थापित हो ही गया. सारी कुंठा उड़न छू हो गई. आत्मविश्वास से लबरेज वह अब प्रजाजन को नित्य प्रवचन देते, ज्ञान बघारते, नए-नए निर्देश जारी करते और अनुशासन का डंडा भी चलाते. नाफरमानी करने वालों को अपने साम्राज्य से निष्कासित भी कर देते. ऐसा कर उन्हें वही खुशी हासिल होती जो किसी शहंशाह को अपने दरबार से किसी दरबारी को निकालने पर होती होगी. अगला माफी मांगें या ना मांगे लेकिन दरियादिली दिखाते हुए अगले दिन उसे अपने साम्राज्य से पुनः जोड़ लेते. बलिहारी व्हाट्सएप की, ग्रुप एडमिन बन सुदामाओं को भी राजसुख भोगने और सर्वज्ञानी होने की अनुभूति प्राप्त होने लगी है. कुंठाग्रस्त, हीनताग्रस्त, दीनताग्रस्त से त्रस्त महानुभावों से लेकर टुच्चई और लफंटई से तृप्त बाँकुरे भी अपना अपना-अपना राज्य स्थापित कर दुंदभी बजा रहे हैं. हर परिचित अपना दास, हर रिश्तेदार और मित्र के वे शासक. सुख की परम अनुभूति. मूकमं करोति वाचालम पंगु लंघयते गिरिम से भी बड़ा चमत्कार है यह व्हाट्सअप.

सत्ता सुख के पश्चात साम्राज्य विस्तार की इच्छा स्वभाविक है. अतः अगले ने भी नए-नए राज्य स्थापित करना प्रारंभ कर दिया. प्रबुद्ध लेखक मंच, बौद्धिक लेखक संघ, प्रगतिशील विचारधारा, नवांकुरधारा जैसे नए-नए ग्रुप बना डाले और जितनो के भी मोबाइल नंबर मिल सके उन सबको अपने साम्राज्य में शामिल कर डाला. वही पोस्ट, वही फोटो और वही ज्ञान दिन भर हर ग्रुप में चेंपते रहते हैं. प्रजा दर्द से कराह रही है या बिलबिला रही है यह देखने की फुर्सत उनके पास नहीं. बिलकुल चक्रवर्ती सम्राट सी अनुभूति होने लगी. किंतु रंग में भंग! नित कोई ना कोई विधर्मी ग्रुप से एग्जिट कर लेता है. नख से शिख तक आग लग जाती है. संभव होता तो ऐसे भगोडे विद्रोहियों को उल्टा लटका कर दरबार में हाजिर करने का फरमान जारी कर देते. मगर अफसोस! आभासी दुनिया में ऐसा आभास होने का कोई प्रावधान नहीं है. अब उनकी एक ही अभिलाषा बाकी है, काश व्हाट्सएप में कोई ऐसी वर्चुअल तलवार बन जाए जिस से इन भगोड़ों की गर्दन उड़ा दी जाए. यदि तलवारबाजी संभव न हो तो कम से कम वर्चुअल फांसी देने का इंतजाम तो होना ही चाहिए. ताकि कोई नामुराद ग्रुप एग्जिट करने की जुर्रत न कर सके. जब तक ऐसा नहीं हो जाता तब तक उनका साम्राज्य विस्तार का अभियान अनवरत जारी है. यदि आप इसे मानसिक बलात्कार समझते हैं तो समझते रहिए. निजता का हनन लगता है तो हिनहिनाते रहिये. घोड़े की सवारी करने से पहले उसकी मर्जी नहीं जानी जाती, बस सवारी गाँठ ली जाती है. वैसे ही आपकी पीठ की सवारी गांठी गई है और गांठी जाती रहेगी. इन एडमिनासुरों के अत्याचारों से अकेले आप ही नहीं पूरा भूलोक त्रस्त है. इसलिए व्यथित होने के बजाय दुआ कीजिए कि इनका घड़ा जल्द भरे और कोई अवतारी आकर इनका संहार करे।

बॉलीवुड : बहुत दागदार है दामन

राखी बख्शी

हिन्दी फिल्मों में नायक- नायिकाओं को सामाजिक मूल्यों पर आधारित आदर्श जीवन जीने वाले व्यक्तियों के रूप में दिखाया जाता है पर प्रसिद्धि, लोकप्रियता, धन और वैभव के मद में चूर कई फिल्म स्टार्स अपने निजी जीवन में बहुत कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसकी वजह से उन्हें न सिर्फ कटु आलोचना का शिकार होना पड़ता है बल्कि कई बार वो अर्श से फर्श पर आ जाते हैं।

 फिल्में हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। अधिकतर हिन्दी फिल्मों में कथानक का मुख्य विषय प्रेम ही रहा है। फिल्मों में नायक- नायिका एक दूसरे से प्रेम करते हैं , साथ जीने मरने की कसमें खाते हैं । घर – परिवार और समाज के विरोध के बावजूद विवाह करते हैं और जो नहीं कर पाते वो अपने प्यार के लिए जान तक दे देते हैं । फिल्म में ज़्यादातर नायक मेहनती,  ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठ, खुद्दार, देशप्रेमी , सच्चे दोस्त और नैतिक जीवन जीने वाले होते है। इसके विपरीत वास्तविक जीवन में फिल्मी सितारे अक्सर प्रेम में धोखा देने, बहु- विवाह करने, अनैतिक कृत्यों , मादक पदार्थों के सेवन, धोखाधड़ी, महिलाओं के यौन शोषण और अनेक संगीन अपराधों में संलिप्तता के कारण खबरों की सुर्खियां बनते हैं।

   अभी हाल ही में अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के बिजनेस मैन पति राज कुन्द्रा को मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पोर्नोग्राफिक फिल्में बनाने और एप्प के जरिये उनका वितरण  करने के लिए गिरफ्तार किया था। कुन्द्रा के विदेशों तक फैले इस कारोबार के बारे में उनसे पूछ- ताछ के लिए उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया । राज कुन्द्रा के व्यवसाय में शामिल रही कुछ अभिनेत्रियों ने उनका पक्ष लिया है। इनमे गहना वशिष्ठ प्रमुख हैं। गहना ने पहले कहा कि राज ने जो फिल्में बनाई है वो सिर्फ इरोटिक अर्थात कामुक फिल्में हैं वास्तव में वो पॉर्न नहीं है। इसके बाद अपने इस तर्क के समर्थन में उन्होने इन्स्टाग्राम पर न्यूड लाइव सेशन किया।

     शिल्पा शेट्टी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मीडिया और सोशल मीडिया पर उनसे संबन्धित खबरें प्रकाशित किए पर रोक लगाने की मांग की । कोर्ट ने शिल्पा की इस मांग को खारिज कर दिया। शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुन्द्रा को धन की कोई कमी नहीं है लेकिन इसके बावजूद राज अश्लील फिल्में बनाने का अनैतिक कार्य कर रहे थे। अगर उनकी ये बात सच भी हो कि यह फिल्में पॉर्न फिल्म्स नहीं बल्कि कामुक प्रकृति की थी तो भी वो कोई पाक- साफ काम नहीं कर रहे थे। कई मॉडल्स और अभिनेत्रियों ने उन पर जबर्दस्ती न्यूड फिल्मों में कम करवाने के लिए ट्रेप करने का आरोप लगाया है।  सवाल यह उठता है कि क्या शिल्पा शेट्टी को वाकई यह पता नहीं था कि उनके पति राज ये कम कर रहे हैं और अगर पता था तो क्या उनकी नज़र में यह सही काम था? कुछ भी हो कृत्य की वजह से शिल्पा शेट्टी और उनके पति की काफी बदनामी, जग हँसाई और आलोचना हुई है।  सोशल मीडिया पर लोग उनके लिए ‘’ योग गुरु का पति संभोग गुरु’’ जैसे विशेषणों तक का इस्तेमाल कर रहे हैं।

   बॉलीवुड में ड्रग्स का भी काफी प्रचलन है।  MDMA, मारिजुआना आदि का इस्तेमाल बॉलीवुड में आम बात है।  गत वर्ष बॉलीवुड में एक बेहद सफल अभिनेता को कथित रूप से ड्रग्स का आदी बना कर उसकी हत्या का सनसनीखेज मामला सामने आया था जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।  पिछले साल 14 जून को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत बांद्रा स्थित अपने फ्लैट में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाये गए थे। सुशांत सिंह राजपूत के परिवार ने उनकी गर्ल फ्रेंड रिया चक्रवर्ती पर उन्हें ड्रग्स देने का आरोप लगाया था और उनकी  हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया था। इस मामले में रिपब्लिक टी॰ वी ने रिपोर्टिंग का एक अभियान चलाया था। रिपब्लिक टी ॰ वी के मुताबिक मुंबई पुलिस ने इस मामले में तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की और कुछ बातें छिपाईं भी। सुशांत के करीबियों की ऑनलाइन ड्रग्स चैट सामने आने के बाद एनसीबी ने इस मामले की जांच शुरू की थी। एनसीबी ने सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती को न्यायिक हिरासत में ले कर उससे कड़ी पूछताछ की थी। रिया के भाई को भी गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, सारा आली खान और श्रद्धा कपूर से भी पूछताछ की गयी थी। एनसीबी ने सुशांत सिंह की पूर्व टैलंट मैनेजर जया साहा और श्रुति मोदी से भी पूछताछ की थी । सुशांत की हत्या के मामले में ड्रग्स एंगल की जांच करते हुए एनसीबी को मुंबई और बॉलीवुड में कोकीन और अन्य हार्ड ड्रग्स की आपूर्ति में अमृतसर और पाकिस्तान तक के ड्रग डीलरों का  हाथ होने का पता चला था।  इस मामले में टैलंट मैनेजमेंट कंपनी KWAN का नाम भी  प्रमुखता से उभरा था।  नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने KWAN के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ध्रुव चिटगोपेकर को भी इस सिलसिले में पूछताछ के लिए बुलाया था।

    आश्चर्य की बात है कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), नारकोटिक्स   कंट्रोल ब्यूरो (NCB) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) मिलकर भी सुशांत सिंह राजपूत की मौत के रहस्य का पर्दाफाश नहीं कर पाये।

    रिया की व्हाट्सअप्प चैट से इस बात का खुलासा हुआ कि वह स्वयं भी ड्रग्स लेती थी। उसने गौरव आर्या नाम के एक व्यक्ति को कथित रूप से मैसेज करके बताया था कि वो बहुत ज़्यादा हार्ड ड्रग्स नहीं लेती है बस उसने एक बार (MDMA) लिया था।

    वर्ष 2019 में फिल्म निर्माता कारण जौहर पर अपने निवास स्थान पर बॉलीवुड सितारों के लिए ड्रग पार्टी आयोजित करने का आरोप लगा था।  सोशल  मीडिया पर सर्क्युलेट हुए एक वीडियो में कारण जौहर की एक पार्टी में बॉलीवुड के नामचीन फिल्म सितारों रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण और वरुण धवन को ड्रग्स लेते देखा गया। हालांकि कारण जौहर ने इन आरोपों को निराधार और हास्यास्पद बताया था। 

   मुंबई पुलिस ने 2001 में अभिनेता फरदीन खान के पास से कोकीन बरामद कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।

  बॉलीवुड के नौटी संजू बाबा यानी संजय दत्त 1982 में ड्रग्स के एक मामले में गिरफ्तार हुए थे जिसमें उन्हें पाँच महीने की जेल की सज़ा हुई थी । नशे की आदत छोडने के लिए उन्हें अमेरिका के एक पुनर्वास केंद्र में रहना पड़ा था। 1993 के मुंबई बम धमाकों के दौरान उन्हें अवैध हथियार रखने के कारण गिरफ्तार किया गया था। 

    अभिनेता विजय राज को 2005 में दुबई हवाई अड्डे पर ड्रग्स के साथ पकड़ा गया था। रैपर यो यो हनी सिंह भी ड्रग्स की लत का शिकार थे। अभी हाल में उनकी पत्नी ने उनपर घरेलू हिंसा का आरोप भी लगाया था।  

पूर्व मॉडल गीतांजलि नागपाल नशे की लत से इतनी बुरी तरह बर्बाद हो गईं थीं कि वो सड़क पर आ गयी थीं। वह दिल्ली के पार्कों और मंदिरों में रातें गुजारती पायी गयी।

    बॉलीवुड की पूर्व अदाकारा ममता कुलकर्णी और उनके पति विक्की गोस्वामी का नाम कई करोड़ रुपये के ड्रग्स रैकेट में मुख्य आरोपी के रूप में सामने आया था।

   फिल्म निर्माता अभिनव सिंह कश्यप ने सलमान खान और उनके भाइयों अरबाज़ खान और सोहेल खान पर उनका करियर बर्बाद करने का आरोप लगाया था।  उन्होने सोशल मीडिया पर लिखे एक पोस्ट में कहा था कि प्रताड़ना के कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है।

  चर्चित मी टू (Me Too) अभियान के तहत बहुत सी अभिनेत्रियों ने बॉलीवुड कलाकारों, निर्माता – निर्देशकों पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। इसकी शुरुवात अभिनेत्री तनुश्री दत्ता से हुई थी। तनुश्री ने अभिनेता नाना पाटेकर पर 2008 में एक फिल्म के निर्माण के दौरान उनका यौन शोषण करने का आरोप लगाया था। हालांकि तनुश्री के साथ यह घटना करीब एक दशक पहले हुई थी लेकिन उनके द्वारा अरसे बाद इस मामले में चुप्पी तोड़ने से बहुत सी अन्य पीड़ित अभिनेत्रियों को अपने साथ हुई घटना को सार्वजनिक करने का हौसला मिला । अभिनेत्री पायल घोष ने अनुराग कश्यप पर उनका उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। सुप्रसिद्ध चरित्र अभिनेता आलोक नाथ, फिल्म निर्माता विकास बहल और गायक कैलाश खेर जैसे लोगों पर भी यौन शोषण के आरोप लगे थे। नब्बे के दशक में टेलीविज़न पर दिखाये जाने वाले धारावाहिक ‘ तारा’ की निर्माता-निर्देशक ने आलोक नाथ पर दशकों बाद यौन शोषण का आरोप लगाया था। उनके बाद ‘तारा’ की प्रमुख अभिनेत्री नवनीत निशान और संध्या मृदुल ने भी इसी तरह के आरोप लगाए । चर्चित अभिनेत्री कँगना राणावत ने भी अपना दुःख व्यक्त करते हुए कहा था कि फिल्म ‘ क्वीन’ की शूटिंग के दौरान निर्देशक विकास बहल के बर्ताव के कारण उन्हें काफी असहज महसूस हुआ था। इस तरह का व्यवहार करने वाले कइयों ने तो सार्वजनिक रूप से पीड़ित महिलाओं से माफी मांग ली जबकि कुछ ने अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया और कुछ ने संज्ञान भी लेना ज़रूरी नहीं समझा। माफी मांगने वाले अभिनेताओं में अभिनेता रजत कपूर भी थे। रजत कपूर ने कहा था कि मैंने  ताउम्र एक भद्र इंसान बनने की कोशिश की है लेकिन अगर कभी मुझसे कोई चूक हो गई हो और मेरे किसी व्यवहार की वजह से किसी को दुःख पहुंचा हो तो मैं उसके लिए तहे दिल से क्षमा प्रार्थी हूँ। अगर मेरे लिए मेरे काम से ज़्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण है तो वो है अच्छा इंसान होना।

   जहां रजत कपूर ने अपने ऊपर लगे आरोप को स्वीकार करते हुए माफी माँग कर एक अच्छा उदाहरण पेश किया है वहीं कुछ अन्य कलाकार साफ- साफ इससे मुकर गए। एक महिला पत्रकार ने अभिनेता कैलाश खेर पर आरोप लगाया था कि वो इंटरव्यू के वक़्त उसकी जांघों पर हाथ रख कर बैठे रहे । कैलाश खेर ने इस आरोप को सरासर गलत बताया था।

यही नहीं फिल्म निर्माता – निर्देशक महिलाएं और अभिनेत्रियाँ शादी- शुदा पुरुषों की गृहस्थी उजाड़ कर अपनी दुनिया बसाती रही हैं। इनमें फिल्म निर्देशक किरण राव-आमिर खान, श्रीदेवी- बोनी कपूर, शिल्पा शेट्टी – राज कुन्द्रा, लारा दत्ता – महेश भूपति, हेमा मालिनी- धर्मेंद्र, स्मिता पाटिल – राज बब्बर आदि बहुत से चर्चित नाम हैं।  शिल्पा शेट्टी से शादी से पूर्व राज कुन्द्रा की शादी कविता नाम की महिला से हुई थी। कविता ने हाल ही में आरोप लगाया था कि शिल्पा ने उनका घर तोड़ा है।  अभिनेत्री रानी मुखर्जी ने फिल्मों में काम करते हुए यशराज फिल्म्स के आदित्य चोपड़ा से प्यार कि पींगे  बढ़ाई। आदित्य पहले से शादीशुदा होते हुए रानी के प्रेम की गिरफ्त में आ गए और उन्होंने अपनी पत्नी पायल को तलाक दे कर रानी से शादी कर ली ।  आदित्य की पहली शादी सात साल तक चली ।

      अभी हाल ही में अभिनेता आमिर खान और फिल्म निर्देशिका किरण राव के तलाक की खबर मीडिया में छाई हुई थी। आमिर खान ने पहली शादी रीना दत्ता से हुई थी। आमिर और रीना एक दूसरे से प्रेम करते थे । दोनों के दो बच्चे और खूबसूरत भरा-पूरा परिवार था लेकिन फिल्म ‘ लगान ‘ के निर्माण के समय आमिर मियां किरण राव पर फिदा हो गए। किरण राव इस फिल्म की सहायक निर्देशक थी। आमिर ने अपने नए प्यार किरण राव के लिए रीना दत्ता से पंद्रह साल पुरानी शादी तोड़ दी। इसे एक इत्तेफाक कहिए या कुछ और, किरण राव के साथ भी आमिर कि शादी मात्र पंद्रह साल ही चली। मीडिया में ऐसी चर्चा है कि आमिर अब अपेक्षाकृत युवा और बेहद सुंदर अभिनेत्री फातिमा सना शेख पर लट्टू हैं। फिल्मों में प्यार के लिए जीने – मरने की कसमें खाने और ज़िंदगी भर साथ निभाने का वादा करने वाले लोकप्रिय सितारों के जीवन में प्यार एक मौसमी बुखार की तरह आता है और चला जाता है।

    लेखक जावेद अख्तर ने अपनी पहली पत्नी लेखिका हनी ईरानी को तलाक दे कर शबाना आज़मी से शादी की थी। अभिनेत्री रवीना टंडन ने भी अनिल थड़ानी को उनकी पहली पत्नी से अलग करा कर उनसे शादी की ।

केवल इतना ही नहीं दूसरी शादी और नए प्यार को पाने के लिए अभिनेताओं ने जाति और धर्म के बंधनों को भी तोड़ा है।  सुप्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र ने ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी को पाने के लिए धर्मांतरण का सहारा लिया था । धर्मेंद्र ने मुस्लिम धर्म अपना कर अपनी पहली पत्नी को तलाक दिये बिना हेमा से शादी की थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनकी पहली पत्नी उन्हें तलाक नहीं देना चाहती थीं।

      अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली पर अभिनेत्री जिया खान को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था। सलमान खान काले हिरण के शिकार और अंधाधुंध गाड़ी चला कर सड़क के किनारे सोये गरीब लोगों को मारने के आरोप में जेल कि हवा खा चुके हैं।  

    ऐसे फिल्मी सितारों की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिन पर समय-समय पर अमर्यादित, आपत्तिजनक और अनैतिक आचरण के आरोप लगते रहे हैं।  इनमें से कइयों पर लगे आरोप सही साबित हुए और अपराधों में संलिप्तता के लिए देश की न्यायिक प्रक्रिया के तहत उन्हे सज़ा भी मिली है लेकिन इसके बावजूद न तो वो सुधरे हैं और न ही फिल्म इंडस्ट्री के अन्य लोगों ने उनसे कोई सबक लिया है।  

      सुशांत सिंह राजपूत की हत्या मामले की जांच के दौरान बहुत से फिल्म स्टार्स के ड्रग्स लेने और फिल्म इंडस्ट्री में एक सुनियोजित ड्रग्स रैकेट संचालित किए जाने की बात सामने आई थी।  उस वक़्त मीडिया ने अपनी रिपोर्टिंग में फिल्म इंडस्ट्री को आड़े हाथों लिया था। इस पर फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों को मीडिया का रवैया काफी तल्ख लगा था। अभिनेत्री जया बच्चन ने तो इस पर नाराजगी जताते हुए यहाँ तक कहा था कि फिल्म इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा है।

     पर जया बच्चन जैसे वरिष्ठ कलाकारों को सोचना चाहिए कि क्या फिल्म इंडस्ट्री में वाकई सबकुछ सही चल रहा है? यकीनन वो जानती हैं कि यह सच नहीं है। कँगना राणावत जेसी आज के जमाने कि युवा अभिनेत्री बॉलीवुड को स्वयं गटर कह चुकी हैं। कास्टिंग काउच, मादक पदार्थों का सेवन और बिक्री, सेक्स रैकेट, विवाहेतर संबंध और अब बॉलीवुड कि छत्रछाया में पॉर्न इंडस्ट्री यह सब दर्शाता है कि बॉलीवुड का आज सिर्फ दमन ही दागदार नहीं है बल्कि फिल्म इंडस्ट्री के लोग अनैतिक और आपराधिक कृत्यों में आकंठ निमग्न हैं ।

     फिल्मे समाज का आईना समझी जाती हैं और फिल्म स्टार्स को लोग अपना आदर्श मानते हैं इसलिए फिल्म स्टार्स, निर्माता- निर्देशकों और  इंडस्ट्री से जुड़े हर छोटे-बड़े व्यक्ति का यह दायित्व बनता है कि वे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में शुचिता का ध्यान रखें और सामाजिक मर्यादा, लोकाचार और देश के क़ानूनों का पालन करें।  

                                               राखी बख्शी

हाकी : बेटियों ने पदक गंवाया पर देश का दिल जीता

भारत की महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में शानदार खेल का प्रदर्शन किया लेकिन टीम ब्रॉन्‍ज मेडल से महरूम रह गयी । भारतीय टीम को ब्रिटेन की ओर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। ब्रिटेन ने कड़े मुक़ाबले में 3-4 से भारत को मात दी। भारतीय टीम इस ओलंपिक में चौथे स्‍थान पर रही। भारत बड़े मौके से चूक गया। नवजोत ने भरपूर कोशिश की थी। वह ब्रिटेन के गोल पोस्‍ट तक पहुंच गई थीं. वहां कोई नहीं था। भारतीय टीम टोक्यो ओलंपिक के 15वें दिन भले ही पदक न जीत पाई हो लेकिन देश की बेटियों ने सबका दिल जीत लिया। उधर भारतीय हॉकी के इतिहास में गुरूवार का दिन सबसे यादगार दिनों में से एक साबित हुआ। मनप्रीत सिंह की अगुवाई में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता। यह 1980 के मास्को ओलिम्पिक के बाद ओलिम्पिक में भारत का पहला और खेलों के महाकुंभ कहे जाने वाले इस इवेंट में कुल मिलाकर 12वां पदक है। इससे पहले भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया को पुरुष फ्रीस्टाइल 57 किग्रा भार वर्ग के फाइनल मुकाबले में रूस ओलंपिक समिति (आरओसी) के जायूर उगयेव के हाथों 4-7 से हार का सामना कर रजत पदक से संतोष करना पड़ा।

स्टार्ट अप इंडस्ट्री में नंबर वन बनेंगे आईआईटीयन

  • आई आई टी  कानपुर ने नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए छात्र उद्यमिता नीति बनाई

कानपुर, अगस्त 5-  भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर ने आज घोषणा की कि उसकी अकादमिक सीनेट ने एक व्यापक छात्र उद्यमिता नीति को मंजूरी दे दी है। यह नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और राष्ट्रीय नवाचार और स्टार्ट-अप नीति (एनआईएसएम) के अनुरूप छात्रों के बीच नवाचार और उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देगी ।

यह नीति “नवाचार और उद्यमिता क्रेडिट” की पथ-प्रदर्शक अवधारणा पेश करती है जो छात्रों को अपनी डिग्री हासिल करने के दौरान अपनी अकादमिक यात्रा के हिस्से के रूप में नवाचार और उद्यमशीलता की आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाएगी।

नीति तीसरे वर्ष में स्नातक छात्रों और न्यूनतम पाठ्यक्रम कार्य पूरा करने के तुरंत बाद स्नातकोत्तर छात्रों को उद्यमशीलता की गतिविधियों को आगे बढ़ाते हुए अकादमिक क्रेडिट प्राप्त करने का मौका देती है। छात्र परिसर के अंदर और बाहर दोनों जगह सुविधाओं का उपयोग करके अपने विचारों को आगे बढ़ाने के लिए सेमेस्टर अवकाश का भी लाभ उठा सकते हैं। यह सभी हितधारकों को उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देने और शैक्षणिक मानकों और शैक्षणिक लक्ष्यों को कम किए बिना स्पष्ट लक्ष्य के साथ सशक्त बनाती है। यह नीति संस्थान में पहले से मौजूद जीवंत उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र को जबरदस्त प्रोत्साहन प्रदान करती है।

नीति की मुख्य विशेषताएं:

• शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा

• सभी पात्र छात्रों के लिए खुला

• नवप्रवर्तन और उद्यमिता में माइनर

• नवाचार और उद्यमिता को आगे बढ़ाने के लिए सेमेस्टर अवकाश

• नवाचार और उद्यमिता में अकादमिक क्रेडिट

• अपनी खुद की कंपनियों को स्थापित और पंजीकृत करना

• उद्योग सलाह और वित्त पोषण

• पेटेंट और आईपी प्रबंधन

• आस्थगित प्लेसमेंट

आई आई टी कानपुर इनोवेशन और एंटरप्रेन्योरशिप हाउसिंग के मामले में सबसे आगे रहा है, जिसमें एशियाई क्षेत्र में 11 इनक्यूबेटर, 5 अत्याधुनिक प्रोटोटाइप, और टिंकरिंग लैबोरेटरीज और एक उन्नत विज्ञान और प्रौद्योगिकी पार्क शामिल हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र वर्तमान में 100 से अधिक स्टार्ट-अप का समर्थन और पोषण करता है । यह पारिस्थितिकी तंत्र वर्तमान नीति को आगे बढ़ाने और लागू करने तथा परिसर में छात्र और अनुसंधान समुदाय को लाभान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि, “आधुनिक उद्योग की चुनौतियों के लिए छात्रों को सामान्य शिक्षार्थियों से रचनाकारों और नवप्रवर्तकों तक विकसित होने की आवश्यकता है। इसके लिए विश्वविद्यालयों को ऐसे स्थान बनाने की आवश्यकता है जहां युवा लोगों में उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाता है, एक ऐसा स्थान जहां रचनात्मक विचार चमकते हैं जो भविष्य के नवाचारों को जन्म दे सकते हैं, भारत की वास्तविक नवाचार और उद्यमिता क्षमता को साकार करने में योगदान दे सकते हैं।

“संस्थान में छात्रों और संकाय (फैकल्टी) के लिए नेशनल इनोवेशन एंड स्टार्ट-अप पॉलिसी फॉर स्टूडेंट्स एंड फैकल्टी 2019 की कई सिफारिशें पहले से ही लागू हैं और सक्रिय रूप से आई आई टी  कानपुर में काम कर रही हैं। संस्थान में एक संकाय (फैकल्टी) उद्यमिता नीति भी है जिसके तहत संस्थान के संकाय (फैकल्टी) सदस्य संस्थान के नियमित कर्मचारियों के रूप में अपना कार्य जारी रखते हुए एक कंपनी शुरू कर सकते हैं।

“एक मजबूत छात्र उद्यमिता नीति हमारे छात्रों को तेजी से विकासशील दुनिया की मांगों के साथ तालमेल रखने की अनुमति देगी। हम इस तरह की व्यापक नीति तैयार करने वाले पहले केंद्रीय वित्त पोषित तकनीकी संस्थानों में से एक हैं।” हाल के दिनों में भारत में प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप की संख्या में निश्चित वृद्धि को देखते हुए, विशेष रूप से युवा उद्यमियों द्वारा, पेशेवर और तकनीकी क्षेत्रों की पृष्ठभूमि के साथ, इस दिशा में कई प्रचार पहल धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से समाज पर एक स्पष्ट प्रभाव डाल रही हैं। आईआईटी कानपुर के अकादमिक सीनेट द्वारा अपनाई गई नई नीति परिवर्तनकारी होगी और एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र का मार्ग प्रशस्त करेगी जहां छात्र संस्थान में अपने कार्यकाल के दौरान व्यवस्थित तरीके से नवाचार और उद्यमिता गतिविधि कर सकते हैं।

भारतीय हाकी टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक में इतिहास रचा, कांस्य पदक जीता

भारत की पुरुष हॉकी टीम आखिरकार टोक्यो ओलंपिक में करिश्मा कर दिया है। टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया है। इस जीत से पूरे देश में जश्न का माहौल है। टीम इंडिया ने जर्मनी से 5-4 से हरा दिया है। भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में 41 साल बाद मेडल हासिल किया है। टीम इंडिया ने कड़े मुकाबले में ये मैच जीता है।

भारतीय हॉकी टीम साल 1980 के मास्को ओलंपिक के फाइनल में पहुंची थी,  जबकि साल 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। अब 41 साल बाद इस मुकाबले में भारत की तरफ से सिमरनजीत सिंह ने दो गोल जबकि हरमनप्रीत सिंह, रुपिंदर पाल सिंह और हार्दिक सिंह ने एक-एक गोल किया. गोलकीपर श्रीजेश ने कई मौकों पर गोल बचाया।

अभिनय की पाठशाला : सामने होकर भी अदृश्य होना

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विपिन कुमार
भारतीय रंगमंच अभिनेता, निर्देशक, लेखक

क्या बिना शरीर के अभिनय हो सकता है?  यह प्रश्न उन के लिए जो अभिनय सीखने के माहौल में न केवल अपने शरीर का उपयोग करते हैं बल्कि उनको  विचार करना पड़ता है कि भविष्य में वो अपने को स्वस्थ शरीर और अभिनेता के रूप में कहां देखना चाहते हैं ।  इसका कारण यह है कि सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में शरीर का महत्व है,सवाल किया जाना चाहिए कि जीवन में लगातार कहाँ जाना है। एक सामाजिक प्राणी के रूप में, व्यक्ति एक रिश्ते में है ,अपने शरीर के माध्यम से अन्य प्राणियों और  पर्यावरण के साथ। शरीर लोगों को दुनिया में मौजूद होने में सक्षम बनाता है,

समय और स्थान को परिभाषित करता है, जिसमें वह पर्यावरण के साथ बातचीत करता है और उसका अनुभव करता है। अनुभव का पता शरीर को शारीरिक गतिविधियों के साथ विकसित करने और उसकी भूमिका के बारे में सोचने से  होता है

अनुभव के लिये निरंतरता और सहभागिता ज़रूरी है ।जब अभिनेता के साथ पर्यावरण के संबंध में बातचीत होती है तो उनके विचारों में परिवर्तन और विकास सकारात्मक रूप से होते हैं। वास्तव में, पर्यावरण के साथ बातचीत मानसिक और शारीरिक रूप से अभिनेता को संवेदनशील बनाती है। नाटक अभिनेता को सबक के प्रत्येक चरण में शारीरिक रूप से भाग लेने और भावनात्मक रूप से विकसित करने की अनुमति देता है।मानसिक और सामाजिक रूप से। नाटक पारंपरिक वर्गों की एक व्यापक पद्धति है जिसमें

अतीत, शारीरिक अभ्यास, आवाज की कार्रवाई, और मानसिक एकाग्रता है । नाटक विधि अभिनय के छात्रों को इन स्थानों को देखने में मदद करती है जिनमें क्रियाकलापों के दौरान वो अपने शरीर और इन्द्रियों के अंगों को प्रभावोत्पादक रूप से देखने की कल्पना करें ।और एक अनुभव, एक घटना, एक विचार, एक अमूर्त अवधारणा को चित्रित करने में सक्षम बन सके ।आशुरचना और रोल-प्लेइंग जैसी तकनीकों का उपयोग कर अभिनेता अभिनय करते हैं और अधिक सीखने के लिए प्रेरित होते हैं भावनात्मक और अधिक बौद्धिक रूप से ,क्योंकि वे नाटक के अध्ययन पर अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों को दर्शाते हैं  अभिनेता एक भूमिका निभाते हैं

उनके लिए तैयार किए गए नाटक कार्यों में, उनकी भूमिकाओं का विश्लेषण करते हैं, खुद को और अपने व नाटकीय पर्यावरण को पहचानने की कोशिश करते हैं । और शारीरिक रूप से रचनात्मक कार्यों में सहयोग करते हैं ।

“यदि आप अपने शरीर, आवाज, बोलने के तरीके, चलने और व्यवहार करने का उपयोग नहीं करते हैं, तो आप नाटकीय पात्र के मानव जीवन से परिचित नहीं हो सकते। अलग-अलग किरदारों की आत्मा को अपनाने के लिए, अभिनेता को यह करना ज़रूरी है ताकि आंतरिक चरित्र को बनाए रखते हुए पात्रों की भौतिक विशेषताएँ अपना सके । ऐसा करने में शारीरिक कार्य  कठिन लग सकता है, और इसके कई भौतिक तरीके हैं जैसे एक चरित्र का आबजर्वेशन;  अवलोकन, मिमिक्री, चित्रकारी समझना, किताबें पढ़ना, कहानियाँ, आदि  याद रखना महत्वपूर्ण है । प्रत्येक चरित्र अभिनेता के लेंस के माध्यम से बताया जाता है। “और चूंकि अभिनेताओं को चरित्र बनाना है दर्शकों के लिए, तो शरीरी रूप से “सामने होकर भी अदृश्य  होने की  कला उसे आनी चाहिए”।

दिल्ली में दलित बच्ची से रेप पर सियासत, राहुल का विरोध, केजरीवाल का मंच टूटा

देश की राजधानी दिल्ली  में दलित बच्ची से कथित रेप प्रकरण पर सियासत तेज हो गई है। बीते भीम आर्मी के नेता ने मौके पर जाकर पीड़ितों से मुलाक़ात की कोशिश की जिसके बाद लगातार नेताओं का मौके पर जाना और स्थानीय स्तर पर उनका विरोध जारी है। सुबह कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीड़ितों से मुलाक़ात की। जानकारी के मुताबिक कथित रूप से श्मशान में रेप  के बाद बच्ची की हत्या कर शव जलाने के मामले में आज सुबह राहुल गांधी ने पीड़िता के माता पिता से मुलाक़ात की। जबकि मौके पर धारणा दे रहे लोगों ने विरोध जताया। बाद में राहुल गांधी ने अपनी मुलाक़ात का फोटो भी जारी किया। जिसकी भाजपा ने आलोचना की। दूसरी ओर  सीएम अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को पीड़ित परिवार से मुलाकात की। जिस वक़्त मंच पर परिवार से अरविंद केजरीवाल मिल रहे थे, उसी वक्त मंच का एक हिस्‍सा गिर गया. इससे वहां कुछ देर के लिए हड़कंप मच गया। पीड़ित परिवार से चर्चा के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जो बच्ची के साथ अन्याय हुआ है वह बेहद दु:खद है. बच्ची को वापस नहीं लाया जा सकता, लेकिन दिल्ली सरकार पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है।