Friday, June 6, 2025
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जन्मदिन चाय वाले से देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 71वां जन्मदिन है। गरीब परिवार में जन्म लेकर चाय वाले से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले मोदी का जीवन सांघर्ष और उपलब्धियों की कहानी कहता है। आजाद भारत में जन्म लेकर पहले प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व करने वाले मोदी पहले गैर कांग्रेसी हैं जिन्होने लगातार दो बार केंद्र सरकार का नेतृत्व किया है। मोदी की लोकप्रियता आज भी देश में किसी भी नेता से बढ़कर है। उनके समर्थकों को भक्त का दर्जा दिया जाता है। यानि वे मोदी को दिलों जान से पसंद करते हैं। पीएम के जन्मदिन पर उनके संसदीय क्षेत्र काशी में विशेष पूजा और हवन का दौर चल रहा है तो देश भर में करोना के खिलाफ रिकार्ड  टीकाकरण भी हो रहा है। पीएम आज एससीओ को भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग से संबोधित कर रहे हैं।

17 सितंबर 1950 को गुजरात के वडनगर में जन्में नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को पहली बार और 30 मई 2019 को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इससे पहले वो 12 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री थे। राजनीति से परे नरेंद्र मोदी को लिखना पसंद है। उन्होंने कई कविता और कई किताबें लिखी हैं. प्रधानमंत्री देश के मुखिया हैं, लेकिन उन्हें भी आम आदमी की तरह फिल्में और गीत पसंद हैं।

हालांकि उनका पूरा जीवन देश और राजनीतिक दल भाजपा के लिए समर्पित रहा। मोदी 1987 में बीजेपी से जुड़े और उन्हें सबसे पहले जो जिम्मेदारियां दी गईं, उनमें 1987 के अहमदाबाद स्थानीय चुनाव के लिए प्रचार करना शामिल था. एक जोशीले प्रचार अभियान ने इस चुनाव में बीजेपी की जीत पक्की कर दी।

वो 1990 में गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने वाली मुख्य टीम का हिस्सा थे. इस चुनाव के परिणामों ने एक दशक पुराने कांग्रेस शासन का अंत कर दिया. राज्य में कांग्रेस ने 1980 और 1985 में क्रमश: 141 और 149 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार कांग्रेस का आंकड़ा घटकर 33 सीटों पर आ गया. बीजेपी को 67 सीटों पर सफलता मिली और पार्टी चिमनभाई पटेल के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हुई. हालांकि ये गठबंधन कुछ समय तक ही चला, लेकिन बीजेपी गुजरात में एक अजेय शक्ति के रूप में उभरकर सामने आई।

नरेंद्र मोदी 1995 के विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान में सक्रिय रूप से शामिल थे. इस बार बीजेपी ने पहली बार सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. नतीजे ऐतिहासिक रहे, पार्टी को 121 सीटों पर जीत मिली और बीजेपी की सरकार बनी। वर्ष 1996 में मोदी बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव के रूप में दिल्ली आए और उन्हें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू तथा कश्मीर जैसे प्रमुख उत्तर भारतीय राज्यों का प्रभार सौंपा गया. वर्ष 1998 में बीजेपी ने अपने बल पर हिमाचल में सरकार का गठन किया और हरियाणा (1996), पंजाब (1997) तथा जम्मू और कश्मीर में गठबंधन की सरकार बनाई. दिल्ली में मिले उत्तरदायित्व ने मोदी को सरदार प्रकाश सिंह बादल, बंसी लाल और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं के साथ काम करने का अवसर दिया।

मोदी को महासचिव (संगठन) की भूमिका सौंपी गई। इस महत्वपूर्ण पद पर इससे पहले सुंदर सिंह भंडारी और कुशाभाऊ ठाकरे जैसी दिग्गज हस्तियां रह चुकी थीं. महासचिव (संगठन) के रूप में 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. दोनों चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसने अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार बनाई।

संगठन में रहते हुए मोदी ने नए नेतृत्व को तैयार किया, युवा कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया और चुनाव प्रचार के लिए टेक्नॉलॉजी के इस्तेमाल पर भी जोर दिया. इस सब उपायों के जरिए उन्होंने पार्टी के उस सफर में अपना योगदान दिया, जो सफर दो सांसदों से बढ़कर 1998 से 2004 के बीच केंद्र में सरकार बनाकर देश की सेवा करने तक पहुंचा। अपने संगठनात्मक कौशल के बल पर उन्होंने 1987 में राज्य में ‘न्याय यात्रा’ और 1989 में ‘लोक शक्ति यात्रा’ का आयोजन किया. इन प्रयासों से वर्ष 1990 में पहली बार गुजरात में अल्प अवधि के लिए भाजपा की सरकार का गठन हुआ और फिर 1995 से आज तक वहां भाजपा शासन में है.

वर्ष 1995 में नरेंद्र मोदी को भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के पद पर नियुक्त किया गया एवं 1998 में संगठन के सबसे महत्वपूर्ण पद राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी गई. तीन वर्ष बाद 2001 में पार्टी ने उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी दी. वे 2002, 2007 एवं 2012 में पुनः मुख्यमंत्री चुने गए।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली तीन दशकों में पहली पार्टी बन गई. यह पहली बार था कि किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी ने यह उपलब्धि हासिल की. 26 मई 2014 को पहली बार और 30 मई 2019 को दूसरी बार नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। प्रधानमंत्री के रूप और देश के नेता के तौर पर मोदी जी आज भी सबसे लोकप्रिय हैं।

भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक स्वामी विवेकानन्द

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भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक स्वामी विवेकानन्द

अरविंद जयतिलक

1893 में शिकागो में धर्म सम्मेलन (पार्लियामेंट आफॅ रिलीजन) में स्वामी विवेकानंद ने अपने ओजस्वी विचारों से अतीत के अधिष्ठान पर वर्तमान और वर्तमान के अधिष्ठान पर भविष्य का बीजारोपण कर विश्व की आत्मा को चैतन्यता से भर दिया था। उन्होंने पश्चिमी विचारधारा पर प्रहार करते हुए स्पष्ट कहा था कि ‘मेरी धारणा वेदान्त के इस सत्य पर आधारित है कि विश्व की आत्मा एक और सर्वव्यापी है। पहले रोटी और फिर धर्म। लाखों लोग भूखों मर रहे हैं और हम उनके मस्तिष्क में धर्म ठूंस रहे हैं। मैं ऐसे धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करता, जो अनाथों के मुंह में एक रोटी का टुकड़ा भी नहीं रख सकता।’ उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित अमेरिका और यूरोप के धर्म विचारकों व प्रचारकों को झकझोरते हुए कहा कि ‘भारत की पहली आवश्यकता धर्म नहीं है। वहां इस गिरी हुई हालत में भी धर्म मौजूद हैं। भारत की सच्ची बीमारी भूख है। अगर आप भारत के हितैषी हैं तो उसके लिए धर्म प्रचारक नहीं अन्न भेजिए।’ स्वामी जी गरीबी को सारे अनर्थों की जड़ मानते थे। इसलिए उन्होंने दुनिया को सामाजिक-आर्थिक न्याय और समता-समरसता पर आधारित समाज गढ़ने का संदेश दिया। वे ईश्वर-भक्ति और धर्म-साधना से भी बड़ा काम गरीबों की गरीबी दूर करने को मानते थे। एक पत्र में उन्होंने ने लिखा है कि ‘ईश्वर को कहां ढुंढ़ने चले हो। ये सब गरीब, दुखी और दुर्बल मनुष्य क्या ईश्वर नहीं है? इन्हीं की पूजा पहले क्यों नहीं करते ?’ उन्होंने स्पष्ट घोषणा की थी कि ‘गरीब मेरे मित्र हैं। मैं गरीबों से प्रीती करता हूं। मैं दरिद्रता को आदरपूर्वक अपनाता हूं। गरीबों का उपकार करना ही दया है।’ वे इस बात पर बल देते थे कि हमें भारत को उठाना होगा, गरीबों को भोजन देना होगा और शिक्षा का विस्तार करना होगा। स्वामी जी ने भारत के लोगों को संबोधित करते हुए शिकागो से एक पत्र में लिखा कि याद रखो की देश झोपड़ियों में बसा हुआ है, परंतु शोक! उन लोगों के लिए कभी किसी ने कुछ नहीं किया।’ स्वामी जी गरीबों को लेकर बेहद संवेदनशील थे। उन्होंने गुरु रामकृष्ण परमहंस के स्वर्गारोहण के बाद उनकी स्मृति में ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। मिशन का उद्देश्य गरीबों, अनाथों, बेबसों और रोगियों की सेवा करना था। जब उन्होंने मठ के सन्यासियों के समक्ष यह प्रस्ताव रखा तो उनका भारी विरोध हुआ। सन्यासियों ने तर्क दिया कि हम सन्यासियों को ईश्वर की आराधना करना चाहिए न कि दुनियादारी में पड़ना चाहिए। स्वामी जी सन्यासियों के उत्तर से बेहद दुखी हुए। उन्होंने कहा कि आपलोग समझते हैं कि ईश्वर के आगे बैठने से वह प्रसन्न होगा और हाथ पकड़कर स्वर्ग ले जाएगा तो यह भूल है। आंखे खोलकर देखों की तुम्हारे पास कौन है। स्वामी जी ने दरिद्र को दरिद्र नारायण कहा। उन्होंने कहा कि ‘आप अपना शरीर, मन, वचन सब कुछ परोपकार में लगा दो। तुमको पता है ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अर्थात माता में ईश्वर का दर्शन करो। पिता में ईश्वर का दर्शन करो’ लेकिन मैं कहता हूं ‘दरिद्र देवो भव, मूर्ख देवो भव। अनपढ़, नादान और पीड़ित को अपना भगवान मानो और जानो कि इन सबकी सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।’ उनका मानना था कि मानवता के सत्य को पहचानना ही वास्तव में वेदांत है। वेदांत का संदेश है कि यदि आप अपने बांधवों अर्थात साक्षात ईश्वर की पूजा नहीं कर सकते तो उस ईश्वर की पूजा कैसे करोगे जो निराकार है। एक व्याख्यान में स्वामी जी ने कहा कि जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतध्न समझता हूं, जो उनके बल पर शिक्षित बना और उनकी ओर ध्यान नहीं देता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इन गरीबों, अनपढ़ों, अज्ञानियों एवं दुखियों को ही अपना भगवान मानो। स्मरण रखो, इनकी सेवा ही तुम्हारा परम धर्म है। स्वामी जी आम आदमी के उत्थान के लिए धन का समान वितरण आवश्यक मानते थे। वे इस बात के विरुद्ध थे कि धन कुछ लोगों के हाथों में केंद्रीत हो। स्वामी जी अंग्रेजों द्वारा भारत के संसाधनों के शोषण से चिंतित थे और भारत की दुर्दशा का इसे एक बड़ा कारण मानते थे। स्वामी जी देश की तरक्की के लिए कषि और उद्योग का विकास चाहते थे। वे अकसर परामर्श देते थे कि रामकृष्ण मिशन जैसी संस्थाओं को निःस्वार्थ भाव से गरीबी से जुझ रहे किसानों की दशा में सुधार लाने वाले कार्यक्रम एवं परियोजनाएं हाथ में लेनी चाहिए। स्वामी जी इस मत के प्रबल हिमायती थे कि भारत का औद्योगिक विकास जापान की तरह विशेषताओं को सुरक्षित रखते हुए होना चाहिए। वे चाहते थे कि देश में स्वदेशी उद्योगों की स्थापना हो। एक बार उन्होंने उद्योगपति जमशेद जी टाटा से पूछा था कि आप थोड़े से फायदे के लिए विदेश से माचिस मंगाकर यहां क्यों बेचते हैं? स्वामी जी ने सुझाव दिया कि आप देश में ही माचिस की फैक्टरी और शोध संस्थान स्थापित करें। स्वामी जी के सुझाव का परिणाम रहा कि आगे चलकर जमशेद जी टाटा ने ‘टाटा इंस्टीट्यूट फाॅर रिसर्च इन फंडामेंटल साईंसेज’ की स्थापना की। स्वामी जी देश के आर्थिक विकास और नैतिक मूल्यों को एकदूसरे से आबद्ध चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि भारत के उच्च शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में विज्ञान व प्रौद्योगिकी के साथ वेदांत दर्शन भी समाहित हो। उनकी दृष्टि में वेदांत आधारित जीवन और आर्थिक विकास के बीच गहरा संबंध है। उनका मानना था कि भौतिक विज्ञान केवल लौकिक समृद्धि दे सकता है परंतु अध्यात्म विज्ञान शास्वत जीवन के लिए परम आवश्यक है। आध्यात्मिक विचारों का आदर्श मनुष्य को वास्तविक सुख देता है। भौतिकवाद की स्पर्धा, असंतुलित महत्वकांक्षा व्यक्ति तथा देश को अंतिम मृत्यु की ओर ले जाती है। स्वामी जी भारत को विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए शिक्षा, आत्मसुधार, कल्याण केंद्रीत संगठन और क्रियाशीलता की प्रवृत्ति को आवश्यक मानते थे। स्वामी जी को देश से असीम प्रेम था। शिकागो से वापसी की समुद्री यात्रा के दौरान जब वह 15 जनवरी, 1897 को श्रीलंका का समुद्री किनारे पर पहुंचे और उन्हें बताया गया कि उस तरफ जो नारियल और ताड़-खजूर के पेड़ दिखायी दे रहे हैं वो भारत के हैं, स्वामी जी इतने भावुक हो गए कि जहाज के बोर्ड पर ही मातृभूमि की ओर साष्टांग प्रणाम करने लगे। स्वामी जी ने तीन भविष्यवाणियां की थी, जिनमें से दो-भारत की स्वतंत्रता और रुस में श्रमिक क्रांति सत्य सिद्ध हो चुकी हैं। स्वामी जी ने तीसरी भविष्यवाणी की है कि भारत एक बार फिर समृद्धि व शक्ति की महान ऊंचाइयों तक उठेगा। स्वामी जी का मातृभूमि से तादातम्य संपूर्ण था। वे स्वयं को ‘घनीभूत भारत’ कहते थे। स्वामी जी की शिष्या भगिनी निवेदिता ने अपनी मातृभूमि से उनके सम्मिलन को अभिव्यक्त करते हुए कहा है कि ‘भारत स्वामी जी का गहनतम अनुराग रहा है, भारत उनके वक्ष पर धड़कता है, भारत उनकी नसों में स्पंदन करता है, भारत उनका दिवास्वप्न है, भारत उनका निशाकल्प है, वे भारत का रक्त-मज्जा से निर्मित साक्षात शरीररुप हैं, वे स्वयं ही भारत हैं।’ सच कहें तो स्वामी जी का उदय ऐसे समय में हुआ जब भारत के सामाजिक पुनरुत्थान के लिए राजाराम मोहन राय और शिक्षा के विकास के लिए ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे अनगिनत मनीषी भारतीय समाज में नवचेतना का संचार कर रहे थे। स्वामी जी अपने विचारों के जरिए स्वधर्म और स्वदेश के लिए अप्रतिम पे्रम और स्वाभिमान का उर्जा प्रवाहित कर जाग्रत-शक्ति का संचार किया जिससे भारतीय जन के मन में अपनी ज्ञान, परंपरा, संस्कृति और विरासत का गर्वपूर्ण बोध हुआ। स्वामी जी की दृष्टि में समाज की बुनियादी इकाई मनुष्य था और उसके उत्थान के बिना वे देश व समाज के उत्थान को अधूरा मानते थे। उनका दृष्टिकोण था कि राष्ट्र का वास्तविक पुनरुद्धार मनुष्य-निर्माण से प्रारंभ होना चाहिए। मनुष्य में शक्ति का संचार होना चाहिए जिससे कि वह मानवीय दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त करने में और प्रेम, आत्मसंयम, त्याग, सेवा एवं चरित्र के अपने सद्गुणों के जरिए उठ खड़ा होने का सामथ्र्य जुटा सके। वे सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा को एक बड़ा राष्ट्रीय पाप मानते थे। 

जन्मदिन : लाला अमरनाथ की जादुई गेंद ने किया था डॉन ब्रेडमैन को हिट विकेट

भारतीय क्रिकेट को चेहरा देने वाले महान खिलाड़ी लाला अमरनाथ को आज याद करने का दिन है। लाला ने सिर्फ भारत के लिए पहला शतक जड़ा था बल्कि उन्होने सर्वकालीन महान क्रिकेटर बल्लेबाज सर डॉन ब्रेडमैन को आउट भी किया था। आज यानि 11सिंतबर के दिन 1911 लाला अमरनाथ  का जन्म हुआ था।

भारतीय क्रिकेट के इतिहास में लाला ने साल 1933 में बॉम्बे जिमखाना में इंग्लैंड के खिलाफ पहला टेस्ट मैच खेला था। इस मैच में उन्होंने 118 रन की पारी खेली थी, जो किसी भी भारतीय द्वारा पहली टेस्ट सेंचुरी थी. अमरनाथ आजाद भारत के पहले टेस्ट कप्तान भी थे. उन्होंने अपनी कप्तानी में भारत को पाकिस्तान के खिलाफ 1952-53 में खेली गई पहली आधिकारिक टेस्ट सीरीज में जीत दिलाई थी. भारत ने यह सीरीज 2-1 से जीती थी.

लाला अमरनाथ ने अपने करियर में कुल 24 टेस्ट मैच खेले, जिसमें उन्होंने कुल 878 रन बनाए. उनके नाम कुल 1 शतक और 4 अर्धशतक है. इसके अलावा 186 फर्स्ट क्लास मैचों में उन्होंने 41 की औसत से 10426 रन बनाए हैं. उन्होंने 31 शतक और 39 अर्धशतक जड़ा है। लाला अमरनाथ बेहद ही सटीक लाइन लेंथ से गेंदबाजी करते थे, वो दुनिया के इकलौते गेंदबाज हैं जिन्होंने सर डॉन ब्रैडमैन  को हिट विकेट करने का कारनामा किया है. 1947 में अमरनाथ ने ब्रिसबेन टेस्ट के दौरान ब्रैडमैन को हिटविकेट किया था. अमरनाथ के नाम टेस्ट क्रिकेट में 45 विकेट और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 463 विकेट दर्ज है।

9/11 की 20 बरसी: फिर आतंक के साये में दुनियाँ

9/11 यानि 11 सिंतबर की 20वीं बरसी पर आतंक एकबार फिर दुनियाँ के लिए गंभीर समस्या बन गया है। 20 साल के पहले आज के दिन ही अमेरिका पर ऐसा आतंकी हमला हुआ था जिससे समूची दुनियाँ हिल गई थी। उस दिन अमेरिका  में चार विमान अगवा किए और उनसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के और पेंटागन की इमारतों को नष्ट करने का प्रयास किया गया। हमलों में करीब 3 हजार लोग मारे गए, 25 हजार लोग घायल हुए और करीब 10 अरब डॉलर की सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस घटना के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने आतंक के खात्मे की शपथ ली।

इसके बाद अफगानिस्तान में तालिबान को हटाया गया। अमेरिका सहित पूरी विश्व व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आया। लेकिन आज बीस साल दुनियाँ फिर उस मोड़ पर आकर खड़ी हो गई, जहां आतंक की दहशत थी। आज अफगानिस्तान पर फिर से तालिबान का कब्जा है और दुनियाँ नागरिक अधिकारों के हनन से चिंतित है। दुनियाँ आज फिर उस दो राहे पर खड़ी है जहां से आतंक का नया युग शुरू होने का खतरा बना हुआ है।

क्या हुआ था इस दिन अमेरिका में साल 2001 में इसी दिन अमेरिका (USA) में अलकायदा आतंकियों ने चार व्यवसायिक उड़ानों को अगुआ किया गया, इनमें से दो हवाई जहाज को न्यूयार्क के मैनहैटन स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो टावरों से टकरा कर नष्ट कर दिया. तीसरा विमान मशहूर पैंटागन इमारत से टकराया जिसमें उसे आंशिक नुकसान  हुआ जबकि चौथा विमान पेनसिलवेनिया में क्रैश हो गया।

जनता कहेगी तो राजनीति करेंगी कंगना

राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से राय रखने वाली वलीवुड की क्वीन कंगना रनौत आने वाले समय में राजनीति के मंच पर भूमिका निभा सकती हैं। इसके संकेत उन्होने खुद अपनी आने वाली फिल्म थलाइवी के प्रमोशन के दौरान दी। कंगना ने कहा कि अगर जनता चाहेगी तो राजनीति में जरूर उतरेंगी।

इस फिल्म में उन्होंने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता का किरदार निभाया है। कंगना हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में पहुंचीं. जहां, उन्होंने मंच से इशारे-इशारे में कहा दिया कि वह फिल्म के नायक की तरह बाद में भी राजनीति में उतर सकती हैं. इस दौरान कंगना के साथ फिल्म के प्रोड्यूसर विष्णु वर्धन इंदुरी भी मौजूद थे।

कंगना रनौत अपनी बात को सोशल मीडिया पर डंके की चोट पर रखती हैं. उनके कुछ फैंस को ये पसंद आता है तो कुछ इसी बात के लिए ट्रोल करते हैं. हाल ही में ‘थलाइवी’  की रिलीज से पहले जब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब उनसे पूछा गया, ‘क्या ये फिल्म किसी भी तरह से उनके राजनीति में आने का रास्ता है?’ तो उन्होंने अपने मन की बात कह डाली। एक्ट्रेस ने कहा, ‘फिल्म कई मल्टीप्लेक्स में हिंदी में रिलीज नहीं होगी, मल्टीप्लेक्स ने हमेशा प्रोड्यूसर्स को परेशान करने की कोशिश की है. मैं एक नेशनलिस्ट हूं, देश के बारे में बात करती हूं इसलिए नहीं कि मैं एक पॉलिटिशियन हूं, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं देश की नागरिक हूं. अब रही पॉलिटिक्स में आने की बात तो अभी मैं एक एक्ट्रेस के तौर पर खुश हूं, लेकिन अगर कल को लोग मुझे पसंद करेंगे मुझे सपोर्ट करेंगे, तो यकीनन में पॉलिटिक्स में आना पसंद करूंगी’।

दादा का मिला साथ, धोनी और कोहली करेंगे टी-20 में कमाल

भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदलने वाले दो दिग्गज फिर साथ मिल गए हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष और टीम इंडिया में धोनी की प्रतिभा निखारने वाले सौरभ गांगुली ने एकबार फिर पूर्व कप्तान को बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है। बीसीसीआई  ने टी-20 वर्ल्ड कप के लिए टीम इंडिया का ऐलान कर दिया। इस टीम में कई ऐसे खिलाड़ियों को मोका दिया गया जिनकी उम्मीद किसी को नहीं दी थी. वहीं भारत की वर्ल्ड कप टीम के साथ एक ऐसा नाम भी जुड़ा जिससे सब हैरान हो गए। बीसीसीआई ने पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को भारत की 15 सदस्यीय टीम का मेंटर घोषित किया है। ऐसे में यह संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले समय में धोनी को टीम इंडिया में और भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

महेंद्र सिंह धोनी का सही और सटीक इस्तेमाल करने वाले गांगुली ने फिर उनकी प्रतिभा का सम्मान किया है। सौरव गांगुली की अध्यक्षता वाली बीसीसीआई ने धोनी को टीम इंडिया का मेंटर बनाया है। आईसीसी टूर्नामेंट्स में धोनी की सफलता ने ही उन्हें ये बड़ी जिम्मेदारी दिलाई है। धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने 2007 का टी20 वर्ल्ड कप, 2011 वर्ल्ड कप और 2013 आईसीसी चैम्पियन्स ट्रॉफी पर कब्जा किया था। धोनी की कप्तानी में ही टीम इंडिया ने आखिरी बार आईसीसी की ट्रॉफी अपने नाम की थी।

ऐसे में यह देखा जा सकता है कि महेंद्र सिंह धोनी आने वाले टी20 वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के कोच भी बन सकते हैं। बता दें कि टीम के मौजूदा कोच रवि शास्त्री का कार्यकाल टी20 वर्ल्ड कप के बाद ही खत्म हो रहा है. ऐसे में धोनी अगर टीम इंडिया के नए कोच बन जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। धोनी फिलहाल आईपीएल में चेन्नई टीम से जुड़े हैं। ऐसे में उनको टीम इंडिया का मुख्य कोच नहीं बनाया जा सकता है लेकिन चेन्नई से अलग होने के बाद यह रास्ता खुल सकता है।

मैदान पर धोनी और विराट कोहली की जोड़ी को पहले भी बड़े कमाल करते हुए देखा गया है। कोहली खुद भी धोनी से खासे प्रभावित रहे हैं ऐसे में भविष्य में ये दोनों फिर साथ आ सकते हैं। जिसकी भूमिका खुद दादा यानि सौरभ गांगुली लिख रहे हैं। वो यही चाहते हैं कि टीम इंडिया को धोनी का साथ मिले। जिससे धोनी के साथ मिलकर कोहली कमाल कर दिखाएँ।

88वां जन्मदिन: सदाबहार गायिका आशा भोसलें 78 सालों से कर रहीं वालीवुड पर राज

सदाबहार गायिका आशा ताई यानि आशा भोसले अपना 88वां जन्मदिन मना रहीं हैं। बॉलीवुड में सैकड़ों गाने गा चुकीं आशा ताई का जन्म 8 सितम्बर 2021 को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था। आशा भोसले के पिता दीनानाथ मंगेशकर ऐक्टर और क्लासिकल सिंगर थे। उनकी बड़ी बहन स्वर कोकिला लता मंगेशकर से आशा भोसले शुरू से ही प्रभावित रहीं।

पिता के असमय निधन की वजह से घर की सबसे बड़ी बेटी लता मंगेशकर पर परिवार का बोझ आ गया और उस वक्त वह केवल 14 साल की थीं। लता मंगेशकर परिवार संभालने की इस जिम्मेदारी को निभाने भी लगीं। अपने भाई-बहनों को खूब लाड़-प्यार देने वाली लता की लाइफ में एक ऐसा मौका आया जब वह अपनी छोटी बहन आशा भोसले से काफी नाराज हो गईं।

वजह थी आशा भोसले की शादी। जी हां, भारतीय संगीत की दुनिया में दशकों से राज कर रहीं इन बहनों के बीच तब खूब तकरार हुई जब आशा भोसले ने शादी करने का फैसला ले लिया था। दरअसल समस्या शादी नहीं नहीं बल्कि अपने से उम्र में दोगुने शख्स के साथ शादी का फैसला लता मंगेशकर को मंजूर न हुआ। बाद में आशा और उनके पति के बीच ऐसे रिश्ते बिगड़े कि वो वापस अपनी बहन के घर आ गईं। इसके बाद ही वे अलग हो गए और 1960 में तलाक ले लिया। हालांकि, 1966 में गणपतराव की निधन भी हो गया।

इसके बाद आशा की लाइफ में आरडी बर्मन आए। 1980 में आशा भोसले ने आरडी बर्मन से शादी की। आशा ने बर्मन के निर्देशन में कई यादगार गाने गए। भोसले कहती हैं कि खुद के लिए मेरी कोई योजना नहीं है, लोग मेरे लिए योजना बनाते हैं। वो कहती हैं कि अब मैं 88 साल की हूं। मेरे जन्मदिन में जीवन की यह कुछ बेहतरीन यादें हैं जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती हूं। ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नामांकित आशा भोसले पिछले 78 साल से गायकी की दुनिया में हैं। हाल ही में उन्होंने कुछ गाने रिकॉर्ड किए हैं। आशा कहती हैं कि मुझे पता भी नहीं होता है कि फिल्म कब रिलीज होगी। मैं गाना गाती रहती हूं। जब गाना बन जाता है, तब याद आता है कि मैंने ये गाना गाया था। बता दें कि आशा भोसले पहली भारतीय गायिका हैं जिन्हें 1997 में ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नामांकित किया गया था, उन्हें क्वीन ऑफ इंडीपॉप कहा जाता था।

हिन्दू और मुसलमानों के पूर्वज एक, इस्लाम आक्रांताओं के साथ भारत आया: आरएसएस प्रमुख

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदू और मुसलमान को लेकर बड़ा दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक ही थे और हर भारतीय नागरिक हिंदू हैं. उन्होंने पुणे में ग्लोबल स्ट्रेटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि समझदार मुस्लिम नेताओं को कट्टरपंथियों के खिलाफ दृढ़ता से खड़ा हो जाना चाहिए।

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में अल्पसंख्यक समुदाय को किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हिंदू किसी से दुश्मनी नहीं रखते हैं. उन्होंने कहा, ‘हिंदू शब्द मातृभूमि, पूर्वज और भारतीय संस्कृति के बराबर है. यह अन्य विचारों का असम्मान नहीं है. हमें मुस्लिम वर्चस्व के बारे में नहीं, बल्कि भारतीय वर्चस्व के बारे में सोचना है. भारत के सर्वांगीण विकास के लिए सभी को मिलकर काम करना चाहिए।

मोहन भागवत ने कहा, ‘इस्लाम आक्रांताओं के साथ भारत आया। यह इतिहास है और इसे उसी रूप में बताया जाना चाहिए. समझदार मुस्लिम नेताओं को अनावश्यक मुद्दों का विरोध करना चाहिए और कट्टरपंथियों एवं चरमपंथियों के विरुद्ध दृढ़ता से खड़ा रहना चाहिए. जितनी जल्दी हम यह करेंगे, उससे समाज को उतना ही कम नुकसान होगा।’ आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत बतौर महाशक्ति किसी को डराएगा नहीं. उन्होंने राष्ट्र प्रथम एवं राष्ट्र सर्वोच्च विषयक संगोष्ठी में कहा, ‘हिंदू शब्द हमारी मातृभूमि, पूर्वज और संस्कृति की समृद्ध धरोहर का पर्यायवाची है. इस संदर्भ में हमारे लिए हर भारतीय हिंदू है, चाहे उसका धार्मिक, भाषायी और नस्लीय अभिविन्यास कुछ भी हो.’ उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति विविध विचारों को समायोजित करती है और अन्य धर्मों का सम्मान करती है।

शिक्षक राष्ट्रीय जनमानस का प्रतिनिधि

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अरविंद जयतिलक

गुरुओं के सम्मान का दिन है 5 सितंबर। यह दिन देश भर में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। 1962 में जब डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय गणतंत्र के दूसरे राष्ट्रपति बने तब उनके विद्यार्थियों ने उनका जन्मोत्सव मनाने का विचार किया। लेकिन उन्होंने इस अनुरोध को अस्वीकार कर सुझाव दिया कि अगर वे उनके जन्मोत्सव को शिक्षक दिवस के रुप में मनाएं तो ज्यादा खुशी होगी। तभी से इस दिन को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन अकसर कहा करते थे कि शिक्षक का कार्य केवल शिक्षण संस्थानों की परिधि तक ही सीमित नहीं है। समाज व राष्ट्र के गुणसूत्र को बदलने की जिम्मेदारी भी उसके कंधे पर होती है। इसलिए कि वह राष्ट्रीय जनमानस का प्रतिनिधि होता है। उसके आदर्शवादी मूल्य और सारगर्भित विचारधारा समाज व देश के लिए प्रेरणास्रोत होते हैं। अपने ज्ञान-विज्ञान, दर्शन और चिंतन से भारतीय समाज और राष्ट्र के जीवन में नवीन प्राणों का संचार करने के कारण ही शिक्षक यानी गुरुओं की तुलना ब्रह्मा, विष्णु व महेश से की गयी है। गुरु अर्थात ज्ञान का वो प्रकाशपूंज जो शिष्य के अंधकार रुपी अज्ञान समाप्त करके उसे और सार्थक मनुष्य बनाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि ‘ऊं अज्ञान तिमिररान्धस्य ज्ञानाञजनशलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः’। अर्थात् ‘मैं घोर अंधकार में उत्पन हुआ था और मेरे गुरु ने अपने ज्ञान रुपी प्रकाश से मेरी आंखे खोल दी और मैं उन्हें प्रणाम करता हूं।’ शास्त्रों के अनुसार ‘गु’ का अर्थ है-अंधकार या मूल अज्ञान और ‘रु’ का अर्थ है ‘निरोधक’। यानी गुरु का अर्थ है जो अज्ञान रुपी अंधकार का निवारण करता है। महान संत तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में गुरु की वंदना करते हुए कहा है कि ‘बंदऊ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुबास सरस अनुरागा’। अर्थात् ‘मैं गुरु महाराज के चरणकमलों की रज की वंदना करता हूं जो सुरुचि, सुगन्ध तथा अनुरागरुपी रस से पूर्ण है।’ गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में लिखा है कि-गुरु बिनुभवनिधि तरइ न कोई, जों बिरंचि संकर सम होई। अर्थात भले ही कोई ब्रह्मा और शंकर के समान क्यों न हो, वह भवसागर के बिना जीवन रुपी भवसागर पार नहीं कर सकता। जीवन के आरंभ से ही गुरु की महत्ता को रेखांकित किया गया है। संत कबीर कहते हैं कि ‘हरि रुठे गुरु ठौर हैं, गुरु रुठे नहीं ठौर’। अर्थात भगवान के रुठने पर तो गुरु की शरण रक्षा कर सकती है लेकिन गुरु के रुठने पर कहीं भी शरण नहीं मिलेगा। कबीर कहते हैं कि ‘कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय, जनम-जनम का मोरचा, पल में डाले धोय’ अर्थात कुबुद्धि रुपी कीचड़  से शिष्य भरा है और गुरु का ज्ञान जल है। इनमें इतना सामथ्र्य है कि वे शिष्यों के जन्म-जन्म का अज्ञान पल भर में दूर कर देते हैं। कबीर आगे कहते हैं कि ‘गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट, अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट’ अर्थात मिट्टी के बर्तन समान शिष्य के लिए गुरु कुम्हार की तरह होते हैं। जैसे कुम्हार मिट्टी के घड़े निर्माण के समय अंदर से सहारा देकर और बाहर चोट देकर उसे तैयार करता है, उसी तरह गुरु भी शिष्य को आंतरिक रुप से मजबूत करके उसकी बाहरी सभी बुराईयों को नष्ट करता है। शास्त्रों में गुरु को तीर्थ से भी बड़ा कहा गया है। तीरथ गए तो एक फल, संत मिले फल चार, सदगुरु मिले तो अनंत फल , कहे कबीर विचार। गुरु शिष्य का मार्गदर्शन कर उसके जीवन को उर्जा से भर देता है। जीवन विकास के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गयी है। गुरु की सन्निधि, आशीर्वाद, शिक्षा-दीक्षा और स्नेह-कृपा से जीवन रसमय बन जाता है। लीलारस के रसिकों का दाता श्रीकृष्ण भी सद्गुरु ही है। भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु रुप में शिष्य अर्जुन को संदेश दिया था कि ‘सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज, अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यिा माम शुचः। अर्थात सभी साधनों को छोड़कर केवल नारायण स्वरुप गुरु की शरणागत हो जाना चाहिए। वे उसके सभी पापों को नाश कर देंगे। शोक नहीं करना चाहिए। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में कहा गया है कि जिनके दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होता है वह परमसत गुरु है। गुरु के बिना न आत्मदर्शन संभव है और न ही परमात्मा दर्शन। जप, तप, यज्ञ और ज्ञान में गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है। किसी भी प्रकार की विद्या हो अथवा ज्ञान वह गुरु से ही प्राप्त होता है। सद्गुरु लोककल्याण के निमित्त पृथ्वी पर अवतार स्वरुप हैं। सभी ग्रंथों में गुरु तत्व की उपादेयता का गान किया गया है। वैदिककालीन महान विदुषियां लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, अपाला, गार्गी और मैत्रेयी की रचित ऋचाओं में भी गुरुओं के प्रति सम्मान है। सद्गुरु की महिमा अनंत और अपरंपार है। उपनिषद्ों और स्मृति ग्रंथों में गुरु की महिमा का खूब बखान किया गया है। ईश्वर की सत्ता में विश्वास न रखने वाले जैन व बौद्ध धर्मग्रंथ भी गुरुओं के प्रति श्रद्धावान हैं। वशिष्ठ, याज्ञवल्क्य, पतंजलि और अगस्तय से लेकर तक्षशिला के महान गुरु चाणक्य तक गुरुओं की ऐसी आदर्श परंपरा रही है जिन्होंने अपनी ज्ञान उर्जा से राष्ट्र व समाज की अंतश्चेतना को जाग्रत व समृद्ध किया। प्रत्येक गुरु ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है। वशिष्ठ, विश्वामित्र और सांदिपनी जैसे गुरुओं ने राम व कृष्ण को परमशक्ति व परम वैभव से लैस किया। सनातन धर्म में गुरु शिष्य की परंपरा अनंतकाल पूर्व से चली आ रही है। रामायण, महाभारत और परवर्ती कालों में बड़े-बड़े राजाओं ने गुरु से शिक्षा प्राप्त कर शास्त्र और शस्त्र विद्या का ज्ञान प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य किया है। भारत में गुरुओं की भूमिका केवल अध्यात्म और धार्मिकता तक ही सीमित नहीं रही। देश पर जब भी विपदा आन पड़ी गुरुओं ने राजसत्ता का मार्गदर्शन किया। रामायण व महाभारत काल ही नहीं हर युग में गुरुओं ने अपनी गुरुता का लोहा मनवाया है। परवर्ती काल के गुरुओं ने तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशीला विश्वविद्यालय को वैश्विक ऊंचाई दी। चीनी यात्री ह्नेनसांग ने अपने विवरण में 5 वीं शताब्दी के महान शिक्षकों-धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणपति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, आर्यदेव, दिगनाग और ज्ञानचंद्र इत्यादि का उल्लेख किया है। ये शिक्षक अपने विषयों के साथ-साथ समाज, राज्य, अर्थ, परराष्ट्र, दर्शन व संस्कृति संबंधी विषयों में भी पारंगत, निपुण और ज्ञानवान थे। नागार्जून, असंग, वसुबंधु जैसे महान बौद्ध शिक्षकों की महत्ता को कोई कैसे भूला सकता है जिन्होंने समाज व राष्ट्र को महती दिशा दी। आदिकाल से ही शिक्षक भारतीय शिक्षा, संस्कृति, चिंतन और दर्शन के प्रवाह रहे हैं। आज के आधुनिक युग में भी गुरु की महत्ता में तनिक भी कमी नहीं आयी है। एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए आज भी गुरु का सानिध्य आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि 5 सितंबर को देश भर में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। 1962 में जब डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय गणतंत्र के दूसरे राष्ट्रपति बने तब उनके विद्यार्थियों ने उनका जन्मोत्सव मनाने का विचार किया। लेकिन उन्होंने इस अनुरोध को अस्वीकार कर सुझाव दिया कि अगर वे उनके जन्मोत्सव को शिक्षक दिवस के रुप में मनाएं तो ज्यादा खुशी होगी। तभी से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। गौर करें तो भारतीय शिक्षक का कार्य केवल शिक्षण संस्थानों की परिधि तक ही सीमित नहीं है। बल्कि उसके कंधे पर समाज व राष्ट्र के गुणसूत्र को बदलने की जिम्मेदारी भी होती है। इसलिए कि वह राष्ट्रीय जनमानस का प्रतिनिधि होता है। उसके आदर्शवादी मूल्य और सारगर्भित विचार ही समाज के लिए प्रेरणास्रोत होते हैं। आज के घोर भौतिकवादी और आधुनिकता की दौड़ में जब सभ्य समाज के निर्माण का सवाल पीछे छूटने लगा है ऐसे में गुरु ही आगे बढ़कर समाज गढ़ने के गुरुत्तर उत्तरदायित्व को भलीभांति निभा सकते हैं। एक गुरु ही अपने गुरुत्तर उत्तरदायित्व एवं संवेदनायुक्त आचरण से भारत राष्ट्र व समाज में मूल्यवान संस्कार और उच्च आचरण का भाव विकसित कर राष्ट्रनिर्माण के बीज को वृक्ष में बदल सकता है।

वायरल : स्कूल डेज में इंगलिश टीचर थीं रणवीर का क्रश

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वालीवुड के सुपर स्टार रणबीर कपूर का एक पुराना वीडियो आजकल सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में रणबीर कपूर बता रहे हैं, ‘मैं जब सेकेंड स्टैंडर्ड में था तब इंग्लिश टीचर पर क्रश था। मेरे स्कूल में सभी टीचर्स साड़ी पहनकर आती और प्रेफेसर्स पैंट, शर्ट और टाई पहनकर आते थे। मेरी इंग्लिश टीचर थीं जो स्कर्ट पहनकर आती थीं। उनका नाम मिसेज जॉन था। मुझे याद है कि जब हम बैठते थे और वह टेबल के पीछे बैठती थी। मैं टेबल के पास जाकर घुटनों पर बैठकर उनके पैर देखता था। तब से मुझे उनसे प्यार हो गया था। इस कारण उन्होंने मेरी मम्मी को स्कूल बुला लिया था।’

दूसरी ओर रणबीर कपूर की मां नीतू कपूर और बहन रिद्धिमा कपूर साहनी ने ‘द कपिल शर्मा शो’ में रणवीर के बारे में एक और खुलासा किया। शो में कपिल शर्मा, रिद्धिमा से कहते हैं, ‘हमने एक खबर सुनी थी रिद्धिमा कि जब आप लंदन में पढ़ाई कर रही थीं तो रणबीर ने आपकी काफी सारी चीजें उठाकर अपनी गर्लफ्रेंड्स को दे देते थे।’ रिद्धिमा ने कहा, ‘मैं लंदन से जब हॉलिडे पर वापस आई तो उसकी (रणबीर कपूर) की गर्लफ्रेंड घर पर आई। उसने एक टॉप पहना हुआ था। उसे देखकर मैंने मन में कहा कि ये वाला टॉप नहीं मिल रहा था मुझे। फिर बाद में पता चला कि वो मेरी चीजें निकालकर उसको देता था।’ वर्क फ्रंट की बात करें तो रणबीर कपूर आखिरी बार साल 2018 में फिल्म ‘संजू’ में नजर आए थे। अब रणबीर कपूर, ‘ब्रह्मास्त्र’, ‘शमशेरा’, ‘एनिमल’ और लव रंजन की एक अनाम फिल्म में नजर आएंगे। बताते चलें कि वह फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में पहली बार अपनी गर्लफ्रेंड आलिया भट्ट के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करेंगे।