Monday, December 15, 2025
Home Blog Page 75

CISES  राष्ट्रीय एक्वाटिक चैंपियनशिप में लखनऊ के तैराकों का जलवा

प्रशांत कुमार

Sports editor

लखनऊ। बेंगलुरू में हुए CISES राष्ट्रीय प्रतियोगिता में लखनऊ के गोताखोर एवं तैराकों ने अपना जलवा कायम किया इसमें गोताखोरी में शीतांशु गौतम और ऐला अवस्थी ने स्प्रिंग बोर्ड डाइविंग में स्वर्ण पदक जीता।

कोच पुष्पा मिश्रा ने ये जानकारी देते हुए बताया कि काव्या खन्ना ने कास्य पदक जीता !  वैशाली पाल ने रजत पदक के साथ डाइविंग ओवर ऑल की उपविजेता की ट्रॉफी भी अपने नाम की । तैराकी में अमन श्रीवास्तव ने 200 मी फ्री स्टाइल में रजत पदक तथा यावानिका ने 200 मी बटर फ्लाइ और देवज ने 50 मी बटर फ्लाइ में कांस्य पदक जीता।

दिवाली में हाई-स्पीड 5G टेलीकॉम से रोशन होंगे मेट्रो सिटी

0

इस साल दिवाली तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे कई प्रमुख शहरों में हाई-स्पीड 5G टेलीकॉम सेवाएं शुरू हो जांगी! केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ये संकेत दिये !

उन्होने एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में 5G दूरसंचार सेवाएं बहुत जल्द शुरू की जाएंगी ! और सरकार का लक्ष्य दो साल के भीतर पूरे देश को कवर करना है।

केंद्र सरकार ने अगस्त में दूरसंचार सेवा देने वाली कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटन पत्र जारी किया था।  इसके बाद सरकार ने उनसे 5जी सेवाओं के रोलआउट के लिए तैयार करने के लिए कहा था. इस स्पेक्ट्रम आवंटन के साथ, भारत हाई-स्पीड 5G दूरसंचार सेवाओं को शुरू करने के अंतिम चरण में पहुंच गया है। रिलायंस जियो ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह इस साल दिवाली तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे कई प्रमुख शहरों में हाई-स्पीड 5G टेलीकॉम सेवाएं लॉन्च करेगी।  इसके बाद, दिसंबर 2023 तक देश भर के प्रत्येक शहर, तहसील और कस्बे में अपने 5G नेटवर्क का विस्तार किया जाएगा।

रोजर फेडरर : टेनिस कोर्ट से विदाई के बावजूद पिक्चर हिट है

रोजर फेडरर  की आखिरकार टेनिस कोर्ट से विदाई हो गई लेकिन जलवा अभी भी बाकी है! अपने जोड़ीदार राफेल नडाल के साथ हार के साथ उनका चमकदार करियर भी खत्म हो गया।  इस इमोशनल पल में राफेल नडाल भी उनके साथ आंसू बहाते दिखे।

रोजर फेडरर के करियर पर नजर डालें तो तीसरे सबसे ज्यादा ग्रैंड स्लैम जीतने वाले पुरुष टेनिस खिलाड़ी हैं। वो  इंजरी के चलते वह लंबे समय से टेनिस कोर्ट से बाहर चल रहे थे। ऐसे में उन्होंने लेवर कप में आखिरी मुकाबलेको पूरा किया

लंदन के ब्लैक कोर्ट में फेडरर को देखने के लिए सभी सीटें भरी हुई थीं. जैसे ही नडाल और फेडरर कोर्ट पर पहुंचे तो फैंस ने खड़े होकर फेडरर को सम्मान दिया. पूरे मैच के दौरान दोनों टीमें और टेनिस कोर्ट में मौजूद फैंस फेडरर के हर शॉट पर तालियां बजाते नजर आए।

  • रोजर फेडरर तीसरे सबसे ज्यादा ग्रैंड स्लैम जीतने वाले खिलाड़ी हैं।
  •  उन्होंने अपने करियर में 20 ग्रैंड स्लैंम टाइटल जीते।
  • इस मामले में उनसे आगे केवल राफेल नडाल (22) और नोवाक जोकोविच (21) हैं।
  • टेनिस के ओपन एरा में फेडरर सबसे ज्यादा टाइटल जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी हैं
  •  उनके नाम 103 टाइटल दर्ज हैं. पहले नंबर पर जिमी कॉर्नर्स (109) है।
  • फेडरर दूसरे सबसे ज्यादा सिंगल्स मैच जीतने वाले खिलाड़ी भी हैं।  

11 वीं राष्ट्रीय वोवीनाम प्रतियोगिता : खिलाड़ियों ने दिखाया मार्शल आर्ट का जलवा

पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉक्टर दिनेश शर्मा ने किया विजेताओं का सम्मान

प्रशांत कुमार

स्पोर्ट्स एडिटर

पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉक्टर दिनेश शर्मा ने केडी सिंह बाबू स्टेडियम में चल रही 11 वीं राष्ट्रीय वोवीनाम मार्शल आर्ट प्रतियोगिता में मुकाबले के पहले दिन विजयी खिलाड़ियों को मेडल पहनाकर पुरस्कृत किया।

महिला भार वर्ग में उत्तर प्रदेश की 75 किलोग्राम भार वर्ग में पहली स्वर्ण पदक विजेता समीक्षा सिंह पश्चिम बंगाल की रजत पदक विजेता सुप्रिया श्रेष्ठा, झारखंड की अंकिता पांडे और हरियाणा की प्रतिभा सिंह को कांस्य पदक पहना कर सम्मानित किया।

40 किलोग्राम भार वर्ग में उत्तराखंड की काजल, आसाम की रजिया खातून ने रजत और उत्तराखंड की नेहा यादव ने कांस्य पदक प्राप्त किया।

44 किलोग्राम भार वर्ग में मणिपुर की रोशीना  ने स्वर्ण, आसाम की गुनगुन यादव ने रजत छत्तीसगढ़ पलक साहू व उत्तर प्रदेश कविता देवी ने काश पदक प्राप्त किया।

पुरुष वर्ग में उत्तर प्रदेश के सुशील कुमार ने 81 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक हासिल किया। जबकि उत्तर प्रदेश बी टीम के आशीष सिंह को रजत पदक आसाम के प्रदीप व छत्तीसगढ़ के गोपाल यादव ने कांस्य पदक प्राप्त किए। एसोसिएशन राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण गर्ग ने उप मुख्यमंत्री को पुष्पगुच्छ अंग वस्त्र व स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया।

नामांकन : कांग्रेस अध्यक्ष जीतेगा या गांधी परिवार !

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन आज हो जाएगा ! ये एक हफ्ते तक चलेगा! इस चुनाव में पहली बार राहुल गांधी के बिना लेकिन उनके नाम पर चुनाव हो रहा है! इसलिए गांधी परिवार के बाहर रहने के बावजूद रोचक मुकाबले की उम्मीद है। फिलहाल दिग्विजय सिंह से लेकर मनीष तिवारी तक दिग्गज कांग्रेसी अध्यक्ष कि कुर्सी कि ओर निहार रहे हैं लेकिन मुक़ाबला राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के इंगलिश दा शशि थरूर के बीच होने कि उम्मीद है!

करीब 22 सालों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहा है. इस चुनाव में दिग्गज नेता अशोक गहलोत का पलड़ा सबसे भारी नजर आता है। उन्होंने एनएसयूआई की राजस्थान की इकाई प्रमुख से शुरुआत कर केंद्रीय मंत्री और तीन–तीन बार मुख्यमंत्री तक की कुर्सी संभाली है. साल 2017 में पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को कांग्रेस में दूसरा सबसे अहम पद यानी संगठन महासचिव बनाया. भले ही इस बार के अध्यक्ष चुनाव में गांधी परिवार खुद को तटस्थ बता रहा है लेकिन माना जा रहा है कि गहलोत को गांधी परिवार का विश्वास हासिल है।

विधाता का तिलिस्म : संजीव और दिलीप कुमार ने अमर कर दिया

0

लेखक : दिलीप कुमार

संजीव कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी अदाकार थे. जवानी में भी बुजुर्ग की भूमिका बड़ी सहजता से अदा कर दिया करते थे.  पहले थिएटर में अभिनय की बारीकियां सीखीं. बाद में हिन्दी सिनेमा में पदार्पण किया.आते हुए एक दो फ़िल्मों में उतने प्रभावी नहीं रहे. 1968 में आई फिल्म ‘शिकार’ से अपना सिक्का जमाया. संजीव कुमार इसके बाद रुके ही नहीं फ़िल्मों में एवं ज़िन्दगी में अनवरत दौड़ते रहे. संजीव कुमार जीते जी ही संतृप्त अवस्था को प्राप्त कर चुके थे. यह मुकाम बहुत कम ही कलाकारों को मिला होगा. बाद में हम हिंदुस्तानी, आओ प्यार करें, निशान, अली बाबा चालीस चोर, स्मगलर, राजा और रंक,पति-पत्नी, बादल, नौनिहाल आदि फ़िल्मों में दमदार अभिनय से खुद को स्थापित किया. फिर हरिभाई जेठालाल जरीवाला से  संजीव कुमार बन गए. हिन्दी सिनेमा के हरि भाई ही थे.

बात कर रहा हूं सुभाष घई निर्देशित ‘विधाता’ की 1982 में सुभाष घई ने विधाता फिल्म के लिए अभिनय सम्राट दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, श्रीराम लागू, अमरीश पुरी, मदन पूरी, सुरेश ओबेरॉय, जैसे दिग्गजों की फौज खड़ी कर दी. फिल्म को दिलीप कुमार के इर्द-गिर्द गढ़ा गया था . यह तो तय ही होता था, कि फिल्म में अगर ग्रेट दिलीप कुमार जैसे उस्ताद हों तो दूसरे किसी किरदार को क्या तव्वजो मिलेगी? बिल्कुल नहीं! क्योंकि दिलीप कुमार जैसे अभिनय उस्तादों के सामने अपनी मौजूदगी दर्ज कराना हर किसी के बस की बात नहीं थी.

विधाता फिल्म में अबु बाबा का किरदार छोटा मगर अभिनय की गहराई से बहुत बड़ा ग्रेट संजीव कुमार के कद एवं उनकी शख्सियत को ध्यान में रखकर ही गढ़ा गया था.जवानी में ही त्रिशूल, कोशिश, ज़िन्दगी, मौसम, आँधी, शोले, आदि फ़िल्मों में उम्र से ज्यादा की दमदार भूमिकाएं निभा कर बॉलीवुड में सबसे ज्यादा बहुमुखी प्रतिभा के धनी अभिनेता माने जाने लगे थे. वहीँ सबसे मजबूत पिलर बन गए थे. वहीँ दिलीप कुमार भी अपनी दूसरी पारी शुरू कर चुके थे. विधाता फिल्म की परफॉरमेंस में दिलचस्पी रखने वालों को बस इंतज़ार था, कि दिलीप कुमार – संजीव कुमार कब आमने-सामने होते हैं, और एक्टिंग का कौन सा नया आयाम स्थापित होता है,य़ह देखने वाली बात होगी.

इससे पहले भी हरनाम सिंह रवैल, ने संजीव कुमार को दिलीप कुमार के सामने संघर्ष में अभिनय दिखाने के लिए निगेटिव शेड रोल ऑफर किया. यह रोल अकड़ू जानी राजकुमार मना कर चुके थे. अब कैरियर के शुरुआत में ही उनके सामने थे, ग्रेट अभिनय सम्राट दिलीप साहब, संजीव कुमार ने मौके को भुना लिया. शुरुआती दौर में ही उनके पास अपना अभिनय कौशल दिखाने का सुनहरा मौका था. इससे भी बड़ा चैलेंज था, कि दिलीप कुमार के साथ खुद की प्रतिभा के साथ न्याय कर पाएंगे! अंततः संजीव कुमार ने अपनी अभिनय क्षमता की ऐसी अमिट छाप छोड़ी की दर्शकों एवं समीक्षकों ने खूब सराहा. वहीँ एक ख़बर चलने लगी, जो एंटी दिलीप कुमार थे कि संजीव कुमार ने ग्रेट दिलीप साहब को असहज कर दिया. उस दौर में एक धारणा थी कि दिलीप कुमार अपने से बेहतर किसी को बर्दाश्त नहीं कर सकते, यह सब निरर्थक बातेँ थीं. हालाँकि वो अपना सुझाव दिया करते थे, तो उनका सुझाव न मानने की वज़ह नहीं हो सकती थीं क्यों कि दिलीप साहब से ज्यादा सिनेमैटिक समझ किसको हो सकती थी …. यह उनका कद था. फिर भी अगर ऐसा होता तो संजीव कुमार की दमदार सीन कटवाना उनके लिए बड़ी बात नहीं थी. अगर उन्होंने यह किया होता तो शायद संजीव कुमार को यह प्रतिभा निखारने का मौका न मिलता. ऐसा कुछ भी नहीं है, लेकिन यह दिलीप कुमार ही कह चुके थे, कि हिन्दी सिनेमा को सबसे बेह्तरीन अभिनेता मिल चुका है हरफ़नमौला संजीव कुमार…..

विधाता फिल्म में कुनाल (संजय दत्त) के पिता का पुलिस का फर्ज निभाते हुए इंतकाल हो जाता है. वहीँ उनकी माँ कुनाल को जन्म देकर दुनिया से रुख़सत कर जाती हैं. दिलीप कुमार (शमशेर सिंह) माफ़िया बन जाते हैं, लेकिन वो चाहते हैं कि उनका पोता कुनाल (संजय दत्त) अच्छी तरबियत हासिल करे. अचानक जंगल में उन्हें उसूलवादी अबु बाबा (संजीव कुमार) मिल जाते हैं. दिलीप कुमार कुनाल की जिम्मेदारी अधेड़ अबु बाबा को सौंपकर चले जाते हैं. कुनाल बड़ा हो जाता है, उसको पता चलता है कि मेरे दादा जी शमशेर सिंह (दिलीप कुमार) हैं, लेकिन वह अपना माई – बाप अबु बाबा को ही मानता है, हालांकि दादा के प्रति आदर का भाव है. कहानी में आगे एक मछुवारिन (पद्मिनी कोल्हापुरे) से प्रेम हो जाता है दादा दिलीप कुमार मना कर देते हैं कि यह शादी नहीं हो सकती….. चूंकि अबु बाबा (संजीव कुमार) उसूलों वाले हैं, वो संजय दत्त(कुनाल) का साथ देते हैं. अब लाज़िमी है कि दोनों में मतभेद होगा. यहीं दोनों शमशेर सिंह दिलीप कुमार अबु बाबा (संजीव कुमार) में एक ड्रामेटिक सीन होता है जहां दोनों की दमदार ऐक्टिंग देखने मिलती है.

दादा शमशेर सिंह कहते हैं, अबु बाबा आप अपनी हैसियत से बढ़कर बात कर रहे हैं, मैं आपको कुनाल की जिम्मेदारी की नौकरी से निकालता हूं…. वहीँ संजीव कुमार अबु बाबा जवाब देते हैं बहुत पैसा कमा लिया साहब जी जहां आप ज़िन्दगी के उसूल ही भूल गए दो प्यार करने वालों के प्यार को आप अपने रुतबे की भेट चढ़ा देंगे,संजीव कुमार फिर से दोहराते हैं अरे जाओ साहब आप क्या निकालोगे मुझे नौकरी से मैं ही आपको अपने मालिक की हैसियत से बेदखल करता हूँ. यह हिन्दी सिनेमा की सबसे दमदार अभिनय की बानगी है. सीन खत्म होते तक दिलीप कुमार (शमशेर सिंह) जा चुके थे, लेकिन यह दिलीप कुमार की हार एवं संजीव कुमार की जीत नहीं थी, यह केवल अभिनय का एक नायाब नमूना था.इस सीन के खत्म होते ही संजीव कुमार को बेशुमार तालियां मिलीं. तब तक हिन्दी सिनेमा में एक ख़बर फैल गई थी कि संजीव कुमार ने दिलीप कुमार को फीका कर दिया.

उस दौर में एक बात बहुत मानी जाती थी कि दिलीप कुमार अपनी हैसियत का फायदा उठाकर दूसरों के सीन कटवा देते थे, हालांकि इसमे कोई सच्चाई नहीं है. अगर अबु बाबा यानि संजीव कुमार की यह क्लिप दिलीप साहब कटवाना चाहते तो कटवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. ये सब अफवाहें ही थीं. सिर्फ गॉसिप, लेकिन यह क्लिप विधाता फिल्म की जान थी. अगर यह क्लिप नहीं होती तो शायद फिल्म उतनी तो प्रभावी नहीं होती….. अगर आप फिल्म देखेंगे तो आपको शम्मी कपूर अमरीश पुरी, मदन पूरी संजय दत्त, आदि सब दिखते ही नहीं है… फिल्म में कोई दिखता है तो केवल दिलीप कुमार एवं संजीव कुमार….

फिल्म के क्लाईमेक्स मेंअंत में शमशेर सिंह (दिलीप कुमार), शम्मी कपूर (गुरुबख्श) कुनाल (संजय दत्त) मिलकर अबु बाबा की मौत का बदला लेते हैं. वहीँ पूरी फिल्म में अबु बाबा एक आदर्श मिसाल के रूप में रहे ऐसा लगता था कि फिल्म में अबु बाबा (संजीव कुमार) के बिना क्या दिलीप कुमार का रोल प्रभावी होता?

यूँ तो फिल्म के केन्द्र में दिलीप साहब हैं… लेकिन दिलीप कुमार के होते हुए भी अगर उनके मुकाबले अपनी कड़ी मौजूदगी दर्ज कराने की कला की गहराई केवल संजीव कुमार में ही थी. कई बार दिलीप साहब ने भी कहा था कि जो रोल मैं भी नहीं कर सकता वो रोल बड़ी सहजता से संजीव कुमार कर सकता है. विधाता फिल्म भी संजीव कुमार की बेमिसाल अदायगी का एक नमूना है…. आज भी अगर अभिनय की बारीकियों के लिहाज से देखा जाए तो ‘विधाता’ फिल्म का अभिनय जोड़ी दिलीप साहब – संजीव कुमार के रूप में पूरा का पूरा सिलेबस है. सिनेमेटोग्राफी सीखने वालों के लिए विधाता फिल्म एक पूरा पीएचडी है. वहीँ सुभाष घई जैसे निर्देशक ही मेढक तौल सकते हैं, क्यों कि एक ही फिल्म में दिलीप कुमार, संजीव कुमार, शम्मी कपूर, अमरीश पुरी, मदन पूरी आदि की फौज के साथ न्याय करना आसान नहीं है. फिल्म को आज भी देखा जा सकता है उससे भी ज्यादा सीखा जा सकता है. ‘विधाता’ फिल्म की यादों के साथ सिनेमा का सफ़र जारी रहेगा…..

विधान परिषद शिक्षक व स्नातक क्षेत्र की पांचों सीटों के लिए बीजेपी कि रणनीति

भा

रतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री भूपेन्द्र सिंह व प्रदेश महामंत्री (संगठन) श्री धर्मपाल सिंह ने आगामी शिक्षक व स्नातक विधान परिषद चुनाव के लिए शुक्रवार को पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर बैठक में विजय की रणनीति तय की। इस दौरान उपमुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक सहित विधान परिषद चुनाव के प्रदेश संयोजक, सह संयोजक व क्षेत्रीय संयोजक, निर्वाचन क्षेत्रों के तय किये गए संयोजक व सह संयोजक तथा प्रदेश सरकार के मंत्रियों ने बैठक में मंत्रणा की।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि भाजपा विधान परिषद शिक्षक व स्नातक क्षेत्र की पांचों सीटों को बडे़ अंतर से जीतने के संकल्प के साथ चुनाव में उतरेगी। उन्होंने कहा कि नए मतदाता बनवाने तथा मतदाताओं से सतत् सम्पर्क व संवाद करते हुए चुनाव के दिन मतदान स्थल तक मतदाता को पहुंचाने से लेकर मतगणना तक पार्टी के प्रत्येक नेता, पदाधिकारी व कार्यकर्ता की जिम्मेंदारी तय करना है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी व मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में जन-जन की आत्मनिर्भरता से आत्मनिर्भर राष्ट्र के संकल्प के साथ बड़ी संख्या में लोग पार्टी से जुड़ रहे है। हमें विधान परिषद स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक स्नातक तथा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक शिक्षक को मतदाता बनाना है।

प्रदेश महामंत्री (संगठन) श्री धर्मपाल सिंह ने कहा कि आगामी 1 अक्टूबर से विधान परिषद की पांचों सीटों में मतदाता बनाने का काम प्रारम्भ होगा। उन्होेंने कहा कि सबसे पहले हमें अपने परिवार, मित्रों तथा परिचित परिवारों में जाकर अपेक्षित श्रेणी के मतदाता बनाने का काम सुनिश्चित करना है। विधान परिषद के चुनाव में भी बूथ से लेकर प्रदेश स्तर के सभी कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्रों में मतदाता बनाने के साथ चुनाव की अन्य जिम्मेदारियों से जुडे़गें। केन्द्र सरकार व प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ ही भाजपा की विचारधारा लेकर प्रत्येक मतदाता की दहलीज पर दस्तक देने का काम करेगें। उन्होंने कहा कि पूर्ण विजय के संकल्प के साथ प्रत्येक कार्यकर्ता विधान परिषद चुनाव जीतने के लिए जुटेंगे। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग द्वारा 1 अक्टूबर से प्रारम्भ किये जा रहे स्नातक/शिक्षक मतदाता बनाने के कार्यक्रम में भाजपा की प्राथमिक इकाई तक मतदाता बनाने की कार्ययोजना पर प्राथमिकता से काम करेगी।

इसके साथ ही प्रदेश महामंत्री श्री अमरपाल मौर्य को विधान परिषद चुनाव का प्रदेश संयोजक तथा प्रदेश मंत्री संजय राय, एमएलसी श्रीचन्द्र शर्मा व श्री अजय सिंह को सह संयोजक की जिम्मेदारी सौपी गई।

भारतीय जनता पार्टी विधान परिषद चुनाव की तैयारियों के तहत बरेली-मुरादाबाद स्नातक निर्वाचन क्षेत्र की मुरादाबाद कमिश्नरी की बैठक 27 सितम्बर व बरेली कमिश्नरी की बैठक 28 सितम्बर को होगी। वहीं गोरखपुर-फैजाबाद स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत अयोध्या कश्मिनरी की बैठक 29 सितम्बर व गोरखपुर कमिश्नरी की बैठक 30 सितम्बर को होगी। जबकि इलाहाबाद-झांसी निर्वाचन क्षेत्र की प्रयागराज कमिश्नरी की बैठक 28 सितम्बर, बांदा की बैठक 29 व झांसी की बैठक 30 सितम्बर एवं कानपुर शिक्षक/स्नातक निर्वाचन की संयुक्त बैठक दिनांक 27 सितम्बर को निश्चित की गई है।

विधान परिषद की शिक्षक व स्नातक निर्वाचन की तैयारी बैठक में  प्रदेश सरकार के मंत्री श्री सूर्यप्रताप शाही, श्री योगेन्द्र उपाध्याय, श्री कपिल देव अग्रवाल, श्रीमती गुलाब देवी, श्री दयाशंकर मिश्र ‘दयालु‘, दानिश आजाद अंसारी पांचों निर्वाचन क्षेत्र के क्षेत्रीय संयोजक, स्नातक एमएलसी श्री अरूण पाठक, श्री जयपाल सिंह व्यस्त, श्री देवेन्द्र प्रताप सिंह व श्री हरि सिंह ढिल्लो उपस्थित रहे। 

कानपुर रोया, यूपी रोया, दुनियाँ रोई … गाजोधर के लिए

0

कानपुर के राजू भैया और पूरी दुनियाँ के गवई गजोधर भैया अब हमारे बीच में नहीं है! भारतीय मनोरंजन इंडस्ट्री के जाने-माने कॉमेडियन और एक्टर राजू श्रीवास्तव 42 दिनों कि लड़ाई के बाद जीवन से एचएएआर गए! लेकिन उनकी इस हार ने सबका दिल तोड़ दिया! फिर चाहें पीएम मोदी हों या फिर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सब दिल से दुखी हैं!यूपी में विपक्ष के नेता अखिलेश यादव भी उनको याद कर रहे थे!  

58 साल के राजू लगभग 40 दिनों से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थे और जिंदगी की जंग लड़ रहे थे। 10 अगस्त को दिल्ली के एक होटल में जिम में एक्सरसाइज करते हुए राजू गिर पड़े थे। उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ था, जिसके बाद एम्स में भर्ती करवाया गया था। राजू डॉक्टरों की निगरानी में लगातार वेंटिलेटर पर थे। उनकी तबीयत में उतार-चढ़ाव होता रहा था, मगर होश नहीं आया। हालांकि, परिवार और डॉक्टरों ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। राजू के निधन से मनोरंजन जगत में शोक की लहर छा गयी है। चाहने वाले और दोस्त उन्हें याद करते भावुक हो रहे हैं और श्रद्धांजलि दे रहे हैं। राजू अपने पीछे एक बेटी और एक बेटा छोड़ गये हैं। राजू भारतीय मनोरंजन इंडस्ट्री में स्टैंडअप कॉमेडी के पुरोधा माने जाते थे। उन्होंने फिल्मों के साथ टीवी और कॉमेडी शोज में खूब काम किया था।

 अपनी पार्टी को संभाल नहीं पा रहे हैं अखिलेश: भाजपा प्रदेश अध्यक्ष

लखनऊ । भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी के धरना प्रदर्शन पर हमला बोला है। प्रदेश अध्यक्ष श्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि समाजवादी पार्टी अराजकता में विश्वास रखती है। उनका इतिहास उठाकर देख लीजिए चाहे वह सरकार में रहे हों या विपक्ष में, अराजकता, गुंडागर्दी, बेईमानी और भ्रष्टाचार उनके एजेंडे के प्रमुख विषय हैं।

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है। जनता ने उन्हें विपक्ष के रूप में चुना है। 19 सितम्बर से विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। उन्हें जो भी प्रश्न उठाने हैं वो लोकतांत्रिक मंच से उठाएं। लोकतंत्र में विधानसभा और विधानसभा परिषद अपनी बात कहने का सबसे बेहतर मंच है।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र में संवैधानिक व्यवस्था का पालन करना चाहिए। अगर उन्हें सरकार की आलोचना करनी है तो विधानसभा में उन्हें अपने सवाल उठना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने बिजली, पानी, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य सहित सभी विषयों पर अच्छा कार्य किया है, लेकिन ये उसमें जाना नहीं चाहते हैं। इनके दिमाग में अराजकता है। इसी के आधार पर ये हंगामा मचाकर प्रदेश की जनता का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं। जनता इनके सारे विषय समझ चुकी है।

श्री सिंह ने सपा अध्य्क्ष पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि अखिलेश कहां हैं, उनके गठबंधन के सहयोगी कहां हैं? वो अपना परिवार, कुनबा और गठबंधन के सहयोगियों को सम्हाल नहीं पा रहे हैं। अपनी पार्टी को संभाल नहीं पा रहे हैं। इन विषयों से ध्यान भटकाने के लिए अराजकता फैला रहे हैं। प्रदेश में कानून का राज है और सरकार उसी अनुरूप कार्यवाही कर रही है।

दिवस : दुनियाँ के माथे की बिंदी अपनी हिन्दी

अरविंद जयतिलक

आज हिंदी दिवस है। इस दिन के बहाने हम वर्ष भर होने हिन्दी के आयोजन को याद करने जा रहे हैं! 1975 में नागपुर में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ। तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा हिन्दी आज दुनियाँ भर अपनी लोकप्रियता के लिए जानी जाएगी! संयुक्त राष्ट्र से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार देश के गौरव का कारण बनेगा ! हिंदी के प्रचार-प्रसार और वैश्विक स्वीकार्यता का ही नतीजा है कि आज वह अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ लोकप्रियता का आसमान छू रही है। वैश्विक स्तर पर यूजर्स के लिहाज से 1952 में हिंदी पांचवे पायदान पर थी, जो अस्सी के दशक में चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद तीसरे स्थान पर आ गयी है। 1999 में मशीन ट्रांसलेशन शिखर बैठक में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजुमि तनाका द्वारा पेश नए भाषायी आंकड़ों के मुताबिक अब चीनी भाषा के बाद हिंदी दूसरे स्थान पर है। यह आश्चर्य नहीं जब आने वाले दिनों में हिंदी चीनी भाषा को पछाड़कर शीर्ष पर पहुंच जाए। एक आंकड़े के मुताबिक आज विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं और इससे कहीं ज्यादा समझते हैं। आज दुनिया के 40 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई हो रही है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में हिंदी की धूम मची है और यहां 30 से अधिक विश्वविद्यालयों में भाषायी पाठ्यक्रम में हिंदी को महत्वपूर्ण दर्जा हासिल है। ‘लैंग्वेज यूज इन यूनाइटेड स्टेट्स-2011’ की हालिया रिपोर्ट से भी उद्घाटित हुआ है कि अमेरिका में बोली जाने वाली टाॅप दस भाषाओं में हिंदी भी है और इसे बोलने वालों की संख्या 6.5 लाख से उपर है। अमेरिकी कम्युनिटी सर्वे की रिपोर्ट बताती है अमेरिका में हिंदी 105 फीसद की रफ्तार से आगे बढ़ रही है। अमेरिका में 1875 में ही कैलाग ने हिंदी भाषा का व्याकरण तैयार किया। अमेरिका के अलावा यूरोपिय देशों में भी हिंदी का तेजी से विकास हो रहा है। इंग्लैण्ड के लंदन, कैम्ब्रिज और यार्क विश्वविद्यालयों में हिंदी को चाहने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। पहले से कहीं ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। आज अगर प्रवासिनी, अमरदीप और भारत भवन पत्र-पत्रिकाएं अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं और उसके पाठकों की तादाद बढ़ रही है तो यह हिंदी की बढ़ती स्वीकार्यता और लोकप्रियता का ही कमाल है। जर्मनी के हीडलबर्ग, लोअर सेक्सोनी के लाइपजिंग, बर्लिन के हम्बोलडिट और बाॅन विश्वविद्यालय में भी हिंदी भाषा को पाठ्यक्रम के रुप में शामिल किया गया है। एक दशक से रुस के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी साहित्य पर शोध हो रहे हैं। यहां हिंदी का बोलबाला बढ़ा है। अनेक रुसी विद्वानों ने हिंदी साहित्य का अनुवाद किया है। इनमें से एक तुलसीकृत रामचरित मानस भी है जिसका अनुवाद प्रसिद्ध विद्वान वारान्निकोव द्वारा किया गया है। यह तथ्य है कि रुस में हिंदी गं्रथों का जितना अनुवाद हुआ है उतना शायद ही विश्व में किसी भाषा का हुआ हो। जर्मन के लोग भी हिंदी को एशियाई आबादी के एक बड़े तबके से संपर्क साधने का सबसे बड़ा हथियार मानते हैं। यहां जानना जरुरी है कि जर्मनी में भारतीय भाषा संस्कृत को भी गौरव हासिल है। कई संस्कृत ग्रंथों का जर्मन भाषा में अनुवाद हुआ है। हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता का ही आलम है कि वेस्टइंडीज के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ की स्थापना की गयी है। एशियाई देश जापान में हिंदी भाषा का बहुत अधिक सम्मान है। मजेदार बात यह भी कि जापान की यात्रा पर जाने वाले भारतीय राजनेता जापान में हिंदी भाषा में अपने विचार व्यक्त करते हैं। गत माह पहले जापान यात्रा पर गए भारतीय प्रधानमंत्री ने भी अपने विचार हिंदी में व्यक्त किए और उससे न सिर्फ जापान बल्कि विश्व बिरादरी भी प्रभावित दिखी। जापान की दो नेशनल यूनिवर्सिटी ओसाका और टोकियो में स्नातक और परास्नातक स्तर पर हिंदी की पढ़ाई की व्यवस्था है। प्रोफेसर दोई ने टोकियो विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की स्थापना की है। रुस की तरह जापान में भी हिंदी साहित्य का अनुवाद हुआ है। प्रोफेसर तोबियोतनाका ने भीष्म साहनी के उपन्यास तमस का जापानी में अनुवाद किया है। प्रोफेसर कोगा ने ‘जापानी-हिंदी कोष’ की रचना की है। उन्होंने गांधी जी की आत्मकथा का भी जापानी में अनुवाद किया है। प्रोफेसर मोजोकामी हर वर्ष हिंदी का एक नाटक तैयार करते हैं और उसका मंचन भारत में करते हैं। महात्मा गांधी और टैगोर के अनन्य भक्तों में से एक साइजी माकिनो जब भारत आए तो हिंदी के रंग में रंग गए। उन्होंने गांधी जी के सेवाग्राम में रहकर हिंदी सीखी। गौर करने वाली बात यह कि जापान और भारत का लोकसाहित्य समान है। मणिपुर और राजस्थान की लोककथाएं जापान की लोककथाओं जैसी है। गुयाना और माॅरिशस में भी भारतीय मूल के लोगों की संख्या सर्वाधिक है। यहां प्राथमिक स्तर से लेकर स्नातक स्तर पर हिंदी के पठन-पाठन की समुचित व्यवस्था है। मारीशस में अंग्रेजी राजभाषा है। फ्रेंच बोलने वालों की तादात अच्छी है। लेकिन हिंदी की लोकप्रियता में कमी नहीं है। यहां बहुत पहले ही हिंदी सचिवालय की स्थापना हो चुकी है और ढेरों हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। इसी तरह फिजी, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका में भी हिंदी का जलवा कायम है। विगत वर्षों में खाड़ी देशों में हिंदी का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ है। वहां के सोशल मीडिया में हिंदी का दखल बढ़ा है और कई पत्र-पत्रिकाओं को आॅनलाइन पढ़ा जा रहा है। संयुक्त अरब अमीरात में हिंदी एफएम चैनल लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। नए-पुराने हिंदी गीतों को चाव से सुना जा रहा है। हिंदी फिल्मों ने भी यहां धूम मचा रखी है। बाॅलीवुड स्टार अपनी फिल्मों के प्रचार-प्रसार के लिए अकसर इन देशों में शो आयोजित करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से दुबई में लगातार हिंदी कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है जो अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धि है। हिंदी भाषा की यह असाधारण उपलब्धि कही जाएगी कि जिन देशों में भाषा को विचारों की पोषाक और राष्ट्र का जीवन समझा जाता है वहां भी हिंदी तेजी से अपना पांव पसार रही है। गौरतलब है कि हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया स्विटजरलैंड, स्वीडन, फ्रांस, नार्वे, जापान, इटली, मिस्र, कजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, कतर और अफगानिस्तान, रुस और जर्मनी अपनी भाषा को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। वे इसे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़कर देखते हैं। लेकिन इन दशों में हिंदी को भरपूर स्नेह और सम्मान मिल रहा है। यह हिंदी भाषा के लिए बड़ी उपलब्धि है। आज दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं जहां भारतीयों की उपस्थिति न हो और वहां हिंदी का तेजी विस्तार न हो रहा हो। एक आंकड़ें के मुताबिक दुनिया भर में ढ़ाई करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय 160 से अधिक देशों में रहते हैं। यह सुखद है कि वह अपनी भाषा व संस्कृति से जुड़े हैं और हिंदी के फैलाव में योगदान कर रहे हैं। गौर करें तो बहुराष्ट्रीय देशों की कंपनियां भी अपने-अपने देशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए सरकारों पर दबाव बना रही हैं। दरअसल उनका मकसद हिंदी के जरिए एशियाई देशों में अपनी व्यपारिक गतिविधियों को बढ़ाना है। यह स्वीकारने में हिचक नहीं कि बाजार ने भी हिंदी की स्वीकार्यता को नई उंचाई दी है। यह सार्वभौमिक सच है कि जो भाषाएं रोजगार और संवादपरक नहीं बन पाती उनका अस्तित्व खत्म हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में तकरीबन 6900 मातृभाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से तकरीबन 2500 मातृभाषाएं अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं। इनमें से कुछ को ‘भाषाओं की चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची’ में रख दिया गया है। दुनिया भर में तकरीबन दो सैकड़ा ऐसी मातृभाषाएं हैं जिनके बोलने वालों की तादाद महज दस-बारह है। आज अगर मैक्सिकों की अयापनेको, उक्रेन की कैरेम, ओकलाहामा की विचिता, इंडोनेशिया की लेंगिलू भाषा अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं तो इसका मूलकारण यही है कि वह रोजगारपरक तथा संवाद की भाषा नहीं बन सकी हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की चमक प्रमाणित करती है कि संसार में उसकी प्रतिष्ठा और उपादेयता बढ़ी है और वह तेजी से वैश्विक भाषा बन रही है।