समाधान परक पत्रकारिता के लिए अभियान चलाएगा ब्रह्माकुमारीज
नई दिल्ली, 30 दिसंबर। ”समाधान परक पत्रकारिता समय की मांग है। अभी तक हम समस्या केंद्रित पत्रकारिता करते रहे हैं, जबकि जरुरत इस बात की है कि हम समाधान केंद्रित पत्रकारिता करें। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर समाज को समाधान परक पत्रकारिता नामक अमृत की आवश्यकता है।” यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की दिल्ली जोन मीडिया विंग द्वारा आयोजित विशेष बैठक के दौरान व्यक्त किए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर विचार व्यक्त करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि समाज को सूचित, शिक्षित और प्रेरित करना पत्रकारिता का धर्म है। जनता से जुड़े मुद्दे और देश के सवालों की गंभीर समझ पाठकों और दर्शकों में पैदा करना मीडिया की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया के तमाम देश प्रगति और विकास की ओर तेजी से बढ़ते भारत को एक नई उम्मीद से देख रहे हैं। आज भारत की पहचान बदल रही है और ‘सॉल्यूशन बेस्ड जर्नलिज्म’ की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है।
बैठक के विशिष्ट अतिथि और यूनीवार्ता न्यूज एजेंसी के संपादक श्री मनोहर सिंह ने कहा कि वर्तमान में हो रही पत्रकारिता से पत्रकार संतुष्ट नहीं हैं। हमें चाहिए कि स्थानीय पत्रकारों के लिए कार्यक्रमों का आयोजन कर उन्हें समाधान परक पत्रकारिता की जानकारी दी जाए। साथ ही नए आने वाले पत्रकारों पर विशेष ध्यान देने की भी आवश्यकता है।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी बी.के. सुशांत, दिल्ली क्षेत्रीय प्रभारी बी.के. सुनीता एवं मीडिया विंग के दिल्ली जोनल ऑफिस से जुड़े अन्य साथियों ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा समाधान परक पत्रकारिता के लिए नए साल में एक विशेष अभियान चलाया जाएगा। इस अभियान की जानकारी देते हुए राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी बी.के. सुशांत ने बताया कि हम कई मीडिया संस्थान तथा शिक्षण संस्थानों के संपर्क में हैं। हम विश्वविद्यालयों के सहयोग से पत्रकारिता के विद्यार्थियों को समाधान स्वरूप पत्रकारिता का महत्व बताने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करने जा रहे हैं। समाचार पत्रों में समाधान परक पत्रकारिता को जगह मिले, इसके लिए भी हमारे प्रयास जारी हैं।
मोदी के भाषण का निराला अंदाज सुन मुरीद हुए कनपुरिया
ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको….
जगदीश जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
समझ तो गए हुईहें न, हम किसकी बात कर रहे हैं। अंदाज गजब का, लोकल कनेक्टीविटी लाजवाब। काशी गए तो पूर्वांचली, अयोध्या पहुंचे तो अवधी और केदारनाथ पहुंचे तो पहाड़ी में सुनने आये लोगों से सीधा संवाद। जी हां, बात मोदी जी की हो रही है, देश के प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी की। मंगलवार को कानपुर के निरालानगर में उनका कनपुरिया अंदाज तो और भी निराला दिखाई दिया। कानपुर के लोग मुरीद हो गए। चारों ओर यही चर्चा झाड़े रहे कलट्टरगंज।
मोदी जी, कानपुर में दो बड़े कार्यक्रमों में शामिल होने पहुंचे थे। पहला तो विशुद्ध एकेडेमिक, जिसमें आईआईटी के दीक्षांत समारोह में ऑनलाइन ही डिग्रियां बांटीं। डिग्रीधारकों को भविष के लिए रोडमैप सुझाया। दूसरा कार्यक्रम वह, जिसमें कानपुर के आम लोगों से सीधा जुड़ाव बना। बीना पेट्रोलियम रिफाइनरी की पाइप लाइन का कानपुर-पनकी से कनेक्टीविटी और शहर में मेट्रो कनेक्टीविटी का शुभारंभ। खुद भी मेट्रो में यात्रा कर महसूस किया कि इसमें बैठ कर कनपुरिया कैसा महसूस करेंगे। मेट्रो के चालू हो जाने के बाद आईआईटी से मोतीझील के सफर को अब जाम से मुक्ति मिला करेगी। कभी पूरब का मेनचेस्टर कहा जाने वाला यह शहर कपड़ा मिलों के पराभव के कई वर्षों बाद अब दूसरे स्वरूप में अपने गौरव को फिर से पा सकेगा। वरना तो कानपुर की ट्रैफिक व्यवस्था और कानपुर के जाम को शहरवासी तो अपनी किस्मत मान ही चुके थे। बाहरी लोग भी परेशान हुए बिना नहीं रहते। इन सब दुश्वारियों के बावजूद कानपुर शहर और शहरवासियों के उत्साह में कमी कभी नहीं देखी गई। बिलकुल वही अंदाज रहता- झाड़े रहो कलट्टरगंज।
कानपुर की इसी विशेषता को प्रधानमंत्री मोदी ने याद किया। अपने भाषण की शुरुआत में ही उन्होंने क्रांतिवीरों की धरती को नमन किया, साथ ही यह भी बताया कि आधुनिकनिक कालखंड में दीनदयाल उपाध्याय, सुंदर सिंह भंडारी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को कानपुर ने ही गढ़ा। मोदी जी की बातें सुनने बात लगा कि अटलजी की हाजिर जवाबी शायद इसी धरती पर प्रस्फुटित हुई हो। इसी हाजिर जवाबी का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री पूरी तरह कनपुरिया रौ में आ गए। बोले कानपुर की हाजिर जवाबी की तो तुलना ही नहीं की जा सकती। उन्होंने जनसभा के श्रोताओं से सीधे कनेक्ट होते हुए पूछ डाला- यहीं तो यहीं तो हैं ठग्गू के लड्डू, क्या लिखा होता है वहां? फिर बात आगे बढ़ाते हैं- ऐसा कोई सगा नहीं…. ऐसा कोई सगा नहीं…. फिर वह खामोशी धारण कर लेते हैं। आगे का वाक्य जनसभा ही पूरा कर देती है, प्रधानमंत्री कहते हैं मैं तो कहूंगा कानपुर ही है- जहां ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको दुलार न मिला हो।
अब प्रधानमंत्री फ्लैश बैक में चले जाते हैं। कहते हैं- जब संगठन के काम के लिए यहां आता था तो खूब सुनता था, झाड़े रहो कलट्टरगंज। वह दोहराते हैं- झाड़े रहो कलट्टरगंज। आज की नई पीढ़ी इसे बोलती है कि नहीं। कानपुर की डबल खुशी में शामिल होने वरुण देव भी खुद आ गए। आज मंगलवार है और पनकी वाले हनुमानजी के आशीर्वाद से यूपी के विकास में एक और अध्याय जुड़ा है। कानपुर की डबल कनेक्टीविटी का दिन है। बीना पाइप लाइन और मेट्रो से कानपुर कनेक्ट हो गया है। पेट्रोलियम पाइप लाइन से यूपी के कई जिलों से कनेक्ट होगा। मोदी के इसी अंदाज से कनपुरिया बेहद खुश हैं। कनपुरिया मिजाज को अब और बड़ा प्लेटफार्म मिलेगा, बोले तो मेट्रो जैसा। ‘समझ तो गए हुईहें’ वाले अन्नू अवस्थी का अंदाज कुछ सोशल मीडिया क्रिएटरों की प्रतिभा को आगे ला रहा है। अब मोदी जी के भाषण के बाद इस फील्ड में अचानक बाढ़ आ जाई तो कौनू बात नहीं। बस, इत्तू ही कहे का है, झाड़े रहो कलट्टरगंज।
समुद्र की लहरे तो बहुत आती हैं एक ऐसी भी आती है, जो निशाँ छोड़ जाती है, वही स्टारडम राजेश खन्ना का है जो लकीर आज भी कोई क्रॉस कर नहीं कर सका, पहली बार किसी भी बॉलीवुड स्टार के लिए सुपरस्टार शब्द का प्रयोग किया गया, राजेश खन्ना 70-80 के दशक में वो स्टारडम हासिल कर चुके थे, बॉलीवुड में इस हद तक कि दिवानगी उनके प्रशंसकों में कभी देवानंद की हुआ करती थी, उस स्टारडम की लकीरें राजेश खन्ना ने क्रॉस किया,…. देवानंद के बाद पर्दे पर रोमांस को अपने अंदाज़ में पेश किया, और वह परिभाषा ही बन चुका था, यह करिश्मा राजेश खन्ना का था….यूँ तो उनकी पहली फिल्म आखिरी खत थी…. बट पहली फिल्म उनके लिए “आराधना ” रही जिसमें उनका छोटा सा रोल था… माँ केन्द्रित फिल्म शर्मिला टैगोर अभिनीत फिल्म फिर डबल रोल हो जाने के बाद राजेश खन्ना ने “आराधना ” तो अपने नाम की अपितु रातों – रात बुलंदियों तक पहुंच गए,
किसी भी अभिनेता के स्टार से सुपरस्टार तक के सफर में अच्छी स्क्रिप्ट मार्केट में विश्वसनीय निर्देशक एवं म्यूजिक डायरेक्टर, कंपोज़र, उससे भी ज्यादा प्लेबैक सिंगर ये सब सीढ़ियां होते हैं, जो सफलता का स्वाद चखवा सकते हैं, राजेश खन्ना ने सच में इस सब के साथ अच्छा सामंजस्य स्थापित किया था, एसडी आनन्द, किशोर कुमार एवं राजेश खन्ना की तिकड़ी ने बॉलीवुड में पार्श्व संगीत में सबसे ज्यादा हिट दिया… आज भी राजेश खन्ना अभिनीत सदाबहार गीत सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं,
साथी अभिनेत्रियों में शर्मिला टैगोर, मुमताज़, स्मिता पाटिल के साथ सबसे ज्यादा राजेश खन्ना को पसंद किया गया है, सीनियर वहीदा रहमान जी, आशा पारेख जी के साथ पर्दे पर रोमांस राजेश के लिए मील का पत्थर साबित हुआ, ऋषिकेश मुखर्जी, चेतन आनन्द यश चौपड़ा, बी आर चोपड़ा, जैसे टैलेंटेड निर्देशक का साथ भी राजेश खन्ना को बुलंदियों तक ले गया, लगातार 16 फ़िल्में सुपरहिट देने के लिए राजेश याद किए जाते हैं, आज भी वो रिकॉर्ड कायम है, जो टूटा नहीं है,आनन्द, अमरप्रेम, दाग, हाथी मेरे साथी, दो रास्ते, बावर्ची, सच्चा, झूठा, कटी पतंग, आराधना, जैसी उम्दा फ़िल्में ऋषिकेश मुखर्जी, यश चोपड़ा, बी आर चोपड़ा, चेतन आनन्द जैसे टैलेंटेड निर्देशक आदि की छत्रछाया में बनी जो इतिहास है।
ल़डकियों में दिवानगी देवानंद की रही है, वो काले कपड़े पहनकर फ़िल्में बनाने के लिए बैन कर दिए गए थे, क्योंकि लड़कियां काले कपड़े में देखकर जान देती थीं, इस कदर दूसरी दफा राजेश खन्ना को स्टारडम मिला… उनके दौर की महिलाएँ बताती हैं कि पर्दे पर राजेश खन्ना की फ़िल्म देखने सज-संवर कर ऐसे जाती जैसे वो राजेश खन्ना के साथ डेट पर जा रही हों उनकी ऐसे महसूस होता था कि वो डायलॉग मुझे बोल रहे हैं, यह उस दौर की हर लड़की की फिलिंग थी, वो व्यक्त भी करती रही हैं, राजेश खन्ना के गाड़ी की धूल से माँग भरती हुई लड़किया भी थीं.. उनकी सफेद कार को इस कदर चुंबन देती थीं, उनकी कार लाल हो जाती थी,… राजेश खन्ना को खून से खत लिखने वाली, एवं उनके फोटो से शादी करने वाली लड़कियां भी थीं, ऐसे स्टारडम स्नेह सपनों में ही हो सकता है… बट यह सच्चाई है,
ब्लॉकबस्टर फिल्म “आनन्द” जो राजेश खन्ना की सबसे बड़ी हिट मानी जाती है, जो बॉलीवुड की सफलतम फिल्म है, फिल्म के अन्त में राजेश यानी जिंदादिल युवक आनन्द की म्रत्यु होती है, तब अमिताभ को डॉ, दोस्त की भूमिका में रोने वाली ऐक्टिंग करना था, तो अमिताभ असहज हो गए थे। उन्होंने फिल्म डायरेक्टर से कहा कि मैं एक नया अभिनेता सुपरस्टार राजेश खन्ना के सामने रोते हुए कैसे अभिनय कर सकूँगा जो कि वो मर चुके होंगे। तब डायरेक्टर ने अमिताभ का आत्मविश्वास जगाया की समझो राजेश सचमुच मर गए… फिर अमिताभ का अभिनय एवं आनन्द फिल्म दोनों इतिहास हैं।
सुपरस्टार सलमान खान के पिता प्रसिद्ध रायटर सलीम खान एक किस्सा बताते हैं, कि मेरे आँखों देखा हाल है, एक बार मैं मुंबई ताज होटल में शामिल होने गया था, मैं अंदर जा रहा था, राजेश खन्ना निकल रहे थे, एक साथ दिलीप कुमार, देवानंद, राजकपूर सहित पूरे बॉलीवुड के दिग्गज खड़े पॉज दे रहे थे,इस तिकड़ी का मतलब ही बॉलीवुड होता था, एनाउंसमेंट हो रही थी, राजेश खन्ना आ रहे हैं, पूरे कैमरे राजेश खन्ना की ओर घूम गए थे, चाल – ढाल क्या थी अपनी हवा में बहने वाला नवयुवक जिसकी तब तीन फ़िल्में ही रिलीज हुई थीं, बाद में वही आत्मविश्वास से लबरेज युवा पहला सुपरस्टार बना।
राजेश खन्ना के बारे में फिल्म समीक्षक एवं उनके क़रीबी बताते हैं कि वो एरोगेंट थे, समय के पाबंद नहीं थे, वो अपनी हवा में बहते थे, आम तौर पर कहा जाता है कि इस स्वभाव का आदमी बहुत ज्यादा हासिल नहीं कर सकता… फिर भी उन्होंने अपने फिल्मी जीवन के लिए अपने लाइफस्टाइल में कोई बदलाव नहीं किया, यह भी उनके वक़्त बदलने या सितारे गर्दिश मे जाने का कारण रहा जिसे कहा जाता है, राजेश खन्ना अपने स्टारडम को बरकार नहीं रख सके… बहरहाल अपना – अपना मत एवं तजुर्बा है।
राजेश खन्ना के गिरते ग्राफ को लेकर अमिताभ बच्चन के बढ़ते स्टारडम को माना गया है… जिससे राजेश खन्ना डिप्रेस्ड हो गए… हकीकत यह है, कि कि इमर्जेंसी के दौरान एंग्रीयंगमैन अमिताभ ने रोमांस से हटकर सिनेमा को गढ़ा एवं राजेश खन्ना ने अपने आप से समझौता नहीं किया रोमांस करते रहे और उनका बॉलीवुड से लगभग पैक-अप हो गया…. राजेश खन्ना के परिवार के बारे में ज्यादा नहीं लिखूँगा पर्सनल लिखना मुझे लगता है लेखनी नहीं है, फिर भी उनके जीवन को देखकर लगता है, वो अपने दुःख के दिनों बहुत एकाकी हो गए थे.. कैंसर ने उन्हें दबोच लिया था…
राजेश खन्ना की जीवनी एवं उनके सामाजिक – पारिवारिक पृष्ठभूमि पढ़ने के बाद वैसे व्यक्तिगत रूप से कोई भी कहानी पढ़ते हुए उसमें खुद घुस जाता हूँ… कभी – कभी निकलना मुश्किल हो जाता है, राजेश खन्ना के साथ जो हुआ… उससे मुझे अपने आसपास के अनुबंधों पर से विश्वास उठने वाला था… विश्वास तो उठा नहीं अपितु उस सुपरस्टार के कैफ़ियत के दिनों को महसूस करना भी मुश्किल है,… गनीमत है मैं राजेश खन्ना नहीं…
राजेश का एक पुराना इंटरव्यू पढ़ रहा था… वो अपने कैफ़ियत के दिनों का जिक्र करते हैं, वो “साहिर लुधियानवी ” का शेर हर महफिल हर इंटरव्यू आदि बार – बार बोलते पाए गए हैं..
“इज्जत ए शोहरत ए उल्फत ए सब कुछ इस दुनिया में रहता नहीं,
आज मैं हूँ जहां कल कोई और था, ये भी एक दौर है वो भी एक दौर है ” राजेश खन्ना के घर जन्मदिन पर एक ट्रक गुलदस्ते आते थे, घर गुलजार हो जाता था, पता नहीं किस किस ने भेजे एक जन्मदिन सुपरस्टार ने ऐसा भी देखा गुलदस्ता तो एक भी नहीं आया, तब लगता है, शेर ठीक ही बोलते थे, सच ही किसी ने कहा है, प्रशंसक भी वक़्त के पाबंद होते हैं…एकाकी हो चुके राजेश खन्ना को कैंसर ने जकड़ ने लिया था, एक दिन कहा मैं राजेश खन्ना नहीं बन सकता, मेरा टाइम ओवर हो गया… बोलते हुए खामोश हो गए…
भारत की धारदार कूटनीति और सधी हुई रणनीति से एक बार फिर पड़ोसी देश पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। पांच मुस्लिम देशों तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान ने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) की जगह भारत-मध्य एशिया को तरजीह देकर जता दिया है कि उसकी शीर्ष प्राथमिकता में पाकिस्तान नहीं बल्कि भारत है। उल्लेखनीय है कि गत दिवस अफगानिस्तान केंद्रित दो बैठकों पर दुनिया की निगाह जमी हुई थी और वे देखना चाहते थे कि अफगानिस्तान से सटे मध्य एशिया के देश भारत और पाकिस्तान में किसको सर्वाधिक तरजीह देते हैं। एक बैठक पाकिस्तान की मेजबानी में ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) देशों के विदेश मंत्रियों की हुई जबकि दूसरी बैठक भारत और मध्य एशिया के बीच हुई। ध्यान देना होगा कि पाकिस्तान की मेजबानी वाले ओआईसी में सिर्फ 20 देशों के मंत्री शामिल हुए और शेष ने अपने दूत भेजे। वहीं भारत और मध्य एशिया के बीच संपन्न वार्ता में पांचों मुस्लिम देशों के विदेश मंत्री शामिल हुए। इससे साफ जाहिर होता है कि मध्य एशिया के देश अफगानिस्तान केंद्रित समस्या से निपटने में पाकिस्तान के बजाए भारत की रणनीतिक व रचनात्मक भूमिका के साथ हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी कि सभी पांचों मुस्लिम देश ओआईसी के सदस्य हैं और इनमें से तीन देश उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ताजिकिस्तान की सीमा अफगानिस्तान से लगी हुई है। ये तीनों देश अफगानिस्तान में होने वाले हर उठापटक से प्रभावित होते हैं। अहम बात यह कि वार्ता में इन पांचों मुस्लिम देशों ने अफगानिस्तान के मसले पर भारत के रुख का पुरजोर समर्थन करते हुए अफगानिस्तान के लोगों को तत्काल मानवीय सहायता पहुंचाने के साथ आतंकियों को शरण व फंडिंग देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की वकालत की है। तथ्य यह भी कि भारत एवं पांचों मध्य एशियाई देशों ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही परोक्ष रुप से उस पर हमला बोलते हुए कहा कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने उद्घाटन भाषण में अफगानिस्तान के साथ सभ्यतागत संबंधों का हवाला देते हुए मध्य एशिया के देशों को रचनात्मक भूमिका के लिए आह्नान किया। गौर करें तो मध्य एशिया की सीमा अफगानिस्तान से लगती है और अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान के हालात बदल गए हैं। यहां तालिबान का शासन स्थापित हुआ है और वे सत्ता को बंदूक की नली गुजार रहे हैं। ऐसे में भारत और मध्य एशिया के देशों का चिंतित होना लाजिमी है। किसी से छिपा भी नहीं है कि अफगानिस्तान में शासन कर रहे तालिबानियों को पाकिस्तान का संरक्षण हासिल है। वह तालिबानियों के जरिए भारत विरोध का मोर्चा खोले हुए है और भारत में आतंकवाद के लिए उकसा रहे हैं। पाकिस्तान की कोशिश अफगानिस्तान केंद्रित मसले पर ओआईसी देशों के जरिए भारत को अलग-थलग करने की भी है। लेकिन जिस तरह मध्य एशिया के देशों ने ओईसी के बजाए भारत से वार्ता को तरजीह दी है उससे अब पाकिस्तान को अपनी हैसियत का अंदाजा लग गया होगा। याद होगा मार्च 2019 में पाकिस्तान ने ओआईसी में भारत के निमंत्रण को रद्द कराने की कुचेष्टा की। तब अबु धाबी में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक से पहले पाकिस्तान ने ओआईसी को धमकी दी थी कि अगर भारत को दिया गया आमंत्रण स्थगित नहीं किया गया तो वह बैठक का बहिष्कार करेगा। उसने ओआईसी देशों को लिखे पत्र में रोना रोया कि कश्मीर की हालत के लिए भारत जिम्मेदार है और भारत के साथ उसका विवादित मुद्दा है लिहाजा भारत को ओआईसी में शामिल होने का कानूनी व नैतिक अधिकार नहीं है। पहले तो ओआईसी देशों ने पाकिस्तान को समझाने की कोशिश की लेकिन जब वह समझने को तैयार नहीं हुआ तो उसकी धमकी और नौटंकी को किनारे रख भारत के पक्ष में लामबंद हो गए। तब तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सम्मेलन में आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर जमकर हमला बोला और कहा कि ‘अगर हमें मानवता को बचाना है तो उन देशों को रोकना होगा, जो आतंकियों को शरण और वित्तीय मदद देते हैं। गौर करें तो अबु धाबी सम्मेलन की तरह भारत ने मध्य एशिया वार्ता के जरिए पाकिस्तान को एक बार फिर पटकनी दी है। कुटनीतिक नजरिए से देखें तो तीसरी भारत-मध्य एशिया वार्ता में पांचों मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों का शिरकत यों ही नहीं है। यह तथ्य है कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा से उत्पन राज्य प्रायोजित आतंकवाद से सिर्फ भारत ही लहूलुहान नहीं होता बल्कि उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान भी दर्द झेलते हैं। ऐसे में भारत और मध्य एशिया के देश कंधा जोड़ कुटनीतिक व सामरिक संबंधों को पुनर्जीवित करते है और आतंकवाद एवं अवैध ड्रग कारोबार से निपटने के लिए समान दृष्टिकोण रखते हैं तो यह स्वाभाविक है। भारत के लिए मध्य एशिया इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि विश्व में सामरिक एवं आर्थिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं और भारत उससे सीधा प्रभावित हो रहा है। भारत एवं मध्य एशिया के बीच गहरे ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध हैं। भारत का शक्तिशाली कुषाणों का साम्राज्य बनारस से पामीर के पठार के पूर्व तथा मध्य एशिया में तियेनशान और कुनलुन पहाड़ियों तक विस्तृत था। भारत में उत्पन बौद्ध धर्म का प्रभाव आज भी मध्य एशिया में व्याप्त है। भारत एवं मध्य एशिया सिर्फ सांस्कृतिक रुप से ही नहीं बल्कि मजबूत आर्थिक संबंधों के डोर से भी बंधे हुए हैं। इस बात के ढेरों प्रमाण हैं कि भारत एवं मध्य एशिया के बीच आर्थिक संपर्क प्राचीन सिल्क मार्ग से होता था। आज की परिस्थितियों में भारत मध्य एशियाई राष्ट्रों से कंधा जोड़कर सामरिक व परंपरागत आर्थिक संबंधों में मजबूती ला सकता है। निवेश, कारोबार व आर्थिक गतिविधियों के लिहाज से वर्तमान समय में भारत मेक इन इंडिया कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में मध्य एशिया के देशों से निवेश का आना अति आवश्यक है। वैसे भी मध्य एशिया के लिए भारत बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है। मौजूदा समय में भारत का मध्य एशिया के देशों से तकरीबन 1.5 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार होता है। भारतीय निर्यात 600 मिलियन डॉलर से अधिक है। इसी तरह 800 मिलियन डॉलर का आयात होता है। अगर भारत और मध्य एशिया के देशों के बीच कुटनीतिक, सामरिक व कारोबारी संबंध बेहतर होंगे तो वैश्विक मोर्चे पर नतीजे पक्ष में आएंगे। अच्छी बात यह कि भारत व मध्य एशिया दोनों सामरिक व आर्थिक साझेदारी को बढ़ाने के लिए दशकों पहले जमीन तैयार करना शुरु किए जो आज फलीभूत हो रहा है। फरवरी 1997 में भारत, ईरान और तुर्केमेनिस्तान के बीच वस्तुओं के आवागमन के लिए एक द्विपक्षीय समझौता हुआ। इसके तहत दोनों क्षेत्रों को तुर्केमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया यानी तापी पाइपलाइन प्रोजक्ट को अमलीजामा पहनाना है। अगर यह संभव हुआ तो मध्य एशिया क्षेत्र में उर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए परिवहन कॉरिडोर विकसित करने में मदद मिलेगी। अब समय आ गया है कि भारत मध्य एशिया के देशों से कुटनीतिक संबंधों को धार देकर अफगानिस्तान में पाकिस्तान और चीन की भूमिका को सीमित करे। ऐसा इसलिए कि आज मध्य एशिया क्षेत्र में चीन लगातार प्रभावी होने की कोशिश कर रहा है। दरअसल उसकी नजर खनिज संपदाओं से लबालब उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान पर है जो दुनिया के सबसे बड़े तेल एवं प्राकृतिक गैस क्षेत्रों में से एक हैं। कजाकिस्तान अपने दामन में दुनिया की एक चौथाई यूरेनियम समेटे हुए है वहीं उज्बेकिस्तान दुनिया के सबसे बड़े सोने के भंडार वाले देशों में से एक है। वह प्रतिवर्ष 50 टन से अधिक सोना खनन करता है। इसी तरह तजाकिस्तान चांदी का सर्वाधिक उत्पादन करता है। उसके पास बहुतायत मात्रा में सोना एवं अल्युमिनियम का भंडार है। यहीं कारण है कि चीन पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में शासन कर रहे तालिबान और मध्य एशिया के देशों को साधना चाहता है। पर अच्छी बात यह है कि भारत और मध्य एशिया दोनों का अफगानिस्तान केंद्रित मसले पर समान नजरिया है और दोनों ही सामरिक-कारोबारी संबंधों को नई ऊंचाई देने के लिए प्रतिबद्ध हैं ऐसे में इस भू-भाग में पाकिस्तान और चीन की दाल गलेगी इसकी संभावना कम है।
क्रान्तिधरा साहित्य अकादमी का पांचवा अंतरराष्ट्रीय लिटरेचर फेस्टिवल आनलाइन आयोजित
साहित्य, कला व संस्कृति को समर्पित ‘क्रान्तिधरा साहित्य अकादमी’ – मेरठ द्धारा आयोजित तीन दिवसीय पंचम मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल में समस्त भारत, नेपाल , भूटान , बांग्लादेश , कनाडा , रूस , अमरीका, ईथोपिया, तंजानिया, आबूधाबी, ओमान, बैंकॉक, आस्ट्रेलिया व बेल्जियम के साहित्यकारो ने अन्य सभी भाषाओं के साहित्य के साथ साथ हिंदी साहित्य को विभिन्न देशों की सीमाओं के बंधन से परे जाकर उसे बुलंद करने का संकल्प लिया।
24 दिसंबर को उद्घाटन सत्र में कवयित्री सुषमा सवेरा की सरस्वती वंदना से शुरू हुए इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल में मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार व सामाजिक विभूति डा सुबोध गर्ग तो मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डा अशोक मैत्रेय रहे ,
वरिष्ठ साहित्यकार डा सुधाकर आशावादी की अध्यक्षता व विशिष्ट अतिथि के रूप में सुभारती विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रशासन डा विवेक कुमार, नेपाल से गणेश प्रसाद लाठ , राधेश्याम लेकाली , उत्तराखंड से डा. श्रीगोपाल नारसन रहे ।
मुख्य आयोजक डॉ विजय पंडित ने बताया कि यह आयोजन “वसुधैव कुटुंबकम्” और राष्ट्रीय विचारधारा की भावना के तहत गंगा-जमुनी तहज़ीब को विश्व पटल पर लाने का एक प्रयास है।
मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल का लक्ष्य एक दुसरे लेखन से रूबरू कराना , साहित्यिक अनुवाद , प्रकाशन , विचारों के आदान प्रदान , परस्पर सहयोग की भावना , पठन पाठन व् साहित्य के दायरे का विस्तार के साथ दिलों से दिलों को जोड़नें के लिए एक सशक्त साहित्यिक सेतु का निर्माण करना है।
आयोजन के दूसरे सत्र में लघुकथा वाचन सत्र रहा जिसमें आमंत्रित अतिथि नन्दिनी रस्तोगी ‘नेहा’ मेरठ, राजेन्द्र पुरोहित, जोधपुर, रवि श्रीवास्तव, पटना, विभा रश्मी, गुडगाँव, रजनीश दीक्षित, ओमान, सन्ध्या गोयल सुगम्या, गाजियाबाद, अलका वर्मा, पटना, डॉ मीना कुमारी परिहार,’मान्या’, पटना, अनिता रश्मी, राँची , रानी सुमिता पटना से शामिल रहे, लघुकथा सत्र संचालन विभारानी श्रीवास्तव द्वारा किया गया।
आज का तृतीय सत्र कविता को समर्पित रहा जिसमें युवाओं, नवांकुर व वरिष्ठ कलमकारों की सहभागिता रही , प्रतिभा बिलगी ‘प्रीति’, कर्नाटक , श्री प्रदीप देवीशरण भट्ट हैदराबाद, संतोष बंसल दिल्ली , श्री महेश कुमार शर्मन पंजाब, पारू तिमिल्सिना काठमांडू नेपाल , श्री संजय कुमार शर्मा मेरठ,सुषमा सवेरा मेरठ, मुक्ता शर्मा मेरठ, डा शिल्पी बक्शी शुक्ला लखनऊ, कुंवर वीरसिंह मार्तंड कोलकाता, श्री मनीष शुक्ला लखनऊ , रमा निगम भोपाल, पूनम पंडित जैसी ख्यातिप्राप्त विभूतियों ने काव्यपाठ किया । अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन सत्र का संचालन युवा कवि नितीश कुमार राजपूत द्वारा किया गया ।
फेस्टिवल
के द्वितीय दिवस में प्रथम सत्र मे साक्षात्कार सत्र आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में डा महावीर अग्रवाल पूर्व कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय और वर्तमान में प्रति कुलपति पंतजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड रहे, सत्र संचालन श्रीगोपाल नारसन द्वारा किया गया ।
आयोजन के दूसरे सत्र साहित्य की हाईकु विधा को समर्पित रहा जिसका संचालन आभा खरे द्वारा किया गया और जगदीश व्योम, नौएडा, पवन जैन, लखनऊ, राजेन्द्र पुरोहित, जोधपुर , मधु गोयल, लखनऊ , मीनू खरे, लखनऊ , अलंकार आच्छा, चेन्नई, सुरंगमा यादव, लखनऊ , पीयूष चतुर्वेदी, मुम्बई, चेतना भाटी, इन्दौर, शेख शहजाद उस्मानी, शिवपुरी की सहभागिता रही ।
तृतीय सत्र पर्यावरण विमर्श रहा जिसका संचालन संजय कश्यप द्वारा किया गया जोकि सेंटर फॉर वाटर पीस के निदेशक है और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गैल इंडिया) के भी निदेशक हैं । पर्यावरणविद् श्री पिनाकी दासगुप्ता आईआईटी दिल्ली के पर्यावरण शोधकर्ता हैं। डॉ रोशन आरा श्रीनगर में कश्मीर विश्वविद्यालय में महिला सम्बन्धी विषयों की प्रोफेसर हैं। श्री सजल श्रीवास्तव जल विषयों व शहरीकरण के परामर्शदाता व शोधकर्ता हैं। श्रीमती इनोचा कांगबम भारत के नार्थ ईस्ट राज्य मणिपुर से आती हैं। आप जिला परिषद की सदस्य व इंटीग्रेटेड रूरल वेलफेयर एसोशिएशन की सचिव हैं । श्रीमती मीनाक्षी अरोडा भारत सरकार के ज्ञान आयोग द्वारा गठित इंडिया वाटर पोर्टल सदस्य सहित सभी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने अपने विचार रखें । आज के चतुर्थ सत्र आलीमी मुशायरा सत्र रहा जिसका का संचालन जनाब शाहिद मिर्जा शाहिद ने किया और मुख्य अतिथि डा के.के.बेदिल रहे ।
फेस्टिवल के तृतीय दिवस में प्रथम सत्र मे पुस्तक परिचर्चा सत्र आयोजित किया गया जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में रूडकी, उत्तराखंड से वरिष्ठ साहित्यकार व राष्ट्रीय साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य डा योगेन्द्रनाथ शर्मा ‘अरूण’ रहे, इस अवसर पर डा योगेन्द्रनाथ शर्मा ‘अरूण’ ने कहा कि साहित्य किसी भी भाषा में लिखा जाए वह देश दुनिया को आपस में जोडना सिखाता है । प्रथम सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार श्रीगोपाल नारसन द्वारा किया गया । मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल आयोजन के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय में सहायक निदेशक डा रघुवीर शर्मा रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में देश विदेश में विख्यात आध्यात्मिक गुरु व लेखक आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री ने कहा कि प्रत्येक रचना समाज के लिए एक संदेश लिए होनी चाहिए। जापान से लेखिका रमा शर्मा ने कहा कि भविष्य में वह जापान में इंडो जापान लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन क्रांतिधरा साहित्य अकादमी के साथ मिलकर आयोजित करेंगी। मेरठ के जानेमाने समाजसेवी प्रशांत कौशिक ने अपने संबोधन में कहा कि मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल आयोजन से मेरठ परिक्षेत्र की देश विदेश में एक नई पहचान बन रही है ।
आयोजन के समापन सत्र में मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल की आयोजक पूनम पंडित ने सबसे पहले टेन न्यूज चैनल का विशेष आभार जताया जिन्होंने तीनों दिन देश दुनियां में सजीव प्रसारण किया साथ ही आयोजन समिति के सभी सदस्यों व सभी सहयोगियों को आभार व्यक्त किया । एबीपी सी वोटर सर्वे में रैली को लेकर 78 फीसदी लोग ने कहा कि कि रोक लगनी चाहिए तो वहीं 22 फीसदी लोगों ने कहा कि रैलियों पर रोक नहीं लगनी चाहिए। बता दें कि पंजाब में 21 फीसदी वोटर ऐसे हैं, जिनको पता नहीं अभी कहां जाना है। वहीं, चुनावी गणितज्ञों की मानें तो उनका कहना है कि ऐसे वोटर जिधर माहौल होता है, उधर रुख करते हैं।
पंजाब की जनता बदलाव के लिए मन बना चुकी है लेकिन अगली सरकार कौन सी पार्टी की बनेगी, अभी तक ये तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं हुई है। विधानसभा चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज सी वोटर सर्वे में चौंकाने वाली खबर सामने आई है। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) नंबर वन दल बनता नजर आ रहा है।
सर्वे में खुलासा हुआ कि पंजाब की जनता कांग्रेस से नाराज है और वह आप के बाद जनता की दूसरी पसंद है। ऐसे में साफ है कि जनता राज्य में अब बदलाव चाहती है। 66 फीसदी जनता चाहती है कि पंजाब में सरकार बदले तो वहीं 34 फीसदी जनता चाहती है कि सरकार न बदले। पिछली बार कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार सरकार जाती हुई दिख रही है।
उधर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के लोगों को गारंटी देते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी पंजाब में एक ईमानदार, स्थिर और मजबूत सरकार देगी। आज पंजाब में बहुत कमजोर सरकार है। यह सरकार अच्छी व्यवस्था, विकास और शांति नहीं दे सकती। हमारी सरकार पंजाब में शांति-व्यवस्था कायम कर हर व्यक्ति को सुरक्षा देगी और सभी धर्म-जातियों के बीच भाई-चारा बढ़ाएगी। ‘आप’ संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हम ईमानदार पुलिसवालों को अच्छी पोस्टिंग देंगे और पुलिस के कार्य में कोई भी राजनीतिक दखलअंदाजी नहीं होगी। बेअदबी और बम ब्लास्ट के सभी कांड की जांच करा कर मास्टर माइंड को पकड़कर जेल में चक्की पिसवाएंगे। बॉर्डर की कड़ी सुरक्षा करेंगे और पाकिस्तान से किसी आतंकवादी या नशे का सामान अंदर नहीं आने देंगे। इसके साथ ही, गुरुद्वारे, मंदिर-मस्जिद, चर्च और डेरे की सुरक्षा के लिए अलग से पुलिस फोर्स बनाएंगे और सरकार बनने के छह महीने के अंदर हम पंजाब से नशा खत्म कर देंगे। ‘आप’ संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के लोगों से अपील करते हुए कहा कि मैं सिर्फ 5 साल मांग रहा हूं। अगर हमने काम नहीं किया, तो अगली बार लात मार कर हमें भगा देना।
संसद के दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा बुधवार को 11 बजकर 25 मिनट पर अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गईं। इसके साथ ही शीतकालीन सत्र का व्यावहारिक समापन हो गया, औपाचारिक समापन राष्ट्रपति अपनी सुविधा के अनुसार करेंगे। यह सत्र 29 नवंबर से 23 दिसंबर के बीच होना था, सत्र में कुल 20 बैठकें संभावित थीं, कृषि कानूनों की वापसी, क्रिप्टोकरेंसी संबंधित, मतदाता कार्ड को आधार से जोड़ने, बालिकाओं की विवाह की उम्र 18 से 21 वर्ष किए जाने समेत 26 विधेयक सूचीबद्ध थे। इस बीच देश की सबसे बड़ी पंचायत में क्या हुआ? सरकार ने क्या एकतरफा बिल पास करा दिए? क्या विपक्ष संसद में जनता के मुद्दे उठाना चाहता था? क्या उनको मौका नहीं दिया गया? पाठक खुद इसका आकलन करें तो बेहतर है।
संसद का यह सत्र बीत गया है, अगला सत्र जब शुरू होगा तब तक उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब सहित पांच राज्यों में चुनावी घमासान चरम पर होगा। बड़ी संख्या में राजनीतिक दल मतदाता को लुभाने के लिए अपनी नीतियों के खुलासे-दर-खुलासे कर रहे होंगे। जनता के सबसे करीबी होने और उनकी परेशानियों को दूर करने का दावा ठोक रहे होंगे। प्रत्याशियों के चयन में उन नीतियों का उपयोग कर चुके होंगे जिनका संविधान और चुनावी आचार संहिता वर्जना करती है। कंडिडेट को मैदान में उतारने के लिए धर्म, जाति का कानून में कोई स्थान है, फिर भी खुलकर उपयोग होता रहा है। या यूं कहा जाए पार्टियां बंद कमरों में प्रत्याशियों की सूची तय करने में उन समीकरणों को बैठा चुकी होंगी जिनकी वह सार्वजनिक मंच से वह घोषणा नहीं कर सकती हैं। यानी प्रत्याशियों के चुनने के लिए संविधान की आवाज के विपरीत पैमाना अपनाती हैं, किस दल को दूध का धुला कहा जाए। कमरे के बाहर आकर राजनीतिक दल सिद्धांत की दुहाई देने लगते हैं। अपने ‘पुरोधा आइकनों’ के विचारों के सहारे ही राजनीति करने का खम ठोकते हैं। इसे कहें कि राजनीतिक महापर्व और अगले पांच साल सत्ता का सुख प्राप्त करने के लिए मतदाता के साथ दो मुंहापन अपनाने में किसी को भी गुरेज नहीं।
अब आएं, संसद के शीतकालीन सत्र में, इसमें महंगाई पर विपक्ष की आवाज कहीं नहीं दिखाई दी। एक राज्य में महंगाई को देखते हुए पेट्रोल-डीजल की कीमत कम करने की मांग करने वाली पार्टियां भी उन राज्यों में खामोश हो जाती हैं, जहां उनकी पार्टी का शासन होता है, या उनकी पार्टी की मित्र पार्टी वहां कुर्सी पर होती है। एक राष्ट्रीय दल तो दिल्ली से दूर जयपुर जाकर महंगाई के खिलाफ रैली करते हैं, वहां पेट्रोल-डीजल से वैट कम करने की बात नहीं होती। उनके नेता महंगाई के बजाय हिन्दू और हिन्दुत्व पर अपना दर्शन जग जाहिर करते हैं। देश में महंगाई के अलावा, वोटर आईडी को आधार नंबर से लिंक करने, लड़कियों की ब्याह की उम्र तीन साल बढ़ा कर 21 साल करने जैसे गंभीर विधेयकों पर कोई चर्चा नहीं होती। ये विधेयक देश के समाजशास्त्र को बदलने में सक्षम हैं। ये विधेयक उसी महत्व के हैं, जैसे ‘आरटीआई’ विधेयक आने के बाद अफसरों की कार्यशैली में आया बदलाव। अफसरों के सर्वोच्च संवर्ग में आए व्यवहारजनित बदलाव ने सरकारी कामकाज को काफी प्रभावित किया है, जो लोग प्रभावित हुए हैं वह इसे बखूबी महसूस कर रहे हैं।
देश एक बार फिर वैश्विक महामारी कोविड-19 के नवीनतम ‘वैरियंट ओमिक्रॉन’ और उससे भी ‘नए वैरियंट डेल्मीक्रॉन’ की आशंकाओं से ग्रसित है। पहली और दूसरे लहर का असर देख चुके हैं। पहले चरण के साथ लगाए गए ‘लॉकडाउन’ को विपक्ष नाकाम बता चुका है, अर्थव्यवस्था के लिए घातक घोषित कर चुके हैं। इसलिए दूसरे चरण में इस उपाय का उपयोग ही नहीं हुआ तो उस चरण की घातकता से परिचित हो चुके हैं। ऑक्सीजन को लेकर हुई मारामारी, अस्पतालों में बेड क्राइसिस से दो-चार हो चुके हैं। अब, तीसरे चरण के आगमन के पूर्व के समय का कैसे सदुपयोग हो सकता है? कैसे देश में उपलब्ध मेडिकल संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है? क्या किसी जानकार से पूछ कर सरकार को यह चेताने का प्रयास किया कि किस क्षेत्र में क्या कमी है? हम देश चलाने का दावा करते हैं, क्या हमारे पास ऐसी टीम है जो दक्षिण अफ्रीका में खत्म हुई तीसरी लहर के अनुभवों पर देश के लिए कोई नीति बनाएं? क्या वहां की खामियों को चिह्नित कर अपने देश की सरकारी मशीनरी, मेडिकल विशेषज्ञों को बताने की कोशिश की? उत्तर मिलेगा नहीं, जब हम देश की जनता के सामने आने वाले बड़े संकट से निपटने में सरकार के साथ काम नहीं कर सकते या उसे चेता नहीं सकते तो हम मतदाता का हित कैसे चाहते हैं। हम तो अपना ही भला करने में जुटे हैं। विपक्ष को समझना चाहिए कि जनता रहेगी तभी उसकी राजनीति चमकेगी। सरकारें सदैव गुरूर में रहती हैं, जो चाहती हैं वह करना चाहती हैं। इतिहास हमारे सामने है और वर्तमान भी। इसलिए सत्तारूढ़ दल को दोष देने के बजाय अगर हम उससे दो कदम आगे नहीं बढ़ सकते तो सरकार अपने ढंग से सबको नचाएगी ही। आज के दिन विपक्ष के पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि क्या उसने संसद के करीब 20 दिनों में सिर्फ वही नहीं किया जो सरकार चाहती थी? विपक्ष ने राज्यसभा के 12 सदस्यों का निलंबन वापस लेने के नाम पर वह किया जो सरकार के लिए मुफीद बैठता है। विपक्ष ने मैदान छोड़ दिया। सरकार के पास बहुमत है और वह क्यों चाहेगी विपक्ष इस पर डिबेट करे, उसे तो चाहिए वह विधेयक पटल पर रखे, थोड़ा चर्चा की औपचारिकता हो जाए और बिल पास हो जाए। विपक्ष अगर कई ज्वलंत मुद्दों पर सरकार के साथ बहस करता तो सरकार को अपने मन की करने में परेशानी होती। शायद उसकी ऐसी भूमिका ज्यादा सार्थक होती। तब विपक्ष जनता का ज्यादा हितैषी कहलाता, वह इसका प्रचार भी नहीं करता तो जनता खुद मान लेती और अपना विश्वास दे देती।
गरीब परिवार में जन्म, पढ़ाई में कमजोर और रोजी- रोटी के लिए क्लर्क की नौकरी करने वाले रामानुजन की प्रतिभा को आगे बढ़ने से कोई भी बाधा रोक नहीं पाई। वो गणित विषय में विलक्षण थे। ऐसे अद्युतीय प्रतिभा के धनी कि दुनियाँ में सबसे प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की सदस्यता हासिल करने वाले पहले भारतीय बने, वो भी सबसे कम आयु में। इसके बाद उनको ट्रिनिटी कॉलेज की फैलोशिप भी मिली। उनके कई फार्मूले आजतक दुनियाँ भर के गणितज्ञों के लिए रहस्य का विषय हैं। ऐसे महान गणितज्ञ का जन्म आज के दिन 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था।
श्रीनिवास रामानुजन गणित में के एक सवाल को 100 से भी ज्यादा तरीकों से हल कर सकने में सक्षम थे। हालांकि उनका बचपन बेहद संघर्षमय रहा। उनके पिता कपड़े की दुकान पर काम करते थे। मां मंदिर में भजन गाती थीं। मंदिर के प्रसाद से घर पर एक वक्त का खाना हो जाता लेकिन दूसरे वक्त के खाने के लिए परिवार पिता की कमाई पर निर्भर था। कई-कई बार ऐसा भी होता कि रामानुजन के परिवार को एक वक्त का खाना ही नसीब हो पाता। हालांकि शुरू से रामानुजन ने गणित में अपनी असाधारण प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी। उनके पास ज्यादा कॉपियां खरीदने के पैसे नहीं होते थे तो पहले स्लेट में गणित के सवाल हल करते और फिर सीधे फाइनल उत्तर ही कॉपी पर उतारते ताकि कॉपी जल्दी न भर जाए। क्लास की किताबें कुछ ही दिनों में पढ़ जाने के बाद वे बड़ी कक्षा के बच्चों के सवाल भी हल करने लगे। जिससे बड़ी कक्षाओं के बच्चे भी गणित में मदद के लिए रामानुजन के पास आते थे। रामानुजन की प्रतिभा को देखते हुए उनके शिक्षक ने कहा था मेरा बस चले तो 100 में से उसको 1000 नंबर दे दूँ। हालांकि रामानुजन का मन केवल गणित में लगता था जिससे 11वीं क्लास में गणित में तो पूरे अंक लाए लेकिन बाकी सारे विषयों में फेल हो गए। इससे उन्हें पढ़ाई के लिए मिली स्कॉलरशिप भी गंवानी पड़ी। इससे दुखी बालक ने खुदकुशी की कोशिश भी की। ईश्वर की कृपा से उनका अहित नहीं हुआ। बाद में जैसे-तैसे सभी सब्जेक्ट पढ़कर 12वीं पास की और जीवन चलाने के लिए क्लर्क का काम करने लगे। काम के बाद बचे समय में वे गणित के मुश्किल से मुश्किल थ्योरम हल करते रहते। साथ में वे एक और काम करते- ब्रिटिश गणितज्ञ जीएच हार्डी को चिट्ठियां लिखना। उस समय हार्डी की पहचान पूरी दुनिया में गणित के जीनियस के रूप में हो चुकी थी। हार्डी ने पहले तो उनको गंभीरता से नहीं लिया लेकिन फिर उनकी प्रतिभा को समझकर लंदन बुलाया। जिसके बाद पूरी दुनियाँ जीनियस रामानुजन से परिचित हुई।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विकास के विचार पर चर्चा तो लंबे समय से होती आई है। पर इस विचार को मूर्त रूप देने की पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में की जा रही है। इसकी बानगी हमें काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण में नजर आई। करीब ढाई सौ सालों बाद काशी दिव्य, भव्य के साथ नव्य नजर आई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा भी कि “काशी तो काशी है! काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हों, उस काशी को भला कौन रोक सकता है?” यानि विकास और नव निर्माण के साथ सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोने का फार्मूला पीएम ने नए सिरे से दिया।
अगर केंद्र सरकार की योजनाओं और विकास कार्यक्रमों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि विकास को देश कि मिट्टी और संस्कृति से जोड़कर आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो रहा है। इसी श्रंखला में पीएम ने काशी के बाद शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेसवे की आधारशिला रखी। 594 किमी लंबे इस एक्सप्रेस वे के जरिये मेरठ से प्रयागराज तक गंगा किनारे बसे प्राचीन नगरों को जोड़कर व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों के समागम का रास्ता बनाया जाएगा। छह लेन वाले एक्सप्रेस वे में फाइटर जेट्स लैंड कर सकेंगे तो इंडस्ट्रियल और डिफेंस कॉरीडोर को भी गति मिलेगी। सिर्फ इतना ही नहीं कभी इंडिया का मानचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर को मेट्रो से जोड़कर इस शहर के विकास की रफ्तार तेज करने की कवायद की जा रही है।
स्वच्छ भारत मिशन हो, नमामि गंगे, राम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास हो, उज्ज्वला योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ मिशन या फिर तीन तलाक पर कानून हो, प्रधानमंत्री का विजन साफ है जिसमें सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के साथ तरक्की का रास्ता निकाला गया है। इसीलिए पीएम ने अपने कार्यकाल के पहले चरण के दौरान 2014 में न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए गंगा की सफाई और विकास की अवधारणा को समझाया था। पीएम के अनुसार “अगर हम माँ गंगा को साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी।“ इसी प्रकर बेटी को देश के विकास का अहम पहिया मानते हुए पीएम अनुरोध करते हैं कि “अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं, उसका उत्सव मनाएं।” इस क्रम में केंद्र सरकार ने महिलाओं की शादी की आयु 21 वर्ष कर उनको सशक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया। मुस्लिम महिलाओं को सशक्त और अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए तीन तलाक पर कानून बनाया गया जिससे उनका उत्पीड़न रोका जा सके। ये सभी कानून और योजना संस्कृति और विकास को एकसाथ लेकर चलने वाली हैं।
केंद्र सरकार ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विकास को गतिमान बनाने के लिए दशकों और सदियों से चले आ रहे विवादित मसलों को भी खत्म करने की भी पहल की। फिर चाहे अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर जम्मू कश्मीर में विशेष नागरिकता अधिकार को खत्म करना हो या फिर अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर निर्माण के संकल्प को पूरा करना हो। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कई एतिहासिक फैसले लिए। इन्हीं फैसलों में देश की नई शिक्षा नीति 2021 भी शुमार हैं। 34 साल बाद शिक्षा नीति में आमूल- चूल परिवर्तन कर स्थानीय और राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का समागम किया गया। उच्च शिक्षा के लिए भी बड़े सुधार कार्यक्रम शामिल किए गए। मेडिकल कोर्सेज के विद्यार्थियों के लिए ओबीसी को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 प्रतिशत के लिए रिजर्वेशन का फार्मूला लागू किया गया। अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर रफ्तार देने के लिए करोना काल में महत्वपूर्ण कार्य किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फुटकर एवं थोक व्यापार को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों (एमएमएसएमई) के तहत लाने का फैसला किया। इससे फुटकर और थोक व्यापारियों को बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों से प्राथमिकता प्राप्त श्रेणी में कर्ज उपलब्ध होने का रास्ता खुला। साथ ही मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के जरिये बदलाव की नींव रखी। मोदी सरकार ने अपने लिए लक्ष्य तय कर रखे हैं जिसमें सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास सबके प्रयास से शामिल है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के फार्मूले पर विकास का रास्ता निकाला गया है।
यह उचित है कि केंद्र सरकार ने लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के बराबर 21 साल करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। अब सरकार इस प्रस्ताव को अमलीजामा पहनाने के लिए बाल विवाह (रोकथाम) कानून 2006 को संशोधित करने संबंधी विधेयक को संसद के मौजूदा सत्र में पेश कर सकती है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने यह फैसला पूर्व सांसद जया जेटली की अगुवाई वाले टास्क फोर्स की सिफारिश पर की है जिसे तैयार करने में सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी विविध पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। देखें तो बदलते दौर में लड़के और लड़कियों के विवाह की आयु में तीन साल के अंतर को बनाए रखना कहीं से भी जायज और तर्कपूर्ण नही था। आयु का यह अंतर न सिर्फ लैंगिक समानता को मुंह चिंढ़ाने वाला था बल्कि लड़कियों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा था। यह किसी से छिपा नहीं है कि 18 वर्ष की उम्र पार करते ही अधिकांश लड़कियों को विवाह हो जाता है जिस कारण उनकी शिक्षा बुरी तरह प्रभावित होती है। इसी तरह कम उम्र में विवाह के कारण लड़कियों को स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कम उम्र में गर्भाधान के कारण प्रसव के समय जान का जोखिम के साथ मातृ मृत्यु दर में इजाफा होता है। गत वर्ष पहले सरकारी संस्था नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि शहरों में 20 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में हर सातवें गर्भधारण का अंत गर्भपात के रुप में होता है। 20 साल से कम उम्र की शहरी युवतियों में गर्भपात का रुझान राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी अधिक है। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भपात का फीसद 2 तथा शहरी क्षेत्रों में 3 है। 20 साल से कम उम्र की शहरी युवतियों में गर्भपात 14 फीसद तक है जबकि गांवों में 20 साल से कम आयुवर्ग में गर्भपात का प्रतिशत मात्र 0.7 है। अगर दूसरे आयु वर्ग की महिलाओं पर नजर दौड़ाएं तो गर्भपात का फीसद इतना अधिक नहीं है। मसलन 30 से 34 वर्ष उम्र की शहरी महिलाओं में गर्भपात का फीसद सिर्फ 4.6 है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 2.9 है। इसी तरह 35 से 39 वर्ष उम्र की शहरी महिलाओं में गर्भपात का फीसद 2.0 जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 5.4 है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि शहरों में तो कम लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी असुरक्षित गर्भपात कराए जा रहे हैं जिसकी कीमत युवतियों को जान देकर चुकानी पड़ रही है। 21 वर्ष से कम उम्र के कारण शिशु मृत्यु दर और अस्वस्थता दर में भी वृद्धि हो रही है। इसके अलावा घरेलू हिंसा, लिंग आधारित हिंसा, बच्चों के अवैध व्यापार, लड़कियों की बिक्री में वृद्धि, बच्चों द्वारा पढ़ाई छोड़ने की आंकड़ों में वृद्धि, बाल मजदूरी और कामकाजी बच्चों का शोषण तथा लड़कियों पर समय से पहले जिम्मदारी संभालने का दबाव भी बढ़ रहा है। चिकित्सकों की मानें तो 21 वर्ष से कम उम्र में विवाह के कारण शिशु को जन्म देते वक्त दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों में 17 फीसद मौतें अकेले भारत में होती है। कम उम्र में विवाह से प्रसव के दौरान इन महिलाओं में 30 फीसद रक्तस्राव, 19 फीसद एनीमिया, 16 फीसद संक्रमण, और 10 फीसद अन्य जटिल रोगों की संभावना बढ़ जाती है। यहीं नहीं वे गंभीर बीमारियों की चपेट में भी आ जाती हैं। सेव द चिल्ड्रेन संस्था की मानें तो भारत मां बनने के लिहाज से दुनिया के सबसे खराब देशों में शुमार है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत में प्रत्येक वर्ष गर्भधारण संबंधी जटिलताओं के कारण और प्रसव के दौरान तकरीबन 5 लाख से अधिक महिलाएं दम तोड़ती हैं जिसका एक प्रमुख वजह कम उम्र में विवाह है। बहरहाल अब लड़कियों की विवाह की कानूनी आयु 21 वर्ष होने से उनकी शिक्षा एवं स्वास्थ्य में बाधा नहीं आएगी तथा लैंगिक विषमता की चौड़ी होती खाई भी पाटी जा सकेगी। वैसे भी विचार करें तो भारतीय संविधान में शिक्षा, सेवा, राजनीति इत्यादि सभी क्षेत्रों में पुरुषों व महिलाओं को बराबर के अधिकार दिए गए हैं। भारतीय संविधान में लैंगिक असमानता को मिटाने यानी समानता को बल प्रदान करने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर महिलाओं से भेदभाव नहीं किया जा सकता। दो राय नहीं कि इन संवैधानिक प्रावधानों और गत वर्षों में हुए सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरुप भारत में लैंगिक विभेद में कमी आयी है। उसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर देश के विभिन्न राज्यो की पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया है। इस पहल से पंचायतों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी है। हाल ही में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं पंच परमेश्वर चुनी गयी हैं। 53.7 फीसद पंचायतों में सत्ता अब महिलाओं के हाथों में है। राज्य में ग्राम प्रधान के 58,176 पदों पर चुनाव हुए जिसमें 31,212 पदों पर महिलाओं ने जीत हासिल की हैं। लेकिन एक कड़ुवा सच यह भी है कि जीवन के बहुतेरे क्षेत्र अब भी ऐसे हैं जहां बेटियों की हिस्सेदारी नाममात्र की है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों, व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में अभी भी बेटियों की मौजूदगी कम है। अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वे (एआईएसएचई) की रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में बेटियों का नामांकन शैक्षणिक पाठ्क्रमों की तुलना में कम है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी सर्वे रिपोर्ट 2019-20 के मुताबिक छात्राओं की मौजूदगी राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में सबसे कम 24.7 फीसद, सरकारी डीम्ड विश्वविद्यालयों में 33.4 फीसद और राज्य एवं निजी विश्वविद्यालयों में 34.7 फीसद है। वहीं राज्य विधान अधिनियम के तहत आने वाले संस्थानों में छात्राओं की भागीदारी 61.2 फीसद, राज्य की सरकारी विश्वविद्यालयों में 50.1 फीसद और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 48.1 फीसद रही है। गौर करें तो यह आंकड़ा छात्रों के मुकाबले कम है जो एक किस्म से लैंगिक भेदभाव की दीवार को मजबूत करता है। आर्थिक उपक्रमों में भागीदारी की बात करें तो देश के सिर्फ 13.8 प्रतिशत कंपनी बोर्ड में महिला प्रतिनिधित्व है। इसी तरह केवल 14 प्रतिशत महिलाएं नेतृत्वकर्ता की भूमिका में हैं। श्रम के क्षेत्र में नजर दौड़ाएं तो यहां भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का प्रतिनिधित्व दयनीय है। प्रशासनिक नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी के आंकड़े बताते हैं कि आईएएस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20 फीसद से कम है जबकि बैंकों में 22 प्रतिशत के आसपास है। इसी तरह संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी कम है। लोकसभा में कुल महिला सदस्यों की संख्या 79 है जो कुल सदस्यों के 15 फीसद के आसपास है। इसी तरह राज्यसभा में महिलाओं की संख्या 25 है यानी 10 फीसद है। अच्छी बात है कि पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल में हुए विस्तार के बाद अब मंत्रिमंडल में कुल महिला मंत्रियों की संख्या 11 हो गयी है। लेकिन विचार करें तो यह अभी भी पुरुषों के मुकाबले कम है। डब्ल्यूईएफ (वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम) ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में 18 वें स्थान पर है। आर्थिक भागीदारी और अवसर में 149 वें, शिक्षा प्राप्ति में 112 वें, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता में 150 वें तथा समग्र सूचकांक में 108 वें स्थान पर है। मंत्रालयिक पदों पर 30 फीसद महिलाओं के साथ भारत की रैंकिंग 69 वीं है और संसद में महिलाओं के मामले में 17 फीसद के साथ 122 वीं है। भारत के 28 राज्यों में से वर्तमान में केवल पश्चिम बंगाल में एक महिला मुख्यमंत्री हैं। देश का एक भी राज्य ऐसा नहीं है जहां महिला मंत्रियों की संख्या एक तिहाई हो। 65 फीसद राज्यों के मंत्रिमंडल में 10 फीसद से कम महिला प्रतिनिधित्व है। लेकिन अच्छी बात यह है कि मौजूदा सरकार बेटियों के हक में लगातार निर्णय ले रही है जो कि स्वागतयोग्य है।