भारत की संप्रभुता की रक्षा में कोई भी सीमा बाधक नहीं बन सकती: राजनाथ
रक्षा औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार भारत को अभूतपूर्व शक्ति प्रदान कर रहा है
- भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र और सबसे बड़ा रक्षा निर्यातक बनाने के लिए हमारे उपकरणों को वैश्विक भरोसे के स्तर तक विकसित करने की आवश्यकता
नई दिल्ली : रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आज 08 मई, 2025 को राष्ट्रीय गुणवत्ता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारे अजेय और पेशेवर रूप से प्रशिक्षित सशस्त्र बल के उच्च गुणवत्तापूर्ण उपकरणों से लैस होने से ऑपरेशन सिंदूर सफलतापूर्वक संचालित किया जा सका। रक्षा मंत्री ने किसी भी निर्दोष व्यक्ति को नुकसान पहुंचाए बिना तथा न्यूनतम क्षति के साथ सशस्त्र बलों द्वारा इस अभियान को सटीकता के साथ अंजाम देने की सराहना की तथा इसे सोच से परे तथा राष्ट्र के लिए गर्व का विषय बताया।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नौ आतंकी शिविर नष्ट किए गए और बड़ी संख्या में आतंकवादियों को मार गिराया गया। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में ‘गुणवत्ता’ कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत ने हमेशा बेहद संयम बरतते हुए एक जिम्मेदार राष्ट्र की भूमिका निभाई है और वह बातचीत के जरिए मुद्दों को सुलझाने में विश्वास रखता है। पर अगर कोई उसके संयम का फायदा उठाने की कोशिश करता है, तो उसे ‘कठोर कार्रवाई’ का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने देश को आश्वस्त किया कि भारत की संप्रभुता की रक्षा में सरकार के लिए कोई भी सीमा बाधक नहीं बनेगी। उन्होंने कहा कि हम भविष्य में भी ऐसी किसी दायित्वपूर्ण जवाबी कार्रवाई के लिए पूरी तरह तैयार हैं। सम्मेलन के विषय ‘एकीकृत दृष्टिकोण और प्रौद्योगिकी सक्षम प्रक्रियाओं के माध्यम से गुणवत्ता आश्वासन में तेजी लाना’ पर अपने विचार रखते हुए, श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि दुनिया भर में रक्षा क्षेत्र के उपकरणों की विध्वंसकारी मारक क्षमता और नए बदलावों को देखते हुए गुणवत्ता मूल्यांकन में तेजी लाना समय की मांग है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के रक्षा संप्रभुता के दृष्टिकोण के अनुरूप रक्षा मंत्री ने 2014 से ही रक्षा उत्पादन क्षेत्र के सशक्तिकरण पर सरकार द्वारा जोर दिए जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि रक्षा संप्रभुता का अर्थ है कि जब तक कोई देश अपनी रक्षा आवश्यकताओं में सक्षम और आत्मनिर्भर नहीं होता, तब तक उसकी स्वतंत्रता सम्पूर्ण नहीं मानी जा सकती। उन्होंने कहा कि अगर हम विदेश से हथियार और अन्य रक्षा उपकरण खरीदते हैं, तो हम अपनी सुरक्षा को आउटसोर्स कर रहे हैं और इसे किसी और के भरोसे छोड़ रहे हैं। हमारी सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार कर आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए निर्णायक कदम उठाया है और यही विस्तारित रक्षा औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र भारत को अभूतपूर्व शक्ति प्रदान कर रहा है। श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा उत्पादन में गुणवत्ता और मात्रात्मक उत्पादन पर समान जोर दिया जा रहा है और इस दिशा में कई बड़े कदम उठाए जा रहे हैं, जिसमें आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) का निगमीकरण भी शामिल है। रक्षा मंत्री ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र की प्रगति का उद्देश्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धी निजी रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना रहा है, जो गुणवत्ता द्वारा भारत की सुरक्षा सुदृढ़ करेगा। उन्होंने कहा कि आज विश्व में, एक मजबूत ब्रांड उत्पाद से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। जो ब्रांड लगातार गुणवत्ता और विश्वसनीयता आश्वस्त कराता है, वही सफल होता है। श्री राजनाथ सिंह ने इस अवसर पर उपस्थित सशस्त्र बलों, सरकारी क्यूए एजेंसियों, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों, निजी उद्योग, शोध संस्थानों, शिक्षाविदों और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम प्रतिनिधियों से विश्व में अग्रणी अत्याधुनिक ब्रांड इंडिया स्थापित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ब्रांड इंडिया का मतलब है कि अगर किसी भारतीय कंपनी ने कुछ वादा किया है, तो वह निश्चित रूप से पूरा ही होगा। हमारी अद्वितीय विक्रय प्रस्ताव (यूनिक सेलिंग प्रोपोजिशन) होनी चाहिए कि जब भी किसी को अन्यत्र गुणवत्ता का संदेह हो तो वह पूरे विश्वास के साथ सामान लेने भारत ही आए।
वैश्विक व्यवस्था में हो रहे व्यापक बदलावों के बारे में रक्षा मंत्री ने कहा कि जब विकसित देश पुनः शस्त्रीकरण की ओर बढ़ेंगे तो हथियारों और उपकरणों की मांग बढ़ेगी। उन्होंने स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 2024 में विश्व सैन्य व्यय 2,718 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि समन्वित प्रयासों से भारतीय रक्षा विनिर्माण क्षेत्र ब्रांड इंडिया दर्शन के साथ वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकता है। रक्षा मंत्री ने कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 में रक्षा निर्यात लगभग 24,000 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड आंकड़े को पार कर गया। अब हमारा लक्ष्य 2029 तक इस आंकड़े को बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र और दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा निर्यातक बनाना हमारा लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें अपने रक्षा उपकरणों की गुणवत्ता के बारे में वैश्विक भरोसा हासिल करना होगा।
श्री राजनाथ सिंह ने गुणवत्ता सुधार की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की, पर आज के प्रौद्योगिकी-संचालित युग में वास्तविक समय की गुणवत्ता निगरानी के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और मशीन लर्निंग जैसे उपकरणों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने वैश्विक प्रौद्योगिकियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए मानकों और परीक्षण प्रोटोकॉल को उन्नत बनाने का भी आह्वान किया। श्री सिंह ने कहा कि हमें समयबद्ध गुणवत्ता आश्वासन मंजूरी पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है ताकि अवांछित देरी न हो। रक्षा मंत्री ने कहा कि गुणवत्ता मूल्यांकन एजेंसियों को हमेशा अपनी कमियों पर नज़र रखनी चाहिए और आधुनिकीकरण तथा परीक्षण बुनियादी ढांचे के माध्यम से उन्हें दूर करने पर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि विशिष्ट प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निरंतर अंतर विश्लेषण का कदम भी आवश्यक है।
रक्षा उत्पादन विभाग के गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय (डीजीक्यूए) द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में परम्परागत क्यूए मॉडल से भविष्योन्मुखी, डेटा-संचालित और स्वचालित प्रणालियों में परिवर्तित करने की आवश्यकता रेखांकित की गई। विशेषज्ञों ने प्रमाणन समयसीमा में तेजी लाने, निरीक्षणों को सुव्यवस्थित करने और रक्षा उत्पादन में वास्तविक समय गुणवत्ता निगरानी शामिल करने के लिए हितधारकों के बीच निर्बाध सहयोग का आह्वान किया। रक्षा उत्पादन सचिव श्री संजीव कुमार ने भारत को एक प्रमुख रक्षा निर्यातक राष्ट्र बनाने में नवोन्मेष और उद्योग के सहयोग की भूमिका का उल्लेख किया। पारदर्शी और संवादमूलक खुले सत्र बैठक में उन्होंने रक्षा उद्योग के प्रतिनिधियों और उपयोगकर्ता एजेंसियों के सवालों पर जानकारी दी। उन्होंने मंत्रालय के क्यूए प्रणालियों को सरल, डिजिटल और आधुनिक बनाने का संकल्प दोहराया।
यमुना की सफाई के लिए धन से अधिक सटीक योजना की जरूरत : सुनीता नारायण
दिल्ली-एनसीआर में यमुना की सफाई के एजेंडा को रीसेट करें : सीएसई
- यमुना नदी और उसकी सफाई पर ब्रीफिंग पेपर जारी हुआ
नई दिल्ली: 2017 से 2022 के बीच के चार सालों में दिल्ली सरकार ने यमुना की सफाई पर 6,856 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। दिल्ली में अब कुल 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं जो उत्पन्न सीवेज के 80 प्रतिशत से अधिक हिस्से को उपचारित करने में सक्षम हैं। दिल्ली का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा सीवर लाइनों से जुड़ा हुआ है।
इन सबके बावजूद यमुना प्रदूषित और अस्वच्छ क्यों बनी हुई है? सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा आज यहां एक प्रेस ब्रीफिंग में जारी एक नए आकलन में इस गुत्थी को सुलझाने और एक कारगर कार्ययोजना पेश करने का प्रयास किया गया है ।
इस आकलन रिपोर्ट का शीर्षक है यमुना: दी एजेंडा फॉर क्लीनिंग द रिवर। रिपोर्ट कहती है: “दिल्ली में पड़ने वाला यमुना का 22 किलोमीटर लंबा हिस्सा यूं तो नदी की कुल लंबाई का बमुश्किल दो प्रतिशत है लेकिन यह पूरी नदी में प्रदूषण के 80 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। लगभग नौ महीने तक नदी में पानी न के बराबर होता है – नदी में होता है दिल्ली के 22 नालों से निकलने वाला मल और कचरा । वजीराबाद में दिल्ली में प्रवेश करने के बाद यमुना का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।”
प्रेस ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा: “यमुना की सफाई की समस्या कोई नई नहीं है; पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में बहुत पैसे खर्च हुए हैं, कई योजनाएं शुरू की गई हैं और उन्हें क्रियान्वित किया गया है। नदी की सफाई का एजेंडा महत्वपूर्ण है क्योंकि ‘मृत यमुना’ न केवल दिल्ली शहर और हमारे लिए शर्म की बात है – बल्कि इससे दिल्ली के साथ-साथ नीचे (डाउनस्ट्रीम) के शहरों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने का भार भी बढ़ जाता है।”
नारायण ने आगे कहा: “हमें यह समझना चाहिए कि यमुना की सफाई के लिए केवल पैसे पर्याप्त नहीं हैं । इसके लिए एक ऐसी योजना की आवश्यकता होगी जो हमारा मार्गदर्शन करे और एक अलग तरीके से सोचने और कार्य करने में सक्षम बनाये।
यमुना प्रदूषित क्यों है?
सीएसई की रिपोर्ट इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कुछ प्रमुख कारणों की पहचान करती है।
· अपशिष्ट जल उत्पादन से संबंधित डेटा का अभाव: नारायण कहती हैं – “हमें नहीं पता कि दिल्ली में कितना अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है” । ऐसा इसलिए क्योंकि नियमित जनगणना न होने के कारण दिल्ली की आबादी या निवासियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ‘अनौपचारिक’ पानी (भूजल और टैंकरों द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला पानी) की मात्रा को लेकर कोई स्पष्ट डेटा नहीं है। अपशिष्ट जल उत्पादन पर विश्वसनीय डेटा के बिना किसी भी हस्तक्षेप की योजना बनाना असंभव है।
शहर का एक बड़ा हिस्सा अपने माल मूत्र की सफाई के लिए डिस्लजिंग टैंकरों पर निर्भर हैं। ये टैंकर इस अपशिष्ट को सीधा नदी या नालों में बहा देते हैं।:
· मौजूदा योजना में जीपीएस पर विनियमन के माध्यम से टैंकरों से 100% अवरोधन को प्राथमिकता नहीं दी गई है और यह सुनिश्चित नहीं किया गया है कि इस अपशिष्ट को उपचार और पुन: उपयोग के लिए एसटीपी में ले जाया जाए।
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· दिल्ली के नालों में उपचारित और अनुपचारित सीवेज का मिश्रण: दिल्ली में 22 ऐसे नाले हैं जिनका काम उपचारित, स्वच्छ पानी को वापस यमुना में ले जाना है लेकिन अनुपचारित सीवेज भी बिना सीवर वाली कॉलोनियों या मल और अपशिष्ट जल ले जाने वाले टैंकरों के माध्यम से इन्हीं नालों में बहता है ।नतीजतन, अपशिष्ट जल के उपचार का पूरा प्रयास बेकार हो जाता है।
हमने अब तक इसके बारे में क्या किया है?
केंद्र और दिल्ली सरकार ही नहीं बल्कि अदालत भी इस समस्या का समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित कर रही है जोकि एक अच्छी बात है। आधिकारिक कार्रवाइयों के बारे में जानकारी कुछ इस प्रकार है:
हमने अब तक इस बारे में क्या किया है?
केंद्र और दिल्ली की सरकारों और अदालतों ने इस समस्या का समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित किया है और यह सराहनीय है। आधिकारिक कार्रवाई के बारे में यहाँ जानकारी दी गई है:
· सीवेज उपचार क्षमता और उपयोग में वृद्धि: दिल्ली के 37 एसटीपी उत्पन्न सीवेज के 84 प्रतिशत से अधिक का उपचार कर सकते हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अनुसार उत्पन्न सीवेज का लगभग 80 प्रतिशत तक उपचार किया जा रहा है। अब मुख्य उद्देश्य मौजूदा एसटीपी की क्षमता में सुधार करने और भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए नए संयंत्र बनाना है। दावा है कि जून 2025 तक दिल्ली उत्पन सीवेज का 100 प्रतिशत उपचार करेगी।
· सख्त निर्वहन मानदंड: दिल्ली में एसटीपी के चालू होने के बाद से और अधिक कड़े मानक पेश किए गए हैं: नया मानक 10 मिलीग्राम/लीटर है, जबकि राष्ट्रीय मानक 30 मिलीग्राम/लीटर है। 2024 की डीपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के 37 एसटीपी में से 23 अपशिष्ट जल निकासी मानक को पूरा नहीं करते हैं। इसका मतलब है कि मौजूदा संयंत्रों को अपग्रेड और नवीनीकृत करना होगा जिसमें अलग से खर्च होगा।
· नालियों में प्रवाह को रोकने के लिए इंटरसेप्टर सीवर: दिल्ली सरकार की इंटरसेप्टर सीवर परियोजना का लक्ष्य शहर के नालों से प्रतिदिन 1,000 मिलियन लीटर सीवेज को रोकना और उसे उपचार के लिए भेजना है।
· अनधिकृत कॉलोनियों में सीवेज पाइपलाइन: डीपीसीसी का कहना है कि 1,000 से अधिक सीवरेज लाइनें बिछाई गई हैं और कई जगहों पर काम अभी चालू है।
· औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करना: दिल्ली में 28 “स्वीकृत” औद्योगिक क्षेत्र हैं – इनमें से 17 के अपशिष्टों को सामान्य अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों में उपचारित किया जाता है। लेकिन सीएसई रिपोर्ट कहती है कि उपचार की गुणवत्ता चिंताजनक है। साथ यह भी स्पष्ट नहीं है कि उपचारित अपशिष्ट को कहां छोड़ा जाता है।
लेकिन इस पूरी कार्रवाइ के बावजूद यमुना बदस्तूर प्रदूषित होती जा रही है। डीपीसीसी के आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली (पल्ला) पहुंचने के कुछ किलोमीटर के भीतर ही नदी मृत हो जाती है। आईएसबीटी पर नदी में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) शून्य है। इतने सालों और इतनी सारी योजनाओं और निवेश के बाद भी नदी की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ है। सीएसई के अनुसार स्थिति की समीक्षा और योजनाओं के पुनर्निर्धारण की आवश्यकता है।
हम और क्या कर सकते हैं?
सीएसई रिपोर्ट निम्नलिखित पांच-सूत्री कार्य एजेंडा की सिफारिश करती है:
· प्राथमिकता 1:सुनिश्चित करें कि बिना सीवर वाले क्षेत्रों से उत्पन्न मल कीचड़ / फीकल स्लज को एकत्र किया जाए और उसका उपचार किया जाए: ऐसे क्षेत्र जो सीवर लाइनों से नहीं जुड़े हैं उन्हें डिस्लजिंग/अपसाधन टैंकरों द्वारा साफ किया जाता है और यह स्वच्छ यमुना के एजेंडे का हिस्सा होना चाहिए। राज्य को महंगी सीवेज पाइपलाइनों के निर्माण और नवीनीकरण में निवेश करने की आवश्यकता नहीं है । टैंकरों के माध्यम से मल कीचड़ प्रबंधन की रणनीति तेज और लागत प्रभावी भी है। मुख्य कदम यह सुनिश्चित करना है कि सभी डिस्लजिंग टैंकर पंजीकृत हों और उनकी आवाजाही पर नजर रखी जा सके ताकि सारे अपशिष्ट को उपचार संयंत्र तक ले जाया जा सके।
· प्राथमिकता 2: यह सुनिश्चित करें कि उपचारित पानी वैसी नालियों में न बहाया जाए जहां वह अनुपचारित अपशिष्ट जल के साथ मिल जाता हो। चूंकि एसटीपी नदी के पास स्थित नहीं हैं इसलिएइन संयंत्रों द्वारा उपचारित अपशिष्ट जल को उन्हीं नालियों में बहा दिया जाता है जो पहले से ही अनुपचारित अपशिष्ट जल से प्रदूषित हैं। यह ‘मिश्रण’ प्रदूषण नियंत्रण को अप्रभावी करता है और उपचार पर खर्च किया गया पैसा बेकार चला जाता है। प्रत्येक एसटीपी को न केवल जल के उपचार बल्कि उपचारित अपशिष्ट को बहाने तक कि योजना बनानी चाहिए।
· प्राथमिकता 3: उपचारित अपशिष्ट जल का पूरा उपयोग सुनिश्चित करें ताकि वह प्रदूषण भार में वृद्धि न करे: वर्तमान में केवल 331-473 एमएलडी का ही पुनः उपयोग किया जाता है। यह उपचारित अपशिष्ट जल का 10-14 प्रतिशत है। प्रत्येक एसटीपी को न केवल उपचार के लिए बल्कि यह भी योजना बनाने की आवश्यकता है कि वह अपने उपचारित अपशिष्ट जल को किस प्रकार से बहा रहा है। अन्यथा हमारी सारी मेहनत बेकार जाएगी।
· प्राथमिकता 4: उपचारित जल के पुनः उपयोग के आधार पर एसटीपी के उन्नयन की योजना: दिल्ली के अपशिष्ट जल मानक देश के बाकी हिस्सों की तुलना में अधिक कड़े हैं लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें यमुना जैसी नदी में निर्वहन के लिए बनाया किया गया है जिसके जल की असिमिलेटिव अथवा घोलने की क्षमता शून्य है। मानकों को पूरा करने के लिए मौजूदा एसटीपी को नवीनीकृत करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है। मानकों को जल के पुनः उपयोग को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए।
· प्राथमिकता 5: दो नालों – नजफगढ़ और शाहदरा – के लिए योजना को फिर से तैयार करना। ये दो नाले नदी में प्रदूषण के भार का 84 प्रतिशत योगदान करते हैं: इंटरसेप्टर ड्रेन योजना इन दो नालों के लिए काम नहीं कर रही है। लगातार निवेश के बावजूद नदी में प्रदूषण बढ़ रहा है। दिल्ली सरकार को उन कुछ नालों पर फिर से काम करने और ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो नदी के प्रदूषण के लिए मुख्यतः जिम्मेदार हैं।
जातीय जनगणना का फैसला भारत की राजनीति में एक नया इतिहास लिखेगा
लखनऊ : माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा जाति जनगणना कराये जाने के ऐतिहासिक फैसले पर बुधवार को राजधानी लखनऊ के सहकारिता भवन में संगोष्ठी एवं आभार सभा सम्पन्न हुई। जिसमें मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद एवं भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के लक्ष्मण रहे एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री व भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष श्री नरेंद्र कश्यप ने की। कार्यक्रम को पूर्व सांसद व भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री श्री संगम लाल गुप्ता ने भी संबोधित किया। भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश महामंत्री, विधान परिषद सदस्य श्री रामचंद्र प्रधान द्वारा संचालन किया गया।
भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के. लक्ष्मण ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने जातीय जनगणना कराये जाने का फैसला लेकर भारत की राजनीति में एक नया इतिहास लिखने का काम किया है। जातीय जनगणना कराने से विशेष कर भारत के अन्य पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्ग के लोगों को अपनी संख्या की पहचान होगी और संख्या के अनुपात में संवैधानिक अधिकारों को पाने का अवसर मिलेगा। प्रधानमंत्री जी के इस ऐतिहासिक फैसले का ओबीसी मोर्चा एवं ओबीसी समाज हृदय से आभार एवं धन्यवाद व्यक्त करता है।
श्री लक्ष्मण ने कहा कि देश इस बात को जानता है कि अन्तिम रूप से जातीय जनगणना आजादी के पूर्व वर्ष 1931 में हुई थी। 94 वर्ष का लम्बा अन्तराल ऐसा गुजरा जिसमें अधिकांश समय में कांग्रेस पार्टी या गैर भाजपा दलों की सरकारे देश में रही है। लेकिन अफसोस कि गैर भाजपाई किसी भी सरकार ने जातीय जनगणना कराने का कभी साहस नहीं जुटाया और आज उनकी पार्टी के नेता राहुल गांधी, अखिलेश यादव तथा तेजस्वी यादव जैसे अनेको पिछड़ा वर्ग विरोधी सोच रखने वाले, आज मोदी जी के जातीय जनगणना कराने के फैसले का श्रेय लेने की होड़ में खड़े हो गये हैं। अच्छा होता कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल जैसे सभी गैर भाजपाई दलों के नेता भारत के पिछड़े वर्ग के लोगों से माफी मांगते।
पिछड़ा वर्ग मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा। इसके पश्चात एक समिति का भी गठन किया गया जिसमें अधिकांश राजनैतिक दलों ने जातिगत आधार पर जनगणना की संस्तुति की। लेकिन तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने 2011 की जनगणना जातिगत आधार पर कराने का विरोध किया और कहा कि जातियों की गिनती जनगणना में नही बल्कि अलग से कराई जाएगी। इसके बावजूद कांग्रेस की सरकार ने जाति जनगणना की जगह एक सर्वे करवाया जिस पर 4893.60 करोड़ रूपए खर्च किए गए। लेकिन जातिगत आकड़े प्रकाशित नही हुए क्योंकि इस सर्वे में 8.19 करोड़ गलतियां पाई गई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस-सपा सहित इंडी गठबंधन के तमाम घटक दल जाति आधारित जनगणना के सदैव विरोध में रहे।
भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री श्री नरेंद्र कश्यप ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की जातीय जनगणना के फैसले से आज पिछड़े वर्ग के लोगों में जश्न का माहौल है, लोग खुशियां मना रहे हैं, लड्डू बांट रहे हैं तथा ढोल-बैण्ड बाजे बजाकर प्रधानमंत्री जी के फैसले का स्वागत कर रहे हैं। क्योंकि जातीय जनगणना होने से सामाजिक न्याय एवं संवैधानिक अधिकारों को पाने के नये अवसर मिलने वाले हैं। ओबीसी समाज के लोगों को शिक्षा, अर्थ व्यवस्था एवं राजनीति में भी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। मोदी जी ने साबित किया है कि वह जो कहते हैं, करके भी दिखाते हैं। भाजपा की विचारधारा अन्योदय से सर्वाेदय तक जाने की है। जो जातीय जनगणना के फैसले से सही प्रतीत हो रही है।
श्री नरेन्द्र कश्यप ने कहा कि देश में गांधी परिवार से 03 प्रधानमंत्री बने हैं जिनमें पं0 जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गांधी के अलावा राजीव गांधी। क्या कभी गांधी परिवार ने ओबीसी समाज के लोगों के इस दर्द को समझा? गांधी परिवार तो हमेशा आरक्षण का विरोधी रहा है, ओबीसी समाज का विरोधी रहा है, दलितो का विरोधी रहा है। गांधी परिवार की यह आरक्षण विरोधी नियत देश के सामने उस समय उजागर हो गयी थी जब 1955 के काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को पं0 जवाहरलाल नेहरू ने लागू नहीं होने दिया और 1980 में बी.पी. मण्डल आयोग की रिपोर्ट का तो खुलकर संसद एवं सड़क पर गांधी परिवार ने विरोध किया और सच तो यह भी है कि यदि 1990 में भाजपा के समर्थन से बी.पी. सिंह की सरकार नहीं बनी होती तो देश को कभी ओबीसी के लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण भी नहीं मिला होता। कांग्रेस पार्टी की नियत यदि ओबीसी समाज के लिए ठीक होती तो इस समाज को आरक्षण का लाभ आजादी के तुरन्त बाद ही मिल जाता। आज ओबीसी समाज भारत की मुख्यधारा से जुड़ा होता तथा बराबरी का स्थान व सम्मान पा चुका होता।
श्री नरेन्द्र कश्यप ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी सही मायनों में देश की 140 करोड़ जनता को अपना मानते है, जिन्होंने ‘‘सबका साथ सबका विकास‘‘ की अवधारणा पर सबको आगे बढ़ाने का काम किया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने ओबीसी समाज के दर्द व मर्म को समझा। आज भारत के अन्दर ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा मिला। ओबीसी के चेयरमैन को कैबनेट मंत्री का दर्जा मिलना, नीट परीक्षा में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलना, केन्द्रीय एवं सैनिक विद्यालयों में 27 प्रतिशत रिजर्वेशन मिलना, क्रीमिलेयर आय सीमा को 8 लाख तक बढ़ाना तथा केन्द्रीय कैबनेट में 27 प्रतिशत पिछड़े सांसदों को मंत्री बनाना जैसे महत्वपूर्ण निर्णय हुए हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश में जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर घोषणा की थी, जिसको लेकर अब भारतीय जनता पार्टी एक अभियान के रूप में शुरू कर चुकी है। श्री कश्यप ने कहा कि ओबीसी मोर्चा, उ0प्र0 जहॉ एक तरफ जातीय जनगणना का फैसला लेने वाले देश के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी का आभार व्यक्त करेगा वहीं कांग्रेस, सपा एवं गैर भाजपाई दलों जिनकी सोच, मानसिकता एवं एजेण्डा पिछड़ा विरोधी रहा है, उसका पर्दाफाश भी करेगा।
भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री श्री संगम लाल गुप्ता ने जातिगत जनगणना कराने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ओबीसी मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी देश भर में स्वागत समारोह जनसभा तथा अन्य समारोह व रैली करेगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जातिगत जनगणना कराने के फैसले के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेताओं को बेचैन कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने ऐसा फैसला लिया है कि विपक्ष देखता रह गया और उसके पास इसका स्वागत करने और समर्थन देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
ओबीसी मोर्चा के प्रदेश महामंत्री एमएलसी रामचंद्र प्रधान ने कहा है कि जातिगत जनगणना होने से भारत और उत्तर प्रदेश के अलावा देश के कोने कोने में रहने वाले पिछड़ों को बहुत लाभ मिलने वाला है। उन्होंने कहा कि जब प्रत्येक राज्य सरकार के पास पिछड़ों का स्पष्ट आंकड़ा होगा ,तो उनके लिए तमाम तरीके की नौकरी, रोजगार, शिक्षा ,व्यवसाय और निजी क्षेत्र में भी विकल्प खोजे जाएंगे। साथ ही उनके उत्थान ,विकास और शिक्षा पर भी जोर दिया जाएगा।
कार्यक्रम में भाजपा विधायक रामरतन कुशवाहा, लखनऊ भाजपा जिलाध्यक्ष विजय मौर्या, प्रदेश महामंत्री ओबीसी मोर्चा संजय भाई पटेल, ऋषि चौरसिया, नीरज गुप्ता, विजय गुप्ता सहित कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
ऑपरेशन सिंदूर : पाकिस्तान के अंदर छिपे आतंकियों का खात्मा, ठिकाने नेस्तनाबूत
एक्शन की जानकारी नारी शक्ति सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी और व्योमीका सिंह ने दी|
नई दिल्ली : धैर्य, साहस, सटीक योजना और सही निशाना… भारत की सेना ने पहलगाम हमले के बाद आखिरकर पाकिस्तान को अपनी शक्ति से परिचित कराया| भारत ने ऑपरेशन सिंदूर का ऐलान कर पाकिस्तान के भीतर घुसकर नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया| भारतीय सेना के प्रहार से हाफिज सईद के ठिकाने और मसूद अजहर के मदरसे नेस्तनाबूत कर दिया| भारतीय सेना ने मंगलवार- बुधवार की रात पौने दो बजे ऑपरेशन सिंदूर के तहत पीओके और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आतंकवादियों के लॉन्चिंग पैड को टारगेट कर हमला किया| इसमें सैकड़ों आतंकवादियों के मारे जाने की खबर है| भारत ने पाकिस्तान और पीओके में लश्कर के 3 और जैश के 4 लॉन्चिंग पैड तबाह कर दिये| सबसे बड़ी बात यह है भारत के इस एक्शन की जानकारी नारी शक्ति सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी और व्योमीका सिंह ने दी| पूरे मामले को लेकर देश हाई एलर्ट के मोड पर है|
आपरेशन सिंदूर के लांच के बाद देश में गर्ब की अनुभूति है| पहलगाम में शहीद कानपुर के बेटे शुभम द्विवेदी की पत्नी ने कहा कि वो अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद देती हैं| उन्होने कहा कि‘मेरे पूरे परिवार को उन पर भरोसा था कि देश जवाब देगा| जिस तरह से पाकिस्तान को जवाब दिया, उसने हमारे भरोसे को कायम रखा है. यही मेरे पति को सच्ची श्रद्धांजलि है. मेरे पति आज जहां भी होंगे, उन्हें शांति मिलेगी| ’
सूत्रों के अनुसार, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुना है भारत ने पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए. इधर, सेना की कार्रवाई के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने एक्स पर पोस्ट में कहा, ‘ हमें अपने सशस्त्र बलों पर गर्व है. #ऑपरेशन सिंदूर पहलगाम में हमारे निर्दोष भाइयों की क्रूर हत्या का भारत का जवाब है. मोदी सरकार भारत और उसके लोगों पर किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है| ’
प्राचीन ज्वालाओं की गूंज: पर्मियन भारत के अग्नि इतिहास का अनावरण
लखनऊ : प्रायद्वीपीय भारत के हृदय में, गोदावरी बेसिन में समय और चट्टान की परतों के नीचे, पृथ्वी के प्रचंड अतीत का एक झुलसा हुआ एक अभिलेखागार छिपा है। वैज्ञानिकों ने अब सूक्ष्म विश्लेषण और उन्नत रसायन विज्ञान की शक्तिशाली सम्मिलित तकनीकों का उपयोग करके उस अभिलेखगार को खोल दिया है। उन्हें जो मिला है, वह पथ्वी के भूवैज्ञानिक और जलवायु इतिहास को पढ़ने के हमारे तरीके को बदल सकते हैं।
लेट सिलुरियन (419.2 से 443.8 मिलियन वर्ष पूर्व तक) से लेकर क्वाटर्नेरी (2.58 एमवाईए) काल तक, पुराअग्नियों (पैलियोफायर) ने परिदृश्यों पर अपनी छाप छोड़ी, जिससे वनस्पति, जलवायु और यहां तक कि कोयले के निर्माण को भी प्रभावित किया।
वैज्ञानिकों ने लंबे समय से गोंडवाना में पर्मियन कोयला-युक्त संरचनाओं में मैक्रोस्कोपिक चारकोल का अवलोकन किया था, जो व्यापक जंगल की आग का संकेत देता था। भारत में रानीगंज कोयला क्षेत्र उन पहले स्थलों में से एक था, जहां जीवाश्म चारकोल की पहचान की गई थी, जो पुरादलदल प्रणालियों और मौसमी सूखा प्रेरित आग के बीच संबंध को दर्शाता था।
पर्मियन के दौरान उच्च वायुमंडलीय ऑक्सीजन स्तर ने इन घटनाओं को तेज कर दिया होगा, फिर भी इन आग की सटीक प्रकृति – चाहे वे यथास्थान जले हुए अवशेष थे या स्थानांतरित अवशेष – अस्पष्ट बनी हुई थी। भूवैज्ञानिकों को यह बताने के लिए संघर्ष कर रहे थे कि क्या यह स्थानीय आग का परिणाम था या हवा या पानी द्वारा ले जाया गया था।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआईपी) लखनऊ के वैज्ञानिकों ने लगभग 250 मिलियन वर्ष पहले पर्मियन काल के दौरान प्रागैतिहासिक परिदृश्यों में फैली बहने वाली प्राचीन जंगल की आग – पुरा अग्नियों – के निशानों का पता लगाया।
शोधकर्ताओं ने गोदावरी बेसिन के भीतर से एकत्र किये गये शेल नमूनों – कार्बनिक पदार्थों से भरपूर महीन दाने वाली तलछटी चट्टानों – का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। पैलिनोफेसीज़ विश्लेषण का उपयोग करते हुए, उन्होंने पहले चट्टान में संरक्षित कार्बनिक पदार्थों के छोटे कणों को वर्गीकृत किया।
इन कणों में पारभासी कार्बनिक पदार्थ (टीआरओएम) जैसे पराग और पौधों के टुकड़े, पुराअग्नि-प्रेरित चारकोल (पीएएल-सीएच) – आग का स्पष्ट प्रमाण और ऑक्सीकृत चारकोल (ओएक्स-सीएच) जो संभवतः जलने के बाद ले जाया गया या परिवर्तित किया गया – शामिल थे।
डॉ. नेहा अग्रवाल के नेतृत्व वाली टीम ने इन प्राचीन चट्टानों में छिपी आग की कहानी को सही मायने में समझने के लिए रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी, रॉक-इवल पायरोलिसिस और एफटीआईआर स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया।
जरनल एसीएस ओमेगा में प्रकाशित इस अध्ययन में यथास्थान (ऑन साइट) और पूर्व-स्थान (स्थानांतरित) चारकोल के बीच स्पष्ट अंतर प्रदान किया गया है – जो पुराअग्नि अनुसंधान में एक बहुत बड़ी सफलता है।
टीम ने एक उल्लेखनीय अवलोकन भी किया – चट्टान की स्ट्रेटीग्राफी या परत – ने चारकोल के जमा होने के तरीके को प्रभावित किया। ऐसे चरण जब समुद्र का स्तर गिरा (प्रतिगामी चरण), तो आग के अच्छी तरह से संरक्षित निशान पाए गए। समुद्र के स्तर में वृद्धि (अनुक्रमिक चरण) के दौरान, चारकोल अधिक मिश्रित और ऑक्सीकृत था, जो पर्मियन के दौरान गतिशील पर्यावरणीय बदलावों का संकेत देता है।
यह समझना कि पुराअग्नियों के दौरान कार्बनिक पदार्थ कैसे परिवर्तित होता है, पृथ्वी की परत में दीर्घकालिक कार्बन भंडारण के बारे में जानकारी प्रदान करता है। इसका आधुनिक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण रणनीति, कार्बन कैप्चर और भंडारण के लिए प्रमुख निहितार्थ है।
यह भूवैज्ञानिकों को अतीत के इको-सिस्टम, वनस्पति परिवर्तनों और आग की गतिशीलता की व्याख्या करने के लिए एक परिष्कृत दृष्टिकोण भी प्रदान करता है – जो कि पुराजलवायु पुनर्निर्माण और भूवैज्ञानिक डेटिंग तकनीकों में सुधार के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हैं।
“फुलेरा का पंचायती राज”: आत्मनिर्भर दिल के साथ एक डिजिटल हिट
पंचायती राज मंत्रालय की तीन भाग की श्रृंखला “अल्हुआ विकास” का अंतिम एपिसोड स्थानीय करों से स्थानीय प्रगति को बढ़ावा देने पर प्रकाश डालता है
नई दिल्ली : पंचायती राज मंत्रालय की तीन-भाग की विस्तार श्रृंखला “फुलेरा का पंचायती राज” की तीसरी और अंतिम फिल्म “अल्हुआ विकास” डिजिटल दर्शकों को व्यापक रूप से उत्साहित कर रही है। इसके साथ ही देश भर में ग्राम पंचायतों को प्रभावित करने वाले मुद्दों के बारे में लोगों को जागरूक कर रही है। इसका तीसरा और अंतिम एपिसोड पहले राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (24 अप्रैल, 2025) के अवसर पर जारी किया गया था। तब से अब तक इसे 6 मिलियन से अधिक बार देखा गया है। यूट्यूब पर भी इसे शानदार प्रतिक्रिया मिली है।
“अल्हुआ विकास” ग्रामीण स्थानीय निकायों द्वारा राजस्व के अपने स्रोत (ओएसआर) उत्पन्न करने के महत्वपूर्ण महत्व पर प्रकाश डालता है, जो ग्रामीण भारत में पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) की आत्मनिर्भरता को मजबूत करने में मदद करता है। यह फिल्म स्थानीय करों के समय पर भुगतान पर नागरिक जागरूकता को बढ़ावा देती है। साथ ही, इस पर प्रकाश डालती है कि इस तरह के योगदान से बेहतर सेवा वितरण और निरंतर गांव का विकास कैसे संभव होता है। इस फिल्म में नीना गुप्ता, फैसल मलिक, चंदन रॉय, दुर्गेश कुमार और मूल “पंचायत” कलाकारों समेत कई अन्य प्रसिद्ध कलाकार शामिल हैं। इसने नागरिकों को स्थानीय करों का समय पर भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए “जमा करके कर, बनाइये अपनी पंचायत को आत्मनिर्भर” संदेश पर जोर देने के साथ काफी लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। गांवों में विकास कार्यों का समर्थन ही फिल्म का महत्वपूर्ण संदेश है। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पंचायतों को राजस्व के अपने स्रोत (ओएसआर) जुटाने में आत्मनिर्भरता के क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने के लिए पुरस्कार प्रदान करने के साथ शुरू हुई ग्रामीण स्थानीय निकायों को आर्थिक रूप से सबल और “आत्मनिर्भर” बनाने की दिशा में मंत्रालय के संकल्प की यह फिल्म पुष्टि करती है। पंचायती राज मंत्रालय का लक्ष्य ओएसआर को एक घरेलू शब्द बनाना और सक्षम नागरिकों को प्रासंगिक करों का भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करना है। ये योगदान पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय रूप से टिकाऊ और ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर शासन की आत्मनिर्भर संस्थाएं बनाने के लिए आवश्यक हैं।
सिंगापुर के चुनाव में पीपल्स पार्टी के लगातार 14वीं जीत
नई दिल्ली : सिंगापुर के आम चुनाव में लगातार 14वीं बार शानदार जीत करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीपुल्स एक्शन पार्टी को बधाई दी है| प्रधानमंत्री मोदी ने लॉरेंस वोंग को चुनावों में जीत पर बधाई दी। उन्होंने भारत और सिंगापुर के बीच लोगों के बीच घनिष्ठ संबंधों पर आधारित मजबूत और बहुआयामी साझेदारी पर जोर दिया।
गौरतलब है कि पार्टी ने इस जीत के साथ अपने 66 वर्ष पुराने शासन काल को आगे बढ़ाया है| आम चुनाव में पार्टी ने 97 सीटों में से 87 सीटों पर जीत दर्ज कि है| वहीं विपक्षी पार्टियों को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है|
पीएम ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा:
‘‘आम चुनावों में शानदार जीत पर @LawrenceWongST को हार्दिक बधाई। भारत और सिंगापुर के बीच लोगों के बीच घनिष्ठ संबंधों पर आधारित मजबूत और बहुआयामी साझेदारी है। मैं हमारी व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और आगे बढ़ाने के लिए आपके साथ मिलकर काम करना जारी रखने के लिए तत्पर हूं।’’
शब्द हिंसा का बेलगाम समय!
जरूरी है मीडिया का भारतीयकरण

-प्रो.संजय द्विवेदी
पूर्व महानिदेशक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली
यह ‘शब्द हिंसा’ का समय है। बहुत आक्रमक, बहुत बेलगाम। ऐसा लगता है कि टीवी न्यूज मीडिया ने यह मान लिया है कि शब्द हिंसा में ही उसकी मुक्ति है। चीखते-चिल्लाते और दलों के प्रवक्ताओं को मुर्गो की तरह लड़ाते हमारे एंकर सब कुछ स्क्रीन पर ही तय कर लेना चाहते हैं।
यहां संवाद नहीं है, बातचीत भी नहीं है। विवाद और वितंडावाद है। यह किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का संवाद नहीं है, आक्रामकता का वीभत्स प्रदर्शन है।
निजी जीवन में बेहद आत्मीय राजनेता, एक ही कार में साथ बैठकर चैनल के दफ्तर आए प्रवक्तागण स्क्रीन पर जो दृश्य रचते हैं, उससे लगता है कि हमारा सार्वजनिक जीवन कितनी कड़वाहटों और नफरतों से भरा है। किंतु स्क्रीन के पहले और बाद का सच अलग है। बावजूद इसके हिंदुस्तान का आम आदमी इस स्क्रीन के नाटक को ही सच मान लेता है। लड़ता-झगड़ता हिंदुस्तान हमारा ‘सच’ बन जाता है। मीडिया के इस जाल को तोड़ने की भी कोशिशें नदारद हैं। वस्तुनिष्ठता से किनारा करती मीडिया बहुत खौफनाक हो जाती है।
सूचना और खबर के अंतर को समझिए-
हमें सोचना होगा कि आखिर हमारी मीडिया प्रेरणाएं क्या हैं? हम कहां से शक्ति और ऊर्जा पा रहे हैं। हमारा संचार क्षेत्र किन मानकों पर खड़ा है। पश्चिमी मीडिया के मानकों के आधार पर खड़ी हमारी मीडिया के लिए नकारात्मकता, संघर्ष और विवाद के बिंदु खास हो जाते हैं। जबकि संवाद और संचार की परंपरा में संवाद से संकटों के हल खोजने का प्रयत्न होता है। हमारी परंपरा में सही प्रश्न करना भी एक पद्धति है। सवालों की मनाही नहीं, सवालों से ही बड़ी से बड़ी समस्या का हल खोजना है, चाहे वह समस्या मन, जीवन या समाज किसी की भी हो। इस तरह प्रश्न हमें सामान्य सूचना से ज्ञान तक की यात्रा कराते रहे हैं। आज ‘सूचना’ और ‘ज्ञान’ को पर्याय बनाने के जतन हो रहे हैं। सच यह है कि ‘सूचना’ तो समाचार,खबर या न्यूज का भी पर्याय नहीं है। सूचना कोई भी दे सकता है। वह कहीं से भी आ सकती है। सोशल मीडिया आजकल सूचनाओं से ही भरा हुआ है। किंतु ध्यान रखें खबर, समाचार और न्यूज के साथ जिम्मेदारी जुड़ी है। संपादकीय प्रक्रिया से गुजरकर ही कोई सूचना,समाचार बनती है। इसलिए संपादक और संवाददाता जैसी संस्थाएं साधारण नहीं है।
हर व्यक्ति नहीं हो सकता पत्रकार-
यह कहना आजकल बहुत फैशन में है कि इस दौर में हर व्यक्ति पत्रकार है। हर व्यक्ति फोटोग्राफर है। हर व्यक्ति कम्युनिकेटर, सूचनादाता, मुखबिर हो सकता है, वह पत्रकार कैसे हो जाएगा? मेरे पास कैमरा है, मैं फोटो ग्राफर कैसे हो जाऊंगा। विशेष दक्षता और प्रशिक्षण से जुड़ी विधाओं को हल्का बनाने के हमारे प्रयासों ने ही हमारी मीडिया या संवाद की दुनिया को बहुत बड़ा नुक्सान पहुंचाया है। यह वैसा ही है जैसे कपड़े प्रेस करने वाले या प्रिंटिंग प्रेस वाले अपनी गाड़ियों पर ‘प्रेस’ का स्टिकर लगाकर घूमने लगें। मीडिया में प्रशिक्षण प्राप्त और न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के बिना आ रही भीड़ ने अराजकता का वातावरण खड़ा कर दिया है। लोकमान्य तिलक,महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, बाबासाहेब आंबेडकर, पं.जवाहरलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय, माधवराव सप्रे जैसे उच्च शिक्षित लोगों द्वारा प्रारंभ और समाज के प्रति समर्पित पत्रकारिता वर्तमान में कहां खड़ी है। भारत सरकार के आग्रह पर प्रेस कौंसिल आफ इंडिया ने पत्रकारों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के निर्धारण के लिए एक समिति भी बनाई थी, जिसके समक्ष मुझे भी अपनी बात रखने का अवसर मिला था। बाद में उस कवायद का क्या हुआ पता नहीं।
समाज की रूचि का करें परिष्कार-
समाज की रुचि का परिष्कार और रूचि निर्माण भी मीडिया की जिम्मेदारी है। अपने पाठकों, दर्शकों को समय के ज्वलंत मुद्दों पर अपडेट रखना, उनकी बौद्धिक, नागरिक चेतना को जागृत रखना भी मीडिया का काम है। जबकि देखा यह जा रहा है कि पाठकों की पसंद के नाम पर कंटेंट में गिरावट लाने की स्पर्धा है। ऐसे कठिन समय में मीडिया के दायित्वबोध और सरोकारों पर बातचीत बहुत जरूरी है। प्रिंट मीडिया ने भी साहित्य, कलाओं, प्रदर्शन कलाओं और मनुष्य बनाने वाली सभी विधाओं को अखबारों से निर्वासन दे दिया है। मीडिया सिर्फ दर्शक बना रहे यह भी ठीक नहीं। उसे राष्ट्रीय भावना और जनपक्ष के साथ खड़े रहना चाहिए।
देखा जाए तो समाज में फैली अशांति, स्पर्धा, लालसाओं और संघर्ष के बीच विचार के लिए सकारात्मक मुद्दे उठाने ही होंगे। मीडिया खुद अशांत है और गहरी स्पर्धा के कारण सही -गलत में चुनाव नहीं कर पा रहा है। ऐसे में मीडियाकर्मियों की जिम्मेदारी है कि खुद भी शांत हों और संवाद की शुचिता पर काम करें। वसीम बरेलवी लिखते हैं –
कौन सी बात कहां, कैसे कही जाती है।
वो सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है।
वियतनाम में लाखों श्रद्धालुओं ने किए भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के दर्शन
श्रद्धालुओं की तीन किलोमीटर लंबी कतार वियतनाम में भारत के पवित्र अवशेषों के लिए आध्यात्मिक उत्साह को दर्शाती है
- संयुक्त राष्ट्र वेसाक 2025 समारोह में भारी भीड़ देखी गई, भारत की बौद्ध विरासत ने वियतनाम के लोगों को भाव-विभोर किया
वियतनाम : वियतनाम के थान टैम पैगोडा में एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के दर्शन प्राप्त किये हैं, जो वर्तमान में हो ची मिन्ह शहर के बिन्ह चान्ह जिले में वियतनाम बौद्ध अकादमी के भीतर रखे गए हैं। भारत से केंद्रीय मंत्री श्री किरेन रिजिजू और आंध्र प्रदेश के मंत्री श्री कंडुला दुर्गेश के नेतृत्व में एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल द्वारा इन पवित्र अवशेषों को ले जाया गया है, जिसमें ज्येष्ठ भिक्षु और अधिकारी भी शामिल थे।
जिस स्तूप में अवशेषों को रखा गया है, वहां सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। इसे भारत की राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है। श्रद्धालुओं की तीन किलोमीटर लंबी कतार शनिवार को देखी गई, जो वियतनामी लोगों के बीच गहन आध्यात्मिक प्रतिध्वनि और भक्ति को परिभाषित करती है।
भगवान बुद्ध (शाक्यमुनि) की खोपड़ी की हड्डी के एक हिस्से सहित पवित्र अवशेषों को वर्ष 1898 में ब्रिटिश पुरातत्वविद विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा भारत-नेपाल सीमा के पास कपिलवस्तु में खुदाई करके प्राप्त किया गया था। ये अवशेष 1997 में थाई कारीगरों द्वारा तैयार किए गए स्वर्ण-चढ़ाए गए स्तूप में स्थापित हैं, जिसके शिखर पर 109 ग्राम सोना जड़ा हुआ है। यह भगवान बुद्ध के प्रति वैश्विक श्रद्धा का प्रमाण है।
भगवान बुद्ध के अवशेष भारतीय वायुसेना के विमान से 2 मई, 2025 को तान सोन न्हाट अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे और औपचारिक रूप से थान टैम पैगोडा ले जाए गए। इन अवशेषों का सार्वजनिक प्रदर्शन कड़े सुरक्षा प्रबंधों के तहत किया जा रहा है, जो किसी देश के राष्ट्र अध्यक्ष के दौरे के बराबर है। यह वास्तव में उनके पवित्र और कूटनीतिक महत्व को प्रदर्शित करता है।
पवित्र अवशेष संयुक्त राष्ट्र वेसाक दिवस समारोह के भाग के रूप में 21 मई, 2025 तक वियतनाम में रहेंगे। पवित्र अवशेष बा डेन माउंटेन नेशनल टूरिस्ट एरिया (ताई निन्ह), क्वान सू पैगोडा (हनोई) और तम चुक पैगोडा (हा नाम) सहित प्रमुख बौद्ध स्थलों पर भी ले जाए जायेंगे, जिससे भारत और वियतनाम के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती मिलेगी।
संयुक्त राष्ट्र दिवस वेसाक 2025 की विषय-वस्तु “मानव सम्मान के लिए एकता और समावेशिता: विश्व शांति और सतत विकास के लिए बौद्ध अंतर्दृष्टि” है। यह 6 मई से 8 मई तक मनाया जाएगा। इस वैश्विक कार्यक्रम में 85 देशों और क्षेत्रों से 1,200 से अधिक प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है, जिनमें राष्ट्राध्यक्ष, धार्मिक नेता व विद्वान शामिल होंगे। भारत की भागीदारी और इन पवित्र अवशेषों की मेजबानी दोनों देशों के बीच गहन सभ्यतागत बंधन तथा साझा बौद्ध विरासत को दर्शाती है।
