Saturday, June 7, 2025
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अभी तो मैं जवान हूँ —–

राखी बख्शी     

पाकिस्तानी गायिका मलिका पुखराज द्वारा गायी गयी हफीज जालंधरी की नज़्म ‘’ अभी तो मैं जवान हूँ’’  सुनकर बचपन में हम लोगों को हंसी आती थी। ( यहाँ हम से तात्पर्य मुझसे, मुझसे कुछ ही बरस छोटी मेरी बहन और मेरे हम उम्र दोस्तों से है) हमें लगता कि एक अधेड़ महिला जवान होने का यूं पुरज़ोर ढंग से भला क्यों ऐलान कर रही है? दरअसल उस वक़्त हम लोग इसके मायने नहीं समझ पाते थे । पर आज ज़िंदगी के चौथे दशक में प्रवेश करने के बाद हम इसके अल्फ़ाज़ों का मतलब समझते हैं और ये नज़्म हमें बेहद प्रासंगिक लगती है। कुछ रचनाएँ कालजयी होती हैं और उनकी प्रस्तुति करने वाले कलाकार भी उनके साथ सर्वकालिक हो जाते हैं। इस नज़्म में शायर जवानी और ज़िंदगी का  कतरा – कतरा पूरा लुत्फ लेकर जीने का ख़्वाहिशमंद है —–

हवा भी खुशगवार है, गुलों पे भी निखार है

तरन्नुमें हज़ार हैं, बाहर पुरबहार है

कहाँ चला है साकिया, ( इधर तो लौट इधर तो आ)

अरे, यह देखता है क्या ? उठा सुबू , सुबू उठा

सुबू उठा, पियाला भर पियाला भर के दे इधर

चमन की सिम्त कर नज़र, समा तो देख बेखबर

वो काली काली बदलियाँ-2 ऊफक पे हो गईं अयां

वो इक हुजूम – ए_-  मयकशां, है सू- ए – मैकदा रवां

ये क्या गुमां है बदगुमां, समझ ना मुझको नातवां

खयाल- ए – जोहद अभी कहाँ? अभी तो मैं जवान हूँ ,

अभी तो मैं जवान हूँ।

         उम्र बढ़ने के साथ अक्सर कुछ लोगों को  एक निराशा सी घेरने लगती है, जो धीरे-धीरे उन्हें अकेलेपन , अकर्मण्यता और जड़ता की ओर धकेलने लगती है और इस स्थिति से उबरने के लिए उन्हें किसी प्रेरणा की आवश्यकता होती है जबकि दूसरी ओर कुछ लोग ज़िंदादिल होते हैं और उनके लिए उम्र सिर्फ एक संख्या मात्र होती है।  ऐसे लोग मन से कभी बूढ़े नहीं होते और आखिरी सांस तक जीवन को भरपूर जीते हैं ।

        आमतौर पर साठ (60) साल के बाद उम्र का असर या तो हमारे शरीर पर प्रत्यक्ष दिखने लगता है या फिर हममे से बहुत से लोग बुढ़ापा जनित रोगों की गिरफ्त में आ जाते हैं लेकिन आजकल ज़्यादातर लोग अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को ले कर बेहद सचेत रहते हैं और 50 से 60 वर्ष की उम्र के बाद भी व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में बहुत कुछ अर्जित करते हैं । ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी उम्र भले ही 60 पर हो गयी हो लेकिन उन्होंने अपनी हसरतों को जवान रखा ।  उन्होंने जीवन जीने की ललक और लालसा को नहीं छोड़ा।  अपने लक्ष्य की और बढ़ते रहे और मंज़िल को प्राप्त किया और इस मामले में महिलाएं भी पुरुषों से किसी मामले में कम नहीं ।

  उम्र को पीछे छोड़ ज़िंदगी की दौड़ में पूरी तन्मयता और सक्रियता से आगे की बढ़ने वालों में आस्ट्रेलियाई घुड़सवार मेरी हाना का नाम हमेशा याद रखा जाएगा।

 मेरी हाना  ने 66 वर्ष की उम्र में टोक्यो ओलिम्पिक में घुड़सवारी कि ड्रेसेज स्पर्धा में भाग लिया । उनका यह छठा ओलिम्पिक था।  मेरी इस ओलिम्पिक में  कोई पदक तो नहीं जीत पायी लेकिन जीवन के छ: दशक पार करने के बाद भी उन्होने जिस अंदाज़ में घुड़सवारी करके अपना दमखम दिखाया वो अपने आप में एक मिसाल है। मेरी वर्ष 2024 में पेरिस में होने वाले अगले ओलिम्पिक में भी भाग लेने की ख़्वाहिशमंद हैं।  टोक्यो ओलिम्पिक से पूर्व उन्होने 1996 में अटलांटा ओलिम्पिक  , 2000 में सिडनी ओलिम्पिक , 2004 में एथेंस ओलिम्पिक, 2012 में लंदन ओलिम्पिक और 2016 में रियो ओलिम्पिक में भाग लिया था।

      मेरी हाना ओलंपिक में भाग लेने वाली दूसरी सबसे अधिक उम्र की महिला खिलाड़ी हैं।  ब्रिटेन की लोरना जॉनस्टोन दुनिया की सबसे अधिक उम्र की महिला ओलंपिक खिलाड़ी हैं जिन्होंने 1972 में 70 साल की उम्र में ओलिम्पिक में भाग लिया था।  हाना  का जन्म 1 दिसम्बर 1954 को ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में हुआ था।  उनके पति  रॉब हाना भी एक घुड़सवार हैं।  घुड़सवारी को लेकर मेरी हाना का जज़्बा  प्रशंसनीय है । उन्हें देख कर लोगो में एक नया उत्साह जागृत होता हैं और उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपने शौक को ज़िंदा रखने की प्रेरणा मिलती है।

     ओलंपियन डारा टोर्र्स एक ऐसी खिलाड़ी हैं जिनके लिए उम्र एक संख्या मात्र है।  डारा ने इस विषय पर एक पुस्तक भी लिखी है।  डारा ओलंपिक में तैराकी स्पर्धा में भाग लेने वाली दुनिया की सबसे उम्रदराज महिला हैं।  उन्होंने बीजिंग समर ओलिम्पिक में 41 वर्ष की आयु में वापसी की थी ।  उन्होंने कुल पाँच बार ओलिम्पिक में भाग लेकर 12 पदक जीते। डारा आज भी अपनी फिटनेस को लेकर बहुत सजग रहती हैं। वह नियमित रूप से एक्ससरसाइज करती हैं ।  वर्ष 2008 में बीजिंग ओलिम्पिक में उन्होंने तीन सिल्वर मेडल जीते थे।

 डारा ने अपनी पुस्तक ‘’ एज इज जस्ट ए नंबर ‘’ में खुलासा किया है कि उन्होंने ओलिम्पिक में वापसी का सपना उस वक़्त देखा जब वह गर्भवती थीं।

 उनके अनुसार जिस वक़्त वो प्रशिक्षण के लिए वापस लौटीं  उस समय उनपर अपनी छोटी सी बेटी और कैंसर की बीमारी से जूझ रहे पिता की देखभाल की दोहरी ज़िम्मेदारी थी ।  इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी दोनों जिम्मेदारियों को बखूबी पूरा करते हुए प्रशिक्षण प्राप्त किया।

    उम्र की परवाह किए बिना ज़िंदादिली से अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करने वालों की फेहरिस्त में भारतीय अभिनेत्री सुहासिनी मुले का नाम भी शामिल है। सुहासिनी मुले ने वर्ष 2011 में 60 वर्ष की आयु में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर अतुल गुर्टू से विवाह किया । उन्होंने ने एक साक्षात्कार में कहा था कि सपने , जुनून पूरा करने के लिए कोई बूढ़ा नहीं होता। यहाँ तक कि अपना बैटर हाफ खोजने के लिए कोई सही उम्र नहीं होती । उनके विवाह को आज एक दशक हो चुका हैं। सुहासिनी की अपने पति से मुलाकात सोशल नेटवर्किंग साइट फकेबुक पर हुई थी।  आपसी मुलाकात के मात्र डेढ़ महीने बाद ही उन दोनों ने शादी कर ली थी ।

         मानव जीवन में हर कोई चाहता है कि उसे एक अच्छा हमसफर मिले, जिसके साथ वो ज़िंदगी के सुख-दुख साझा कर सके ।   बहुत से लोगों को युवावस्था में ही उनके मन का मीत मिल जाता है और वो सात फेरों के बंधन में बंध जाते हैं पर कुछ लोग जीवन में अकेले रह जाते हैं । ऐसे लोग एक उम्र के बाद आमतौर पर एकाकी जीवन को अपनी नियति मान  लेते थे लेकिन आज के युग में विवाह के मायने भी बदले हैं। अब विवाह केवल  एक संस्कार या संतानोत्पति के लिए एक वैध सामाजिक संस्था मात्र  नहीं रह गया है । आज लोग ढलती उम्र में किसी का साथ पाने  के लिए भी विवाह कर रहे हैं । सुहासिनी मुले के अलावा भी ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने जीवन के उत्तरार्ध में विवाह बंधन में बंधने का फैसला किया और आज अपने जीवन साथी के साथ खुश हैं ।  50- 55 या 60 पार करके  विवाह करना अब समाज में कोई अचरच की  बात नहीं है।  आधुनिकता  का प्रभाव बढ़ने के साथ व्यक्ति को अपने ढंग से जीवन जीने की अधिक स्वतन्त्रता भी मिली है ।

       दरअसल बुढ़ापे का संबंध मनुष्य की उम्र के अलावा उसकी सोच, जिजीविषा और ज़िंदादिली से भी है।  हर हाल में खुश और सकारात्मक रहने वाले लोग निश्चित रूप से बेहतर जीवन जीते हैं और अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करते हैं । उनके लिए उम्र एक संख्या मात्र है।

राखी बख्शी

टैक्स हेवेंस में अंबानी तेंदुलकर समेत 300 भारतीय

टैक्स हेवंस एक ऐसी जगह है जहां पर अपनी काली कमाई छिपाई जाती है। दुनियाँ भर के अमीर यहाँ पर अपना धन छिपाते हैं लेकिन समय- समय पर विभिन्न एजेंसियां इस कमाई को छिपाने वाले नामों का खुलासा करती रहती हैं। ऐसी ही एक एजेंसी पनामा पेपर्स पैंडोरा लीक के जरिये दुनियाँ भर के बड़े नामों का खुलासा किया जिसमें अंबानी और तेंदुलकर जैसी दिग्गज हस्तियों पर भी सवाल खड़े किए गए हैं।

पैंडोरा पेपर्स असल में 1.2 करोड़ दस्‍तावेजों के लीक का नाम है। इनके जरिए दुनिया के कई रईस और ताकतवर लोगों की छिपी हुई दौलत सामने आई है। कुछ मामलों में मनी लॉन्ड्रिंग की जानकारी भी मिली है। 117 देशों के 600 से ज्‍यादा पत्रकारों ने महीनों तक 14 सोर्सेज से आए दस्‍तावेज खंगाले। यह डेटा वॉशिंगटन डीसी स्थित इंटरनैशनल कंसोर्टियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्‍ट्स  को मिला था। ये दुनियाभर के 140 से ज्‍यादा मीडिया संस्‍थानों के साथ मिलकर इतनी बड़ी ग्‍लोबल इनवेस्टिगेशन कर रहा है।

पैंडोरा पेपर्स लीक में 64 लाख दस्‍तावेज हैं, करीब 30 लाख तस्‍वीरें हैं, 10 लाख से ज्‍यादा ईमेल्‍स हैं और करीब 5 लाख स्‍प्रेडशीट्स हैं। अभी तक सामने आए तथ्‍यों में कई नामी हस्तियों से जुड़े खुलासे हुए हैं। लीक फाइलों के जरिए 90 देशों के 330 से ज्‍यादा राजनेताओं के सीक्रेट ऑफशोर कंपनियों के जरिए संपत्ति छिपाने की बात सामने आई है। जॉर्डन के सुल्‍तान के अमेरिका और यूके में गुप्‍त रूप रूस प्रॉपर्टीज खरीदने का पता चला है। अजरबैजान में सत्‍ताधारी परिवार ने यूके में 400 मिलियन पौंड से ज्‍यादा की प्रॉपर्टी डील्‍स कर रखी हैं। चेक प्राइम मिनिस्‍टर ने भी ऑफशोर इनवेस्‍टमेंट्स की जानकारी नहीं दी। केन्‍याई राष्‍ट्रपति के परिवार ने भी दशकों तक ऑफशोर कंपनियों का मालिकाना हक अपने पास रखा। जारी दस्‍तावेजों में 300 भारतीयों के नाम हैं। इनमें अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप के अनिल अंबानी, पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर, बायकॉन की किरन मजूमदार शॉ और भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी की बहन शामिल हैं। इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कई भारतीयों ने 2016 में पनामा पेपर्स लीक के बाद अपनी सपंत्तियों को इधर-उधर किया।

बादशाह खान की ख़्वाहिश भयावह तरीके से हुई सच, बेटा आर्यन चार साल से ले रहा ड्रग्स

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उड़ता वालीवुड की कड़ी में नया नाम स्टार किड आर्यन खान का जुड़ गया है। कभी सुपर स्टार शाहरुख खान ने अपनी ख़्वाहिश जताई थी कि उनका बेटा ड्रग्स ले और बैड ब्वाय बने, भयावह तरीके से सच हो गई है। मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज में मिले ड्रग्स के मामले में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को कल गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है। पूछताछ के दौरान आर्यन अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख पा रहे हैं। वो लगातार रो रहे हैं। इस दौरान आर्यन ने स्वीकार किया है कि वो करीब 4 साल से ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं। आर्यन ने कबूला है कि भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ड्रग्स ले चुके है। उधर आर्यन की फोन से शाहरुख खान से बात कराई गई है। पूरे मामले में पूछताछ के बाद उनकी पेशी होगी। उधर बेटे कि गिरफ्तारी के बाद वालीवुड शाहरुख खान के साथ खड़ा हो गया है। सलमान खान उनके घर पहुंचे तो पूजा भट्ट और सुनील शेट्टी ने उनके समर्थन में बयान दिया है।

मोटापा कम करने के नाम पर ख़रबों की ठगी

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डॉ सरनजीत सिंह

फिटनेस एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट

आप सभी मेरी इस बात से ज़रूर सहमत होंगे कि किसी भी छोटी-बड़ी समस्या के उचित समाधान के लिए उस विषय पर सटीक जानकारी होना बहुत ज़रूरी होता है. अब अगर समस्या आपके स्वस्थ्य से जुड़ी हो तो ये जानकारी और भी ज़रूरी हो जाती है. आज मोटापा (ओबेसिटी) पूरे विश्व में स्वास्थ से जुड़ी एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है. तमाम मेडिकल रिसर्चेस होने के बावज़ूद आज तक हम इसे किसी दवा से नियंत्रित करने में नाकाम रहे हैं. इस विषय पर सही जानकारी न होने की वज़ह से पिछले कुछ सालों में मोटापे से जुड़ी बीमारियों जैसे हाई ब्लड प्रेशर, टाइप -2 डायबिटीज, स्ट्रोक, कुछ ख़ास तरह के कैंसर, आर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस, अस्थमा, लिवर और किडनी डिसऑर्डर्स, गॉलस्टोन्स, स्लीप एपनिया, इनफर्टिलिटी, माइग्रेन, डिप्रेशन….के मरीज़ लगातार बढ़ते जा रहे हैं. एक और दुखद बात ये है कि अब बच्चों में भी मोटापे के लक्षण बहुत कम उम्र में दिखने लगे हैं और अगर अभी भी इस पर विशेष ध्यान न दिया गया तो निकट भविष्य में स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है।

सही जानकारी न होने के कारण इस समस्या से तुरंत छुटकारा दिलाने के लिए कई तरह के अवैज्ञानिक और अनुचित धंधे भी शुरू हो गए हैं. कोई इसके लिए योग बेच रहा है, कोई जिम या हेल्थ क्लब की सर्विसेज बेच रहा है, कोई ऑनलाइन ट्रेनिंग और डाइट प्लान बेचकर आपसे मोटी रकम वसूल रहा है, कोई वजन कम करने के लिए फ़ूड सप्लीमेंट्स की दुकान लगाए है, कोई आयुर्वेदिक दवाइयों, जड़ी-बूटियों और चमत्कारी तेलों से आपका वजन कम करने का दावा कर रहा है, ब्यूटीपार्लर्स में भी इसकी महंगी-महंगी थेरपीज़ और लोशन्स का व्यापार चल रहा है, कोई एलोपैथिक दवाएं बेच रहा है तो कोई सर्जरी से आपको पतला करने की गारंटी ले रहा है. इन दावों के प्रचार-प्रसार के लिए अखबारों, वेबसाइट्स और तमाम टी वी और यू ट्यूब चैनल्स का प्रयोग हो रहा है जिसके चलते मोटापा अब अरबों-खरबों का व्यापार बन चुका है. पहले और बाद की फोटो दिखाकर लोगों को अपने जाल में फंसाया जाता है और सही जानकारी न होने की वजह से इससे आपके न केवल पैसों का नुक्सान होता है बल्कि इससे आपके स्वस्थ्य के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है।

अपने इस लेख में मैं आपको मोटापे के साथ-साथ इसके वैज्ञानिक और उचित उपचारों की भी जानकारी दूंगा. इसको जानने के लिए मोटापे से जुड़ी पहले से चली आ रही कुछ धारणाओं की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है. एक धारणा के अनुसार अगर आप पुरुष हैं और आपकी कमर का आकार 40 इंचेस से अधिक है और यदि महिला हैं और आपकी कमर का आकार 35 इंचेस से अधिक है तो आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. एक और धारणा के अनुसार यदि आपका वजन आपकी लम्बाई को सेन्टीमीटर में बदलकर उसमे से 100 की संख्या घटाने पर जो संख्या आती है उससे अधिक है तो आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. यानि कि यदि आपकी लम्बाई 170 सेन्टीमीटर है और अगर आपका वजन 70 किलो से अधिक है तो आप मोटापे के मरीज हैं. इन दोनों धारणाओं में उम्र और फैट के वितरण सम्बन्धी जानकारी न होने के कारण इन्हें प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए।

इनमें से सबसे प्रचिलित धारणा जिसे पिछले करीब 150 सालों से दुनिया भर के तमाम डॉक्टर्स, न्यूट्रिशनिस्ट , हेल्थ और फिटनेस एक्सपर्ट्स मानते चले आ रहे हैं और जो वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्लू एच ओ) द्वारा भी स्वीकृत है, उसे ‘बॉडी मास इंडेक्स’ यानि बी.एम.आई. के नाम से जाना जाता है. पिछले कई सालों से हम बी.एम.आई के बारे में टी वी शोज, अख़बारों, हेल्थ और फिटनेस मैगजीन्स में और इंटरनेट पर देखते और पढ़ते आ रहे हैं. इसके अलावा आजकल हेल्थ और फिटनेस से जुड़े जितने भी मोबाइल ऍप्लिकेशन्स का प्रयोग हो रहा है उनमें भी बी.एम.आई. को मोटापे का मापदंड बनाकर अरबों रुपये कमाए जा रहे हैं. बी.एम.आई. की धारणा मोटापे को नापने को नापने में कितनी कारगर है इसे जानने के लिए हमें इसकी तह में जाना होगा. दरअसल बी.एम.आई. की संकल्पना उन्नीसवीं सदी में बेल्जियम के एक वैज्ञानिक अडोल्फ क्वेटेलेट ने की थी, इसीलिए इसे ‘क्वेटेलेट इंडेक्स’ के नाम से भी जाना जाता है. अडोल्फ क्वेटेलेट एक खगोलशास्त्री, गणितज्ञ, सांख्यिकीविद और एक समाजशास्त्री थे. अपने एक अनुसंधान में उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे हमारे शरीर की लम्बाई में बढ़ोत्तरी होती है वैसे-वैसे हमारा वजन भी एक ख़ास अनुपात में बढ़ता है और यदि वजन का बढ़ना शरीर की लम्बाई की तुलना में इस अनुपात से अधिक होता है तो आप अधिक वजन या मोटे की श्रेणी में आ जाते हैं और आप में मोटापे से जुड़ी बीमारियों और अन्य समस्याओं के होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. अब यदि एक तरह से देखा जाये तो ये संकल्पना पूरी तरह से त्रुटिरहित जान पड़ती है जबकि ऐसा नहीं है।

इसे ठीक से समझने के लिए हमें मोटापे की सही परिभाषा को जानना होगा. इस परिभाषा के अनुसार हमारे शरीर में जमा फैट (वसा या चर्बी) के एक ख़ास मात्रा से अधिक होने को ही ‘मोटापा’ कहते हैं. फैट हमारे शरीर में पाए जाने वाले कई यौगिकों की तरह एक प्रकार का यौगिक है जो शरीर में मौजूद फैट सेल्स में जमा रहता है. हम सभी में शरीर के अलग-अलग अंगों में इन फैट सेल्स की अलग-अलग संख्या होती है. पुरुषों में ये ज्यादातर उनकी कमर के इर्द-गिर्द और महिलाओं में कमर से निचले भाग में जमा होता है. पुरुषों में इस तरह फैट जमा होने को ‘एंड्राइड टाइप ओबेसिटी’ और महिलाओं में ‘गाईनोएड टाइप ओबेसिटी’ कहते हैं. फैट हमारे शरीर में बहुत महत्वपूर्ण कार्य करता है. ये हमारे लिए कार्बोहड्रेट के बाद दूसरे ऊर्जा स्रोत का काम करता है, ये फैट में घुलनशील विटामिन्स (विटामिन ए, डी, इ और के) की मेटाबोलिज्म में सहायता करता है, ये कुछ तरह के होर्मोनेस बनाने में मदद करता है और शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की रक्षा करता है. फैट द्वारा किये जाने वाले इन महत्वपूर्ण कार्यों के लिए हमें एक निश्चित मात्रा में इसे भोजन से प्राप्त करना होता है. हमारे शरीर में एक ख़ास मात्रा से अधिक फैट जमा होने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है जो हमारी धमनियों में रक्त प्रवाह में अवरोध पैदा करता है. इससे शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन और दूसरे ज़रूरी तत्त्व नहीं पहुँच पाते और शरीर में विषैले तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाने के कारण वो सुचारु रूप से काम करना बंद कर देते हैं।

इस परिभाषा से समझा जाये तो मोटापे नापने का सही मापदंड हमारे शरीर जमा फैट को नापना है. यानि कि यदि आपके शरीर में फैट कि मात्रा आपकी उम्र और लिंग के आधार पर निर्धारित मात्रा से अधिक है सिर्फ़ तभी आप मोटापे की श्रेणी में आते हैं अन्यथा नहीं. अतः इस परिभाषा के अनुसार मोटापे का सम्बन्ध न तो आपकी लम्बाई या वजन से है और न ही आपके आकार से. इस परिभाषा के अनुसार यदि पतले दिखने वाले व्यक्ति में मोटे दिखने वाले व्यक्ति की तुलना में फैट की मात्रा एक खास मात्रा से अधिक है तो पतले दिखने वाले व्यक्ति में मोटापे से जुड़ी बीमारियों की संभावनाएं अधिक होंगी. हालाँकि ऐसे मरीजों की संख्या कम होती है, फिर भी ये देखा गया है कि कुछ पतले दिखने वाले मरीजों की हार्ट अटैक से होने वाली मौत का मुख्य कारण उनके शरीर के अंदरूनी अंगों में फैट का अत्यधिक मात्रा में जमा होना होता है. ये फैट ऊपर से दिखाई न देने के कारण अक्सर ऐसे मरीज़ों को इसकी गंभीरता का अंदाज़ा नहीं हो पता और अक्सर पहले ही हार्ट अटैक में उनकी मौत हो जाती है.

क्वेटेलेट साहेब ने सिर्फ शरीर की लम्बाई और वजन के आधार पर मोटापे की परिभाषा दी थी, उनकी परिभाषा में शरीर में जमा फैट की मात्रा नापने का कोई ज़िक्र ही नहीं था. उनकी इस संकल्पना के कई सालों के बाद वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला कि अडोल्फ क्वेटेलेट की संकल्पना पूर्णरूप से सही नहीं थी. ये सही है कि करीब 95% लोगों के वजन बढ़ने का मुख्य कारण उनके शरीर में फैट का बढ़ना ही होता है लेकिन जब ऐसे लोग अपना वजन कम करने की कोशिश करते हैं तो ज़्यादातर लोगों की प्रक्रिया में वैज्ञानिक आधार न होने पर उनके वजन का बहुत बड़ा हिस्सा शरीर से पानी, इंटेस्टिनल बल्क (मल) और उनकी मांस-पेशिओं की क्षति के कारण होता है. इस प्रक्रिया में शरीर में जमा फैट पर ज़्यादा असर न होने के कारण उनके स्वाथ्य में सुधार होने की बजाये विपरीत असर पड़ता है. उन्हें मोटापे की सही जानकारी न होने के कारण इस नुक्सान का पता भी नहीं चलता और अंततः वो मोटापे से जुड़ी किसी गंभीर समस्या के शिकार हो जाते हैं. सही जानकारी का नहीं होने की वज़ह से गलत तरह से वज़न कम कराने के तमाम अप्राकृतिक और खतरनाक तरीकों का कारोबार पिछले कई सालों से चलता चला आ रहा है जो अब अरबों-खरबों का खेल हो चुका है. इसका ज़िक्र मैंने अपने पिछले लेख, वॉल्यूम – 8, फिटनेस इंडस्ट्री और ‘फिट इंडिया’: कितना सच कितना झूठ (क्लिक करें) में किया था।

इन तथ्यों के आधार पर मोटापे का सीधा सम्बन्ध शरीर में जमा फैट से है. यानि कि शरीर के वजन से ज़्यादा ज़रूरी हमारा बॉडी कम्पोजीशन (शरीर का संयोजन) जानना है. शरीर में फैट की मात्रा जानने के लिए हमें बॉडी कम्पोजीशन एनालिसिस या बी.सी.ए. कराना होता है. इससे हमारे शरीर में जमा फैट के साथ-साथ हमारे लीन बॉडी मास की भी जानकारी मिलती है. शरीर से फैट की मात्रा को हटा कर जो वजन बचता है उसी को लीन बॉडी मास कहते हैं जिसमें शरीर के आंतरिक अंगों के साथ हमारी मांस-पेशियाँ और हड्डियों का वजन होता है. ख़राब बॉडी कम्पोजीशन यानि कि शरीर में फैट की मात्रा बढ़ने के कुछ जैविक कारण आनुवांशिक (जेनेटिक), हॉर्मोन्स का असंतुलन, कुछ बीमारीओं और दवाओं के दुष्प्रभाव होते हैं. वर्तमान परिदृश्य में देखा जाये तो इसके मुख्य कारण निष्क्रियता, असंतुलित आहार, जंक फूड, शराब का अत्यधिक सेवन, तनाव और डिप्रेशन होते हैं. उम्र और लिंग के आधार पर शरीर में फैट की मात्रा के कुछ निर्धारित मापदंड बनाये गए हैं. 20 से 40 साल के पुरुषों में फैट की मात्रा 20% से अधिक होने पर और इस उम्र की महिलाओं में ये 33% से अधिक होने पर आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. 40 से 59 साल के पुरुषों में फैट की मात्रा 22% होने पर और इस उम्र की महिलाओं में ये 34% से अधिक होने पर आप मोटे की श्रेणी में आते हैं. इसी तरह 60 से 79 साल के पुरुषों में फैट की मात्रा 25% और इस उम्र की महिलाओं में ये 36% से अधिक होने पर आप मोटे की श्रेणी में आते हैं.

शरीर में फैट का प्रतिशत अलग-अलग तरह के कई उपकरणों और तकनीकों से जाना जा सकता है. इनमें मुख्य रूप से बॉडी फैट कैलिपर, बायो इलेक्ट्रिकल इम्पिडेन्स, बॉड पॉड, अल्ट्रासाउंड, एम आर आई, अंडर वाटर वेइिंग और डुअल एनर्जी एक्स रे अबसोर्पटिओमेटरी (डेक्सा) का प्रयोग होता है. इन सभी में सबसे उत्तम उपकरण डेक्सा होता है. इससे शरीर में फैट की मात्रा की बहुत सटीक जानकारी मिलती है. ये वही उपकरण है जिससे ऑस्टियोपोरोसिस नामक बीमारी होने पर डॉक्टर्स हड्डियों में मिनरल्स की मात्रा जांचने के लिए बोन मिनरल डेंसिटी या बी.एम.डी. टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. शरीर में फैट की अधिक मात्रा या मोटापे का कारण चाहे कुछ भी हो इसे कम करने का एक मात्र प्राकृतिक और सुरक्षित उपाय वैज्ञानिक तरीके से एक्सरसाइज करना, संतुलित आहार लेना, नींद का पूरा होना और एक सकारात्मक सोच होना हैं. अक्सर देखा गया है कि वजन कम करने के लिए लोग भोजन की मात्रा को या तो बहुत कम कर देते हैं या फिर उपवास करने लगते हैं या फिर कुछ ज़रुरत से ज़्यादा एक्सरसाइज करना शुरू कर देते हैं. इन प्रक्रियाओं से शुरू के कुछ दिनों तक पानी की क्षति के कारण वजन तो ज़रूर कम हो जाता है लेकिन ये फैट कम होने की वजह से नहीं होता. इससे शरीर को भोजन की उचित मात्रा और पोषक तत्वों की पुर्ति न होने के कारण उनमे कमज़ोरी, थकान, सर दर्द, मांस-पेशियों में तनाव, जोड़ों में दर्द, बार-बार इंजरी होना, भूख न लगना नींद न आना और चिचिड़ापन जैसी समस्याएं होने लगती हैं. इस तरह की प्रक्रियाओं को लम्बे अर्से तक जारी रखने पर ये समस्याएं गंभीर रूप धारण कर लेती हैं. इनसे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, पैरालिसिस, किडनी डिसऑर्डर, गॉलस्टोन्स, आर्थराइटिस, कमर का दर्द, गर्दन का दर्द और डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. इन प्रक्रियाओं के दौरान अनजाने में हम एक और गलती कर बैठते हैं. जल्दी वजन कम करने के चक्कर में हम हमारे शरीर के बहुत महत्वपूर्ण ऊतक, हमारी मांस-पेशियों की क्षति और उन्हें कमज़ोर कर देते हैं. ये वही ऊतक हैं जो हमारे शरीर में जमा फैट को ऊर्जा में बदल कर हमें मोटापे से जुड़ी समस्याओं से बचाने में सहायक होते हैं।

डुअल एनर्जी एक्स रे अबसोर्पटिओमेटरी (डेक्सा)

वजन कम करने की किसी भी प्रक्रिया के दौरान मांस-पेशियों की क्षति होने पर हमारे शरीर में पहले से ज़्यादा फैट जमा होने लगता है और हम इससे जुड़ी गंभीर समस्याओं का शिकार बन जाते हैं. एक्सरसाइज से जुड़ी एक और भ्रान्ति है, अक्सर जिम या पर्सनल ट्रेनर पेट और कमर के इर्द-गिर्द जमा फैट को कम कराने के लिए पेट की मांस-पेशियों (अब्डॉमिनल्स) की कई एक्सरसाइजेज जैसे सिट अप्स, क्रंचेस, लेग रेसेस और कई तरह के साइड बेंड्स कराते हैं जबकि क्सरसाइज फिजियोलॉजी के अनुसार फैट को शरीर के किसी विशेष भाग (स्पॉट रिडक्शन) से कम नहीं किया जा सकता. एक्सरसाइज करने वालों में कमर में होने वाले दर्द का बहुत बड़ा कारण एब्डोमिनल एक्सरसाइजेज का ज़रुरत से ज़्यादा या उन्हें गलत तरीके से करना होता है. वजन कम करने के लिए कोई भी तरीका अपनाने से शुरआती दिनों में हमारे वजन में कमी, शरीर से पानी की और इंटेस्टिनल बल्क (मल) की क्षति की वजह से होती है. शुरुआत के 6 से 8 हफ्ते में 5 से 6 किलो तक का वजन बड़ी आसानी से कम हो जाता है और इस स्थिति के बाद वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग किये बिना वजन का कम होना मुश्किल होने लगता है. वैज्ञानिक तरीके से हमारे वजन से ‘फैट’ कम करने के लिए सबसे पहले हमें अपना बॉडी कम्पोजीशन टेस्ट कराना होता है. इससे हमारे शरीर में फैट की सही मात्रा का पता चलता है जो फैट कम करने के लिए एक वास्तविक लक्ष्य बनाने में सहायता करता है. इसके बाद हमें कुछ ख़ास तरह के हेल्थ और फिटनेस टेस्ट्स कराने होते हैं जिनका ज़िक्र मैंने अपने पिछले लेख में किया था।

ये करीब 40 से 50 तरह के अलग-अलग टेस्ट्स होते हैं. ये टेस्ट्स किसी पैथोलॉजी लैब में नहीं होते. इनकी सही जानकारी सिर्फ एक योग्य ट्रेनर को ही होती है. इन टेस्ट्स से एक्सरसाइज करने वाले की खूबियों और कमज़ोरियों का पता चलता है. इस प्रक्रिया से एक सटीक और व्यक्तिगत ट्रेनिंग और डाइट प्लान बनाने में मदद मिलती है. इन टेस्ट्स से पता चलता है कि आपको एक हफ्ते में कौन सी एक्सरसाइज यानि कि वज़न उठाने वाली (स्ट्रेंथ ट्रेनिंग), एंडुरेंस बढ़ाने वाली (कार्डियोवैस्कुलर ट्रेनिंग) और फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाने वाली (योग या स्ट्रेचिंग ट्रेनिंग) कितने दिन करनी चाहिए, एक्सरसाइजेज का सही चयन कैसे होना चाहिए, उनकी क्या इंटेंसिटी होनी चाहिए और उन्हें कितनी देर तक करना चाहिए।

इन टेस्ट्स से ये भी पता चलता है कि आपको दिन भर में अपनी डाइट में कितनी कैलोरीज लेनी चाहिए, उसमें कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन्स, फैट और पानी की कितनी मात्रा होनी चाहिए और ज़रुरत पड़ने पर आपको कौन-कौन से विटामिन्स और मिनरल्स का प्रयोग करना चाहिए. इस तरह से बने फिटनेस और डाइट प्लान का पालन करने के कुछ दिनों के बाद जब आप एक लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं तो इन्ही टेस्ट्स को दोबारा कर आपके फिटनेस और डाइट प्लान में ज़रूरी बदलाव किये जाते हैं. इस प्रक्रिया से न केवल शरीर से फैट कम करने में मदद मिलती है बल्कि इससे आपकी फिटनेस में भी बिना किसी इंजरी के और किसी भी तरह की खतरनाक दवाओं का सेवन किये निरंतर सुधार होता रहता है. इस वैज्ञानिक प्रक्रिया से शरीर के सभी अंगों पर बहुत लाभदायक प्रभाव पड़ता है. इससे मांस-पेशियों की क्षति नहीं होती और उनके पहले से अधिक मजबूत होने से दुबारा फैट जमा होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. इसके साथ-साथ इस प्रक्रिया से आपके आकार में भी सकारात्मक परिवर्तन होते हैं जिससे आप अधिक आकर्षक दिखने लगते हैं।

दुर्भाग्यवश इस तरह की प्रक्रिया बहुत ही कम जिम्स या हेल्थ सेंटर्स में देखने को मिलती है जिसकी वजह से जिम की मोटी फीस और अनावश्यक फ़ूड सप्लीमेंट्स पर पैसा खर्च करने के बावज़ूद आपको नुक्सान उठाना पड़ता है.

अपने पिछले लेख की तरह अंत में मैं बस यही कहूंगा कि शरीर में फैट की मात्रा बढ़ने में सालों लगते हैं इसे कम करने के लिए आपको बिलकुल जल्द बाज़ी नहीं करनी चाहिए. जल्द से जल्द अपने वजन कम करने और शरीर के अकार में बदलाव के पीछे न भागें. छै हफ़्तों में या तीन महीनों में होने वाले चमत्कारिक बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन के झांसे में न फंसें. फिटनेस के सही मायने समझें. अगर आप वैज्ञानिक तरीके से फिटनेस प्रणाली का पालन करते हैं तो शरीर के आकार में सकारात्मक बदलाव आना निश्चित है. ये एक धीमी प्रक्रिया है लेकिन इसे पाना असंभव भी नहीं है. इसे पाने के लिए अपने गोल्स को छोटे-छोटे चरणों में पूरा करने की कोशिश करें. गलतियों से सीखें और उन्हें दोबारा न करें. एक महीने में दो किलो से ज्यादा वज़न (फैट) कम होना और एक किलो से ज्यादा लीन मास (मांस-पेशियाँ) का बढ़ना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। नियमित रूप से एक्सरसाइज करें, संतुलित आहार लें, एक दिन में कम से कम दो से ढाई लीटर तक पानी पियें, सिगरेट, तम्बाकू, शराब से दूर रहें, रात की 7 से 8 घंटों की पूरी नींद लें और एक सकारात्मक सोच रखें. प्राकृतिक और सुरक्षित रहते हुए अपने फिटनेस गोल को प्राप्त करने का इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं है. याद रहे हम यहाँ ‘फैट’ कम करने की बात कर रहे हैं यानि कि अगर हमारा वजन कम होता है तो वो ‘फैट’ के कम होने से होना चाहिए न की शरीर के दूसरे अवयवों से, जिनके बारे में हम पहले बात कर चुके हैं. इस प्रक्रिया का सही तरीके से पालन करने पर आपको न तो किसी फैट बर्नर सप्लीमेंट की ज़रुरत पड़ेगी और न ही किसी महंगी थेरेपी या सर्जरी की ज़रुरत पड़ेगी. इससे आप अनुचित तरह से वजन कम करने वाले तरीकों और दवाओं से होने वाले दुष्प्रभावों से भी दूर रहेंगे।

कृतज्ञ राष्ट्र ने बापू और शास्त्री जी को नमन किया

माटी के दो लाल मोहन दास करमचंद गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर पूरा देश नमन कर रहा है। आजादी की लड़ाई के महानायक बापू और जय जवान जय किसान का नारा देने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री जी के योगदान को सभी याद कर रहे हैं। महात्मा गांधी को देश ने राष्ट्रपिता का दर्जा दिया है। उनका अतुलनीय योगदान अविस्मरणीय है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को हुआ था। अहिंसा और सत्य के पुजारी गांधीजी की 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महात्मा गांधी और शास्त्री जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गांधी जयंती के अवसर पर राजघाट पहुंचकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। उपराष्ट्रपति नायडू ने भी महात्मा गांधी और शास्त्री जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने गांधी जयंती के अवसर पर राजघाट पहुंचकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयघाट पहुंचकर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 117वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की, वहीं राजघाट पर गांधी जी की समाधि पर श्रद्धा सुमन चढ़ाए।

पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे अनिल शास्त्री ने विजय घाट पर पिता को श्रद्धांजलि दी। उन्होने विजय घाट पर पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की। सोनिया गांधी ने राजघाट पर गांधी जी व विजयघाट पहुंचकर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बापू और शास्त्री जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने गांधी जयंती के अवसर पर राजघाट पहुंचकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व कर देश को एकजुट करने वाले महान नेता, दुनिया को अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले ‘बापू’ महात्मा गांधी जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन. पूज्य बापू का जीवन दर्शन और उनके विचार हम सभी के लिए सदैव प्रेरणादायी हैं। ’

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गांधी जयंती पर कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस की सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं. आइए, हम सभी अहिंसा के सिद्धांतों और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के शिक्षा एवं आदर्शों के अनुसरण का प्रण लेकर इस दिवस को सार्थकता प्रदान करें.’ उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, ‘सत्य, अहिंसा एवं प्रेम का संदेश देता ‘बापू’ का जीवन समरस समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनकी जन्म-जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि. पूज्य बापू का जीवन और आदर्श देश की हर पीढ़ी को कर्तव्य पथ पर चलने के लिए प्रेरित करता रहेगा.’ उन्होंने लिखा, ‘गांधी जयंती पर मैं आदरणीय बापू को नमन करता हूं. उनके महान सिद्धांत विश्व स्तर पर प्रासंगिक हैं और लाखों लोगों को ताकत देते हैं।

निरंकार देव सेवक और बालगीत साहित्य

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डॉ. नितिन सेठी          

समय अपने गर्भ में अनगिनत रहस्यों-तथ्यों को समेटे रहता है। अपने प्रवाह के साथ समयचक्र इन्हें अपने अस्तित्व में अतीत का चोला पहना देता है। अतीत के रूप में ये रहस्य और तथ्य इतिहास की संज्ञा से विभूषित होते हैं। इतिहास में मात्र अतीत या प्राचीनकाल की घटनाओं का संकलन ही नहीं होता अपितु इनका विश्लेषण-विवरण भी इतिहास के अन्तर्गत समाहित होता है। ’इतिहास- शब्द इति+ह+आस से बना है, जिसका अर्थ निकलता है- निश्चित ही ऐसा हुआ था। विचारक हेनरी पिरेण इतिहास को समाज में रहने वाले मनुष्यों के कार्यों और उपलब्धियों की कहानी बतलाते हैं। अतीत का सार्थक और व्यवस्थित अध्ययन जहाँ हमारे वर्तमान को सही दिशा में चलने की प्रेरणा देता है, वहीं भविष्य को अंतर्दृष्टि और अनुशासन भी।

हिन्दी भाषा और साहित्य के लिए यह बात संतोषजनक हो सकती है कि इसके इतिहास पर अनेक विद्वानों ने प्रत्येक दृष्टिकोण से विचार किया है। गार्सा द तासी से लेकर यह परम्परा अनवरत रूप से आज भी गतिमान है। ‘भक्तमाल‘, ‘शिवसिंह सरोज‘, ’द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर आव हिन्दुस्तान’ जैसे ग्रंथों से होती हुई इतिहास लेखन की यह प्रक्रिया आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास‘ तक आकर अपने नवोत्कर्ष को प्राप्त करती है। संतोष की बात है कि आज हमारे पास डॉ. रामकुमार वर्मा, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय जैसे लेखकों के महत्वपूर्ण इतिहास ग्रंथ हैं।

सामान्य रूप से उपरोक्त सभी इतिहास ग्रंथ हिन्दी भाषा के प्रौढ़ साहित्य को ही गद्य-पद्य विधाओं में समाकलित करते दिखते हैं। विधा विशेष के रूप में भी हम साहित्य के किसी विशेष पक्ष का इतिहास ही देखते हैं। इन सबमें अगर बालसाहित्य जैसे विषय को ढूँढा जाये तो निराशा ही हाथ लगती है। स्वतंत्रता प्राप्ति तक हमारे पास हिन्दी साहित्य के इतिहास से सम्बन्धित ग्रंथों की संख्या बहुत कम थी, तो फिर भला बालसाहित्य का इतिहास संजोने की साधना कौन करता। हर्ष का विषय था कि बरेली के बाल साहित्यकार निरंकार देव सेवक ने इस दिशा में प्रथम प्रयास किया। सन् 1966 में आपने ’बालगीत साहित्य’ ग्रंथ की रचना कीजो किताब महल, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। इस 276 पृष्ठीय कृति में उस काल तक ज्ञात-अज्ञात अनेक बाल साहित्यकारों  (विशेषतः कवियों) का एक दुर्लभ विवरण प्राप्त होता है। सेवक जी बाल मनोविज्ञान पर गहरी पकड़ रखते थे। यहाँ उन्होंने अनेक रचनाकारों पर इसी दृष्टि से विवेचना प्रस्तुत की। ’बालगीत साहित्य’ का संशोधित संस्करण उ.प्र. हिन्दी संस्थान ने सन् 1983 में प्रकाशित किया। कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों के साथ इसमें नवीन कवियों को भी स्थान मिला। सम्बंधित रचनाकार का चित्र भी इस संस्करण में दिया गया था जिससे यह संस्करण बाल साहित्य का विश्वकोष-सा बन गया।

’बालगीत साहित्य’ का ही दूसरा परिवर्द्धित संस्करण उ.प्र. हिन्दी संस्थान से सन् 2013 में प्रकाशित हुआ, जिसकी सम्पादक प्रख्यात् बाल साहित्यकार प्रो. उषा यादव हैं। यह ग्रन्थ अपने वृहद् रूप में 524 पृष्ठों का है और कुल चौदह अध्यायों में विभक्त है। बाल साहित्य पर मनन-चिंतन करने वाले व्यक्ति के लिये यह बात अनिवार्य ही कही जायेगी कि उसे बाल मनोविज्ञान की पूरी-पूरी जानकारी हो। बच्चों के स्वभाव पर बात कर पाना हर एक के वश की बात नहीं। सेवक जी इसकी महत्ता समझते हैं। इसीलिये कृति का प्रथम अध्याय उन्होंने रखा था ’बाल स्वभाव’। मनोवैज्ञानिक पीठिका और सामयिक चिंतन नामक दो खण्डों में विभक्त यह अध्याय बच्चों के स्वभाव को मनोवैज्ञानिक नज़रिये से देखता है। बालक की आयु का मनोविकास किन पाँच क्रमों में होता है, इस पर चर्चा उपयोगी है। सामयिक चिंतन के अन्तर्गत वैज्ञानिकता, वैश्वीकरण, बाज़ारवाद, वस्तुवादी सोच जैसे तत्व अध्याय की उपादेयता को बढ़ाते हैं। सेवक जी लिखते हैं,“ कोई सुने या न सुने, लेकिन यह तय है कि बालक के मन की बात को बाल साहित्य ने बड़ी संजीदगी से सुना और समझा है। इक्कीसवीं सदी के बालक के वैज्ञानिक सोच और अनुभूतिप्रवण मन की उसने गहरी परख की है। उसे पता है कि बालक ही राष्ट्रीय चिंतन की इकाई है और उसकी अवज्ञा करके कोई राष्ट्र फल-फूल नहीं सकता। बच्चा जिस घर में रहता है, वह ईंट-पत्थरों से निर्मित छत और चहारदीवारी भर नहीं है, इंसानी जज़्बात, आपसी प्यार और विश्वास ही उसे ‘घर’ बनाते हैं। इसलिए बचपन से ही देश के नौनिहालों में उच्च सांस्कृतिक मूल्यों और स्नेहिल व्यवहार का बीजारोपण जरूरी है। इसमें संदेह नहीं है कि आज की हिंदी बाल कविता में आज का बच्चा अपनी सभी समस्याओं और संभावनाओं के साथ एक विराट चित्र फलक पर उपस्थित है। इस चित्र में हिंदी के बाल कवियों द्वारा अभी और संजीव रंग भरे जाएंगे, यह तय है।”

बड़ों की कवितायें आखिर छोटे बच्चों की कविताओं से कैसे अलग हैं और कैसे अलग हों, इसका विवचेन  ’बड़ों की कविता और बालगीत’ में मिलता है। एक महत्वपूर्ण अंतर बालगीत और बालकविता में सेवक जी द्वारा दर्शाया गया है। वैयक्तिकता, आवेगदीप्ति, हार्दिकता, रागात्मकता, संगीतात्मकता, प्रवाह और संक्षिप्तता जैसे गीति काव्य के गुण जिस बाल कविता में हैं, वही बालगीत का दर्ज़ा प्राप्त कर सकती है। अन्यान्य शैलियों में लिखी गई कवितायें बालकविता की श्रेणी में आती हैं। सेवक जी का महत्वपूर्ण चिंतन है,“स्वानुभूति की अभिव्यक्ति की दृष्टि से बच्चों के गीत और बाल गीतों में बहुत अंतर होता है। बच्चों के गीतों की प्रेरणा कवि को स्वयं अपनी अनुभूतियों से मिलती है। उसे अपने मन में उठने वाली भावनाओं का उफान गीतों में व्यक्त करने के लिए विवश कर देता है पर बालगीतों को रचने की प्रेरणा कवि को स्वयं उसकी अपनी अनुभूतियों से नहीं मिलती। वह बच्चों की भावनाओं से प्रेरणा ग्रहण करके कोई बालगीत लिखता है।बच्चों की दुनिया ही बड़ों की दुनिया से सर्वथा भिन्न होती है। बच्चे जिस कौतूहलपूर्ण दृष्टि से सृष्टि के पदार्थों को देखते हैं बड़ों के पास वह दृष्टि नहीं होती। उनके लिए प्रयत्न करके भी उस दृष्टि को प्राप्त करना कठिन होता है।”

 लोक साहित्य अपने आप में बहुत कुछ समेटे रहता है। यहाँ अनेक ऐसी चीजें होती हैं, जो परम्परा से प्रसार पाती रहती हैं। अलिखित बालगीतलोक साहित्य की थाती होते हैं। ये बालगीत कभी भी किसी किताब पर सुदर-सलोने चित्रों के साथ नही छपे होंगे, इन्हें कभी बच्चों की किसी परीक्षा में स्थान नहीं मिला होगा। साहित्य में जिस प्रकार से लोकगीत होते है, उसी प्रकार ये बालगीत भी लोकरंजन-बालरंजन करते दिखते, सुनाई पड़ते हैं। ’हाथी घोड़ा पालकी‘, ‘मोटे लाला पिलपिले,’ ‘एक जानवर ऐसा,’ ’छलकबड्डी आल ताल’ जैसे बालगीतों की भी एक लम्बी परम्परा है जिनके रचनाकारों के नाम भी शायद ही किसी को मालूम होंगे। लेकिन आज भी बच्चे-बच्चे की जुबान पर ये गीत हमें मिल जायेंगे। आवश्यकता इन गीतों के संकलन की भी है। प्रख्यात विचारक हैगर्ड ने एक बार लिखा था, ’’जीवन के प्रारम्भ में ही बच्चों को शिशुगीत देकर हम उसका सम्बन्ध उस सृष्टि से जोड़ देते हैं जो सर्वत्र नियमक्रमबद्ध है।’’‘शिशुगीत साहित्य’ में सेवक जी इसी विषय का विवेचन करते हैं। अंग्रेजी में ’नर्सरी राइम्स’ और बंगाली में ‘छड़ा गीत’ कहलाने वाले ये गीत बहुत छोटे बालकों की मनःस्थिति की अभिव्यक्ति करते हैं। बच्चों की अपनी भावनायें-जिज्ञासायें-प्रतिक्रियायें होती हैं, जिन्हें हम शिशुगीतों की चार से आठ लयबद्ध पंक्तियों में पाते हैं। सेवक जी यहाँ अनेक शिशुगीतों और उनकी रचना प्रक्रिया के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। शिशु गीतों की महत्ता बताते हुए सेवक जी निर्णय देते हैं,“ बच्चे के मानसिक विकास में जितनी उपयोगिता शिशुगीत की हो सकती है, उतनी बाल साहित्य की किसी भी अन्य विधा बाल कहानी, बालगीत, नाटक, जीवनी या ज्ञानवर्धक किसी रूप में लिखे साहित्य की नहीं। शिशु गीतों को सुन-सुनकर बच्चे अपनी उच्छृंखल भावनाओं को संतुलित करना आप से आप सीखते हैं और यह उनके भविष्य के जीवन में उन्हें आत्मानुशासित और आत्मविश्वासी बनाने में बड़ा उपयोगी होता है।”

  बच्चे अपनी माता के आँखों के तारे कहलाते हैं। तारों के समान ही दमकते हुए अपनी चाँद जैसी उज्ज्वलता को बच्चे घर-परिवार-समाज में फैलाये रखते हैं। सेवक जी चाँद-तारों के बालगीत के अन्तर्गत इस पर प्रकाश डालते हैं। ज्ञातव्य है कि चाँद-तारों को आधार बनाकर प्राचीन समय से ही सृजन होता रहा है। गीता में भी तारों की तरह टिमटिमाने वाले सौ पुत्रों के स्थान पर चाँद के समान एक उज्ज्वल चरित्र के पुत्र की कल्पना की गई है। महाकवि सूरदास का भी एक पद हम देखते हैं- ’बार-बार जसुदा सुत बोधति आउ-चन्द तोहि लाल बुलावै’। लगभग प्रत्येक बाल साहित्यकार ने चाँद-तारों को विषय बनाकर बाल कविताओं का सृजन किया है। इसी क्रम में लोरियाँ, प्रभाती और पालने के गीतों की रचना भी की गई है। बच्चों का सोना-जागना माता की गोद में ही होता है। लोरियाँ बच्चों को सोते समय सुनाई जाती थीं। हिन्दी बालसाहित्य इस क्षेत्र में अतिशय सम्पन्न माना जा सकता है। इसी क्रम में प्रातः जागरण के लिये प्रभातियाँ भी गाये जाने की परम्परा रही है। लोरियों-प्रभातियों में चाँद, तारे, सूर्य, समीर, शांत वातावरण, पवित्रता, समर्पण जैसे सात्विक तत्वों का संयोजन और प्राकृतिक सुषमा का सजीव वर्णन मिलता है। बाल साहित्य के इतिहास में इनका विश्लेषण महत्वपूर्ण कड़ी प्रस्तुत करता है। विचारणीय यह बात भी है कि आज जहाँ दो-दो वर्ष के बच्चे प्लेग्रुप या क्रैचे में भेज दिए जाते हों, वहाँ इन ममत्वपूर्ण लोरियों- प्रभातियों का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है।

 हिन्दी बालगीतों का वर्गीकरण’ में विभिन्न आधारों पर बालगीतों को सेवक जी वर्गीकृत करते हैं। यह वर्गीकरण जहाँ मनोवैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतरता है, सामाजिक दृष्टि से भी उपयोगी सिद्ध होता है। आयु के आधार पर तीन से बारह वर्ष तक की आयु के बच्चों को चार वर्गो में बाँटा गया है। बच्चों को प्रिय लगने वाले रस पाँच ही हैं-हास्य, वीर, शान्त, अद्भुत, वात्सल्य। श्रृंगार और करूण रसों का बालगीत साहित्य में कोई स्थान नहीं है। विषय के आधार पर व्यापक सृजन हमें बालसाहित्य में मिलता है। मनोरंजन के साथ-साथ शैक्षिक उद्देश्य भी बालगीतों में अन्तर्निहित रहे हैं। कल्पना, मनोभावों का परिष्कार, सद्भावनाओं का विकास, ज्ञानवर्द्धन और प्रेरणा प्रदान करना; बालगीतों के सृजन के शैक्षिक उद्देश्य कहे जा सकते हैं।

 ’हिन्दी बालगीत साहित्य के इतिहास की भूमिका’ में हिन्दी प्रौढ़ साहित्य की परम्पराओं को लेते हुए इनमें बालसाहित्य सृजन के अंकुरण का लेखा-जोखा है। हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल, रीतिकाल, आधुनिक काल को परिप्रेक्ष्य में रखकर बाल साहित्य के सूत्रपात का क्रमबद्ध विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इसी क्रम में हिन्दी बालगीत साहित्य का इतिहास है जिसे सेवक जी ने पर्याप्त परिश्रम से लिखा है।लगभग 265 पृष्ठों के अन्तर्गत फैले इस अध्याय में बाल साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन कालखण्डों में बाँटा गया है- स्वतन्त्रता पूर्व काल (सन् 1885 से 1947 तक), स्वातन्त्र्योत्तर बालगीत साहित्य (सन् 1947 से 1982 तक) तथा अद्यतन बालगीत साहित्य (सन् 1982 से 2012 तक)। प्रस्तुत विवरण बाल साहित्यकारों के नाम, उनके संक्षिप्त जीवन परिचय के साथ-साथ उदाहरणस्वरूप एक-दो कविताओं की प्रस्तुति देता है। प्रत्येक कालखंड के बाद उसकी संक्षिप्त प्रवृत्तियाँ और विशिष्टतायें वर्णित की गई हैं। अद्यतन बालगीत साहित्य खण्ड में नवीन प्रवृत्तियों को देखने-समझने का सुअवसर मिलता है। वैज्ञानिकता, उदारीकरण, भूमंडलीकरण, बाज़ारवाद, उत्तरआधुनिकता, नवमानवतावाद जैसे आयामों की उपस्थिति ने आज की कविता को प्रभावित किया है। बालसाहित्य भी इन सबसे अछूता कहाँ रह पाया है। लगभग 800 से अधिक बाल साहित्यकारों का विस्तृत परिचय, उनकी रचना प्रक्रिया,उनका बाल साहित्य में योगदान; ये सब मिलकर इस विवेचन को विशिष्ट बनाते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक शोधकार्यों, संकलनों और काव्येतर विधाओं की पुस्तकों की महत्वपूर्ण सूची भी यहाँ है। सेवक जी का पर्याप्त श्रम और धैर्य का सार्थक प्रमाण इसमें मिलता है। बाल साहित्य की भाषा कैसी हो, विभिन्न कवियों की काव्यपंक्तियाँ पढ़कर सहज ही जाना जा सकता है।

 ’हिन्दी के राष्ट्रीय बालगीत’ में हम राष्ट्रवादी तत्वों के आलोक में लिखी गई कविताओं का मूल्यांकन बाल साहित्य के संदर्भ में देखते हैं। बच्चों के लिये हिन्दी साहित्य में अनेक ऐसी रचनायें है जिनमें देश की अखण्डता-महानता और अस्मिता के अवयवों का अवलोकन किया जा सकता है। बालगीतों की शिक्षा एवं रचना शिक्षा का अपना विशिष्ट महत्व रहा है। बालगीतों को पढ़ाये जाने की तीन प्रणालियाँ हैं- गीत तथा अभिनय प्रणाली, अर्थबोध प्रणाली, व्याख्या प्रणाली। इनके अतिरिक्त भी अन्य अनेक विधियों से बालगीत याद करवाये जा सकते हैं। काव्य की परम्परा लोक की परम्परा ही होती है। सदियों से हमारे समाज में सुख-दुख के अवसरों पर विभिन्न प्रकार की कविताओं-गीतों से, मनःस्थिति का प्रदर्शन करने की परम्परा रही है। बालगीतों में भी कुछ ऐसी ही परम्परायें जीवित रहती हैं। ’लोकगीतों में बालगीत’ के अन्तर्गत विभिन्न भाषाओं के बाल लोकगीतों को सेवक जी सम्मिलित करते हैं। लोरी, झाँझी, टेसू, घड़ल्ला के साथ-साथ पहेलियाँ, मुकरियाँ, कहावतें, ढकोसले भी इनके ही अन्तर्गत आते हैं। गाँव-गाँव में लोकसाहित्य के रूप में बिखरी पड़ी इन बालसाहित्य की थातियों को समेटना- सहेजना दुष्कर काम है। वास्तव में किसी भी साहित्य का मूल खजाना यही लोकतत्त्व होता है। हिन्दी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के बालगीत साहित्य भी उतने ही मनोरंजक और उपयोगी हैं। इसी के साथ अंग्रेजी के बालगीतों का भी अपना ही विशिष्ट स्थान है। उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण विश्व के बच्चों की भाषा-बोली, रहन-सहन आदि में अंतर हो सकते हैं किन्तु भावनाएँ तो सभी बच्चों में कोमलकांत और माधुर्य भाव की ही बलवती रहती हैं। अनेक प्रसिद्ध अंग्रेजी बालगीतों पर हिंदी के बालगीतों की रचना की गई है। बांग्ला, तमिल, तेलुगू, मलयालम, मराठी, गुजराती, सिन्धी, उर्दू आदि भाषाओं में रचित बालगीतों में मनोरंजन-शिक्षा-लयात्मकता और भावों की एकसमान धार बहती हुई दिखाई देती है। विभिन्न भाषाओं के बाल साहित्यकारों का उपयोगी परिचय सेवक जी करवाते हैं।

वास्तव में लगभग पौने दो सौ वर्षों के बिखरे हुए बाल साहित्य के इतिहास को एक पुस्तक में समेटना कोई आसान बात नहीं है। सन् 1963 तक तो संचार व यातायात के इतने उन्नत साधन भी नहीं थे। फिर बाल साहित्य जैसे विषय, जिसे आज भी थोड़ा दोयम दर्जे का मानने की भूल की जाती है, पर तत्कालीन समय में कलम चलाना और उसे इतिहास तथा समीक्षा का स्वरूप प्रदान करना, अपने आप में एक भागीरथ प्रयास ही कहा जायेगा। स्वयं सेवक जी के ही शब्दों में ’’मैंने हिन्दी साहित्य के कई इतिहास पढे़ पर बाल साहित्य पर किसी में कुछ भी लिखा न मिला। लोकगीतों में अनेक संकलन देखे पर किसी में अलग से कोई बालगीत नहीं मिले। बालगीतों का इतिहास लिखने के लिये मुझे तथ्यों को खोजकर अपना रास्ता स्वयं बनाना पड़ा।’’

बालगीत साहित्य ( इतिहास एवं समीक्षा) कृति अपने आप में एक अनूठा और प्रथम प्रयास ही कहा जाना चाहिए। शोध, चयन, प्रस्तुतिकरण, विश्लेषण, विवेचन और संकलन-इन सब कसौटियों पर प्रस्तुत ग्रंथ पूर्णतया खरा उतरता है। प्रो. उषा यादव ने भी इस ग्रंथ को आधुनिक समय की धारा से जोड़ने में पर्याप्त सफलता पाई है। उनका विचार उल्लेखनीय है,’’सेवक जी के ग्रंथ को अद्यतन करते हुए मेरी यथासम्भव चेष्टा रही कि उनकी मूल संवदेना, स्वर और चिंतनधारा को कहीं खंडित न होने दूँ। समकालीन बालकवियों ने पूरी ईमानदारी से बदलाव के रंगारंग चित्रों को कविता की पटी पर उकेरा है। सामयिकता बोध से जुड़ने के लिए मैंने ऐसे बिंन्दुओं का गम्भीरतापूर्वक संस्पर्श किया है। निश्चय ही इससे पुस्तक का आयाम बढ़ा है।‘‘

बालगीत साहित्य के इतिहास का जब भी ज़िक्र किया जायेगा, निःसंदेह स्मृतिशेष निरंकारदेव सेवक का प्रस्तुत ग्रंथ सम्पूर्ण श्रद्धा और अपरिमित विश्वास के साथ याद किया जायेगा। अपने ऐतिहासिक तथ्यों, मनोवैज्ञानिक आधारों और वैज्ञानिक दृष्टिकोणों को समेटे हुए यह ग्रंथ अतीत के मधुर रचनात्मक अवदानों को साथ लेकर वर्तमान सृजनात्मकता का मार्ग प्रशस्त करता है तथा भविष्य को सुनहरा और सुरीला बालगीत बनाने का सलोना स्वप्न दिखाता है।

सी-231, शाहदाना कॉलोनी

बरेली (243005)

मो.9027422306

टाटा की 68 साल बाद फिर हुई ‘महाराजा’ एयर इंडिया

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जेआरडी टाटा ने जब 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की होगी तो कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनकी कंपनी को सरकार ले लेगी। फिर एक दिन ऐसा भी आएगा जब उसी सरकारी कंपनी को एकबार फिर टाटा संस खरीद लेगा। 68 साल बाद ही सही लेकिन विमान क्षेत्र में देश कि नंबर वन कंपनी एयर इंडिया को टाटा खरीदने जा रहा है.खबरों के मुताबिक एयर इंडिया के लिए टाटा ने बोली जीत ली है। उम्मीद कि जा रही है कि दिसंबर तक टाटा को एयर इंडिया का मालिकाना हक मिल सकता है।

गौरतलब है कि जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की थी। दूसरे विश्व युद्ध के वक्त विमान सेवाएं रोक दी गई थीं। जब फिर से विमान सेवाएं बहाल हुईं तो 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर उसका नाम एयर इंडिया लिमिटेड कर दिया गया। आजादी के बाद 1947 में एयर इंडिया की 49 फीसदी भागीदारी सरकार ने ले ली थी। 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया।

सरकार ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि वित्त वर्ष 2019-20 के प्रोविजनल आंकड़ों के मुताबिक, एयर इंडिया पर कुल 38,366.39 करोड़ रुपये का कर्ज है। एयर इंडिया एसेट्स होल्डिंग लिमिटेड के स्पेशल पर्पज व्हीकल को एयरलाइन द्वारा 22,064 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने के बाद की यह रकम है.सरकार ने संसद को बताया था कि अगर एयर इंडिया बिक नहीं पाती है तो उसे बंद करना है एकमात्र उपाय है। एयर इंडिया पहले टाटा ग्रुप की ही कंपनी थी. इस कंपनी की स्थापना JRD टाटा ने साल 1932 में की थी. आजादी के बाद उड्डयन क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण हुआ और इसके चलते सरकार ने टाटा एयरलाइंस के 49 फीसदी शेयर खरीद लिए। बाद में ये कंपनी पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई और 29 जुलाई, 1946 को इसका नाम एयर इंडिया रख दिया गया. साल 1953 में सरकार ने एयर कॉर्पोरेशन एक्ट पास किया और कंपनी के फाउंडर जेआरडी  टाटा से मालिकाना हक खरीद लिया। इसके बाद फिर इस कंपनी का नाम एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड रखा गया.इस तरह टाटा ग्रुप ने एक बार फिर 68 साल बाद अपनी ही कंपनी को वापस पा लिया है।

साड़ी पहनने पर एंट्री बैन करने वाले रेस्टोरेन्ट को नगर निगम ने किया ‘बैन’

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कुछ दिन पहले का किस्सा तो आपको ध्यान ही होगा जब दक्षिण दिल्ली के एक रेस्टोरेन्ट ने एक महिला को केवल इसलिए प्रवेश नहीं दिया था क्योंकि उसने साड़ी पहनी थी। खुद को अल्ट्रा माडर्न घोषित करने वाला रेस्टोरेन्ट दरअसल नियमों की धज्जियां उड़ाकर अवैध रूप से चल रहा था। जिसके बाद दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने उक्त   रेस्टोरेंट को फिलहाल बंद कर दिया है। इसकी पुष्टि खुद महापौर मुकेश सूर्यन ने की।

‘अकीला’ नाम का यह रेस्तरां बिना वैध लाइसेंस के चल रहा था। उसको बंद किए जाने का नोटिस जारी किया था. इसके बाद अब वह बंद हो गया है। दिल्ली नगर निगम अधिनियम के तहत रेस्टोरेन्ट पर जुर्माना समेत अन्य कार्रवाई की भी संभावना है। जानकारी के मुताबिक एंड्रूज गंज के अंसल प्लाजा में स्थित अकीला रेस्टोरेंट को बंद करने का नोटिस 24 सितंबर को जारी किया गया था। इसमें कहा गया था कि क्षेत्र के लोक स्वास्थ्य निरीक्षक ने 21 सितंबर को जांच में पाया कि प्रतिष्ठान बिना स्वास्थ्य व्यापार लाइसेंस के अस्वच्छ स्थिति में चल रहा था. इतना ही नहीं, रेस्टोरेंट ने सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्जा भी किया है। गौरतलब है कि एक फेसबुक पोस्ट में एक महिला ने दावा किया था कि उसे ‘अकीला’ रेस्टोरेंट में केवल इसलिए एंट्री नहीं दी गई, क्‍योंकि वह साड़ी पहने हुई थी. महिला ने रेस्टोरेंट के कर्मचारियों के साथ हुई नोकझोंक का वीडियो भी पोस्ट किया था। अब ये रेस्टोरेन्ट को फिलहाल बंद किया गया है।

सिद्धू के मूड का भगवान ही मालिक !

सिद्धू के मूड को भगवान भी नहीं समझ सकते हैं। कब मन में आए और क्या निर्णय ले लें, ये कोई नहीं जानता है। ठीक दो महीने पहले तक वो पंजाब में कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए एड़ी- चोटी का ज़ोर लगा दिया था। तब उनकी लड़ाई उस समय के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से थी और वो कैप्टन को किसी भी सूरत में पद से हटवाना चाहते थे। आलाकमान ने उनकी बात मानी। तब कैप्टन को सीएम पद से हटाया और सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष भी बनवा दिया। लेकिन दो महीने भी नहीं बीते सिद्धू ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। सिद्धू के इस्तीफे के बाद पंजाब में इस समय सियासी हलचल तेज हैं इस फैसले को भले ही सीएम पद से जोड़कर देखा जा रहा हो लेकिन वो क्रिकेट हो या इससे पहले जब बीजेपी में रहे उनके फैसले चौंकाने वाले रहे।

बात 1996 की है जब टीम इंडिया, इंग्लैंड दौरे पर थी। इस टीम के साथ सिद्धू भी थे। इस दौरे के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू बिना किसी को बताए बीच दौरे में ही इंडिया लौट आए। उस वक्त टीम की कमान अजहरुद्दीन के हाथ में थी। सिद्धू के इस कदम के बाद बीसीसीआई की ओर जांच कमेटी बिठाई गई।

क्रिकेट के मैदान पर ही एक बात और मशहूर है कि 1987 के विश्वकप में सिद्धू ने बढ़िया बल्लेबाजी की थी। इस विश्वकप के कुछ ही महीने बाद टीम इंडिया का वेस्टइंडीज दौरा था। वह एक अच्छे ओपनर थे और तेज गेंदबाजों के सामने उनकी जरूरत थी। सिद्धू चोटिल होकर सीरीज से बाहर हो गए। इसको लेकर भी कई किस्से हैं। सिद्धू उसके बाद एक साल तक क्रिकेट नहीं खेले।

नवजोत सिंह सिद्धू का राजनीतिक सफर कोई बहुत पुराना नहीं है लेकिन 16-17 सालों के राजनीतिक जीवन में ही उन्होंने दल भी बदला और ऐसे फैसले लिए जिससे लोग सोचने पर मजबूर भी हुए। 2004 में उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। 2004 में अरुण जेटली ने उनको बीजेपी में शामिल कराया और इसी साल वो अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं। सिद्धू ने उस वक्त कांग्रेस के बड़े नेता रघुनंदन लाल भाटिया को एक लाख से अधिक वोटों से हरा दिया। 2009 में भी वो वहां से जीते। 2014 में उन्हें वहां से टिकट नहीं मिला लेकिन वो उस वक्त पार्टी के स्टार प्रचारक थे। बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेजा लेकिन 2017 में इस्तीफा देकर वो कांग्रेस में शामिल हो गए। नवजोत सिंह सिद्धू के बीजेपी से कांग्रेस में आने की बीच कुछ दिन अफवाहों का दौर भी चला। पंजाब में चुनाव होने वाले थे और आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में जीत का प्रबल दावेदार बताया जा रहा था। उनके आम आदमी पार्टी जॉइन करने की खबरें आने लगी। सीएम फेस को लेकर भी बात शुरू हुई लेकिन बात बनते बनते बिगड़ गई। वो कांग्रेस में आ गए। चुनाव हुए तो वहां दोबारा से कांग्रेस की वापसी होती है। कैप्टन की सरकार में उन्हें स्थानीय निकाय मंत्री का पद मिला। लेकिन कुछ ही दिनों बाद सिद्धू ने कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 2019 में कैबिनेट से इस्तीफा भी दे दिया। इसके बाद सिद्धू और कैप्टन की लड़ाई खुलकर सामने आ गई। जिसका नतीजा आज कांग्रेस पंजाब के सामने है।

जन्मदिन : लता ताई ने अपने सुर से अमर दिये गीत

दुनियाँ भर अपनी आवाज का जादू चलाने वाली भारत रत्न लता मंगेशकर का आज 92वां जन्मदिन है। दीदी के फैंस इस अवसर पर उन्हें बधाई दे हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लता मंगेशकर को जन्मदिन की बधाई दी है. पीएम ने ट्वीट कर उन्हें जन्मदिन की बधाईयां दी है।

उन्होने लिखा, ‘आदरणीय लता दीदी को जन्मदिन की बधाई।  उनकी सुरीली आवाज पूरी दुनिया में गूंजती है. भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी विनम्रता और जुनून के लिए उनका सम्मान किया जाता है. व्यक्तिगत रूप से, उनका आशीर्वाद महान शक्ति का स्रोत है. मैं लता दीदी के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं।’

लता ताई  ने छह दशकों से भी ज्यादा वक्त तक संगीत की दुनिया को अपने सुरों से सजाया है। उनका जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में एक सामान्य से परिवार में हुआ। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर जाने-माने क्लासिकल सिंगर और ऐक्टर थे। लता मंगेशकर का जन्म का नाम हेमा मंगेशकर था। लेकिन पिता के एक नाटक में एक किरदार के नाम से प्रभावित होकर उनका नाम हेमा से बदलकर लता मंगेशकर रख दिया गया।

लता ताई को संगीत विरासत में मिला था, इसलिए बचपन से ही उनका रुझान उसी तरफ हो गया। जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं और ख्यालों की नई दुनिया रचते हैं, उस उम्र में लता मंगेशकर ने पिता के साथ बैठकर संगीत सीखना शुरू कर दिया था। 5 साल की उम्र में वह पिता के संगीत नाटकों में ऐक्टिंग करने लगीं। इस तरह गायिकी के साथ-साथ लता मंगेशकर की ऐक्टिंग भी शुरू हो गई। 9 साल की उम्र में लता मंगेशकर ने पहली बार पब्लिक के सामने गाना गाया। लता मंगेशकर और पूरे परिवार पर मुश्किलों का पहाड़ तब टूटा जब उनके पिता यानी बाबा का निधन हो गया। उस वक्त लता मंगेशकर मात्र 13 साल की थी। चूंकि लता घर में बड़ी थीं तो परिवार की जिम्मेदारी उन्हीं पर आ गई। घर की माली-हालत को सुधारने के लिए लता मंगेशकर ने स्कूल त्याग दिया और करियर पर ध्यान देना शुरू कर दिया। 14 साल की उम्र तक लता बड़े-बड़े नाटकों और प्रोग्राम में काम करने लगीं। पिता की मौत के बाद मंगेशकर परिवार के करीबी दोस्त रहे मास्टर विनायक ने लता मंगेशकर के करियर में बहुत मदद की। उन्होंने लता को एक सिंगर और ऐक्ट्रेस के रूप में करियर शुरू करने में सहारा दिया। इसके बाद लता ताई वालीवुड में छा गईं। उन्होने 20 भाषाओं में 30,000 गाने गाए और अपनी सुरीली आवाज के दम पर लोगों के दिलों में उतर गईं। जन्मदिन पर ताई को हार्दिक शुभकामना।