Saturday, June 7, 2025
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करोना का खतरा : टोक्यो ओलंपिक में विजेता खुद को पहनाएंगे पदक

टोक्यो ओलंपिक के खेल गांव में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया है। यहाँ ओलंपिक  की शुरुआत 23 जुलाई से होने वाली है। ऐसे में खेल प्रशासन ने नए नियम जारी किए हैं जिससे करोना के खतरे को रोका जा सके। इस बार खिलाड़ियों को पदक को गले में डालकर नहीं दिया जायेगा। इसके अलावा टोक्यो में समारोह के दौरान कोई भी एक-दूसरे से हाथ नहीं मिलायेगा और न ही कोई किसी को गले लगायेगा। पदक खिलाड़ी को ट्रे में पेश किये जायेंगे और फिर एथलीट पदक लेकर खुद अपने गले में डालेंगे. साथ ही यह सुनिश्चित किया जायेगा कि जो भी व्यक्ति ट्रे में पदक रखेगा, वह कीटाणु रहित दस्ताने पहनकर ही इन्हें ट्रे में रखेगा ताकि सुनिश्चित हो कि किसी ने भी पदकों को छुआ नहीं हो।

बता दें कि कुछ दिनों पहले ही कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते जापान की राजधानी में टोक्यो में आपातकाल लागू कर दिया गया था। छह सप्ताह का यह आपातकाल 22 अगस्त तक लागू रहेगा। महामारी के शुरू होने के बाद यह चौथी बार है, जब टोक्यो में आपातकाल लागू किया गया है।  आपातकाल के दौरान पार्क, संग्रहालय, थिएटर और अधिकांश दुकानें एवं रेस्तरां को रात 8 बजे बंद करने का अनुरोध किया गया है।

शिफर से शिखर तक राजनीति के ब्राह्मण

2022 के चुनाव से पहले राजनैतिक दल ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की बना रहे रणनीति

भाजपा की प्रदेश करी समिति की बैठक में हुई परंपरागत वोट बैंक पर चर्चा

लखनऊ। 2022 के विधान सभा चुनाव धीरे- धीरे करीब आ रहे हैं। इस चुनाव में ब्राह्मण एक बार केंद्र में मुद्दा बनकर उभर रहे हैं। विपक्ष जहां योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगा रहा है। तो भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में अपने परंपरागत वोट बैंक को महत्व देने का निर्णय लिया गया है।

ब्राहमण शंख बजाएगा, हाथी आगे चलता जाएगा… यह वाक्‍य भले ही चुनावी नारा भर हो लेकिन इस नारे ने ब्राहमण राजनीति को नई पहचान दी है। तीन दशक पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्‍वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन का जिन्‍न निकाला था। इसके बाद ब्राहमण सत्‍ता पर आधारित देश की राजनीति का चेहरा अचानक बदल गया। जातीय राजनीति ने नए समीकरण गढ़े और देश को  गैर ब्राहमण सत्‍ता के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया। इन सालों में समाज के प्रत्‍येक क्षेत्र में गैर ब्राहमण नेतृत्‍व उभरा और चमका। लेकिन 2007 में अचानक दलित नेत्री मायावती का नया अवतार हुआ जिसने हाशिए पर चले गए ब्राहमणों को एकबार फिर अपनी ताकत दिखाने का मौका दिया। नतीजा ब्राहमण दलित गठजोड़ ने पहली बार बसपा सुप्रीमों को उत्‍तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का मौका दिया। वीपी सिंह और मायावती दोनों ही गैर ब्राहमण राजनीति का प्रतीक हैं लेकिन ब्राहमणों के शिफर और शिखर के बीच हिचकोले खाने की दास्‍तान जरूर बयान करते हैं।

2022 यूपी चुनाव में दस फीसदी ब्राहमण मतादाता एकबार फिर मुद़दा हैं। कांग्रेस ने प्रदेश की राजनीतिक जमीन वापस लेने के लिए अगले विधान सभा चुनावों में ब्राह्मण कार्ड खेलने का मन बना लिया है। बसपा ने पिछली बार की तरह इस बार भी ब्राहमणों को दिल खोलकर विधायकी का टिकट देने के संकेत दिये हैं। सपा भी ब्राहमण वोटरों को रिझाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा ब्राह्मणों को अपना आधिकारिक और परंपरागत वोट मानती है। प्रदेश में एक उपमुख्यमंत्री के रूप दिनेश शर्मा इस बात का संकेत भी देते हैं। रीता बहुगुणा जोशी और ब्रजेश पाठक जैसे दिग्‍गज ब्राहमण नेताओं को पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान देकर भाजपा ने ब्राह्मणों में संकेत दिया हैं कि वह अपने परंपरागत वोटरों को किसी भी कीमत पर बंटने नहीं देगी। 2022 के विधान सभा चुनाव के ठीक पहले ब्राह्मण वोटर एकबार फिर चर्चा के केंद्र में है।  

कभी पावर सेंटर मानी जाने वाली ब्राहमण सत्‍ता को पिछले तीन दशकों में गिरावट का दौर देखना पड़ा। ब्राह्मणों का प्रभाव विशेष रूप से हिंदी बेल्‍ट में तेजी से कम हुआ है। 1984 में जहां लोकसभा में पहुंचने वाले सांसदों का प्रतिशत 19.91 था। वहीं वर्ष 2014 में घटकर यह 8.27 पर आ गया है। उत्तर प्रदेश में तीन दशक पहले तक 60 फीसदी विधायक ब्राह्मण होते थे। प्रदेश के 20 मुख्यमंत्रियों में 6 ब्राह्मण रहे। 23 वर्षों तक यूपी में ब्राहमण मुख्‍यमंत्रियों ने राज किया। ये सभी कांग्रेस के थे। नारायण दत्‍त तिवारी के बाद पिछले 27 सालों से सीएम की कुर्सी ब्राहमणों की पहुंच से दूर हो गई है। इन वर्षों में आए 12 मुख्‍यमंत्रियों ने दलित, ओबीसी समीकरण बनाकर सत्‍ता के नए केंद्रों की स्‍थापना की।

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को मिली ऐतिहासिक सफलता ने सारे राजनैतिक समीकरणों को ध्‍वस्‍त कर दिया है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यूपी की आबादी 19 करोड़ 98 लाख थी। अब तक जनसंख्‍या 21 करोड़ तक पहुंच गई है। प्रदेश में हिन्दुओं की आबादी 79.7 प्रतिशत है।  इसमें ब्राह्मण 10 प्रतिशत,  ठाकुर 8.5 प्रतिशत,  यादव 8.5 प्रतिशत,  कुर्मी 3 प्रतिशत, जाटव 11.5 प्रतिशत,  ट्राइब्स 0.8 प्रतिशत और अन्य 24 प्रतिशत हैं। मुस्लिमों की आबादी 19.3 प्रतिशत है। इसके अलावा एक प्रतिशत की आबादी में सिख, जैन, बौद्घ और क्रिश्चियन शामिल हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने हिंदुत्‍व कार्ड खेला और प्रखर राष्‍ट्रवादी चेहरे नरेंद्र मोदी को पीएम का चेहरा बना दिया। भाजपा का यह गणित कारगर रहा और जातीय राजनीति की सीमाओं को ध्‍वस्‍त करते यूपी के मतदाताओं ने भाजपा को लोकसभा के लिए ऐतिहासिक सीटें जिता दी। ऐसे में पिछले तीन दशकों से राजनैतिक अछूत बन गया ब्राहमण समाज हर दल की जरूरत बन गया है। यानी बिना ब्राहमण सत्‍ता की चाभी मिलना किसी भी दल के लिए मुश्किल है।

मोदी मंत्रिमंडल में ब्राहमणों को स्थान   

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में ब्राह्मण केंद्रीय मंत्रियों को स्थान दिया गया है। इसके विपरीत पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी पहली केंद्र सरकार में सात ब्राह्मण थे। हालांकि पहली लोकसभा में ब्राहमण मंत्रियों का प्रतिनिधित्‍व 29 फीसदी था जबकि मौजूदा समय में केवल 15 प्रतिशत है। आज जिन ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला है।  उनकी राजनीति तीन दशक पुरानी है। वर्तमान केंद्रीय मंत्रिमंडल में नितिन गडकरी जैसे प्रभावशाली चेहरे हैं।

सपा- बसपा का ब्रामहण प्रेम

सपा अध्यक्ष ब्राह्मणों के उत्पीड़न के आरोप को लेकर कई बार योगी सरकार पर निशाना साध चुके हैं। उनके मंच से यादवों के साथ ब्राह्मणों को महत्व देने के संकेत दिये गए हैं। माता प्रसाद पाण्‍डेय सपा सरकार में विधान सभा अध्यक्ष भी बनाया गया था । अखिलेश टीम ने आईआईएम प्रोडक्‍ट अभिषेक मिश्र और मनोज पाण्‍डेय को अपना प्रमुख ब्राहमण चेहरा बनाया। पुराने दिग्‍गज भले ही अब हाशिए पर हों लेकिन सभी दलों की कवायद युवा ब्राहमण चेहरों को गढ़ने की है। जिनके नाम पर समाज के वोट जुटाए जा सकें। बसपा में सतीश चंद्र मिश्र न सिर्फ ब्राहमण नेता हैं बल्कि नंबर दो की हैसियत भी रखते हैं।

कांग्रेस का ब्राहमण राज

पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव युग तक कांग्रेस में ब्राहमणों का वर्चस्‍व रहा। पंडित नेहरू के अलावा  डी.पी. मिश्रा,  उमाशंकर दीक्षित, कमलापति त्रिपाठी,  ललिता प्रसाद मिश्र, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल और नारायण दत्‍त तिवारी जैसे नेताओं ने ब्राह्मण नेतृत्व को अपने कौशल से सर्वमान्य बनाया।

वामपंथी राजनीति में ब्राह्मण

यहां आज भी ब्राहमणों का वर्चस्व कायम है। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ब्राह्मण हैं। पुराने वामपंथी नेता अवनि मुखर्जी, चतुरानन मिश्र, गीता मुखर्जी, बुद्धदेव भट्‌टाचार्य, अच्युतानंदन ब्राह्मण हैं। नंबूदिरीपाद से लेकर सीताराम येचुरी तक ब्राह्मणों का माकपा में इतने ताकतवर पदों पर रहना साफ बताता है कि वैचारिक तौर पर ब्राह्मण आज भी अन्य पर भारी हैं।

शिखर पर  

चार राष्ट्रपति-

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, वीवी गिरी, डॉ. शंकरदयाल शर्मा,  प्रणब मुखर्जी।

छह प्रधानमंत्री –

जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हाराव,अटल बिहारी वाजपेयी।

आठ लोकसभा अध्यक्ष-

जीवी मावलंकर, एमए अयंगर, बलिराम भगत, केएस हेगड़े, रवि राय, मनोहर जोशी, सोमनाथ चटर्जी, सुमित्रा महाजन

संस्थापक/ पहले अध्यक्ष

1. कांग्रेस – वोमेश चंद्र बनर्जी

2. जनसंघ – श्यामा प्रसाद मुखर्जी

3. भाजपा – अटल बिहारी वाजपेयी

राज्‍यों में ब्राहमण

1) जम्मू कश्मीर : 2 लाख + 4 लाख विस्थापित

2) पंजाब : 9 लाख ब्राह्मण

3) हरयाणा : 14 लाख ब्राह्मण

4) राजस्थान : 78 लाख ब्राह्मण

5) गुजरात : 60 लाख ब्राह्मण

6) महाराष्ट्र : 45 लाख ब्राह्मण

7) गोवा : 5 लाख ब्राह्मण

8) कर्णाटक : 45 लाख ब्राह्मण

9) केरल : 12 लाख ब्राह्मण

10) तमिलनाडु : 36 लाख ब्राह्मण

11) आँध्रप्रदेश : 24 लाख ब्राह्मण

12) छत्तीसगढ़ : 24 लाख ब्राह्मण

13) ओद्दिस : 37 लाख ब्राह्मण

14) झारखण्ड : 12 लाख ब्राह्मण

15) बिहार : 90 लाख ब्राह्मण

16) पश्चिम बंगाल : 18 लाख ब्राह्मण

17) मध्य प्रदेश : 42 लाख ब्राह्मण

18) उत्तर प्रदेश : 2 करोड़ ब्राह्मण

19) उत्तराखंड : 20 लाख ब्राह्मण

20) हिमाचल : 45 लाख ब्राह्मण

21) सिक्किम : 1 लाख ब्राह्मण

22) आसाम : 10 लाख ब्राह्मण

23) मिजोरम : 1.5 लाख ब्राह्मण

24) अरुणाचल : 1 लाख ब्राह्मण

25) नागालैंड : 2 लाख ब्राह्मण

26) मणिपुर : 7 लाख ब्राह्मण

27) मेघालय : 9 लाख ब्राह्मण

28) त्रिपुरा : 2 लाख ब्राह्मण

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सबसे ज्यादा ब्राह्मण वाला राज्य: उत्तर प्रदेश

सबसे कम ब्राह्मण वाला राज्य : सिक्किम

सबसे ज्यादा ब्राह्मण राजनेतिक वर्चस्व : पश्चिम बंगाल

सबसे ज्यादा ब्राह्मण आबादी वाला राज्य : उत्तराखंड, 20 % ब्राह्मण

अत्यधिक साक्षर ब्राह्मण राज्य : केरल और हिमाचल

सबसे ज्यादा अच्छी आर्थिक स्थिति में ब्राह्मण : असम

सबसे ज्यादा ब्राह्मण मुख्यमंत्री वाला राज्य : राजस्थान

सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक वाला राज्य : उत्तर प्रदेश

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लोकसभा में ब्राह्मण : 48 %

राज्यसभा में ब्राह्मण : 36 %

ब्राह्मण राज्यपाल : 50 %

ब्राह्मण कैबिनेट सचिव : 33 %

मंत्री सचिव में ब्राह्मण : 54%

अतिरिक्त सचिव ब्राह्मण : 62%

पर्सनल सचिव ब्राह्मण : 70%

यूनिवर्सिटी में ब्राह्मण वाईस चांसलर : 51%

सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जज: 56%

हाई कोर्ट में ब्राह्मण जज : 40 %

भारतीय राजदूत ब्राह्मण : 41%

पब्लिक अंडरटेकिंग ब्राह्मण :केंद्रीय : 57% राज्य : 82 %

बैंक में ब्राह्मण : 57 %

एयरलाइन्स में ब्राह्मण : 61%

आईएएस ब्राह्मण : 72%

आईपीए ब्राह्मण : 61%

टीवी कलाकार एवं बॉलीवुड : 83%

सीबीआई /कस्टम ब्राह्मण : 72%

ब्राह्मण धर्म – वेद

ब्राह्मण कर्म – गायत्री

ब्राह्मण जीवन – त्याग

ब्राह्मण मित्र – सुदामा

ब्राह्मण क्रोध – परशुराम

ब्राह्मण त्याग – ऋषि दधिची

ब्राह्मण राजा – बाजीराव पेशवा

ब्राह्मण प्रतिज्ञा – चाणक्य

ब्राह्मण ज्ञान – आदि गुरु शंकराचार्य

ब्राह्मण सुधारक – महर्षि दयानंद

ब्राह्मण राजनीतिज्ञ – कौटिल्य (चाणक्य)

ब्राह्मण वैज्ञानिक – आर्यभट्ट

व्यंग्य : राजा होगा भईया, बाकी जी हुजूर

मनीष शुक्‍ल

मै राजा नहीं बनूंगा। मैने आपको बार- बार कहा है कि किसी और को राजा दो। पर आप सुनेते ही नहीं हो। घुमा फिराकर मुझे ही राजा बना देते हो फिर कहते हो चोर का पता लगाओ। चिंटू आज आज अपनी दीदी पर कुछ ज्‍यादा ही गुस्‍सा था। जब भी अपने दोस्‍तों के साथ खेलता, उसकी दीदी खेल के बीच में आ जाती। दीदी चिंटू से बहुत प्‍यार करती थी। वो चाहती थी कि खेल में राजा हमेशा उसका भाई ही रहे। फिर चाहें उसके दोस्‍त चोर बनें या सिपाही, उससे कोई फर्क नहीं पड़़ता है। अगर कोई दोस्‍त बुरा मानकर चिंटू का साथ छोड़ भी दे तो कोई बात नहीं लेकिन खेल में राजा तो चिंटू ही रहेगा। दीदी ने यही बात प्‍यार से चिंटू को समझाते हुए कहा कि देख चिंटू तू तो निरा मूर्ख है। तुझे राजा होने की कीमत ही नहीं पता है। राजा वो है, जो प्रजा का पालनहार है। सबकी देखभाल करता है। शत्रुओं से लड़ता है, अपनी प्रजा और दोस्‍तों की रक्षा करता है। सभी राजा का सम्‍मान करते हैं। हमारे परिवार में भी सभी राजा ही बनें तो फिर तू राजा क्‍यों नहीं बनना चाहता है। मां भी यही चाहती है कि तू हर खेल में नंबर वन रहे लेकिन तेरे दिमाग में पता नहीं किसने क्‍या भर दिया है जो अपने दोस्‍तों को राजा बनाने पर तुला है। दीदी की नसीहत को नजरअंदाज करते हुए चिंटू बोला, देखों दीदी आप बड़ी हो। आपको बच्‍चे के खेल को डिस्‍टर्ब नहीं करना चाहिए। और आप सुन लो ये मेरे दोस्‍त हैं। ये सब मेरी टीम का हिस्‍सा हैं। इनका भी इन होता है कि कभी ये भी राजा बनें। ये भी दूसरों को हुक्‍म दें। ये भी अपनी टीम की रक्षा के लिए दुश्‍मन से लड़ें तो फिर उनको हराकर विजेता बन जाएं। ये सब अक्‍सर मुझसे शिकायत करते हैं कि तुम्‍हारे घर वाले हमारे खेल के बीच में आ जाते हैं। वो किसी और को राजा नहीं बनने देते हैं। अगर ऐेसा ही चलता रहा तो मेरे सारे दोस्‍त मेरी टीम को छोड़कर चले जाएंगे। फिर मै किसके साथ खेलूंगा। इसलिए मै या तो अब राजा नहीं बनूंगा या फिर खेल ही छोड़ दूंगा। ये सुनते ही चिंटू की दीदी डर गईं। घर- परिवार में अब चिंटू ही सबसे छोटा और प्‍यारा बच्‍चा था। अब उसकी जिद के आगे झुक जाते थे लेकिन परिवार राजवंश का था तो फिर युवराज खेल में राजा न हो, ये कैसे गंवारा होता। दीदी ने आखिर बीच का रास्‍ता निकाला। वो चिंटू से बोली चलो अब मै भी तुम सबके साथ खेलती हूं। मै देखती हूं कि तुम सब कैसा खेलते हो, फिर किसी एक को राजा बना दूंगी। चिंटू दीदी की बात मान गया। खेल शुरू हुआ। चिंटू के सभी दोस्‍तों को कुछ न कुछ जिम्‍मेदारी दे दी गई। सभी मन लगाकर खेल रहे थे। चिंटू खुश था कि अब वो राजा नहीं है। दोस्‍त भी खुश थे कि उनमें से किसी एक को राजा बनने का मौका मिलेगा। खेल चलता रहा। उसके हारने वाले दोस्‍त एक- एक करके आउट होते रहे। चिंटू ये तमाशा देखता रहा। उसके दोस्‍त इंतजार करते रहे कि शायद जीतने को अब राजा बनने का मौका मिला लेकिन दीदी हर बार चिंटू के दोस्‍तों को राजा बनाने का फैसला टाल देंती। आखिरकार दोस्‍तों के सब्र का बांध टूट गया। अब मिलकर दीदी के पास गए। चिंटू के दोस्‍तों ने पूछा, दीदी हर बार राजा बनाने का निर्णय टाल दिया जाता है। बिना राजा के टीम कब तक खेल पाएगी और दुश्‍मन से लड़ पाएगी। आखिर हम कब राजा बनेंगे। दीदी उनके सवालों पर मुस्‍कराई, उसने दोस्‍तों को प्‍यार से समझाया कि हम जिसको भी राजा बनाने का फैसला लेते हैं। वो राजा बनने से पहले ही आउट हो जाता है। या फिर दुश्‍मन की टीम से खेलने लग जाता है। ऐसे किसी व्‍यक्ति को राजा बनाने से हम खेल हार जाएंगे। इसलिए तुम सब खेलते रहो, जो बेहतर होगा, उसको जल्‍द ही राजा बना दिया जाएगा। लेकिन चिंटू के दोस्‍त फैसला करके आए थे कि आज तो वो राजा के नाम की घोषणा करवा कर ही जाएंगे। सभी एक सुर में राजा के नाम का ऐलान करने की मांग करने लगे। दीदी को लगा कि अगर ये लोग ऐसे ही चिल्‍लाते रहे तो पूरी टीम चिंटू के राजा बनने का विरोध करने लगेगी। ऐसे में दीदी गुस्‍सा कर बोली कि लगता है तुम सब विरोधी की टीम से मिल गए हो तभी अपनी टीम को मजबूत करने की जगह चिंटू का विरोध कर रहे हो। चिंटू को लगा कि वो तो खुद ही राजा नहीं बनना चाहता है। ऐसे में उसके दोस्‍तों को राजा बनने के लिए थोड़ा इंतजार करने में क्‍या दिक्‍कत है। ऐसे में चिंटू ने अपने दोस्‍तों को समझाया कि वो सब थोड़ा सब्र रखकर इंतजार करें वरना दीदी किसी और को राजा बना देंगी। फिर नया राजा सारे दोस्‍तों को खेल से बाहर कर देगा। यह सुनते ही चिंटू के दोस्‍त डर गए। उनको लगा कि नए राजा के आने से अच्‍छा है कि चिंटू ही उनका राजा बना रहे, वो कम से कम उनकी बात तो सुनता है। दूसरा आया तो पूरा खेल ही खत्‍म कर देगा। इसके बाद सबने आपस में बात की, और तय किया कि चिंटू को ही दोबारा राजा बनाया जाए। सभी चिंटू की जय- जयकार करने लगे। यह देखकर चिंटू की दीदी खुशी से उछल पड़ी।

गोमती को टेम्स बनाने का सपना भ्रष्टाचार और गंदगी के दलदल में फंसा

गोमा का पानी छूने योग्य तक नहीं

गोमा यानि गोमती को लंदन की टेम्स नदी बनाने का सपना प्रदेश में सपा की पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने देखा था। इसके बाद 2015 में गोमती रिवर फ्रंट योजना बनाई गई। ताबड़तोड़ काम शुरू हुआ और आनन-फानन में 650 करोड़ रुपए गोमती के कायाकल्प के लिए दे दिये गए। पिछली सरकार ने सपना देखा कि टेम्स की तरह ही गोमती के किनारे बड़े- बड़े मॉल, होटल, पिकनिक स्पॉट बनेंगे। नदी तट के दोनों ओर सड़क होगी और लोग स्वस्थ जीवन के लिए यहाँ आकर मॉर्निंग वाक करेंगे। दो साल में फ्रंट तैयार होने के बाद लोग नदी में बोटिंग के साथ-साथ वाटर स्पोर्ट्स का भी मजा लेंगे। गोमती के चेहरे को निखारने के लिए सरकार इतनी ज्यादा उत्साहित और संकल्पबद्ध थी कि तुरंत बजट को 650 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1500 करोड़ रुपए कर दिया गया। लेकिन इस सपने की खौफनाक हकीकत तब सामने आई जब नई सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को गोमती रिवरफ्रंट में अपने मंत्रियों के साथ दरबार लगाया। गोमती के जल का आचमन करते ही योगी के मुंह से निकला कि क्या सारे पैसे पत्थरों में खपा दिए? गोमती इतनी गंदी और बदबूदार क्यों है? अफसरों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। आज तीन साल बाद भी गोमती की हालत वैसी ही है। 560 किमी लंबाई की ये नदी अब तक मृतप्राय है।  नदी का पानी पीने की बात छोड़िए, आज भी छूने योग्य नहीं है। इतना सब होने के बावजूद गोमती मैली क्यों है, इसके जवाब में सिर्फ जांच समिति की सिफ़ारिश ही सामने हैं।  सरकार के प्रयासों का अंदाजा इस प्रकार लगता है कि गोमती के जिस पानी की बदबू से तिलमिला कर मुख्यमंत्री ने अभियन्ताओं को लताड़ा था उस गोमती में रोजाना 3190 लाख लीटर सीवेज गिर रहा था। यह खुलासा एनजीटी की निगरानी समिति की 81 पृष्ठीय रिपोर्ट का है। दुख की बात यह है रिपोर्ट आने के बावजूद हालात बदतर हैं। फिलहाल गोमती का पानी पीने, या उससे नहाने की बात तो दूर वह लान की सिंचाई के काबिल भी नहीं है। यह हालात तब हैं जब नदी को साफ करने के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार भी 298 करोड़ रूपये योगी सरकार को दे चुकी है। गोमती किस कदर गंदी होती जा रही है इसका एक प्रमाण जल निगम की एक आंतरिक रिपोर्ट से भी मिलता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक गोमती से लखनऊ को पेयजल आपूर्ति करने वाले तीन वाटर वर्क्स में 2016 में 1119 मीट्रिक टन फालिक एल्युमिना फौरिक (फिटकरी) की खपत हुई थी जबकि 2017 में पानी को साफ करने वाले इस रसायन की खपत 1993 मीट्रिक टन हो गई जबकि 2020 आते- आते इस राशि में लगातार इजाफा ही हुआ है। इसी तरह गोमती के पानी को कीटाणु मुक्त करने वाली ब्लीचिंग और क्लोरीनेशन पर 2016-17 में एक करोड़ 10 लाख खर्च हुए जबकि अब ये धनराशि दुगने से ज्यादा हो रही है लेकिन पानी अब भी बदबूदार है।

ऐसा नहीं है कि गोमती के उद्धार को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री गंभीर नहीं दिखे। योगी ने न सिर्फ रिवरफ्रंट के भ्रष्टाचार के मामले में न्यायिक आयोग बनाया। आयोग ने पाया कि 1500 करोड़ की गोमती रिवर फ्रंट परियोजना के सेंटेज चार्ज में ही 100 करोड़ रुपये का घपला किया गया। इसके साथ ही नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में भी एक समिति बनी। इसके बाद सीएम ने रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई जांच के भी आदेश दिये। सीबीआई की शुरूआती जांच में पता चला कि अखिलेश सरकार में टेंडर जारी करने तक के अधिकार भी चीफ इंजीनियरों को दिए गए थे। रिवर फ्रंट निर्माण के लिए जो अलग-अलग टेंडर किए गए थे उसमें सीबीआई को घपले के साक्ष्य मिले। ईडी ने भी फरवरी 2018 में रिवरफ्रंट घोटाले के मामले में मनीलांड्रिंग का केस दर्ज कर अपनी पड़ताल शुरू की। ईडी के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह के निर्देश पर 4 जुलाई 2019 को रिवर फ्रंट निर्माण घोटाले में आरोपित इंजीनियर रूप सिंह यादव, अनिल यादव और एसएन शर्मासमेत आठ के खिलाफ कार्रवाई कर सम्पत्तियाँ अटेच की गई । कई ठेकेदारों से भी गहनता से पूछताछ की गई। इसमें निर्माण कार्य से जुड़ें इंजीनियरों पर दागी कम्पनियों को काम देने, विदेशों से मंहगा समान खरीदने, चैनलाइजेशन के कार्य में घोटाला करने, नेताओं और अधिकारियों के विेदेश दौरे में फिजूलखर्ची करने सहित वित्तीय लेन देन में घोटाला करने और नक्शे के अनुसार कार्य नहीं कराने का आरोप सामने आए। कंपनियों को काम देने में किस तरह की मनमानी हुई इसका प्रमाण 2019 की कैग रिपोर्ट से मिलता है। इसमें कहा गया है कि 662.58 करोड़ रूपए के कार्यों के लिए किसी भी तरह के टेंडर जारी नहीं किए गए। यानी अपनी चहेती कंपनियों को इनके सीधे ठेके दे दिए गए. लेकिन इतना सब होते हुए भी रिवरफ्रंट से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में अभी तक बड़ी और निर्णायक कार्रवाई का इंतजार हो रहा है।

रही बात गोमती की तस्वीर बदलने की तो  केवल लखनऊ में 23 नालों से निकलने वाले मैले जल को साफ़ करने हेतु भरवारा में 345 MLD का एशिया का सबसे बड़ा सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना सन 2011 में की गई और नालों को उससे जोड़ भी दिया गया पर वो आज तक सुचारू कार्य नहीं कर पा रहा है। राज्य सरकार ने यहाँ रख-रखाव के लिए हाल में सिंचाई विभाग को 38.32 करोड़ रुपये का बजट दिया लेकिन रख-रखाव तो दूर गोमती रिवरफ्रंट में जाना भी अब असुरक्षित और खतरनाक है। गंदगी और बदबू तो पहले से ज्यादा है ऑक्सीज़न लगातार कम होती जा रही है। पिछली सरकार में गोमती की सैर के लिए आई करोड़ों के नावें कबाड़ में बदल चुकी हैं और करोड़ों के फौव्वारे बदहाली से जाम हो गए। रिवरफ्रंट में बागवानी का काम लखनऊ विकास प्राधिकरण को सौंपते हुए इसके लिए भी 27 करोड़ रूपए दिए गए, मगर इस दिशा में भी जमीन पर कोई भी काम होता दिखाई नहीं दे रहा।

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सरकारी कवायद

प्राधिकरण बनाकर संतुलित विकास की कवायद

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लखनऊ की लाइफ लाइन मानी जाने वाली गोमती नदी के संतुलित विकास के लिए कार्ययोजना को हरी झंडी दी है। जिसके बाद लखनऊ जिला प्रशासन ने गोमती नदी को गुजरात की साबरमती नदी के तट की तरह खूबसूरत और सांस्कृतिक केंद्र बनाने के लिए प्राधिकरण बनाने की कवायद तेज कर दी है। गोमती को निखारने की कवायद में नगर निगम भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। साथ ही अलग-अलग विभाग भी अपनी मदद कर रहे हैं। फिलहाल गोमती रिवरफ्रंट प्राधिकरण पहले चरण के अंतर्गत गऊघाट से ला मार्टिनियर कॉलेज के पीछे तक विकसित किया जाएगा।  इसके बाद दूसरे चरण में उन कामों को भी शामिल किया जाएगा, जहां तक नगर निगम सीमा का विस्तार होगा। दरअसल जिला प्रशासन गोमती रिवरफ्रंट के जरिए लखनऊ में पर्यटन की अपार संभावनाएं देख रहा है जिला अधिकारी के मुताबिक इसे पीपीपी मॉडल और सीएसआर फंड की मदद से भी विकसित किया जाएगा। वाटर स्पोर्ट्स और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन किए जाएंगे, जिससे शहर के लोगों का गोमती के साथ जुड़ाव बड़े और साथ ही राजस्व भी बढ़े। खास बात यह है कि गोमती किनारे किसी भी तरीके के राजनीतिक एजेंडे को अनुमति नहीं मिलेगी। यानी कि किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम धरना-प्रदर्शन, रैली या गोष्ठी इन कार्यक्रमों पर पाबंदी लगी रहेगी।

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नियमों का सख्त पालन जरूरी

प्रोफेसर  ए के दीक्षित

आईआईटी, पवई

न तो शोध की गुणवत्ता में कमी है और न ही सरकार की योजनाओं में, लेकिन सबसे बड़ी समस्या नदी सफाई योजनाओं के अमलीजामा पहनाने की है। आईआईटी के समूह ने केंद्र को समय- समय पर नदियों की सफाई को लेकर अपनी रिपोर्ट दी है। दीर्घकालीन योजनाओं को मूर्त रूप भी दिया गया है लेकिन जब तक जन सहभागिता और नियमों का सख्ती से पालन नहीं होगा, उस समय तक सारे प्रयास अधूरे ही रहेंगे।

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गोमा के स्वरूप के छेड़छाड़ खतरनाक :

अनिल जोशी

पद्म भूषण, हेसको संचालक 

पर्यावरण विशेषज्ञ और हेसको के कर्ताधर्ता पद्म भूषण अनिल जोशी का कहना है कि गोमती समेत सभी नदियां मानव जीवन का आधार हैं। फिर चाहे, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू ही क्यों न हो, हमें सरकार से अधिक स्वयं के प्रयास पर निर्भर होना होगा। इसके लिए गोमती के स्वाभाविक और पर्यावरणीय प्रवाह का सटीक आकलन जरूरी है। सबसे जरूरी है कि इसके आस-पास की ज़मीन पर किसी तरह का निर्माण न हो, नदियों के मूल स्वरूप में किसी तरह की छेड़छाड़ न की जाए। रिवर फ्रंट के आसपास रियल स्टेट गतिविधियां खतरे की घंटी है। इसी प्रकार सफाई का दम्भ पाले हमारे इंजीनियर यह सोच लें कि नदियाँ अपने आपको खुद ब खुद साफ कर लेती हैं, अगर उनकी धारा से छेड़छाड़ न की जाय। अगर जल-प्रवाह की निरन्तरता के लिये गोमती और उसकी सभी सहायक नदियों में सालों भर जल भरा रहे, इसके लिये सामूहिक प्रयास किए जाएँ। कई स्थानों पर जल प्रबन्ध के लिये परम्परागत प्रणालियाँ, जल संरक्षण तथा वर्षाजल संग्रह एवं जल के दोबारा उपयोग की तकनीकों को अपनाया जाए। यह भी ध्यान रखा जाए कि नदियाँ अपना रास्ता बदलती हैं और बनाती रहती हैं। ऐसे में अगर हम नदियों के एक्टिव चैनल को बदलने या सीमित करने की कोशिश करेंगे तो वह रियेक्ट करेगी और जिसका नतीजा आपदा और मानव जाति का विनाश होगा।

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नदियों से छेड़छाड़ न करे सरकार

नदी पुत्र, रमन कान्त

संचालक, नीर फाउंडेशन

गोमती जैसी नदियों के प्रदूषित होने के दो मुख्य कारण हैं। पहला तो यह नदी भूगर्भ के जल पर आधारित है। जो लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में गोमती और इसकी सहायक नदियों में बरसात की अलावा वर्ष भर पर्याप्त जल संकट रहता है। दूसरी गंभीर समस्या नदी में सीवेज और उद्योगों का कचरा प्रवाहित होने की है। 20 प्रतिशत सीवेज और 80 प्रतिशत औद्योगिक कचरा पानी को जहरीला कर रहा है। जबकि तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद ये समस्याएँ दूर नहीं हुई हैं। या तो सरकार इस दिशा में गंभीर रुख अपनाए या फिर नदियों को उनके प्राकृतिक स्वरूप में छोड़ दे जिससे वो खुद ही अपने को साफ कर लें।

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प्वाइंटर

गोमती रिवर फ्रंट योजना का शुभारंभ – 2015

योजना की कुल अनुमानित लागत   – 2800 करोड़ 

कुल बजट                      – 1500 करोड़

शुरुआती बजट स्वीकृत            – 650 करोड़ रुपए

योजना का स्वरूप                – गोमती का सौंदर्यीकरण नदी किनारे बड़े- बड़े मॉल, होटल, पिकनिक स्पॉट, बोटिंग, वाटर स्पोर्ट्स)

रिवर फ्रंट घोटाला                – बिना टेंडर के 662.58 करोड़ रूपए के कार्य, मनीलांड्रिंग, दागी कम्पनियों को काम, विदेशों से मंहगा समान खरीदने, चैनलाइजेशन के कार्य में घोटाला, नेताओं और अधिकारियों के विेदेश दौरे में फिजूलखर्ची, वित्तीय लेन देन में घोटाला, नक्शे के अनुसार कार्य नहीं

योगी सरकार के सख्त कदम  – 19 मार्च 2017 को गोमती रिवरफ्रंट का दौरा, जांच के आदेश

जांच एजेंसियां                   – न्यायिक आयोग, मंत्री स्तर समिति, सीबीआई, ईडी

कारवाई                        इंजीनियर रूप सिंह यादव, अनिल यादव और एसएन शर्मासमेत आठ के खिलाफ कार्रवाई कर सम्पत्तियाँ अटेच की गई, एफआईआर ।

बदहाल गोमा

  • 960 किमी लंबाई की ये नदी अब मृतप्राय है।
  • गोमती में रोजाना 3190 लाख लीटर सीवेज प्रवाहित
  • एनजीटी की निगरानी समिति की 81 पृष्ठीय रिपोर्ट में खुलासा
  • गोमती का पानी सिंचाई के काबिल भी नहीं
  • लखनऊ में गोमती की सफाई के लिए 2000 मीट्रिक टन रसायन की खपत
  • लखनऊ में 23 नालों की सफाई के लिए भरवारा में 345 MLD का सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट
  • आज तक सुचारू कार्य नहीं हो पाने से हालात खराब

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आठ जिलों में जीवनदायनी गोमती

उत्‍तर प्रदेश के आठ जिलों को जीवन देने वाली गोमा का उद्गम स्थल पीलीभीत जिले के गाँव माधव टांडा में है। यहाँ के गोमत ताल से निकालकर यह नदी शाहजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ होते हुए जौनपुर में गंगा नदी में जाकर मिल जाती है। करीब 960 किमी लंबी नदी से 25 सहायक नदियां भी जुड़ी हैं। इनका जिक्र पौराणिक काल से हो रहा है। हालांकि अब इस नदी को जन्‍म स्‍थान (पीलीभीत) में ही खोजना मुश्‍किल हो गया है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिसकी वजह से यह नदी अपने जन्‍म स्‍थान पर ही मृतप्राय: हो गई है।

तीनों लोक की शिलाएं मजबूत करेगी राम मंदिर की नींव

  • अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक की शिलाएँ मंदिर निर्माण में लगीं
  • दुनियाँभर से आए एक ईंट, एक रुपए के शुरू हुआ था राम मंदिर आंदोलन
  • अगले 1000 वर्षों तक मंदिर को मजबूत रखने वाली शिलाएँ स्थापित
  • नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा शिलाओं के साथ मिट्टी का प्रयोग

अयोध्या में राम मंदिर का भव्य शुभारंभ हो चुका है। निर्माण सर्वोत्तम हो, इसके लिए तीनों लोक यानि दुनियाँ भर में बसे राम भक्तों ने मिट्टी और शिला का दान किया है। सिर्फ भारत के कोने- कोने से ही नहीं बल्कि अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और हालैण्ड तक से लाई गई शिलाओं का पूजन किया गया है।  यही शिलाएँ अगले 1000 वर्षों तक रामलला के मंदिर को सुरक्षित रखेंगी। मंदिर निर्माण में कुल सवा चार लाख घनफुट पत्थरों का प्रयोग होगा। जिसमें एक लाख घनफुट से ज्यादा पत्थरों को तराशने का काम पूरा भी हो चुका है। 1989 से लेकर अब तक कारसेवकपुरम में रखी गई शिलाओं को दिल्ली की कंपनी 23 तरह के केमिकल से चमका रही है, जो महीने भर में शिलाओं की काई व अन्य गंदगी हटाकर पूरी तरह से चमका देगी। इंग्लैंड में बसे  भारतवंशी भी अयोध्या शिला भेज चुके हैं। मंदिर निर्माण का सपना साकार होते ही वो जश्न मनाने में जुट गए हैं। उधर वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा ने मंदिर को सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर बनाने के लिए अपने अनुभव और ज्ञान को दर्शाया है। वहीं नए माडल के अनुसार मंदिर अत्याधुनिक और दीर्घकाल के लिए सुरक्षित रखने लिए सोमपुरा परिवार की अगली पीढ़ी जुट गई है। उनके बेटे निखिल और आशीष सोमपुरा ने मंदिर को कालजयी बनाने के लिए नए दृष्टिकोण का सहारा लिया है।

कुछ समय पहले अयोध्या में सर्वार्थ सिद्धि योग के अभिजित मुहूर्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर की नींव पूजा की थी । इसके साथ ही करोड़ों रामभक्तों का सपना भी पूरा होना शुरू हो गया था। अब नीव डालने से लेकर पत्थरों और शिलाओं की सफाई कटाई तेज कर दी गई गई। उम्मीद है अगले दो से तीन सालों में राम मंदिर भव्य स्वरूप में तैयार हो जाएगा।

राम मंदिर आंदोलन का शुभारंभ भी विश्व हिन्दू परिषद ने 36 साल पहले हर घर से एक ईंट और एक रुपया मांगकर की थी। जिसके मंदिर आंदोलन जनांदोलन में बदल गया था और 1989 में पहली शिलापूजन के साथ दुनियाँ भर से लोगों ने शिलाएँ भेजी थी जो आज नींव का पत्थर बन रही हैं। मंदिर निर्माण के लिए नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा नाम की पांच ईंटों (शिलाओं) की पूजा की गई थी। खासबात यह है नींव में इस्तेमाल की जाने वाली इन ईंटों के नाम हिन्दू तारीखों के नाम पर है। इसका मतलब साफ है कि ये तारीखें काल से भी मंदिर कि सुरक्षा करेंगी और हजारों साल तक मंदिर नया और मजबूत बना रहेगा। ये शिलाएँ देश के कोने- कोने से आई हैं तो 80 दशक के आखिरी सालों में मंदिर निर्माण के ऐलान के बाद यूनाइटेड किंग्डम में विराट हिन्दू सम्मेलन का आयोजित किया गया। जिसमें राम भक्तों ने ईंटें भेंट की जिनको 1989 में शिलान्यास के लिए भारत भेजा गया था। जन्म भूमि विवाद का मामला कोर्ट में होने के कारण इन शिलाओं को कारसेवकपुरम में रखा गया था। अब राम मंदिर निर्माण शुरू हो जाने से राजस्थान के भरतपुर जिले के बंशीपहाड़पुर और सिरोही के पिंडवाड़ा में जश्न का माहौल है। यहां के करीब सवा 4 लाख घन फीट पत्थर का इस्तेमाल मंदिर निर्माण में होगा। इसमें से करीब 2.75 लाख घन फीट पत्थर भरतपुर के बंशी पहाड़पुर का सैंड स्टोन होगा और करीब 1.25 लाख घन फीट पत्थर सिरोही जिले के पिंडवाड़ा का उपयोग में लिया जाएगा। अब तक करीब सवा दो लाख घनफीट पत्थर अयोध्या भेजा जा चुका है। साथ ही 1989 से भेजी गई शिलाओं और मिट्टी का  इस्तेमाल मंदिर निर्माण में होने जा रहा है। भारत के यूके से नहीं बल्कि अमेरिका और मुस्लिम देशों से भी भक्तों ने मंदिर निर्माण के लिए ईंटें भेजी। इसमें विदेशों में मुख्य रूप से श्रीराम मंदिर हालैण्ड, साउथ हैंप्टन, सऊदी अरब, आस्ट्रेलिया आदि से सैकड़ों शिलाएँ पूजन के लिए आईं। भारत में पंचायत पुंडटोला से 1001 रामभक्तों ने ईंटें भेंट की। इसके अलावा डफलापुर, सांगली महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडू, तेलंगाना, पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश, केरल समेत समस्त दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर, उत्तर और पश्चिम भारत से लोगों ने शिलाएं और मिट्टी दान की। छपिया गुजरात से आए अजित शर्मा और राम कुमार गुप्ता बताते हैं जब वो बच्चे थे तो उनके पिता 1989 में यहाँ आकर शिलाएं दान की थी। उनका ये सौभाग्य है कि इस बार वो अपने गाँव कि मिट्टी मंदिर निर्माण के लिए दे रहे हैं। राम मंदिर माडल की देखभाल करने वाले हजारी लाल कहते हैं कि पूरा जीवन मंदिर के माडल कि रक्षा में बीत गया है। अब साक्षात मंदिर निर्माण का सपना सच होने जा रहा है। दिनरात मंदिर का निर्माण करने वालों कि सेवा में व्यतीत करना जीवन का अगला उद्देश्य है जिससे मरने से पहले दिव्य मंदिर के दर्शन कर सकूँ। 

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राम लला के मंदिर में

कुल पत्थर लगेंगे  – सवा चार लाख घनफुट

स्थान से आए   – 2.75 लाख घन फीट पत्थर भरतपुर के बंशी पहाड़पुर का सैंड स्टोन

स्थान से आए  – 1.25 लाख घन फीट पत्थर सिरोही जिले के पिंडवाड़ा का

खान से निकाले – महलपुर चूरा, तिछरा, छऊआमोड़ और सिरोंधा की खानों के पत्थर

अब तक अयोध्या आए- करीब तीन लाख घनफीट पत्थर

तराशे गए –  दो लाख घनफुट

शिला- पत्थरों की सफाई – 23 तरह के केमिकल

पत्थर का रंग-  लाल, बलुआ, बादामी, सफ़ेद

निर्माण     – ईंट-गारा की जगह पत्थरों से निर्माण कर कॉपर और सफेद सीमेंट से जोड़ा जाएगा

गर्भ गृह की नींव में शिलाएँ – 51 हजार (शुद्ध मटियारी)  

समय      – न्यूनतम ढाई वर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने उस यात्रा पर यूपी सरकार का नोटिस भेजा, जिसका पहला कावड़िया रावण था

सुप्रीम कोर्ट ने कावड़ यात्रा पर स्वतः संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को नोटिस दे दी है। कोर्ट ने करोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए उत्तराखंड की यात्रा को रोक लगाने की सराहना की है। वहीं उत्तर प्रदेश की यात्रा को अनुमति देने पर आश्चर्य जताया है। कोर्ट ने कुछ सवाल पूछे हैं। शुक्रवार को फिर सुनवाई होनी है। कोर्ट ने उस कावड़ यात्रा पर रोक लगाने की पहल की है जिसकी शुरुआत वेदों के अनुसार शिव भक्त रावण ने की थी।  

समुद्र मंथन  की कथा तो आप सबने सुनी ही होगी। वेद कहते हैं कि कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही पड़ गई। तब जब मंथन में विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा. तब भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया। लेकिन इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक उर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने का काम रावण ने किया। यानि इतिहास की मानें तो कहा जाता है कि पहला कांवड़िया रावण था।

रावण ने तप करने के बाद गंगा के जल से पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव इस उर्जा से मुक्त हो गए। वैसे अंग्रेजों ने 19वीं सदी की शुरुआत से भारत में कांवड़ यात्रा का जिक्र अपनी किताबों और लेखों में किया. कई पुराने चित्रों में भी ये दिखाया गया है।

लेकिन कांवड़ यात्रा 1960 के दशक तक बहुत तामझाम से नहीं होती थी। कुछ साधु और श्रृद्धालुओं के साथ धनी मारवाड़ी सेठ नंगे पैर चलकर हरिद्वार या बिहार में सुल्तानगंज तक जाते थे और वहां से गंगाजल लेकर लौटते थे, जिससे शिव का अभिषेक किया जाता था. 80 के दशक के बाद ये बड़े धार्मिक आयोजन में बदलने लगा. अब तो ये काफी बड़ा आयोजन हो चुका है।

मोटे तौर पर कांवड़ यात्रा श्रावण मास यानि सावन में होती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जुलाई का वो समय होता है जबकि मानसून अपनी बारिश से पूरे देश को भीगा रहा होता है। इसकी शुरुआत श्रावण मास की शुरुआत से होती है और ये 13 दिनों तक यानि श्रावण की त्रयोदशी तक चलती है। इसका संबंध गंगा के पवित्र जल और भगवान शिव से है. इस बार ये यात्रा 22 जुलाई से प्रस्तावित थी।

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा के लिए श्रृद्धालु उत्तराखंड के हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री पहुंचते हैं. वहां से पवित्र गंगाजल लेकर अपने निवास स्थानों के पास के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में उस जल से चतुर्दशी के दिन उनका जलाभिषेक करते हैं. दरअसल कांवड़ यात्रा के जरिए दुनिया की हर रचना के लिए जल का महत्व और सृष्टि को रचने वाले शिव के प्रति श्रृद्धा जाहिर की जाती है. उनकी आराधना की जाती है. यानि जल और शिव दोनों की आराधना।

दूसरी ओर उत्तराखंड राज्य सरकार कावंड़ यात्रा पर पाबंदी लगा चुकी है। पिछले साल की तरह इस बार भी वहां कांवड़ यात्रा नहीं होगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ शर्तों के साथ इसे जारी रखने की मंजूरी दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस दे दी है। कुछ सवाल पूछे हैं. शुक्रवार को फिर सुनवाई होनी है।

कहानी : “देहदान”

डॉ. रंजना जायसवाल

बचपन  में  जब खुद को ढूंढना होता तो आस्था बारिश में भीग लेती। पानी की बूंदे सिर्फ तन को ही नहीं मन को भी अंदर तक धुल देती और वो अपने अंदर एक नई आस्था को पाती। आस्था…आस्था यही नाम तो रखा था बाबा ने उसका…क्योंकि उन्हें विश्वास था कि कुछ भी हो जाये आस्था कभी कमजोर नहीं पड़ सकती, कभी टूट नहीं सकती पर न जाने क्यों आस्था इन बीते दिनों में टूट रही थी और अंदर ही अंदर बिखर रही थी। शादी के बाद उसने भीगना भी छोड़ दिया था, पानी की बूंदें उसे हर बार अपनी ओर खींचने की कोशिश करती पर मान-मर्यादा की बेड़ी उसे हमेशा रोक लेती।

“बहू-बेटियों को ये सब शोभा नहीं देता, पानी से कपड़े तन से कैसे चिपक जाते हैं….अच्छा लगता है क्या ये सब?कोई देखेगा तो क्या सोचेगा !”

कल रात की आंधी ने घर में झंझावात ला दिया था और वो झाड़ू लेकर घर को साफ करने में लगी हुई थी। कल रात से ही आस्था का मन शिवम की बात सुनकर बहुत खिन्न था।

“जानती हो आस्था! आज गुड्डू का फोन आया था, चाचा जी का अब-तब लगा हुआ है।भगवान जाने कब बुलावा आया जाए। गुड्डू ने एक बड़ी विचित्र बात बताई। चाचा जी की इच्छा है उनके मरने के बाद उनकी आँखें किसी जरूरतमंद को दान कर दी जाएँ और उनकी मृत देह मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों को शोध के लिए दे दी जाये…”

उस अंधेरे कमरे में भी न जाने क्यों आस्था को ऐसा लगा मानो शिवम का चेहरे गर्व से भर गया हो। आस्था कितनी देर तक सो नहीं पाई थी, जीवन में पत्नी की मृत्यु, जवान बेटी को विधवा होते, बच्चों का बंटवारा …सब कुछ तो देख लिया था उन्होंने, अब कौन सी दुनिया देखनी बाकी थी। दो महीने पहले ही तो मिलकर आई थी उनसे…आस्था को कमरें में अकेला पाकर कितना फूट-फूट कर रोये थे वो…”आस्था मुझे इन बच्चों से एक फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए पर कम से कम ये जमीन-जायदाद के लिए तो न लड़े। मैं तो इनसे अपनी मिट्टी में आग भी नहीं लगवाऊंगा। क्या चाचा जी ने इसीलिए…??”

पूरी रात उसकी आँखों में ही बीत गई। झंझावात से झड़े अशोक के पत्ते न जाने किस शोक में डूबे हुए आस्था के घर के दरवाजे पर न जाने कौन सी आशा के साथ इस तूफान से अपने आप को बचा लेने पनाह लेने की तलाश में दरवाजे के मुहाने पर आकर इकट्ठा हो गए थे। वो हरे-पीले से पत्ते उसे बड़ी आशा से देख रहे थे,वो सोच रही थी कि उन्हें अंदर कैसे बुलाऊं और उन्हें कैसे बताऊँ कि बाहर का तूफ़ान अंदर के तूफान से कही कमतर ही है। हर साल बेटे की चाहत में उन मासूम बच्चियों की निर्ममता से हत्या करवा देने वाले शिवम तब भी उतने ही गौरान्वित महसूस करेंगे जैसे चाचा जी के देहदान करने से हो रहे थे।क्योंकि दान तो वो भी कर ही रही थी अपनी ममता का,अपनी आत्मा का ,अपनी संतान का …देहदान।

परिचय

डॉ. रंजना जायसवाल

दिल्ली एफ एम गोल्ड ,आकाशवाणी वाराणसी और आकाशवाणी मुंबई संवादिता से लेख और कहानियों का नियमित प्रकाशन,

पुरवाई ,लेखनी,सहित्यकी, मोम्स्प्रेसो, अटूट बन्धन, मातृभारती और प्रतिलिपि जैसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ऐप पर कविताओं और कहानियों का प्रकाशन,

साझा उपन्यास-हाशिये का हक

साझा कहानी संग्रह-पथिक,ऑरेंज बार पिघलती रही भाषा स्पंदन(कर्नाटक हिंदी अकादमी ) अट्टाहास,अरुणोदय,अहा जिंदगी,सोच विचार,लोकमंच,मधुराक्षर,ककसाड़, साहित्य कुंज,साहित्य अमृत,सृजन,विश्वगाथा, साहित्य समर्था,नवल,अभिदेशक,संगिनी,सरिता,गृहशोभा, सरस सलिल,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला,दैनिक जनप्रिय इत्यादि राष्ट्रीय स्तर की पत्र -पत्रिकाओं से लेख,कविताओं और कहानियों का प्रकाशन

पीके कराएंगे कांग्रेस का विपक्ष से गठबंधन

राकंपा प्रमुख शरद पवार से दो बार मुलाकात कर 2024 लोकसभा चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने में जुटे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इन दिनों गांधी परिवार के संपर्क में हैं। कहा जा रहा है कि पवार के घर पर हुई बैठक में पूर्व बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा की अगुवाई में तीसरे मोर्चे को लेकर चर्चा हुई थी। हालांकि, तब कांग्रेस बैठक से गायब रही थी। वहीं पीके ने राजधानी दिल्ली में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी मुलाकात कर एकबार फिर विपक्षी गठबंधन को हवा दे दी है।

सूत्रों के हवाले से बताया गया कि, मंगलवार शाम कांग्रेस सासंद के घर एक बैठक आयोजित हुई थी, जिसमें प्रशांत किशोर पहुंचे थे। माना जा रहा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे। खबर है कि इस दौरान सोनिया गांधी भी वर्चुअली बैठक में शामिल हुई थीं। अब कहा जा रहा है कि किशोर 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब किशोर ने गांधी परिवार से मुलाकात की है। इससे पहले वे उत्तर प्रदेश के 2017 के चुनाव में साथ आ चुके हैं। उस दौरान पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। गठबंधन कर चुनाव लड़ रही कांग्रेस-समाजवादी पार्टी को हराकर बीजेपी ने सत्ता हासिल की थी। तब किशोर ने खुलकर कांग्रेस के काम करने के तरीके पर असंतोष जाहिर किया था। अब इस बैठक के बाद इस संभावना को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि किशोर एक बार फिर पार्टी के साथ काम करने के लिए तैयार हो रहे हैं।

डिफेंस कोरिडोर से होगी आत्‍मनिर्भर सुरक्षा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो वर्षों पहले देश को रक्षा क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए डिफेंस कोरिडोर यानि रक्षा गलियारे का ऐलान किया था। इस सपने की नींव इस वर्ष पांच फरवरी को लखनऊ में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने डिफेंस एक्‍सपो में रखी थी। जहां पर दुनियाभर की रक्षा कंपनियों ने कोरिडोर में निवेश के लिए एमओयू साइन किये थे। फरवरी से ले‍कर अब तक हालात बदल चुके हैं। कोरोना काल में समूचे विश्‍व में विकास की रफ़तार धीमी पड़ गई है। हालांकि पीएम के आत्‍मनिर्भर अभियान के बाद रक्षा मंत्रालय ने इस आपदा को अवसर में तब्‍दील करने का बीड़ा उठाया है। रक्षा मंत्री ने विदेशों से आयात होने वाले रक्षा उपकरणों को 90 फीसद तक कम करने का संकल्‍प जताया है। ऐसे में कॉरिडोर अलीगढ़ से शुरू होकर आगरा, झांसी, चित्रकूट, कानपुर होते हुए लखनऊ तक आने वाले डिफेंस कोरिडोर में अब ये रक्षा उपकरण बनेंगे। फिर तोप हो गोला बारूद, ड्रोन हो या  एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर, बुलेटप्रूफ जैकेट हो या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को बढ़ावा देने के उपकरण। देश की सुरक्षा अब स्‍वदेशी उपकरणों से की जा सकेगी। रक्षा मंत्री खुद प्रोजेक्‍ट पर नजर रख रहे हैं। उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) के सीईओ अवनीश अवस्थी ने गलियारे के निर्माण की सारी बाधाओं को दूर करने के लिए अलग विंग स्‍थापित कराया है जबकि अलीगढ़ और कानपुर से लेकर चित्रकूट तक मौके पर जाकर कोरिडोर की प्रगति का जायजा लिया है।

डिफेंस कॉरिडोर के लिए करार करने वाली रक्षा कंपनियां जल्द से जल्द अपनी उत्पादन ईकाई लगाना चाह रही हैं। कंपनियों के प्रतिनिधि कॉरिडोर की स्‍थानीय प्रशासन के साथ जमीनी तैयारियों में जुटे हैं। इसमें रक्षा उपकरणों के  निर्माण के अलावा उनकी टेस्टिंग के लिए अलग से फील्ड फायरिंग रेंज स्थापित होगी। देश की पांच आर्डिनेंस फैक्ट्री और एचएएल की तीन यूनिट इस गलियारे में खुद भी अपनी भूमिका निभाएंगी। जिससे  डिफेंस का मजबूत इकोसिस्टम कोरिडोर में तैयार हो सकेगा। स्‍वदेशी कंपनियों के अलावा जर्मन कंपनी रेनमेटल, अमेरिकन, यूक्रेन समेत अन्‍य देशों की कंपनियां भी यूनिट स्थापित करेगी। प्रदेश सरकार ने ‘डिफेंस इंडस्ट्रियल एयरो स्पेस एंड एम्प्लॉयमेंट पॉलिसी’ में संशोधन कंपनियों को जमीन खरीदने पर 25 प्रतिशत और स्टाम्प ड्यूटी पर 100 प्रतिशत सब्सिडी भी दी है। जिससे क्षेत्र में रोजगार के असीम अवसर बढ़ने की संभावना है।

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जमीन उगलेगी सोना

सरकार ने डिफेंस कारीडोर के कुल छह नोड में कुल 5125.348 हेक्टेयर जमीन लेने की कवायद की है। रक्षा गलियारा के लिए सबसे अधिक जमीन गरौठा तहसील के दस गांवों में 3025 हेक्टेयर चिह्नित की है। सरकार का मकसद दशकों से विकास की राह देख रहे बुंदेलखंड का विकास कराना है। इसके अलावा कानपुर जिला की एक हजार हेक्टेयर (20 प्रतिशत), आगरा की 300 हेक्टेयर (06 प्रतिशत), अलीगढ़ की 45.84 हेक्टेयर (01 प्रतिशत), चित्रकूट की 500 हेक्टेयर (10 प्रतिशत) व लखनऊ की 200 हेक्टेयर (04 प्रतिशत) जमीन खरीदी जा रही है। जमीन की खरीद से जहां स्‍थानीय लोगों को आर्थिक रूप से फायदा होगा वहीं फैक्‍टरियों के निर्माण से रोजगार की समस्‍या भी समाप्‍त हो जाएगी।

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गलियारा  बदलेगा तकदीर

डिफेंस कॉरिडोर न सिर्फ प्रदेश बल्‍क‍ि देश की तकदीर भी बदल देगा। विकास और सुरक्षा दोनों में आत्‍मनिर्भरता का रास्‍ता यहीं से निकलेगा। इस गलियारे को बेहतर बनाने के उद्देश्य से राज्य सरकार 290 किमी लंबा बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे बना रही है। यह चित्रकूट को आगरा और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे को जोड़ेगी। राज्य सरकार ने रक्षा एवं वैमानिकी नीति लागू की है। इससे निजी क्षेत्र के वैमानिकी एवं रक्षा पार्कों के विकास को बढ़ावा मिलेगा।

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ये है डिफेंस कोरिडोर का रूट मैप

अलीगढ़

अलीगढ़ में 45 हेक्टेयर जमीन चिह्नित हो चुकी है। 10 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण पाइपलाइन में है। लघु कुटीर व मध्यम उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र में 35 उद्यमियों ने रक्षा मंत्रालय के साथ करार किया है। अलीगढ़ की तीन कंपनियों का भूमि आवंटन के लिए चयन भी हो गया है। कॉरिडोर के इस रूट पर रिसर्च सेंटर व हथियारों में लगने वाले कलपुर्जों की टेस्टिंग के लिए लैब भी बनेगा।

झांसी

कॉरिडोर के साठ फीसदी हिस्से की स्थापना झांसी में होगी। यहां गोला, बारूद, तोप बंदूक आदि का निर्माण होगा। रक्षा उपकरण बनाने के बाद यहां उनका परीक्षण भी किया जाएगा। इसके लिए अलग से फील्ड फायरिंग रेंज स्थापित होगी। हवाई जहाजों की मरम्मत होगी और हर प्रकार की राइफल के कारतूस बनेंगे। साथ ही फाइटर जेट्स की मरम्मत करने की नामी कंपनी टाइटन एविएशन एंड एयरोस्पेस इंडिया लिमिटेड ने भी झांसी में सेना के जहाजों की मेंटिनेंस, रिपेयरिंग व इंजन एक्विपमेंट्स की उत्पाद यूनिट स्थापित करने की घोषणा की है। जिसमें 20 हजार ट्रेंड व अनट्रेंड युवाओं को रोजगार मिलेगा। वहीं पूर्वांचल और बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे से भी इस क्षेत्र को काफी फायदा मिलेगा।

 चित्रकूट

चित्रकूट डिफेंस कोरिडोर का महत्‍वपूर्ण रूट है। यहां पर तोप का निर्माण होगा। यहां डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर कुल 500 एकड़ क्षेत्रफल में होगा। पहले चरण में कॉरिडोर के विकास के लिए कर्वी ब्लॉक अंतर्गत कर्वी-पहाड़ी मार्ग पर बक्टा गांव के पास 102 में 95 एकड़ जमीन की खरीद हो चुकी है, बाकी सात एकड़ की रजिस्ट्री जल्द होगी। चित्रकूटको झांसी व लखनऊ से सीधा जा रहा है।

कानपुर

डिफेंस कॉरिडोर में कानपुर प्रमुख केंद्र है। इसके लिए आईआईटी में भी 100 से अधिक स्टार्टअप कंपनियों को शुरू कराने का काम हो रहा है। इस क्षेत्र में पहले से काम कर रहीं कई बड़ी कंपनियां भी यहां आई हैं। आईआईटी के टेक्नोपार्क में करीब दस कंपनियों की लैब और कार्यालय खोलने को करार भी हो गया है। डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन) और आईआईटी के विशेषज्ञ पूरी परियोजना पर नजर रखेंगे।

लखनऊ

लखनऊ इस पूरे कॉरीडोर में नेटव‍र्किंग का कार्य करेगा। सारे प्रशासनिक कार्य यहीं से संचालित होंगे। यहां पर 200 हेक्‍टेयर जमीन पर डिफेंस कॉरीडोर की गतिविधियां संचालित होंगी।

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आगरा

आगरा में 300 हेक्टेयर जमीन पूर्व से यूपीडा के पास है। । यहां भी उद्योगों को निवेश के लिए बुलाया गया है।

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आपदा को अवसर में बदलकर देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रधानमंत्री के सपने को मूर्त रूप देने में नवाचार और स्वदेशीकरण की बड़ी भूमिका है। भारतीय सेना में स्वदेशीकरण लगातार बढ़ा है। ऐसे में रक्षा गलियारा आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार करने की दिशा में मजबूत कदम है। यहां पर कंपनियां 20 हजार करोड़ रुपये का निवेश करेंगी जबकि ढाई लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।  

राजनाथ सिंह

रक्षा मंत्री भारत सरकार

गंगा जल को हम बना रहे हैं गंदा “पानी”

आपदा केवल अवसर ही नहीं देती है बल्कि पुनर्जीवन का मौका भी लाती है। करोना महामारी के दौरान लॉकडाउन काल में माँ गंगा के निर्मल जल को देखकर यह बात साबित हो गई । जनता क‌र्फ्यू और नदी तट पर धार्मिक और औद्योगिक गतिविधियां बंद होने से रसायनिक कचरे और सीवेज में 500% की कमी दर्ज की गई जिसके बाद हरिद्वार से लेकर कानपुर, काशी और गंगा सागर तक नदी खुद ब खुद साफ हो गई। लेकिन दूसरी लहर के बाद एकबार फिर जिस कदर भीड़ करोना प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ा रही है। पर्यटन के नाम पर मौज मस्ती चल रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी लहर को लेकर गंभीर चिंता जता दी है। वहीं हम प्रकृति के नियमों को ताक पर रखकर एकबार फिर गंगा को मैली करने में जुट गए हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के कारण नदी में कचरे की डंपिंग में कमी आने से पानी पीने योग्य भी हुआ था। रियल टाइम वॉटर मॉनिटरिंग में गंगा नदी का पानी 36 मॉनिटरिंग सेंटरों में से 27 में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश समेत विभिन्न जगहों पर गंगा के पानी में काफी सुधार देखा गया। पिछले चार दशकों से अरबों खर्च करने के बावजूद मैली गंगा का खुद ब खुद साफ हो जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था लेकिन जैसे ही लॉक डाउन खुला। फैक्ट्री चालू हुईं। टेनरी का कचरा और रसायन फिर से पानी में धुलना शुरू हुआ, निर्मल गंगा एक बार फिर जहरीली हो गई। पर्यावरणविद पदम भूषण डॉ अनिल जोशी के अनुसार

गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक नदी किनारे भारत के 97 शहर व कस्बे बसे हैं। लेकिन इंसानी हरकतों के कारण देव प्रयाग से ऋषिकेश के बीच के नदी प्रवाह को छोड़कर फिलहाल कहीं भी गंगा का जल पीने लायक नहीं है। सच्चाई तो ये है कि गंगा में हर दिन 3500 एमएलडी सीवर का पानी मिलता है, इसमें से केवल 1100 एमएलडी ही ट्रीट करके गंगा में मिलाया जाता है, बाकी 2400 एमएलडी सीधे गंगा में जाता है। गंगा नदी जैविक जल गुणवत्ता आकलन की रिपोर्ट के अनुसार गंगा बहाव वाले 39 स्थानों में से करीब 37 पर हर साल मॉनसून के समय जल प्रदूषण मध्यम से गंभीर श्रेणी में होता है। लेकिन मॉनसून के बाद जैसे जल धारा समान्य होती है, 39 में से केवल एक स्थान पर ही पानी साफ रह जाता है। गंगा नदी की सफाई के दावे कर रहे प्रशासनिक अधिकारियों को बड़ा झटका देते सीपीसीबी ने पाया है कि जिस स्थान पर गंगा का पानी पीने योग्य है वह भी मॉनसून में हुई बारिश के कारण हुआ है। यानि सारी सरकारी कवायद या तो बेमानी है या फिर नदी सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है।

सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दूसरे से चौथे हफ्ते के दौरान नदी में डिसॉल्व ऑक्सीजन (डीओ-घुली ऑक्सीजन) की मात्रा में बिजनौर के मध्य गंगा बैराज से लेकर कोलकाता के मिलेनियम पार्क ब्रिज तक बढ़ोतरी दर्ज की गई, लेकिन जल के बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) में कोई खास असर नहीं दिखा। नदी में नाइट्रेट्स की मात्रा कम हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार फर्टिलाइजर और टेनरी का पानी गंगा में न मिलने के चलते ऐसा हुआ। अमोनिकल नाइट्रोजन भी जस का तस है या उसकी मात्रा में मामूली इजाफा हुआ है, ऐसा घरेलू सीवर के लगातार गंगा में जाने से हो रहा है। अनलॉक पीरियड शुरू होने के साथ ही हालात एकबार फिर बदतर होते जा रहे हैं। कन्नौज से लेकर कानपुर तक गंगा की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। तमाम सरकारी कवायद के बावजूद चमड़ा उद्योग गंगा को मैला कर रहा है वाराणसी में साल-दर-साल पहले से ज़्यादा प्रदूषित होती जा रही गंगा को साफ़ करने की मुहिम पर टिप्पणी करते हुए ट्राइब्यूनल ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों की खिंचाई की है। एनजीटी की पीठ ने कहा कि, “बड़े दुर्भाग्य की बात है कि गंगा का गंदा होना जारी है। इस बारे में आप लोग कुछ करते क्यों नहीं? आप जो नारे लगाते हैं, काम उसके विपरीत करते हैं.” रिपोर्ट के अनुसार नदी में औद्योगिक और रसायनिक कचरे के अलावा मानव शव और मृत जानवरों का बहाया जाना जारी है। ऐसे में सरकार ने गंगा सफाई की डेडलाइन चौथी बार बढ़ाकर 2021 कर दी है। नदी प्रबंधन पर कार्य कर रहे आईआईटी के प्रोफेसर एके दीक्षित का कहना है कि गंगा सफाई एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है और यह तारीखों में नहीं कोशिशों में नजर आनी चाहिए। न तो शोध में कमी है न सरकारी योजनाओं में और न ही बजट में, समस्या केवल पर्यावरण के चक्र को समझने में है। इंसान यदि जागरूक हो जाए तो देश की सभी नदियां खुद ब खुद साफ हो जाएंगी।

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टेनरियों से लेकर सीवेज ने किया कचरा

निर्मल गंगा के लिए भले ही केंद्र और प्रदेश सरकार ने एड़ी- चोटी का ज़ोर लगा दिया हो लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद गंगा में गिरने वाले सीवेज और 400 से ज्‍यादा टेनरियों के कैमिकल वाटर पर अभी तक लगाम नहीं लग सकी है। नालों को गंगा में प्रवाहित करने पर प्रतिबंध है लेकिन दावों के बावजूद रोजाना 1,2051 मिलियन लीटर सीवेज बिना शोधन के गंगा में सीधे गिराया जा रहा है। जिससे गंगा में आक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है। सरकार ने जल धारा को पूरी तरह के प्रदूषण मुक्त करने के लिए 2021 का लक्ष्य तय किया है।

कानपुर में गंगा किनारे स्थापित औद्योगिक इकाइयों (टेनरी) का हानिकारक कचरा और सीवरेज अलग-अलग लाइन से एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) तक भेजे जाने की कवायद की गई है। इससे टेनरी से होने वाले प्रदूषण और सीवेज के प्रदूषण का अलग-अलग आकलन हो सके, वहीं ओवरफ्लो की समस्या से भी निजात मिले। लेकिन समस्या फिलहाल जस की तस है। दरअसल ओवरफ्लो होने पर कई बार बगैर शोधित हुए ही कचरा गंगा में चला जाता है। इसी प्रकार पानी में बीओडी की मात्रा भी परेशानी का कारण है। कानपुर के धोबीघाट केंद्र पर तो बीओडी में लॉकडाउन के दौरान 280 फीसदी तक का इजाफा हो गया, वहां यह 15 मिग्रा प्रति लीटर दर्ज किया गया। लेकिन कानपुर को छोड़कर बाकी केंद्रों पर भी इसकी मात्रा 1.3 से 5.5 मिग्रा प्रति लीटर ही दर्ज की गई, जो लॉकडाउन से पहले की मात्रा के बराबर ही है। कन्नौज, बिठूर, कानपुर, फतेहपुर और बहरामपुर से गंदे पानी के लगातार गंगा में जाने से केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) की मात्रा बढ़ती रही। सीओडी की अधिकतम मात्रा लॉकडाउन के पहले जहां 17.7 मिग्रा प्रति लीटर थी, वहीं लॉकडाउन के दौरान यह 33.2 मिग्रा प्रति लीटर तक दर्ज हुआ।

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अमृत गंगाजल

गंगाजल के कभी न ख़राब होने का कारण है विशेष प्रकार का वायरस, जो जो इसमें सड़न पैदा नहीं होने देते। क़रीब सवा सौ साल पहले 1890 के दशक में मशहूर ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैन्किन गंगा के पानी पर रिसर्च कर रहे थे। उस वक़्त हैजा फैला हुआ था। लोग मरने वालों की लाशें लाकर गंगा नदी में फेंक जाते थे। हैन्किन को डर था कि कहीं गंगा में नहाने वाले दूसरे लोग भी हैजा के शिकार न हो जाएं। मगर ऐसा हो नहीं रहा था। हैन्किन के इस रिसर्च को बीस साल बाद एक फ़्रेंच वैज्ञानिक ने आगे बढ़ाया. इस वैज्ञानिक ने जब और रिसर्च की तो पता चला कि गंगा के पानी में पाए जाने वाले वायरस, कॉलरा फैलाने वाले बैक्टीरिया में घुसकर उन्हें नष्ट कर रहे थे। ये वायरस एंटीबॉडी बनाकर गंगा के पानी की शुद्धता बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार थे। मगर हाल के दिनों में ये देखा जा रहा है कि बहुत से बैक्टीरिया पर एंटिबॉयोटिक का असर ख़त्म हो चुका है। आज दुनिया भर में सैकड़ों हज़ारों लोग ऐसे बैक्टीरिया की वजह से मर रहे हैं।

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रमन कान्त

नदी पुत्र, संचालक नीर फाउंडेशन

गंगा कह रही है पानी दे दो, सरकार कह रही है पैसा ले लो, सहमति बनने का इंतजार है. सीधा सा गणित है पर सरकारें समझना ही नहीं चाहतीं, आप पानी से पैसा बना सकते हैं लेकिन पैसे से पानी नहीं बना सकते, चाहे पैसा पानी की तरह ही क्यों ना बहा दिया जाए।

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इंसान के किया गंगा को बीमार

  • गंगा के किनारे भारत के 97 शहर व कस्बे बसे
  • देव प्रयाग से ऋषिकेश के बीच के गंगाजल पीने लायक नहीं
  • रोजाना 3500 एमएलडी सीवर का पानी प्रवाहित
  •  इसमें से केवल 1100 एमएलडी का ही ट्रीटमेंट
  • 2400 एमएलडी जहरीला कचरा सीधे गंगा में जाता है।
  • गंगोत्री से गंगासागर तक कुल 36 रियल टाइम वाटर मॉनिटरिंग सिस्टम
  • 41 में से 37 स्थानों पर पानी पीने योग्य नहीं
  • गंगा की सहायक नदियों में भी बढ़ा प्रदूषण

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गंगा के इलाज में खर्च

  • वर्ष 2014- 2020 तक सफाई के लिए 4 ,867 करोड़ रूपये
  • क्लीन गंगा फंड में 200 करोड़ रूपए से ज्यादा की राशि जमा
  • सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार एक रूपया भी खर्च नहीं  
  • नमामि गंगे के लिए 20 हजार करोड़ रूपए का बजट
  • छह साल बाद भी बजट का पच्चीस फीसद तक खर्च नहीं
  • 2014 से 2019 तक 28451.29 करोड़ रूपए के प्रोजेक्ट पास
  • कुल 6838.67 करोड़ रूपए खर्च, एक चौथाई प्रोजेक्ट भी पूरे नहीं
  • पीने योग्य पानी में डिसॉल्व ऑक्सीजन 6 मिग्रा प्रति लीटर जरूरत
  • बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड 2 मिग्रा प्रति लीटर से कम

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लॉक डाउन में सुधरी सेहत 

  • 36 मॉनिटरिंग यूनिटों में से 27 में पानी की गुणवत्ता वन्यजीवों और मछलियों के लिए उपयुक्त
  • पानी में ऑक्सीजन घुलने की मात्रा प्रति लीटर 6 एमजी से अधिक
  •  बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड 2 एमजी प्रति लीटर
  • कोलीफार्म का स्तर 5000 प्रति 100 एमएल
  • पीएच का स्तर 6.5 और 8.5 के बीच
  • गंगा नदी में जल की गुणवत्ता की अच्छी सेहत को दर्शाता है।
  • चमड़ा उद्योग, टेनरी बंद रहने से कानपुर के आसपास पानी बेहद साफ

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यूपी में ‘गंदा’ जल

इलाहाबाद, बलिया, बिजनौर, बदायूं, बुलन्दशहर, चन्दौली, फर्रूखाबाद, फतेहपुर, गाजीपुर, हापुड़, हरदोई, अमरोहा, कन्नौज, कानपुर नगर, कासगंज, कौशाम्बी, मेरठ, मिर्जापुर, मुजफ्फरनगर, प्रतापगढ़, रायबेरली, भदोही, शाहजहांपुर, उन्नाव एवं वाराणसी ————————————